धर्म समाज

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रखें नियमानुसार व्रत

हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. यह पर्व देशभर में मनाया जाता है. वहीं मथुरा-वृंदावन में इस त्योहार की अलग ही धूम होती है. खासकर मंदिरों और घरों में लोग बाल गोपाल के जन्मोत्सव का आयोजन करते हैं.

संतान की कामना के लिए रखते हैं व्रत
जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल के लिए पालकी सजाई जाती है. उनका श्रृंगार किया जाता है. वहीं इस दिन निःसंतान दंपत्ति विशेष तौर पर जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं. वे बाल गोपाल कृष्ण जैसी संतान की कामना से यह व्रत रखते हैं.श्रीकृष्ण की भक्ति भोग, सुख, मोक्ष प्रदान करने वाली है. श्रीकृष्ण समस्त सुखों और वैभव को प्रदान करने वाले हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

जन्माष्टमी व्रत पूजा-विधि
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस पावन दिन बड़े ही धूम-धाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस दिन विधि-विधान से भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत भी रखा जाता है.

पूजा का शुभ मुहूर्त
19 अगस्त को रात 11 बजकर 59 मिनट से देर रात तक है.कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है. हालांकि कई लोग व्रत का पारण अगले दिन भी करते हैं. कुछ भक्तों द्वारा रोहिणी नक्षत्र के समापन के बाद व्रत पारण किया जाता है.
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श्रीकृष्ण का जन्‍मोत्‍सव, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आज पूरे देश में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। तब से लेकर आज तक इस तिथि पर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में कई विशेष आयोजन होते हैं, सजावट की जाती है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्त दिनभर उपवास करते हैं और रात को कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। बनारस के विद्वानों के पास मौजूद ग्रंथों के अनुसार ये भगवान कृष्ण का 5249वां जन्म पर्व है। आगे जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…

ये है पूजा का शुभ मुहूर्त
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। उस समय सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृष राशि में था। ऐसा ही संयोग इस बार भी बन रहा है। उस समय अष्टमी तिथि का आठवा मुहूर्त था। ये मुहूर्त इस बार 19 अगस्त, शुक्रवार की रात 12.05 से 12.45 तक रहेगा। यानी यही रात्रि पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त है। इसके अलावा दिन के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-

सुबह 06.00 से 10.30 तक
- दोपहर 12.30 से 2.00 तक
- शाम 5.30 से 7.00 तक
- रात 11.25 से 1.00 तक
 
कौन-कौन से शुभ योग रहेंगे आज? 
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र के अनुसार 19 अगस्त, शुक्रवार को चंद्र-मंगल की युति होने से महालक्ष्मी योग, सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग, शुक्रवार को कृत्तिका नक्षत्र होने से छत्र नाम के शुभ योग बनेंगे। इनके अलावा ध्रुव, कुलदीपक, भारती, हर्ष और सत्कीर्ति नाम के राजयोग भी इस दिन रहेंगे।

जन्माष्टमी की व्रत-पूजा विधि
- जन्माष्टमी की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले व्रत-पूजा का संकल्प लें। जैसे व्रत आप करना चाहते हैं वैसा ही संकल्प लें।
- घर में किसी साफ स्थान पर पालना लगाएं और उसमें लड्डू गोपाल की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को नए वस्त्र पहनाएं और पालने भी भी सजवाट करें।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। लड्डू गोपाल को कुंकुम से तिलक कर चावल लगाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल, इत्र, फूल, फल आदि चीजें चढ़ाएं।
- इसके बाद जो भी भोग घर में शुद्धतापूर्वक बनाया हो, उसे अर्पित करें। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर रखें। इसके बाद आरती करें।
- इसके बाद दिन भर निराहार रहें यानी बिना कुछ खाए-पिए। संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। पूरे दिन मन ही मन भगवान का स्मरण करते रहें।
- रात को 12 बजे एक बार फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पालने को झूला करें। माखन मिश्री, पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें और संभव हो तो रात पर पूजा स्थान पर बैठकर ही भजन करें। अगले दिन पारणा कर व्रत पूर्ण करें।
 
जन्माष्टमी पर क्यों करते हैं व्रत?
जन्माष्टमी पर अधिकांश लोग व्रत रखते हैं और दिन भर कुछ भी खाते-पीते नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं- अष्टमी तिथि को जया भी कहते हैं, यानी जीत दिलाने वाली तिथि। इस दिन उपवास रख भगवान में मन लगाने से सभी कामों में जीत मिलती है। निराहार रहने से शरीर की शुद्धि होती है। उपवास करने से सांसारिक विचार मन में नहीं आते हैं और मन भगवान में लगा रहता है।
 
भगवान श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
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कृष्ण जन्माष्टमी 2022: जानिए शुभ मुहूर्त और योग

