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इस गांव में लगाते है होलिका दहन की राख से टीका

इस मंदिर में होलिका दहन ऐसे ही पिछले 35 सालों से किया जा रहा है
भारत को संस्कृति का देश इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यहां परंपराओं को सालों साल निभाया जाता है. हर उत्सव के पीछे कोई ना कोई परंपरा होती है जिसके पीछे एक कथा विख्यात होती है. मगर एक ऐसी जगह है जहां पर्यावरण को ध्यान में रखकर 35 सालों से एक संदेश दिया जा रहा है. मध्यप्रदेश के जबलपुर में छोटी खेरमाई मंदिर मानस भवन है जहां सूखे पत्तों और गाय के कंडों से होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद उस राख को माथे पर तिलक के तौर पर लगाते हैं. जानें वहां ऐसा क्यों होता है?
होलिका दहन की राख से टीका लगाने की कैसी है ये परंपरा?
मध्यप्रदेश के जबलपुर में छोटी खेरमाई मंदिर मानस भवन है जहां सूखे पत्तों और गाय के कंडों से होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद उस राख को माथे पर तिलक के तौर पर लगाते हैं. उस मंदिर में होली पर होलिका की मूर्ति और लकड़ियों की जगह पेड़ के सूखे पत्तों और गाय के गोबर से बने कंडों का दहन किया है. मानस भवन के समीप स्थित छोटी खेरमाई और राधा-कृष्ण मंदिर में अनूठा होलिका दहन करते हैं.
इस मंदिर में होलिका दहन ऐसे ही पिछले 35 सालों से किया जा रहा है. आंधी तूफान से मंदिर के परिसर में लगे पेड़-पौधों के सूखे पत्ते गिरते हैं उन्हें बटोरकर स्टोर कर दिया जाता है. इसके बाद वहां पली गाय के गोबर के कंडे बनाए जाते हैं और होलिका दहन उन दोनों चीजों से करते हैं. इस मंदिर में होलिका दहन के दिन भारी मात्रा में श्रद्धालु जमा होते हैं और धूमधाम से होलिका दहन मनाते हैं. यहां की होलिका दहन की राख का टीका वो सभी लोग लगाते हैं जो वहां पूजा के लिए आते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें, परिसर के पूजारियों का कहना है कि होलिका दहन के बाद सभी भक्त मंदिर परिसर में आते हैं और होलिका दहन की राख का टीका लगाते हैं. जिसके बाद एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं. इससे समाज को जंगल, पर्यावरण और गंदगी दूर भगाने का संदेश तो दिया ही जाता है साथ में भाईचारे का संदेश भी मिलता है.
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किसने खेली थी संसार की पहली होली, जानिए...

होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. वहीं इस साल 7 मार्च को होलिका दहन है और 8 मार्च को होली है. जब भी इस त्योहार की बात की जाती है, तो सबसे पहले भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की जिक्र जरूर की जाती है. लेकिन क्या आप इस त्योहार से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं, अगर नहीं तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि होली से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है, सबसे पहले होली किसने खेली थी.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ये त्योहार भगवान शिव और भगवान विष्णु से जुड़ी है. ऐसी मान्यता है कि संसार की पहली होली देवों के देव महादेव ने खेली थी, जिसमें प्रेम के देवता और उनकी धर्मपत्नी रति थी. ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव कैलाश पर अपनी समाधि में लीन थे, तब तरकासुर नामक दैत्य के वध के लिए कामदेव और देवी रति ने भगवान शिव को जगाने के लिए नृत्य किया था.
जब रति और कामदेव के नृत्य से भगवान शिव की समाधि भंग हुई थी, तब भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को आग से भस्म कर दिया था, फिर रति ने प्रायश्चित में विलाप भी किया, तब भगवान शिव ने रति की स्थिति देखकर कामदेव को वापस जीवित कर दिया. तब रति और कामदेव प्रसन्न होकर ब्रजमंडल में ब्रह्म भोज का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवता शामिल हुए. फिर रति ने चंदन से टीका लगाकर खुशी मनाई थी. ऐसा कहते हैं, कि यह आयोजन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही हुआ था.
वहीं ब्रह्म भोज में खुशी के मारे भगवान शिव ने डमरू बजाई थी और भगवान विष्णु ने बांसुरी बजाई थी. वहीं मां पार्वती ने वीणा बजाई थी, तो मां सरस्वती ने रागों में गीत गाई. तभी से ही हर साल होली में गीत, संगीत, और रंगों के साथ होली का आनंदोत्सव मनाया जाने लगा.
इस विधान से खेली जाती है होली
अगर आप रंग या फिर अबीर खेलने जाते हैं, तो सबसे पहले भगवान को जरूर अर्पित करें. उसके बाद, होलिका दहन में लाए गए भस्म से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. फिर अपने पसंदीदा रंगों के साथ होली खेलनी चाहिए. इससे लोगों के बीच प्रेम और स्नेह की भावना बढ़ती है.
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शुभ मुहूर्त : होलिका दहन 7 और होली 8 मार्च को

शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, नियम, मान्यताएं समेत पूरी जानकारी जानें...
होली 8 मार्च बुधवार को जबकि होलिका दहन 7 मार्च, मंगलवार को है. हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा की शाम को होलिका दहन होता है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. देश भर में लोग हर साल रंगों के त्योहार को बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को अलग-अलग नामों जैसे डोल पूर्णिमा, रंगवाली होली, धुलंडी, धुलेटी, मंजल कुली, याओसंग, उकुली, जजिरी, शिगमो या फगवा के नाम से भी पुकारते है. होलिका दहन और होली का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, नियम और मान्यताएं जान लें. क्या है?
होली 2023 में बुधवार, 8 मार्च, 2023 को मनाई जाएगी. होली पूरे देश में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला विशेष त्योहार है. यह हिंदू कैलेंडर के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है.
होलिका दहन तिथि और शुभ मुहूर्त
होलिका दहन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और अगले दिन लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे को रंग लगाकर होली खेलते हैं. होलिका दहन को कई जगहों पर छोटी होली के रूप में भी जाना जाता है. यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस वर्ष होलिका दहन 2023 का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 27 मिनट तक रहेगा. 7 मार्च 2023 मंगलवार को शाम 6:24 बजे से रात 8:51 बजे तक अनुष्ठान किये जा सकते हैं.
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि प्रारंभ
6 मार्च 2023 को 04:17 अपराह्न
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि समाप्त
7 मार्च 2023 को 06:09 अपराह्न
होलिका दहन 2023 पूजा विधि
होलिका दहन के शुभ अवसर पर होलिका जलाने के लिए जहां पर लकड़ी इक्ट्ठी की जाती है वहां जा कर पूजा करें.
होलिका के लिए तैयार किये गये लकड़ी को सफेद धागे या मौली (कच्चा सुत) से तीन या सात बार लपेटें.
फिर उस पर पवित्र जल, कुमकुम और फूल छिड़क कर पूजा करें.
पूजा पूरी होने के बाद शाम को होलिका जलाया जाता है.
इस दिन, भक्त प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति की जीत का जश्न मनाते हैं.
लोग होलिका पूजा भी करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह सभी के घर में समृद्धि और धन लाती है.
यह पूजा लोगों को अपने सभी डर से लड़ने की शक्ति भी देती है.
होली इतिहास और महत्व
होली की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में देखी जा सकती है. माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत होलिका और प्रह्लाद की कथा से हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिससे वह आग से प्रतिरक्षित हो गई थी. उसने प्रह्लाद को मारने के लिए इस वरदान का उपयोग करने की कोशिश की, जबकि वह जलती हुई आग में बैठी थी. हालांकि, आग ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और होलिका आग की लपटों में भस्म हो गई. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली के पहले दिन मनाया जाता है, जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है.
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सपने में दिखता है होली या अबीर-गुलाल, तो...

जानें क्या है इसका संकेत
सपने जीवन में परिस्थितियों को प्रभावित कर सकते हैं। कहा जाता है कि सपने हमारे जीवन का आईना होते हैं। कहा जाता है कि इंसान जिस तरह की स्थिति से गुजर रहा होता है, उसे वैसे ही सपने आते हैं। स्वप्न विज्ञान के जानकारों का कहना है कि कुछ सपने ऐसे भी होते हैं जिनसे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हमें अक्सर जो सपने आते हैं वह हम तुरंत अपनों के साथ या फिर दोस्तों के साथ साझा कर लेते हैं। स्वप्न शास्त्र में ऐसे सपनों के शुभ-अशुभ मतलब बताए गए हैं। चूंकि होली नजदीक है सपने में अगर आप होली का त्योहार देखते हैं या रंग खेलते तो यह किस प्रकार का संकेत है। आइए जानते हैं सपने में होली खेलने या रंग देखने के क्या मतलब हैं।
सपने में होलिका जलते हुए देखने का अर्थ है कि आपको शीघ्र ही खुशखबरी मिलने वाली है। जीवन में पुरानी समस्या भी शीघ्र समाप्त होने वाली है।सपने में खुद को होली खेलते हुए देखने का अर्थ है कि आपको जल्द ही पार्टनर मिल सकता है या विवाह तय हो सकता है।
यदि सपने में खुद को गुलाबी रंग से होली खेलते देख रहे हैं तो यह जीवन में प्रेमसंबंध मधुर होने का संकेत दे रहा है।
सपने में लाल रंग देखने का अर्थ है आपको थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता है अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है।
सपने में खुद को काले रंग से होली खेलते देखना किसी मुसीबत के आने का इशारा है।
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होलिका दहन के दिन घर में जरूर लाएं चांदी से संबंधित चीजें

