धर्म समाज

10 जुलाई को देवशयनी एकादशी, जाने पूजा विधि और मंत्र

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से सृष्टि के पालनहार श्री विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी को सूर्य के तुला राशि में आने पर भगवान जनार्दन योगनिद्रा से जागते हैं। लगभग चार माह के इस अंतराल को चार्तुमास कहा गया है। शास्त्रों में इस एकादशी को पद्मनाभा,आषाढ़ी,हरिशयनी और देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों के दाता भगवान विष्णु का पृथ्वी से लोप होना माना गया है इसलिए गरुड़ध्वज जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह,यज्ञोपवीत संस्कार,दीक्षाग्रहण,यज्ञ,गोदान,गृहप्रवेश आदि सभी शुभ कार्य चार्तुमास में त्याज्य हैं।

पदमपुराण के अनुसार श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर को कहते हैं कि हे राजन!हरि शयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहां रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर तब तक रहता है जब तक आगामी कार्तिक एकादशी नहीं आ जाती,अतः इस दिन से लेकर कार्तिक एकादशी तक जो मनुष्य मेरा स्मरण करते हुए धर्माचरण करता है उसे मेरा सानिध्य प्राप्त होता है। देवशयनी एकादशी की रात में जागरण करके शंख,चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने वाले के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करते हैं वह परमगति को प्राप्त होते हैं। इस दिन दीपदान करने से श्री हरि की कृपा बनी रहती है।


एकादशी तिथि विष्णुजी को अतिप्रिय है इसलिए इस दिन जप-तप,पूजा-पाठ, उपवास करने से मनुष्य जगत नियंता श्री हरि की कृपा प्राप्त कर लेता है। इस दिन तुलसी की मंजरी तथा पीला चन्दन,रोली,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतु फल एवं धूप-दीप,मिश्री आदि से भगवान वामन का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है । रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

भगवान को शयन करवाते समय श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।

विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।'

'हे जगन्नाथ जी! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भी जागृत हो जाते हैं । प्रार्थना करने के बाद भगवान को श्वेत वस्त्रों की शय्या पर शयन करा देना चाहिए ।

 

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जानिए कब हैं बकरीद

झूठा सच @  रायपुर :- बकरीद को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जानते हैं। इस साल बकरीद भारत में 10 जुलाई, रविवार को मनाए जाने की संभावना है। इस त्योहार को ईद-उल-जुहा या बकरा ईद के नाम से भी जानते हैं। इसे रमजान खत्म के करीब 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। बकरा ईद पर कुर्बानी देने की प्रथा है।बकरा ईद का धार्मिक महत्व- इस्लाम मजहब की मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। कहते हैं कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे। उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है। इस त्योहार को नर बकरे की कुर्बानी देकर मनाते हैं। इसे तीन भागों में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है।
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जानिए कब है नाग पंचमी

सावन माह और भोलेनाथ की पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. सावन का माह शिव जी की पूजा के लिए बेहद पवित्र माना जाता है. सावन माह में पड़ने वाली नाग पंचमी का भी विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन विधि-विधान के साथ नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है. नाग पंचमी सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ये पर्व भी भगवान शिव को ही समर्पित होता है. इस दिन नाग देवता की पूजा करने अध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

नाग पंचमी तिथि और शुभ मुहूर्त 2022
सावन माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है. इस बार नाग पंचमी 2 अगस्त को मनाई जाएगी. 2 अगस्त को सुबह 05 बजकर 14 मिनट से पंचमी तिथि आरंभ हो रही है. और 3 अगस्त सुबह 05 बजकर 42 मिनट तक पंचमी तिथि रहेगी. नाग पंचमी मुहूर्त की अवधि 03 घंटे 41 मिनट तक है.इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. साथ ही, नाग देवता की पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है.भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. नाग पंचमी के दिन विशेष पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है.
 