झूठा सच @ रायपुर :- कृष्ण जन्माष्टमी हर साल श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। बाल गोपाल का जन्म आज ही के दिन रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। यह त्यौहार भारत ही नहीं विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 18 अगस्त 2022, गुरुवार को मनाई जाएगी। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार कृष्ण का जन्म रात में हुआ था, इसलिए यह पर्व जन्माष्टमी की रात श्रीकृष्ण की पूजा करने का नियम है। इस बार जन्माष्टमी इसलिए खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन अद्भुत योग बन रहे हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी 2022 शुभ मुहूर्त और योग
श्रवण कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 18 अगस्त 2022, रात 09.21 बजे से शुरू हो रही है
श्रवण कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त – 19 अगस्त 2022, रात 10:59 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – 18 अगस्त 2022, दोपहर 12.05 बजे से दोपहर 12.56 बजे तक
वृद्धी योग प्रारंभ – 17 अगस्त 2022, रात 08.56 बजे तक
वृत्ति योग समाप्त – 18 अगस्त 2022, 08.41 . तक
ध्रुव योग प्रारंभ – 18 अगस्त 2022, 08.41 मिनट . तक
ध्रुव योग समाप्त – 19 अगस्त 2022, 08.59 मिनट तक
उपवास का समय – 19 अगस्त 2022, 10:59 मिनट बाद
 
पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ध्रुव योग और वृष योग बन रहा है, जो कृष्ण पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस अवधि में किया गया हर कार्य सिद्ध होता है।
 
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण को विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन पृथ्वी को कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए हुआ था। मान्यता है कि इस दिन मध्यरात्रि में बाल गोपाल की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के आगमन के लिए भक्त अपने घरों और मंदिरों में विशेष सजावट करते हैं। लड्डू गोपाल का अभिषेक करते हुए व्रत का पालन करते हुए रात भर मंगल गीत गाए जाते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान, दीर्घायु और सुख की प्राप्ति होती है।
 

 

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आज हल षष्ठी व्रत , जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर हल षष्ठी या हरछठ मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, हरछठ के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की पूजा अर्चना की जाती है। इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से भी जानते हैं। इस दिन को गुजरात में राधव छठ के नाम से जानते हैं। जानिए हल छठ का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।


हलषष्ठी 2022 का शुभ मुहूर्त

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ -16 अगस्त, मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से शुरू
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का समापन- 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट तक
उदया तिथि के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा।
रवि योग- 17 अगस्त को सुबह 5 बजकर 51 मिनट लेकर 7 बजकर 37 मिनट तक। इसके बाद रात 9 बजकर 57 मिनट से 18 अगस्त सुबह 5 बजकर 52 मिनट तक।

हल षष्ठी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और हल की पूजा के साथ बलराम की पूजा करती हैं। भगवान बलराम की कृपा से घर में सुख रहता है।

हल षष्ठी की पूजा विधि
हरछठ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद साथ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
एक चौकी पर नीले रंग का कपड़ा बिछाकर कलावे से बांध दें।
इस चौकी पर श्री कृष्ण और बलराम की फोटो या प्रतिमा रख दें।
जल अर्पित करने के बाद चंदन लगाना चाहिए।
नीले रंग के फूल चढ़ाएं
बलराम जी को नीले रंग के वस्त्र और श्री कृष्ण को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करना चाहिए।
बलराम का शस्त्र हल है। इसलिए उनकी प्रतिमा पर एक छोटा हल रखकर पूजन करना श्रेयस्कर होगा।
इसके बाद श्री कृष्ण और बलराम जी को भोग लगाएं।
इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर आरती कर लें।
 
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जानिए कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी , शुभ मुहूर्त और पूजा- विधि

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के नाम से जानते हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहे हैं।

जन्माष्टमी पर बन रहे कई शुभ संयोग-
जन्माष्टमी पर वृद्धि व ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, जन्माष्टमी के दिन रात 08 बजकर 42 मिनट तक वृद्धि योग रहेगा। इसके बाद ध्रुव योग शुरू होगा। ज्योतिष शास्त्र में इन योगों को बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि इन योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है।
रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी-
इस साल रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल जन्माष्टमी के दिन भरणी नक्षत्र रात 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। इसके बाद कृत्तिका नक्षत्र शुरू होगा।
कृष्ण जन्माष्टमी 2022 डेट-
साप्ताहिक राशिफल: 21 अगस्त तक का समय इन राशियों के लिए भारी, वृषभ समेत इन राशि के जातकों को मिलेगी खुशखबरी
कृष्ण जन्माष्टमी बृहस्पतिवार, अगस्त 18, 2022 को
निशिता पूजा का समय - 12:03 ए एम से 12:47 ए एम, अगस्त 19
अवधि - 00 घण्टे 44 मिनट
दही हाण्डी शुक्रवार, अगस्त 19, 2022 को
व्रत पारण का समय-
पारण के दिन अष्टमी तिथि का समाप्ति समय - रात 10:59 बजे।
पारण समय - 05:52 ए एम, अगस्त 19 के बाद
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जानिए हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हल षष्ठी या हल छठ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पूर्व मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से जानते हैं. उत्तर भारत में इसे हल षष्ठी, ललही छठ या हल छठ कहते हैं और गुजरात में राधन छठ कहा जाता है. राधन छठ में संतान की रक्षा के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं. बृज क्षेत्र में इसे बलदेव छठ कहते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.


हल षष्ठी 2022 मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ 16 अगस्त दिन मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट पर होगा. उदयातिथि की मान्यता के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा.