रंगों का त्योहार आने में अब 2 दिन बाकी है. इस बार होलिका दहन दिनांक 7 मार्च को किया जाएगा और होली दिनांक 8 मार्च को खेली जाएगी. वहीं ज्योतिष शास्त्र की मानें तो होलिका दहन का दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन कुछ उपायों को करने के बारे में बताया गया है, जिसे करने से आपको सभी रोगों से मुक्ति मिल जाएगी और सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होगी. अब ऐसे में अगर आप होली के लिए शॉपिंग करने जा रहे हैं, तो चांदी से बनी इन चीजों को खरीदकर जरूर ले आएं. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि होलिका दहन के दिन चांदी से संबंधित किन चीजों को खरीदना शुभ माना जाता है. जिससे आपको सभी रोगों से भी मुक्ति मिल जाएगी और घर में सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होगी.
चांदी का सिक्का खरीदें
होलिका दहन के दिन चांदी का सिक्का खरीदकर घर लाएं और उसे पीले रंग के कपड़े में हल्दी के साथ बांधकर होली के दिन मां लक्ष्मी को अर्पित कर दें. उसके बाद उसे आप जहां पैसे रखते हैं, उस स्थान पर सुरक्षित रख दें. इससे आपको कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
चांदी का छल्ला खरीदें
होलिका दहन के दिन चांदी का छल्ला खरीदें और उसकी विधिवत पूजा करें. उसके बाद उसे अपनी अंगूली में पहन लें. इससे आपको भाग्य का पूरा साथ मिलेगा और आपको रोगों से भी छुटकारा मिल जाएगा.
चांदी की बिछिया खरीदें
सुहागिन स्त्रियों को होली के दिन चांदी की बिछिया खरीदना चाहिए, ये बहुत शुभ माना जाता है. इसे घर लाएं और दूध में धोएं, फिर खुद धारण कर लें. इससे मां लक्ष्मी की हमेशा आपके ऊपर कृपा बनी रहेगी.
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रायपुर में जैन तीर्थकर की प्रतिमा निकली

बीजेपी नेता के यहां पहुंच रहे लोग
रायपुर/धरसीवां। क्षेत्र के सोण्डरा गांव में भाजपा नेता के घर जमीन से भगवान निकलने की खबर से गांव में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. बीजेपी नेता दिलेंद्र बंछोर के घर मिट्टी से सनी खंडित प्रतिमा जमीन के अंदर से निकली है. यह प्रतिमा जैन तीर्थकर भगवान की है या अन्य भगवान की, यह अभी स्प्ष्ट नहीं हुआ है. इसकी जानकारी मिलते ही आसपास के लोग भाजपा नेता बंछोर के घर भगवान के दर्शनार्थ पहुंच रहे हैं.
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हर रोज तुलसी के पौधे पर चढ़ाएं जल, बुरे दिन होंगे दूर

तुलसी के पौधे का विशेष महत्व, परेशानियों से दिलाएगा निजात
सनातन धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व माना गया है. इस पौधे को घर में लगाने से घर में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस पौधे को हिंदू धर्म में अधिक पवित्र भी माना गया है. एक तरफ जहां तुलसी की पूजा की जाती है, तो वहीं दूसरी तरफ तुलसी का वास्तु की दृष्टि से बहुत महत्व माना गया है. मान्यता है कि अगर तुलसी की पूजा-अर्चना विधि विधान के साथ की जाए, तो इससे कई तरह के लाभ मिलते हैं. इसके अलावा तुलसी के कुछ उपाय करने से धन की प्राप्ति होती है और इंसान को दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हैं. चलिए जानते हैं कि वे चमत्कारिक उपाय क्या हैं.
तुलसी के उपाय
1. अगर आप अपनी कन्या का विवाह करना चाहते हैं. लेकिन आपको पसंद का वर नहीं मिल पा रहा है तो इसके लिए तो तुलसी का यह टोटका आपके लिए उत्तम रहेगा. कन्या को रोजाना तुलसी के पौधे को जल सींच कर उसकी 7 प्रदक्षिणा करनी चाहिए. इस उपाय को करने से जल्दी ही उत्तम वर मिलेगा.
2. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे को गुड़ का भोग लगाएं. मान्यता है कि इस उपाय को करने से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल जाता है और साथ ही ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी अधिक प्रसन्न होती हैं.
3. यदि आपके घर में अक्सर परिवार के सदस्यों के बीच में लड़ाई का माहौल रहता है. तो रोजाना तुलसी के पौधे को जल दें. इस उपाय को करने से घर में कलह दूर होती है.
4. अगर आप अपने बुरे दिनों को दूर करना चाहते हैं तो हर रोज तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाएं और साथ ही इस पौधे की पूजा के समय उसके पास बैठकर 108 बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र का उच्चारण करें और आप माता तुलसी के पास बैठकर उन्हें अपनी सभी परेशानियों को बताएं. क्योकि तुलसी में माता लक्ष्मी का वास होता है. इसलिए भक्त की अरदास सीधे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी तक पहुंचती है, जिससे वे आपके सारे संकट दूर कर देते हैं और साथ ही आपको धन का लाभ मिलता है.
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ससुराल में क्यों नहीं मनाती दुल्हन पहली होली

होली के पर्व को ‘रंगो का त्योहार’ के नाम से भी जाना जाता है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली का पर्व मनाया जाता है. यह त्योहार हिंदुओं का माना जाता है. लेकिन कई समुदाय के लोग इस त्योहार को उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं. इस साल होलिका दहन 7 मार्च को है और 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी. देशभर में होली के पर्व को अधिक धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन होली को लेकर बहुत रीति-रिवाज हैं. इनमें से एक है कि नई दुल्हन अपनी पहली होली ससुराल में क्यों नहीं मनाती है. अगर आपके मन में भी यही सवाल है तो आपके इस सवाल का जवाब इस खबर में मिल जाएगा.
ससुराल में क्यों नहीं मनाती नई दुल्हन पहली होली?
मान्यता है कि ससुराल में नई दुल्हन के लिए पहली होली खेलना या फिर देखना अशुभ माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अगर नई दुल्हन और सास एक साथ होली जलते हुए देखती है तो उनके रिश्ते बिगड़ जाते हैं.
इसके अतिरिक्त एक यह भी रिवाज है कि शादी के बाद दामाद को पहली होली पत्नी के मायके में मनानी चाहिए. मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से ससुराल वालों के साथ लड़की के संबंध बढ़िया रहते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार, यदि दामाद अपनी पहली होली पत्नी के साथ उसके मायके में मनाता है. तो ऐसा करने से उनके जीवन में प्यार बढ़ता है.
कहा जाता है कि दुल्हन के मायके में होली को पर्व को मनाने से संतान का भाग्य उत्तम होता है और स्वास्थ्य भी सुधरता है.ऐसा कहा जाता है कि यदि होली के आसपास किसी महिला को बालक होने वाला हो तो उसे ससुराल की होली नहीं देखनी चाहिए.
 