नाग पंचमी पूजन सामग्री
नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के लिए पूजन सामग्री पहले से ही तैयार कर लें. इस दिन नाग देवता की प्रतिमा, दूध, पुष्प, शहद, गंगा जल, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, भांग, बेर, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि की जरूरत पड़ती है |

 

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जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय

हिंदू पंचांग के अनुसार आज 5 जुलाई, मंगलवार का दिन है. यह दिन संकटमोचन भगवान हनुमान को समर्पित है. यदि आप भी हनुमान जी का पूजन करते हैं तो आपको शुभ व अशुभ मुहूर्त के बारे में जानकारी होना जरूरी है. क्योंकि शुभ मुहूर्त में की गई पूजा फलदायी होती है. आइए जानते हैं आज के शुभ व अशुभ मुहूर्त के बारे में


5 जुलाई 2022- आज का पंचांग 
तिथि
षष्ठी – 07:28 पी एम तक
आज सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय का समय : 05:28 ए एम
सूर्यास्त का समय : 07:23 पी एम
चंद्रोदय का समय: 10:45 ए एम
चंद्रास्त का समय : 11:35 पी एम
नक्षत्र :
पूर्वाफाल्गुनी – 10:30 ए एम तक
आज का करण :
कौलव – 07:04 ए एम तक
तैतिल – 07:28 पी एम तक
आज का योग
व्यतीपात – 12:16 पी एम तक
आज का वार : मंगलवार
आज का पक्ष : शुक्ल पक्ष
हिन्दु लूनर दिनांक
शक सम्वत:
1944 शुभकृत्
विक्रम सम्वत:
2079 राक्षस
गुजराती सम्वत:

2078 प्रमादी
चन्द्रमास:
आषाढ़ – पूर्णिमान्त
आषाढ़ – अमान्त
आज का शुभ मुहूर्त 
अभिजीत मुहूर्त 11:58 ए एम से 12:53 पी एम तक रहेगा. अमृत काल 04:10 ए एम, जुलाई 06 से 05:51 ए एम, जुलाई 06 तक रहेगा.
आज का अशुभ मुहूर्त 
दुर्मुहूर्त 08:15 ए एम से 09:11 ए एम, 11:25 पी एम से 12:06 ए एम, जुलाई 06 तक रहेगा. राहुकाल 03:54 पी एम से 05:39 पी एम रहेगा. गुलिक काल 12:26 पी एम से 02:10 पी एम तक रहेगा, वहीं यमगण्ड 08:57 ए एम से 10:41 ए एम तक रहेगा.
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जानिए सावन सोमवार व्रत की पूजा विधि

 हिंदू धर्म में देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना गया है। इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। वैसे तो धार्मिक दृष्टि से ये पूरा माह विशेष फलदाई है, लेकिन सावन में पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार का अलग ही महत्व है। इस ममाह में सोमवार के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। सुबह से ही शिव भक्त मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र चढ़ाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त सच्चे मन से सावन सोमवार व्रत करता है और भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा अर्चना करता है उसपर शिव शम्भू के साथ मां पार्वती भी प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा अविवाहित लड़कियां यदि सावन माह में सोमवार का व्रत करती हैं, तो उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।


सावन सोमवार पूजा सामग्री
सावन माह में सोमवार पूजा के लिए फूल, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगाजल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार सामग्री लें।
सावन सोमवार व्रत-विधि
  • सावन सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें। साथ ही देवी पार्वती और नंदी को भी गंगाजल या दूध चढ़ाएं।
  • पंचामृत से रुद्राभिषेक करें और बेल पत्र अर्पित करें। शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चंदन, चावल चढ़ाएं। इसके बाद शिव जी के साथ माता पार्वती और गणेश जी को तिलक लगाएं।
  • प्रसाद के रूप में भगवान शिव को घी-शक्कर का भोग लगाएं। आखिर में धूप, दीप से भगवान भोलेनाथ की आरती करें और पूरे दिन फलाहार हर कर शिव जी का स्मरण करते रहें।
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शनिवार को करें ये उपाय

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन शनिदेन को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से शनिदेव की पूजा- अर्चना की जाती है। शनिदेव के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि के अशुभ होने पर जहां व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं शनि के शुभ होने पर व्यक्ति का सोया हुआ भाग्य भी जाग जाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
 
आगे पढ़ें दशरथ कृत शनि स्तोत्र-

राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
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आज है जगन्नाथ रथ यात्रा

