धर्म समाज

भगवान गणेश को प्रसन्न करने जुलाई में खास होंगे ये दो दिन

  • जानें तिथि और शुभ मुहूर्त...
हर माह भगवान गणेश को समर्पित चतुर्थी पर्व मनाया जाता है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान गणेश के लिए व्रत रखा जाता है। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में खुशियां आती हैं। जुलाई का महीना शुरू होने वाला है। ऐसे में आइए, जानते हैं कि इस माह में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि की तिथि और शुभ मुहूर्त क्या है।
विनायक चतुर्थी 2024 तिथि-
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 9 जुलाई को सुबह 6.08 बजे शुरू होगी और यह तिथि अगले दिन यानी 10 जुलाई को सुबह 7.51 बजे समाप्त होगी। इस दिन चंद्रास्त रात 9 बजकर 58 मिनट पर होगा। ऐसे में विनायक चतुर्थी व्रत 9 जुलाई को रखा जा सकता है।
गजानन चतुर्थी 2024-
सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 24 जुलाई को सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर होगी और ये तिथि अगले दिन यानी 25 जुलाई को सुबह 4 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत 25 जुलाई को रखा जाएगा।
चतुर्थी पूजा विधि-
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
पूजा स्थल पर गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें।
व्रत रख रहे हैं, तो पूजा से पहले व्रत का संकल्प लें।
बप्पा को फल, फूल, अक्षत, दूर्वा आदि भी चढ़ाएं।
इसके बाद गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
रात्रि के समय जल में दूध, फूल, अक्षत डालकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।

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चातुर्मास 17 जुलाई से हो रहे शुरू, जानिए इसका धार्मिक महत्व

  • इस दौरान इन चीजों की होती है मनाही
आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाते हैं, इसकी समाप्ति कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी पर होती है. चातुर्मास यानि वो चार महीने जब देव शयनकाल में रहते हैं, मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है. चातुर्मास में भले ही शुभ कार्य नहीं होते लेकिन जप, तप, पूजा, पाठ के लिए ये चार महीने श्रेष्ठ माने गया है.
इस साल चातुर्मास 17 जुलाई 2024 से शुरू हो रहे हैं, इस दिन देवशयनी एकादशी है. चातुर्मास का समापन 12 नवंबर 2024 को देवउठनी एकादशी पर होगा. हिंदू कैलेंडर में आषाढ़ महीने के आखिरी दिनों में चातुर्मास शुरू हो जाता है, जो कि सावन, भादौ, अश्विन और कार्तिक महीने के आखिरी दिनों तक रहता है.
चातुर्मास कब से कब तक होता है?-
शास्त्रों में बताया गया है कि इस वक्त भगवान क्षीर सागर अनंत शैय्या पर शयन करते हैं. इसलिए इन चार महीनों में शुभ काम नहीं होते. उसके बाद कार्तिक महीने में शुक्लपक्ष की एकादशी पर भगवान योगनिद्रा से जागते हैं.  इस एकादशी को देवउठानी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है.
चातुर्मास के नियम-
चातुर्मास के शुरुआत में वर्षाऋतु रहती है, ऐसे में जल में हानिकारक बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, हमारी पाचन शक्ति भी मंद पड़ जाती. इस वजह है इन चार महीनों में खान-पान को लेकर जरा भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, इससे न सिर्फ दोष लगता है बल्कि सेहत को भी नुकसान पहुंचता है.
चातुर्मास में कच्ची हरी पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए.
दूध, दही, छाछ का सेवन करने से भी बचें.
नॉनवेज और मसालेदार खाने की मनाही है.
चातुर्मास में थोड़े से शहद का सेवन रोज करेंगे तो सेहत के लिए फायदेमंद रहेगा.
चातुर्मास का महत्व-
चातुर्मास के समय ईश्वर का गुणगान और ध्यान करने से न सिर्फ जीवन में नई उर्जा का संचार होता है बल्कि सेहत के लिहाज से भी ये बहुत महत्वपूर्ण है. चातुर्मास के चार महीनों के दौरान संत-महात्मा, जैनमुनि और मनीषी अपनी किसी स्थान विशेष पर ठहरकर उपवास, मौन-व्रत, ध्यान-साधना करते हैं और ईश्वर से संपर्क साधने का प्रयास करते हैं. इसके फलस्वरूप उन्हें अद्भुत सिद्धियां प्राप्त होती है.
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‘बम बम भोले’ की गूंज के साथ शुरू हुई अमरनाथ यात्रा

