धर्म समाज

बकरीद आज, जानिए...ईद-उल-अजहा का महत्व और इतिहास

बकरीद को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार हज यात्रा के अंत में मनाया जाता है, जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है। बकरीद हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जिसमें त्याग, सच्चाई और मानवता की भावना हो। इस दिन, मुसलमान उस ऐतिहासिक घटना की याद में कुर्बानी की रस्म निभाते हैं जब पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हुए थे। यह त्योहार हमें संदेश देता है कि सच्ची भक्ति अल्लाह की राह में खुद को समर्पित करना है।
बकरीद 2025 में कब मनाई जाएगी-
इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होता है, इसलिए त्योहारों की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस बार सऊदी अरब में 27 मई को जिल-हिज्जा का चांद दिखाई दिया, जिसके अनुसार वहां बकरीद 6 जून को मनाई जा रही है। भारत में यह पर्व 7 जून, शनिवार को मनाया जाएगा। यह दिन इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को आता है, जिसे हज का अंतिम और सबसे पुण्यदायक दिन माना जाता है।
बकरीद का इतिहास-
बकरीद का मूल भाव पैगंबर इब्राहिम की उस परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का निश्चय किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार पैगंबर इब्राहीम को एक रात सपना आया, जिसमें उन्हें अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी देने को कहा गया। उन्होंने इसे अल्लाह की आज्ञा मानकर पालन किया और अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए निकल पड़े। जब उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांधी और बलिदान देने लगे, तब अल्लाह ने उनकी परीक्षा को सफल मानते हुए इस्माइल को बचा लिया और उसकी जगह एक मेंढ़ा (भेड़) भेज दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सच्चे दिल से की गई भक्ति और समर्पण को अल्लाह स्वीकार करता है।
बकरीद का महत्व-
बकरीद केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्म-त्याग, सच्चे इरादों और इंसानियत की शिक्षा देने वाला पर्व है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अल्लाह पर विश्वास बनाए रखते हुए दूसरों की मदद करना और अपने स्वार्थ को त्यागना ही असली धर्म है।
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डिप्टी सीएम अरुण साव ने श्री द्वारिकाधीश मंदिर के दर्शन किए

रायपुर/गुजरात। डिप्टी सीएम अरुण साव ने श्री द्वारिकाधीश मंदिर के दर्शन किए। x पोस्ट में डिप्टी सीएम अरुण साव ने बताया, आज धार्मिक नगरी द्वारका स्थित श्री द्वारिकाधीश मंदिर में सहपरिवार दर्शन-पूजन करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान श्रीकृष्ण जी के दिव्य दर्शन ने मन, मस्तिष्क व आत्मा को अद्भुत शांति एवं ऊर्जा से भर दिया। यह अनुभव जीवनभर स्मरणीय रहेगा।
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राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों चुना गया 5 जून का दिन...जानिए

अयोध्या में 3 जून से धार्मिक उत्सव का माहौल है। वैदिक मंत्रों, हवन, रामरक्षा स्तोत्र के साथ ही भजन-कीर्तन की गूंज से अयोध्या की हवा में आध्यात्मिक ऊर्जा बह रही है। दरअसल 5 जून को राम मंदिर में श्रीराम दरबार के साथ ही 6 अन्य मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्राण प्रतिष्ठा से पहले 3 जून से ही मंत्रों का जप और हवन आदि शुरू हो चुके थे। वहीं प्राण प्रतिष्ठा 5 जून को शुभ मुहूर्त में की गई।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों चुना गया 5 जून का दिन-
हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है। श्रीराम दरबार और 6 मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा से पहले भी शुभ मुहूर्त देखा गया था। सूत्रों के अनुसार, राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त कांची कामकोटि के शंकराचार्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती ने निकाला था। उनके अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, साथ ही इस दिन रामेश्वरम मंदिर की स्थापना भी हुई थी। इसलिए राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने इस दिन को बेहद शुभ माना है।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए 15 मिनट का समय-
प्राण प्रतिष्ठा के लिए कुछ मिनटों का समय ही निकाला गया था। प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत सुबह 11 बजकर 25 मिनट से हुई और 11 बजकर 40 मिनट तक यह शुभ कार्य किया गया। 15 मिनट की अवधि में ही सभी मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न किया गया। अयोध्या और काशी के 101 आचार्यों ने मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ मंगल कार्य संपन्न किया। वहीं पूजा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे।
भगवान राम के बालरूप की हो चुकी है प्राण प्रतिष्ठा-
आपके बता दें कि श्रीराम के बालरूप की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को हुई थी। वहीं 5 जून को भगवान राम को राजा के रूप में दरबार में स्थापित किया गया। भव्य राम मंदिर के पहले तल पर राजा राम का दरबार सजाया गया है। वहीं 5 जून को राम दरबार में भगवान राम और माता सीता की मूर्ति को 2 फुट ऊंचे सफेद संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित किया गया है। उनके साथ ही भगवान हनुमान और लक्ष्मण की मूर्ति भी बैठी हुई मुद्रा में विराजमान है।
राम दरबार में स्थापित हुईं इनकी मूर्तियां-
राम दरबार में भगवान राम की राजा के रूप में मूर्ति स्थापित हुई। इसके साथ ही उनके दरबार में माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और बजरंगबली भी विराजमान रहेंगे।
इनकी मंदिरों में हुई प्राण प्रतिष्ठा-
राम मंदिर परिसर में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही गणपति, हनुमान जी, सूर्य देव, अन्नपूर्णा, शिवलिंग, शेषावतार आदि के मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा प्रमुख हैं। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 3 जून से शुरू हो चुका था प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी यह कार्यक्रम दोपहर लगभग 3 बजे तक चलेगा।
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निर्जला एकादशी पर बनेगा साल का सबसे बड़ा राजयोग

