धर्म समाज

13 अप्रैल को है कालाष्टमी, जानें कब मनाई जाएगी हनुमान जयंती

अप्रैल का महीना शुरु हो चुका है और इस महीने कई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार पड़ने वाले हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, अप्रैल में हनुमान जयंती, अक्षय तृतीया और गंगा सप्तमी सहित कई व्रत-त्योहार पड़ रहे हैं। इसके अलावा कैलेंडर के अनुसार इस महीने ईद का त्योहार भी पड़ रहा है।
अप्रैल महीने से ही वैशाख माह की भी शुरुआत होती है। हालांकि फिलहाल चैत्र का महीना चल रहा है और इस वजह से इस माह आने वाले त्योहारों में आधे त्यौहार चैत्र में तो आधे वैशाख में पड़ेंगे। तो आइए जानते हैं कि अप्रैल में कौन-कौन सी तारीख महत्वपूर्ण हैं और किस दिन कौन सा व्रत, त्यौहार पड़ रहा है।
अप्रैल 2023, व्रत-त्यौहार लिस्ट
01 अप्रैल 2023, शनिवार - कामदा एकादशी
03 अप्रैल 2023, सोमवार - चैत्र शुक्ल प्रदोष व्रत
04 अप्रैल 2023, मंगलवार - महावीर जयंती
05 अप्रैल 2023, बुधवार - चैत्र पूर्णिमा व्रत
06 अप्रैल 2023, गुरुवार - हनुमान जयंती
07 अप्रैल 2023, शुक्रवार - वैशाख मास प्रारंभ, गुड फ्राइडे
09 अप्रैल 2023, रविवार - संकष्टी चतुर्थी व्रत
13 अप्रैल 2023, गुरुवार - कालाष्टमी
14 अप्रैल 2023, शुक्रवार - बैसाखी, मेष संक्रांति, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी, खरमास खत्म
16 अप्रैल 2023, रविवार- बरूथिनी एकादशी व्रत
17 अप्रैल 2023, सोमवार - प्रदोष व्रत
18 अप्रैल 2023, मंगलवार - मासिक शिवरात्रि
20 अप्रैल 2023, गुरुवार - सूर्य ग्रहण 'संकरित'
21/ 22 अप्रैल 2023, शुक्रवार/शनिवार - ईद-उल फितर
22 अप्रैल 2023, शनिवार - अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती
23 अप्रैल 2023, रविवार - विनायक चतुर्थी व्रत
25 अप्रैल 2023, मंगलवार - सूरदास जयंती, रामानुज जयंती, शंकराचार्य जयंती
27 अप्रैल 2023, गुरुवार - गंगा सप्तमी
28 अप्रैल 2023, शुक्रवार - माता बगलामुखी जयंती
29 अप्रैल 2023, शनिवार - सीता नवमी

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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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क्यों लगाए जाते है घर में अशोक के वृक्ष

कई लोगों के घर के सामने लंबे लंबे अशोक के पेड़ लगे होते हैं जो घर की शोभा बढ़ाते हैं। अशोक का वृक्ष दो प्रकार के होते हैं एक जो पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और दूसरा जो ताड़ या देवदार के वृक्ष की तरह ऊंचा जाता है, और उसके पत्ते नीचे लटके हुए होते हैं। लंबा वृक्ष देवदार की जाति का है और इसके पत्ते आम के पत्तों जैसे होते हैं। इसके फूल सफेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। जानें इसी वक्ष के बारे में।
1. अशोक का शब्दिक अर्थ होता है- किसी भी प्रकार का शोक न होना। यह जहां पर उचित दिशा में लगा होता है वहां किसी भी प्रकार का शोक नहीं होता है।
2. मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में आम के पत्तों की तरह ही अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। अशोक वृक्ष को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र और लाभकारी माना गया है।
3. माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है।
4. अशोक का वृक्ष वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसके उपयोग से चर्म रोग भी दूर होता है। महिलाओं के लिए इसके रस से दवाई भी बनती है।
5. अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण बना रहता है।
6. घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है एवं अकाल मृत्यु नहीं होती है।
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आचार्य चाणक्य की सलाह, ऐसे स्थान को तत्काल छोड़ देना चाहिए

आचार्य चाणक्य ने जीवन दर्शन को लेकर कई बातें अपने ग्रंथ में कही है। उन्होंने अपने ग्रंंथ में कई श्लोकों के जरिए जीवन की जटिल समस्याओं के बारे में विस्तार से बात की है। आचार्य चाणक्य ने लक्ष्मी के स्वभाव को चंचल बताया है और ऐसे में विपत्ति काल के लिए धन संचय के महत्व के बारे में भी विस्तार से चर्चा की है -
विपत्ति काल में धन संचय क्यों जरूरी
आपदर्थे धनं रक्षेच्छीमतां कुत आपद:।
'कदाचिच्चलिते लक्ष्मी: सड्चितोडपि विनश्यति॥
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि विपत्ति काल के लिए मनुष्यों को धन का संचय अवश्य करना चाहिए। लेकिन कभी यह न सोचें कि धन के जरिए वे सभी संकट दूर कर लेंगे। चाणक्य ने कहा है कि चंचलता लक्ष्मी का स्वभाव है, इसलिए वह कहीं भी नहीं ठहरती। विपरीत परिस्थिति में धन का संचय मनुष्य की बुद्धिमत्ता का परिचायक है, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं होता है कि बेशुमार धन होने से संकट का समय टल जाएगा।
ऐसे स्थान पर कभी न रुके
अस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः:।
न च विद्यागमः: कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत्॥
आचार्य ने कहा है कि जिस स्थान पर मनुष्य का आदर-सम्मान न हो, आजीविका के
साधन न हो, अनुकूल मित्र एवं सगे संबंधी न हो, ऐसा स्थान उसके लिए कभी भी उपयुक्त नहीं हो सकता है। ऐसे स्थान को बगैर विलंब किए छोड़ देना चाहिए।
जहां भी रहें, ये 5 विद्वान होना जरूरी
धनिक: श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचम:।
पंच यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत्॥
आचार्य चाणक्य ने आगे कहा है कि ऐसा स्थान जहां 5 प्रकार की मूलभूत जरूरतें उपलब्ध न हो, ऐसे स्थान को भी तत्काल त्याग देना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने इन मूलभूत जरूरतों में कर्मकांडी ब्राह्मणों, न्यायप्रिय राजा, धनी-संपन्न व्यापारी, जलयुक्त नदियों और योग्य चिकित्सक की गणना की है। जहां पर ये 5 तरह के लोग न हो, उस स्थान को त्याग देना चाहिए।

