धर्म समाज

इस बार दीपोत्सव पर्व छह दिनों तक चलेगा

  • 29 को धनतेरस और 31 अक्टूबर को दिवाली
इस बार दीपोत्सव पर्व छह दिनों तक चलेगा. त्योहारों की यह श्रृंखला कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष त्रयोदशी या धनत्रस से शुरू होती है और भ्रातृ द्वितीया तक पांच दिनों तक चलती है। लेकिन इस बार ये अद्भुत उत्सव 8 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलेगा.
धनतेरस पर्व 29 अक्टूबर, प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचारी ने बताया कि इस दिन शुभ मुहूर्त में खरीदारी की जा सकती है। कहा जाता है कि धन्त्र के दिन इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, सोना, चांदी, रत्न, आभूषण, टेबलवेयर आदि खरीदकर घर ले जाना बहुत शुभ होता है। ऐसा माना जाता है कि आयुर्वेद के संस्थापक भगवान धन्वंतरि का जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी यानी इसी दिन हुआ था। एच। धनतेरस पर प्रदोष काल में. इसी कारण धनतेरस का पावन पर्व प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी को ही मनाया जाता है।
धनतेरस के बाद छोटी दिवाली मनाई जाती है जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान हनुमान की पूजा करने की परंपरा है। इस साल छोटी दिवाली 30 अक्टूबर को है।
पंचान के अनुसार इस वर्ष महालक्ष्मी पूजा 31 अक्टूबर दिन गुरुवार को होगी। कार्तिक माह की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी पूजा की जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
इस वर्ष ग्वार्दन पूजा 11 नवंबर, शनिवार को होगी। देश के कुछ हिस्सों में इसे अनाकोट के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक उंगली से उठाया था. इस वर्ष बे डॉज रविवार, 3 नवंबर को होगा। बया दोगे में बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं और बदले में भाई बहनों को उपहार देते हैं।
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करवा चौथ पर वृषभ राशि में चंद्रमा की स्थिति बहुत अनुकूल

करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को मनाया जाएगा। करवा चौथ पर चंद्रमा का विशेष महत्व होता है। करवा चौथ का व्रत चंद्रमा के निकलने के बाद ही खोला जाता है। ज्योतिष गणना के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ पर चंद्रमा की स्थिति बेहद अनुकूल रहेगी। चंद्रमा और बृहस्पति वृषभ राशि में एक साथ स्थित होंगे और समाज पर लाभकारी प्रभाव डालेंगे। ज्योतिषी से जानिए करवा चौथ पर चंद्रमा का जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इस साल करवा चौथ पर बृहस्पति और चंद्रमा मिलकर गजकेसरी योग बना रहे हैं। चंद्रमा और बृहस्पति एक साथ वृषभ राशि में रहेंगे. चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च का माना जाता है, जो अक्षत सुहाग के शुभ मांगलिक योग का निर्माण करता है। 19 अक्टूबर 2024 की शाम को चंद्रमा वृषभ राशि में प्रवेश करेगा।
पंडित जी ने आगे बताया कि वृषभ राशि में चंद्रमा की उपस्थिति लोगों के लिए लाभकारी रहेगी। यह मनोवैज्ञानिक रूप से उपयोगी होगा. हालाँकि इस दौरान लोग थोड़े भावुक रहेंगे क्योंकि इससे भावुकता पैदा होती है। लेकिन व्रत के दौरान भावुक होना अच्छा माना जाता है. बृहस्पति वृषभ राशि में वक्री है और चंद्रमा के साथ गजकेसरी योग बना रहा है। यह योग लोगों के लिए लाभकारी परिणाम भी लाएगा।
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रायपुर और बिलासपुर में कब होगा चंद्रोदय, जानिए...टाइम

