धर्म समाज

मदिरा और पराई स्त्री केवल नाश करेगी : पंडित प्रदीप मिश्रा

धमतरी। कथाकार पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुसार, यह गलत धारणा है कि पितृ पक्ष में किसी भी सामग्री को खरीदना शुभ नहीं होता है। पितरों का स्मरण कर, जो कार्य किए जाते हैं, वे सदा ही शुभ फलदायी होते हैं। छत्तीसगढ़ के धमतरी में एक कथा आयोजन के दौरान उन्होंने कहा कि चाहे वह भजन-कीर्तन हो या अन्य कोई भी कार्य, हृदय से, विश्वास से उस कार्य को करेंगे, तो जीवन में सदा सुख होगा।
पंडित मिश्रा ने लोगों को मद से दूर रहने की भी सीख दी। उन्होंने कहा कि मदिरा और पराई स्त्री केवल नाश करेगी। नशे करने वालों के पुत्र, पुत्री, पत्नी सहित स्वजन को सम्मान नहीं मिलता। पत्नी को मायके में भी सम्मान नहीं मिलता। मां को सम्मान नहीं मिलता। लोग कहते हैं कि नशेड़ी की मां, पुत्री, पत्नी, पुत्र जा रहे हैं।
और भी

तिरुपति लड्डू विवाद : बाबा बागेश्वर ने कहा- दोषियों को फांसी हो

दिल्ली। तिरुपति मंदिर प्रसादम विवाद पर बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने इसे सनातनियों के खिलाफ एक षड्यंत्र करार दिया और कहा कि भारत के सनातनियों का धर्म भ्रष्ट करने की पूर्ण रूप से तैयारी की गई है।
धीरेंद्र शास्त्री ने आंध्र प्रदेश सरकार से सख्त से सख्त कानून बनाने और दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की। उन्होंने कहा है कि दक्षिण भारत में तिरुपति बालाजी के प्रसाद में चर्बी के घी का लड्डू का प्रसाद वितरण किया गया था। अगर यह जानकारी सत्य है, तो यह बहुत बड़ा अपराध है, निश्चित रूप से भारत के सनातनियों के खिलाफ सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र किया गया है। इस प्रकार का कृत्य करके भारत के सनातनियों का धर्म भ्रष्ट करने की पूर्ण रूप से तैयारी की गई है। हम तो चाहेंगे कि वहां की सरकार सख्त से सख्त कानून बनाकर दोषियों को फांसी की सजा दे। अगर भगवान के प्रसाद में चर्बी का प्रयोग किया गया या मछली के तेल का प्रयोग किया गया है तो इससे बड़ा वर्तमान में भारत में कोई दूसरा दुर्भाग्य नहीं हो सकता है।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने आगे कहा कि इस मामले की बारीकी से जांच होनी चाहिए और मैं सरकार से कहूंगा कि शीघ्र से शीघ्र हिंदुओं के मंदिरों को हिंदू बोर्ड के अधीन कर दें। ताकि किसी भी सनातनी की आस्था को ठेस ना पहुंचे, यह सुनकर के मेरा मन बहुती दुखी है। मैं चाहूंगा कि जितने भी तीर्थ स्थल हैं वहां पर बारीकी से सभी सनातनी जांच करवाए। इस प्रकार की घटना दोबारा न हो, इसके लिए सभी एकजुट होकर तैयार रहें और अब मंदिरों को सनातनियों के ही अधीन कर देना चाहिए वर्ना इससे ऐसी स्थितियां निर्मित होती रहेंगी। बता दें कि आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डूओं में फिश ऑयल और जानवरों की चर्बी मिलाने की पुष्टि हुई थी। राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, तिरुपति मंदिर में लड्डुओं का प्रसाद तैयार किया जाता है, उसमें जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिला है। ये सब कुछ उस घी में मिला है,जिससे लड्डू तैयार किया जाता है।
और भी