  • श्रावण पूर्णिमा तक होंगे बर्फानी बाबा के दर्शन
जम्मू। “बम बम भोले”, “जय बाबा बर्फानी” और “हर हर महादेव” के नारों के साथ शंखनाद करते हुए श्रद्धालुओं का पहला जत्था आज पहलगाम और बालटाल से अमरनाथ की यात्रा पर निकला. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कड़ी सुरक्षा के बीच सुबह जम्मू के भगवती नगर यात्री निवास आधार शिविर से 4,603 यात्रियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. तीर्थयात्री सीआरपीएफ कर्मियों की सुरक्षा में 231 वाहनों के काफिले में कश्मीर के दो आधार शिविरों के लिए रवाना हुए.
अमरनाथ पहुंचने के 2 रास्ते-
आप देश के किसी भी कोने में हैं, अब आसानी से अमरनाथ की यात्रा पर जा सकते हैं. बस, ट्रेन या फ्लाइट तीनों मार्ग से बाबा बर्फानी के दर्शन कर सकते हैं. ट्रेन या बस से आप कहीं से भी आ रहे हैं तो आपको कटरा तक आना होगा, वहीं फ्लाइट से आ रहे हैं तो आपको श्रीनगर आना होगा. अमरनाथ की गुफा तक जाने के दो रास्ते हैं. एक रास्ता पहलगाम की ओर जाता है तो दूसरा रास्ता सोनमर्ग होते हुए बालटाल की ओर से जाता है. कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी में एक मुसलमान गड़रिये ने इस गुफा को खोजा था. उस गड़रिये का नाम बूटा मलिक था.
दो महीने तक होंगे बाबा के दर्शन-
बता दें कि आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होने वाले बाबा बर्फानी के दर्शन श्रावण पूर्णिमा तक चलते हैं. इस दौरान दो महीनों तक बाबा बर्फानी भक्तों को दर्शन देते हैं. भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक अमरनाथ धाम में भगवान शिव के दुर्लभ और प्राकृतिक दर्शन होते हैं. अमरनाथ की पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी कब से विराज रहे हैं और उनके भक्त उनके दर्शन के लिए कब से वहां पहुंच रहे हैं, इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है. हालांकि, माना जाता है कि किसी वजह के चलते यह गुफा लोगों की स्मृतियों से लुप्त हो गई थी, फिर लगभग डेढ़ सौ साल पहले इसे फिर से खोजा गया.
साधुओं के पंजीकरण के लिए विशेष शिविर-
52 दिवसीय तीर्थयात्रा 29 जून को दो मार्गों- अनंतनाग में पारंपरिक 48 किमी लंबे नुनवान-पहलगाम मार्ग और गांदरबल में 14 किमी छोटे, लेकिन कठिन बालटाल मार्ग- से शुरू होगी. श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक, शहर के शालीमार इलाके में अपंजीकृत तीर्थयात्रियों के लिए ऑन-द-स्पॉट पंजीकरण केंद्र स्थापित किया गया है, वहीं पुरानी मंडी स्थित राम मंदिर परिसर में साधुओं के पंजीकरण के लिए एक विशेष शिविर लगाया गया है.
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प्रदोष व्रत की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ

त्रयोदशी तिथि देवों के देव महादेव को समर्पित है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने की परंपरा है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति के लिए भी व्रत रखा जाता है। इसके अलावा प्रसाद के रूप में फल, मिठाई और अन्य चीजें चढ़ाई जाती हैं. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन हमेशा खुशहाल रहता है। प्रदोष व्रत के दिन शिव रुद्राष्टकम् स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम् (रुद्राष्टकम स्तोत्रम गीत हिंदी में)-
नामामिशमीषां निर्वाणरूपम्।
ब्रह्म का स्वरूप सर्वव्यापी है।
मैं निर्गुण और निर्विकल्प हूं।
मैं चिदाकाशमकशवासम् की पूजा करता हूं। 1.
निराकार और अपरिवर्तनीय.
गिरिज्ञानगोतितमिशं गिरीशम्।
भगवान महाकाल आपका कल्याण करें।
गुनाआगार संसार से परे है। 2.
तुषाराद्रिसंकशगौरम् अत्यंत गंभीर हैं।
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मूलिकल्लोलिनी चारुगन्गा।
भुजंगा वह है जिसकी गर्दन विशाल बैल की होती है। 3.
चलायमान कुण्डल की भौहें विशाल हैं।
प्रसन्नानं नीलकण्ठ दयालम्।
मृगधिश्चर्माम्बरं मुण्डमलम्।
प्रिय शंकर, मैं आपकी पूजा करता हूं सर्वनाथ। 4.
भयंकर और प्रतिभाशाली, मैं चिंतित हूँ.
अखण्ड अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
तीन: दर्द को खत्म करो और दर्द को दूर करो।
मैं भवानीपति भवगम्यम की पूजा करता हूं। 5. कलातिता कल्याण कल्पान्तकारी।
सज्जनों को सदैव महान आनन्द देने वाला।
चिदानन्दसंदोह मोह का नाश करने वाला है।
प्रसीद प्रसीद प्रसीद भगवान मन्मथरि। 6.
मुझे उमानाथपदारविंदम् याद नहीं है.
मैं भजनतिह की दुनिया से परे हूं.
मुझे शांति नहीं चाहिये, दुःख का विनाश नहीं चाहिये।
प्रसीद प्रभु सर्वभूतधिवासम्। 7.
मैं योग नहीं जानता, मैं इसकी पूजा नहीं करता.
मैं सदैव सर्वदा शम्भुतुभ्यम् हूँ।
बुढ़ापे और जन्म का दुःख कष्टकारी होता है।
प्रभु अपना नाम शम्भू देखिये। 8. रुद्राष्टकामिदं प्रोक्तं विप्रेण हतोषये।
जो व्यक्ति इस मंत्र को श्रद्धापूर्वक पढ़ता है, उसे भगवान शिव की स्तुति प्राप्त होती है। 9.
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प्रदोष व्रत 3 जुलाई को, इन चीजों से करें शिव जी का अभिषेक