  • इन राशियों को मिलेगी अपार समृद्धि
एकादशी को भगवान विष्णु की उपासना का दिन माना गया है और इसे शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक भी कहा जाता है। विशेषकर निर्जला एकादशी को सबसे कठिन और पवित्र व्रत माना जाता है क्योंकि इस दिन पानी भी नहीं पीया जाता। यही वजह है कि यह व्रत सभी एकादशियों में सर्वोच्च स्थान रखता है। इसका नाम निर्जला इसलिए पड़ा क्योंकि इस व्रत में व्यक्ति को पूरी तरह से निर्जली अर्थात बिना पानी के व्रत रखना होता है। इस व्रत को रखने से शारीरिक और मानसिक रूप से शक्ति और पवित्रता मिलती है। कहा जाता है कि जो इस व्रत को बिना किसी उपवास तोड़े रखते हैं, उन्हें संपूर्ण वर्ष के सारे व्रतों का फल मिलता है। साल 2025 की निर्जला एकादशी पर एक शक्तिशाली राजयोग बन रहा है। इस दिन बुध ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।
वृषभ राशि
वृषभ राशि वाले इस वर्ष आर्थिक दृष्टि से मजबूत स्थिति में रहेंगे। उनके पुराने कष्ट दूर होंगे और निवेश व व्यापार में अच्छी सफलता मिलेगी। उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और पारिवारिक सुख भी प्राप्त होगा। पुराने कर्ज़ या आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलेगी। व्यापार, नौकरी या निवेश में लाभ होगा। यह राशि धैर्य और स्थिरता की प्रतीक है, जिससे उनका धन धीरे-धीरे बढ़ेगा।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए यह समय नई शुरुआत और सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगा। उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, साथ ही मनचाही नौकरी या व्यापारिक अवसर मिलेंगे। पारिवारिक जीवन में सुख और शांति आएगी। नई योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने का मौका मिलेगा।
सिंह राशि के लोगों पर इस राजयोग का विशेष प्रभाव पड़ेगा। उनकी रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता निखरेगी, जिससे उन्हें सामाजिक मान-सम्मान और धन दोनों में वृद्धि होगी। सेहत को लेकर यदि कोई समस्या थी वो ठीक हो जाएगी।
मकर राशि
मकर राशि वाले कार्यक्षेत्र में उन्नति पाएंगे। निवेश के अच्छे मौके मिलेंगे, साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।पुराने वित्तीय बाधाएं हटेंगी और निवेश के अच्छे मौके मिलेंगे।
कुंभ राशि
कुंभ राशि के लिए यह वर्ष विशेष सफलता लेकर आएगा। उनकी आर्थिक दशा मजबूत होगी और वे नए प्रोजेक्ट्स में लाभ अर्जित कर सकेंगे। पारिवारिक रिश्ते भी मजबूत होंगे। वे नए प्रोजेक्ट्स में सफल होंगे और आर्थिक लाभ अर्जित करेंगे।
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गंगा दशहरा पर काशी, प्रयागराज में हजारों की संख्या में आए श्रद्धालु

वाराणसी/ प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के काशी और प्रयागराज में गंगा दशहरा के पावन अवसर पर गुरुवार को आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। यह उत्‍सव ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन मां गंगा का अवतरण स्‍वर्ग लोक से धरती पर हुआ था। गुरुवार की सुबह तड़के से ही दशाश्वमेध घाट सहित अन्य प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
दूर-दराज से आए हजारों श्रद्धालुओं ने मां गंगा की आराधना और पवित्र स्नान कर पुण्य अर्जित किया। गंगा स्नान के साथ ही श्रद्धालुओं ने दीपदान, गंगा आरती और मंत्रोच्चार के माध्यम से गंगा मैया से सुख-शांति और मोक्ष की कामना की। घाटों पर सुरक्षा और व्यवस्था के लिए प्रशासन मुस्तैद रहा। एनडीआरएफ और जल पुलिस की टीमें भी घाटों पर तैनात की गईं। काशी की गलियों से लेकर घाटों तक आज का दिन भक्ति भाव और गंगा मैया की जयकारों से गुंजायमान रहा। श्रद्धालुओं का कहना है कि गंगा दशहरा पर काशी में गंगा स्नान का विशेष महत्व है, जिससे सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा दशहरा वह दिन है जब गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था, और इसी दिन को मां गंगा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
दशाश्वमेध घाट के तीर्थपुरोहित विवेकानंद ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा कि ज्येष्ठ माह का शुक्ल पक्ष है। इस दिन को गंगा दशहरा के उत्‍सव के रूप में मनाया जाता है। भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा की आराधना कर उनको प्रसन्न किया और मां गंगा को धरती पर लेकर आए। श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और मोक्ष पाने के लिए गंगा जी में डुबकी लगाते हैं। गुजरात के राजकोट से आए महंत विजय महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में गंगा दशहरा का बहुत महत्‍व है। आज ही के दिन गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं थीं।
इसी क्रम में गंगा दशहरा का पर्व संगम नगरी प्रयागराज में भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर प्रयागराज में गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु आए हुए हैं और ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के साथ ही पूजा अर्चना और दान पुण्य भी कर रहे हैं।
श्रद्धालु महंत गोपाल ने कहा कि गंगा दशहरा के दिन भागीरथ के पूर्वजों के मोक्ष के लिए मां गंगा स्‍वर्ग लोक से मृत्युलोक में आईं। हम सब भाग्‍यशाली है जो इस दिन गंगा मां की पूजा अर्चना कर मोक्ष की याचना करते हैं। इस उत्‍सव के दौरान लोगों के 10 तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा नाम दिया गया है। गंगा स्‍थान करने वाले श्रद्धालु के पितरों को भी मुक्ति मिलती है। प्रयागराज में एक रुपये के दान का लाभ एक लाख रुपये के बराबर माना जाता है। सीता जी ने मां गंगा को जगत जननी का नाम दिया है।
एक श्रद्धालु का कहना है, "हम गंगा दशहरा के अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए संगम में मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती के तट पर आए हैं। इस स्नान से पितर भी प्रसन्न होते हैं। महाकुंभ के आयोजन के बाद से लोगों में अध्यात्म बढ़ा हुआ है।"
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राज्यपाल रमेन डेका ने राजीव लोचन भगवान के किए दर्शन