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शनिवार को करें यह उपाय, शनिदेव के साथ होगी हनुमान जी की कृपा

शनिवार न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित दिन माना गया है। इस दिन कुछ उपायों द्वारा शनि महाराज को प्रसन्न किया जा सकता है। शनिदेव की कृपा प्राप्त होने पर किसी काम में कभी बाधा नहीं आती है। इस दिन हनुमान जी महाराज की पूजा करने भी शुभ फलदायी माना गया है। शनिवार के दिन कुछ खास कार्य करने से शनि देव के साथ-साथ हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं शनिवार को किए जाने वाले उपाय।
1 .शनिवार को सुबह स्नान के बाद मंदिर में जाकर तांबे के बर्तन में जल और सिंदूर का मिश्रण हनुमान जी को अर्पित करना चाहिए।
2.शनिवार को किसी भी हनुमान मंदिर में गुड़, चना और केला को भोग हनुमान जी को अर्पित करना चाहिए। हनुमान जी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और 'श्री हनुमंते नमः' मंत्र का जाप करें। इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय को करने से भगवान हनुमान और शनिदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
3.शनिवार को किसी भी शनि मंदिर में आक का फूल चढ़ाने चाहिए। यह पुष्प शनिदेव को अति प्रिय है। मान्यता के अनुसार शनिवार को शनि देव को यह फूल अर्पित करने पर शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से मुक्ति मिलती है। ये फूल चढ़ाने से शनि देव की कृपा होती है और सारे बिगड़े काम भी बनने लगते हैं।
4.शनिवार को हनुमान मंदिर जाकर सुंदरकांड का पाठ करने से भगवान हनुमान और शनिदेव दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
5.प्रत्येक शनिवार की शाम को हनुमान जी के मंदिर जाकर चमेली के तेल व सिंदूर से बजरंगबली का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से आपके सभी रुके हुए काम जल्द ही पूरे होंगे। इसके साथ शनि देव की पूजा करते समय इनके सामने दीपक नहीं जलाना चाहिए। इसके बजाए किसी पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

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हथेली में ये रेखा होगी तो नहीं टिकेगा पैसा, बढ़ जाते हैं खर्च

हर व्यक्ति के हाथ में कुछ हस्तरेखाएं ऐसी होती हैं, जो भविष्य के संकेत देती है। अशुभ रेखाएं व्यक्ति के दुर्भाग्य की ओर इशारा करती हैं। अशुभ रेखाएं व्यक्ति की आर्थिक तंगी का कारण बनती हैं और इन रेखाओं की मौजूदगी से जातक अलर्ट हो सकता है और अपने व्यवहार में बदलाव लाकर किसी अनहोनी से बच सकता है। हाथ में अशुभ रेखाओं से वैवाहिक व पारिवारिक जीवन में परेशानी बढ़ सकती है। जानें हाथ में कौन-कौन सी रेखाएं अशुभ होती है -
हाथ में राहु की रेखा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों के हाथ में राहु की रेखा होती है उनका जीवन चिंताजनक होता है और काम में बार बार रुकावट आती है। राहु रेखा को चिंता रेखा, विघ्न रेखा या तनाव रेखा भी कहा जाता है। ये रेखा हथेली में मंगल पर्वत के नीचे से शुरू होती है। हाथ के अंगूठे के निचले हिस्से से शुरू होकर जीवन रेखा की तरफ जाने वाली रेखाएं चिंता रेखा कहलाती हैं। ऐसे जातकों को स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी भी होती है।
हथेली में आड़ी-तिरछी रेखाएं
जिन जातकों की हथेली में हस्तरेखा काफी ज्यादा कटी हुई और आड़ी-तिरछी होती हैं, शुभ परिणाम नहीं देती है। इन रेखाओं के कारण व्यक्ति को असफलता का सामना करना पड़ता है। इस तरह की रेखाओं के चलते व्यक्ति की जीवन ऐसे ही उलझा रहता है।
शनि पर्वत पर ये चिन्ह भी अशुभ
जिन जातकों के हाथ में शनि पर्वत पर क्रॉस का निशान होता है, वह भी जातक के भाग्य के निराशावाद दृष्टिकोण को दर्शाता है। ऐसे लोग जीवन में बदनामी सहन करते हैं। ऐसे लोगों का जीवन का अंत बहुत खराब होता है।
विवाह रेखा में कई क्रॉस
अगर किसी जातक के जीवन में विवाह रेखा कई शाखाओं में बंट जाए या फिर कई जगह से कटी हुई हो तो वैवाहिक जीवन से परेशानी आती है। पार्टनर से मतभेद होने से अलगाव हो जाता है। नौकरी में परेशानी आती है। विवाह रेखा पर किसी प्रकार का निशान बहुत अशुभ माना जाता है।