प्रदोष व्रत का दिन बहुत कल्याणकारी माना जाता है। यह दिन भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत खास होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन का व्रत करने से भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही जीवन कल्याण की ओर अग्रसर होता है। इस बार यह व्रत 3 जुलाई के दिन बुधवार को रखा जाएगा, इस दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है, ऐसे में अगर इस मौके पर शिव जी का कुछ विशेष चीजों से अभिषेक किया जाए, तो वे बेहद प्रसन्न होते हैं, तो आइए किन चीजों से भगवान शंकर का अभिषेक करना शुभ माना जाता है।
शिवलिंग पर चंदन से करें अभिषेक-
बुध प्रदोष व्रत के शुभ अवसर पर शिवलिंग की विधिवत पूजा करें। इसके साथ ही शिवलिंग का चंदन से अभिषेक करें। इसके बाद शिव जी के नामों का जाप करें। ऐसा करने से घर में खुशहाली बनी रहेगी। साथ ही ग्रह दोष से छुटकारा मिलेगा। इसके साथ ही घर में बरकत आएगी।
शिवलिंग पर गंगाजल से करें अभिषेक-
बुध प्रदोष व्रत के दिन शिव जी का अभिषेक बेहद शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक करना बहुत ही कल्याणकारी माना जाता है। ऐसे में इस मौके पर शिव जी के वैदिक मंत्रों का जाप करते हुए अभिषेक करें। ऐसा करने से जीवन में शुभता का आगमन होता है।
प्रदोष व्रत 2024 डेट और शुभ मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 जुलाई को सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 4 जुलाई सुबह 5 बजकर 54 मिनट पर होगा। इस दिन प्रदोष काल में पूजा शुभ मानी जाती है। इस वजह से इस बार यह व्रत 3 जुलाई के दिन बुधवार को रखा जाएगा।
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72 साल बाद सावन में बन रहा महासंयोग

  • नगर भ्रमण पर 5 बार निकलेंगे बाबा महाकाल
उज्जैन। भगवान शिव की आराधना किसी भी मास में की जा सकती है लेकिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना बहुत खास माना जाता है. इस साल सावन मास में 72 वर्षों बाद एक ऐसा महासंयोग बन रहा है, जब इस मास का आरंभ सोमवार 22 जुलाई से हो रहा है और इसका समापन भी सोमवार 19 अगस्त को हो रहा है. वैसे तो यह मास भगवान शिव के सभी भक्तों के लिए खास होता है लेकिन यदि बात धार्मिक नगरी उज्जैन की हो तब यह पूरा सावन मास बाबा महाकाल के भक्तों के लिए बेहद खास रहना वाला है.
वो इस लिए क्योंकि इस मास में बाबा महाकाल 5 बार नगर भ्रमण पर निकलेंगे. इस बार सावन मास मे सावन नक्षत्र के साथ प्रीति योग बन रहा है. सावन मास भगवान शिव की भक्ति का एक प्रमुख अवसर माना जाता है यही कारण है कि भक्त भगवान की इस मास में सबसे अधिक पूजा अर्चना, अभिषेक और अनुष्ठान करते हैं.
स बार सावन माह 29 दिनों का होगा. इनमें पांच सोमवार का योग बनेगा. पहला सोमवार 22 जुलाई, दूसरा 29, तीसरा पांच अगस्त, चौथा 12 और पांचवां व अंतिम सोमवार 19 अगस्त को पड़ेगा. बीते साल सावन में आठ सोमवार पड़े थे. ऐसा अधिक मास होने से हुआ था. चातुर्मास भी चार की जगह पांच माह का हुआ था.
महाकाल मंदिर में शुरू हुई तैयारी-
महाकालेश्वर मंदिर में अभी से सावन मास की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. अभी ही बाबा महाकाल के दर्शन करने आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंची हुई है. प्रति शनिवार, रविवार और सोमवार को उज्जैन में एक लाख से अधिक श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करते हैं.
सभी कलाकार नए होंगे-
बीते पांच वर्ष में जो कलाकार प्रस्तुत दे चुके हैं उनके नाम पर विचार नहीं होगा. इस बार छह संध्या आयोजित करने का निर्णय लिया गया है, इसलिए छह मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त तथा छह देश के विभिन्न राज्यों के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों को कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा.
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पेड़-पौधों पर भी चंदन लगाने से बनता है धन योग