प्रसिद्ध जगन्ना​थ रथ यात्रा आज 01 जुलाई से शुरू होने वाली है। यह 01 जुलाई से प्रारंभ होकर 12 जुलाई तक चलेगी। यह यात्रा 01 जुलाई को शाम 04:00 बजे से जगन्नाथ रथ यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। भक्त 3 किलोमीटर तक इन रथों को खींचकर ले जाएंगे। सबसे आगे बलराम जी का रथ तालध्वज, उसके बाद सुभद्रा जी का रथ दर्पदलन और फिर भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष होगा।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। ओडिशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर से तीन सजेधजे रथ रवाना होते हैं। इनमें सबसे आगे बलराज जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ प्रभु का रथ होता है।

रथ यात्रा 2022 शेड्यूल
01 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - रथ यात्रा प्रारंभ
05 जुलाई 2022 (मंगलवार) - हेरा पंचमी (पहले पांच दिन गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं)
08 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - संध्या दर्शन (मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 साल श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है)
09 जुलाई 2022 (शनिवार) - बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा की घर वापसी)
10 जुलाई 2022 (रविवार) - सुनाबेसा (जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं)
11 जुलाई 2022 (सोमवार) - आधर पना (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय अर्पित किया जाता है। इसे पना कहते हैं।)
12 जुलाई 2022 (मंगलवार) - नीलाद्री बीजे ( नीलाद्री बीजे जगन्नाथ यात्रा का सबसे दिलचस्प अनुष्ठान है।)
क्यों निकाली जाती है रथयात्रा
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक बार लाडली बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलराम से नगर देखने की इच्‍छा जताई थी। तब दोनों भाई अपनी प्‍यारी बहन को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण के लिए ले गए थे। इस दौरान तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। कहते हैं कि तभी से यहां पर हर साल रथ यात्रा निकालने की परंपरा का आरंभ हुआ था।

 इस भक्‍त की मजार पर रुकता है रथ
यात्रा के दौरान भगवान जगन्‍नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्‍त सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए जरुर रुकता है। कहा जाता है कि एक बार जगन्‍नाथजी का यह मुस्लिम भक्‍त सालबेग अपने भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर नहीं पहुंच सका था। फिर उसके मरने के बाद जब उसकी मजार बनी जो जगन्‍नाथजी का रथ खुदबखुद उसकी मजार पर रुक गया और कुछ देर के लिए आगे नहीं बढ़ पाया। फिर उस मुस्लिम सालबेग की आत्‍मा के लिए शांति प्रार्थना की गई तो उसके बाद रथ आगे बढ़ पाया। तब से हर साल रथयात्रा के दौरान रास्‍ते में पड़ने वाली सालबेग की मजार पर जगन्‍नाथजी का रथ कुछ समय के लिए जरूर रुकता है।

रथ में नहीं होता एक भी कील का प्रयोग
जगन्‍नाथ रथ यात्रा के तीनों रथों को बनाने में किसी भी धातु का प्रयोग नहीं किया जाता और न ही इसमें कोई कील लगाई जाती है। यह रथ पूरी तरह से केवल नीम की परिपक्‍व और पकी हुई लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इसे दारु कहा जाता है। रथ बनाने में जिस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा उसका चयन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है और अक्षय तृतीया के दिन से रथ को बनाने का काम शुरू किया जाता है। भगवान जगन्‍नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं और यह बाकी दोनों रथों से बड़ा भी होता है।

ये हैं तीनों रथों के नाम
भगवान जगन्‍नाथ का रथ नंदीघोष सबसे ऊंचा 45।6 फीट का, उसके बाद बलरामजी का रथ तालध्‍वज रथ 45 फीट का और उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन 44।6 फीट का होता है।

तीनों रथों के रंग भी होते है भिन्न
तीनों रथों का रंग भी अलग-अलग होता है। भगवान जगन्‍नाथ का रथ नंदीघोष पीले और लाल रंग का होता है। बलरामजी का रथ तालध्‍वज लाल और हरे रंग का होता है। वहीं बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन काले और लाल रंग का होता है।

सोने की झाड़ू से होती है सफाई
जब तीनों रथ यात्रा के लिए सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और फिर रथों की पूजा की जाती है। इस पूजा को पारंपरिक भाषा में छर पहनरा कहा जाता है। उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्‍ते को साफ किया जाता है।
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मनेन्द्रगढ़ के हनुमान टेकरी मंदिर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पूजा-अर्चना