रायपुर। राज्यपाल श्री रमेन डेका ने गरियाबंद जिले के प्रवास के दौरान  आज राजिम में भगवान श्री राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन एवं पूजा अर्चना कर देश एवं प्रदेश की सुख समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। उन्होंने लोमष ऋषि आश्रम का भी  अवलोकन किया।

 

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शिव के पंचतत्व रूपों से करें आत्मिक जुड़ाव, "नमः शिवाय" मंत्र के साथ विशेष अनुभव

भारत की पवित्र भूमि पर अनगिनत तीर्थ, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा, शांति और आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाते हैं। इन्हीं दिव्य स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं पंचभूत स्थल — यानी भगवान शिव के वो पवित्र मंदिर जो पाँच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के प्रतीक माने जाते हैं। इन पंचभूत स्थलों का दर्शन यदि पंचाक्षर मंत्र "नमः शिवाय" के जाप के साथ किया जाए, तो साधक को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पंचाक्षर मंत्र: आध्यात्मिक शक्ति का बीज
पंचाक्षर मंत्र "नमः शिवाय" शिव उपासना का मूल है। यह पाँच अक्षरों का मंत्र — "न", "म", "शि", "वा", "य" — ब्रह्मांड के पाँच तत्वों से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यह मंत्र मानव के भीतर के दोषों को शुद्ध करता है, मन को एकाग्र करता है और आत्मा को शिव से जोड़ता है। जब इस मंत्र का उच्चारण भावपूर्वक किया जाता है, तो यह साधक के भीतर चेतना की तरंगें उत्पन्न करता है जो उसे दिव्य ऊर्जा से जोड़ती हैं।अब आइए जानते हैं वे पाँच पवित्र स्थल जहां पंचभूत तत्वों के रूप में शिव के दर्शन होते हैं — और जहाँ पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए यात्रा करना एक अतुलनीय आध्यात्मिक अनुभव बन सकता है।
1. एकांदेश्वर (पृथ्वी तत्व) – कांचीपुरम, तमिलनाडु
पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर कांची एकांदेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां शिवलिंग मिट्टी से बना है, जो भूमि तत्व की सर्वोच्चता को दर्शाता है। इस मंदिर में पूजा के समय शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता, क्योंकि वह मिट्टी से निर्मित है।यहां “नमः शिवाय” का जाप करते हुए धरती से जुड़ने की अनुभूति होती है। साधक को स्थिरता, धैर्य और संतुलन का अनुभव होता है। यह स्थल भक्तों को अपने अस्तित्व की गहराई में उतरने का आह्वान करता है।
2. जम्बुकेश्वर (जल तत्व) – तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है जम्बुकेश्वर मंदिर। यह मंदिर शिव और जल के गहरे संबंध को दर्शाता है। यहां शिवलिंग के नीचे निरंतर जलधारा बहती रहती है — यह जल शुद्धता और जीवन की ऊर्जा का प्रतीक है।जब भक्त पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए इस स्थल का दर्शन करते हैं, तो उन्हें भीतर से शीतलता, शांति और करुणा का भाव अनुभव होता है। यह स्थल आंतरिक अशांति को धोकर मन को निर्मल करता है।
3. अर्णेश्वर (अग्नि तत्व) – तिरुवन्नामलई, तमिलनाडु
यह स्थल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और अर्णेश्वर या अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के सामने अपना विराट रूप प्रकट किया था।यहाँ पंचाक्षर मंत्र के जाप से साधक के भीतर की जड़ता जलने लगती है, और चेतना की अग्नि जागृत होती है। अग्नि तत्व आत्मबल, साहस और ऊर्जा का प्रतीक है — और इस स्थल का अनुभव साधक को भीतर से प्रज्वलित करता है।
4. कालहस्तीश्वर (वायु तत्व) – श्रीकालहस्ती, आंध्र प्रदेश
वायु तत्व से जुड़ा हुआ यह मंदिर कालहस्तीश्वर के नाम से जाना जाता है। यहां दीपक बिना हवा के भी हिलता है, जो दर्शाता है कि यह स्थान वायु की शक्ति से ओतप्रोत है। यह स्थल उन साधकों के लिए विशेष है जो प्राणायाम, ध्यान और स्वास की साधना करते हैं।जब इस स्थल पर “नमः शिवाय” का मंत्र उच्चारित किया जाता है, तो साधक अपनी प्राणशक्ति को नियंत्रित कर पाता है और श्वास के माध्यम से शिवत्व को महसूस करता है। वायु तत्व चेतना और गति का प्रतिनिधित्व करता है।
5. चिदंबरम नटराज (आकाश तत्व) – चिदंबरम, तमिलनाडु
यह मंदिर आकाश तत्व का प्रतीक है, जहाँ भगवान शिव नटराज रूप में नृत्य करते हैं। यह नृत्य सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है। यहाँ शिव एक रिक्त स्थान (आकाश) में निवास करते हैं, जिसे चिदंबरम रहस्य कहा जाता है — यानी शून्य में पूर्णता का अनुभव।यहां पंचाक्षर मंत्र के जाप के दौरान साधक को “शिव ही आकाश हैं, और वही शून्यता में भी व्याप्त हैं” का बोध होता है। चिदंबरम में आकाश तत्व की अनुभूति साधक को मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।
इन पंचभूत स्थलों की यात्रा केवल भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा है। जब कोई साधक “नमः शिवाय” मंत्र का सच्चे मन से जाप करते हुए इन स्थलों का दर्शन करता है, तो वह न केवल पंचतत्वों की चेतना से जुड़ता है, बल्कि स्वयं में भी शिव तत्व का जागरण करता है।शिवभक्ति का यह मार्ग, मंत्र और स्थल — तीनों मिलकर एक ऐसा दिव्य अनुभव प्रदान करते हैं जो साधक को भीतर से परिवर्तित कर देता है। पंचभूत स्थलों की यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए अत्यंत फलदायक है जो शांति, स्थिरता और शिव से एकत्व की तलाश में है।
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बुध करेंगे मिथुन राशि में प्रवेश, इन 4 राशियों के धैर्य और क्षमता की होगी कड़ी परीक्षा