  • पीपल बरगद, केला, तुलसी, बेलपत्र और शमी पर इस तरह लगाए चंदन
बिना चंदन के ईश्वर का श्रृंगार पूरा नहीं माना जाता है। चंदन पूजा की मुख्य सामग्रियों में से एक है, जिसका उपयोग न सिर्फ भगवान के श्रृंगार के लिए होता है बल्कि यदि इसे रोजाना माथे पर लगाया जाए तो व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। जीवन के सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं।
जितना चंदन का धार्मिक महत्व है, उतना ही इसका ज्योतिषीय महत्व भी है। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि स्वयं के अलावा कुछ पेड़-पौधों पर भी चंदन लगाना बेहद शुभ होता है। इससे न सिर्फ आपको ग्रह दोष से मुक्ति मिलती है बल्कि धन-वैभव भी आता है.
इन पेड़ पौधों को जरूर लगाए चंदन-
- पीपल के पेड़ में समस्त देवी-देवताओं का वास माना गया है। मुख्य रूप से मां लक्ष्मी का। ऐसे में पीपल के पेड़ को चंदन लगाने से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और कुंडली में अगर कोई ग्रह दोष मौजूद है तो वह भी दूर हो जाता है।
- बरगद के पेड़ में त्रिदेवों का वास होता है। ऐसे में इसे चंदन लगाने से त्रिदेवों का आशीर्वाद मिलता है और अकाल मृत्यु जैसा योग भी टल जाता है।
- केले के पेड़ को चंदन लगाने से भगवान विष्णु की कृपा होती हैं,साथ ही बृहस्पति मजबूत होते हैं।
- तुलसी को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में तुलसी को चंदन लगाने से घर में धन का आगमन होता है और धन लाभ के योग बनते हैं।
- शमी के पौधे को चंदन लगाने से शनि दोष दूर होता हैं
- बेलपत्र को चंदन लगाने से शिव कृपा मिलती है।
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बाबा अमरनाथ यात्रा 29 जून से, ऑफलाइन पंजीकरण शुरू

वाराणसी। जम्मू-कश्मीर में बाबा अमरनाथ यात्रा 29 जून से शुरू हो रही है. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बाद अब ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की भी सुविधा उपलब्ध है। रजिस्ट्रेशन कराने के लिए शिव समर्थकों को आधार कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस और एक पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत होगी. इसके अलावा, सभी उम्र के लोगों के लिए स्वास्थ्य प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है। अमरनाथ यात्री इन दस्तावेजों के साथ निर्धारित शुल्क देकर पंजीकरण करा सकते हैं।हर साल बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। वहीं इस बार यात्रा के लिए कई लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है. बम-बम भोले के नारों के प्रति लोगों का उत्साह चरम पर है। श्रद्धालु ने कहा कि वह बाबा अमरनाथ की यात्रा का इंतजार कर रही है. मैं अच्छा कर रहा हूं, मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। हर साल देशभर से हजारों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा में शामिल होते हैं। इस बार यह यात्रा 29 जून से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलेगी. इस उद्देश्य से पहली टीम 28 जून को जम्मू के भगवती नगर बेस कैंप से कश्मीर घाटी के लिए रवाना होगी.यात्रा के लिए ऑनलाइन पंजीकरण 15 अप्रैल से शुरू होगा। ऑफ़लाइन पंजीकरण अब शुरू हो गया है। अमरनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए कुछ नियम भी हैं। 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यात्राTravel करने से प्रतिबंधित किया गया है। यह इस तथ्य के कारण है कि विश्वासियों को यात्रा के दौरान कई किलोमीटर की खतरनाक सड़कों को पार करना पड़ता है। अमरनाथ यात्रा के लिए स्थानीय प्रशासन कड़े सुरक्षा इंतजाम कर रहा है. श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है। ड्रोन जैसी तकनीकों की मदद से गाड़ी चलाते समय हर कोने पर भी कड़ी निगरानी रखी जाती है।
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जुलाई में सिर्फ 6 दिन किए जा सकेंगे विवाह कार्य, जानिए...शुभ मुहूर्त

अंग्रेजी कैलेंडर का सातवां महीना जुलाई जल्द ही शुरू होने वाला है। जून महीने में शुक्र अस्त होने के कारण शादी-विवाह जैसे कार्य के लिए कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं थे। वहीं, अब जुलाई में भी विवाह के लिए काफी कम मुहूर्त हैं। 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इस दिन से लेकर अगले चार महीने तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जा सकेंगे। ऐसे में जुलाई माह के सिर्फ कुछ ही दिन हैं, जब आप विवाह, मुंडन, नामकरण जैसे कार्य कर सकते हैं। आइए, जानते हैं कि जुलाई माह में शुभ मुहूर्त कब है।
जुलाई माह 2024 में आने वाले शुभ मुहूर्त की उक्त तिथि देखते हुए धार्मिक आयोजन कर सकते है। मई-जून के विराम के बाद जुलाई में कुछ चुनिंदा मुहूर्त ही मिल रहे हैं।
सर्वार्थ सिद्धि योग-
दिनांक : 02, 03, 05, 07, 08, 09, 17, 21, 22, 26, 28, 30, 31
अमृत सिद्धि योग-
दिनांक : 17, 26
विवाह मुहूर्त-
दिनांक : 09, 11, 12, 13, 14, 15
मुंडन मुहूर्त-
दिनांक : 15
नामकरण मुहूर्त-
दिनांक : 03, 07, 11, 12, 14, 15, 17, 21, 22, 25, 26, 28, 31
विद्यारम्भ मुहूर्त-
दिनांक : 03, 07, 10, 11
उपनयन या जनेऊ मुहूर्त-
दिनांक : 07, 08, 10, 11, 17, 21, 22, 25
वाहन क्रय हेतु मुहूर्त-
दिनांक : 03, 14, 15, 17, 21, 22, 26, 31
प्रॉपर्टी क्रय हेतु मुहूर्त-
दिनांक : 06, 10, 11, 16, 17, 20, 25, 26, 31
अन्नप्राशन मुहूर्त-
दिनांक : 03, 12, 15, 22, 25
कर्णवेध मुहूर्त-
दिनांक : 06, 07, 12, 13, 14, 17, 22, 27, 28, 31
जुलाई माह में गृह प्रवेश मुहूर्त नहीं हैं।