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कामदा एकादशी की पूजा विधि जानिए

महीने में दो एकादशी पड़ती हैं. चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं और ये 1 अप्रैल दिन शनिवार को पड़ रही है. इस व्रत को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और आपको भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलेगी. 1 अप्रैल के दिन व्रत करें, कथा करें और आरती करें लेकिन उसके साथ आपको कुछ उपाय भी करने चाहिए जिससे आपकी पूजा सफल हो और आपकी आर्थिक समस्या भी खत्म हो जाएग. ये उपाय आपकी आर्थिक समस्याओं को दूर कर सकता है जिसे आपको जरूर करना चाहिए.
कामदा एकादशी पर करें ये उपाय
1 अप्रैल दिन शनिवार को ही रखना है. भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्यारी है और उस दिन अगर आप उन्हें तुलसी के 5 पत्तों में हल्दी लगाकर चढ़ाते हैं तो शुभ होगा. पत्तियों चढ़ाते हुए आपको ”ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्” मंत्र का जाप भी करना है. ऐसा करने से आपकी आर्थिक परेशानी दूर होगी और आपके घर में धन के स्त्रोत बढ़ेंगे. अगर आप किसी का उधाल लिया पैसा लौटाने में अमसर्थ हो रहे हैं तो कामदा एकादशी के दिन ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्रों का 5 माला जाप करेंगे तो इस समस्या से छुटकारा मिलेगा. इसके साथ ही भोजन को खाना खिलाना आपके लिए धन कमाने के स्रोत को खोल देगा. अगर आपको नौकरी में परेशानी आ रही है तो कामदा एकादशी के दिन एकम मुट्ठी कच्चे चावलों को कुमकुम से रंगकर लाल सूती वस्त्र में बांधकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं, समस्या दूर हो जाएगी.
कामदा एकादशी की पूजा विधि
1 अप्रैल को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. संभव हो तो गंगा स्नान आपके लिए शुभ हो सकता है और अगर ये संभव नहीं है तो नहाने के पानी में दो बूंद गंगाजल मिला सकते हैं. इसके बाद भगवान विष्णु का नाम लेते हुए तुलसी के पौधे में जल दें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के पास अपने व्रत का संकल्प लें और जरूरतमंदों को कुछ ना कुछ दान करें. दिनभर व्रत रहने के बाद शाम के समय आप कुछ फलहारी कर सकते हैं. शाम के समय कामदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें, विष्णु जी की आरती उतारें और भूखों को खाना खिलाएं. अगले दिन अपने व्रत का पारण करें और इससे आपके व्रत का समापन हो जाएगा.
कामदा एकादशी व्रत कथा
एका राज्य था,जिसका नाम भोगीापुर था. उस राज्य में राजा पुंडरीक शासन किया करते थे. वह राज्य धन-धा्य और ऐश्वर्य से भरा था. उसके राज्य में प्रेमी जोड़ा रहता था. जिसका नाम ललित और ललिता था. वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे. एक दिन की बात है, जब राजा पुंडरीक की सभा लगी थी, उसमें ललित अपने सभी कलाकारों के साथ संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था. उस समय जब उसने ललिता को देखा, तो उसके सुर गड़बड़ होने लग गए. तब वहां उपस्थित सभी सेवकों ने राजा पुंडरीक को ये बात बताई. इस पर राजा पुंडरीक क्रोधित होकर ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया. तब श्राप के कारण ललित राक्षस बन गया और उस दौरान उसका शरीर 8 योजन का हो गया. उसके बाद वह जंगल में रहने लग गया. उसके पीछे ललिता भी जंगल में पीछे भागते हुए चली गई. राक्षस होने की वजह से ललित का जीवन बहुत कष्टमय हो गया.
एक बार ललिता विंध्याचल पर्वत पर गई, वहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम था. ललिता ने श्रृंगी ऋषि को प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया. तब श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम परेशान मत हो. तुम कामदा एकदाशी के दिन व्रत रखो और उससे मिलने वाले फल को अपने पति ललित को समर्पित कर दो. इससे तुम्हारा पति राक्षस योनि से बाहर आ जाएगा.
वहीं अगले साल जब चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत आया, तब ललिता मे श्रृंगी श्रषि के द्वारा बताए गए व्रत को पूरे नियम से किया. ललिता ने भगवान विष्णु की अराधना की. इस दिन उसने कुछ नहीं खाया. फिर ललिता ने अगले दिन व्रत का पारण किया और अपने पति ललित के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की.
तब भगवान विष्णु की कृपा से ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया. फिर दोनों साथ रहने लग गए. एक बार की बात है, स्वर्ग से विमान आया है. वह दोनों प्रेमी जोड़ा उसपर बैठकर स्वर्ग चले गए
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बागेश्वर धाम सरकार जबलपुर में कर रहे रामकथा

