धर्म समाज

आज सीता नवमी के दिन अपनी राशि के अनुसार करें ये उपाय

  • दांपत्य जीवन में आएगी मधुरता
सनातन धर्म में सीता नवमी का विशेष महत्व है। यह पर्व देवी सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे जानकी नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था, जो स्वयं भूमि पुत्री और भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी थीं। 2025 में सीता नवमी का पर्व आज 5 मई को मनाया जा रहा है। इस दिन यदि व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार उपाय करे, तो जीवन में सुख, शांति, वैवाहिक आनंद और समृद्धि प्राप्त होती है।
मेष राशि
मेष राशि के जातकों को सीता नवमी के दिन लाल चंदन की माला से श्री सीता-रामाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही, सुहागिन स्त्री को लाल वस्त्र और सिंदूर का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन में शांति और सौहार्द बढ़ेगा।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के लोग भौतिक सुखों को महत्व देते हैं। इस दिन मां सीता को शहद और दूध से बनी मिठाई अर्पित करें। यह उपाय पारिवारिक कलह को शांत कर आर्थिक स्थिरता प्रदान करेगा।
मिथुन राशि
इस दिन मां जानकी को हरे वस्त्र चढ़ाएं और हरे रंग की 5 चूड़ियां किसी कन्या को दान करें। सीता रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करना अत्यंत शुभ रहेगा।
कर्क राशि
सीता नवमी के दिन माता सीता को चावल और दूध से बनी खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद परिवार के साथ यह प्रसाद ग्रहण करें। इस उपाय से घर में समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
सिंह राशि
इस दिन सुनहरे या केसरिया वस्त्र धारण करें और मां सीता को हल्दी व सिंदूर अर्पित करें। किसी गरीब कन्या को वस्त्र दान करें। इससे समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा और विवाह में आ रही अड़चनें दूर होंगी।
कन्या राशि
सीता नवमी पर उन्हें देवी सीता को हरे मूंग की दाल और मिश्री का भोग लगाना चाहिए। इससे मानसिक शांति मिलेगी और रिश्तों में मधुरता आएगी।
तुला राशि
तुला राशि के जातक सौंदर्य और संतुलन को महत्व देते हैं। इस दिन मां सीता को गुलाब के फूल अर्पित करें और गुलाबी रंग के वस्त्र पहनें। 7 कन्याओं को खीर और पूड़ी का भोजन कराएं। यह उपाय वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ाएगा और शुभता लाएगा।
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के जातक तीव्र भावना और क्रोध के कारण परेशान रहते हैं। उन्हें सीता नवमी पर मां जानकी को लाल पुष्पों के साथ सीता राम स्तुति अर्पित करनी चाहिए। किसी वृद्ध महिला को लाल साड़ी और भोजन दान करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी।
धनु राशि
धनु राशि के जातकों को सीता नवमी के दिन मां सीता को पीले वस्त्र और केला अर्पित करें। यह उपाय भाग्य को प्रबल करेगा और जीवन में नए अवसर देगा।
मकर राशि
मकर राशि के जातक मेहनती होते हैं। इस दिन माता सीता को तिल से बने लड्डू अर्पित करें और बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लें। सीता-राम विवाह कथा का श्रवण या पाठ करें। इससे कार्यों में सफलता और जीवन में स्थायित्व प्राप्त होगा।
कुंभ राशि
इस दिन मां सीता को नीले फूल चढ़ाएं और किसी जरूरतमंद महिला को चप्पल और वस्त्र दान करें।
मीन राशि
मीन राशि वाले आध्यात्मिक और भावुक होते हैं। उन्हें सीता नवमी के दिन देवी सीता को पीले पुष्प अर्पित करने चाहिए और 5 कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। यह उपाय विवाह में आ रही बाधाएं दूर करेगा और जीवन में आनंद लाएगा।
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केदारनाथ में पहले दिन 30 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

केदारनाथ। श्री केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को विधि-विधान के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। कपाट खुलने के बाद पहले ही दिन (शुक्रवार को) दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं का भारी उत्साह देखने को मिला। पहले दिन रिकॉर्ड 30,154 तीर्थ यात्रियों ने बाबा केदार के दर्शन किए।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार शाम 7 बजे तक 19,196 पुरुष, 10,597 महिलाएं और 361 बच्चों सहित कुल 30,154 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।
कपाट खुलने के साथ ही केदारनाथ धाम में भक्तों का तांता लग गया। 'हर हर महादेव' के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा। जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, मंदिर समिति, तीर्थ पुरोहित समाज, स्थानीय व्यापारियों और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर यात्रा को सुचारू और सुरक्षित बनाने के लिए चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए सभी जरूरी प्रबंध किए गए हैं।
केदारनाथ धाम, चारधाम यात्रा का अहम हिस्सा है। हर वर्ष यहां भारी संख्या में श्रद्धालु आकर बाबा केदार के दर्शन करते हैं। इस वर्ष यात्रा के पहले ही दिन श्रद्धालुओं में जो उत्साह देखने को मिला है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या में भारी वृद्धि देखने को मिल सकती है।
बता दें कि शुक्रवार को केदारनाथ धाम के कपाट विधि-विधान और पूजा-अर्चना के साथ भक्तों के लिए खोल दिए गए। श्रद्धालु अब अगले छह महीनों तक बाबा केदार के दर्शन कर पाएंगे। शुक्रवार सुबह 7 बजे शुभ मुहूर्त में विश्व प्रसिद्ध श्री केदारनाथ धाम के कपाट विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ खोले गए। मंदिर के कपाट खुलते ही हेलीकॉप्टर से श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की गई। कपाट खुलते समय आर्मी बैंड ने मधुर धुनें बजाईं। इस दौरान केदारनाथ घाटी श्रद्धालुओं के जयकारों से गूंज उठी
इस अवसर पर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी समेत प्रमुख अधिकारी मौजूद रहे। इसके अलावा, केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग, मुख्य पुजारी वागेश लिंग, तीर्थ पुरोहित, बीकेटीसी के पदाधिकारी, स्थानीय समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद रहे।
इससे पहले, अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर यमुनोत्री धाम के कपाट खोले गए थे। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ बीते बुधवार को 11 बजकर 55 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद रहे थे। बता दें कि यमुनोत्री और गंगोत्री के बाद केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। अब चार मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट भी खुल जाएंगे।
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शिव चालीसा और महाकाल की कृपा से टल सकती है अकाल मृत्यु