बुद्धि, वाणी और व्यवसाय के कारक ग्रह बुध 6 जून को वृषभ राशि से निकलकर अपनी स्वराशि मिथुन में गोचर कर जाएंगे। बुध का गोचर सुबह 9 बजकर 27 मिनट पर होगा। बुध का यह गोचर मिथुन राशि में होगा इसलिए ज्यादातर इसके परिणाम शुभ ही होंगे। हालांकि राशिचक्र की कुछ राशियों के लिए बुध की यह स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है। बुध के मिथुन राशि में गोचर के चलते कर्क समेत 3 राशियों को प्रतिकूल प्रभाव मिल सकते हैं। इसलिए कुछ उपाय इन राशियों को बुध गोचर के दौरान करने चाहिए। आइए जान लेते हैं इन राशियों के बारे में।
मेष राशि-
बुध ग्रह का गोचर मेष राशि के जातकों के लिए मिलाजुला रहेगा। पारिवारिक जीवन में आपको तभी अच्छे फल प्राप्त होंगे जब आप वाणी पर नियंत्रण रखेंगे। आर्थिक पक्ष में उतार-चढ़ाव का सामना आपको करना पड़ सकता है हालांकि धन प्राप्ति के स्रोत भी आपको मिलेंगे। गलत लोगों की संगति से दूर रहने की आवश्यकता है अन्यथा समय, स्वास्थ्य और धन की हानि आपको हो सकती है। उपाय के तौर पर गाय को हरा चारा आपको खिलाना चाहिए।
कर्क राशि-
आपके द्वादश भाव में बुध ग्रह का गोचर होगा। इस भाव में बुध के होने से आप झूठ का सहारा लेकर अपना काम बनाने की कोशिश कर सकते हैं, हालांकि ऐसा करना भविष्य में आपको नुकसान पहुंचाएगा। आमदनी पर्याप्त होने पर भी आर्थिक तंगी का सामना आप कर सकते हैं। कारोबार में हानि इस राशि के कुछ लोगों को मानसिक रूप से परेशान कर सकती है। इस अवधि में लाभ पाने के लिए आपकी योग्यता की कड़ी परीक्षा बुध देव लेंगे। अत्यधिक सोच-विचार करने से आपके कई काम इस दौरान अटक सकते हैं, इसलिए सोचने से ज्यादा काम पर ध्यान दें। उपाय के तौर पर आपको हरे रंग की चीजें किसी मंदिर में दान करनी चाहिए।
वृश्चिक राशि-
बुध के गोचर के बाद वृश्चिक राशि के जातकों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। बाहर का तला-भुना भोजन आपके पाचन तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। इस दौरान करियर और पारिवारिक जीवन को लेकर असमंजस की स्थिति भी बनी रह सकती है। सही निर्णय लेने में आपको परेशानियां होंगी। अनुभवी लोगों की सलाह आपके काम आ सकती है। सफलता पाने के लिए आपको आवश्यकता से अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है, धैर्य बनाए रखें। उपाय के तौर पर आपको केसर का तिलक इस दौरान लगाना चाहिए।
मकर राशि-
बुध ग्रह आपकी राशि से षष्ठम भाव में संचार करेंगे। यह भाव शत्रु और रोग का कारक माना जाता है। कोई पुरानी बीमारी इस राशि के जातकों को परेशान कर सकती है। जिन लोगों पर आप अधिक भरोसा करते हैं वो ही आपके काम में रुकावटें इस दौरान ला सकते हैं, इसलिए बेहद सतर्कता से हर कार्य करेंगे। कार्यक्षेत्र में अपनी राज की बातें शेयर करना आपको भारी पड़ सकता है। बेरोजगार लोगों के धैर्य की परीक्षा बुध लेंगे। इस दौरान समाज से दूर रहकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें। उपाय के तौर पर भगवान गणेश की पूजा आपको करनी चाहिए।
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गंगा दशहरा कल, इस चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक

  • पूरी होगी हर मनोकामना
हिंदू धर्म में गंगा दशहरे का विशेष महत्व है. कहते हैं इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था. यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है इस बार यह तिथि 5 जून को है. इस दिन सभी गंगा घाटों पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं. कहते हैं कि मां गंगा को धरती पर आने से पहले भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था. ऐसे में इस दिन भगवान शिव की पूजा की करना महत्वपूर्ण होता है. कहते हैं कि गंगा दशहरा के दिन शिवलिंग पर कुछ खास चीजों से अभिषेक करने वाले को भोलेनाथ का कृपा प्राप्त होती है|
इस चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक
गंगा दशहरा के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक अवश्य करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी दोष मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है|
भगवान शिव को दूध अति प्रिय हैं, इसलिए गंगा दशहरे दिन शिवजी की पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करें. मान्यता है कि ऐसा करने वाले को शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है.
गंगा दशहरा के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करना शुभ होता है. मान्यता है कि ऐसा करने से घर नें सुख-समृद्धि आती है|
गंगा दशहरे के दिन भोलेनाथ की पूजा के दौरान शिवलिंग पर अक्षत, सफेद चंदन, सफेद फूल और शमी के पत्ते अर्पित करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है. कहते हैं इससे घर-परिवार में खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है|
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कितने बजे से शुरू होगी दशमी तिथि, गंगा दशहरे के दिन कब करें ब्रह्म मुहूर्त स्नान, जानिए...

प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का जन्मोत्सव गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरा के दिन शुभ कर्म करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस साल गंगा दशहरा पर कुछ दुर्लभ योग बनने जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि गंगा दशहरा के दिन देवी गंगा धरती पर आई थीं। माना जाता है कि इसी दिन गायत्री मंत्र का प्रकटीकरण भी हुआ था।
इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि मां गंगा की गोद में जाकर या किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है।
दशमी तिथि कब से कब तक
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत चार जून बुधवार 2025 की रात 11: 34 मिनट पर होगी और समापन पांच जून गुरुवार की रात 02:56 मिनट पर होगा।
गंगा दशहरा के दिन स्नान करने का ब्रह्म मुहूर्त पांच जून की सुबह 05: 12 मिनट से लेकर सुबह 08:42 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन रवि योग, दग्ध योग, राजयोग और सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग भी बनेगा। पांच जून की सुबह 9:14 तक सिद्धि योग रहेगा।
 