झूठा सच @  रायपुर /मनेन्द्रगढ़ :- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज मनेन्द्रगढ़ में स्थित हनुमान टेकरी मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना कर प्रदेश में शान्ति, समृद्धि एवं खुशहाली के लिए प्रार्थना की। मंदिर के पुजारी शिवराम दास ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में नौमुखी श्री हनुमान तथा सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त करते हुए बाल हनुमान की प्रतिमा स्थापित है, वहीं मंदिर के गुफा मंदिर में अपने कंधों पर रामलखन को बैठाए हुए पाताल हनुमान जी की प्रतिमा भी है।मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। मंदिर का निर्माण श्री फलाहारी बाबा द्वारा कराया गया था, जिनकी समाधि परिसर में स्थापित है, यहां गौसेवा हेतु गौशाला, साधू- संतो हेतु आश्रम भी है। इस अवसर पर गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, संसदीय सचिव अम्बिका सिंहदेव, विधायक डॉ. विनय जायसवाल और गुलाब कमरो भी उपस्थित थे।

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा कल से शुरू

हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरूआत होने वाली है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा इस बार 01 जुलाई, शुक्रवार से शुरू होगी। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। तीनों अलग-अलग रथ में सवार होकर यात्रा पर निकलते हैं। रथ यात्रा का समापन आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर होता है। 
रथ और भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी खास बातें...
भगवान जगन्नाथ के रथ में एक भी कील का प्रयोग नहीं होता। यह रथ पूरी तरह से लकड़ी से बनाया जाता है, यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाया जाता है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है।हर साल भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से ही बनाई जाती है। इन रथों में रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। 

वहीं उनके भाई-बहन का रंग गोरा होने के कारण उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।पुरी के भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और ये रथ अन्य दो रथों से थोड़ा बड़ा भी होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है,बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है।

भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है। भगवान जगन्नाथ को हमेशा स्नान में 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।
हर साल आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नए बनाए हुए रथ में यात्रा में भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा जी नगर का भ्रमण करते हुए जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर के गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। यहां पहुंचकर विधि-विधान से तीनों मूर्तियों को उतारा जाता है। फिर मौसी के घर स्थापित कर दिया जाता है।
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आज से शुरू हुईं गुप्‍त नवरात्रि

आषाढ़ महीने की नवरात्रि गुप्‍त नवरात्रि होती हैं. ये आषाढ़ के शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती हैं. इस साल 30 जून 2022, गुरुवार यानी कि आज से गुप्‍त नवरात्रि शुरू हो रही हैं, जो कि 9 जुलाई को समाप्‍त होंगी. आज भक्‍तगण घटस्‍थापना करेंगे और 9 दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा-आराधना करेंगे. गुप्‍त नवरात्रि गुप्‍त रूप से साधना-सिद्धि के लिहाज से विशेष मानी जाती हैं. वहीं प्रत्‍यक्ष नवरात्रि में उत्‍सव होता है.

गुप्‍त नवरात्रि के पहले ही बने कई शुभ योग

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2022 के पहले दिन 30 जून को गुरु पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, आडल योग और विडाल योग बन रहे हैं. साथ पुष्‍य नक्षत्र भी रहेगा. इन सभी योगों को बेहद शुभ माना गया है. वहीं प्रतिपदा तिथि 29 जून को सुबह 08:21 बजे से 30 जून की सुबह 10:49 बजे तक रहेगा. ऐसे में 30 जून की सुबह ही घटस्‍थापना करना शुभ रहेगा.

गुप्त नवरात्रि के जरूरी नियम

गुप्‍त नवरात्रि के दौरान दोनों समय मां अंबे की पूजा-आराधना करें. घटस्‍थापना की है तो शाम के समय आरती अवश्‍य करें.
नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान तामसिक भोजन न करें. नॉनवेज-शराब, लहसुन-प्‍याज आदि का गलती से भी सेवन न करें.
किसी के साथ बुरा न करें. ना ही कोई अनैतिक कार्य करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
इस दौरान ना तो गुस्‍सा करें और ना ही किसी से विवाद करें. ऐसा करने से मां नाराज हो सकती हैं |
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3 शुभ योगों में शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा

उज्जैन:-  उड़ीसा के पुरी में निकाली जाने वाली इस धार्मिक यात्रा को देखने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं और भगवान जगन्नाथ का रथ खींचकर स्वयं को धन्य समझते हैं। जगन्नाथ का अर्थ है पूरी सृष्टि के स्वामी। ये भगवान श्रीकृष्ण का ही एक नाम है। जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं को चार धामों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कई चमत्कारी मान्यताएं और परंपराएं है जिस पर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता। इस बार जगन्नाथ रथयात्रा की शुरूआत 1 जुलाई, शुक्रवार से हो रही है। रथयात्रा से जुड़ी हर तैयारी पूरी कर ली गई है। पुरी में भक्तों का जुटने लगे हैं। आगे जानिए जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी खास बातें…

3 शुभ योगों में आरंभ होगी रथयात्रा
इस बार जगन्नाथ रथयात्रा का आरंभ बहुत ही शुभ योग में हो रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार, 1 जुलाई, शुक्रवार को पूरे दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा जो कि नक्षत्रों का राजा है। इसके अलावा इस दिन सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि नाम के 2 अन्य शुभ योग भी बन रहे हैं, ये भी पूरे दिन रहेंगे। इतने सारे शुभ योग एक ही दिन होने से इस तिथि का महत्व और भी बढ़ गया है। पंचांग के अनुसार पुष्य नक्षत्र का आरंभ 30 जून, गुरुवार की रात लगभग 12 बजे से होगा, जो अगले दिन यानी 1 जुलाई, शुक्रवार की रात लगभग 2 बजे तक रहेगा।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा मंदिर परिसर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की दूरी लगभग 3 किमी है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर आते हैं, जहां उनकी मौसी पादोपीठा (विशेष मिठाई) खिलाकर उनका स्वागत करती हैं। पादोपीठा उस परंपरागत पूजा को भी कहते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ 9 दिनों तक विश्राम करते हैं और इसके बाद पुन: मंदिर में लौट आते हैं। 

जब रथयात्रा पुन: मंदिर की ओर आती है तो इसे बहुड़ा यात्रा कहते हैं।गुंडिचा मंदिर एक खूबसूरत बगीचे के बीच में स्थित है। मंदिर का निर्माण हल्के भूरे रंग के बलुआ पत्थर से किया गया है। यह मंदिर देउला शैली में विशिष्ट कलिंग वास्तुकला का उदाहरण है। मंदिर परिसर चार हिस्सों में विभाजित है। विमान (गर्भगृह) जगमोहन (असेंबली हॉल), नाटा-मंडप (त्योहार हॉल) और भोग-मंडप (प्रसाद का हॉल)। एक छोटे से मार्ग से जुड़ा एक रसोईघर भी है। इसे गॉड्स समर गार्डन रिट्रीट कहा जाता है।
 
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आज है आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि

आज यानी 27 जून को आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित ये तिथि शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि प्रत्येक शिवरात्रि पर विधि पूर्वक व्रत और पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। प्रत्येक माह में पड़ने वाली ये तिथि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इसलिए इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। जो व्यक्ति मासिक शिवरात्रि का व्रत विधि-विधान से रखता है उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और संतान प्राप्ति, रोगों से मुक्ति के लिए भी मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। 

 
मासिक शिवरात्रि 2022 तिथि
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 27 जून दिन सोमवार को तड़के 03 बजकर 25 मिनट पर हो रही है। अलगे दिन ये तिथि 28 जून मंगलवार को सुबह 05 बजकर 52 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर मासिक शिवरात्रि का व्रत 27 जून, दिन सोमवार को रखा जाएगा।
मासिक शिवरात्रि व्रत और पूजा का महत्व
मासिक शिवरात्रि का व्रत बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि शिव मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का पूरे दिन जाप करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। जो भक्त इस दिन उपवास करता है, उसे मोक्ष, मुक्ति की प्राप्ति होती है और वह स्वस्थ और समृद्ध जीवन व्यतीत करता है।

मासिक शिवरात्रि पूजा विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहने और घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। यदि घर में शिवलिंग है तो शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।शिव जी को बेल पत्र चढ़ाएं। इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें। भगवान भोलेशंकर और मां पार्वती को भोग लगाएं। पूजा के दौरान ''ऊॅं नम: शिवाय'' मंत्र का जप करें। इसके बाद भगवान शिव की आरती करें।