काल के भी काल हैं महाकाल”- यह कथन केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से सनातन परंपरा में सिद्ध होता आया सत्य है। भगवान शिव का एक रूप “महाकाल” न केवल मृत्यु के देवता हैं, बल्कि वे स्वयं काल को भी नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं। उनके नाम का स्मरण और विशेष रूप से शिव चालीसा का पाठ व्यक्ति के जीवन में ऐसी अलौकिक सुरक्षा प्रदान करता है, जो असंभव को संभव बना देता है।इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे शिव चालीसा के नियमित पाठ और महाकाल की कृपा से अकाल मृत्यु, भय, रोग और बाधाएं भी मार्ग बदल देती हैं, साथ ही जानेंगे इसके पीछे छिपा आध्यात्मिक रहस्य और भक्तों के कुछ सच्चे अनुभव।
कौन हैं महाकाल?
महाकाल भगवान शिव का वह रौद्र रूप है जो उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में पूजित है। इस रूप में वे न केवल मृत्यु के स्वामी हैं, बल्कि मृत्यु को भी नियंत्रित करने वाले देव हैं। मान्यता है कि जब ब्रह्मांड की अंतिम घड़ी आएगी, तब भी केवल महाकाल ही रहेंगे। शिव को 'अनादि' और 'अनंत' कहा गया है, जिनका न आरंभ है, न अंत।महाकाल का स्मरण किसी भी भय को समाप्त कर सकता है — चाहे वह काल का भय हो, रोग का, जीवन के असमर्थ क्षणों का, या मानसिक अशांति का।
शिव चालीसा : महाकाल का स्तुतिगान
शिव चालीसा भगवान शिव की 40 चौपाइयों वाली स्तुति है जो उनकी महिमा, शक्ति, स्वरूप, और लीलाओं का वर्णन करती है। इसका पाठ करने वाला भक्त शिव के सभी रूपों से जुड़ जाता है- शांत, रौद्र, तपस्वी, संहारक और रक्षक।शिव चालीसा के प्रत्येक श्लोक में इतनी ऊर्जा समाहित है कि वह नकारात्मक ऊर्जा, तंत्र बाधा, भूत-प्रेत दोष, रोग और डर जैसे सभी समस्याओं को जड़ से समाप्त करने में सक्षम है।
महाकाल और शिव चालीसा के चमत्कारी अनुभव
हज़ारों भक्तों ने महाकाल और शिव चालीसा के चमत्कारी प्रभावों को अनुभव किया है। आइए जानते हैं कुछ सच्चे अनुभव:
1. काल से टकराकर लौट आया एक्सीडेंट
दिल्ली के एक व्यापारी ने बताया कि वह एक बड़े सड़क हादसे में बाल-बाल बच गया। उनकी कार पूरी तरह चकनाचूर हो गई थी लेकिन उन्हें एक खरोंच तक नहीं आई। वे रोज सुबह शिव चालीसा का पाठ करते थे और महाकालेश्वर की तस्वीर अपने वाहन में रखते थे। डॉक्टरों ने इसे "मिरेकल" कहा, लेकिन उन्होंने इसे महाकाल का प्रताप बताया।
2. कैंसर जैसी बीमारी में मिला चमत्कारी सुधार
एक महिला, जिन्हें तीसरे स्टेज का कैंसर था, उन्होंने मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ साथ प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ शुरू किया। तीन महीनों में रिपोर्ट में अद्भुत सुधार दिखा। डॉक्टर हैरान थे। वह मानती हैं कि महाकाल ने उनके जीवन की घड़ी को रोक दिया।
3. आत्मिक डर और नींद की समस्या से मुक्ति
कई युवा शिव चालीसा के नियमित पाठ से मानसिक तनाव, डर, बुरे सपने, अनिद्रा जैसी समस्याओं से उबरे हैं। वे कहते हैं कि रात को सोने से पहले शिव चालीसा पढ़ने से एक अद्भुत शांति और सुरक्षा की भावना महसूस होती है।
कैसे करें शिव चालीसा का प्रभावशाली पाठ?
अगर आप भी शिव चालीसा का वास्तविक और पूर्ण फल पाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित विधियों का पालन करें:
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, और भगवान शिव का ध्यान करें।
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
अपने सामने शिवलिंग, नंदी या महाकालेश्वर का चित्र रखें।
दीपक जलाएं, जल और बेलपत्र अर्पण करें।
शांत मन से और उच्चारण शुद्ध रखकर शिव चालीसा का पाठ करें।
पाठ के बाद 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जाप करें।
अंत में भगवान शिव से आशीर्वाद माँगें और कुछ क्षण ध्यान में बैठें।
शिव चालीसा: क्यों काल भी बदल देता है रास्ता?
यह प्रश्न बड़ा प्रतीकात्मक है लेकिन पूर्णतः आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टिकोण से सत्य है। “काल” का अर्थ केवल मृत्यु नहीं है, यह जीवन की वे स्थितियाँ भी हैं जहाँ हम नियंत्रण खो बैठते हैं- जैसे बीमारी, डर, हार, चिंता, अनिश्चितता।शिव चालीसा और महाकाल की आराधना व्यक्ति को इन सभी अवस्थाओं से लड़ने की मानसिक और आत्मिक शक्ति देती है। जब हम भगवान शिव को समर्पित हो जाते हैं, तब काल भी उन्हें चुनौती नहीं देता — क्योंकि महाकाल ही काल के अधिपति हैं।
निष्कर्ष: शिव की शरण में है सुरक्षा
जीवन की अनिश्चितताओं, भय, रोग, चिंता और यहां तक कि मृत्यु के भी पार जाने का मार्ग भगवान शिव की शरण में है। शिव चालीसा इस मार्ग को सरल बनाता है और महाकाल का नाम सुरक्षा की वह ढाल है जो अदृश्य संकटों को भी आने नहीं देती। यदि आप रोजाना शिव चालीसा का पाठ करते हैं, तो यकीन मानिए — आपके जीवन में काल भी मार्ग बदल देगा।
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रविवार को करें ये 5 उपाय, भगवान सूर्य बरसाएंगे अपनी कृपा