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वृंदावन में मनाई जाती है कितने तरह की होली जाने

सनातन धर्म में होली के पर्व का अधिक महत्व है. फाल्गुन माह में पूर्णिमा को देशभर में होली का पर्व मनाया जाता है. लेकिन मथुरा में होली के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है. कान्हा की नगरी में होली का उल्लास भी शुरू हो गया है. देश में होली कई तरह से मनाई जाती है. गुलाल और रंग के अलावा फूलों और लठ्‌ठ से होली खेली जाती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वृंदावन में होली का त्योहार 40 दिनों तक चलता है. वृंदावन की होली का अपना विशेष ही महत्व है. इस लेख में हम आपको बताएंगे कि वृन्दावन में होली कितने तरह से मनाई जाती है.
वृंदावन में होली इतने प्रकार से मनाई जाती है
1. रंगों की होली- देशभर में होली का पर्व मनाया जाता है. लेकिन कान्हा की नगरी ब्रज की होली अपने ही आप में पूरे विश्व को समेटे हुए है. यहां पर होली से एक महीने पहले इस पर्व की शुरुआत होती है. राधा रानी और कृष्ण की लीलाओं का आनंद लिया जाता है. इस खास अवसर पर ब्रजवासियों में एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिलता है.
2. लड्डू मार होली- वृन्दावन में रंगों के अलावा लड्डुओं की भी होली खेली जाती है. फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने के श्रीजी मंदिर में लड्डुओं की होली खेली जाती है. ऐसा कहा जाता है कि श्रीजी लाड़ली मंदिर में लड्डू मार होली की शुरुआत द्वापर युग से हुई थी.
3. लठमार होली- बरसाना की लठमार होली का अपना एक अलग उत्साह है. बरसाना की लठमार होली में शामिल होने के लिए देश समेत विदेश से भी लोग पहुंचते है. इस उत्सव को देखने के लिए आए सैलानी मस्ती का आनंद लेते हैं और यहां की खूबसूरत तस्वीर अपने कैमरे में कैद करते हैं. लठमार होली राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानी जाती है.
4. फूलों की होली- रमणरेती में राधा रानी और कृष्ण के भक्त फूलों की होली खेलते हैं. मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने होली खेलना यही से आरंभ किया था. इसी वजह से ब्रज में होली की शुरुआत रमणरेती में फूलों की होली के साथ होती है. यहां राधा रानी और कृष्ण को फूलों से ढक दिया जाता है.
5. दुल्हंडी होली- राजस्थान और हरियाणा समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरसाने की लठमार होली खेली जाती है. इसको दुल्हंडी कहा जाता है. इस होली में अंतर यह है कि यहां देवर-भाभी एक दूसरे को रंगने की कोशिश करते हैं और बदले में भाभी देवर के दुपट्टे से बनाए गए कोड़े से पीटती हैं.
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श्रीकृष्ण-सुदामा का मिलन समाज के लिए प्रेरणास्रोत

दरभंगा न्यूज़ : सिद्ध विद्यापीठ गलमा धाम में महाशिवरात्रि के दिन से शुरू शतचंडी महायज्ञ, रुद्राभिषेक, श्रीमद्भागवत कथा, भजन-कीर्तन आदि के आयोजनों से क्षेत्र में भक्ति की धारा बह रही है.
सातवें दिन द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर में रुद्राभिषेक के बाद महायज्ञ वेदी में हवन की आहुतियों तथा वैदिक मंत्रोच्चार से क्षेत्र का वातावरण सुवासित होने लगा. सायंकाल में श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास पं. सुकदेवानंद नाथ ने श्रीकृष्ण-सुदामा के मिलन पर विस्तृत प्रकाश डाला. विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष तथा महायज्ञ के आयोजक पं. जीवेश्वर मिश्र ने कहा कि श्रीकृष्ण सुदामा का मिलन सनातन संस्कृति को समतामूलक समाज के निर्माण के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा. कार्यक्रम में पेरिस से पहुंची साध्वी आत्मप्रिया, योगाचार्या बबीता कुमारी, पं. प्राणेश्वर मिश्र, पं. रौशन पाठक, साधक बिनोद बाबा, अनिल गिरि, मायेर मित्र मंडली, तपेश्वर सिंह, रवींद्र कुमार सिंह सहित दर्जनों धर्मानुरागी उपस्थित थे.
रामपुर उदय में बह रही भक्ति की धारा
भगवान कहते हैं कि ज्ञान के साथ यदि भक्ति न हो तो वह ज्ञानी मुझे अच्छा नहीं लगता है क्योंकि ज्ञानी को ज्ञान का घमंड होना मुझे पसंद नहीं है. ये बातें रामपुर उदय गांव में श्री लक्ष्मीनारायण सह महादेव परिवार मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद पूर्णाहुति यज्ञ के बाद लगमा कुटी के ब्रह्मचारी बाबा ने कही. उन्होंने कहा कि शास्त्रत्त् कहता है ‘विद्या ददाति विनयम’.
अर्थात कोई व्यक्ति अपने जीवन में भले ही बहुत धन और ज्ञान अर्जित कर ले, लेकिन भक्ति व नम्रता नहीं है तो वह शुष्क ज्ञान परमात्मा को नहीं भाता है. भगवान स्तुति व प्रार्थना से ज्यादा भक्त के भाव के भूखे होते हैं. मौके पर प्रदीप झा, मदन झा, अमित झा, सतीश झा, अविनाश झा, चंद्रकांत झा, कुंवरकांत झा और गौरीशंकर झा आदि थे.
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चाणक्य अनुसार 5 तरह के लोगों पर भूलकर भी ना करें विश्वास

