धर्म समाज

गुड़ी पड़वा 22 मार्च को, जानिए गुड़ी पड़वा से जुड़े तथ्य...

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन हिंदू धर्म में कई चीजों की शुरुआत होती है. विक्रम संवत लगता है, हिंदु नववर्ष शुरू होगा, चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है और गुड़ी पड़वा का पर्व भी इसी दिन पड़ता है. इस साल ये खास दिन 22 मार्च दिन बुधवार है. हिंदू धर्म में गुड़ी पड़वा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन मराठी लोग गुड़ी पड़वा मनाते हैं और ये खासतौर पर वहीं का त्योहार है. इस साल गुड़ी पड़वा 22 मार्च, 2023 को पड़ रहा है और इस पर्व को देश के अलग-अलग हिस्सों में दूसरे नामों से जाना जाता है. चलिए आपको इसकी पूरी डिटेल बताते हैं.
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गुड़ी पड़वा से जुड़ी हर छोटी-बड़ी महत्वपूर्णं बातें
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की शुरुआत 21 मार्च 2023 दिन मंगलवार की रात 9 बजकर 22 मिनट से होगी. इसकी समाप्ति 22 मार्च 2023 दिन बुधवार की शाम 6 बजकर 50 मिनट पर होगी. उदय तिथि के अनुसार 22 मार्च को गुड़ी पड़वा मनाया जाएगा. गुड़ी पड़वा के पूजा का शुभ मुहूर्त 22 मार्च 2023 की सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 39 मिनट तक है. गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे के 4 मुख्य कारण होते हैं. इसमें पहला कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था. इसलिए ये दिन उनकी पूजा करके उन्हें ही समर्पित कर देते हैं. इसका दूसरा कारण है कि इस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है और घर घर दुर्गा मां का आगमन होता है. तीसरा कारण ये है कि इस दिन किसान नई फसलें उगाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन हिंदू धर्म को मानने वालों को अपने-अपने घरों में नारंगी ध्वजा फहराना चाहिए जिससे निगेटिव एनर्जी घर में प्रवेश ना करे.
इस दिन मराठी लोग गुड़ी लगाते हैं. बांस के ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का उल्टा कलश रखते हैं. वहीं उसे सुंदर साड़ी से सजाया जाता है. गुड़ी को नीम के पत्ते, आम के डंठल और लाल फूलों से भी सजाते हैं. गुड़ी को ऊंची जगह रखते हैं जिससे वो दूर से दिखाई दे. कई लोग इसे घर के मुख्य द्वार के खिलड़की पर सजा देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस दिन ब्राह्मांड की रचना की थी इसलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी कहते हैं. कई जगह ऐस भी मान्यता है कि 14 साल के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या लौटने की खबर इसी दिन आई थी. गुड़ी लगाने के पीछे की मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि आती है.
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भोरमदेव महोत्सव के समापन पर अलका चंद्राकर ने दी मनमोहक प्रस्तुति

कवर्धा। शहर में आयोजित दो दिवसीय भोरमदेव महोत्सव का समापन सोमवार देर रात को हुआ. समापन से पहले जिले के अलग-अलग सिद्धपीठ मंदिरों के पुराजियों ने मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम की शुरुआत की. समापन समारोह में लोक गायिका अलका चंद्राकर ने पारंपरिक गीत, कर्मा, ददरिया और जसगीत से समा बांधा.
सोमवार शाम 4 बजे से स्थानीय कलाकार और स्कूली बच्चों ने मनमोहक प्रस्तुति दी. उसके बाद देश के कई ख्याति प्राप्त कलाकारो ने अपनी प्रस्तुति दी. सारेगामा पा के विजेता बॉलीवुड के मशहूर कलाकार इशिता विश्वकर्मा ने अपने अंदाज में कई नए और पुराने फिल्मी गाने गाकर दर्शकों का दिल जीता. वहीं लोक गायिका अलका चंद्राकार ने पूरा भोरमदेव महोत्सव का माहौल बदल दिया.
अलका चंद्राकार ने छत्तीसगढ़ की पारंपरिक गीत, कर्मा, ददरिया और जस गीत से समा बांधा. अलका चंद्राकार के गीतों पर दर्शक अपने आप को रोक नहीं पाए और अपने सीट से उठकर झूमते नजर आए. दर्शकों को मनाने में पुलिस के पसीने छूट गए. रविवार को भीड़ कम थी, भोरमदेव महोत्सव में सोमवार को मौसम ने साथ दिया, जिसके चलते हजारों की संख्या में महेमान कलाकारों को सुनने पहुंचे.
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हर्षोल्लास से मनाया जाएगा रजत जयंती समारोह

दुर्ग। आन्ध्र स्वाभिमान एसोसिएशन की एक आवश्यक बैठक अम्बेडकर पार्क सेक्टर -1 भिलाई में एसोसियेशन के अध्यक्ष के. उमाशंकर राव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। उपस्थित समाज प्रमुखों एवं सदस्यों ने सर्व सम्मति से रजत जयंती समारोह हर्षोल्लास से मनाया जाने तथा अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर आयोजन को सफल बनाने संकल्पित हुए। अध्यक्ष के. उमाशंकर राव ने बताया कि वर्ष 1997 में सामाजिक एकता को मजबूत करने, प्रतिभावान मेधावी छात्र - छात्राओं को सम्मान कर प्रोत्साहित सम्मान करना, राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों सम्मान कर प्रोत्साहित करना, समाज प्रमुखों, समाज सेवकों तथा अन्य क्षेत्र में प्रतिभावान युवा एवं युवतियों को विशिष्ठ सेवा सम्मान कर प्रोत्साहित किया गया।
रजत जयंती समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जायेगा। राव ने बताया कि उक्त अयोजन को सफल बनाएं जानें हेतु प्रभारियों की नियुक्ति अतिशीघ्र किया जाएगा। बैठक में मुख्य रूप से सर्वश्री उपाध्यक्ष एम वेंकट राव, सचिव के ईश्वर राव, सहसचिव के प्रसाद राव, कोषाधिकारी एम ईश्वर राव, सम्माननीय कार्य समिति सदस्य जी राजू (पूर्व पार्षद)पी जगदीश राव, पी दुर्योधन राव, जी हरिकृष्ण, वी राजा राव, के पापा राव, एम धर्मा राव, डी येसय्या, सी हरीकृष्णा, वी वैकुंठ राव, जी माधव राव, गोपाल राव यादव, qहेमंत राव, ए गजपति राव, कोनेरू पापा राव, डी शंकर राव, एन भास्कर राव, सी एच अप्पला स्वामी, शंकर राव, डी चिन्ना राव, एम कामेश्वर राव,पी शेखर, के राजेंदर, एम कृष्णा उपस्थित होकर आयोजन को सफल बनाएं जानें हेतु संकल्पित हुए।
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किसे धारण करना चाहिए दो मुखी रुद्राक्ष