  • बढ़ेगी धन-समृद्धि
हर दिन कुछ न कुछ खास होता है, लेकिन रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव का माना जाता है। सूर्यदेव को रोशनी, ऊर्जा, सेहत और सफलता का देवता माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रविवार को कुछ खास और अच्छे काम किए जाएं, तो भगवान सूर्यदेव खुश होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। इस दिन कुछ खास काम करने से जीवन में धन, सुख और सेहत में बढ़ोतरी होती है। तो आज की इस खबर में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा खुशहाली और बरकत बनी रहे, तो रविवार के दिन ये 5 काम जरूर करें।
1. सूर्यदेव को जल चढ़ाएं
रविवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर एक तांबे के लोटे में साफ जल भरें। उसमें थोड़ा सा लाल चंदन, कुछ अक्षत यानी कि चावल और लाल फूल डालें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय "ॐ घृणि सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और धन-संपत्ति बढ़ती है।
2. घर को साफ रखें
रविवार को अपने घर खासकर मुख्य दरवाजे और पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें। सफाई के बाद घर में चंदन, गुलाब या केवड़े की खुशबू वाला धूप या अगरबत्ती जलाएं। इससे घर का वातावरण पवित्र और शांतिपूर्ण बनता है। माना जाता है कि साफ-सुथरे और खुशबूदार घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
3. जरूरतमंदों को दान करें
रविवार के दिन गरीबों या जरूरतमंद लोगों को तांबे का बर्तन, लाल कपड़े, गेहूं, गुड़ और मसूर की दाल दान करना बहुत शुभ होता है। दान करने से पुराने कर्मों का बोझ हल्का होता है और जीवन में आ रही आर्थिक समस्याएं दूर होने लगती हैं। साथ ही दान से पुण्य भी मिलता है।
4. सूर्य मंत्र का पाठ करें
रविवार को सूर्याष्टक का पाठ करना बहुत लाभकारी माना गया है। इनका पाठ करने से शरीर स्वस्थ रहता है, मन मजबूत बनता है और जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है। कार्यक्षेत्र में भी तरक्की के रास्ते खुलते हैं।
5. लाल रंग का प्रयोग करें
रविवार को लाल रंग का वस्त्र पहनना बहुत शुभ माना जाता है। आप चाहें तो लाल रंग की कोई वस्तु भी खरीद सकते हैं या किसी जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान कर सकते हैं। लाल रंग सूर्यदेव का प्रतीक है, इसलिए इससे उनका आशीर्वाद बना रहता है। ऐसा करने से आपकी जिंदगी में हमेशा खुशहाली बनी रहती है।
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आज विनायक चतुर्थी, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा...

  • मनोकामना होगी पूरी
आज 1 मई 2025 को वैशाख माह का विनायक चतुर्थी व्रत रखा जा रहा है. मान्यता है कि इस दिन विनायक चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करना लाभकारी होता है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं वैशाख विनायक चतुर्थी की व्रत कथा| दू धर्म में भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायक चतुर्थी व्रत काफी महत्वपूर्ण बताया जाता है. ऐसा कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से विनायक चतुर्थी का व्रत रखता है, उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाता है. इसे कई जगह वरद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है|
विनायक चतुर्थी व्रत कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे चौपड़ खेल रहे थे. उन्होंने खेल के निर्णायक के लिए एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए. माता पार्वती इस खेल में लगातार तीन बार जीतीं, लेकिन जब उस बालक से विजेता का नाम बताने के लिए कहा गया तो उसने शिव जी को विजेता घोषित कर दिया
इस बात पर माता पार्वती को गुस्सा आ गया और उन्होंने बालक को अपाहिज होने का श्राप दे दिया. बालक ने माता पार्वती से माफी भी मांगी. इसपर माता पार्वती ने कहा कि एक बार श्राप देने के बाद वापस नहीं लिया जाता है, इसलिए अगर तुम इससे मुक्ति पाना चाहते हो, तो एक साल बाद नाग कन्याएं आएंगी, उनसे व्रत की विधि जानकर गणेश जी का व्रत विधि-विधान से करो. ऐसा करने से तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे
बालक ने नाग कन्याओं से व्रत की विधि जानकर पूरे 21 बार गणेश जी का व्रत किया. बालक से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उससे वरदान मांगने को कहा. बालक ने वरदान मांगा कि वह अपने पैरों से कैलाश पर्वत जा सके. गणेश जी ने वरदान दिया और वह बालक कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा. जब शिवजी ने बालक को देखा तो वे हैरान हुआ और फिर उस बालक ने शिवजी को अपनी कथा सुनाई|
इसके बाद शिवजी ने भी रुष्ट माता पार्वती को मनाने के लिए गणेश जी का व्रत किया और इस व्रत की महीमा से माता पार्वती भी मान गईं. इसके बाद माता पार्वती ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत किया और इससे कार्तिकेय उनके पास आए. ऐसा कहते हैं कि तभी से विनायक चतुर्थी का व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला माना गया|
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व-
विनायक चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है. ऐसा कहते हैं कि इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. विनायक चतुर्थी पर गणपति बप्पा की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और बिगड़े हुए काम भी बनने लगते हैं|
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जानिए...कब रखा जाएगा मई का पहला प्रदोष व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मई का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस बार यह तिथि शुक्रवार को पड़ रही है, जिसके कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। प्रदोष व्रत में दिनभर उपवास रखा जाता है और शाम को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से जीवन के सभी दोष समाप्त होते हैं और शिव जी की कृपा से इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं मई का पहला प्रदोष व्रत किस दिन रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत 2025 तिथि
दृक पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल त्रयोदशी तिथि का आरंभ 9 मई को दोपहर 2:56 बजे होगा और यह 10 मई शाम 5:29 बजे तक रहेगी। इस आधार पर व्रत 9 मई शुक्रवार के दिन रखा जाएगा।
प्रदोष पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
इस बार शुक्र प्रदोष व्रत पर वज्र योग और हस्त नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस दिन संध्या पूजा के लिए करीब दो घंटे से अधिक का शुभ समय रहेगा। इस दिन प्रदोष समय शाम 07:01 बजे से रात 09:08 बजे तक रहेगा, जिसकी अवधि 02 घण्टे 06 मिनट के लिए रहने वाली है। प्रदोष पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इसे ही माना जाता है।
शाम को ही क्यों की जाती है प्रदोष व्रत की पूजा?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में (सूर्यास्त के बाद जब अंधेरा होने लगता है) भगवान शिव प्रसन्न होकर कैलाश पर नृत्य करते हैं। माना जाता है कि इस समय यदि आप भगवान शिव से जो भी मांगेंगे, वो जरूर मिलता है, इसलिए प्रदोष व्रत में शाम के समय ही पूजा की जाती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षय रोग होने पर चंद्रदेव ने भगवान शिव की पूजा की थी और शिव जी की कृपा से उनके सभी दोष मिट गए थे। इसी तरह जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, भगवान उनके सभी दुखों को दूर करते हैं।
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अक्षय तृतीया के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा

अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन को बहुत शुभ और फलदायी माना गया है. अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य और सोना-चांदी की खरीदारी किए जाने की परंपरा है. अक्षय तृतीया के दिन खरीदी गई हर चीज का कई गुना ज्यादा फल मिलता है. आज यानी 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया मनाई जा रही है. इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं और इसकी कथा का पाठ भी करते हैं. आइए पढ़ते हैं अक्षय तृतीया की कथा-
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?
अक्षय तृतीया हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. यह तिथि इसलिए खास होती है, क्योंकि इस दिन किए गए सभी शुभ कार्य अक्षय फल देते हैं यानी उनका फल कभी खत्म नहीं होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और सोना खरीदना भी शुभ माना गया है|
अक्षय तृतीया की कथा-
अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक छोटे से गांव में धर्मदास नामक एक गरीब वैश्य रहता था, जो हमेशा अपने परिवार का पेट पालने के लिए चिंतित रहता था और मेहनत करता रहता था. धर्मदास बहुत धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था. उसका पूजा-पाठ में बहुत मन लगता था. एक दिन उसने रास्ते में जाते समय कुछ ऋषियों के मुंह से अक्षय तृतीया व्रत की महिमा के बारे में सुना. इसके बाद से उसने भी अक्षय तृतीया के दिन व्रत रखकर दान-पुण्य करने के बारे में सोचा|
जब वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया आई तो धर्मदास ने उस दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान किया और देवताओं की पूजा कर विधिपूर्वक व्रत रखा. इसके साथ ही, अपने सामर्थ्य के अनुसार जल से भरे घड़े, पंखे, नमक, जौ, चावल, सत्तू, गेंहू, गुड़, घी, दही और कपड़े आदि चीजों का दान किया. इसके बाद से जब भी अक्षय तृतीया का पर्व आया, तब-तब उसने पूरी श्रद्धा से व्रत रखकर दान-पुण्य किया|
ऐसा कहा जाता है कि लगातार अक्षय तृतीया व्रत रखने और इस दिन दान-पुण्य करने से यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना. दूसरे जन्म में धर्मदास इतना धनी और प्रतापी राजा बना कि अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर त्रिदेव तक उसके दरबार में ब्राह्मण का वेष धारण करके आते थे और उसके महायज्ञ में शामिल होते थे|
लेकिन इतना संपन्न होने के बाद भी उसे अपनी श्रद्धा और भक्ति का घमंड नहीं था और वह हमेशा धर्म के मार्ग पर चलता रहा. ऐसा माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ थी. धार्मिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भी इस कथा सुनता या पढ़ता है और विधि विधान से पूजा-दान आदि कार्य करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, उस व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है|
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जैन धर्म में अक्षय तृतीया को क्यों कहा जाता है इक्षु तृतीया

  • क्या है इसका पौराणिक महत्व
अक्षय तृतीया केवल सनातनियों का ही नहीं, बल्कि जैन धर्मावलम्बियों का भी एक महान धार्मिक पर्व है. इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है|
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसके पीछे कथा प्रचलित है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने के लिए और अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक सत्य और अहिंसा के प्रचार करने के लिए प्रभु विचरण कर रहे थे,ऐसा करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पहुंचे जहां इनके पौत्र सोमयश का शासन चल था|
क्यों कहा जाता है इक्षु तृतीया
प्रभु का आगमन की बात सुनकर सभी नगर वासी दर्शन के लिए उमड़ पड़े. सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया. जैन धर्मावलंबियों के अनुसार गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया|
इसे कहा जाता है वर्षीतप
भगवान श्री आदिनाथ ने अक्षय तृतीया के दिन लगभग 400 दिन की तपस्या के पश्चात पारायण किया था. उनकी ये तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी इसलिए जैन धर्म में इसे वर्षीतप से सम्बोधित किया जाता है|
जैन धर्मावलम्बी आज भी रखते हैं वर्षीतप
आज भी जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं. यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है. तपस्या आरम्भ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है. इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है. उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है|
ये तपस्या आरोग्य जीवन के लिए भी उपयोगी
ये तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है. संयम से जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता आती है. इसी कारण है कि मन, वचन एवं श्रद्धा से जुड़े इस दिन को जैन धर्म में विशेष महत्वपूर्ण समझा जाता है|
दान की भावना
इस दिन जैन अनुयायी आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान और अभय दान का पुण्य करते हैं. जैन धर्म में माना जाता है कि इस दिन किया गया पुण्य कभी क्षीण नहीं होता अर्थात अक्षय रहता है|
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24 साल बाद अक्षय तृतीया के दिन बनेगा ये शुभ योग