सुहागिनें अखंड सौभाग्य के लिए करवा चौथ का निर्जला व्रत 20 अक्टूबर को रखेंगी। व्रत पर उच्च का चंद्रमा और रोहिणी नक्षत्र का मंगलकारी संयोग बन रहा है। ज्योतिर्विद् कान्हा जोशी के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 20 अक्टूबर को सुबह 6:46 बजे से 21 अक्टूबर को सुबह 4:16 बजे तक रहेगी। रोहिणी नक्षत्र सुबह 8:31 बजे से लगेगा।
करवा चौथ पूजन मुहूर्त-
चौथ पूजन का मुहूर्त शाम 5:46 से 7:02 बजे तक रहेगा। ज्योतिर्विद् श्रीकांत पोपळेकर के अनुसार इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य अर्पण करने के बाद पूर्ण करती हैं। इस व्रत में अन्न-जल ग्रहण बिना सूर्योदय से रात में चंद्र दर्शन तक किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में इस समय होगा चंद्रोदय-
रायपुर- 7.55 बजे
बिलासपुर- 7.51 बजे
भोपाल- 8.08 बजे
जबलपुर- 7.58 बजे
ग्वालियर- 7.57 बजे
रतलाम- 8. 17 बजे
उज्जैन- 8.04 बजे
खंडवा- 8.16 बजे
खरगोन- 8.21 बजे
रीवा- 7. 48 बजे
सतना- 7.50 बजे
कटनी- 7.54 बजे
करवा चौथ पर गजकेसरी योग-
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की करवा चौथ रविवार को गजकेसरी योग में आ रही है। खास बात यह भी है कि इस दिन ग्रह गोचर में कई प्रमुख ग्रह अपनी श्रेष्ठ स्थिति में रहेंगे। इस प्रकार के योग, नक्षत्र में अखंड सौभाग्य की कामना से चंद्र दर्शन व चौथ माता का पूजन शुभ फल प्रदान करने वाला माना गया है।
चंद्रोदय के समय चंद्र गुरु की युति-
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया वर्षभर की बाहर संकष्टी चतुर्दशी में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की करवा चतुर्थी को सबसे बड़ी चतुर्थी माना गया है। यह चतुर्थी अखंड सौभाग्य व सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली मनी गई है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यथा श्रद्धा व्रत रखती हैं। हालांकि शास्त्रीय महत्व निर्जल, निराहार व्रत रखने का है। इस बार करवाचौथ पर गजकेसरी योग रहेगा। चंद्रोदय के समय चंद्र गुरु की युति रहेगी। वृषभ राशि में चंद्रमा उच्च का रहेगा यह संपूर्ण स्थितियां इस दिन को विशेष शुभ बना रही हैं। इसमें व्रत रखकर पूजा अर्चना करने से सुख व सौभाग्य में वृद्धि होगी।
चौथ माता का पूजन भी इसी दिन-
सामान्यतः लोग करवा चौथ पर चंद्रमा का पूजन कर लेते हैं। किंतु बहुत से लोग यह नहीं जानते की इस दिन चौथ माता का भी पूजन होता है। चौथ माता का पूजन गणपति की पूजन के साथ में किया जाता है। यह चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात्री माता देवी है इनकी पूजन करने से संकट निवृत्ति होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि संकष्टी चौथ पर या संकष्टी चतुर्थी पर ही हम करें।
यदि परिवार में अस्थिरता है या संतुलन प्रभावित है तो ऐसी स्थिति में चौथ माता का पूजन करने से भी पति-पत्नी के मध्य जो वैमनस्य की स्थिति रहती है उस का निराकरण होता है। परिवार में सुख समृद्धि तथा परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों में मधुरता के लिए चौथ माता का पूजन अवश्य करना चाहिए।
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करवा चौथ पूजा के लिए 1 घंटा 16 मिनट का समय शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन करवा चौथ व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है। यह व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है करवा चौथ के दिन महिलाएं कठिन उपवास रखती है और करवा माता की विधिवत पूजा करती है।
करवा चौथ पर दिनभर निर्जला उपवास किया जाता है और शाम के समय सोलह श्रृंगार करके पूजा होती है और व्रत कथा सुनी जाती है। इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा। तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा करवा चौथ व्रत की तारीख और शुभ मुहूर्त व अन्य जानकारियां प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
करवा चौथ की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर दिन रविवार को सुबह 6 बजकर 46 मिनट से आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन 21 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा। करवा चौथ के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर दिन रविवार को शाम 5 बजकर 46 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। इस समय पूजा करना बेहद शुभ रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन अगर शुभ मुहूर्त में पूजा की जाए तो अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
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72 साल बाद करवा चौथ में बन रहे हैं अद्भुत संयोग

  • पति की होगी आर्थिक तरक्की, बिगड़े काम बनेंगे
सनातन धर्म के लोगों के लिए करवा चौथ के व्रत का विशेष महत्व है। ये व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ व्रत का पालन किया जाता है। इस साल करवा चौथ व्रत का पालन 20 अक्टूबर 2024, रविवार के दिन किया जाएगा। इस साल करवा चौथ के दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है। जिनमें गजकेसरी योग, शश योग, महालक्ष्मी, बुधादित्य योग के जैसे राजयोग शामिल हैं। ज्योतिषियों का दावा है कि 72 साल बाद ऐसे योग बन रहे हैं।
ऐसे में इस खास दिन सच्चे मन से देवी-देवताओं की आराधना करना चाहिए। इससे आपके जीवन में चल रही समस्याएं जल्द ही खत्म हो जाएंगी। इसके साथ ही रिश्तों में भी मिठास बनी रहेगी।
ग्रहों का अद्भुत है संयोग-
काशी के ज्योतिषी स्वामी कन्हैया महाराज का कहना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 20 अक्टूबर को बुध और शुक्र दोनो ही ग्रह शुक्र की राशि तुला में हैं। जिससे बुधादित्य योग बन रहा है। इसके अलावा शनि अपनी राशि कुंभ में बैठकर शश योग बना रहे हैं। चंद्रमा और गुरु की युति गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। यह सभी योग से पति की किस्मत चमक जाएगी। ऐसे में इस दिन व्रत और पूजा से न सिर्फ पति की लंबी आयु होगी बल्कि उनके किस्मत के बंद दरवाजे भी खुलेंगे। हर काम में भाग्य का साथ मिलने के कारण समय से जरूरी काम पूरे हो जाएंगे। परिवार वालों के बीच अगर अनबन चल रही है, तो मतभेद दूर होने  की संभावना है।
करवा चौथ व्रत की पूजा का महत्व-
करवा चौथ का व्रत गणेश जी और माता करवा को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश और देवी करवा के अलावा चंद्र देव की उपासना करना भी जरूरी होता है। चंद्र देव को आयु, सुख, समृद्धि और शांति का कारक ग्रह माना जाता है। करवा चौथ के दिन चंद्र देव की पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। साथ ही पति की आयु बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। बता दें कि देश के कई राज्यों में करवा चौथ के व्रत को करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
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शुक्रवार को करें ये छोटे-छोटे उपाय...मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न