दो मुखी रुद्राक्ष भगवान अर्धनारीश्वर का प्रतीक
दो मुखी रुद्राक्ष भगवान अर्धनारीश्वर का प्रतीक हैं, जो एक व्यक्ति के शरीर में पुरुष और महिला की संलयन ऊर्जा को दर्शाता हैं। नेपाल से प्राप्त दो मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ हैं क्योंकि यह बाजार में सबसे मूल्यवान मनका है।
इसके अलावा यह भारत के विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरिद्वार से भी प्राप्त किया जाता है। जहाँ आप दो मुखी रुद्राक्ष को भारी मात्रा में पा सकते हैं।
दो मुखी रुद्राक्ष विभिन्न प्रकारों में आते हैं जो व्यक्तियों को उनकी राशि के अनुसार मिलते हैं। आम तौर पर यह चार रंगों में आता है: सफेद, लाल, पीला और काला।
इन अलग-अलग दो मुखी रुद्राक्ष का उपयोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया जाता है और अलग-अलग लाभ प्रदान करता है। विशेषज्ञ और ज्योतिषी दो मुखी रुद्राक्ष को सही प्रक्रिया के साथ पहनने का सुझाव देते हैं ताकि यह आपको सौभाग्य और विशेष लाभ प्रदान करे।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार सबसे उत्तम दिन है। साथ ही आप इसे रविवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को भी पहन सकते हैं। दो मुखी रुद्राक्ष को सही विधि से धारण करने से लाभ होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पहले पवित्र मनके को गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से धोकर स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। साथ ही यह असली मनका अगर आप पूजा स्थान और शिव मंदिर में धारण करते हैं तो यह अधिक काम करेगा।
रुद्राक्ष की पूजा किसी साफ स्थान पर करें और कोशिश करें कि इसे लाल धागे में धारण करें। बीज मंत्र ‘ओम अर्धनारीश्वर देवै नमः’ का जाप करना भी महत्वपूर्ण है।
पुराणों के अनुसार दो मुखी रुद्राक्ष से विशिष्ट मंत्र जुड़े हुए हैं। पद्म पुराण के अनुसार आप ॐ ॐ नमः का उच्चारण कर सकते हैं। ॐ श्री नमः का बीज मंत्र स्कंद पुराण के अनुसार है। वहीं ॐ नमः का जाप शिव पुराण के अनुसार करते हैं।
इसके अलावा ॐ ॐ नमः का जाप भी लाभकारी होता है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।
यह मनका रहस्यमय शक्तियों और सकारात्मक ऊर्जाओं को धारण करता है जो किसी व्यक्ति को हानिकारक प्रभावों से बचाता है। यह रुद्राक्ष धारण करने वाले के जीवन को सकारात्मकता और अच्छी चीजों से भर देता है।
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गणेश रुद्राक्ष को धारण करने के क्या है फायदे

गणेश रुद्राक्ष को धारण करने के कुछ फायदे इस प्रकार से हैं-
गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से हर प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, साथ ही इससे विघ्नों का नाश होता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से पढ़ाई में सफलता मिलती है। किसी भी परीक्षा में बैठने वाले छात्रों के लिए गणेश रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी होता है। भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है इसलिए विद्यार्थियों को गणेश रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। इससे धन और वैभव में वृद्धि होती है।
गणेश रुद्राक्ष बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे धारण करने से विद्यार्थियों की एकाग्रता में वृद्धि होती है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध ग्रह के सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं। इसलिए इस रुद्राक्ष को बहुत ही चमत्कारी रुद्राक्ष माना जाता है।
गणेश रुद्राक्ष किसी के मार्ग में नकारात्मकता और बाधाओं को दूर करता है। यह पहनने वाले की भौतिकवादी इच्छाओं को पूरा करता है।
गणेश रुद्राक्ष शरीर को स्वस्थ और रोग मुक्त बनाता है। यह तनाव और डिप्रेशन से राहत दिलाता है। साथ ही यह चिंता को भी कम करता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिलती है। यह फलदायी रुद्राक्ष अनेक समस्याओं का स्वत: ही समाधान कर सकता है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है।
भगवान गणेश भगवान शिव के पुत्र हैं, इसलिए भगवान शिव और देवी पार्वती (महा देवी) का आशीर्वाद इसे धारणा करने से मिलता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
यदि किसी व्यक्ति की याददाश्त कमजोर है या उसे अपने कार्यों को करने में एकाग्रता की कमी है तो उसे गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। गणेश रुद्राक्ष के शुभ प्रभाव से याददाश्त और एकाग्रता बढ़ती है।
गणेश रुद्राक्ष के द्वारा मानसिक समस्याओं को भी दूर किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति को कोई मानसिक विकार या मानसिक रोग है तो उसे गणेश रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने के बाद व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। साथ ही अगर आप अपने फैसले लेने में अटके हुए हैं तो आपको गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
गणेश रुद्राक्ष पर भगवान गणेश की कृपा होती है और इसे धारण करने वाले व्यक्ति को व्यापार में बहुत लाभ होता है। यह रुद्राक्ष स्वतः ही आपकी सफलता के मार्ग खोलता है। साथ ही अगर आप कोई नया व्यापार शुरू करने वाले हैं तो गणेश रुद्राक्ष धारण करने से आपको अधिक लाभ होगा।
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क्या है गणेश रुद्राक्ष जानिए...