  • इन 5 राशियों को मिलेगा जबरदस्त लाभ
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म की शुभ तिथियों में से एक है। साल 2025 में 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। इस साल अक्षय तृतीया पर अक्षय योग भी बनने जा रहा है। यह योग 24 साल पहले 26 अप्रैल के दिन अक्षय तृतीया पर बना था। अक्षय तृतीया जैसे शुभ अवसर पर अक्षय योग का बनना ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा की युति होती है। अक्षय तृतीया के दिन चंद्रमा और गुरु वृषभ राशि में एक साथ होंगे। इस योग के बनने से किन राशियों को अक्षय तृतीया और इसके बाद शुभ परिणाम मिल सकते हैं, आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
मेष राशि
अक्षय तृतीया पर अक्षय योग का बनना आपके पारिवारिक जीवन में खुशियां लेकर आएगा। इस दौरान मेष राशि के जातकों को बड़ा धन लाभ भी हो सकता है। आपकी मेहनत रंग लाएगी जिससे करियर और शिक्षा के क्षेत्र में आप उचित परिणाम प्राप्त करेंगे। वैवाहिक जीवन में भी सुधार आएगा।
वृषभ राशि
अक्षय योग के बनने से आपकी बुद्धि और विवेक में निखार आएगा। तिजोरी में धन इस दौरान बढ़ सकता है। आपको कमाई के नए स्रोत मिलेंगे। आपके जीवन में जो परेशानियां चली आ रही थीं उनका भी अंत हो सकता है। सेहत में सुधार आएगा इसलिए आप जीवन का आनंद ले पाएंगे।
कर्क राशि
इस राशि वालों को सामाजिक स्तर पर सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। बीते समय में आपके द्वारा किए गए कार्यों का भी शुभ परिणाम आपको प्राप्त होगा। करियर के क्षेत्र में प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होंगे। आपकी कोई योजना इस दौरान सफल हो सकती है। बड़े भाई-बहनों के सहयोग से बिगड़ते कार्य भी बनेंगे।
सिंह राशि
जिन खुशियों की आशा आप अपने जीवन में करते हैं वो आपको इस दौरान मिल सकती हैं। आर्थिक पक्ष में आशातीत सुधार आपको देखने को मिल सकता है। करियर के क्षेत्र में आपकी बातों से सीनियर्स प्रसन्न होंगे, कुछ लोगों की पदोन्नति हो सकती है। इस राशि के कुछ लोग मांगलिक कार्यों में इस दौरान हिस्सा ले सकते हैं।
धनु राशि
आपके अटके कार्य भी इस दौरान पूरे हो सकते हैं। अचानक बड़ी धन राशि प्राप्त होने के भी योग हैं। आप अपने कार्य के प्रति गंभीर होंगे और इसका अच्छा परिणाम भी आपको प्राप्त होगा। नए लोगों से संपर्क बनेंगे। कुछ लोगों को यात्राओं के जरिए लाभ की प्राप्ति हो सकती है। आपकी सेहत में भी अच्छे बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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वैशाख मास की विनायक चतुर्थी पर्व 1 मई को

  • 21 दूर्वा दल चढ़ाने से प्रसन्न होंगे गजानन
हर मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत कहते हैं। विनायक प्रथम पूज्य श्री गणेश के लिए प्रयुक्त होता है, इससे स्पष्ट है कि यह दिवस भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन गणपति का पूजन-अर्चन करना लाभदायी माना गया है।
पंचांगानुसार 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:12 बजे से होगा और इसका समापन 1 मई 2025 को प्रातः 11:23 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार विनायक चतुर्थी का पर्व 1 मई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।
दृक पंचांग में इसकी महत्ता का वर्णन है। लिखा है कि विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं, भगवान गणेश उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल के दौरान की जाती है। दोपहर के दौरान भगवान गणेश की पूजा का मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिनों के साथ दर्शाया गया है।
इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
विनायकी चतुर्थी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद दोपहर पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्यानुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने-चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित कर संकल्प लें। फिर षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें। तत्पश्चात श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं। इसके साथ ही गणेश जी का प्रिय मंत्र- 'ओम गं गणपतयै नमः' बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाना चाहिए।
इसके बाद श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग श्रेष्ठ माना जाता है। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को किया जाता है और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित कर दिया जाता है। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
वहीं, संध्या को गणेश चतुर्थी कथा, गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर श्री गणेश की आरती करें तथा 'ओम गणेशाय नमः' मंत्र की माला जपने से मनोरथ पूरे होते हैं।
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मासिक कार्तिगाई आज, पढ़ें महत्व और पूजा विधि

मासिक कार्तिगई दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला सबसे पुराना त्यौहार है। मासिक कार्तिगई एक विशेष रूप से दक्षिण भारतीय त्यौहार है और मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है। मासिक कार्तिगई साल के हर महीने में होती है। इसे कार्तिगई दीपम के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु और केरल में यह त्यौहार दिवाली की तरह मनाया जाता है। इस दिन लोग दीयों में तेल डालते हैं और दीप जलाते हैं। भक्त इस दिन भगवान शिव और भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। इस खास दिन पर भगवान को भोग लगाने के लिए अडाई, वडाई, अप्पम, नेल्लू पोरी और मुत्तई पोरी आदि जैसे खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं।
मासिक कार्तिगई पूजा विधि-
इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और पूरे घर को फूलों से सजाते हैं। भोग तैयार करने के बाद पूजा की जाती है। भगवान शिव और भगवान मुरुगन की आरती की जाती है और उनके घर में बने भोजन का भोग लगाया जाता है।
मासिक कार्तिगई महत्व-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान मुरुगन का जन्म भगवान शिव की तीसरी आंख से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि मुरुगन छह अलग-अलग भागों में आए थे। प्रत्येक भाग को एक अलग नाम दिया गया है। देवी पार्वती ने सभी छह संस्थाओं को मिलाकर एक छोटे लड़के का रूप तैयार किया था। जिसे कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के दूसरे पुत्र थे। कार्तिगई के दिन भगवान शिव की पूजा करने और दीपक जलाकर उनका अध्ययन करने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। भगवान शिव की कृपा से परिवार में सब कुछ समृद्ध होता है।
मासिक कार्तिगई के उपाय-
मासिक कार्तिगई के दिन पूजा करते समय इत्र, सिंदूर, धतूरा, लाल फूल, दूध, शहद, घी, चीनी, गुड़, दही, मिठाई, फल आदि शामिल करना चाहिए। इस दिन सुगंधित तेल का दीपक जलाएं। मुरुगन को गुलाबी कनेर के फूल चढ़ाना बहुत शुभ होता है। मुरुगन जी के चावल की खीर का भी भोग लगाया जाता है।
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इस एक दिन के उपाय से मिलेगा भगवान शिव का आशीर्वाद