मौसम में सुधार होते ही चारधाम यात्रा में बढ़ने लगी भक्तों की तादाद

देहरादून। इस साल 10 मई को शुरू हुई चार धाम यात्रा को पिछले महीने राज्य में आई आपदा के कारण रोकना पड़ा था। अब यात्रा ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है। जैसे-जैसे मौसम साफ हो रहा है, श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है। आपको बता दें कि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल अब तक(21 सितंबर) 35 लाख से ज्यादा श्रद्धालु चार धाम यात्रा कर चुके हैं।
रिकॉर्ड के मुताबिक, बद्रीनाथ धाम में अब तक 9,89,282 श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। जबकि केदारनाथ धाम में 11,45,897 श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। गंगोत्री धाम में अब तक 6 लाख 72592 श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच चुके हैं। जबकि यमुनोत्री धाम में अब तक 5 लाख 83455 श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। हेमकुंड साहिब में भी 1,66,503 श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। इतना ही नहीं, अब चारधाम यात्रा पर जाने के लिए 60 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। पिछले साल 72 लाख तीर्थयात्रियों ने चारधाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, जबकि साल 2023 में 56 लाख तीर्थयात्रियों ने दर्शन किए थे।
बता दें कि उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू होने के एक महीने बाद यानि 19 जून तक कुल 24.60 लाख से ज्यादा श्रद्धालु चार धाम के दर्शन कर चुके थे। इसके बाद मौसम खराब होने की वजह से यात्रा कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दी गई थी। इसके बाद अगस्त से श्रद्धालुओं का जाना शुरू हुआ। अब यात्रा के लिए श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी है।
उत्तराखंड सरकार तीर्थयात्रियों को हर संभव सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। यात्रा मार्ग पर पेयजल की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराई गई है और तीर्थयात्रियों के ठहरने और खाने-पीने की भी व्यवस्था की गई है। तीर्थयात्रियों को सभी धामों में जाने में किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं हो रही है। तीर्थयात्रियों को हर संभव सुविधा उपलब्ध कराने और मानसून सीजन में सभी समस्याओं से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग और पर्यटन विभाग ने आपस में समन्वय स्थापित कर सभी जिलों को एसओपी भेज दी है।
और भी

महाभरणी श्राद्ध आज, जान लें कुतुप मुहूर्त

इस समय पितृपक्ष चल रहा है। आज पितृपक्ष का पांचवां दिन है। आज चतुर्थी का श्राद्ध किया जाता है। आज चतुर्थी श्राद्ध के साथ महाभरणी श्राद्ध भी है। धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार जब किसी तिथि को विशेष बताया जाता है तो काल के दौरान भरणी नक्षत्र होते हैं तब इसे भरणी श्राद्ध कहा जाता है। धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार महाभरणी श्राद्ध का फल इन श्राद्ध के समान है। पितृपक्ष में भरणी नक्षत्रों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भरणी नक्षत्र के स्वामी यम हैं। ऐसी मान्यता है कि इस नक्षत्र में श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है। हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्ण नक्षत्र पितृ पक्ष में आमतौर पर चतुर्थी या पंचमी पर ही होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये इसी तारीख पर है। तृतीया या षष्ठी पर भी भरणी नक्षत्र पड़ सकते हैं। आइए जानते हैं आज यानी 21 सितंबर को भरणी नक्षत्र कब होते हैं, कुतुप काल और श्राद्ध-विधि: भरणी नक्षत्र कब होते हैं- इस बार चतुर्थी तिथि यानी 21 सितंबर को भरणी नक्षत्र में भरणी श्राद्ध किया जाता है।
भरणी नक्षत्र आरंभ-
21 सितंबर 2024 को 2 नागार्जुन 43 मिनट से भराणी नक्षत्र समाप्त- 22 सितंबर 2024 को 12 नागालैंड 36 मिनट तक कुतुप काल : दोपहर 11:49 से 12:38 बजे तक श्राद्ध विधि 1. किसी सुयोग विद्वान ब्राह्मण के द्वारा ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करना चाहिए।
श्राद्ध कर्म में पूर्ण श्रद्धा वाले ब्राह्मणों को दान देना ही साथ जाता है यदि किसी गरीब, धार्मिक व्यक्ति की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य होता है।
इसके साथ-साथ गाय, कुत्ता, कौवे आदि पशु-पक्षियों के भोजन का एक अंश अवश्य लेना चाहिए।
और भी