सनातन परंपरा में रुद्राक्ष को न केवल भगवान शिव बल्कि सभी देवी-देवताओं और नवग्रहों का आशीर्वाद माना जाता है। सनातन धर्म में गणेश रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र और चमत्कारी बीज माना गया है।
जिसे धारण करने से व्यक्ति सभी प्रकार के संकटों से बचता है और जीवन से जुड़े सभी क्षेत्रों में उसे मनोवांछित सफलता प्राप्त होती है। इसे धारण करने से भगवान श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति की बड़ी से बड़ी मनोकामना पलक झपकते ही पूरी हो जाती है।
उसके जीवन से जुड़े सभी दोष दूर हो जाते हैं और उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है। ऐसे में उनसे जुड़ा यह रुद्राक्ष भी जातक की बुद्धि को बढ़ाने वाला माना जाता है।
विद्यार्थियों के लिए गणेश रुद्राक्ष अत्यंत फलदायी माना गया है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति पर भगवान श्री गणेश की विशेष कृपा बरसती है। ऐसा माना जाता है कि गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन से संबंधित सभी ज्ञात और अज्ञात शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
इसे पहनने से हमेशा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। रुद्राक्ष का संबंध केवल धर्म से ही नहीं बल्कि ज्योतिष से भी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश रुद्राक्ष का संबंध बुध ग्रह से है, जिसे धारण करने से कुंडली में स्थित बुध ग्रह से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं और इसकी शुभता प्राप्त होती है।
ऐसे में नवग्रहों में बुद्धि के कारक माने जाने वाले बुध ग्रह की अनुकूलता के लिए गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए गणेश रुद्राक्ष बेहद शुभ साबित होता है।
मान्यता है कि गणेश रुद्राक्ष धारण करने से विद्यार्थियों की एकाग्रता बढ़ती है। गणेश रुद्राक्ष की शुभता जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाती है। भूलने की आदत वाले बच्चों के लिए गणेश रुद्राक्ष चमत्कारी फल प्रदान करता है।
गणपति की कृपा बरसाने वाले इस रुद्राक्ष को धारण करने से पढ़ने-लिखने वाले बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ती है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के करियर और बिजनेस में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और उसे जीवन में मनचाही सफलता प्राप्त होती है।
अधिष्ठाता देवता: भगवान गणेश
सत्तारूढ़ ग्रह: बुध
बीज मंत्र: “श्री गणेशाय नमः”
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कैसे करे असली रुद्राक्ष की पहचान ?