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विशेष संयोगों के साथ शुरू होगा सावन माह

  • भगवान शिव की पूजा से मिलेगा कई गुना लाभ
भगवान शिव का प्रिय महीना सावन जल्द ही शुरू होने वाला है। इस साल सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। यह 19 अगस्त को समाप्त होगा। सावन का महीना बेहद ही पवित्र माना जाता है। श्रावण मास शंकर भगवान को समर्पित होता है। भक्त देवों के देव महादेव और माता पार्वती की विशेष पूजा-आराधना करते हैं।
इस महीने को भगवान शिव के प्रिय माह में से एक कहा जाता है। हर साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से सावन आरंभ हो जाते हैं। भगवान भोलेनाथ के भक्तों को सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार होता है। इस बार सावन में कुल 5 सावन सोमवार पड़ रहे हैं।
विधि-विधान से करें शिव पूजा-
पंडित नरेन्द्र नंदन दवे ने बताया कि इस महीने विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। साथ ही मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। सावन सोमवार के व्रत का भी बहुत महत्व होता है। सावन सोमवार व्रत पर कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह का आरंभ श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के साथ होता है। इस साल श्रावण प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 जुलाई को दोपहर 3 बजकर 47 मिनट से हो रही है, जो 22 जुलाई को दोपहर 1 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए श्रावण मास का आरंभ 22 जुलाई से हो रहा है। इसके साथ ही श्रावण पूर्णिमा यानी 19 अगस्त को सोमवार के दिन ही इसका समापन हो जाएगा।
सावन सोमवार तिथियां-
22 जुलाई, सोमवार- श्रावण का पहला दिन, सावन का पहला सोमवार
29 जुलाई, सोमवार- सावन का दूसरा सोमवार
5 अगस्त, सोमवार- सावन का तीसरा सोमवार
12 अगस्त, सोमवार- सावन का चौथा सोमवार
19 अगस्त, सोमवार- सावन का पांचवा सोमवार
सोमवार से शुरू हो रहा है सावन-
इस साल सावन मास काफी खास है, क्योंकि सोमवार के दिन से शुरू हो रहा है। इसके अलावा प्रीति, आयुष्मान योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं। इस शुभ योग में भोलेनाथ की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होगी।

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30 जून तक बन रहा अग्नि पंचक का योग

  • इस दौरान भुलकर भी ना करें ये 5 काम, हो सकती है परेशानी
पंचांग के अनुसार, पंचक की शुरूआत धनिष्ठा नक्षत्र से होती है और इसका समापन रेवती नक्षत्र पर होता है. 25 जून की रात लगभग 03.56 से शुरू हो गया है. ये पंचक 30 जून, रविवार की सुबह 08.54 तक रहेगा.
इन कार्यों की होती है मनाही-
मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार पंचक में 5 काम करने की मनाही है. यदि कोई व्यक्ति पंचक के दौरान ये काम करता है तो निकट भविष्य में उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ये हैं वो 5 काम-
पंचक में घर की छत बनवाने की भी मनाही है. ऐसा करने से उस घर में रहने वाले लोग परेशान रहते हैं.
पंचक के दौरान ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा नहीं करना चाहिए. इससे आग लगने का भय बना रहता है.
पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए. ऐसा करने से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
पंचक के दौरान लकड़ी का सामान, फर्नीचर आदि खरीदना या बनवाना नहीं चाहिए.
पंचक के दौरान यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो योग्य विद्वान की सलाह लेकर ही उसका अंतिम संस्कार करना चाहिए. ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है.
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बुधवार के दिन करें ये उपाय, भगवान गणेश की होगी कृपा