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निर्जला एकादशी पर करें ये उपाय, दूर होंगी परेशानियां

निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और कठिन व्रतों में से एक मानी जाती है। यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस साल निर्जला एकादशी 6 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 6 जून को रात 2:15 बजे शुरू होगी और 7 जून को सुबह 4:47 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार व्रत 6 जून को रखा जाएगा। पारण का समय 7 जून को दोपहर 1:44 बजे से 4:31 बजे तक रहेगा। इस दिन भक्त बिना जल और भोजन के व्रत रखते हैं, जिसके कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है। आइए इस लेख में उन उपायों के बारे में जानते हैं जिन्हें निर्जला एकादशी के दिन करने से सभी परेशानियां दूर होती है, और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करें-
निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्र अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने तुलसी की मंजरी चढ़ाएं। "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का 108 बार जाप करें। ध्यान रखें कि एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें; एक दिन पहले ही इकट्ठा कर लें। यह उपाय आर्थिक समस्याओं को दूर करता है और सुख-समृद्धि लाता है।
श्री फल (नारियल) का दान करें-
इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को श्री फल (नारियल) अर्पित करें और फिर इसे किसी जरूरतमंद को दान करें। यह उपाय जीवन से बाधाओं को हटाता है और माता लक्ष्मी की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। दान करते समय मन में शुद्ध भाव रखें और भगवान का ध्यान करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करेंल-
निर्जला एकादशी पर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने बैठकर इस पाठ को करें। यह उपाय सभी पापों का नाश करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। यह उन लोगों के लिए भी लाभकारी है, जो जीवन में बार-बार असफलता का सामना कर रहे हैं।
गरीबों को अन्न और जल का दान करें-
निर्जला एकादशी पर अन्न, जल, वस्त्र और छाता दान करने की परंपरा है। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराएं और पानी पिलाएं। यह पुण्य कार्य आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह उपाय स्वास्थ्य समस्याओं को भी कम करता है।
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निर्जला एकादशी के दिन इस विधि से करें पिंडदान, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

हिन्दू धर्म में निर्जला एकादशी के दिन का बहुत अधिक महत्व है. इस दिन पितरों का आशीर्वाद पाने और घर से पितृदोष दूर करने के लिए तर्पण और पिंडदान करना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. यूं तो श्राद्ध कर्म और पिंडदान मुख्य रूप से पितृ पक्ष (जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर में आता है) में किए जाते हैं, लेकिन कुछ विशेष तिथियों पर, खासकर एकादशी पर पितरों के निमित्त किए गए दान और तर्पण का भी बहुत महत्व होता है. निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा होती है, और भगवान विष्णु को पितरों का मुक्तिदाता भी माना जाता है. इसलिए, इस दिन पितरों के निमित्त कुछ कार्य करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस साल 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा|
निर्जला एकादशी पर पूर्ण विधि-विधान से पिंडदान करना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह व्रत स्वयं निर्जल होता है. हालांकि, आप पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए कुछ सरल उपाय कर सकते हैं. एकादशी के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसी समय अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनसे आशीर्वाद की कामना करें. मन ही मन उनसे प्रार्थना करें कि आपके व्रत और दान से उन्हें शांति मिले|
निर्जला एकादशी पर पूर्ण विधि-विधान से पिंडदान करना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह व्रत स्वयं निर्जल होता है. हालांकि, आप पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए कुछ सरल उपाय कर सकते हैं. एकादशी के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसी समय अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनसे आशीर्वाद की कामना करें. मन ही मन उनसे प्रार्थना करें कि आपके व्रत और दान से उन्हें शांति मिले|
निर्जला एकादशी पर जल का दान सबसे बड़ा दान माना जाता है. यह दान पितरों को विशेष रूप से तृप्त करता है. घर में जल से भरा एक कलश रखें, उसे सफेद वस्त्र से ढकें, और उस पर चीनी व दक्षिणा रखकर किसी ब्राह्मण को दान दें. सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ लगवाएं या राहगीरों को ठंडा जल पिलाएं. मंदिर में जल से भरी सुराही या घड़े का दान करें. माना जाता है कि इस दान से पितर तृप्त होते हैं, पितृ दोष और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है|
निर्जला एकादशी पर जल का दान सबसे बड़ा दान माना जाता है. यह दान पितरों को विशेष रूप से तृप्त करता है. घर में जल से भरा एक कलश रखें, उसे सफेद वस्त्र से ढकें, और उस पर चीनी व दक्षिणा रखकर किसी ब्राह्मण को दान दें. सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ लगवाएं या राहगीरों को ठंडा जल पिलाएं. मंदिर में जल से भरी सुराही या घड़े का दान करें. माना जाता है कि इस दान से पितर तृप्त होते हैं, पितृ दोष और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है|
शास्त्रों में कहीं भी स्पष्ट रूप से यह नहीं लिखा है कि एकादशी के दिन चावल का पिंड नहीं बनाना चाहिए. कुछ परंपराओं के अनुसार आप चावल का पिंड बना सकते हैं. थोड़े से पके हुए चावल लें, उसमें तिल, दूध और थोड़ा गंगाजल मिलाएं. इसे अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए पिंड का रूप दें. पद्म पुराण और नारद पुराण में उल्लेख है कि एकादशी के दिन पिंड बनाकर उसे सूंघकर गाय को खिला देना चाहिए. यह पितरों को तृप्त करने का एक तरीका है. यदि आप नियमित श्राद्ध कर्म नहीं कर पा रहे हैं, तो यह एक सांकेतिक पिंडदान पितरों के प्रति आपकी श्रद्धा को दर्शाता है|
शास्त्रों में कहीं भी स्पष्ट रूप से यह नहीं लिखा है कि एकादशी के दिन चावल का पिंड नहीं बनाना चाहिए. कुछ परंपराओं के अनुसार आप चावल का पिंड बना सकते हैं. थोड़े से पके हुए चावल लें, उसमें तिल, दूध और थोड़ा गंगाजल मिलाएं. इसे अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए पिंड का रूप दें. पद्म पुराण और नारद पुराण में उल्लेख है कि एकादशी के दिन पिंड बनाकर उसे सूंघकर गाय को खिला देना चाहिए. यह पितरों को तृप्त करने का एक तरीका है. यदि आप नियमित श्राद्ध कर्म नहीं कर पा रहे हैं, तो यह एक सांकेतिक पिंडदान पितरों के प्रति आपकी श्रद्धा को दर्शाता है|
तिल को पितृ दोष निवारण के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. जल में तिल डालकर पितरों के निमित्त तर्पण (जल अर्पित) करें. इसके बाद किसी योग्य व्यक्ति को तिल का दान करें. इससे पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर या तुलसी के पास (लेकिन एकादशी को तुलसी पत्र न तोड़ें) या पीपल के पेड़ के पास दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक (तिल के तेल का) जलाएं. यह पितरों को मार्ग दिखाता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है|
तिल को पितृ दोष निवारण के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. जल में तिल डालकर पितरों के निमित्त तर्पण (जल अर्पित) करें. इसके बाद किसी योग्य व्यक्ति को तिल का दान करें. इससे पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर या तुलसी के पास (लेकिन एकादशी को तुलसी पत्र न तोड़ें) या पीपल के पेड़ के पास दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक (तिल के तेल का) जलाएं. यह पितरों को मार्ग दिखाता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है|
निर्जला एकादशी का व्रत अगले दिन (द्वादशी तिथि को) पारण के समय खोला जाता है. पारण से पहले, भूखे और सत्पात्र ब्राह्मणों को भोजन कराएं (यदि संभव हो तो) और उन्हें वस्त्र व दक्षिणा दान करें. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. सर्वोत्तम परिणाम के लिए, किसी अनुभवी ज्योतिषी या पंडित से सलाह लेना हमेशा उचित रहता है, खासकर यदि आपके परिवार में श्राद्ध या पिंडदान की कोई विशिष्ट परंपरा हो. इन उपायों को करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि तथा आशीर्वाद प्रदान करते हैं|
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इसी महीने होगा शुक्र और बुध का गोचर