जबलपुर/पनागर। बागेश्वर धाम प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की रामकथा मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर में चल रही है, कथा के दौरान पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने कालेधन की परिभाषा बताई, उन्होंने बताया कि किसी के अधिकार पर किसी और के द्वारा कब्जा करना ही कालाधन है, संसार, श्वांस, शरीर सब भगवान का है, लेकिन उस पर कब्जा हमारा है, यही कालाधन है, कथा के दौरान उन्होंने मंच से कहा कि मेरी इच्छा है नर्मदा माई के किनारे पर रामकथा करें, कथा के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। आईये जानते हैं कथा में और क्या बोले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री।
पनागर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में बागेश्वर धाम पीठ के शास्त्री ने कहा कि उनकी इच्छा है कि वे मां नर्मदा माई के किनारे श्रीराम कथा करें। नर्मदा मैया के किनारे ही मंच लगे और माई की जलधार के प्रवाह के साथ नौ दिन या पांच दिन की रामकथा हो। उन्होंने कहा कि इस शहर को संस्कारों की नगरी इसीलिए कहा गया है क्योंकि यहां वालों को नर्मदा मैया का सान्निध्य मिला है। वहीं, भोजपुरी गायक अभिनेता मनोज तिवारी भी कथा में पहुंचे और गीत की प्रस्तुति दी।
उन्होंने कहा कि हमारे आपके जीवन में कालिमा लग गई, जिसे कालिख भी कहते हैं। काला धन क्या है, इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि किसी के अधिकार पर किसी और का कब्जा कर लेना, यही कालाधन है। हम लोगों का यही हाल है। संसार, शरीर, श्वांस सब भगवान की है, पर कब्जा हमारा है। यही कालिमा हममें लगी हुई है। यही कालाधन हम लिए बैठे हैं। ऐसे में रिकवरी अपनी ही निकलनी चाहिए। यदि श्वांस हमारी होती तो हम अपने हिसाब से लेते। सब कुछ भगवान का है, फिर भी हम सब कुछ अपना समझते हैं।
राम-कृष्ण की समानता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या में जब भगवान भोले नाथ प्रभु श्रीराम के दर्शन करने गए तो उनकी आंखों में आंसू थे। उन आंसुओं को देख कर श्रीराम ने कहा कि इस जन्म में आप मेरे दर्शन के लिए रोए हैं, अगले जनम में आपके दर्शन के लिए मैं रोऊंगा। उन्होंने कहा कि राम का जन्म दिन को 12 बजे हुआ तो रात दुखी हो गई। क्योंकि सूर्य एक माह तक गए नहीं। इसलिए रात ने भगवान से प्रार्थना की मुझमें कलंक न लगे। भगवान ने कहा सबसे ज्यादा अंधियारी कब होती है। उन्होंने कहा कि भाद्र में। भगवान ने कहा कि तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होगा। भादों में आधी रात आएंगे। भगवान किसी के साथ अन्याय नहीं करते। यही समानता दोनों अवतारों में है।
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पक्षियों को दाना खिलाने से बनी रहती है देवी लक्ष्मी की कृपा

हम अपने घरों में सुख समृद्धि लाने के लिए बहुत से उपाय करते रहते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार पक्षियों को दाना खिलाना शुभ होता है, लेकिन इसमें मामूली सी गलती इसके विपरीत नुकसान पहुंचा सकती है। कई बार अंजाने में ही हम सही हम कुछ न कुछ गलती भी कर जाते हैं।
ज्‍योतिष एवं वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार जो लोग पक्षियों को दाना डालते हैं उन पर हमेशा देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। अधिकतर लोग घर की छत या बालकनी में पक्षियों के लिए दाना डालते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दाना डालने से भी नुकसान हो सकता है। पक्षियों को दाना डालना शुभ होता है, लेकिन उस समय कुछ गलतियां हो जाने से व्यक्ति को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। आप जैसे ही दाना डालते हैं तो पक्षी खाने के लिए पहुंच जाते हैं। इन पक्षियों में सबसे आम होता है कबूतर। कबूतर का दाना चुगने आना बेहद शुभ माना जाता है। कबूतर को ज्योतिष में बुध ग्रह का माना जाता है। कुछ लोग पक्षियों के लिए दाना छत पर डालते हैं। छत को राहू का प्रतीक माना जाता है। जब कबूतर दाना खाने छत पर आते हैं तो इस तरह बुध और राहू का मेल हो जाता है। इसके साथ ही जिस जगह पक्षी दाना खाते हैं वहां गंदगी भी हो जाती है। यदि आप जगह को साफ रखते हैं तो तो कोई परेशानी नहीं, लेकिन यदि गंदगी रहती है तो इससे अशुभ प्रभाव मिलने शुरू हो जाते हैं। इस स्‍थिति में घर में रहने वाले लोगों पर राहु हावी हो जाता है जो अशुभ रहता है।
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भगवान शिव के रूद्र अवतार हैं हनुमान

भगवान शि‍व को अनंत कहा गया है और हनुमान जी को इनका रूद्र अवतार माना गया है। शि‍व के हनुमान रूप में जन्म लेने की कथा इस प्रकार है। भगवान शिव भक्तों की पूजा से जल्द प्रसन्न होने वाले देव हैं और हर युग में अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लिए हैं। भगवान शिव ने 12 रूद्र अवतार लिए हैं जिनमें से हनुमान अवतार को श्रेष्ठ माना गया है.
हनुमान के जन्म पर क्या कहते हैं शास्त्र
शास्त्रों में रामभक्त हनुमान के जन्म की दो तिथि का उल्लेख मिलता है। जिसमें पहला तो उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है, क्योंकि रामभक्त हनुमान की माता अंजनी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वर मांगा था।
तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणि‍क कथाओं के अनुसार रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। उस समय सभी देवताओं ने अलग-अलग रूप में भगवान राम की सेवा करने के लिए अवतार लिया था।
उसी समय भगवान शंकर ने भी अपना रूद्र अवतार लिया था और इसके पीछे वजह थी कि उनको भगवान विष्णु से दास्य का वरदान प्राप्त हुआ था। हनुमान उनके ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं। इस रूप में भगवान शंकर ने राम की सेवा भी की और रावण वध में उनकी मदद भी की थी।
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दक्षिण अयोध्यापुरी सीताराम के कल्याणकारी मंत्रों से गूंज उठा