शिवजी को प्रसन्न करने के लिए करें ये उपाय
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्नानादि करके सफेद, हरे, पीले, लाल या आसमानी रंग के वस्त्र धारण करके पूजा करें। मासिक शिवरात्रि के दिन दही, सफेद वस्त्र, दूध और शक्कर का दान करना श्रेष्ठ माना जाता है, इन चीजों का दान करने से भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।मासिक शिवरात्रि के दिन अक्षत, चंदन, धतूरा, दूध, आक, गंगा जल, और बेल पत्र आदी चढ़ाना चाहिए। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं। यदि कोई जातक आर्थिक तंगी से गुजर रहा है तो उसे मासिक शिवरात्रि की शाम को कच्चे चावल में काले तिल मिलाकर दान करना चाहिए।
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जानिए कब से शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा

उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। जहां हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत अधिक महत्व है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं, जो कि श्रीहरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं। जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत के नाथ। आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि को ये रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन भगवान की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है। इस साल रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार से हो रही है। इस रथ यात्रा में भक्तों की भारी भिड़ देखने को मिलती है। मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी दुख, दर्द और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

 जानिए इससे जुड़ी खास बातें और महत्व

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस दौरान उनके साथ बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा भी जाती हैं। इन्हें तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर किया जाता है। इसके बाद तीनों को रथ यात्रा के जरिए उनकी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर में ले जाया जाता है।गुंडीचा मौसी का मंदिर, जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर है। इस दौरान लाखों भक्त श्रध्दा भाव से भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचकर उन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी को तीनों वापस अपने स्थान पर लाया जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

हिंदू धर्म में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा का बहुत ही अधिक महत्व है। इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होने के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हिंदू धर्म में जगन्नाथ पुरी धाम को मुक्ति का द्वार कहा गया है।कहा जाता है कि जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इसके अलावा इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।भगवान जगन्नाथ की यात्रा एक त्योहार के रुप में धूम-धाम से मनाई जाती है। यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर सेश्रद्धालु यहां पहुंचे हैं। पुराणों में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
 
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आज करें श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् का पाठ, दूर होगी समस्या

शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने से व्यक्ति को जीवन में धन, धान्य, वैभव, सुख-समृद्धि की प्राप्त होती है. मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज आषाढ़ माह की योगिनी एकादशी है. आज के दिन विधि-विधान के साथ लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने से भक्तों को भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है.आज शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा से अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति होती है. मान्यता है कि आज के दिन मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों की अराधना करने के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ का जाप करना चाहिए. इससे व्यक्ति को धन, धान्य, संतान, धैर्य, विजय, विद्या आदि की प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्टलक्ष्मी स्तोत्र एक प्रकार से मां लक्ष्मी का महामंत्र है. इसे नियमित रूप से भी किया जा सकता है.

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ विधि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मां लक्ष्मी के इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए मां को कमल का फूल, गुला का फूल, सिंदूर, कमल गट्टा, अक्षत, कुमकुम, नारियल आदि अर्पित करें. इसके बाद माता को खीर, सफेद बर्फी या फिर दूध से बनी हुई चीजों का भोग लगाएं. इसके बाद अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का आरंभ करें. समापन के बाद मां की आरती घी के दीपक और कपूर से करें. और मां से अपनी मनोकामना पूर्ति की कामना करें.
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ
आदि लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम्।
धान्य लक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम्।
 
धैर्य लक्ष्मी
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम्।
गज लक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।
सन्तान लक्ष्मी
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम्।
विजय लक्ष्मी
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम्।
विद्या लक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्।
धन लक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम।
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योगिनी एकादशी कल, जानिए पूजा एवं शुभ मुहूर्त

धर्मशास्त्रों में आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा गया है। इस दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा करने का विधान है। जो इस वर्ष 24 जून,शुक्रवार को है। पदमपुराण के अनुसार पृथ्वी पर अश्वमेघ यज्ञ का जो फल होता है,उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता है।

योगिनी एकादशी का महत्व

वेदांगों के पारगामी विद्वान ब्राह्मण को सहस्त्र गोदान करने से जो पुण्य होता है,उससे सौ गुना पुण्य एकादशी व्रत करने वाले को होता है। इनमें 'योगिनी एकादशी 'तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्म रोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप,गुण और यश देने वाली है। इस व्रत का फल 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के फल के समान है। योगिनी एकादशी महान पापों का नाश करने वाली और महान पुण्य-फल देने वाली है। इसके पड़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। साथ ही भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पूजा विधि