आज बुधवार का दिन है और ये दिन प्रथम पूजनीय श्री गणेश की साधना को समर्पित है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करना लाभकारी माना गया है लेकिन इसी के साथ ही अगर आज के दिन भगवान गणेश की पूजा आराधना के समय श्री गणेश कवच का पाठ सच्चे मन से किया जाए तो धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाती है और भगवान की अपार कृपा भक्तों को प्राप्त होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गणेश कवच पाठ।
श्री गणेश कवच-
गौर्युवाच ।
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ॥ १ ॥
दैत्या नानाविधा दुष्टाः साधुदेवद्रुहः खलाः ।
अतोऽस्य कण्ठे किञ्चित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ॥ २ ॥
मुनिरुवाच ।
ध्यायेत्सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापारे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुं
तुर्ये तु द्विभुजं सिताङ्गरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३ ॥
विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः ॥ ४ ॥
ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः ।
नयने फालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ ॥ ५ ॥
जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः ।
वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुखः ॥ ६ ॥
श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः ।
गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः ॥ ७ ॥
स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः ।
हृदयं गणनाथस्तु हेरम्बो जठरं महान् ॥ ८ ॥
धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः ।
लिङ्गं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः ॥ ९ ॥
गणक्रीडो जानुजङ्घे ऊरू मङ्गलमूर्तिमान् ।
एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु ॥ १० ॥
क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः ।
अङ्गुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः ॥ ११ ॥
सर्वाङ्गानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु ।
अनुक्तमपि यत्स्थानं धूमकेतुः सदाऽवतु ॥ १२ ॥
आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ॥ १३ ॥
दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४ ॥
कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः ।
दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत् ॥ १५ ॥
राक्षसासुरभेतालग्रहभूतपिशाचतः ।
पाशाङ्कुशधरः पातु रजःसत्त्वतमः स्मृतीः ॥ १६ ॥
ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् ।
वपुर्धनं च धान्यं च गृहान्दारान्सुतान्सखीन् ॥ १७ ॥
सर्वायुधधरः पौत्रान्मयूरेशोऽवतात्सदा ।
कपिलोऽजाविकं पातु गजाश्वान्विकटोऽवतु ॥ १८ ॥
भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत्सुधीः ।
न भयं जायते तस्य यक्षरक्षःपिशाचतः ॥ १८ ॥
त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥ २० ॥
युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।
मारणोच्चाटनाकर्षस्तम्भमोहनकर्मणि ॥ २१ ॥
सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिः ।
तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशयः ॥ २२ ॥
एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्यो राज्ञा वध्यं च मोचयेत् ॥ २३ ॥
राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्त्रिवारतः ।
स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ २४ ॥
इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।
मुद्गलाय च तेनाथ माण्डव्याय महर्षये ॥ २५ ॥
मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ॥ २६ ॥
अनेनास्य कृता रक्षा न बाधाऽस्य भवेत्क्वचित् ।
राक्षसासुरभेतालदैत्यदानवसम्भवा ॥ २७ ॥
इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालक्रीडायां षडशीतितमेऽध्याये गणेश कवचम् ।
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जानिए...खेत में हल चलाने और बीज बोने का शुभ मुहूर्त

  • इन मुहूर्तों पर कृषि कार्य करने से होगा लाभ
खेत में सही समय पर अगर बीज बोया जाए तो फसल उत्पादन का पूर्ण प्रतिशत प्राप्त होता है. जिस प्रकार सही समय पर सही कार्य करने वाला व्यक्ति हमेशा सफल होता है, उसी प्रकार अगर किसान भाई मुहूर्त के अनुसार बीजारोपण करें, सिंचाई करें, अन्न का क्रय-विक्रय और संग्रह करें अथवा कृषि भूमि खरीद-फरोख्त करें तो उन्हें ग्रह मुहूर्त का बल भी सफलता प्रदान करेगा.
हल चलाने का मुहूर्त-
पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराषाढ़ा, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी नक्षत्रों में तथा सोमवार, बुधवार, गुरुवार व शुक्रवार को तथा प्रतिपदा, पंचमी, एकादशी, त्रयोदशी व पूर्णिमा तिथियों में वृष, मिथुन, कन्या, मीन लग्न में हल चलाएं.
बीजरोपण का मुहूर्त-
हस्त, चित्रा, स्वाति, मघा, पुष्य, उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, धनिष्ठा, रेवती, अश्विनी, मूल, अनुराधा नक्षत्रों में सोमवार, बुधवार, शुक्रवारों में चतुर्थ, षष्ठी, नवमी, चतुर्दशी व अमावस्या तिथियों को छोड़कर अन्य शुभ तिथियों में बीज बोना शुभ माना गया है.
फसल काटने का मुहूर्त-
पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, मघा, आश्लेषा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, धनिष्ठा, स्वाति नक्षत्रों में प्रतिपदा, चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी तिथियों में मंगल को छोड़कर वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ लग्न में फसल काटना शुरू करना चाहिए.
सिंचाई करने का मुहूर्त-
चित्रा, उत्तराषाढ़ा, स्वाति, मूल, रोहिणी, धनिष्ठा, मृगशिरा, पुष्य, अश्विनी, अनुराधा, नक्षत्रों में मंगल, बुध, शनिवार और रविवार को छोड़कर फसल को पहला पानी देना चाहिए.
कृषि भूमि खरीदी का मुहूर्त-
मृगशिरा, पूर्वा, अश्लेषा, मघा, विशाखा, अनुराधा और पुनर्वसु नक्षत्रों में तथा गुरुवार एवं शुक्रवार को और प्रतिपदा, पंचमी, षष्ठी और पूर्णिमा को करें.
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जानिए क्या है मुस्लिम वास्तु के चार चरण रोचक तथ्य