संस्कृत-साहित्य में नीतिरपरक ग्रंथों में चाणक्य नीति का महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है. इन नीतियों को आचार्य चाणक्य ने नीतिशास्त्र द्वारा अपने नीति ग्रंथ में लिखा है. उनके इस चाणक्य नीति ग्रंथ में हर समस्या का हल है. फिर वो समस्या पति-पत्नी के संबंधों की हो, दूसरे किसी संबंधों की हो, नौकरी, पढाई या जीवन को लेकर हो, हर तरह की परेशानियों का हल आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बताया है. इस बार हम आपको ये बताएंगे कि किस तरह के लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वरना आपको जीवन में आगे चलकर पछताना पड़ सकता है.
इन 5 तरह के लोगों पर भूलकर भी ना करें विश्वास
1. पीठ पीछे बुराई करने वाले: जो लोग मुंह पर बडाई और बुराई दोनों करे, जो लोग आपकी कमी ज्यादा बताए वो विश्वास के पात्र होते हैं. लेकिन जो लोग आपके पीठ पीछे बुराई करे और सामने तारीफ तो इनसे तो आपको कई कदम पीछे या आगे रहना चाहिए. ऐसे लोगों के साथ चलना बेवकूफी होती है.
2. मुंह पर बड़ाई करने वाले: जो लोग आपके मुंह पर हर समय आपकी तारीफ करते रहते हैं उनसे बचकर रहना चाहिए. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोग मीठी छूरी जैसे होते हैं जो आपकी तारीफ करते रहते हैं और दूसरों के सामने आपको कोसते हैं.
3. आपके बुरे कामों में साथ देने वाले: अगर आप सिगरेट पी रहे, शराब पी रहे, गलत हरकतें कर रहे और कोई आपका इसमें साथ दे रहा है तो उनसे बचकर रहें. ऐसे लोग सिर्फ आपको बर्बाद करने के इरादे से साथ रहते हैं और अगर आप कहीं फंस जाएं तो वो लोग वहीं छोड़कर भाग सकते हैं.
4. हमेशा मीठा बोलने वाले: आपके सामने हमेशा मीठा बोलने वाले भी बहुत गहरे होते हैं. ऐसे लोगों के बारे में आप सही-गलत समझ पाएं उससे पहले ये लोग आपको धोखा दे सकते हैं. इसलिए बेहतर है कि ऐसे लोगों से दूर ही रहें.
5. अक्सर झूठ बोलने वाले: जो लोग हर बात पर झूठ बोलते हैं और अपना फायदा हमेशा देखते हैं ऐसे लोगों से दूर रहना बेहतर होता है. कभी-कभी ऐसा झूठ बोलना जिससे किसी का नुकसान ना हो रहा हो वो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन हर बात पर झूठ बोलने वाले पर विश्वास नहीं करना चाहिए.
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श्रद्धालु की मन्नत हुई पूरी, चढ़ाया 1051 नारियल

सूरजपुर। जिले में जब एक श्रद्धालु की मन्नत पूरी हुई, तो उसने भैयाथान ब्लॉक में स्थित खोपा धाम में एक पिकअप नारियल का चढ़ावा चढ़ाया। सोमवार को खोपा धाम में जब श्रद्धालु एक पिकअप नारियल लेकर पहुंचा, तो वहां मौजूद अन्य लोग भी दंग रह गए।
पहले तो लोगों ने सोचा कि शायद ये व्यक्ति कोई दुकानदार है, जो यहां नारियल बेचने के लिए आया है, लेकिन जब एक-एक करके नारियल फोड़ा जाने लगा, तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि किसी भक्त ने मनोकामना पूरी होने पर एक गाड़ी भरकर नारियल चढ़ाया है। इस श्रद्धालु का नाम विजयलाल मरकाम है, जो वाड्रफनगर के रजखेता का रहने वाला है।
विजयलाल ने बताया कि असुरों ने उसकी इच्छा पूरी की है, इसलिए वो 1 हजार 51 नारियल यहां लेकर पहुंचा है। उसने कहा कि इस धाम में उसकी बहुत आस्था है और पहले भी कई मनोकामनाएं इस धाम ने पूरी की हैं। खोपा धाम में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किसी देवी-देवता नहीं बल्कि दानवों की पूजा-अर्चना करते हैं।
 