इस दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे और मंदिर में दीपक जलाएं। फिर भगवान विष्णु को पंचामृत से अभिषेक कराएं व उनको फूल और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को सात्विक चीज़ों का भोग लगाकर कपूर से आरती करें। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों,मंदिरों,पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए,गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए। रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता |

कथा

योगिनी एकादशी के सन्दर्भ में श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी जिसमें राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी होकर हेममाली नामक यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया,और योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। यक्ष ने ऋषि की बात मान कर व्रत किया और दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।

मंत्र
भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यथाशक्ति इन मंत्रों का जप करें।

*'ऊँ नमो नारायणाय'

*'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:'

* शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

शुभमुहूर्त

एकादशी तिथि शुरू - 23 जून को रात 09 बजकर 40 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 24 जून को रात 11बजकर 13 मिनट तक
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जानिए कब हैं सावन का पहला सोमवार

हिंदू धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व है। सावन का महीना देवों के देव महादेव को अतिप्रिय है। सावन मास में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है। मान्यता है कि सावन मास में भगवान शंकर की पूजा व सोमवार व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है। इस साल सावन का पवित्र महीना जुलाई से शुरू हो रहा है और अगस्त तक रहेगा।


सावन 2022 कब से कब तक रहेगा 

साल 2022 में सावन 14 जुलाई से शुरू होगा और 12 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा।
27 जून से कुंभ समेत इन 3 राशियों के शुरू होंगे अच्छे दिन, मंगलदेव की रहेगी विशेष कृपा

सावन का पहला और आखिरी सोमवार कब

सावन का पहला दिन 14 जुलाई 2022, गुरुवार को है। सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ेगा। सावन का दूसरा सोमवार 25 जुलाई, तीसरा 01 अगस्त और चौथा सोमवार 08 अगस्त को पड़ेगा। सावन का आखिरी दिन 12 अगस्त, शुक्रवार को है।

भगवान शिव को ये चीजें करें अर्पित-

भगवान सिव को सावन मास में पूजा के दौरान धतूरा, बेलपत्र, भांग के पत्ते, दूध, काले तिल और गुड़ आदि अर्पित करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।

सावन मास में न करें ये काम-

सावन महीने में शरीर पर तेल लगाने की मनाही होती है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में दिन के समय नहीं सोना चाहिए। इस महीने बैंगन का सेवन करने की मनाही होती है। बैंगन को अशुद्ध माना जाता है। भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
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गुरुवार को इन 5 राशि वालों पर रहेगी मां लक्ष्मी की विशेष कृपा