  • नोट करें बुरे प्रभावों से बचने के उपाय
जून में शुक्र और बुध ग्रह का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पं. हर्षित मोहन शर्मा के अनुसार, बुध का कर्क में गोचर होने से कर्क राशि वालों पर और शुक्र का वृषभ में गोचर होने से वृषभ पर प्रभाव पड़ेगा।
दिनांक 29 जून को शुक्र ग्रह दिन के 01 बजकर 49 मिनट पर वृषभ राशि में गोचर करेंगे। यह राशि शुक्र ग्रह की राशि है। यह स्थिति 26 जुलाई तक बनी रहेगी। यह गोचर वृषभ राशि के जातकों के लिए अच्छा रहने वाला है।
वृषभ राशि को जो लोग विदेश जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं, उन्हें सफलता प्राप्त हो सकती है। व्यक्ति के रहन-सहन, खान-पान में उच्च कोटि का बदलाव नजर आएगा। जातक साज-सज्जा आदि पर धन व्यय कर सकते हैं।
इस अवधि में वृषभ राशि वाले प्रॉपर्टी और वाहन क्रय कर सकते हैं। जातक का झुकाव अपोजिट लिंग के प्रति अधिक रहेगा। जातक भोग विलास में समय व्यतीत कर सकते हैं।
सलाह दी जाती है इस समय को अपने व्यक्तित्व विकास की तरफ अधिक लगाए। इस दौरान अचानक धन लाभ हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय में स्थिरता आएगी। जो जातक बेरोजगार हैं, उन्हें इस अवधि में रोजगार मिल सकता है। जातक अपने स्वयं का व्यापार भी शुरू कर सकता है।
उपाय- प्रतिदिन लक्ष्मी माता की आरती करें या संतोषी माता को सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं। बुजुर्गों की सेवा करें।
22 जून: बुध ग्रह का कर्क में गोचर-
दिनांक 22 जून 2025 को राजकुमार ग्रह बुध कर्क राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। यह गोचर रात्रि 09 बजकर 20 मिनट पर होगा। यह गोचर कर्क राशि के जातकों को प्रतिकूल फल देने वाला रहेगा।
कर्क राशि वाले इस दौरान डिप्रेशन का सामना कर सकते हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकते हैं। व्यापार-व्यवसाय में निकट का व्यक्ति धोखा दे सकता है। किसी भी दस्तावेज पर सिग्नेचर करने के पहले उसे अच्छे से जांच परख कर लें।
घर-गृहस्थी में क्लेश का वातावरण निर्मित हो सकता है, सतर्क रहें। जातक अपनी वाणी के द्वारा निकट के व्यक्तियों को ठेस पहुंचा सकता है। इस अवधि में धन उधार देने से बचें। जितना हो सके अध्यात्म को अपनाएं।
वाहन आदि चलाने में सावधानी रखें। सलाह दी जाती है कोई भी बड़ा निर्णय इस अवधि में ना लें। व्यापार-व्यवसाय में अचानक हानि हो सकती है, सतर्क रहें। जो जातक बेरोजगार हैं, उन्हें धैर्य रखने की आवश्यकता है। निराश ना हो। स्वास्थ्य को लेकर भी यह समय अच्छा नहीं रहेगा। जातक को पुराना कोई रोग उभर कर वापस आ सकता है। इस दौरान स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही ना बरतें। पौष्टिक आहार लें और व्यायाम को अपनी दिनचर्या में अपनाए।
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निर्जला एकादशी पर करें तुलसी के ये 3 उपाय