कालाष्टमी पर अपनी राशि के अनुसार करें अभिषेक

सनातन धर्म में कालाष्टमी के दिन का बहुत महत्व है। यह दिन भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव की कृपा पाने के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन लोग काल भैरव देव की गहन पूजा करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से काल भैरव देव संतुष्ट होंगे और साधक को मनवांछित फल मिलेगा। कालाष्टमी पर्व तांत्रिक विद्या का अध्ययन करने वालों के लिए विशेष माना जाता है। अगर आप भी काल भैरव देव की कृपा पाना चाहते हैं तो कालाष्टमी के दिन पूजा के दौरान अपनी राशि के अनुसार भगवान शिव का तेल से अभिषेक करें। यह साधक को सभी प्रयासों में सफलता प्राप्त करने और भाग्य चमकाने में सक्षम बनाता है।
पंचान के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12:38 बजे शुरू हो रही है. यह तिथि अब 25 सितंबर को दोपहर 12:10 बजे समाप्त हो रही है। ऐसे में क्लैष्टमी उत्सव चौथे शहरिवर को होता है.
कालाष्टमी में मेढ़ों को शहद में गंगाजल मिलाकर तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
कालाष्टमी में बैलों को दूध में गंगाजल मिलाकर और तेल से महादेव का अभिषेक करना चाहिए।
मिथुन राशि वालों को कालाष्टमी पर कच्चे दूध में दरवा मिलाकर और तेल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
द्वंद्व में, कर्क राशि वालों ने महादेव को एक गोल दे दिया।
कालाष्टमी के दिन शेर लोगों को गंगा जल में लाल फूल मिलाकर तेल से भगवान शंकर का अभिषेक करना होता था। 
कालाष्टमी में कुंवारी कन्याओं को महादेव पर गन्ने का रस चढ़ाना चाहिए।
कालाष्टमी पर तुला राशि के लोगों को भगवान शिव को पंचामेराइट अर्पित करना चाहिए।
कालाष्टमी में बिच्छुओं को गंगा जल में लॉलीपॉप मिलाकर तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना होता है।
कालाष्टमी में निशानेबाजों को दूध में केसर मिलाकर और तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
कालाष्टमी पर मकर राशि वालों को गंगा जल में साबुत हरे चने मिलाकर तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।
कुंभ राशि वालों को कालाष्टमी पर गंगा जल में काले तिल मिलाकर और तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए
कालाष्टमी में मीन राशि वालों को भांग के पत्तों में गंगा जल मिलाकर और तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना होता है।
और भी

साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को, न करें ये काम

सनातन धर्म में ग्रहण काल को अहम माना गया है जो कि जन जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ता है। इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर यानी सर्व पितृ अमावस्या के दिन लगने वाला है ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कि इस दिन किन कार्यों को करने से बचना चाहिए वरना व्यक्ति को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है तो आइए जानते हैं।
सूर्य ग्रहण पर न करें ये काम-
ज्योतिष अनुसार 2 अक्टूबर को साल का दूसरा सूर्य ग्रहण लगने वाला है ऐसे में इस दौरान भूलकर भी सोना नहीं चाहिए। ऐसा करने से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा सूर्य ग्रहण के समय भोजन पकाना, भोजन करना भी अच्छा नहीं माना जाता है ऐसा करने से परेशानियां झेलनी पड़ सकती है।
मान्यता है कि ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अधिक होता है ऐसे में इस दौरान भूलकर भी गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। ना ही सूर्य ग्रहण के संपर्क में आना चाहिए। इसके अलावा ग्रहण देखने से भी बचना चाहिए।
सूर्य ग्रहण के दौरान घर की साफ सफाई करनी चाहिए। इसके बाद स्नान करें और मंदिर की सफाई जरूर करें। ग्रहण लगने से पहले भोजन और जल में तुलसी के पत्ते जरूर रख दें। वरना भोजन दूषित हो सकता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव जरूर करें। इसके अलावा खुली आंखों से सीधे सूर्य ग्रहण को नहीं देना चाहिए।
और भी