आज हम आपको कुछ ऐसे छोटे-छोटे और कारगर उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको करने से कमाई के कई स्रोत आपको प्राप्त हो सकते हैं, इन उपायों को करने से धन की भी आपके जीवन में कोई कमी नहीं रहेगी।
अगर आप अपने जीवन में सुख बनाये रखना चाहते हैं तो इसके लिये आज के दिन बाजार से मां लक्ष्मी की कमल के फूल पर बैठी हुई एक तस्वीर लाएं और अपने मन्दिर में स्थापित करें। इसके बाद देवी मां को सबसे पहले पुष्प अर्पित करें । फिर धूप-दीप आदि से उनकी पूजा करें ।आज के दिन ऐसा करने से आपके जीवन में सुख बना रहेगा।
अगर आप अपने सौभाग्य में बढ़ोतरी करना चाहते हैं तो इसके लिये आज के दिन एक रुपये का सिक्का लें और उसे अपने मन्दिर में मां लक्ष्मी के आगे रख दें । अब सबसे पहले मां लक्ष्मी की उचित प्रकार से पूजा-अर्चना करें। फिर उस सिक्के की भी उसी प्रकार से पूजा करें और आज पूरे दिन उसे मन्दिर में ही रखा रहने दें। अगले दिन उस सिक्के को उठाकर एक लाल कपड़े में बांधकर अपने पास रख लें। आज ये उपाय करने से आपके सौभाग्य में बढ़ोतरी होगी, और कमाई के कई स्रोत भी प्राप्त होंगे।
अगर आप अपना स्वास्थ्य अच्छा बनाये रखना चाहते हैं तो उसके लिये आज के दिन आपको देवी लक्ष्मी के मन्दिर में शंख चढ़ाना चाहिए। साथ ही देवी मां को घी और मखाने का भोग लगाना चाहिए और उनके आगे हाथ जोड़कर अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना करनी चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से आपका स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा।
अगर आप चाहते हैं कि आपके घर की तिजोरियां हमेशा धन से भरी रहें और आपके ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, तो इसके लिये आज के दिन आपको स्नान आदि के बाद एक कटोरी में थोड़ी-सी हल्दी लेनी चाहिए और उसे पानी की सहायता से घोलना चाहिए। अब इस हल्दी से अपने घर के बाहर मेन गेट के दोनों तरफ पहले जमीन पर छोटे-छोटे पैर के चिन्ह बनाएं। फिर गेट के दोनों तरफ दिवार पर एक-एक स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और देवी लक्ष्मी का ध्यान करें। आज के दिन ये उपाय करने से मां लक्ष्मी की कृपा से आपकी तिजोरियां हमेशा धन से भरी रहेंगी।
अगर आप अपने परिवार के सदस्यों की सुख-समृद्धि बरकरार रखना चाहते हैं तो आज के दिन आपको मिट्टी की लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति लेनी चाहिए और उन्हें अपने घर के ईशान कोण में, यानि उत्तर-पूर्व दिशा के कोने में एक लकड़ी की चौकी पर, किसी बर्तन में स्थापित करना चाहिए । फिर उन्हें दूध से स्नान करना चाहिए । इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए । फिर उन मूर्तियों को बर्तन में से निकालकर, कपड़े से पोंछकर अपने मन्दिर में स्थापित करें और बर्तन में पड़े पानी और दूध को पूरे घर में छिड़क दें । इसके बाद देवी मां के आगे घी का दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर प्रणाम करें। आज के दिन ऐसा करने से आपके परिवार की सुख-समृद्धि हमेशा बरकरार रहेगी।
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कार्तिक मास पर इन कार्यों को करने से दूर होती है तकलीफें

सनातन धर्म में वैसे तो हर महीने को महत्वपूर्ण बताया गया है लेकिन कार्तिक मास सबसे अधिक खास होता है। इस माह में कई बड़े पर्व त्योहार मनाए जाते हैं। पंचांग के अनुसार कार्तिक मास हिंदू वर्ष का आठवां महीना होता है इस महीने में भगवान विष्णु लंबे समय के विश्राम के बाद जागते हैं यही वजह है कि कार्तिक मास को धार्मिक नजरिएं से महत्वपूर्ण माना जाता है।
मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की उपासना आराधना करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं साथ ही सुख समृद्धि बढ़ती है। कार्तिक मास में ही दिवाली, धनतेरस, भाई दूज आदि पर्व मनाए जाते हैं। इस साल कार्तिक मास का आरंभ 18 अक्टूबर यानी आज से आरंभ हो चुका है और इसका समापन 15 नवंबर को हो जाएगा। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इस माह से जुड़े जरूरी नियम बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
कार्तिक मास के जरूरी नियम-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में भगवान विष्णु जल में वास करते हैं ऐसे में यह पूरा महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उत्तम है इस महीने रोजाना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा तुलसी पूजा भी इस महीने जरूर करें। सुबह जल अर्पित कर शाम को देसी घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
इस महीने गरीबों और जरूरतमंदों को गर्म वस्त्र, अन्न और धन का दान करना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा रोजाना विधिपूर्वक गीता का पाठ जरूर करें और मंदिर, नदी व तीर्थ स्थान पर दीपक जरूर जलाएं। ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है। कार्तिक माह में भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस पूरे महीने भूलकर भी गलत शब्दों का प्रयोग न करें। तन और मन से शुद्ध रहे। इसके अलावा किसी भी पशु पक्षी को हानि न पहुंचाएं।
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इंदौर में स्थि​त है माता पार्वती का मंदिर, जहां होती है हर मुराद पूरी

भारत में कई ऐसे मंदिर है जो अपने चमत्कारों और आस्था के लिए जाने जाते हैं लेकिन आज हम आपको माता पार्वती का एक ऐसा मंदिर बता रहे हैं जहां दर्शन कर भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और दुख परेशानियां दूर होती है।
माता पार्वती का यह मंदिर मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थि​त है जहां भक्तों द्वारा मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर का नाम पार्वती माता मंदिर है। तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा पार्वती माता मंदिर से जुड़ी बातें बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
पार्वती माता मंदिर इंदौर-
आपको बता दें कि माता का यह मंदिर इंदौर से 50 किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत 3000 फीट उंची पहाड़ी पर स्थित है। इसके चारों ओर घना जंगल है इस मंदिर की मान्यता बहुत दूर दूर तक फैली है। भक्तों को इस मंदिर में माता पार्वती के अलग रूप के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। यहां माता पार्वती को महिषासुर का वध करते हुए देखा जा सकता है।
ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती के इस पावन मंदिर में मांगी जाने वाली सभी मुरादें पूरी हो जाती है साथ ही भक्तों को देवी दर्शन से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जानकारों के अनुसार इस मंदिर में माता की मूर्ति की स्थापना राजा इंद्र ने की थी। देवी पार्वती की अष्टभुजाधारी प्रतिमा करीब पांच फीट उंची है और यह मंदिर करीब 500 साल पुराना भी बताया जाता है। देवी पार्वती का यह मंदिर जाम खुर्द गांव में है।
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कार्तिक मास के जरूरी नियम, भूलकर भी न करें ये काम