रवि योग में हल षष्ठी
17 अगस्त को हल षष्ठी के दिन रवि योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है. सुबह में करीब दो घंटे और रात में करीब 10 बजे से अगले दिन सूर्योदय तक है. रवि योग का प्रारंभ सुबह 05 बजकर 51 मिनट से होकर सुबह 07 बजकर 37 मिनट तक है. फिर रात में रवि योग 09 बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक है.रवि योग में सूर्य देव की कृपा होती है. यह योग अमंगल को दूर करके शुभ और सफलता प्रदान करता है. रवि योग का समय पूजा पाठ के​ लिए उत्तम है.

हल षष्ठी का महत्व
माताएं हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं. इस व्रत को करने से बलराम जी यानि शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बलराम जी को बलदेव, बलभद्र और हलयुद्ध के नाम से भी जानते हैं.

हल षष्ठी की पूजा विधि
इस दिन प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर हल षष्ठी व्रत और पूजा का संकल्प लेते हैं. फिर शुभ समय में बलराम जी की पूजा फूल, फल, अक्षत्, नैवेद्य, धूप, दीप, गंध आदि से करते हैं. उनसे पुत्र के सुखमय जीवन की कामना करते हैं. रात्रि के समय में पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. इस व्रत में हल की पूजा करते हैं और हल से उत्पन्न अन्न और फल नहीं खाते हैं. पूजा में भैंस का दूध उपयोग में लाया जाता है.
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कल है रक्षाबंधन जानें शुभ मुहूर्त

रक्षाबंधन 11 अगस्‍त 2022 को मनाएं या 12 अगस्‍त 2022 को, यह कंफ्यूजन ज्‍यादातर लोगों को है. सावन महीने की पूर्णिमा 11 अगस्‍त को ही शुरू हो जाएगी लेकिन इन दिन भद्रा काल रहने से राखी बांधने के मुहूर्त को लेकर समस्‍या हो रही है. वहीं 12 अगस्‍त की सुबह 7 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहने और इसी दिन उदया तिथि रहने से लोग 12 अगस्‍त को राखी बांधने के लिए शुभ मान रहे हैं. ऐसे में जानें कि रक्षाबंधन मनाने के शुभ मुहूर्त कौन-कौन से हैं और भद्रा काल के नकारात्‍मक प्रभाव से बचने के लिए क्‍या करें.

रक्षाबंधन 2022 शुभ मुहूर्त
भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ होता है क्‍योंकि लंकापति रावण की बहन ने उसे भद्रा काल में राखी बांधी थी और फिर एक साल में ही उसका विनाश हो गया था. लिहाजा भद्रा काल में कभी भी ना तो राखी बांधनी चाहिए और ना ही अन्‍य शुभ काम करना चाहिए. साल 2022 में सावन पूर्णिमा तिथि सुबह 10:30 बजे शुरू होगी और अगले दिन 07:05 बजे तक रहेगी. इस बीच 11 अगस्‍त की शाम 05:17 बजे से भद्रा काल शुरू होगा. लेकिन इससे पहले 11 अगस्‍त को राखी बांधने के लिए कुछ शुभ मुहूर्त रहेंगे.
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:37 से लेकर दोपहर 12:29 तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:14 से 3:07 तक
12 अगस्त को सुबह 7:15 तक शुभ मुहूर्त
 
राखी बांधते समय जरूर करें यह काम
रक्षाबंधन के दिन भाई की कलाई पर बांधते समय कुछ बातों का जरूर ध्‍यान रखना चाहिए. ताकि भाई-बहन दोनों का जीवन सुखद और समृ‍द्ध रहे. इसके लिए हमेशा राखी बांधते समय 3 गांठें बांधें. ये गांठें अहम संकेत देती हैं. ये भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को संबोधित करती हैं. इसके अलावा पहली गांठ भाई की लंबी उम्र और सेहत, दूसरी गांठ सुख-समृद्धि और तीसरी गांठ इस रिश्ते को मजबूत करने के लिए बांधी जाती है. ध्‍यान रखें कि रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन काले कपड़े न पहनें. वहीं बहन अपने भाई को टूटे चावल माथे पर न लगाएं |
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भद्रा काल में क्यों राखी नहीं बांधी जाती, जानें क्यों

भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार रक्षाबंधन इस साल 11 अगस्त दिन गुरुवार को मनाया जायेगा. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं. लेकिन आपने सुना होगा कि भद्रा के साए में राखी बांधने का शुभ काम नहीं किया जाता है. भद्रा काल में भाई को राखी बांधना अशुभ माना जाता है.

भद्रा कौन है?

भद्रा काल में किसी भी तरह के शुभ काम करने की मनाही होती है. शास्त्रों के विद्वान बताते हैं कि भद्रा शनिदेव के जैसा ही भाव रखती है और रिश्ते में शनिदेव की ही बहन है. यानि की भद्रा भगवान सूर्य की बेटी है. पंचांग के द्वारा भद्रा के स्तिथि की गणना की जाती है. ऐसा भी कहा जाता है कि इसके भाव को समझने के लिए ब्रम्हा जी ने इसे पंचांग में इसे एक अलग जगह प्रदान की है. लोगों को मानना है कि भद्रा काल में भाइयों को राखी नहीं बांधनी चाहिए.