संकटों को दूर करती है संकष्टी चतुर्थी

  • जानिए इसका म​हत्व, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय समय
अश्विनी महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। भगवान गणेश को समर्पित इस दिन का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन जो लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं, उन्हें सफलता और समृद्धि मिलती है।
इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से जीवन में आ रही परेशानियों और बाधाओं का नाश होता है। इसके साथ ही ज्ञान, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस साल संकष्टी चतुर्थी का शुभ व्रत 21 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा।
तिथि और मुहूर्त-
संकष्टी चतुर्थी 2024 की तिथि: 21 सितंबर 2024, शनिवार
चतुर्थी तिथि प्रारंभ - रात 09:15, 20 सितंबर 2024
चतुर्थी तिथि समाप्त - शाम 06:13, 21 सितंबर 2024
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:49 बजे से 12:38 बजे तक
अमृत काल: सुबह 8:13 बजे से 9:41 बजे तक
ऐसे करें पूजा-
संकष्टी चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म करने के बाद साफ कपड़े पहनें। भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर को साफ करने के बाद प्रार्थना करें। फूल और नैवेद्य चढ़ाएं, जिसमें लड्डू या मोदक शामिल हो। इसके साथ ही फल चढ़ाएं। इसके बाद गणेश मंत्र और संकष्टी चतुर्थी कथा का पाठ किया जाता है।
चंद्रमा को दें अर्घ्य-
यदि कोई मंत्र नहीं आता हो, तो ‘वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा’ या ‘ओम गं गणपतये नमः’ का जाप करें। एक दीप जलाकर भगवान गणेश की आरती करें। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर उपवास खोलें। चंद्रोदय रात 8.29 मिनट पर होगा। चंद्रमा की पूजा भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति के प्रतीक के रूप में की जाती है।
 
और भी

पितृपक्ष के तीसरे दिन करें ये काम, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल पितृपक्ष का आरंभ 18 सितंबर दिन बुधवार से हो चुका है और इसका समापन 2 अक्टूबर दिन बुधवार को हो जाएगा। ऐसे में आज यानी 20 सितंबर को पितृपक्ष का तीसरा दिन है जो पितरों के लिए बेहद खास माना गया है इस दिन व्यक्ति अपने मृत परिजनों को याद कर उनका श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करते हैं माना जाता है कि पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के द्वारा श्राद्ध ग्रहण कर उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ऐसे में अगर आप भी पूर्वजों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आज पितृपक्ष के तीसरे दिन कुछ कार्यों को करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा उन्हीं कार्यों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
पितृपक्ष के तीसरे दिन करें यह काम-
पितृपक्ष के तीसरे दिन पूर्वजों से जुड़ा पूजा अनुष्ठान आप कर सकते हैं जैसे पितृ तर्पण, दान पुण्य और पिंडदान कर सकते हैं। वही जिनकी कुंडली में पितृदोष है वे इस दिन पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान जरूर करें। इसके अलावा गंगा नदी में स्नान करना भी आज के दिन शुभ माना गया है। पितृपक्ष के दिनों में गाय, कौवे और कुत्ते आदि को भोजन करना भी पुण्यदायी माना जाता है। इस समय जरूरतमंदों व गरीबों को भोजन कराएं और उनकी मदद भी करें।
पितृपक्ष के तीसरे दिन ब्राह्माणों को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराएं और वस्त्र दक्षिणा भी दें। ऐसा करना अच्छा माना जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए गायत्री पाठ भी आयोजित किया जा सकता है। घर आए किसी भी महमान का अपमान न करें। इसके अलावा गरीबों को दान जरूर दें।
और भी