अगर आप किसी कारणवश 5 पशुपतिनाथ व्रत नहीं कर पा रहे हैं, तो सोमवार के दिन निम्न सरल उपाय करके भी भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं. यह उपाय पशुपतिनाथ व्रत जैसा प्रभावी है, लेकिन यह एक ही दिन में पूरा होने वाला है. इसका प्रभाव बहुत शुभ होता है|
सोमवार का एक दिवसीय शिव उपाय-
पहले शिवलिंग को शुद्ध जल, दूध, दही, घी और शहद से स्नान कराएं, जिसे पंचामृत अभिषेक कहा जाता है. पुनः स्वच्छ जल से स्नान कराकर बेलपत्र, सफेद पुष्प और चंदन अर्पित करें. तत्पश्चात “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें अथवा “महामृत्युंजय मंत्र” का 11 बार जाप करें. इसके बाद शिव चालीसा या शिव आरती गाएं और सच्चे मन से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें|
सोमवार के दिन यदि संभव हो तो व्रत रखें या केवल फलाहार करें. यदि पूर्ण उपवास कठिन हो, तो सात्विक भोजन करें और दिनभर संयम, शांति और सकारात्मकता बनाए रखें. इस दिन झूठ बोलने, क्रोध करने और कटु वचन बोलने से बचना चाहिए. भगवान शिव को बेलपत्र, आक के फूल और चंदन अत्यंत प्रिय हैं, अतः इन्हें अर्पित करना अत्यंत फलदायक होता है|
यह एक दिवसीय सरल साधना विशेष रूप से स्वास्थ्य, मानसिक शांति, पारिवारिक सुख, करियर में उन्नति और ऋण मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है. श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया यह उपाय भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करता है. सच्चे हृदय से की गई भक्ति कभी निष्फल नहीं जाती. अतः यदि आप नियमित व्रत नहीं कर पा रहे हैं तो सोमवार के दिन यह छोटा सा उपाय अवश्य करें और शिव कृपा का अनुभव करें|
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मंगलवार को ये काम करने वाला कभी नहीं होता गरीब

मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है क्योंकि इस दिन इनका जन्म हुआ था और मंगल ग्रह पर हनुमान जी शासन करते हैं। बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए लेकिन मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष प्रावधान है। मंगल कामना और भावना से हनुमान जी के साथ जुड़ने से वे सभी तरह के संकटों से मुक्ति दिला देते हैं। हनुमान जी आपको जीवन के प्रत्येक संकट से निकाल सकते हैं और आपके जीवन में संकटमोचन बन कर सभी संकटों का अंत कर सकते हैं। मंगलवार को ये काम करने वाला कभी नहीं होता कंगाल-
मंगलवार के दिन राम मंदिर में जाएं और दाहिने हाथ के अंगुठे से हनुमान जी के सिर से सिंदूर लेकर सीता माता के श्री चरणों में लगा दें, इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
अगर डर पीछा नहीं छोड़ा रहा और आप तनाव में रहते हैं तो ऐसे में 7 दिन हनुमान जी की विशेष पूजा करें या फिर हनुमान अष्टक और हनुमान चालीस प्रतिदिन 100 बार पढ़ें।
अगर हनुमान जी को पुरी तरह खुश रखना चाहते हैं तो अपनी ऊंचाई के अनुसार नाल को गांठ बांधकर नारियल पर लपेटकर उस पर केसर या सिंदूर से स्वस्तिक बनाकर बजरंगबली के चरणों में अर्पित करें।
अपने मुंह को दक्षिण की ओर कर सात दिन तक रोजना पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर 180 बार हनुमान चालीसा पढ़ें, जिससे आपको धन की कभी कमी नहीं होगी।
ग्रहों की समस्या सता रही है तो काले चने और गुड़ लेकर प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद बांटें और हनुमान चालीसा का जाप करें।
कहा जाता है कि अगर पूरे ध्यान से 21 दिन विधि-विधान से बजरंग बाण का पाठ किया जाए तो सारी परेशानियां हल होती हैं।
मंगलवार को हनुमान मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।
मंगलवार के दिन किसी हनुमान मंदिर में ध्वजा चढ़ा कर आर्थिक समृद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए। 5 मंगलवार तक ऐसा करने से धन के मार्ग की सारी रूकावटें दूर हो जाएंगी।
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इस मूलांक के लोगों के लिए बेहद शुभ रहने वाली है अक्षय तृतीया