2 जून 2022 को गुरुवार है। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। इस दिन प्रभु श्रीहरि जी की पूजा करने से मनोकामना पूरी होने की मान्यता है। 2 जून को ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के कारण कुछ राशि वालों को जबरदस्त लाभ होगा, जबकि कुछ राशि वालों को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। जानें 2 जून 2022 की लकी राशियां-
मेष- आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। अति उत्साही होने से बचें।जीवनसाथी के स्वास्थ्‍य का ध्यान रखें। माता-पिता का सानिध्य मिलेगा। खर्चों की अधिकता से चिन्तित रहेंगे। जीवनसाथी के परिवार की किसी महिला से धन लाभ हो सकता है।
वृषभ- मन प्रसन्न रहेगा। कार्यक्षेत्र की स्थिति में सुधार होगा।लेखनाद-बौद्धिक कार्यों में सम्मान की प्राप्ति‍ हो सकती है। आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगी। आय में कमी आ सकती है। स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखें।
मिथुन- वाणी में मधुरता रहेगी। धैर्यशीलता बनाए रखने के प्रयास भी करते रहें।दैनिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। मन में नकारात्मक विचारों का प्रभाव रहेगा। व्यर्थ के विवादों से बचें। मित्रों से मतभेद हो सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
कर्क- मन प्रसन्न रहेगा। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। मानसिक शान्ति रहेगी। सन्तान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। भाई-बहनों से विवाद हो सकता है। 
सिंह-  मानसिक शान्ति रहेगी। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।नौकरी में तरक्की के योग बन रहे हैं। आय में वृद्धि होगी। आत्मविश्वास में कमी आएगी। मानसिक तनाव हो सकता है। संचित धन की भी कमी आ सकती है।
कन्या- मन प्रसन्न रहेगा। शैक्षिक कार्यों में मान-सम्मान की प्राप्ति होगी।परिश्रम अधिक रहेगा। बातचीत में सन्तुलित रहें। मन अशान्त रहेगा। आत्मविश्वास में कमी आएगी। पिता को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। आय बढ़ोतरी के योग बन रहे हैं। 
तुला- संयत रहें। मन परेशान हो सकता है।घर-परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। परिवार में मान-सम्मान में वृद्धि हो सकती है। विश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। आय में कमी एवं खर्चों की अधिकता हो सकती है। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। 
वृश्चिक- बातचीत में संयत रहें। नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है।कार्यक्षेत्र का विस्तार होगा। वाहन सुख में वृद्धि होगी। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव रहेंगे। शैक्षिक कार्यों में मान-सम्मान में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। 
धनु- मन अशान्त रहेगा। नौकरी में परिवर्तन के योग बन रहे हैं।किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। वाहन के संचालन पर खर्च बढ़ सकते हैं। पारिवारिक समस्याएं परेशान कर सकती हैं। नौकरी में अफसरों से मतभेद बढ़ेंगे।
मकर- पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है।पिता से धन की प्राप्ति‍ के योग बन रहे हैं। उपहार में वस्त्र प्राप्‍त‍ हो सकते हैं। आत्मसंयत रहें। भावनाओं को वश में रखें। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। 
कुंभ- आय में कमी एवं खर्च अधिक की स्थिति से परेशान हो सकते हैं। माता-पिता का सहयोग मिलेगा।स्वास्थ्‍य का ध्यान रखें। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। लेखनादि‍-बौद्धिक कार्यों में मान-सम्मान बढ़ेगा। यात्रा के योग बन रहे हैं।
मीन- मन अशान्त रहेगा। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा की मनःस्थिति रहेगी।लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। धार्मिक संगीत के प्रति रुझान बढ़ेगा। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा। तरक्की के योग बन रहे हैं।
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महेश नवमी के दिन करें भगवान शिव की पूजा, जानें और महत्व

भगवान शिव को सभी देवों का देव कहा जाता है। इसलिए उनको महादेव भी कहा जाता है। साल भर में कई तिथियां व पर्व ऐसे आते हैं जिनमें भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इनमें से एक है महेश नवमी।ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन को महेश नवमी पर्व के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। लेकिन माहेश्वरी समाज ही नहीं सभी शिवभक्त महेश नवमी पर विशेष पूजा अर्चना करते हैं।इस बार 9 जून को महेश नवमी है। इस दिन व्रत रखने के साथ ही भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। वहीं, ज्येष्ठ महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं।

महेश नवमी की पूजा विधि
पंडित के मुताबिक महेश नवमी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें। जलाभिषेक के बाद भोलेनाथ को बेलपत्र, भांग, धतूरा, पुष्प आदि अर्पित करें। शिव मंत्र के जप के साथ ही शिव चालीसा का पाठ करें।

महेश नवमी को लेकर प्रचलित है यह कथा

महेश नवमी को लेकर ऐसा माना जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक बार शिकार के दौरान उन्हें ऋषियों ने श्राप दे दिया। तब इस दिन भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की। इसके साथ ही उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग बताया। महादेव ने अपनी कृपा से इस समाज को माहेश्वरी नाम दिया।

भगवान शिव के इन मंत्रों का करें जाप

ॐ नमः शिवाय।

ॐ नमो नीलकण्ठाय।

ॐ पार्वतीपतये नमः।

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर.

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।

ऊर्ध्व भू फट्।

इं क्षं मं औं अं।

प्रौं ह्रीं ठः।

इस विधि से करें पूजा अर्चना

इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाएं और व्रत का संकल्प लें।

उत्तर दिशा की ओर मुंहकर के भगवान शिव की पूजा करें।

गंध, फूल और बिल्वपत्र से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें।

दूध और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।

शिवलिंग पर बिल्वपत्र, धतूरा, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं।

इस प्रकार महेश नवमी के दिन भगवान शिव का पूजन करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।
 
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