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आज से शुरू हुआ होलाष्टक

Holashtak 2023 : जानें किन राशि वालों को सतर्क रहने की जरूरत
होली का त्योहार अब काफी नजदीक है. रंगों से भरे इस त्योहार को प्यार का त्योहार भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन दुश्मन भी गले लग कर रंग के जरिए दुश्मनी खत्म कर देते हैं. वैसे तो होली का त्योहार 8 मार्च को है. लेकिन इससे ठीक पहले होलाष्टक लगता है. होलाष्टक के लिए कहा जाता है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए. मसलन शादी, गृह प्रवेश या फिर नए कारोबार की शुरुआत आदि. इसकी शुरुआत होली के आठ दिन पहले हो जाती है. हिंदू धर्म में होलाष्टक का खास महत्व भी है. वैसे तो होलाष्टक को लेकर कई तरह का मान्यताएं भी हैं. कहा जाता है कि, इस दिन की शुरुआत पर ही महादेव ने कामदेव को भस्म किया था. 
इस वजह से नहीं किए जाते शुभ काम
इस काल में हर दिन अलग अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं, यही कारण है कि इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते हैं.  इस साल होलाष्टक 27 फरवरी से लेकर 07 मार्च तक चलेगा. यानी इस दौरान आप कोई भी अच्छे या नए काम करने की योजना बना रहे हैं तो उसे टाल दें. ज्योतिषियों के मुताबिक, इस होलाष्टक का असर हमारी राशियों पर भी पड़ता है. कुछ पर इसका अच्छा तो कुछ पर बुरा प्रभाव होता है. इस बार होलाष्टक पांच राशियों के लिए बुरा असर देने वाला है. आइए जानते हैं कौन सी हैं वो पांच राशियां जिन्हें होलाष्टक में थोड़ा संभलकर रहना होगा...
मिथुनः होली से पहले पड़ने वाले होलाष्टक का असर जिन पांच राशियों पर थोड़ा भारी है उनमें पहली राशि है मिथुन. मिथनु राशि के जातकों को इस दौरान बिना वजह का तनाव घेर सकता है. यही नहीं इस दौरान मिथुन राशि वालों को वाद-विवाद या अनबन से बचना होगा. वाणी पर संयम रखेंगे तो होलाष्टक के आठ दिन शांति से बीत सकते हैं. 
कारोबारियों को भी इस दौरान विशेष ध्यान देने की जरूरत है. खर्चों पर भी ध्यान दें बेवजह धन खर्च से भी बचें. आय पर बुरा असर पड़ सकता है. 
कर्कः  कर्क राशि वालों के लिए होलाष्टक का वक्त परेशानियों भरा हो सकता है. खास तौर पर इन जातकों को घरेलू समस्याओं से बचकर रहना होगा. इसके साथ ही भूमि-भवन से जुड़े विवाद भी मुश्किल बढ़ा सकते हैं. कोई बड़ा निर्णय लेने से पहले अपने करीबियों की सलाह जरूर लें. जहां तक बात रोजगार की है तो इसके लिए अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. 
वृश्चिकः होलाष्टक में वृश्चिक राशि के जातकों के लिए भी मुश्किल बढ़ सकती है. खास तौर पर आर्थिक रूप से नुकसान होने की संभावना है. ऐसे में व्यर्थ खर्चों से बचें. किसी को उधार ना दें. इसके साथ ही बहस या विवाद में ना पड़ें. नए कार्यों की शुरुआत करने की सोच रहे हैं तो रुक जाएं. 
मकरः इन राशि वालों को भी अगले आठ दिन तक सतर्क रहने की जरूरत है. वाहन चलाते वक्त ध्यान रखें. ज्यादा गति से वाहन ना चलाएं. आपसी रिश्तों में खटास आ सकती है ऐसे में वाद विवाद से बचें और वाणी पर संयम रखें. सेहत को लेकर आठ दिन विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. 
कुंभः होलाष्टक में कुंभ राशि वालों के लिए भी सावधान रहने की जरूरत है. जरूरी कामों को तुरंत निपटा लें. देरी करना हानिकारक हो सकता है. किसी भी काम में साझेदारी है तो पार्टनर के प्रति भी सतर्क रहें. भरोसा टूट सकता है. इससे आपको आर्थिक नुकसान के अवसर भी बन रहे हैं.
 
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जानें क्या है दही चीनी खाने का महत्व

भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ काम करने से पहले घर से दही चीनी खाकर निकलते हैं, ताकि उनका काम शुभ और मंगलमय हो. घर के बड़े-बुजुर्ग बिना दही-चीनी खिलाए घर से निकलने से नहीं देते हैं. बता दें, दही-चीनी खिलाने का आशय परिवार के प्रेम और आशीर्वाद से है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि आखिर कोई भी शुभ काम करने से पहले दही चीनी क्यों खाया जाता है. इसका महत्व क्या है और साथ ही इसका वैज्ञानिक कारण क्या है?
ज्योतिष शास्त्र में सफेद वस्तुओं का संबंध चंद्रमा से है और चंद्रमा मन का कारक माना जाता है. वहीं दही चीनी भी सफेद होती है, इसलिए कोई भी शुभ काम करने से पहले दही चीनी खाने से व्यक्ति का मन एकाग्र रहता है और जब व्यक्ति एकाग्र रहेगा, तो अपने काम को ठीक ढंग से करेगा और इससे सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं दूसरी तरफ शुक्र ग्रह का संबंध भी सफेद रंग से है और ये शांति का प्रतीक माना जाता है. इसलिए दही-चीनी खाने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.
वैज्ञानिक कारण
दही चीनी खाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं. दही-चीनी खाने से शरीर को ग्लूकोज मिलता है. इसलिए आप जब भी घर से किसी शुभ को करने के लिए निकल रहे हैं, तो दही-चीनी जरूर खाकर निकलें
 