आज से धमतरी में शिव महापुराण कथा शुरू

धमतरी। अंतरराष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा की आज से छत्तीसगढ़ के धमतरी में शिव महापुराण कथा शुरू होने वाली है। ये कथा काटाकुर्रीडीह कुकरेल में आयोजित होगी। गुरुवार को कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा रायपुर एयरपोर्ट पहुंचे।
जहां से आयोजन समिति के सदस्यों संग उनका काफिला बाइपास होते हुए धमतरी रुद्रेश्वर महादेव मंदिर पहुंचा। पंडित प्रदीप मिश्रा ने रुद्रेश्वर महादेव के दर्शन कर पूजा अर्चना की। इस दौरान उन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुट गई। बता दें कि महा ​शिवपुराण की कथा दोपहर 2 बजे से 24 सितंबर तक चलेगी।
कथा वाचक पंड़ित प्रदीप मिश्रा के शिव महापुराण कथा वाचन कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए धमतरी पुलिस ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की है। शिव महापुराण कथन वाचन के दौरान ग्राम कुकरेल से ग्राम सिरौदखुर्द, ग्राम बनबगौद, ग्राम बांसपारा से पैदल पहुंचेंगे। इसलिए पंडित प्रदीप मिश्रा के आगमन को लेकर पुलिस ने कड़ी व्यवस्था की है। करीब 350 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक नगरी धमतरी मार्ग बंद रहेगा।
और भी

आज है पितृ पक्ष का दूसरा श्राद्ध, रात में गुप्त रूप से करें ये उपाय

पितृ पक्ष 2024 : पितृ पक्ष 18 सितंबर से शुरू हो चुका है. यह महापर्व अगले 15 दिनों तक चलेगा. आज श्राद्ध की दूसरी तिथि (पितृ पक्ष का दूसरा श्राद्ध) है और जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु इस तिथि को हुई है, वे इस दिन श्राद्ध तर्पण करते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर आप आज रात ये एक उपाय करते हैं तो आपके पूर्वजों का आशीर्वाद हमेशा आप और आपके परिवार पर बना रहता है|
पितरों को प्रसन्न करने के उपाय-
जिस दिन आप अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म कर रहे हों, उस दिन सूर्यास्त के समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक जलाएं. अब दीपक जलाने की सही विधि भी जान लें. एक मिट्टी का दीपक लें और उसमें थोड़े काले तिल डालें. अब इसमें सरसों का तेल डालें और रुई की बत्ती बनाकर पितरों का ध्यान करते हुए इसे जलाएं. इसे जलाने के बाद हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद मांगें कि उनकी कृपा हमेशा आप और आपके परिवार पर बनी रहे. इसके अलावा उसी रात दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल में काले तिल डालकर उनका ध्यान करें और उन्हें अर्घ्य दें। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपने पितरों की प्यास बुझाता है, उसे जीवन में कभी कोई बाधा नहीं आती। तरक्की के रास्ते अपने आप खुल जाते हैं और समाज में उसे खूब मान-सम्मान भी मिलता है।
आज हिंदू तिथि के अनुसार दूसरा श्राद्ध (पितृ पक्ष का दूसरा श्राद्ध) है। वैसे तो आपको यह उपाय पूरे 15 दिन करना चाहिए, लेकिन अगर आप इसे अपने पितरों के तर्पण तिथि पर भी करते हैं, तो आपको इससे कई गुना अधिक लाभ मिलता है।
और भी

पितृ पक्ष के इन तीन दिनों में पिंडदान तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती

पितृ पक्ष की अवधि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे पितृ पक्ष या श्राद्ध भी कहा जाता है। यह पितरों को तर्पण देने के लिए समर्पित एक महत्वपूर्ण अवधि है और 16 दिनों तक चलती है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय अपने पूर्वजों को तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ दोष से संबंधित समस्याओं का भी समाधान किया गया। इसके अलावा पितृ पक्ष की तीन ऐसी तिथियां हैं जिन पर श्राद्ध करने से आत्मा तृप्त होती है। तो आइए जानते हैं इन विशेष अवधियों (पितृ पक्ष, 2024) के बारे में। वैसे तो श्राद्ध पक्ष की सभी तिथियों का विशेष महत्व है, लेकिन भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या को विशेष माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में उन पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो और उनकी कोई संतान न हो या जिनकी मृत्यु की तिथि अज्ञात हो। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें वैकुंठ धाम में स्थान मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पूर्वज प्रसन्न होते थे।
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों को भोजन कराएं और उनके मंत्रों का जाप करें। इसके अलावा आपको श्राद्ध पक्ष के दौरान रोजाना भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और उनका पिंडदान किसी योग्य ब्राह्मण को सौंपना चाहिए। इससे आप पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव से बच जायेंगे। व्यक्ति के जीवन में खुशियां भी आएंगी, लेकिन याद रखें कि इस समय आपको तामसिक कार्यों से बचने की जरूरत है।
और भी