रुद्राक्ष खरीदने से पहले व्यक्ति के मन में एक ही प्रश्न आता है कि “असली रुद्राक्ष की पहचान कैसे की जाती है? अधिकांश रुद्राक्ष व्यापारियों के विपरीत हमारे पास इसका उत्तर है। इसके लिए हमें यह पता लगाना है, कि रुद्राक्ष के आंतरिक बीजों की संख्या मुखी की संख्या के बराबर होनी चाहिए, जो इसकी बाहरी संरचना पर है। यदि बीजों की संख्या मुखी की संख्या के बराबर नहीं है, तो रुद्राक्ष की बाहरी सतह पर छेड़छाड़ होने की संभावना होती है।
इसे एक विशेषज्ञ द्वारा आसानी से पता लगाया जा सकता है। परीक्षण के कुछ अपवाद हैं, जो इस प्रकार हैं-
रुद्राक्ष की कुछ किस्मों में बीजों की संख्या मुखी की संख्या से अधिक होती है। उदाहरण के लिए यदि रुद्राक्ष के एक या एक से अधिक मुखी प्राकृतिक रूप से विकसित नहीं हुए हैं, तो रुद्राक्ष के आंतरिक भाग में बीजों की संख्या अधिक होगी।
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं, कि अगर एक रुद्राक्ष के मुख कम विकसित हुए हैं। लेकिन उसके अंदर के बीजों की संख्या अधिक है। तो यह सिर्फ एक एक्सपर्ट ही बता सकता है, कि रुद्राक्ष असली है या नकली।
यह टेस्ट नेपाली और इंडोनेशियाई मूल के रुद्राक्षों के लिए अच्छा है। रुद्राक्ष की असलियत पता करने के लिए यह सबसे नजदीकी जांच है, इस जांच की भी कुछ सीमाएं हैं।
कई बार जब रुद्राक्षों को काटा जाता है तो हमने देखा है कि बीज अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं और इसलिए बहुत ही सूक्ष्म गुहा या बिंदु की तरह दिखाई देते हैं।
खैर अब हर बार रुद्राक्ष का टेस्ट करने के लिए कोई मनका काटने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि रुद्राक्ष का एक्स-रे करवाना होगा। ऐसे में जो बीज अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं, वे अच्छी तरह से सामने नहीं आ सकते।
इस कारण एक्स-रे या एक साधारण व्यक्ति के लिए एक्स-रे की व्याख्या करना कठिन होता है। ब्लर एक्स-रे के आधार पर निष्कर्ष निकालना भी कठिन होता है। यह एकमात्र सबसे अच्छा टेस्ट है जो रुद्राक्ष की प्रामाणिकता को साबित कर सकता है।
अगर आप जानना चाहते हैं कि रुद्राक्ष की असलीयत की जांच कैसे करें? तो आप हमारे द्वारा नीचे बताए गए टेस्ट को भी आजमा सकते हैं। लेकिन इन टेस्ट पर पूरी तरह से डिपेंड होना सही नहीं है।
फ्लोटिंग इन वॉटर टेस्ट
‘पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली है और पानी में तैरने वाला रुद्राक्ष डुप्लीकेट’ जैसा परीक्षण केवल एक मिथक है। हम इस प्रकार के टेस्ट को कभी भी एक असली रुद्राक्ष की पहचान करने के लिए सही नहीं बता सकते।
रुद्राक्ष में फंसे पदार्थ या नमी के आधार पर असली रुद्राक्ष या तो तैर सकता है या पानी में डूब सकता है। एक असली रुद्राक्ष जो तेल से सना हुआ नहीं है, बहुत सूखा और वजन में हल्का होता है।
इसी प्रकार जो मनका भारी या तेल से सना हुआ हो या पानी में कुछ समय के लिए रखा हो, वह उसमें नमी के कारण डूब जाएगा। हाल ही में पेड़ से तोड़ा गया मनका, उसमें नमी के कारण डूब सकता है।
वही मनका यदि किसी बॉक्स में कुछ वर्षों तक पड़ा रहता है तो वह अपने सूखेपन के कारण पानी में डुबोने पर तैरने लगेगा है। इसके अलावा, वही सूखा मनका अगर कुछ घंटों या दिनों के लिए पानी में रखा जाए तो वह पानी को सोख लेगा और धीरे-धीरे डूबने लगेगा।
जब एक रुद्राक्ष एक गिलास पानी में डूबा हुआ होता है, तो यह गिलास के नीचे से ऊपर तक पानी में नमी के स्तर के आधार पर अपना उत्प्लावन स्तर खोज लेता है।
इस प्रकार यह सिद्ध हो चुका है कि कोई भी प्रामाणिक मनका या तो तैरेगा या उस मनके में नमी के आधार पर डूब सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है कि रुद्राक्ष का मनका कांच के केंद्र में उत्प्लावन स्तर की ओर अग्रसर होता है।
इसी प्रकार अगर एक रुद्राक्ष के अंदर धातु की कोई बूंद गिरा दी जाए, तो वह पानी में डूब जाएगा। इस प्रकार यह भी कहना सही नहीं है, कि पानी में डूबने पर रुद्राक्ष असली ही होगा।
यहां तक कि अगर कुछ लोग पानी की जांच के पक्ष में हैं, तो किसी को उनसे एक साधारण सा सवाल पूछने की जरूरत है। रुद्राक्ष मूल हो सकता है लेकिन वॉटर टेस्ट उस पर मौजूद मुखी (पहलुओं) की वास्तविकता को कैसे साबित करता है।
मुखी को पानी में डूबने वाले असली भारी रुद्राक्ष पर उकेरा जा सकता है। इसलिए किसी भी मामले में, यह साबित नहीं किया जा सकता है कि रुद्राक्ष का मनका असली है या नकली। यह सिर्फ यह साबित करता है कि यह सूखा है या नम रुद्राक्ष है, और कुछ नहीं।
दूध का परीक्षण (मिल्क टेस्ट)
कई धोखेबाज़ या अज्ञानी विक्रेताओं द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि एक असली रुद्राक्ष जब दूध के जार में रखा जाता है। तो दूध का रंग बदल देता है। कई बार ऐसा होता है कि किसानों द्वारा रुद्राक्ष की माला को कीड़ों से बचाने के लिए मिट्टी से लेप कर दिया जाता है।
इसलिए एक बार जब मिट्टी से लिपटे रुद्राक्ष को दूध में डाल दिया जाता है तो वह अपना लेप खोने लगता है और दूध के रंग में बदलाव लाता है। यह लेप नकली मनके पर भी किया जा सकता है जो दूध में वही बदलाव लाएगा।
इसके अलावा भले ही कुछ लोग मानते हैं कि इसमें कुछ अर्थ या तर्क है, फिर भी यह परीक्षण रुद्राक्ष के मुखी की प्रामाणिकता को साबित नहीं करता है। यह आमतौर पर नकली रुद्राक्ष की बिक्री को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
कॉपर कॉइन टेस्ट
रुद्राक्ष के मनके की प्रामाणिकता को साबित करने के लिए कई अन्य मापदंड लिखे गए हैं जैसे दो सिक्कों के बीच घूमना और रुद्राक्ष को एक रात के लिए उसमें भिगोने के बाद दूध का रंग बदलना।
लेकिन ये सभी एक सही मानदंड नहीं हैं क्योंकि चुंबकीय क्षेत्र वाला एक मनका घूमता है और अगर मनका मिट्टी से रंगा जाता है तो वह अपना रंग खो देता है। इसलिए हमें इन शंकाओं और झूठी धारणाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए।
डुप्लीकेट रुद्राक्ष
डुप्लीकेट रुद्राक्ष पूरी दुनिया में अलग-अलग जगहों पर पाए जाते हैं। लेकिन उत्तरांचल, भारत और पूरे नेपाल में ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे स्थानों में आसानी से मिल जाते हैं। इसके अलावा आजकल रुद्राक्ष की माला नकली नहीं होती है लेकिन उन पर लगे मुखी नकली होते हैं।
एक कुशल कारीगर कम कीमत वाले रुद्राक्ष के मुखी को बड़े करीने से अतिरिक्त कट देकर उसे उच्च मुखी रुद्राक्ष मनके में परिवर्तित कर सकता है, जो उसे अधिक कीमत दिलाएगा।
इसी तरह वह कम कीमत वाले रुद्राक्ष मनका पर कुछ मुखी (पहलुओं) को छुपा सकता है, जिससे उसे कम मुखी मनका में परिवर्तित किया जा सकता था, जिससे उसे अधिक कीमत मिलेगी। केवल अनुभवी आंख ही इसका पता लगा सकती है।
ये कारीगर दो या तीन कम कीमत वाले मोतियों को एक साथ जोड़ने के लिए सुपरफाइन गोंद का उपयोग करते हैं और उन्हें एक अत्यधिक कीमत वाले गौरीशंकर या अत्यधिक कीमत वाले त्रिजुडी रुद्राक्ष में परिवर्तित करते हैं।
फिर भी इन चिपके हुए मोतियों को उबले हुए (उबलते नहीं) पानी में पूरी तरह से डुबाकर पता लगाया जा सकता है। ऐसी संभावना है कि यह गर्म पानी गोंद को अंदर से ढीला कर देगा और कृत्रिम रूप से जुड़े दो या तीन मोती को एक दूसरे से अलग कर देगा।
लेकिन आजकल कारीगरों द्वारा सुपरफाइन गोंद के उपयोग के कारण यह संभावना है कि मनके अलग न हों, इसलिए अंततः यह अनुभवी आंख ही है जो इसका पता लगा सकती है।
कई अन्य पेड़ जो एलियोकार्पाके ग्रैनिट्रस परिवार से संबंधित नहीं हैं, उन पर फल लगते हैं जो रुद्राक्ष के मनके के समान दिखते हैं। यह बहुत ही भ्रामक हो सकता है। क्योंकि एक सामान्य आंख को अंतर का तुरंत एहसास नहीं हो सकता है।
अंतत: खुद को समझाने या रुद्राक्ष की माला खरीदने का एकमात्र तरीका भरोसे पर है। रुद्राक्ष एक वास्तविक सप्लायर से खरीदना चाहिए जो लोगों के प्रति जवाबदेह हो।
रुद्राक्ष खरीदना रत्न खरीदने जैसा है जिसमें खरीदार केवल एक विश्वसनीय सप्लायर से खरीदते हैं। इस प्रकार खरीदारों को इन मोतियों को खरीदने से पहले अन्य सप्लायर्स से भी संपर्क करना चाहिए।
इसलिए हमारा आपसे यही आग्रह है, कि जब भी आप कोई रुद्राक्ष खरीदें तो किसी trusted source से ही खरीदें। असल में किसी भी रुद्राक्ष की असलियत का पता लगाने का कोई वास्तविक तरीका नहीं है।
सिर्फ एक अनुभवी व्यक्ति ही असली और नकली में फर्क कर सकता है। लेकिन आँखें कभी भी धोखा दे सकती है। तो हमारी आपसे यही राय है, आप पूरी जांच के बाद ही रुद्राक्ष खरीदें। सस्ता रुद्राक्ष कभी भी खरीदने की कोशिश न करें।
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कितने तरह के होते हैं रुद्राक्ष ?