  • धन-धान्य में होगी वृद्धि
इस बार यह शुभ दिन 30 अप्रैल को पड़ रहा है। यह पर्व माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास से की गई पूजा का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुभ वस्तुओं की खरीद से जीवन में कभी भी धन और सुख-समृद्धि की कमी नहीं होती।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार की अक्षय तृतीया विशेष रूप से उन लोगों के लिए भाग्यशाली रहने वाली है जिनका मूलांक 1 है। मूलांक 1 उन लोगों का होता है जिनका जन्म किसी भी महीने की 1, 10, 19 या 28 तारीख को हुआ हो। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूलांक 1 के लिए अक्षय तृतीया के शुभ संकेत
1 तारीख को जन्मे लोग
जिन लोगों का जन्म 1 तारीख को हुआ है, उनके प्रयासों को इस दिन मनचाही सफलता मिल सकती है। आर्थिक पक्ष पहले की तुलना में बेहतर होगा और किसी रुके हुए कार्य में प्रगति के संकेत भी दिख रहे हैं।
10 तारीख को जन्मे लोग
10 तारीख को जन्म लेने वाले लोगों का मूलांक 1 होता है। इनके लिए यह दिन आर्थिक समृद्धि लेकर आ सकता है। आपको अटका हुआ पैसा वापस मिलने की संभावना है और कार्यस्थल पर उन्नति के योग भी बन रहे हैं।
19 तारीख को जन्मे लोग
जिन लोगों का जन्मदिन 19 तारीख को आता है उनका मूलांक भी एक होता है। इनके करियर में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं। इनका विदेश में नौकरी पाने का सपना भी साकार हो सकता है। इसके अलावा कोई नई संभावनाएं दस्तक दे सकती हैं।
28 तारीख को जन्मे लोग
28 तारीख को जन्मे लोगों को इस दिन किसी नए अवसर की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। इस दिन आप कोई महत्वपूर्ण फैसला ले सकते हैं, तो आपके पक्ष में जा सकता है।
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अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को, इस विधि से करें पूजा

  • मां लक्ष्मी बरसाएंगी कृपा
हिंदू धर्म के साथ अक्षय तृतीया का जैन धर्म में भी बहुत अधिक महत्व है. ‘अक्षय’ का अर्थ है ‘कभी कम न होने वाला’ और ‘तृतीया’ का अर्थ है ‘तीसरा दिन’. यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल 2025 में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल दिन बुधवार को है. इस दिन को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था. इसलिए इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है. यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मदिन भी माना जाता है|
कहा जाता है कि महाभारत का लेखन कार्य इसी दिन वेद व्यास ने शुरू किया था और भगवान गणेश ने उसे लिखा था. महाभारत में वर्णित है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र प्रदान किया था, जो कभी भी भोजन से खाली नहीं होता था. एक और मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान कुबेर को भगवान शिव और ब्रह्मा से आशीर्वाद प्राप्त हुआ था और उन्हें स्वर्ग के कोषाध्यक्ष का पद मिला था.
पंचांग के अनुसार, इस साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (अक्षय तृतीया) 29 अप्रैल को शाम 5 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 15 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, अक्षय तृतीया का पर्व 30 अप्रैल दिन बुधवार को ही मनाया जाएगा|
अक्षय तृतीया पूजा विधि-
अक्षय तृतीया के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है.
स्नान के बाद साफ और विशेष रूप से पीले रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों को प्रिय है.
घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें. एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें|
हाथ में जल, अक्षत (साबुत चावल) और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें और मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमाओं को रोली, चंदन, हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाएं|
भगवान विष्णु को पीले फूल और मां लक्ष्मी को कमल या गुलाबी रंग के फूल अर्पित करें और पूजा स्थल पर धूप और घी का दीपक जलाएं.
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को नैवेद्य के रूप में जौ या गेहूं का सत्तू, फल (विशेषकर आम और खीरा), मिठाई और भीगे हुए चने अर्पित करें. मां लक्ष्मी को खीर या सफेद मिठाई का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है|
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है और अक्षय तृतीया की व्रत कथा सुनें या पढ़ें. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती गाएं.
पूजा के अंत में भगवान विष्णु को तुलसी जल अर्पित करें और अपनी क्षमतानुसार गरीबों, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल, फल, सोना या चांदी का दान करें. माना जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल देता है.
इन मंत्रों का करें जाप-
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:” “ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम:” भगवान विष्णु के मंत्रों का भी जाप करें: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
इस विधि से अक्षय तृतीया की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं, जिससे घर में धन, समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है|
अक्षय तृतीया का महत्व-
अक्षय तृतीया को ‘अबूझ मुहूर्त’ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय शुरू करना आदि बिना किसी मुहूर्त देखे किया जा सकता है. इस दिन दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है. लोग अपनी क्षमतानुसार अन्न, वस्त्र, जल, फल, सोना आदि दान करते हैं. इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है और यह भविष्य में समृद्धि का प्रतीक है. अक्षय तृतीया किसी भी नए कार्य या व्यवसाय की शुरुआत के लिए एक शुभ दिन माना जाता है. इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध कर्म करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है|
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सोमवार को करें ये 5 उपाय, महादेव बरसाएंगे कृपा

सोमवार को किए जाने वाले इन खास उपायों को अपनाना लाभकारी हो सकता है। तो आज की इस खबर में आइए जानते हैं सोमवार को कौन-कौन से काम करें, जो आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति ला सकते हैं।
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है और यह दिन विशेष रूप से उनके पूजन और व्रत के लिए माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भक्त शिव जी की सच्चे मन से उपासना करता है, उसे महादेव का आशीर्वाद जरूर मिलता है। यही नहीं, इस दिन कुछ खास उपायों को अपनाकर हम भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में हर दिशा से सकारात्मक बदलाव आए, तो सोमवार को किए जाने वाले इन खास उपायों को अपनाना लाभकारी हो सकता है। तो आज की इस खबर में आइए जानते हैं सोमवार को कौन-कौन से काम करें, जो आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति ला सकते हैं।
शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं-
सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शिवलिंग पर शुद्ध जल और दूध चढ़ाएं। साथ में बेलपत्र अर्पित करें और "ॐ नमः शिवाय" का मंत्र पढ़ें। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। यह उपाय आप हर सोमवार को कर सकते हैं।
सोमवार का व्रत रखें-
सोमवार को व्रत रखना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सात्विक आहार लें और भगवान शिव का ध्यान करें। इससे आपके सभी कामों में सफलता मिल सकती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए आप चाहे तो इस उपाय को कर सकते हैं।
जरूरतमंदों को दान दें-
सोमवार के दिन किसी जरूरतमंद को दान देने से पुण्य मिलता है। आप सफेद चीजों जैसे दूध, चावल या चीनी का दान कर सकते हैं। यही नहीं, आप किसी निर्धन व्यक्ति को धन का भी दान कर सकते हैं। इससे आपके घर में सुख और समृद्धि आती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें-
सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सेहत में सुधार होता है और जीवन लंबा होता है। यही नहीं, इस मंत्र का जाप करने से सारे दुखों और कष्टों में भी मुक्ति मिलती है। ऐसे में इस मंत्र को 108 बार जरूर पढ़ें और फिर देखें कि महादेव आप पर क्या कृपा करते हैं।
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
सफेद रंग के कपड़े पहने-
सोमवार के दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें। इससे मन में शांति बनी रहती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है, जिससे आपके काम अच्छे होते हैं।
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परशुराम जयंती कल 29 अप्रैल को, जानिए...शुभ योग एवं पूजा विधि