सूर्पनखा ने रावण को भद्रा काल में बांधी थी राखी

ऐसा कहा जाता है कि रावण के साम्राज्य के खात्मे की वजह भी यही भद्रा काल ही रहा है. रक्षाबंधन के अवसर पर रावण की बहन सूर्पनखा ने भद्रा काल में ही लंकेश को राखी बांधी थी. जिसके बाद से लंका का बुरा दौर शुरू हो गया था और रावण अपने दुर्गति की ओर बढ़ने लगा था.

कब तक रहता है प्रभाव?

ऐस्ट्रोलोजर्स का मानना है कि भद्रा तीनों लोकों में घुमती है पर अलग अलग राशियों में रहते हुए. लेकिन जब ये मृत्युलोक में रहती है तो सारे शुभ काम रोक देने चाहिए. क्योंकि ऐसे में यह शुभ कार्यों में बाधा पैदा करती है.

क्या हैं इस बार के योग

इस साल रक्षाबंधन 11 अगस्त दिन गुरुवार को है. आपके मन में भी भद्रा काल को लेकर कई सवाल होंगे. ऐस्ट्रोलोजर्स बताते हैं कि इस बार भद्रा का साया पाताल लोक में पड़ेगा. इसलिए धरती लोक पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा |
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गुरुवार के दिन जरूर करें ये उपाय

 4 अगस्त को श्रावण शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और गुरूवार का दिन है। षष्ठी तिथि आज सुबह 5 बजकर 40 मिनट पर समाप्त हो चुकी है फ़िलहाल सप्तमी तिथि चल रही है । आज शाम 4 बजकर 35 मिनट तक साध्य योग रहेगा। यदि आपको किसी से विद्या या कोई विधि सीखनी हो तो यह योग अति उत्तम है। इस योग में कार्य सीखने या करने में खूब मन लगता है और पूर्ण सफलता मिलती है। साथ ही आज शाम 6 बजकर 48 मिनट तक चित्रा नक्षत्र रहेगा।

 आकाशमंडल में स्थित 27 नक्षत्रों में से 14वां नक्षत्र है. इसके स्वामी मंगल हैं। आज के दिन अलग-अलग शुभ फलों की प्राप्ति के लिये, घर-परिवार की सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी के लिये, अपने बिजनेस को अनजाने खतरों से बचाये रखने के लिये, देवी मां की कृपा से जीवन में सफलता पाने के लिये, अपने हर काम में लाभ पाने के लिये और कामयाबी हासिल करने के लिये, किसी भी प्रकार के भय, रोग आदि से छुटकारा पाने के लिये, जीवन में तरक्की पाने के लिये, नौकरी में परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये, जीवन से कड़वाहट को दूर करके मिठास घोलने के लिये, पापकर्म के बोध से छुटकारा पाने के लिये, अपनी दिन-दुगनी, रात-चौगनी तरक्की के लिये, अपने परिवार की खुशहाली को बनाये रखने के लिये, जीवनसाथी की परेशानियों को दूर करने के लिये, स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिये और लंबी आयु का वरदान पाने के लिये क्या उपाय करने चाहिए हम इन सब की चर्चा करेंगे।


गुरुवार के दिन करें ये उपाय
अगर आपकी कोई इच्छा है, जो बहुत दिनों से पूरी नहीं हो पा रही है, तो आज के दिन 11 पीपल के पत्ते लेकर हनुमान मन्दिर जाएं और हनुमान जी के चरणों से सिंदूर लेकर उन पत्तों पर एक-एक करके तिलक लगाएं और हर बार पत्तों पर तिलक लगाते समय अपनी इच्छा दोहराएं । इस प्रकार सभी पत्तों पर तिलक लगाने के बाद उन्हें हनुमान जी को चढ़ा दें । आज के दिन ये खास उपाय करने से आपकी इच्छा जल्द ही पूरी होगी।

अगर आप जीवन में भूमि-भवन का लाभ पाना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको हनुमान मन्दिर में लाल रंग का चोला चढ़ाना चाहिए और भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए। आज के दिन ऐसा करने आपको जीवन में भूमि-भवन का लाभ मिलेगा। अगर आप अपने प्रेम-संबंधों को बनाये रखना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको मंगल के मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। मंगल का मंत्र है - 'ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:। आज के दिन ऐसा करने से आपके प्रेम-संबंध मजबूत बने रहेंगे।

अगर आपको नाभि के आस-पास के क्षेत्र में किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है, तो आज के दिन आपको सवा किलो गुड़ लेकर अपनी नाभि से स्पर्श कराकर मन्दिर में दान करना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपकी परेशानी जल्द ही दूर होगी।अगर आप अपनी ऊर्जा को बनाये रखना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको एक लाल रंग के कपड़े में थोड़ी-सी मसूर की दाल बांधकर हनुमान मन्दिर में दान करनी चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपकी ऊर्जा बनी रहेगी।