रुद्राक्ष को उनके मुख या चेहरे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
रुद्राक्ष को उनके मुख या चेहरे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। रुद्राक्ष जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, यह एक पेड़ का फल है। इसमें आम तौर पर 5 कंपार्टमेंट होते हैं और प्रत्येक कंपार्टमेंट में एक ही बीज होता है।
दो कंपार्टमेंट के बीच जोड़ने वाली दीवार को फल की सतह पर खांचे या रेखा द्वारा दर्शाया जाता है। इसे मुख या मुखी कहते हैं। मुखों की संख्या रुद्राक्ष के प्रकार का निर्धारण करती है।
1. एक मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह सूर्य और देवी लक्ष्मी है। एक मुखी रुद्राक्ष परम वास्तविकता और भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वामी ग्रह सूर्य है और इसे सूर्य के बुरे प्रभावों को कम करने के लिए पहना जाता है।
यह काम और ध्यान के लिए एकाग्रता और पहनने वाले की इच्छा शक्ति को बढ़ाता है। यह सिर के रोगों से बचाता है। यह सुख-समृद्धि भी देता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या एक होती है।
2. दो मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह चंद्रमा और देवता अर्थनेश्वर (शिव और पार्वती रूपम) है। दो मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले के लिए वैवाहिक आनंद, खुशी, शांति और सद्भाव के लिए उपयोगी है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या दो होती है।
यह विवाह और संतान प्राप्ति में आ रही बाधाओं को दूर करता है। साथ ही यह सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों के लिए अच्छा है। यह उर्वरता बढ़ाता है, भौतिक इच्छाओं को पूरा करता है। चन्द्रमा के अशुभ प्रभाव को दूर करता है।
3. तीन मुखी रुद्राक्ष
इसका सत्तारूढ़ ग्रह मंगल और देवी मा सरस्वती है। तीन मुखी रुद्राक्ष स्मृति, आत्मविश्वास, रचनात्मक बुद्धि और एकाग्रता को बढ़ाता है। यह डिप्रेशन, हीन भावना से पीड़ित लोगों के लिए अच्छा है।
साथ ही यह मस्तिष्क रोगों में सहायक और मंगल का शुभ फल देता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या तीन होती है। इस प्रकार आप तीन मुखी रुद्राक्ष की जांच कर सकते हैं।
4. चार मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह बुध और देव भगवान ब्रह्मा: है। सृष्टि के भगवान ब्रह्मा जी चार मुखी रुद्राक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रह्मा जी, चार सिर वाले भगवान जिन्हें ब्रह्मांड का निर्माता कहा जाता है। इस प्रकार के रुद्राक्ष से बुद्धि, तर्क, मानसिक शक्ति और बुद्धि में वृद्धि होती है।
यह ध्यान के लिए अच्छा है। ज्ञान, सीखने और एकाग्रता में सुधार के लिए चार मुखी बुद्धिजीवियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, व्याख्याताओं, लेखकों, छात्रों, पत्रकारों, दुभाषियों, शिक्षकों आदि के लिए उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या चार होती है।
5. पाँच मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह बृहस्पति और देव भगवान रुद्र है। बुरी शक्ति के विनाशक शिव पांच मुखी रुद्राक्ष के देव है, यह रुद्राक्ष आमतौर पर उपलब्ध हैं। रुद्राक्ष के पेड़ के लगभग 90% मोती पांच मुखी होते हैं। यह स्वास्थ्य, मानसिक शांति और खुशी प्रदान करता है।
इसे पहनने वाले में पांच तत्वों यानी अग्नि, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी को नियंत्रित और संतुलित करने की शक्ति होती है। यह सफलता और सकारात्मक सोच के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या पाँच होती है।
6. छः मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह शुक्र और देव भगवान कार्तिकेय है। छह मुखी रुद्राक्ष को कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा जाता है जो भगवान शिव के पुत्र थे। यह विपरीत लिंग के प्रति प्रेम और आकर्षण से संबंधित मामलों के लिए अच्छा है।
यह आराम, सद्भाव, आकर्षण और शिष्टता देता है। यह कला, रचनात्मकता, साहित्य, संगीत आदि के लिए रुचि पैदा करने के लिए उपयोगी है। यह भावनात्मक और संवेदनशील व्यक्तियों के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या छः होती है।
7. सात मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह शनि और देव भगवान सप्तऋषि (सात महान सिद्ध ऋषि) है। सात मुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य और धन के लिए अच्छा है। इसके अन्य लाभ सफलता, आनंद, शांति और खुशी हैं। यह बिजनेस और करियर के लिए अच्छा है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। यह पहनने वाले को न्याय, अधिकार, ज्ञान और सम्मान की भावना देता है। सर्दी, खांसी, गठिया, टीबी, ब्रोंकाइटिस को रोकने के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या सात होती है।
8. आठ मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह राहु और देव भगवान गणेश है। आठ मुखी रुद्राक्ष बाधाओं को दूर करता है। यह इच्छा शक्ति को बढ़ाता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। यह बिजनेस और करियर के लिए बहुत अच्छा है। यह अनिद्रा और मानसिक समस्याओं के लिए अच्छा है।
यह अहंकार, फिजूलखर्ची और पेट के रोगों को दूर करता है। यह सौभाग्य लाता है। यह राहु के दुष्प्रभाव को कम करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या आठ होती है।
9. नौ मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह केतु और देवी मां दुर्गा है। नौ मुखी रुद्राक्ष केतु के बुरे प्रभाव को कम करता है। यह पहनने वाले को आत्मविश्वास, शक्ति, निडरता और स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह पाप, अधर्म, अन्याय, क्रूरता, आलस्य और बुरी आदतों को दूर करने के लिए अच्छा है।
यह आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या नौ होती है।
10. दस मुखी रुद्राक्ष
भगवान विष्णु दस मुखी रुद्राक्ष पर शासन करते हैं। यह बाधाओं और पिछले पापों (कर्म कार्यों) को दूर करने के लिए अच्छा है। यह घबराहट, अनिर्णय, शर्म और क्रोध को दूर करता है। यह आध्यात्मिक जागृति और सकारात्मक विचारों के लिए सहायक है।
इसे लगभग कोई भी पहन सकता है। यह मन की शांति देता है और दुश्मनों, काली या बुरी नजर से बचाता है। यह भ्रम दूर करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या दस होती है।
11. ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
भगवान शिव के ग्यारह रूपम (एकद रुद्र) ग्यारह मुखी रुद्राक्ष का उपयोग लगभग सभी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह सामान्य रूप से सफलता, आराम, मन की शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य, इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक सफलता देता है।
यह स्थिरता और आत्मविश्वास लाता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या ग्यारह होती है।
12. बारह मुखी रुद्राक्ष
सुल्पानी रूपम (सूर्य के देवता) बारह मुखी रुद्राक्ष के देव हैं। यह पहनने वाले को ऊर्जा और जीवन शक्ति देता है। यह स्वास्थ्य, अधिकार, प्रभाव, सम्मान, प्रतिभा, राजनीति में सफलता, व्यापार, प्रशासन और बौद्धिक खोज का लाभ देता है।
बारह मुखी राजनेताओं, व्यापारियों, प्रशासकों आदि के लिए अनुकूल है। यह हड्डियों के रोगों में अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या बारह होती है।
13. तेरह मुखी रुद्राक्ष
इंद्र देव यानि आनंद के देवता इस रुद्राक्ष पर शासन करने वाले देव हैं। तेरह मुखी रुद्राक्ष नेतृत्व गुणों, संचार और विपणन कौशल को बढ़ाने के लिए उपयोगी है। यह किसी के कार्यों के लिए तेजी से परिणाम आकर्षित करता है, अवसर और शारीरिक शक्ति देता है।
यह मुश्किलों को आसानी से पार करने में मददगार है और रिश्तों को टूटने से बचाता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या तेरह होती है।
14. चौदह मुखी रुद्राक्ष
भगवान शिव रूपम चौदह मुखी रुद्राक्ष के देव है। यह व्यक्ति के मानसिक पहलुओं को जगाने में शक्तिशाली है। यह दूरदर्शी गुणों को बढ़ाता है। यह किसी व्यक्ति को शनि के दुष्प्रभाव से बचाता है विशेष रूप से साढ़े साती (7.5 वर्ष) और ढय (2.5 वर्ष) के प्रभाव से।
यह व्यापार और वित्त में लाभ लाता है। यह व्यवसायियों और रोमांच चाहने वाले व्यक्तियों के लिए अच्छा है। यह घाटे में चल रहे बिजनेस को फिर से खड़ा करने में सहायक है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या चौदह होती है।
15. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष
भगवान पशुपतिनाथ इस रुद्राक्ष के देव हैं, जो मुक्ति के भगवान (मोक्ष या मुक्ति) है। पंद्रह मुखी रुद्राक्ष अंतर्ज्ञान शक्ति पैदा करता है और मानसिक शक्ति बढ़ाता है। यह किसी व्यक्ति के ऊर्जा स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
पदोन्नति और आर्थिक प्रगति चाहने वालों के लिए यह अच्छा है। यह जाने-अनजाने में किए गए किसी के पिछले पापों के बुरे प्रभावों को कम करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या पंद्रह होती है।
16. गौरीशंकर रुद्राक्ष
शिव और पार्वती रूपम यह विशेष लेकिन प्राकृतिक रुद्राक्ष है जो तीन रुद्राक्षों के एक साथ जुड़ने पर बनता है। ऐसा कहा जाता है कि यह हिंदू ट्रिनिटी का प्रतिनिधित्व करता है। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) है।
इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले को स्वास्थ्य, धन, शक्ति और ज्ञान जैसी सभी चीजें प्राप्त होती हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में “नव ग्रह दोष” को दूर करने की शक्ति है, जो हिंदू ज्योतिष के अनुसार सभी 9 ग्रहों के बुरे प्रभाव हैं।
यह वैवाहिक कलह और पारिवारिक समस्याओं को दूर करता है। इस रुद्राक्ष की पहचान करना बहुत आसान है। आप तीन एक साथ जुड़े रुद्राक्ष को देखकर इसका पता लगा सकते हैं।
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नवरात्रि के नौ दिनों देवी के अलग-अलग स्वरूपों की होगी पूजा

हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इसे पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है और देवी के भक्तों में इसे लेकर काफी उत्साह रहता है। बता दें कि साल भर में कुल 4 नवरात्रि होती हैं जिनमें दो मुख्य नवरात्रि मानी जाती हैं एक चैत्र और दूसरी शारदीय नवरात्रि।
चैत्र नवरात्रि हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है और नवमी तिथि को इसका समापन होता है। प्रतिपदा तिथि के दिन सभी भक्त अपने घरों में घट स्थापना कर देवी का आव्हन करते हैं और इसके 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। आइए जानते हैं प्रतिपदा से नवमी तिथि तर सभी देवियों के नाम व घटस्थापना की विधि-
नवरात्रि में घट स्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। मान्यता है कि नवरात्रि में कलश स्थापना करने से मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है और इसके बाद नौं दिनों तक मां शक्ति घरों में विराजमान रहकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
कैसे करें घटस्थापना?
नवरात्रि के पहले दिन सुबह स्नान कर मंदिर की सफाई करें या फिर जमीन पर माता की चौकी लगाएं। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश जी का नाम लें और मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं और मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें। मिट्टी में जौ के बीच डाल दें। इसके बाद कलश या लोटे पर मौली बांधें और उस पर स्वास्तिक बनाएं।
लोटे (कलश) पर कुछ बूंद गंगाजल डालकर उसमें दूब, साबुत सुपारी, अक्षत और सवा रुपया डाल दें और फिर लोटे (कलश) के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर रखें। अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचो बीच रख दें और फिर माता के सामने व्रत का संकल्प लें और अपना व्रत शुरू करें।
नवरात्रि के 9 दिन और देवी के नौं स्वरुप
- 22 मार्च 2023 दिन बुधवार- पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा
- 23 मार्च 2023, गुरुवार - दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
- 24 मार्च 2023, शुक्रवार- तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा
- 25 मार्च 2023, शनिवार- चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा
- 26 मार्च 2023, रविवार- पंचमी को मां स्कंदमाता की पूजा
- 27 मार्च 2023, सोमवार- छठा दिन मां कात्यायनी देवी की पूजा
- 28 मार्च 2023, मंगलवार- सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा
- 29 मार्च 2023, बुधवार- आठवां दिन मां महागौरी की पूजा
- 30 मार्च 2023, गुरुवार, राम नवमी - नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा
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ये पौधे लाते हैं घर में पॉजिटिव एनर्जी