गुरुवार को ऐसे करें भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रसन्न, होगा धन लाभ

सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता है वही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के लिए उत्तम माना जाता है इस दिन भक्त पूजा पाठ करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं
लेकिन इसी के साथ ही अगर आज भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की एक साथ पूजा कर माता लक्ष्मी की प्रिय चालीसा का पाठ श्रद्धा भाव से पढ़ा जाए तो जीवन के कष्टों का अंत हो जाएगा। साथ ही साथ धन लाभ की प्राप्ति होगी और आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं लक्ष्मी चालीसा पाठ।
लक्ष्मी चालीसा पाठ-
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
और भी

रायपुर पहुंचे कथावाचक पं प्रदीप मिश्रा का प्रीतेश गांधी ने किया स्वागत

रायपुर/धमतरी। शिव पुराण कथा के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान रखने वाले पंडित प्रदीप मिश्रा का आगमन छत्तीसगढ़ की धरती पर स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट में हुआ। इस अवसर पर उनका स्वागत करते हुए छत्तीसगढ़िया परिधान से सम्मान सर्व गुजराती समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतेश गांधी एवं नगर निगम के पूर्व सभापति राजेंद्र शर्मा द्वारा किया गया।
ग़ौरतलब की पंडित मिश्रा जी शिव महापुराण कथा हेतु इस वर्ष में तीसरी बार छत्तीसगढ़ की धरती पर पहुंचे हुए हैं वर्तमान में 20 सितंबर से 24 सितंबर तक धमतरी जिला के समीपस्थ ग्राम कांटा कुर्रीडीह मे शिव महापुराण कथा का वृहद आयोजन किया गया है।
और भी

इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को मनाई जाएगी

इंदिरा एकादशी हर साल आश्विन माह में मनाई जाती है। यह त्यौहार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इसके अलावा हम अपने पितरों को तर्पण भी देते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इंदिरा एकादशी के दिन सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु की पूजा करने से साधकों के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को जाने-अनजाने में किए गए पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। इस शुभ अवसर पर भक्त भक्तिभाव से भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं। आइए अब जानते हैं इंदिरा एकादशी की सही तारीख और समय। वैदिक पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 27 सितंबर, शनिवार को दोपहर 1:20 बजे से प्रारंभ हो रही है। वहीं, यह नियुक्ति रविवार, 7 सितंबर को दोपहर 2:49 बजे समाप्त हो रही है। इसलिए 27 सितंबर को एकादशी श्राद्ध और 28 सितंबर को इंदिरा एकादशी मनाई जाएगी। इंदिरा एकादशी का व्रत करने वाले श्रद्धालु 8वें शहरिवार को सुबह 6:13 बजे से 8:36 बजे तक पारण कर सकते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार इंदिरा एकादशी पर सिद्ध-योग का संयोग बनता है। यह योग रात्रि 11:51 बजे तक चलता है। उसके बाद साध्य योग का उदय होता है। इस शुभ अवसर पर शिव योग का भी दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन भगवान शिव दोपहर तक कैलाश पर विराजमान रहते हैं। बाद में हम नाडी की सवारी करते हैं।
सूर्योदय- प्रातः 6:13 बजे
सूर्यास्त - शाम 6:10 बजे
चंद्रोदय- प्रातः 3 बजे
चन्द्रास्त- सायं 4:02 बजे
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:36 बजे से सुबह 05:24 बजे तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:11 बजे से 2:59 बजे तक
गोधूलि बेला- शाम 6:22 बजे शाम 6:46 बजे तक
निशिता मुहूर्त- रात 11:52 बजे - दोपहर 12:39 बजे।
और भी