खम्मम। सीताराम के कल्याणकारी मंत्रों से गुंजायमान दक्षिण अयोध्यापुरी. राम नाम के जयकारे से 'श्री राम.. जयराम.. जयजय राम' गुंजायमान हो रहा था। राम को दूल्हा और सीताम्मा को दुल्हन के रूप में देखकर भक्त रोमांचित हो गए। कुल मिलाकर, सीताराम का कल्याण महोत्सव भक्तों के लिए एक भोज था। इस समारोह का स्थान भद्राद्री श्रीसीताराम चंद्रास्वामी मंदिर परिसर में मिथिला स्टेडियम था। मंदिर के पुजारियों ने रात 2 बजे मंदिर के कपाट खोले। सुप्रभात सेवा, पूजा और स्वामी को रिपोर्ट। बाद में, उत्सवमूर्तियों को भक्तरामदास द्वारा बनाए गए गहनों से सजाया गया और भक्तों, मंगल वाद्ययंत्रों और कोलाटों के कोलाहल के बीच एक जुलूस में मिथिला स्टेडियम लाया गया। पुनर्वसु नक्षत्र अभिजित मुहूर्त दोपहर ठीक 12 बजे पुजारियों ने जीरा गुड़ सीतारामों के सिर पर रखा।
मंगल्याधरन किया गया श्रद्धालुओं की तालियों और जय राम के जयकारों के बीच कल्याण की रस्म पूरी हुई। धर्म मंत्री अल्लोला इंद्रकरन रेड्डी और राज्यसभा सदस्य वविराजू रविचंद्र ने रामुलोरी के कल्याण के लिए राज्य सरकार की ओर से मोती और रेशमी वस्त्र भेंट किए। हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिषेक रेड्डी, न्यायमूर्ति श्रीदेवी, न्यायमूर्ति भीमपाका नरेश, देवदाय धर्मार्थ आयुक्त अनिल कुमार, चिनजियार स्वामी, एमएलसी तथा मधुसूदन, भद्राचलम, पालेरू विधायक कंडाला सब थंदर रेड्डी, पोडेम वीरैया सांसद, महबू अबाबाद विधान सभा सांसद सीतामणी, पूर्व मंत्री कानुमुरु बापीराजू, सहस्र अवधानी देवगणशर्मा, भद्राचल मंदिर ईओ रामादेवी, कलेक्टर दुरीशेट्टी अनुदीप, आईटीडीए पीओ पोटरू गौतम व एसपी विनीत मौजूद रहे. रामुलोरी कल्याण महोत्सव को देखने के लिए तेलुगु राज्यों और अन्य राज्यों के भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा है। उन्होंने पास की गोदावरी में पवित्र स्नान किया। उन्होंने मंदिर में भगवान के दर्शन किए और आशीर्वाद लिया। दूसरी ओर, भद्राचलम के मिथिला स्टेडियम में शुक्रवार को अधिकारियों द्वारा श्रीरामुडी पुष्कर साम्राज्य महापताभिषेकम आयोजित किया जाएगा। यह भव्य उत्सव सुबह 10 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक होगा। 2011 में पुष्कर साम्राज्य के राज्याभिषेक के लिए पांच होम गुंडा स्थापित किए गए थे, लेकिन इस बार संख्या बढ़ाकर 12 कर दी गई है।
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मैथिली ठाकुर ने अपने गीतों से जीत लिया रायपुरियंस का दिल

रायपुर. रामनवमी के मौके पर सुप्रसिद्ध भजन गायिका मैथिली ठाकुर रायपुर पहुंची. इस दौरान मैथिली के पिता और छोटे भाई ऋषभ और अयाची भी उनके साथ थे. मैथिली ठाकुर ने अपने गीतों से रायपुरियंस का दिल जीत लिया. इसके बाद पत्रकारों से बातचीत की.
मैथिली ठाकुर ने बताया कि "छत्तीसगढ़ में पहली बार मेरा कार्यक्रम हो रहा है. मैं बहुत खुश हूं. मुझे जनकारी मिली कि यह भगवान राम का ननिहाल है. हम वहां से आते हैं, जहां भगवान राम का ससुराल है. मैं बहुत खुश हूं कि रामनवमी के मौके पर मुझे श्री राम के ननिहाल आने का मौका मिला. रामजी के ननिहाल आकर खुश हूं." मैथिली ने बताया कि "आज मैं जो भी कुछ हूं अपने पिता की बदौलत हूं. मेरे पिता ने ही मुझे गाना सिखाया है."
मैथिली ने बताया कि समय बहुत बदल गया है. पहले बच्चे वेस्टर्न कल्चर के पीछे भागते थे, लेकिन मैंने पिछले 7-8 सालों में देखा है कि लोग धर्म की ओर बढ़ रहे हैं. धर्म की ओर जागरूक हो रहे हैं. ये अच्छी बात है. धर्म को बचाने के लिए हर दिन नई चीजें हो रही है. हाल ही में मैं अयोध्या होकर आई हूं. वहां राम मंदिर निर्माण हो रहा है.जनकपुर गई, मैहर जाना हुआ, मैने देखा कि सिर्फ बड़े उम्र के नहीं बल्कि छोटी उम्र के लोग भी अब भगवान के उपासक बन रहे हैं. आज लोग धर्म को बचाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं."
मैथिली ठाकुर ने बताया कि "मुझे यह जल्दी एहसास हो गया कि मुझे क्या पसंद है. मैं भजन और अपना लोकगीत गाना चाहती हूं. इस क्षेत्र में मैं आगे बढ़ रही हूं. मेरे दादा दिन-रात भजन ही गाते हैं. जब मैं गांव जाती हूं, वो मुझे एक दो नए भजन सिखा देते हैं. भजन गाने की प्रेरणा मुझे मेरे दादाजी से मिली है."कला और राजनीति अलग-अलग: मैथिली ठाकुर ने बॉलीवुड में बायकॉट को लेकर कहा कि" हम सभी का जो कर्तव्य है. उसे लेकर हमें काम करना चाहिए. राजनीति एक अलग चीज है. राजनीति और कला दोनों को मिलाना नहीं चाहिए.
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आधी रात में इसलिए की जाती है मां काली की पूजा

हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व है, इस दौरान दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान देवी के काली अवतार की पूजा की जाती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि देवी काली की पूजा हमेशा रात में ही की जाती है। देवी के उग्र रूप को मां कालरात्रि के रूप में जाना जाता है। देवी काली का रंग सांवला है और वे गधे की सवारी करती हैं। साथ ही देवी काली गले में खोपड़ियों की माला भी पहनती हैं और उनके 4 हाथ होते हैं। दाहिने हाथ अभय (रक्षा) और वरदा (आशीर्वाद) मुद्रा होती है। इसके अलावा देवी काली के दो हाथों में वज्र और कैंची भी होती है। संस्कृत में कालरात्रि दो शब्दों से मिलकर बना है - काल का अर्थ है मृत्यु या समय और रात्रि का अर्थ है रात या अंधकार। ऐसे में कालरात्रि उसे माना जाता है, जो अंधकार की मृत्यु लाती है।
जीवन में ग्रहों को दुष्प्रभाव खत्म करती है मां काली
पौराणिक मान्यता है कि काली माता की पूजा करने से जीवन में ग्रहों के दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है। देवी अपने भक्तों को उनसे जो कुछ भी मांगती हैं, उन्हें आशीर्वाद देती हैं और बाधाओं को दूर करती हैं और खुशियां लाती हैं।
ऐसे करें देवी काली की पूजा विधि
- मां कालरात्रि को प्रसाद के रूप में गुड़ या गुड़ से बने भोजन का भोग लगाना चाहिए।
- सप्तमी की रात देवी को श्रृंगार भी चढ़ाते हैं, जिसमें सिंदूर, काजल, कंघी, बालों का तेल, शैम्पू, नेल पेंट, लिपस्टिक आदि शामिल हैं।
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ देवी कालरात्रियै नमः॥
एकवेणी जपाकर्णपुरा नागना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपदोल्लसलोह लताकण्टकभूषण।
वर्धन मुरधध्वज कृष्ण कालरात्रिर्भयंकरी॥
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कालरात्रि की कथा
पौराणिक मान्यता है कि मां कालरात्रि का जन्म मां चंडी के मस्तक से हुआ था, जो चंड, मुंड और रक्तबीज की दुष्ट त्रिमूर्ति को मारने के लिए बनाई गई थी। देवी चंडी शुंभ और निशुंभ जैसे दैत्यों को मारने के अवतरित हुई थी। चंड, मुंड और रक्तबीज सिर्फ मां काली के बस में ही था। रक्तबीज को मारना काफी मुश्किल था क्योंकि भगवान ब्रह्मा के एक वरदान के कारण रक्तबीज के रक्त की एक भी बूंद उसका अन्य रूप पैदा हो सकता था। उसे रोकने के लिए मां कालरात्रि ने रक्तबीज के रक्त की हर बूंद को खून पीना शुरू कर दिया और एक समय ऐसा आया जब वह अंततः उसे मारने में सक्षम हो गई।

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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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कन्या पूजन 30 मार्च को, जानें क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

इस साल चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि 30 मार्च को है और इस दौरान नवमी तिथि को कन्या पूजन करने के बाद ही व्रत का पारण किए जाने की धार्मिक परंपरा है। नवमी के दिन 2 साल से लेकर 11 साल की कन्याओं को पूरे आदर व सत्कार के साथ भोग लगाया जाता है। यहां जाने इस बार नवमी तिथि पर कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि के साथ पारण का सही समय क्या होगा -
ऐसे करें कन्या पूजन
नवमी के दिन 9 कन्याओं को घर पर आमंत्रित किया जाता है और जब कन्याएं घर में पधारे तो सबसे पहले उनका पूरे आदर के साथ स्वागत करना चाहिए और उनके चरण धोना चाहिए। आसान बिछा कर उन्हें बैठने के लिए कहना चाहिए। कन्याओं के माथे पर रोली लगाने के बाद मां दुर्गा का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद सभी कन्याओं को पूरी, हलवा और काले चने की सब्जी या इच्छा अनुसार भोजन कराना चाहिए। 9 कन्या को सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या उपहार भेंट कर चरण स्पर्श करना चाहिए और सम्मान के साथ विदा करना चाहिए।
नवमी के दिन इन देवियों की पूजा
चैत्र नवरात्रि के दिन ब्रह्मचारिणी, आंद्रघण्टा, कुसमांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरती, महागौरी और सिद्धिदात्री को देवी दुर्गा के 9 दिव्य रूपों के अवतार के रूप में पूजा जाता है। भागवत पुराण में बताया गया है कि नवरात्रि के नौवें दिन भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। कन्या पूजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, दो कन्याओं की पूजा करने से ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं 3 कन्याओं की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 9 कन्या पूजा को सर्वोच्चता का आशीर्वाद माना जाता है।
कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के अष्ठमी पूजा 29 मार्च को और 30 मार्च को महानवमी तिथि है। महानवमी 29 मार्च को रात 09:07 से 30 मार्च को रात 11:30 बजे तक होगी। कन्‍या पूजन 30 मार्च को करना शुभ होगा। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06 बजकर रात 30.15 मिनट तक ही रहेगा, वहीं ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:41 बजे पर शुरू होगा और 05:28 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।