  • जानिए...कार्तिक महीने में क्या करें क्या न करें
कार्तिक मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। दरअसल, इस महीने भगवान विष्णु लंबे समय की निंद के बाद जागते हैं। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है। साथ ही इस महीने में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। बता दें कि कार्तिक मास का आरंभ 17 अक्टूबर शाम में 4 बजकर 56 मिनट पर कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तिथि लग जाने से आरंभ हो गया है। जबकि उदया तिथि के अनुसार, 18 अक्टूबर से कार्तिक मास का आरंभ माना जाएगा। कार्तिक मास का समापन कार्तिक पूर्णिमा के साथ 15 नवंबर को होगा। कार्तिक मास के नियम का पालन साथ ही कार्तिक मास में जप तप और पूजा पाठ करने से व्यक्ति को धन धान्य की प्राप्ति भी होती है। इसके अलावा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा भी मिलता है लेकिन, इस महीने में कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। आइए जानते हैं कार्तिक मास में क्या करें क्या न करें।
कार्तिक मास के जरूरी नियम-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में भगवान विष्णु जल में वास करते हैं ऐसे में यह पूरा महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उत्तम है इस महीने रोजाना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा तुलसी पूजा भी इस महीने जरूर करें। सुबह जल अर्पित कर शाम को देसी घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस महीने गरीबों और जरूरतमंदों को गर्म वस्त्र, अन्न और धन का दान करना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा रोजाना विधिपूर्वक गीता का पाठ जरूर करें और मंदिर, नदी व तीर्थ स्थान पर दीपक जरूर जलाएं। ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है। कार्तिक माह में भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस पूरे महीने भूलकर भी गलत शब्दों का प्रयोग न करें। तन और मन से शुद्ध रहे। इसके अलावा किसी भी पशु पक्षी को हानि न पहुंचाएं।
कार्तिक मास में क्या करें क्या न करें, कार्तिक मास के नियम-
1) कार्तिक मास में गरीबों को चावल का दान करना चाहिए। ऐसा करने से चंद्र दोष दूर होता है साथ ही चंद्रमा ग्रह शुभ फल देता है।
2) कार्तिक मास में दीप दान करने का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि कार्तिक मास में किसी पवित्र नदी, पोखर, तालाब आदि के पास जाकर घी का दीपदान करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को पुण्य मिलता है।
3) कार्तिक मास में तुलसी पूजन का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में रोजाना सुबह शाम तुलसी में घी का दीपक जलाना चाहिए। साथ ही इस महीने में तुलसी का सेवन करना भी शुभ माना जाता है।
4) कार्तिक मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। कार्तिक मास में आप सिर्फ नरक चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर ही आप तेल अपने शरीर पर लगा सकते हैं। बाकी दिन भूलकर भी शरीर पर तेल न लगाएं।
5) कार्तिक मास में भूमि पर सोना चाहिए। दरअसल, भूमि पर सोने से व्यक्ति के मन में सात्विकता आती है।
6) कार्तिक मास में भूलकर भी उड़द,, मूंग की दाल, मसूर की दाल, चना दाल, मटर आदि नहीं खाना चाहिए। साथ ही इस महीने भूलकर भी मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
7) कार्तिक मास को शास्त्रों में बहुत ही पवित्र माना गया है। कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यदि पति पत्नी ऐसा नहीं करते हैं तो दोष लगता है। साथ ही व्यक्ति को अशुभ फल प्राप्त होता है।
8) कार्तिक मास में रोजाना गुड़ का सेवन करना चाहिए। साथ ही इस महीने गुड़ का दान करना भी बहुत उत्तम माना जाता है। इसके अलावा कार्तिक में बैंगन और करेला खाना मना बताया गया है।
 
 
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शनिवार को करें लौंग का ये उपाय, घरेलू परेशानियां होंगी दूर

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिवार को लौंग डालकर दीपक जलाने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और आपकी फूटी किस्मत में सुधार हो सकता है. उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि लौंग को देवी-देवताओं के लिए विशेष रूप से प्रिय माना जाता है. इसे जलाने से न केवल शनि देव प्रसन्न होते हैं, बल्कि यह आपके स्वास्थ्य और धन में भी सुधार ला सकता है. लौंग में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो मानसिक तनाव और नकारात्मकता को दूर करने में मदद करते हैं.
दीपक जलाते समय क्या करें-
दीपक जलाते समय, यह ध्यान रखें कि दीपक का स्थान स्वच्छ और पवित्र हो. आप शनिवार की रात दीपक जलाने का सोचते हैं, तो सबसे पहले दीपक को अच्छे से साफ करें और उसमें 2-3 लौंग डालें. फिर उसमें सरसों का तेल या घी डालकर दीपक को जलाएं. दीपक जलाते समय, अपने मन में सकारात्मक विचारों और इच्छाओं को रखें. लौंग का जलते दीपक में होना आपके चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे बुरे प्रभाव कम होते हैं और आपके जीवन में सुख-समृद्धि आती है|
यदि आप शनिवार को शनि देव की विशेष पूजा करना चाहते हैं, तो लौंग के साथ कुछ अन्य सामग्री जैसे काले तिल, काले चने और गुड़ भी दीपक में डाल सकते हैं. ये सभी सामग्री शनि देव को प्रसन्न करने में सहायक होती हैं. इसके अलावा, लौंग की खुशबू आपके आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है ध्यान दें कि दीपक जलाते समय आपकी मनोदशा सकारात्मक हो. यदि आप किसी विशेष इच्छा या समस्या का समाधान चाह रहे हैं, तो उसे अपने मन में स्पष्ट रूप से रखें. ऐसा करने से लौंग और दीपक की ज्योति आपके उद्देश्य को और बल देगी|
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कार्तिक मास-2024 व्रत कथा : प्रथम दिन पढ़ें यह व्रत कथा

पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के साथ आरंभ हो जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा. इस साल कार्तिक मास के पहले दिन की तिथि 17 अक्टूबर दिन गुरुवार को शाम 4 बजकर 56 मिनट पर शुरू हो रही है. ऐसे में तिथि के अनुसार, कार्तिक माह 17 अक्टूबर से शुरू होगा, लेकिन उदयातिथिके अनुसार, कार्तिक माह 18 अक्टूबर दिन शुक्रवार से शुरू माना जाएगा| ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में वस्त्र, अन्न और धन दान करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. साथ ही इस दिन माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने से धनागमन होता है. इसलिए इस पूर्णिमा का महत्व अधिक बढ़ जाता है. इस दिन अक्षत और तिल का दान करना शुभ माना गया है. कार्तिक मास में भगवान कृष्ण की कथा सुनना बहुत ही शुभ माना जाता है. इसलिए कार्तिक मास के पहले दिन ये व्रत कथा भी जरूर पढ़ें |
कार्तिक मास के पहले दिन पढ़ें ये व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवर्षि नारद श्रीकृष्ण से मन्त्रणा करके चले गए, तब हर्ष से गदगद होकर सत्यभामा ने अपने पति श्रीकृष्ण से कहा-हे स्वामि! मैं धन्य हूं, मेरा सफल जीवन धन्य है, मैं अपने को कृतकृत्य समझती हूं, मेरे जन्मदाता वे माता-पिता भी धन्य हैं. क्योंकि उन्होंने निःसंदेह त्रैलोक्यसुन्दरी मुझ सत्यभामा को जन्म दिया है. इस सुन्दरता का ही प्रभाव है कि आपकी सोलह हजार स्त्रियों के रहते हुए भी मैं आपको विशेष प्रिय हूं. केवल इसी के लिए मैंने कल्पवृक्ष के साथ आदिपुरुष आपको विधिपूर्वक संकल्प कर नारद के लिए उस समय समर्पित कर दिया था, जब संसार के लोग कल्पवृक्ष का नाम तक नहीं जानते थे, वहीं कल्पवृक्ष उस समय से मेरे आंगन में लगा हुआ है.
हे मधुसूदन ! तीनों लोकों के स्वामी भगवान् लक्ष्मीपति की मैं अतिशय प्रियतमा हूं, इसलिए मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छा करती हूं. यदि आप चाहते हैं तो मेरे प्रश्न का उत्तर विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, जिसे सुनकर मैं अपना कल्याण करूं. (मुझे वह उपाय बताइए) जिससे कल्पपर्यन्त भी मेरा एवं आपका वियोग कदापि न हो.
श्री सूतजी ने कहा कि इस प्रकार अपनी प्रियतमा सत्यभामा की बातें सुनकर श्रीकृष्णजी मन्द-मन्द मुसकाने लगे. सत्यभामा का हाथ अपने हाथ में लेकर हास-परिहास के साथ कल्पवृक्ष के नीचे पहुंचे और उस स्थान से सब सेवकों को हटा दिया. सत्यभामा की ओर देखकर हंसे, साथ ही पूछा कि (‘क्या वह उपाय सुनोगी?’) सत्यभामा भगवान के इस अनुराग को देखकर सन्तुष्ट और पुलकित हो गईं और कृष्णचन्द्रजी भी सत्यभामा को देखकर गद्गद् हो गए. श्री भगवान् ने कहा- कि हे देवि! वास्तव में इन सोलह हजार स्त्रियों के रहते हुए भी तुम मुझे प्राण के तुल्य प्यारी हो. तुम्हारे लिए (तुम्हारी कल्पवृक्षवाली जिद रखने के लिए) देवताओं के साथ इन्द्र से भी लड़ गया था.
हे प्यारी! जो तुम पूछना चाहती हो तो वह बड़ी ही अद्भुत बात है. तुम्हें मैं जो किसी को न देने वाली (बहुमूल्य) वस्तु को भी दे देता हूं, न करने वाला काम भी करता हूं, छिपाने वाली बात भी कह देता हूं तो फिर मुझसे पूछने की आवश्यकता ही क्यों थी ? तुम्हारे मन में जो प्रश्न हो पूछो, मैं कहूंगा. सत्यभामा ने कहा-हे नाथ ! मैंने पूर्वजन्म में कौन-सा दान, व्रत अथवा तपस्या की थी जिसके प्रभाव से मैं संसार में पैदा होकर भी संसार की बाधाओं से मुक्त हूं और आपकी अर्द्धाङ्गिनी हूं. सर्वदा गरुड़ पर सवारी करती हूं, आपके साथ इन्द्रादिक देवताओं के यहां आपके जाने पर आपके साथ मैं भी जाती हूं.
यही मैं पूछती हूं कि मैंने उस जन्म में कौन-सा शुभ कर्म किया है ? पूर्वजन्म में मैं कौन थी, मेरा कैसा स्वभाव था और मैं किसकी पुत्री थी ? श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कहा, हे प्रिये ! तुम सावधान होकर सुनो-मैं तुम्हारे पूर्वजन्म की कथा कहता हूं, उस जन्म में तुमने जिस पवित्र व्रत को किया था सो बतलाता हूं. जबकि सतयुग का अन्त हो रहा था, उस समय मायापुरी में एक अत्रिगोत्र वाला देवशर्मा नामक ब्राह्मण निवास करता था. वह समस्त वेदों तथा वेदाङ्गों में पारंगत, अतिथिपूजक, अग्निहोत्री तथा सूर्यनारायण का व्रत करता था. सर्वदा सूर्यदेव की उपासना करने के कारण वह दूसरे सूर्य की भांति देदीप्यमान था. उसको वृद्धावस्था में गुणवती नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई. देवशर्मा को उस पुत्री के अतिरिक्त कोई सन्तान नहीं थी. उसने अपनी पुत्री का विवाह अपने एक शिष्य चन्द्र के साथ कर दिया. पुत्रविहीन देवशर्मा अपने शिष्य चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानते थे और जितेन्द्रिय चन्द्र भी देवशर्मा को अपने पिता के सदृश समझता था.
एक दिन चन्द्र और देवशर्मा दोनों कुश और समिधा लाने के लिए वन में गए और इधर-उधर घूमते-घूमते हिमालय के समीप एक उपवन में पहुंच गए. तब उन्होंने एक विकराल राक्षस को अपनी ओर आते हुए देखा. उसे देखकर ये दोनों भय से व्याकुल हो गए. शरीर के अंग शिथिल हो गए और वे भागने में असमर्थ हो गए. यमस्वरूप उस राक्षस ने उन दोनों को मार डाला. हमारे गणों ने उस क्षेत्र के प्रभाव और उन दोनों के धार्मिक स्वभाव के कारण उन दोनों को बैकुण्ठधाम में पहुंचाया. जीवन भर उन दोनों ने जो सूर्यदेव का आराधन किया था, उसी से मैं उन पर बहुत प्रसन्न था.
हे प्रिये! शैव, सूर्योपासक, गणेश के पूजक, वैष्णव और शक्ति के पूजक, जैसे वर्षा का पानी समुद्र में गिरता है, उसी भांति ये सब अन्त में मेरे ही समीप आते हैं. अकेला मैं ही नाम और क्रिया के भेद से पांच रूपों में विभक्त हूं. जैसे किसी का नाम देवदत्त है, वही देवदत्त किसी का बाप है, किसी का पुत्र है, किसी का भाई है और किसी का भतीजा है. लेकिन वास्तव में यह देवदत्त एक ही है. अस्तु, सूर्य के समान तेजस्वी वे दोनों मेरे बैकुण्ठ में आकर रहने लगे. विमान पर यात्रा करते थे, उनका मेरे समान रूप था, वे मेरे ही समीप रहते थे और उनके शरीर में दिव्य चन्दन लगा रहता था.
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शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है रौशनी