दिवाली से पहले इन चीजों को करें बाहर, लक्ष्मी का होगा आगमन

हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व मनाए जाते हैं लेकिन दिवाली प्रमुख माना गया है जो कि बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है इसकी शुरुआत धनतेरस से हो जाती है और समापन भाई दूज पर होता है। पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर दिवाली का पर्व मनाया जाता है।
इस दिन लोग घर में लक्ष्मी गणेश की विधिवत पूजा करें और अपने घर को दिए आदि से सजाते हैं इस साल दिवाली का त्योहार 1 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसे में दिवाली से पहले कुछ चीजों को घर से बाहर कर देना बेहतर होता है इससे घर की नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और शुभता का प्रवेश होता है साथ ही लक्ष्मी जी की असीम कृपा बरसती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा दिवाली से जुड़े वास्तु टिप्स दे रहे हैं तो आइए जानते हैं।
दिवाली से जुड़े वास्तु नियम-
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में टूटा कांच रखना अशुभ माना जाता है इससे गृहक्लेश बढ़ता है घर में आए दिन झगड़े आदि होते हैं ऐसे में टूटे कांच को तुरंत ही घर से बाहर कर देना चाहिए। इसके अलावा टूटे बर्तनों को भी घर में रखना अच्छा नहीं माना जाता है इससे घर की सुख शांति छिन जाती है और कंगाली का सामना करना पड़ता है इसके अलावा धन के लिए भी बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। वास्तु की मानें तो घर में पुराने दिये भी नहीं रखने चाहिए इसे अशुभ माना जाता है ऐसे में आप दिवाली से पहले ही घर से पुराने दिए बाहर कर नए दिये घर लें आएं। इन दियों को आप दान भी कर सकते हैं।
दिवाली की साफ सफाई के दौरान घर में पुराना या टूटा बेड है तो उसे भी हटा दें। माना जाता है कि इसे रखने से वाद विवाद व कलह बनता है साथ ही पति पत्नी के बीच मन मुटाव भी बना रहता है। बंद घड़ी को भी घर में नहीं रखना चाहिए। इसे अशुभ माना गया है ऐसे में दिवाली आने से पहले आप इसे भी हटा दें।
और भी

सबसे जटिल कुंडली दोषों में शामिल हैं पितृ दोष

  • ज्योतिषाचार्य से जानिए श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य करें या नहीं
भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू हो गए। प्रतिपदा का पहला श्राद्ध बुधवार को मनाया जा रहा है। पूर्णिमा और अनंत चतुर्दशी एक ही दिन होने के कारण सुबह अनंत देव की पूजा की गई।
ज्योतिषाचार्य पंडित रवि शर्मा ने बताया कि ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानी पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिंदू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है।
पितृ पक्ष में पितरों को आजाद कर देते हैं यमराज-
पंडित रवि शर्मा के अनुसार, मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं, ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए पितर काग का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं।
अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता, तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध की तिथि वाले दिन घर में भोजन बनता है और श्राद्ध का प्रथम अंश काग को दिया जाता है।
मांगलिक कार्यों पर रहती है रोक-
ज्योतिषाचार्य रवि शर्मा के अनुसार, पितृपक्ष अशुभ नहीं होता, बल्कि यह पूर्वजों को समर्पित समय होता है। इस दौरान पूर्वजों की पूजा, तर्पण और दान करना मुख्य होता है।
उनका कहना है कि इस पक्ष में खरीदारी को अशुभ मानने की धारणा गलत है। इसमें केवल विवाह व अन्य बड़े मांगलिक कार्यों पर इस समय रोक होती है। शर्मा बताते हैं कि यदि इस अवधि में कोई नई वस्तु खरीदी जाती है, तो पूर्वजों को इससे खुशी होती है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन दिनों में शुभ और श्रेष्ठ मुहूर्त में खरीदारी करनी चाहिए, क्योंकि इससे अधिक लाभ प्राप्त होता है।
 