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रामनवमी के दिन क्यों लगाते है बांस की लकड़ी में तिकोना ध्वजा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर श्रीराम का जन्म हुआ था. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने पाप का नाश करने के लिए त्रेता युग में अयोध्या नरेश दशरथ और रानी कौशल्या से जन्म लिया था. भगवान विष्णु के अवतार होने के कारण उनका श्रीराम को भगवान कहते हैं. श्रीराम एक आदर्शवादी पुत्र, पिता, मित्र, पति और राजा थे. 30 मार्च को नवरात्रि की नवमी के दिन रामनवमी भी मनाई जाएगी. इस दिन हिंदू धर्म को मानने वालों के घरों में नारंगी रंग की ध्वजा लगाई जाती है. उस ध्वजा को महावीरी झंडा कहते हैं लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है, चलिए आपको इसके पीछे की वजह बताते हैं.
हिंदू धर्म को मानने वालों के घरों में स्वास्तिक या ॐ का विशेष महत्व है. उसी तरह नारंगी रंग जिसे आम भाषा में भगवा रंग कहा जाता है उसका भी बहुत महत्व है. सनातन धर्म का प्रतीक भगवा रंग की वो ध्वजा है जिसके ऊपर ॐ लिखा होता है. इसे यश, कीर्ति, विजय और पराक्रम का प्रतीक भी कहते हैं. पहले के जमाने में रघुवंशी राजा जब जीतकर आते थे तब यही ध्वजा फहराया जाता था. महावीरी ध्वज का सनातन धर्म में तात्पर्य शुद्धिकरण के साथ जोड़ा गया है. शास्त्रों में ध्वजारोपण का भी विशेष महत्व है. तिकोना ध्वजा बांस की लकड़ी में लगाना शुभ माना गया है. श्रीराम का जन्म हुआ तो अयोध्या में भी यही पताका लगाई गई थी ऐसा कहा जाता है. तब ये परंपरा चली आ रही है कि श्रीराम के जन्मोत्सव पर नारंगी रंग की तिकोनी आकार की ध्वजा लोग अपने-अपने घरों पर लगाते हैं.
इस साल 30 मार्च को देशभर में राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. राम मंदिरों में जलसा होता है और जगह-गजह लोग भंडारा भी करवाते हैं. ऐसी मान्यता है कि श्रीराम का जन्म दोपहर 12 बजे के आसपास हुआ था इसलिए इतने ही बजे देशभर के मंदिरों से राम लला की आरती सुनने को मिलती है और पूजा-अर्चना करके इस दिन को धूमधाम से मनाते हैं.
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राम नवमी पर इन राशियों को मिलेगा लाभ

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी श्री राम को समर्पित है. चैत्र नवरात्रि का पर्व 22 मार्च से शुरू होकर 30 मार्च तक चल रहा है. इस पर्व के अंतिम दिन यानी 30 मार्च को रामनवमी का त्योहार मनाया जाएगा. गौरतलब है कि इस दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था. यही कारण है इस दिन को श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में समूचे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस साल राम नवमी पर अत्यंत दुर्लभ योग का निर्माण हो रहा है. जो कई राशियों के लिए लकी साबित होगा. इन शुभ योग के संयोग से तीन राशियों के धन, व्यापार, नौकरी और भौतिक सुखों में वृद्धि होगी. श्रीराम और बजरंगबली की इन पर कृपा बरसेगी. तो चलिए जानते हैं किन राशियों को मिलेगा लाभ.
राम नवमी 2023 पर बनने वाले शुभ संयोग
वाल्मीकि के अनुसार, भगवान श्रीराम का जन्म कर्क लग्न, अभिजीत मुहूर्त, सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह के विशेष योग में हुआ था. इस साल राम नवमी पर सूर्य, बुध और गुरु मीन राशि में, शनि कुंभ में, शुक्र और राहु मेष राशि में विराजमान हैं. इस दौरान मालव्य, केदार, हंस और महाभाग्य जैसे योग बन रहे हैं. इसके साथ ही साथ सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि, गुरु पुष्य योग और रवि योग के संयोग भी बन रहे हैं.
1- वृषभ राशि (Aries)
रामनवमी पर बनने वाले इन शुभ संयोग का लाभ वृषभ राशि के जातकों को मिलने वाला है. जिसके फलस्वरूप वृषभ राशि के जातकों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, धन को लेकर रुके काम संपन्न होंगे, कार्यस्थल पर सभी का सपोर्ट मिलेगा, नई जिम्मेदारी मिलने के भी आसार हैं. आपको बता दें कि इन जातकों के लिए निवेश का बहुत अच्छा समय है.
2- तुला राशि (Libra)
तुला राशि से संबंधित जातकों पर हनुमान जी और श्रीराम की विशेष कृपा रहने वाली है. इन जातकों को आर्थिक मोर्चे पर लाभ होने के योग हैं, आय में वृद्धि के प्रबल योग हैं. इसके साथ ही आत्मविश्वास में वृद्धि होगी, इससे लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी. मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी. परिवार का साथ मिलेगा. भगवान राम के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि का आगमन होगा.
3- सिंह राशि (Leo)
सिंह राशि वालों के लिए राम नवमी का त्योहार काफी खुशियां लेकर आ रहा है. जिसके फलस्वरूप उन्हें पुराने कर्ज से छुटकारा मिल सकता है, आय के नए स्रोत खुलने के योग बनेंगे व लंबे समय से नौकरी व व्यापार में चली आ रही समस्याओं से मुक्ति मिलेगी.
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नवरात्रि के आठवें दिन इस विधि से करें माता महागौरी की उपासना