  • जानिए...शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व-
आज 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है. धार्मिक ग्रंथों में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और अपनी सभी 16 कलाओं में होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के बाद शरद पूर्णिमा मनाई जाती है।
शरद पूर्णिमा को कोजोगर और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस बार पंचांग भेद और तिथियों के घटने-बढ़ने के कारण अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा दो दिन की होगी। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा तिथि, पूजा शुभ समय और महत्व।
शरद पूर्णिमा 2024 तिथि और शुभ समय-
तिथियों के घटने और बढ़ने के कारण इस वर्ष शरद पूर्णिमा तिथि दो दिन यानी 16 और 17 अक्टूबर को रहेगी। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार आश्विन मास की शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर की रात करीब 8 बजे से शुरू होगी. जो 17 अक्टूबर शाम 5 बजे तक रहेगा. हालांकि शरद पूर्णिमा का त्योहार रात में ही मनाया जाता है इसलिए यह त्योहार 16 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। 17 अक्टूबर को शाम 5 बजे के बाद नया हिंदू माह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा शुरू हो जाएगा। शरद पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय शाम करीब 5 बजे रहेगा।
शरद पूर्णिमा पर रवि योग बनेगा-
इस साल शरद पूर्णिमा पर रवि योग का शुभ संयोग बनेगा। वैदिक ज्योतिष में रवि योग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह रवि योग सुबह 06:23 बजे से शाम 07:18 बजे तक रहेगा.
शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व-
शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान है। इस दिन खीर को खुली हवा में रखने और फिर अगले दिन सुबह उसका सेवन करने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। शास्त्रों में चंद्रमा की किरणों को अमृत माना गया है, इसलिए शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, जिसमें औषधीय गुण होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों के औषधीय गुणों से कई रोग दूर हो जाते हैं और मन प्रसन्न रहता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों से पूछती हैं कि कौन जाग रहा है। इस कारण इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर पूजा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रि में गोपियों के साथ वृन्दावन में महारास रचाया था।
पूजा एवं स्नान का महत्व-
शरद पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करता है उस पर भगवान की विशेष कृपा होती है। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। शरद पूर्णिमा के दिन सुबह सूर्य की पूजा करें और रात को चंद्रमा की पूजा करें, इसके साथ ही रात को षोडशोपचार विधि से लक्ष्मी जी की पूजा करें, श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्रोत, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें। इससे मां लक्ष्मी आपका घर धन-धान्य से भर देंगी।
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कब मनाएं दिवाली...31 अक्टूबर या 1 नवंबर?

  • विद्वानों ने की बड़ी घोषणा...
पर्व-त्योहारों को लेकर पिछले कुछ वर्षों से आ रहे मतभेद पर काशी के पंचांग और ज्योतिष के विद्वान एक मंच पर आए हैं। बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मंगलवार को आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान काशी के विद्वानों ने यह घोषणा की कि पूरे देश में दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि भ्रम की स्थिति धर्मशास्त्रत्त् के ग्रंथों का पूर्वापर संबंध स्थापित कर अध्ययन न करने से बनी है। तिथि निर्णय के पीछे उन्होंने धर्मशास्त्रत्तें के अनुसार तर्क भी दिए। बीएचयू से प्रकाशित विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि शास्त्रत्तें में दीपावली के लिए मुख्यकाल प्रदोष में अमावस्या का होना जरूरी माना गया है।
वक्ताओं ने बताया कि इस वर्ष प्रदोष (2 घंटे 24 मिनट) और निशीथ (अर्धरात्रि) में अमावस्या 31 अक्टूबर को पड़ रही है, इसलिए 31 को ही दीपावली मनाना शास्त्रत्त्सम्मत है। देश के किसी भी भाग में 1 नवंबर को पूर्ण प्रदोष काल में अमावस्या की प्राप्ति नहीं है, अत 1 नवम्बर को किसी भी मत से दीपावली मनाना शास्त्रत्तेचित नहीं है। 2024 में पारम्परिक गणित द्वारा निर्मित पंचांगों में कोई भेद नहीं है, क्योंकि उन सभी के अनुसार अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के पहले होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त भी हो जा रही है। इससे देश के सभी भागों में पारंपरिक सिद्धांतों से निर्मित पंचांगों के अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाया जाना निर्विवाद रूप में एक मत से सिद्ध है।
दृश्य गणित से साधित पंचांगों के अनुसार देश के कुछ भागों में तो अमावस्या 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के पहले आरंभ होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के बाद एक घटी से पहले ही समाप्त हो जा रही है, जिससे उन क्षेत्रों में भी दीपावली को लेकर कोई भेद शास्त्रत्तीय विधि से नहीं है।
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करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को, रखें इन बातों का ध्यान