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होलिका दहन के दिन जरूर करें ये उपाय

ज्योतिष शास्त्र में घर की सुख-समृद्धि के लिए कई सारे उपाय किए जाते हैं. ऐसे में कुछ उपायों के बारे में बताया गया है,जिनको अगर सही समय और सही दिन पर किया जाए, तो व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है. यदि आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं या फिर आपको नौकरी में किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न हो रही है, तो होलिका दहन के दिन कुछ उपायों को करने से आपको जरूर लाभ होगा. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में होलिका दहन के दिन किए गए कुछ उपायों के बारे में बताएंगे, जिन उपायों को करने से अगर आपको किसी तरह की कोई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो उन उपायों को करने से आपको जरूर लाभ होगा.
1. पढ़ाई में सफलता पाने के लिए जरूर करें ये उपाय
विद्यार्थी अगर किसी तरह की परीक्षा की कोई तैयारी कर रहे हैं, मगर उन्हें सफलता नहीं मिलती है, तो आपको होलिका दहन वाले दिन शाम के समय घर की उत्तर दिशा की तरफ अखंड ज्योत जलानी चाहिए, इससे आपको जल्द लाभ होगा.
2. अगर आपको नौकरी में आ रही है कोई परेशानी तो करें ये उपाय
अगर आपको नौकरी में किसी तरह की कोई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो होलिका दहन के दिन जहां होलिका दहन किया जाता है, वहां नारियल, पान, सुपारी का भोग चढ़ाएं. इससे आपको नौकरी से जुड़ी सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा.
3. आर्थिक समस्या से हैं परेशान, तो करें ये उपाय
अगर आप आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो ऐसे में आपको होलिका दहन के दिन नारियल के गोले में बूरा भरकर होलिका की जलती हुई आग में डाल दें. इससे आपको जरूर लाभ होगा और साथ ही धन से जुड़ी सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी.
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हथेली पर ये निशान बनाते हैं धनवान

धनवान होने ख्वाहिश भला किसके मन में नहीं आता है. लेकिन मेहनत करने के बाद भी व्यक्ति धनवान नहीं बन पाता है. इसलिए चाहे कोई भी इंसान हो, जो अमीर बनेगा या नहीं, इसके पीछे उसकी हाथ की लकीरों का बहुत बड़ा रोल होता है. लकीरों के मामले में कुछ लोगों की किस्मत बहुत शानदार होती है.वहीं हस्तशास्त्र में कुछ लकीरें और चिह्न ऐसे होती हैं, कि व्यक्ति भविष्य में कितना अमीर बनने वाला है. इसके बारे में बताती है. तो ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख में कुछ ऐसे चिह्नों के बारे में बताएंगे, जिससे आपके अमीर होने के बारे में पता लगया जा सकता है.
1. हथेली पर 'V' का निशान
हस्तरेखा शास्त्र में हृदय रेखा हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में बताता है. अगर इस रेखा पर 'V' का निशान दहो, तो व्यक्ति धन-दौलत और ऐशोआराम की जिंदगी व्यतीत करता है. ये निशान कामयाबी का संकेत देता है. जिस भी जातक की हथेली पर ये निशान होता है, वो अपने जीवन में खुब पैसा कमाता है.
2. हथेली पर तीन लकीरों वाला 'H' का निशान
अगर हथेली पर 'H' तीन लकीरों की मदद से बना हुआ है. वो हमारे हार्ट लाइन, भाग्य और मस्तिष्क की रेखाएं होती है.ये रेखाएं जब आपस में मिलती है, तो 'H' का निशान बनाती है. ये जिस भी जातक की हथेली पर बनता है, 40 साल की उम्र के बाद उनके जीवन में कई अहम बदलाव होते हैं. करियर के मामले में बहुत आगे बढ़ते हैं. लेकिन 40 साल से पहले इन्हें खूब संघ्रष करना पड़ता है.
3.अगर आपकी हथेली पर कोई रेखा अंगूठे के नीचे से होकर अनामिका उंगली के निचले हिस्से तक पहुंचती है, तो राजयोग के संकेत देते हैं. ऐसे लोग बहुत ईमानदार होते हैं और अमीर होते हैं. ये कभी शॉर्टकट का सहारा नहीं लेते है. इनके जीवन में कभी पैसों की कमी नहीं होती है. ये समाज में बहुत मान-सम्मान कमाते हैं.
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जानिए कब है होलाष्टक