और भी

पितृपक्ष के दिनों में श्राद्ध तर्पण करते वक्त उनकी आरती जरूर करें

सनातन धर्म में साल के 16 दिन पितरों को समर्पित होते हैं जिन्हें पितृपक्ष या फिर श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद कर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर कृपा करते हैं पंचांग के अनुसार आश्विन माह का कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित होता है।
वहीं पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए इस दौरान उनका तर्पण और पिंडदान जरूर करें। इस बार पितृपक्ष का आरंभ आज 18 सितंबर बुधवार से हो चुका है और इसका समापन 2 अक्टूबर को हो जाएगा। ऐसे में अगर आप पितरों को तर्पण कर उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं साथ ही उन्हें शांति और मुक्ति दिलाना चाहते हैं तो पितृपक्ष के दिनों में श्राद्ध तर्पण करते वक्त उनकी आरती जरूर करें ऐसा करने से लाभ मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं पितृ देव की आरती।
पितृ देवता की आरती-
जय जय पितर जी महाराज,
मैं शरण पड़ा तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रख लेना लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप ही रक्षक आप ही दाता,
आप ही खेवनहारे,
मैं मूरख हूं कछु नहिं जानू,
आप ही हो रखवारे,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी,
करने मेरी रखवारी,
हम सब जन हैं शरण आपकी,
है ये अरज गुजारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
देश और परदेश सब जगह,
आप ही करो सहाई,
काम पड़े पर नाम आपके,
लगे बहुत सुखदाई,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
भक्त सभी हैं शरण आपकी,
अपने सहित परिवार,
रक्षा करो आप ही सबकी,
रहूं मैं बारम्बार,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
जय जय पितर जी महाराज,
मैं शरण पड़ा हू तुम्हारी,
शरण पड़ा हूं तुम्हारी देवा,
रखियो लाज हमारी,
जय जय पितृ जी महाराज, मैं शरण पड़ा तुम्हारी।।
और भी

भगवान विश्वकर्मा को ऐसे करें प्रसन्न, जानिए...संपूर्ण पूजा विधि

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन विश्वकर्मा पूजा को विशेष माना गया है जो कि भाद्रपद माह में पड़ता है इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना की जाती है मान्यता है कि इस दिन इनकी पूजा करने से कार्यों में सफलता मिलती है और बाधाएं दूर हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा देव शिल्पी हैं इन्हें ब्राह्माण का सबसे बड़ा वास्तुकार भी कहा जाता है हर साल 17 सितंबर को उनकी जयंती मनाई जाती है माना जाता है कि इसी शुभ दिन पर भगवान विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था।
इस साल विश्वकर्मा पूजा आज यानी 17 सितंबर दिन मंगलवार को मनाई जा रही है इसे विश्वकर्मा दिवस के नाम से भी जाना जाता है इस दिन फैक्ट्री, कारखानों में मशीन और पुर्जे की पूजा का विधान होता है। इस पर्व को बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भगवान विश्वकर्मा की संपूर्ण पूजा विधि के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
विश्वकर्मा जी की सरल पूजा विधि-
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि बेहद ही सरल हैं इसके लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पूजा वाले स्थान की अच्छी तरह साफ सफाई करें और वहां एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद उस स्थान को फूलों से सजाएं और फैक्ट्री और कारखानों में प्रयोग होने वाले पुर्जे को भी उनके सामने रखकर उन पर कलावा बांधकर विधिवत पूजा करें पूजा के दौरान फल, मिष्ठान अर्पित कर हवन करें इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा कर प्रभु से भूल चूक के लिए क्षमा मांगे और अपनी प्रार्थना भगवान से कहें। फिर सभी में प्रसाद का वितरण करें। अपनी क्षमता के अनुसार इस दिन दान पुण्य जरूर करें ऐसा करने से लाभ मिलता है।
और भी