  • इस शुभ मुहूर्त में बनाएं सरगी
सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन करवा चौथ व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है। यह व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है करवा चौथ के दिन महिलाएं कठिन उपवास रखती है और करवा माता की विधिवत पूजा करती है।
करवा चौथ पर दिनभर निर्जला उपवास किया जाता है और शाम के समय सोलह श्रृंगार करके पूजा होती है और व्रत कथा सुनी जाती है। इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर दिन रविवार को किया जाएगा। इस दिन 21 मिनट के लिए भद्रा लग रही है ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाओं को किन कार्यों को नहीं करना चाहिए तो आइए जानते हैं।
इस शुभ मुहूर्त में बनाएं सरगी-
करवा चौथ के दिन सरगी थाली की सामग्री का सेवन ब्रह्म मुहूर्त में करना चाहिए। माना जाता है कि इस दौरान देवी-देवता पृथ्वी पर विचरण करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इस दौरान हम जो कुछ भी खाते हैं वह हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा लाता है। पंचांग समाचार पत्र के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 19 अक्टूबर को शाम 6:16 बजे शुरू हो रही है। वहीं, इसका समापन 29 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर होगा. ऐसे में करवा चौथ लगभग 28 अक्टूबर को मनाया जाएगा.
करवा चौथ पर न करें ये काम-
करवा चौथ का पर्व अखंड सौभाग्य का त्योहार होता है ऐसे में इस दिन महिलाएं भूलकर भी काले, नीले, भूरे और सफेद रंग के वस्त्र ना धारण करें। इन रंगों को अशुभ माना जाता है मान्यता है कि इन रंगों को करवा चौथ पर धारण करने से जीवन में नकारात्मकता प्रभावित होती है और तनाव बढ़ता है।
इसके अलावा करवा चौथ के दिन पति पत्नी को एक दूसरे से वाद विवाद या फिर बहस भी नहीं करना चाहिए वरना वैवाहिक जीवन में कड़वाहट बनी रहती है और परेशानियां झेलनी पड़ती है। करवा चौथ पर घर आए गरीब को खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए बल्कि उसे कुछ न कुछ दान जरूर करें। ऐसा करने से देवी प्रसन्न होकर कृपा करती हैं।

 

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शरद पूर्णिमा आज, ऐसे करें पूजा

  • पूजा करते समय पढ़ें यह कथा...
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में एक बार आती है लेकिन शरद पूर्णिमा सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है जो कि माता लक्ष्मी की साधना आराधना को समर्पित दिन होता है इस दिन देवी साधना उत्तम फल प्रदान करती है और दुख संकट को दूर कर देती है।
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा धरती के सबसे अधिक करीब होता है और अमृत वर्षा करता हैं। इस साल शरद पूर्णिमा आज 16 अक्टूबर बुधवार को मनाई जा रही है इस दिन माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा कर श्री कनकधारा स्तोत्र का पाठ जरूर करें माना जाता है कि ऐसा करने से देवी प्रसन्न होकर कृपा करती हैं और भक्तों को सफलता व धन संपदा का आशीर्वाद देती हैं।
शरद पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा-
आपको बता दें कि शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके साफ वस्त्रों को धारण करें। अब तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प और अक्षत मिलाएं इसके बाद भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें अब घर के मंदिर में एक चौकी रखें उस पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अब देवी मां को लाल पुष्प, फल, सुपारी, लौंग, इलायची, सिंदूर, बताशा और अक्षत अर्पित करें इसके साथ ही माता को चावल से बनी खीर का भोग लगाए। इसके बाद देवी के मंत्रों का जाप कर माता की आरती करें। अब शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्र देव को जल अर्पित करें साथ ही मंत्रों का जाप करें। फिर चांद की रोशनी में खीर रखें अगले दिन पूजा करने के बाद उसी खीर का प्रसाद ग्रहण करें।
शरद पूर्णिमा की पूजा करते समय पढ़ें यह कथा-
शरद पूर्णिमा तिथि पर, चंद्रमा देवता की पूजा की जाती है, जो आत्मा के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। शरद पूर्णिमा पर भक्त भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। अगर आप मनोवांछित फल पाना चाहते हैं तो शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु की पूजा भी करें। पूजा के दौरान पढ़ें ये छोटी सी कहानी- सनत शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में एक व्यापारी की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों ही धार्मिक स्वभाव के थे। धार्मिक गतिविधियों में उनकी विशेष रुचि थी। वह प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा करता था। वह पूर्णिमा का व्रत भी करता था। भगवान विष्णु की कृपा से दोनों का विवाह एक उच्च जाति के परिवार में हो गया। इसके बाद पूर्णिमा में भी दोनों रेसर अच्छा प्रदर्शन करते रहे। लेकिन दूसरी बेटी पूरा व्रत नहीं रख सकी. इसलिए वह रात को खाना खाते हैं. इस कारण व्रत के सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हो सके। वहीं प्रताप के व्रत के पुण्य से बड़ी पुत्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उसके बाद तीव्र गति से पूर्णिमा व्रत करने से मेरी दूसरी पुत्री भी जन्मी। हालाँकि, बच्चे अधिक समय तक जीवित नहीं रहे। एक बार की बात है, दूसरी बेटी अपने बच्चे के खोने का शोक मना रही थी। तभी उसकी बड़ी बहन आ गयी. इस समय वह अपने पुत्र के लिये शोक मना रहा था। उसी समय, मेरी बहन के बेटे ने उसके कपड़ों को छुआ और वह जीवित हो उठी। जब मेरी बहन ने यह देखा तो वह इतनी खुश हुई कि वह खुशी से रोने लगी। तब मेरी बहन ने तुरंत पूर्णिमा की महिमा के बारे में बताया। तब से, लेंट रीति-रिवाजों के अनुसार, मेरी बहन ने पूर्णिमा देखी। उन्होंने दूसरों को उपवास करने के लिए प्रोत्साहित किया। तब से, लोग पूर्णिमा के दिन उपवास करते आ रहे हैं। शरद पूर्णिमा का एक त्वरित व्रत आपकी कुंडली में चंद्रमा को मजबूत बना देगा। कुंडली में चंद्रमा के मजबूत होने से व्यक्ति हर काम में सफल होगा।
 