चैत्र नवरात्रि के अष्टम दिन माता महागौरी की पूजा का विधान है। इस विशेष दिन को महाअष्टमी या दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष चैत्र दुर्गाष्टमी व्रत आज यानी 29 मार्च को है। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर माता महागौरी की पूजा करने से साधकों को धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि वह साधक जो पूरे नौ दिन व्रत नहीं रख पाते हैं, उन्हें महाअष्टमी के उपवास जरूर रखना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को 9 दिनों की पूजा का फल प्राप्त होता है। आइए आचार्य श्याम चंद्र मिश्र जी से जानते हैं चैत्र नवरात्रि आठवें माता महागौरी की पूजा विधि, मुहूर्त और मंत्र।
आचार्य मिश्र बताते हैं कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 28 मार्च को संध्या 07 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 29 मार्च को रात्रि 09 बजकर 07 मिनट पर होगा। ऐसे में दुर्गाष्टमी व्रत और कन्या पूजन 29 मार्च 2023 के दिन किया जाएगा। इस दिन शिभन योग पूरे दिन रहेगा।
मां दुर्गा की अष्टम सिद्ध स्वरूप माता महागौरी हैं। इनका रूप अत्यंत सौम्य है और माता भगवती का यह रूप बहुत सरस और मोहक है। माता महागौरी का वर्ण अत्यंत गौर और इनके वस्त्र व आभूषण भी गौर रंग के हैं। माता महागौरी बैल की सवारी करती हैं और इनकी चार भुजाएं हैं। मां महागौरी दाहिने भुजा में अभय मुद्रा और त्रिशूल धारण करती हैं। बाएं भुजा में डमरू और वर मुद्रा धारण करती हैं।
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अप्रैल-2023 में पड़ेंगे ये व्रत-त्योहार

साल 2023 का मार्च का महीना समापन की ओर की अग्रसर है और जल्द ही हम लोग अप्रैल माह में प्रवेश करने वाले हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, अप्रैल का महीना बहुत ही खास होता है. इस महीने में कई प्रमुख व्रत और त्योहार पड़ते हैं. अप्रैल महीने में हनुमान जयंती से लेकर अक्षय तृतीया समेत कई व्रत और त्योहार पड़ेंगे. ऐसे में आज हम इस आर्टिकल में अप्रैल महीने में पड़ने वाले प्रमुख व्रत-त्योहार की तारीख बताएंगे. ताकि आप समय से अपनी तैयारी कर सकें. तो चलिए जानते हैं.
तारीख, दिन, त्योहार/व्रत
1 अप्रैल, शनिवार, कामदा एकादशी
4 अप्रैल, मंगलवार, महावीर जयंती
5 अप्रैल, बुधवार, चैत्र पूर्णिमा
9 अप्रैल, रविवार, हनुमान जयंती
14 अप्रैल, शुक्रवार, बैसाखी
16 अप्रैल, रविवार, वरुथिनी एकादशी
22 अप्रैल, शनिवार, अक्षय तृतीया
22 अप्रैल, शनिवार, परशुराम जयंती
27 अप्रैल, गुरुवार, सीता नवमी
27 अप्रैल, गरुवार, गंगा सप्‍तमी
अक्षय तृतीया 2023 कब है?
हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है. अक्षय तृतीया के अवसर पर विवाह करना, सोना, वाहन, मकान आदि की खरीदारी करना शुभ माना जाता है. अक्षय तृतीया पर माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. इस साल वैशाख मा​ह के शुक्ल पक्ष की तृतीया ति​थि 22 अप्रैल दिन शनिवार को सुबह 07 बजकर 49 मिनट से शुरू हो रही है. य​ह तिथि अगले दिन 23 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक है. इस साल अक्षय तृतीया 22 अप्रैल 2023 को है.
भारत में कब मनाई जाएगी ईद?
भारत में रमजान महीने की शुरुआत 24 मार्च से हो चुकी है, 24 मार्च को पहला रोजा रखा गया था. आपको बता दें कि 29 या 30 रोजे के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है. इसका फैसला रमजान के 29वें रोजे की इफ्तार के बाद होता है. माना जा रहा है कि इस बार ईद 22 अप्रैल को मनाई जाएगी. हालांकि, स्पष्ट रूप से तारीख का ऐलान कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन संभवत: ईद का त्योहार 22 या 23 अप्रैल को मनाया जा सकता है.
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ज्योतिषाचार्य से जानिए अक्षय तृतीया 2023 की सटीक तिथि

हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में सोने की खरीदारी करने से जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। बता दें कि इस कार्य के लिए अक्षय तृतीया पर्व को बहुत ही उत्तम माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के लिए शुभ मुहूर्त नहीं देखा जाता है। साथ ही मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने से आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। आइए ज्योतिषाचार्य मनोज थपलियाल जी से जानते हैं वैशाख मास में कब मनाया जाएगा अक्षय तृतीया पर्व, शुभ मुहूर्त और महत्व?
ज्योतिषाचार्य मनोज थपलियाल बताते हैं कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का शुभारंभ 22 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 49 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन 23 अप्रैल सुबह 07 बजकर 47 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में अक्षय तृतीया पर्व 22 अप्रैल 2023, शनिवार के दिन मनाया जाएगा।
पंचांग में यह भी बताया गया है कि अक्षय तृतीया के दिन जप, तप और हवन के लिए सुबह 07 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट के बीच की अवधि सबसे उत्तम है। साथ इस विशेष दिन पर चार अत्यंत शुभ योग- त्रिपुष्कर योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। जिस वजह से इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
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