अगर आप अपनी धन-दौलत में बढ़ोतरी करना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको बेल के पेड़ के पास जाकर नमस्कार करना चाहिए और उसकी जड़ में जल चढ़ाना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपकी धन-दौलत में बढ़ोतरी होगी। अगर आप एक डॉक्टर हैं या सर्जन हैं, तो अपने काम की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिये आज के दिन आपको सूत का धागा लेकर बेल के पेड़ पर सात बार लपेटना चाहिए और उसके बाद हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपके काम की बेहतरी सुनिश्चित होगी।

अगर आपको अपने कार्यों में भाईयों का सहयोग नहीं मिल पाता है, तो उनका सहयोग पाने के लिये आज के दिन आपको मन्दिर में चीनी का दान करना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपको अपने कार्यों में भाईयों का सहयोग मिलने लगेगा।अगर आप अपनी मेहनत से भाग्य को हासिल करना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको चॉकलेटी रंग की शर्ट या कोई अन्य चीज़ अपने बड़े भाई या बड़े भाई समान किसी व्यक्ति को गिफ्ट करनी चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आप अपनी मेहनत से अपने भाग्य को हासिल करने में सफल रहेंगे।

अगर आपकी जन्मपत्रिका में मंगल ग्रह से संबंधी किसी प्रकार की परेशानी चल रही है, तो आज के दिन आपको नाई या दर्जी को चॉकलेट गिफ्ट करनी चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपको मंगल ग्रह से संबंधी परेशानियों से राहत मिलेगी। अगर आप अपने काम को और निखारना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको मन्दिर में शहद की शीशी दान करनी चाहिए। साथ ही मंगल के मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। मंत्र है – 'ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:। आज के दिन ऐसा करने से आपके काम में निखार आयेगा।अगर आप अपने आस-पास शांति का माहौल बनाये रखना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको हनुमान मन्दिर में जाकर भगवान के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाना चाहिए और उनके दायें पैर से सिन्दूर लेकर अपने माथे पर तिलक लगाना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपके आस-पास शांति का माहौल बना रहेगा।
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शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अपनाएं ये उपाय

जिन लोगों की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में होता है, उन्हें जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में भक्त शनि देव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार, शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं. आइए जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से शनि देव को प्रसन्न करने के कुछ खास उपायों के बारे में.


शनि देव को प्रसन्न करने के उपाय

हनुमानजी की पूजा
यदि आप शनि देव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो सूर्यास्त के बाद हनुमान जी की पूजा करें. हनुमानजी की पूजा में सिंदूर रखा जाता है और आरती के लिए दीप जलाने के लिए काले तिल के तेल का इस्तेमाल करते हैं. पूजा में नीले फूल चढ़ाना भी शुभ माना जाता है.
शनि यंत्र स्थापित करें
 
यदि शनि के प्रकोप के कारण जीवन संकटों से घिरा हुआ है तो शनिवार के दिन शनि यंत्र की स्थापना कर उसकी पूजा करनी चाहिए. इस यंत्र की प्रतिदिन पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. इससे शनि देव बहुत प्रसन्न होते हैं. शनि यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर और रोजाना नीले फूल चढ़ाने से भी शनि देव की कृपा बनी रहती है.
काले चने का भोग लगाएं
 
पूजा के एक दिन पहले 1.25 किलो काले चने को तीन बर्तनों में अलग-अलग भिगो दें. अगले दिन स्नान के बाद विधि-विधान से शनि देव की पूजा में उन काले चनों को चढ़ाएं. पूजा के बाद पहले कुछ चने भैंस को खिलाना चाहिए. बाकी बचा कुष्ठ रोगियों को बांटना चाहिए. वहीं कुछ चना घर से दूर ऐसी जगह पर रखना चाहिए, जहां कोई न होता हो.
काली गाय की सेवा करना
शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है गाय की सेवा करना. काली गाय की सेवा करने से शनि देव प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. गाय के सींग पर कलावा बांधना चाहिए और पूजा करनी चाहिए. इसके बाद गाय के चारों ओर घूमें और उसे चार चम्मच बूंदी खिलाएं |

 

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आज है हरियाली अमावस्या, जानें महत्व

झूठा सच @रायपुर :- सावन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार हरेली पर्व मनाया जाता है। सावन मास की कृष्ण अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से भी जानते हैं। इस दिन किसान कुल देवता व कृषि औजारों की पूजा-अर्चना करने के साथ ही अच्छी फसल की कामना करते हैं। हरेली पर्व में बैलों, हल व खेती में काम आने वाले औजारों की विशेष पूजा करने के बाद खेती का काम शुरू किया जाता है।

कैसे मनाया जाता है हरेली पर्व- हरेली पर्व पर किसान नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि में काम आने वाले औजारों की साफ-सफाई करते हैं। इस अवसर पर घरों में गुड़ का चीला बनाया जाता है। बैल, गाय व भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परपंरा है।
 

अच्छी फसल की प्रार्थना- हरेली पर्व पर कुल देवता व कृषि औजारों की पूजा करने के बाद किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं। किसान डेढ़ से दो महीने तक फसल लाने का काम खत्म करने के बाद इस त्योहार को मनाते हैं। इस पर्व पर बच्चों के लिए गांवों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।
 
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हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त, जानें पूजा विधि और महत्व

हरियाली तीज 2022 इस बार 31 जुलाई 2022 को है. हरियाली तीज सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत सावन महीने शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. भगवान शिव और माता पर्वती की पूजा करती हैं. 