  • जीवन के सारे कष्ट होंगे दूर
सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है, खासकर जब बात निर्जला एकादशी की हो। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं, इस बार 6 जून 2025 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की भक्ति भाव से पूजा करने से न केवल सभी पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है।
इस पावन अवसर पर तुलसी से जुड़े कुछ विशेष उपाय करने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है और इस दिन अगर तुलसी के जरिए कुछ सरल उपाय किए जाएं तो भगवान विष्णु जल्द प्रसन्न होते हैं। इस बार एकादशी तिथि 6 जून को दोपहर 2:15 बजे से लग रही है, इसलिए उदया तिथि के अनुसार व्रत 6 जून को ही रखा जाएगा। अगर इन उपायों का पालन भक्ति भाव और विधि से किया जाए तो जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।
तुलसी से जुड़े उपाय-
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए निर्जला एकादशी पर कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी को श्रद्धा से श्रीफल अर्पित करें, फिर तुलसी के पौधे की विधिपूर्वक पूजा करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
इस दिन एक और महत्वपूर्ण उपाय यह है कि तुलसी की मंजरी (फूल) को भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित करें। मान्यता है कि इस साधारण-से दिखने वाले कार्य से भी भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, और जीवन में सुख-समृद्धि का प्रवाह शुरू होता है। इससे पुराने कष्ट और बाधाएं भी दूर होने लगती हैं।
शाम के समय, तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं और उसकी ग्यारह बार परिक्रमा करें। यह उपाय जीवन में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने में सहायक होता है। इन सरल लेकिन प्रभावशाली उपायों को श्रद्धा और आस्था से करने पर विष्णु-लक्ष्मी की कृपा सहज ही प्राप्त हो सकती है।
निर्जला एकादशी कब-
निर्जला एकादशी व्रत 2025 में खास बात यह है कि इस बार एकादशी तिथि दो दिनों तक फैली रहेगी। पंचांग के अनुसार, यह पवित्र तिथि 6 जून 2025 को तड़के 2:15 बजे से शुरू होकर 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी। यानी एकादशी तिथि लगभग 24 घंटे तक बनी रहेगी, और दोनों ही दिन उदयातिथि का संयोग रहेगा।
शास्त्रीय नियमों के अनुसार, जब एकादशी दो दिन आती है, तो गृहस्थ जीवन जीने वालों को व्रत पहले दिन यानी 6 जून को ही रखना चाहिए। हालांकि सामान्यत: यह व्रत 24 घंटे के लिए रखा जाता है, लेकिन इस बार व्रत का पारण अगले दिन दोपहर में होने के कारण, व्रत की अवधि 32 घंटे 21 मिनट तक हो सकती है।
व्रत पारण का समय: 7 जून को दोपहर 1:44 बजे से शाम 4:31 बजे के बीच रखा गया है। जो भक्त 6 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखेंगे, वे 7 जून को इस निर्धारित समय पर व्रत का पारण कर सकते हैं।
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मासिक दुर्गाष्टमी कल, जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत के नियम

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 2 जून दिन सोमवार को रात 8 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 3 जून दिन मंगलवार को रात 9 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत मंगलवार, 3 जून को ही रखा जाएगा और पारण अगले दिन 4 जून दिन बुधवार को किया जाएगा| हिन्दू धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का बहुत महत्व होता है. ये पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है|
यह दिन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है. इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं. मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है. उनकी पूजा से व्यक्ति को शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त होती है. इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है और पारिवारिक जीवन में शांति बनी रहती है. जो भक्त सच्चे मन से मां दुर्गा की आराधना करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं|
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 03 बजकर 44 मिनट से 04 बजकर 26 मिनट तक
प्रातः सन्ध्या: सुबह 04 बजकर 05 मिनट से 05 बजकर 07 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 29 मिनट से दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से 03 बजकर 07 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06 बजकर 43 मिनट से 07 बजकर 04 मिनट तक
सायाह्न सन्ध्या: शाम 06 बजकर 45 मिनट से 07 बजकर 47 मिनट तक
निशिता मुहूर्त: रात 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 17 मिनट तक (03 जून तक)
अमृत काल: रात 08 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 05 मिनट तक
मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि-
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर के मंदिर को साफ करें.
हाथ में गंगाजल, चावल और फूल लेकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें. अपनी मनोकामना कहें.
एक साफ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. यदि संभव हो तो एक कलश स्थापित करें.
मां दुर्गा को लाल चुनरी, रोली, कुमकुम, अक्षत (साबुत चावल), लाल फूल (जैसे गुड़हल), माला, धूप, दीप और नैवेद्य (मिठाई, फल, लौंग-इलायची) अर्पित करें.
यदि विवाहित महिला व्रत रख रही है, तो मां को सोलह श्रृंगार की सामग्री (जैसे चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी आदि) अर्पित करें.
शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं और मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें. कुछ प्रमुख मंत्र हैं:- “ॐ दुं दुर्गायै नमः”, “सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।”
दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी अत्यंत शुभ होता है और मासिक दुर्गाष्टमी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें. पूजा के अंत में मां दुर्गा की आरती करें.
यदि संभव हो तो इस दिन 2 से 10 वर्ष तक की छोटी कन्याओं को भोजन कराएं (हलवा, चना, पूरी) और उन्हें दक्षिणा व लाल रंग के छोटे उपहार दें. कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है|
व्रत पारण के नियम-
मासिक दुर्गाष्टमी के व्रत का पारण अगले दिन, नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है. पारण के दिन (4 जून 2025, बुधवार) सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मां दुर्गा की दोबारा पूजा करें और व्रत सफलतापूर्वक संपन्न होने के लिए उनका धन्यवाद करें. अष्टमी व्रत का पारण अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद नवमी तिथि में किया जाता है. यदि आप आज (3 जून को) व्रत कर रहे हैं, तो पारण का समय 4 जून 2025, बुधवार को सूर्योदय के बाद होगा|
पारण में सबसे पहले सात्विक भोजन ग्रहण करें,. इसमें प्याज, लहसुन और तामसिक चीजों का प्रयोग नहीं होना चाहिए. आप फल, दूध, दही, साबूदाना खिचड़ी या अपनी पसंद का कोई भी सात्विक भोजन कर सकते हैं. चावल का सेवन भी कर सकते हैं. पारण करने से पहले, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य अनुसार भोजन, फल या दक्षिणा का दान अवश्य करें. मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी परेशानियां दूर करती हैं, साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण करती हैं|
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चौथे बड़े मंगल पर इस विधि से करें पूजा, हनुमान जी की होगी कृपा