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CM विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों को शरद पूर्णिमा की दी शुभकामनाएं

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों को शरद पूर्णिमा की बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। इस अवसर पर उन्होंने सब के जीवन में सुख, समृद्धि, खुशहाली और आरोग्य की कामना की है।
श्री साय ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इन शुभ कार्यों को करने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति का वास होता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस पर्व की रात को चंद्रमा के प्रकाश में रखी खीर खाने का महत्व बताया गया है।
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कार्तिक माह की शुरुआत 18 अक्टूबर से

हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीना आठवां महीना होता है। इस महीने में भगवान विष्णु लंबे विश्राम के बाद जागते हैं। इसी कारण से कार्तिक माह (कार्तिक माह 2024 की आरंभ तिथि) को धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। सुख-समृद्धि भी बढ़ती है। आइए इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कार्तिक माह कब शुरू होता है और इसके नियम क्या हैं। कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की शुरुआत 18 अक्टूबर से हो रही है। इसके अलावा, यह अगले महीने यानी 15 नवंबर को समाप्त हो रहा है।
इस माह में प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इन्हें कार्तिक स्नान भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। इस महीने में भजन कीर्तन, दीपदान और तुलसी के पौधे की पूजा भी शुभ मानी जाती है। कार्तिक माह में करवा चौथ, दिवाली, भाई दूज और कई अन्य त्योहार मनाए जाते हैं।
मान्यता है कि कार्तिक मास में श्रीहरि जल में निवास करते हैं। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए कार्तिक माह को शुभ माना जाता है।
इस माह में प्रतिदिन श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
तुलसी के पौधे की पूजा करें और सुबह-शाम देसी घी का दीपक जलाएं।
इसके अलावा श्राद्ध के अनुसार गरीब लोगों को गर्म कपड़े, भोजन और पैसे बांटना भी फलदायी साबित होता है।
नियमित रूप से गीता का पाठ करें और मंदिरों, नदियों और तीर्थ स्थानों पर दीपक जलाएं।
कार्तिक माह में तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
किसी से बात करते समय गलत शब्दों का प्रयोग न करें।
अपने शरीर और मन को साफ रखें.
पशु-पक्षियों को नुकसान न पहुंचाएं.
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आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने अष्टमी पर करें चमत्कारी मंत्र का जाप

देशभर में शारदीय नवरात्रि की धूम है इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग अलग स्वरूपों की साधना आराधना की जा रही हैं ऐसे में आज नवरात्रि का आठवां दिन है जो कि मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा अर्चना को समर्पित है।
इस दिन भक्त देवी मां महागौरी की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि महागौरी की पूजा करने से सुख समृद्धि का प्रवेश घर और जीवन में होता है साथ ही दुख मुसीबतें दूर हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महागौरी भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। शिव और शक्ति का मिलन ही संपूर्णता है।
मान्यता है कि नवरात्रि के अष्टमी पर महागौरी की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और माता के आशीर्वाद से सुख शांति और समृद्धि आती है इसके अलावा कुंवारी कन्याएं महागौरी की पूजा करके मनचाहा वर प्राप्त कर सकती हैं। ऐसे में अगर आप माता महागौरी को प्रसन्न कर आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आज पूजा के दौरान राशि अनुसार देवी मंत्रों का जाप जरूर करें माना जाता है कि ऐसा करने से आर्थिक परेशानियां दूर हो जाती हैं और धन लाभ मिलता है।
राशि अनुसार करें मां महागौरी के मंत्र का जाप-
मेष राशि के जातक अष्टमी तिथि पर पूजा के समय 'ॐ भद्रायै नमः' मंत्र का जप करें।
वृषभ राशि के जातक मां दुर्गा की कृपा पाने हेतु 'ॐ जयायै नमः' मंत्र का जप करें।
मिथुन राशि के जातक महाष्टमी पर पूजा के समय 'ॐ गौर्यै नमः' मंत्र का जप करें।
कर्क राशि के जातक मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए 'ॐ वैष्णव्यै नमः' मंत्र का जप करें।
सिंह राशि के जातक मां गौरी को प्रसन्न करने के लिए 'ॐ मायायै नमः' मंत्र का जप करें।
कन्या राशि के जातक नवरात्र की अष्टमी तिथि पर 'ॐ चण्डयै नमः' मंत्र का जप करें।
तुला राशि के मां दुर्गा की पूजा करते समय 'ॐ शिवायै नमः' मंत्र का एक माला जप करें।
वृश्चिक राशि के जातक शारदीय नवरात्र की अष्टमी पर 'ॐ गिरिजायै नमः' मंत्र का जप करें।
धनु राशि के जातक अष्टमी और नवमी तिथि पर 'ॐ अंबिकायै नमः' मंत्र का जप करें।
मकर राशि के जातक राशि मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए 'ॐ तारायै नमः' मंत्र का जप करें।
कुंभ राशि के जातक मां महामाया को प्रसन्न करने हेतु 'ॐ हंसायै नमः' मंत्र का जप करें।
मीन राशि के जातक मां जगदंबा की कृपा पाने के लिए 'ॐ ललितायै नमः' मंत्र का जप करें।
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