हरियाली तीज 2022 शुभ मुहूर्त 
तृतीया तिथि प्रारम्भ - जुलाई 31, 2022 को 02:59 बजे, सुबह
तृतीया तिथि समाप्त - अगस्त 01, 2022 को 04:18 बजे सुबह
पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर शुरू होकर 8 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. प्रदोष पूजा सायंकाल में 6:33 बजे से रात 8:51 बजे तक कर सकते हैं.

हरियाली तीज पूजा विधि 
हरियाली तीज के सुबह उठकर स्नान करें.
नए कपड़े पहनकर पूजा करने का संकल्प लेती हैं.
पूजा स्थल की साफ-सफाई करने के बाद मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति बनाएं.
अब उन्हें लाल कपड़े के आसन पर बिठाएं.
पूजा की थाली में सुहाग की सभी चीजों रखें, भगवान शिव और माता पार्वती अर्पित करें.
अंत में तीज कथा और आरती करें.
इस पर्व में महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन व्रत तोड़ती हैं.
 
हरियाली तीज का महत्व
 सुहागिन महिलाओं के लिए हरियाली तीज व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. हरियाली तीज के खास मौके पर महिलाएं झुला झुलती हैं और सावन के गीत गाती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. उनका कठोर तप देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हो गए थे और हरियाली तीज के दिन माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था. इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अंखड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है |
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भगवान शिव को चढ़ाएं ये फूल, मिलेगा ये फल

झूठा सच @ रायपुर : - हिंदू धर्म में सावन मास का काफी अधिक महत्व है। 14 जुलाई से शुरू हुए सावन 12 अगस्त को समाप्त होंगे। इस पूरे माह में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा करने का विशेष लाभ है। सावन के पवित्र माह में भक्त महादेव की भक्ति में लीन होकर पूजा अर्चना करने के साथ सावन सोमवार का व्रत रखते है, जिससे भोलेनाथ जल्द प्रसन्न हो जाए। भगवान शिव जल्द प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक माना जाता है। भगवान शिव की पूजा करने के अनेक तरीके है। ऐसे ही जानिए कि भगवान शिव को किस फूल को चढ़ाने से क्या लाभ मिलता है। शिवपुराण में कुछ ऐसे फूलों का जिक्र किया गया है जिन्हें शिवजी को अर्पित करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है और हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। 

 किन फूलों को चढ़ाने से मिलेगा कौन सा शुभ फल।

 
धतूरा का फूल : शिवपुराण के अनुसार, शिवजी की पूजा धतूरे के बिना अधूरी है। इसलिए पूजा के समय धतूरे के फल के साथ फूल अवश्य चढ़ा गें। इससे व्यक्ति को हर तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाएगा। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। माना जाता है रि शिवलिंग में धतूरे का फूल चढ़ाने से संतान प्राप्ति होती है।

मदार का फूल : भगवान शिव को सफेद और लाल रंग के मदार के फूल काफी प्रिय हैं। मदार को आक, आंकड़े के नाम से भी जानते हैं। सावन माह में भगवान शिव को मदार के फूल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चमेली के फूल: बनते-बनते काम बिगड़ जा रहे हैं या फिर कुछ काम शुरू करना चाहते हैं लेकिन किसी कारणवश बंद हो जाता है। ऐसे में भगवान शिव को चमेली का फूल अर्पित करना शुभ होगा। सावन माह में भगवान को जलाभिषेक करने के बाद अपनी कामना कहते हुए चमेली का फूल अर्पित करें।

बेले के फूल: विवाह में किसी न किसी कारण देरी हो रही है, तो सावन शिवरात्रि या महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को बेले के फूल चढ़ाएं। इससे विवाह का योग प्रबल होता है। भगवान शिव की कृपा से जल्द ही शादी हो जाएगी।

हरसिंगार का फूल: भगवान शिव को हरसिंगार का फूल अति प्रिय हैं। सुख-संपत्ति के लिए शिवजी को हरसिंगार का फूल अर्पित करें। भगवान शिव की कृपा से बिगड़े हुए काम भी बनने लगेंगे।

गुलाब का फूल: भगवान शिव को गुलाब का फूल अर्पित करने से धन समृद्धि मिलती है। इसके साथ ही जातक के साथ घर के सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

अलसी के फूल : सावन के दिनों में भगवान शिव को अलसी का फूल अर्पित करें। ऐसा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
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कब है हरियाली तीज, जानें पूजा विधि और मुहूर्त

 झूठा सच @ रायपुर :- हरियाली तीज अखंड सौभाग्य और उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए रखा जाने वाला व्रत है. हर साल सावन मा​ह के शुक्ल पक्ष की तृतीया​ तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. व्रत के दिन शुभ समय में माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की पूजा करती हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, सती के आत्मदाह के बाद माता पार्वती ने जन्म लिया और भगवा​न शिव को पति स्वरूप पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर व्रत और तप किया. उनकी मनोकामना श्रावण शुक्ल तृतीया तिथि को पूर्ण हुई, इस वजह से हर साल इस तिथि के दिन हरियाली तीज मनाई जाती है. आइए जानते हैं हरियाली तीज की तिथि, पूजा मुहूर्त आदि के बारे में.