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा है यानी कि होलिका दहन तक होलाष्टक होता है. होलाष्टक बेहद अशुभ माना जाता है. इस दिन कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए. हिंदू पंचांग के अनुसार, होलाष्टक दिनांक 27 फरवरी से शुरु हो रहा है, जो होली से पहले 8 दिनों तक रहने वाला है. होलीका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाएगा. उसी दिन से आप कोई भी शुभ काम कर सकते हैं. इस बार होलाष्टक 9 दिनों तक रहने वाला है. इस बीच आपको कोई भी शुभ काम करने से बचना चाहिए. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि होलाष्टक कब है, इस दिन क्या नहीं करना चाहिए, होलाष्टक को अशुभ क्यों माना जाता है?
जानिए कब है होलाष्टक
हिंदू पंचांग में होलाष्टक फाल्गुन मास से शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि दिनांक 27 फरवरी को सुबह 12 बजकर 58 मिनट से लेकर अगले दिन दिनांक 28 फरवरी को सुबह 02 बजकर 21 मिनट तक रहेगा. वहीं इसी दिन सुबह 06 बजकर 49 मिनट से लेकर 01 बजकर 35 मिनट तक भद्रा है. वहीं अगर फाल्गुन पूर्णिमा की बात की जाएं, तो ये दिनांक 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन दिनांक 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगा. होलाष्टक दिनांक 07 मार्च को समाप्त हो जाएगा.
होलाष्टक के दिन भूलकर भी न करें ये काम
1. होलाष्टक में विवाह करना वर्जित है.
2. होलाष्टक में बहु और बेटी को घर से विदा न करें. होलाष्टक के बाद ही बिदाई करें.
3. होली से पहले 8 तिथि में शादी पक्का नहीं करना चाहिए.
4. होलाष्टक में गृह प्रवेश , मुंडन या फिर कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए.
5. इस समय से आपको कोई भी नया काम प्रारंभ करने से बचना चाहिए.
आखिर होलाष्टक क्यों है अशुभ
होली से पहले 8 तिथियों में यानी कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णमा को कोई भी शुभ काम करना अशुभ माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रकार की यातनाएं दी गई थी. दूसरी तरफ ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव के क्रोध से कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी रति ने इन 8 तिथि में पश्चाताप किया था.
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भैरमगढ़ के जांगला में हुआ मुख्यमंत्री कन्या विवाह का आयोजन

विधायक, कलेक्टर और जनप्रतिनिधियों ने नवदंपति को सुखद वैवाहिक जीवन का दिया आशीष
111 जोड़ा वर-वधु पारंपरिक रीति-रिवाज से एक-दूसरे का बने हमसफर
बीजापुर। छत्तीसगढ़ शासन की महत्वपूर्ण योजना मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना का गरिमामय आयोजन भैरमगढ़ ब्लाक के जांगला में संपन्न हुआ। जहां 111 जोड़े नवदंपति ने आदिवासी रीति-रिवाज एवं परंपरानुसार एक-दूसरे का हाथ थामा, जिले भर से आए वर-वधु के परिवार, रिश्तेदार एवं विशाल जनसमूह विवाह का साक्षी बना, इस अवसर मुख्य अतिथि क्षेत्रीय विधायक एवं बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री विक्रम शाह मंडावी, जिला कलेक्टर श्री राजेन्द्र कुमार कटारा सहित वरिष्ठ जनप्रनिधिगण पालक के रुप में नवदंपति सुखद वैवाहिक जीवन का शुभ आशीर्वाद दिया। विधायक श्री विक्रम मंडावी ने प्रदेश के मुखिया श्री भूपेश बघेल को धन्यवाद देते हुए कहा कि हजारों माता-पिता को अपने बच्चों की शादी की चिंता रहती है किन्तु आर्थिक रुप से सक्षम नहीं होने के कारण और वैवाहिक आयोजन अधिक खर्चीला होने से समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन परिवारों के लिए मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना सहारा बनती है। माता-पिता और वर-वधु में उत्साह देखने को मिला जो इस योजना से लाभान्वित हुये शासन निःशुल्क विवाह करा रही है। आर्थिक बोझ से मुक्ति मिल रही है।
इस अवसर पर समस्त नवदंपति की विधायक श्री विक्रम मंडावी ने आशीर्वाद दिया, कलेक्टर श्री राजेन्द्र कुमार कटारा ने सभी वर-वधु को सुखद वैवाहिक जीवन का आशीष दिया। पूरे कार्यक्रम में बीजादूतीर स्वंय सेवकों का उल्लेखनीय योगदान रहा। वहीं पिछले 1 वर्ष से सुदूर क्षेत्रों में सेवा दे रही स्वंय सेविका, भानुप्रिया अपने जीवन साथी करण तेलाम एवं स्वंय सेवक घासीराम ने भी सामूहिक विवाह के आयोजन में शादी किया।
इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष श्री शंकर कुडियम, उपाध्यक्ष श्री कमलेश कारम, जिला पंचायत एवं बस्तर विकास प्राधिकरण के सदस्य श्रीमती नीना रावतिया उददे, जिला पंचायत एवं कृषक कल्याण बोर्ड के सदस्य श्री बंसत राव ताटी, जिला पंचायत सदस्य श्री सोमारु राम कश्यप, जिला पंचायत सदस्य श्रीमती संत कुमारी मंडावी, श्रीमती पार्वती कश्यप , जनपद अध्यक्ष श्री दशरथ कुंजाम, उपाध्यक्ष श्री सहदेव नेगी, सरपंच जांगला श्री बोधराम पोयाम, डीएफओ श्री अशोक पटेल, जिला पंचायत सीईओ श्री रवि कुमार साहू, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एंव बाल विकास विभाग सहित एसडीएम, तहसीलदार, सीईओ जनपद पंचायत एवं अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।
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