मुस्लिम वास्तु के तीन क्रमिक चरण स्पष्ट हैं। पहला चरण, जो बहुत थोड़े समय रहा, विजयदर्प और धर्मांधता से प्रेरित "निर्मूलन" का था, जिसके बारे में हसन निज़ामी लिखता है कि प्रत्येक किला जीतने के बाद उसके स्तंभ और नींव तक महाकाय हाथियों के पैरों तले रौंदवाकर धूल में मिला देने का रिवाज था। अनेक दुर्ग, नगर और मंदिर इसी प्रकार अस्तित्वहीन किए गए। तदनंतर दूसरा चरण सोद्देश्य और आंशिक विध्वंस का आया, जिसमें इमारतें इसलिए तोड़ी गईं कि विजेताओं की मस्जिदों और मकबरों के लिए तैयार माल उपलब्ध हो सके। बड़ी-बड़ी धरनें और स्तम्भ अपने स्थान से हटाकर नई जगह ले जाने के लिए भी हाथियों का ही प्रयोग हुआ। प्रय: इसी काल में मंदिरों को विशेष क्षति पहुँची,
जो विजित प्रांतों की नई नई राजधानियों के निर्माण के लिए तैयार माल की खान बन गए और उत्तर भारत से हिंदू वास्तु की प्राय: सफ़ाई ही हो गई। अंतिम चरण तब आरंभ हुआ, जब आक्रांता अनेक भागों में भली भाँति जग गए थे और उन्होंने प्रत्यवस्थापन के बजाय योजनाबद्ध निर्माण द्वारा सुविन्यस्त और उत्कृष्ट वास्तुकृतियाँ वस्तुत कीं।
मुस्लिम वास्तु की तीन शैलियाँ-
शैलियों की दृष्टि से भी मुस्लिम वास्तु के तीन वर्ग हो सकते हैं There can be three categories of Muslim architecture। पहली दिल्ली शैली, अथवा शहंशाही शैली है, जिसे प्राय: "पठान वास्तु" (1193-1554) कहते हैं (यद्यपि इसके सभी पोषक "पठान" नहीं थे)। इस वर्ग में दिल्ली की कुतुबमीनार (1200), सुल्तान गढ़ी (1231), अल्तमश का मकबरा (1236), अलाई दरवाज़ा (1305), निजामुद्दीन (1320), गयासुद्दीन तुगलक (1325) और फीरोजशाह तुगलक (1388) के मकबरे, कोटला फीरोजशाह (1354-1490), मुबारकशाह का मकबरा (1434), मेरठ की मस्जिद (1505), शेरशाह की मस्जिद (1540-45) सहसराम का शेरशाह का मकबरा (1540-45) और अजमेर का अढ़ाई दिन का झोंपड़ा (1205) आदि उल्लेखनीय हैं।

 

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29 जून से शनि शुरू करेंगे उलटी चाल, 3 राशियां होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित

शनि को ज्योतिष शास्त्र में कर्मफलदाता माना गया है। शनि हर जातक को उसके कर्म के अनुसार फल प्रदान करते हैं। जानें वक्री शनि किन राशियों को करेंगे सबसे ज्यादा प्रभावित- ग्रहों के न्यायाधीश शनि एक निश्चित अवधि में राशि परिवर्तन करते हैं। राशि परिवर्तन के अलावा शनि अपनी चाल में बदलाव भी करते हैं। वर्तमान में शनि कुंभ राशि में विराजमान हैं और 29 जून को इसी राशि में वक्री होने जा रहे हैं। जब कोई ग्रह वक्री अवस्था में आता है तो इसका अर्थ है कि उलटी चाल।शनि कब होंगे वक्री- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि 29 जून को वक्री चाल शुरू करेंगे। शनि करीब 135 दिन तक वक्री रहेंगे।Astrologersका मानना है कि शनि की वक्री चाल का सबसे ज्यादा प्रभाव तीन राशियों पर पड़ेगा। जानें इन राशियों के बारे में-
वृषभ राशि-
शनि की वक्री चाल वृषभ राशि वालों के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगी। नौकरी में प्रमोशन का इंतजार कर रहे लोगों को इस अवधि में खुशखबरी मिल सकती है। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। अध्यात्म में रुचि बढ़ेगी। माता-पिता का सहयोग प्राप्त होगा। धन के नए स्त्रोत बनेंगे, पुराने स्त्रोत से भी धन का आगमन होगा। इस अवधि में आपकी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
कन्या राशि-
शनि की उलटी चाल कन्या राशि वालों के लिए बहुत ही लाभकारी रहने वाली है। इस अवधि में आपके वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर हो जाएंगी। जीवनसाथी के सहयोग से धन लाभ संभव है। व्यापारी शनिदेव की कृपा से अच्छा लाभ कमा सकते हैं। व्यापार का विस्तार हो सकता है। धन लाभ के प्रबल योग बनेंगे।
कुंभ राशि-
कुंभ राशि वालों के लिए शनि की उलटी चाल बहुत ही फायदेमंद रहने वाली है। इस अवधि में आपके अटके हुए काम पूरे हो सकते हैं। कार्यों में सफलता हासिल हो सकती है। कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय मिल सकती है। रोजी-रोजगार में तरक्की मिल सकती है। Merchants को भी पहले की तुलना में ज्यादा मुनाफा होगा।
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रुद्राक्ष की माला धारण करने के बाद इन बातों का रखें ध्‍यान