हरियाली तीज 2022 तिथि
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का प्रारंभ 31 जुलाई दिन रविवार को तड़के 02 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है. यह तिथि अगले दिन 01 अगस्त सोमवार को प्रात: 04 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो रही है. ऐसे में उदयातिथि की मान्यता के आधार पर हरियाली तीज 31 जुलाई को मनाई जाएगी.

हरियाली तीज 2022 मुहूर्त
31 जुलाई को हरियाली तीज के दिन रवि योग बन रहा है. इस दिन रवि योग दोपहर 02 बजकर 20 मिनट से अगले दिन 01 अगस्त को प्रात: 05 बजकर 42 मिनट तक है. रवि योग में हरियाली तीज की पूजा करना उत्तम फलदायक रहेगा.इस दिन का शुभ समय या अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है. इस दिन राहुकाल शाम 05 बजकर 31 मिनट से शाम 07 बजकर 13 मिनट तक है. राहुकाल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं.

हरियाली तीज का महत्व
1. हरियाली तीज का व्रत पति के दीर्घायु जीवन के लिए किया जाता है.
2. अविवाहित कन्याएं अपने मनपंसद जीवन सा​थी की प्राप्ति के लिए हरियाली तीज का व्रत रखती हैं. उनकी मनोकामना होती है कि जिस प्रकार से माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने व्रत से प्राप्त किया, उसी प्रकार से वे भी अपने मनचाहे जीवनसाथी को प्राप्त करें.
3. उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए भी हरियाली तीज का व्रत रखा जाता है.
4. जिन लोगों के दांपत्य जीवन में समस्याएं हैं, उनको भी हरियाली तीज का व्रत रखना चाहिए.
5. हरियाली तीज का व्रत रखने से दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है.

हरियाली तीज की पूजा
हरियाली तीज के दिन पूजा में महिलाएं माता पार्वती को हरी चुड़ियां, हरी साड़ी और श्रृंगार की सामग्री अर्पित करती हैं. माता पार्वती के साथ शिव जी और गणेश जी की भी पूजा करती हैं.
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रक्षा बंधन पर जानिए शुभ मुहूर्त

सावन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक यह त्योहार इस साल 11 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं, वहीं भाई अपनी बहन को जीवन भर रक्षा करने का वचन देते हैं। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस साल राखी पर भद्रा का साया रहेगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना गया है।

रक्षा बंधन 2022 शुभ मुहूर्त- इस साल पूर्णिमा 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो कि 12 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी। राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 11 अगस्त को सुबह 09 बजकर 28 मिनट से रात 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।

इस अवधि में न बांधे राखी- इस साल रक्षा बंधन पर भद्रा का साया रहेगा। भद्रा पुंछ 11 अगस्त को शाम 05 बजकर 17 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। भद्रा मुख शाम 06 बजकर 18 मिनट से रात 8 बजे तक रहेगी। भद्राकाल का समापन रात 08 बजकर 51 मिनट पर होगा।

भद्राकाल में क्यों नहीं बांधते राखी- पौराण‍क मान्‍यताओं के अनुसार भद्रा में राखी न बंधवाने की पीछ कारण है कि लंकापति रावण ने अपनी बहन से भद्रा में राखी बंधवाई और एक साल के अंदर उसका विनाश हो गया। इसलिए इस समय को छोड़कर ही बहनें अपने भाई के राखी बांधती हैं। वहीं यह भी कहा जाता है कि भद्रा शनि महाराज की बहन है। उन्हें ब्रह्माजी जी ने शाप दिया था कि जो भी व्यक्ति भद्रा में शुभ काम करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा। इसके अलावा राहुकाल में भी राखी नहीं बांधी जाती है।
 
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सावन के पहले प्रदोष व्रत की तिथि और पूजा मुहूर्त

सावन प्रदोष व्रत श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा. हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है. इस समय सावन का कृष्ण पक्ष चल रहा है, तो सावन का पहला प्रदोष व्रत 25 जुलाई दिन सोमवार को रखा जाएगा. यह सावन का सोम प्रदोष व्रत है. मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सोम प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस दिन प्रदोष मुहूर्त में भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करते हैं. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं सावन के पहले प्रदोष व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त, योग आदि के बारे में.

सावन का पहला प्रदोष व्रत 2022 तिथि
पंचांग के अनुसार, सावन के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 25 जुलाई सोमवार को शाम 04 बजकर 15 मिनट से हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन 26 जुलाई मंगलवार को शाम 06 बजकर 46 मिनट पर होगा. त्रयोदशी तिथि में शिव पूजा के लिए प्रदोष मुहूर्त 25 जुलाई को ही प्राप्त हो रहा है, इसलिए प्रदोष व्रत 25 जुलाई को रखा जाएगा.

प्रदोष व्रत 2022 पूजा मुहूर्त
25 जुलाई को सोम प्रदोष की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 17 मिनट से रात 09 बजकर 21 मिनट तक है. इस दिन शिव पूजा के लिए दो घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा.