ज्येष्ठ के महीने में हनुमान जी की विधि विधान से पूजा करें और श्रद्धा अनुसार मंदिर या गरीबों में दान आदि करें. हर हनुमान जी भक्त के लिए बड़ामंगल का बहुत धार्मिक मान्यता है. बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल पर व्रत का संकल्प करने और हनुमान जी की पूजा अर्चना करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. हनुमान जी की कृपा से कर्ज संबंधी दिक्कतों से लेकर कई अन्य समस्याओं को दूर किया जा सकता है. आइए चौथे बड़ा मंगल के बारे में जानें|
कब है चौथा बड़ा मंगल-
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर मंगलवार के दिन चौथा बड़ा मंगल पड़ रहा है. वैदिक पंचांग की मानें तो अष्टमी तिथि 02 जून को रात 08 बजकर 35 मिनट से शुरू होने वाला है और रात 03 जून 09 बजकर 56 मिनट पर तिथि का समापन हो रहा है.03 जून को बड़ा मंगल, धूमावती जंयती के साथ ही मासिक दुर्गाष्टमी का पर्व है|
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 02 मिनट से लेकर 04 बजकर 43 मिनट तक होगा.
विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 38 मिनट से लेकर 03 बजकर 34 मिनट तक होगा.
गोधूलि मुहूर्त शाम 07 बजकर 14 मिनट से लेकर 07 बजकर 35 मिनट तक होगा.
निशिता मुहूर्त रात्रि 11 बजकर 59 मिनट से लेकर 12 बजकर 40 मिनट तक होगा|
बड़ा मंगल पूजा विधि-
बड़ा मंगल के दिन स्नान करें और साफ लाल वस्त्र धारण करें और ध्यान करें.
मंदिर की सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें.
चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछा दें और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर दें.
हनुमान जी को लाल चोला चढ़ाएं, फूल अर्पित करें.
इसका बाद पान, फल, बूंदी के लड्डू व मिठाई अर्पित करें.
दीपक जलाकर सच्चे मन से हनुमान जी की आरती करें और पूजा संपन्न करें.
अब अंत में भक्तों में प्रसाद बांटे|
बड़ा मंगल के उपाय-
कर्ज की समस्या होगी दूर
कर्ज से छुटकारा पाना है तो बड़ा मंगल पर पूजा के दौरान हनुमान चालीसा का पाठ हनुमान जी के सामने बैठकर करें. इसके बाद कुछ विशेष चीजों का दान करें. इस उपाय से कर्ज संबंधी समस्याएं दूर होंगी और हनुमान जी कृपा बरसाएंगे|
सभी दुख होंगे दूर-
हनुमान जी को प्रसन्न करना है तो बड़े मंगल को राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से ऐसा हो सकता है. जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति हो सकती है और इस पाठ को हनुमान जी के सामने बैठ करने से जीवन के सभी दुख और संकट दूर होते हैं|
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मुख्यमंत्री ने भगवान गौतम बुद्ध की पूजा-अर्चना कर प्रदेश की जनता की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने रविवार को बुद्ध जयंती के अवसर पर कोंडागांव जिले के भोंगापाल में भगवान गौतम बुद्ध की पूजा-अर्चना कर प्रदेश की जनता की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। इस दौरान बोधगया से पधारे बौद्ध साधुवृन्द भंते अश्वजीत महाथेरा, भंते ज्ञानवंश थेरो, भंते शीलवंश थेरो, भंते प्रमोद एवं भंते डीन वियतनाम द्वारा बुद्धम शरणम गछम मंत्रोच्चार के बीच विधिवत पूजा-अर्चना करवाया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि भोंगापाल 6 वीं शताब्दी का चैत्य है, जहां भगवान बुद्ध की प्रतिमा विराजमान है। यह एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल है। इस मौके पर विधायक केशकाल श्री नीलकंठ टेकाम सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के अलावा कमिश्नर बस्तर श्री डोमन सिंह, आईजी श्री सुंदरराज पी., कलेक्टर नुपुर राशि पन्ना, एसपी श्री वाय अक्षय कुमार और अन्य अधिकारी तथा बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी मौजूद थे।
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शनिवार के दिन करें ये उपाय, शनिदेव और बजरंगबली की मिलेगी कृपा

हिंदू धर्म में शनिवार न्याय के देवता शनि देव को समर्पित है. मान्यता है कि शनिदेव अगर किसी पर नाराज हो जाएं तो राजा को रंक बना देते हैं वहीं किसी पर प्रसन्न हो जाएं तो उसका जीवन खुशियों से भर जाता है. शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार को कुछ उपाय बताए गए हैं. इन उपायों को करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है, खास कर उन लोगों पर जिनकी कुंडली में शनिदोष होता है|
शनिदेव के साथ-साथ शनिवार के दिन बजरंग बली की पूजा अर्चना भी की जाती है जिससे उनकी कृपा प्राप्त होती है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है वो उपाय जिनको करने से शनिदेव और बजरंगबली का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है|
शनिवार को तेल से बनी चीजें भिखारी को खिलानी चाहिए. इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं|
शनिवार के दिन काले उड़द का दान भी काफी शुभ माना गया है |
इस दिन शनि मंदिर जाकर शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाना काफी शुभ माना गया है. इसके बाद 11 बार ओम शं शनैश्चरायः नमः का जाप करें. इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्राप्त होता है|
इसके अलावा पीपल के नीचे तेल का दीपक जलाना भी काफी शुभ माना गया है.
अगर आपके किसी काम में रुकावटें आ रही हैं तो शनिवार के दिन काले कुत्ते, काली गाय को रोटी खिला सकते हैं. इसके अलावा काली चिड़िया को दाने भी खिला सकते हैं. इससे काम में आ रही बाधाएं दूर हो जाती है|
बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ कर सकते हैं.
शनिवार के दिन हनुमानजी को 11 पीपल के पत्ते अर्पित करने से भी उनकी कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक स्थिति बेहतर होती है. इस बात का जरूर ध्यान रखें कि हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले पत्ते खंडित नहीं होने चाहिए|
हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं|
शनिवार के दिन हनुमान मंदिर जाकर चमेली के तेल और सिंदूर से हनुमान जी का अभिषेक करें. इससे सारे काम बनते चले जाते हैं और घर में सुख समृद्धि का वास होता है|
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