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष परशुराम जयंती 29 अप्रैल 2025 को पड़ेगी। पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि 29 अप्रैल को शाम 05:31 बजे शुरू होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए जयंती 29 अप्रैल को ही मनाई जाएगी। आइए जानते हैं इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बन रहे हैं और पूजा की विधि क्या रहेगी। इसके अलावा कुछ खास मान्यताओं के बारे में जानेंगे।
परशुराम जयंती 2025 के शुभ योग-
इस साल परशुराम जयंती पर कुछ विशेष शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन सौभाग्य योग 03:54 बजे तक रहेगा। इसके अलावा त्रिपुष्कर योग सुबह 05:42 बजे से शाम 05:31 बजे तक रहेगा और सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05:42 बजे से शाम 06:47 बजे तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि इन शुभ योगों में भगवान परशुराम की पूजा करने से देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
परशुराम जयंती पर पूजा विधि-
परशुराम जयंती के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए दिन की शुरुआत करें। फिर घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल मिले जल से स्नान करें। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इसके बाद विधिपूर्वक भगवान परशुराम की पूजा करें। प्रदोष काल के दौरान व्रत और उपवास रखने का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में व्रत करने से इसका फल कई गुना बढ़ जाता है और व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती है।
परशुराम जी से जुड़ी कुछ खास मान्यता-
पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम जी आज भी धरती पर विराजमान हैं। यही वजह है कि उनकी पूजा विधि भगवान विष्णु के अन्य अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण से भिन्न है। दक्षिण भारत में उडुपी के निकट पजाका नामक स्थान पर परशुराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है। ऐसी मान्यता है कि भविष्य में भगवान विष्णु के अंतिम अवतार, कल्कि को, परशुराम जी शस्त्र विद्या का ज्ञान कराएंगे।
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चारधाम यात्रा : ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ धाम रवाना हुई बाबा केदार की डोली

देहरादून उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। ऐसे में 2 मई से शुरू होने जा रही केदारनाथ यात्रा को लेकर भी उत्साह दिखाई देने लगा है। सोमवार को ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से बाबा केदारनाथ की चलविग्रह डोली ने अपने दिव्य धाम की ओर प्रस्थान कर लिया है। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद रहे और क्षेत्र बाबा केदारनाथ की जय-जयकार से गूंज उठा।
दरअसल, बाबा केदारनाथ की चलविग्रह डोली उखीमठ में छह महीने के लिए रुकती है, जहां पूजा-अर्चना होती है और जब कपाट खुलने का ऐलान होता है तो फिर यह डोली वापस केदारनाथ धाम लौट आती है। सोमवार की सुबह 'बाबा केदारनाथ की उत्सव डोली' आर्मी बैण्ड की भक्तिमय धुनों, हजारों भक्तों के उत्साह और भोले के जयकारों के साथ अपने प्रथम पड़ाव विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी के लिए प्रस्थान हुई। केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर लिंग ने पंच केदार गढ़ीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पुजारी बागेश लिंग को विधि विधान के साथ अंग वस्त्र और मुकुट पहनाकर आशीर्वाद दिया।
डोली प्रस्थान से पहले बीती रात को बाबा केदारनाथ के रक्षक क्षेत्रपाल भैरवनाथ की पूजा-अर्चना संपन्न की गई। बता दें कि 6 महीनों के शीतकालीन प्रवास के बाद अब शुभ घड़ी आ गई है। श्री केदार बाबा की पंचमुखी डोली विभिन्न पड़ावों से होते हुए 1 मई को केदारनाथ धाम पहुंचेगी, 2 मई को सुबह 7 बजे बाबा केदारनाथ के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। इस दौरान जिला प्रशासन, पुलिस, मंदिर समिति के अधिकारी, कर्मचारी, तीर्थ पुरोहितों सहित हजारों भोले भक्त मौजूद रहेंगे।
इससे पहले, यात्रा मार्ग और केदारनाथ धाम में व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने के लिए संस्कृति एवं भाषा विभाग के सचिव और केदारनाथ यात्रा के प्रभारी सचिव युगल किशोर पंत ने क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण किया था।
निरीक्षण के दौरान युगल किशोर पंत केदारनाथ मंदिर परिसर पहुंचे और वहां चल रहे पुनर्निर्माण तथा सौंदर्यीकरण कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और प्रगति की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि सभी कार्य समयबद्ध तरीके से पूरे किए जाएं, ताकि यात्रा शुरू होने से पहले श्रद्धालुओं को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े। इसके साथ ही उन्होंने गौरीकुंड से केदारनाथ तक के पैदल मार्ग का भी निरीक्षण किया और मार्ग पर जमी बर्फ को तत्काल हटाने के लिए संबंधित विभागों को आदेश दिए। मंदिर परिसर में जमी बर्फ को भी शीघ्र हटाने पर जोर दिया गया।
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