सनातन धर्म में रुद्राक्ष को विशेष स्‍थान प्राप्‍त है। इसे भगवान शिव के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव के आंसुओं के रुद्राक्ष का निर्माण हुआ था। मान्‍यता है कि रुद्राक्ष की माला धारण करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। हालांकि, रुद्राक्ष धारण करने के कई नियम भी है, यहां इसके बारे में बताते हैं।
इन्‍हें रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए-
गर्भवती स्त्री-
ज्योतिष के अनुसार गर्भवती महिला को रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। अगर रुद्राक्ष की माला पहले से पहन रखी है तो, गर्भवती होने के बाद इसे उतार देना चाहिए। बच्‍चे के जन्‍म बाद दोबारा रूद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
तामसिक भोजन करने वाले व्यक्ति-
ऐसे व्‍यक्ति तो तामसिक भोजन, यानी शराब और मांस का सेवन करते हैं, उन्हें रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि इससे रुद्राक्ष अपवित्र हो जाता है, जिससे भविष्य में अशुभ परिणाम मिलते हैं।
सोने के दौरान-
सोते समय भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। यदि आप सोने के दौरान तकिए के नीचे रुद्राक्ष रखकर सोते हैं, तो इससे बुरे सपने नहीं आते।
ये हैं नियम-
रुद्राक्ष धारण करने से पहले इसके मूल मंत्र का 9 बार जाप करें।
रुद्राक्ष धारण के बाद मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
शमशान घाट जाने से पूर्व रुद्राक्ष को उतारकर रख देना चाहिए
रुद्राक्ष उतारने के बाद इसे पवित्र स्थान पर ही रखना चाहिए।
रुद्राक्ष की माला का धागा लाल अथवा पीले रंग का होना चाहिए।
महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष पहनने से बचना चाहिए।
अपनी रुद्राक्ष माला को किसी अन्‍य व्‍यक्ति को नहीं देना चाहिए।
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इस बार 29 दिनों का ही होगा सावन माह, 5 सोमवार को रखे जाएंगे व्रत

सनातन धर्म में सावन माह को पवित्र माना गया है। यह माह भगवान शिव को समर्पित है। इस दौरान भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। साथ ही शिवालयों में अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
सावन के प्रत्येक सोमवार को महादेव का रुद्राभिषेक और जलाभिषेक करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। यही वह महीना है, जब कावड़ यात्रा निकाली जाती है और श्रद्धालु पवित्र नदियों के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
पंचांग के अनुसार 21 जुलाई को आषाढ़ माह खत्म होने जा रहा है। इसके बाद 22 जुलाई से सावन माह की शुरुआत होगी। वहीं, 19 अगस्त सावन की पूर्णिमा के साथ यह माह समाप्त हो जाएगा। ऐसे में इस बार सावन 29 दिन का ही रहेगा।
इस बार 5 सावन सोमवार के रखे जाएंगे व्रत-
पहला सावन सोमवार- 22 जुलाई
दूसरा सावन सोमवार- 29 जुलाई
तीसरा सावन सोमवार- 5 अगस्त
चौथा सावन सोमवार- 12 अगस्त
पांचवा सावन सोमवार- 19 अगस्त
4 मंगला गौरी व्रत रखे जाएंगे-
सावन माह में प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत भी रखा जाता है। यह व्रत माता पार्वती को समर्पित है। सुहागिन महिला पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए, तो वहीं कुंवारी युवतियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती है। इस बार चार मंगला गौरी के व्रत रखे जाएंगे।
पहला मंगला गौरी व्रत- 23 जुलाई
दूसरा मंगला गौरी व्रत- 30 जुलाई
चौथा मंगला गौरी व्रत- 6 अगस्त
चौथा मंगला गौरी व्रत- 13 अगस्त

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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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संकष्टी चतुर्थी के दिन इस विधि से करें बप्पा की पूजा

  • सुख-सौभाग्य में होगी वृद्धि
हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली चतुर्थी पर भगवान गणेश के निमित्त व्रत रखा जाता है। चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी संकटों को हरने वाली मानी जाती है। इस व्रत को करने से भी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित महत्वपूर्ण त्योहार है। एक महीने में दो बार चतुर्थी आती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। आइए, जानते हैं कि इस बार संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा किस तरह करनी चाहिए।
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 2024 तिथि-
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 25 जून को रात 1 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी। यह तिथि 25 जून को रात 11 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 25 जून को मनाई जाएगी।
संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात 10.27 बजे के बाद ही होगा। संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र अर्घ्य के बिना पूरा नहीं माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि-
संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
अपने घर के मंदिर को अच्छी तरह साफ करें।
भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें फूल, फल, मिठाई चढ़ाएं।
शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी स्तोत्र या फिर गणेश मंत्र का पाठ करना चाहिए।
धूपबत्ती जलाएं और आरती करें।
गणेश जी को उनकी पसंदीदा चीजों का भोग जरूर लगाएं।
अंत में भगवान गणेश से अपनी मनोकामना कहें।
संकष्टी चतुर्थी महत्व-
ऐसा माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करते समय सच्चे मन से गणेश चालीसा का पाठ किया जाए, तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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