सर्वार्थ सिद्धि योग में सोम प्रदोष व्रत
सावन का पहला सोमवार व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग में है. ये दोनों ही योग एक ही समय पर बन रहे हैं. 25 जुलाई को सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग प्रात: 05 बजकर 38 मिनट से शुरु हो रहे हैं और देर रात 01 बजकर 06 मिनट पर समाप्त हो रहे हैं.इस दिन का शुभ समय दोपहर 12 बजे से शुरु होकर दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक है. इस दिन का राहुकाल प्रात: 07 बजकर 21 मिनट से सुबह 09 बजकर 03 मिनट तक है. ​हालांकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय में है, तो राहुकाल देखने की आवश्यकता नहीं है.

प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत रखने से संतान, आरोग्य, धन, धान्य, सुख, शांति आदि की प्राप्ति होती है. पुत्र प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत रखा जाता है. सोम प्रदोष व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रखते हैं. दिन के आधार पर प्रदोष व्रत के फल भी होते हैं |
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सावन के पहला सोमवार आज, जानिए शुभ मुहूर्त

झूठा सच @ रायपुर :- श्राणण मास का पहला सोमवार आज पड़ रहा है। आज के दिन भगवान शिव की विधिवत तरीके से पूजा करने के साथ-साथ व्रत रखने का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल सावन सोमवार पूरे 4 पड़ रहे हैं जिसमें आज पहला सावन सोमवार है। बाबा भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त सावन में सोमवार का व्रत रखते हैं। सावन के पहले सोमवार में काफी विशिष्ट योग बन रहे हैं। जानिए सावन सोमवार का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

सावन के पहले सोमवार पर बन रहे हैं खास योग

सावन के पहले सोमवार पर कई विशिष्ट योग बन रहे हैं। इसमें रवि योग दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 19 जुलाई को सुबह 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही इस दिन शोभन योग 17 जुलाई शाम 5 बजकर 49 मिनट से 18 जुलाई को 3 बजकर 26 मिनट तक रहेगा और पहले सावन सोमवार के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 41 मिनट तक रहेंगे। ऐसे शुभ योग में भगवान शिव की पूजा करना फलदायी होगा।

सावन सोमवार क ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

  • शास्त्रों के अनुसार, सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है।
  • सावन सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने के साथ कथा सुनी जाती है।
  • सावन सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान कर लें।
  • साफ सूथरे वस्त्र धारण कर लें।
  • अब पूरे घर में गंगा जल छुड़ दें।
  • घर में ही किसी पवित्र स्थान या पूजा घर मेंर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
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सावन सोमवार पर रहेंगे ये खास, जानें पूजन विधि

झूठा-सच @ न्यूज़ डेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांचवां सावन का महीना भोलेनाथ को समर्पित है. इस माह में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है. ये महीना भगवान शिव को भी बेहद प्रिय है. भोलेनाथ को सोमवार का दिन बेहद प्रिय है इसलिए सावन में आने वाले सोमवार का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. मान्यता है कि सावन में आने वाले सोमवार में व्रत रखने और पूजा-पाठ आदि करने से भगवान शिव की कृपा मिलती है. भगवान शिव भक्तों से प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा और जल अर्पित करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. सोमवार के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है. सावन का पहला सोमवार १८ जुलाई को पड़ रहा है. इस दिन व्रत रखने से पहले व्रत के नियमों को जान लेना जरूरी है. सावन सोमवार पर बन रहे हैं ये खास ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सावन माह में पहले सोमवार को शोभन योग का निर्माण हो रहा है. इस योग में व्रत, पूजा-पाठ, जप और साधना आदि से सौभाग्य की वृद्धि होती है. सावन सोमवार का महत्व शास्त्रों के अनुसार सावन में सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जलाभिषेक के लिए ये दिन बहुत शुभ होता है. ऐसा माना जाता है कि सावन माह में ही माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था. इसी वजह से इस माह का विशेष महत्व माना जाता है. ये व्रत सुहागिनें और कुंवारी कन्याएं भी रख सकती हैं. सोमवार को व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं के पति की आयु लंबी होती है. वहीं, कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है. साथ ही, ग्रह दोष को दूर करने के लिए ये व्रत उत्तम है.

सावन सोमवार की पूजन विधि -
सावन माह में सोमवार के व्रत की विशेष मान्यता है. इस दिन पानी में दूध और काला तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. - इस दिन २१ बिल्वपत्रों पर चंदन से ओम नमः शिवाय लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करने से भोलेनाथ भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. - विवाह में आ रहीं अड़चनों को दूर करने के लिए सावन के सोमवार के दिन नियमित शिवलिंग पर केसर मिला दूध अर्पित करें. ऐसा करने से विवाह के योद जल्द ही बन जाते हैं. - सावन माह में नियमित रूप से नंदी को हरा चारा खिलाना चाहिए. ऐसा करने से कष्टों का निवारण होता है. इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी. - इस माह में गरीबों को भोजन कराने से आपके घर में अन्न की कमी नहीं होगी. साथ ही पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी. - इस दिन पूजा करते समय मंदिर में कुछ देर ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए.
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