पेड़-पौधे (Plants) घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते हैं
पेड़-पौधे (Plants) घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते हैं। साथ में इनसे घर में पॉजिटिव एनर्जी (Positive Energy) का वास भी होता है। लेकिन वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) में बताया गया है की पेड़ पौधे भी सोच समझकर लगाने चाहिए। क्योंकि कई पेड़ पौधे ऐसे होते हैं जो घर में नेगेटिव एनर्जी को बढ़ाने का काम करते हैं। लेकिन यदि वास्तु के अनुसार घर में पेड़ पौधे लगाए जाएं तो इससे पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है, और सभी सदस्यों के जीवन पर भी इसका बड़ा पॉजिटिव असर देखने को मिलता है। आइये जानते हैं कि वो कौन से पेड़ पौधे हैं जिन्हें घर में लगाना चाहिए।
तुलसी का पौधा (Vastu Tips for Plant)
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का बड़ा महत्व माना जाता है। हर घर में इसकी पूजा की जाती है। वास्तु (Vastu Shastra) के अनुसार भी तुलसी के पौधे को घर में रखना शुभ माना जाता है। मान्यता है की तुलसी के पौधे को घर में लगाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। जिस घर में तुलसी की पूजा होती उस घर में गहन की भी कमी नहीं होती।
मनी प्लांट
वास्तु में मनी प्लांट के पौधे को भी शुभ माना जाता है। अगर आप अपने घर में दक्षिण-पूर्व दिशा में मनी प्लांट लगाते हैं तो इससे घर में धन लाभ होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में मनी प्लांट लगाना शुभ माना जाता है। दरअसल मनी प्लांट को वास्तु के नियम के अनुसार लगाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
एलोवेरा (Vastu Tips for Plant)
एलोवेरा के पौधे में कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। उसके अलावा इसे वास्तु की दृष्टि से भी बहुत शुभ माना जाता है। अगर आप अपने घर से नेगेटिव एनर्जी को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं तो मनी प्लांट को उत्तर या पूर्व दिशा में रखें। ऐसा करने से घर में शांति बनी रहती है। मनी प्लांट को लकी प्लांट भी माना जाता है। साथ ही इसके इस्तेमाल से आपकी स्किन और हेयर भी बड़ी हेल्दी रहते हैं।
स्नैक प्लांट
स्नैक प्लांट देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। इसे घर में लगाने से घर किम रौनक बढ़ जाती है। इसके अलावा स्नैक प्लांट का वास्तु की दृष्टि से भी बेहद शुभ माना जाता है। इस पौधे को लगाने से घर में सकारात्मकता बनी रहती है और घर के सदस्यों की सेहत भी दुरुस्त रहती है। इसके अलावा यह पौधा घर की अशुद्धियों को दूर कर देता है और जहां लगा होता है वहां ताजगी बनाए रखता है। इस पौधे को कंप्यूटर टेबल के पास लगाना सबसे अच्छा मानते हैं।
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शुक्रवार के दिन क्या खरीदें और क्या न खरीदें

हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होता है, जिसमें में शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है. इस दिन इन्हें प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. ऐसा मान्यता है कि जो व्यक्ति इनकी पूजा विधिवत करता है, उसे जीवन में कभी धन और वैभव की कमी नहीं होती है. इसके साथ शुक्रवार का दिन शुक्रदेव को भी समर्पित है. शुक्रदेव को सुख-सौंदर्य का कारक माना जाता है. अब ऐसे में इस दिन कुछ उपायों के बारे में बताया गया है, जिसे करने से आपके जीवन में हमेशा धन की वृद्धि होगी और शुक्रदेव की भी कृपा बनी रहेगी. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि शुक्रवार के दिन क्या चीजें नहीं खरीदना चाहिए.
शुक्रवार के दिन प्रॉपर्टी से जुड़ा कोई भी काम नहीं करना चाहिए. इस दिन प्रॉपर्टी खरीदना भी शुभ नहीं माना जाता है. इसले अलावा रसोईघर और पूजा-पाठ से संबंधित चीजें भी नहीं खरीदना चाहिए.
इस दिन आप कपड़े खरीद सकते हैं. शुक्रदेव को प्रसन्न करने के लिए आप सफेद वाहन खरीदें, ये बहुत शुभ माना जाता है.
शुक्रवार के दिन कला, संगीत,साज-सजावट का सामान और सौंदर्य आदि से जुड़ी चीजें खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन इन चीजों की खरीदारी करने से मां लक्ष्मी जल्द प्रसन्न होती हैं.
शुक्रवार के दिन पैसों की लेन-देन करने से बचना चाहिए. ऐसा करने से मां लक्ष्मी क्रोधित हो जाती हैं. शुक्रवार के दिन किसी को भी शक्कर नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से मां लक्ष्मी क्रोधित हो जाती हैं और कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर हो जाती है. शुक्रवार के दिन साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए. इससे मां लक्ष्मी जल्द प्रसन्न होती हैं. फटे और गंदे कपड़े भूलकर भी न रखें.
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खुदाई के दौरान मिला प्राचीन शिवलिंग

चमत्कार मान लोगों ने विधि विधान से शुरू की पूजा-अर्चना
बालोद। आज पूरे देश भर में शिवभक्ति का अलग माहौल है। कुछ वर्ष पहले तक जहां लोगो की भीड़ सिर्फ शहर या गांव के कुछ चुनिंदो मंदिर में देखा जाती थी। आज परिस्थिति ऐसी हैं जगह जगह छोटे व बड़े मंदिरों में शिवभक्तो की भीड़ देखी जा सकती है। ऐसे में अगर कही धरती से शिवलिंग मिलने की खबर आ जाए तो इसे किसी चमत्कार से कम नहीं माना जाएगा।
बालोद जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के ग्राम मुड़खुसरा में नहर में पुल निर्माण कार्य के लिए खुदाई करने के दौरान श्रमिकों को एक पुरानी शिवलिंग की प्रतिमा मिली। जानकारी मिलते ही शिवलिंग देखने ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। ग्रामीण इसे चमत्कार मान रहे हैं।
कुछ ऐसा ही नजारा गुरुवार को जिले के डौंडीलोहारा ब्लाक अंतर्गत मुड़खुसरा गांव में देखने को मिला। जहां नहर पर पुल निर्माण कार्य के दौरान खुदाई के दौरान एक प्राचीन शिवलिंग की प्रतिमा मिली। शिवलिंग मिलने की खबर से गांव में अचानक शिवलिंग को देखने ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। जिसके बाद इस निर्माण में लगे मजदूरों ने इस शिवलिंग को सावधानी पूर्वक बाहर निकाला और निर्माणस्थल के बगल में ही इस शिवलिंग की प्रतिमा को विधि-विधान से पूजा अर्चना कर रखा गया है।
शिव मंदिर का होगा निर्माण
पूरे मामले पर ग्रामीणों ने बताया कि जिस जगह से यह प्रतिमा खुदाई के दौरान निकली है। उस जगह या आसपास कोई मंदिर या किसी तरह का कोई पुरातत्विक इतिहास भी नहीं है। जिसके चलते ग्रामीण इसे किसी चमत्कार से कम भी नहीं मान रहे है। बताया जा रहा है कि इस प्रतिमा को जिस जगह स्थापित किया गया है। आने वाले दिनों में उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया जाएगा।
 
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उपवास के दौरान क्या खाना है और क्या नहीं, देखें पूरी लिस्ट

चैत्र नवरात्रि इस बार 22 मार्च से शुरू हो रही है और इस दौरान यदि आप भी 9 दिन उपवास करने पर विचार कर रहे हैं तो हम आपको बता दें कि उपवास के दौरान सभी तरह के मसालों के सेवन करने की अनुमति नहीं होती है। उपवास के दौरान कुछ खाद्य सामग्री व मसालों का सेवन करने से बचना चाहिए। उपवास में आप 9 दिन किन चीजों का सेवन कर सकते हैं, इस बारे में भी विस्तार से जानकारी यहां दी जा रही है-
चैत्र नवरात्रि 22 से 30 मार्च तक रहेगी। देश भर में मां दुर्गा के भक्त इन 9 दिनों के उत्सव को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। नवरात्रि आमतौर पर वर्ष के विभिन्न महीनों में चार बार मनाई जाती है, ये हैं शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि, माघ गुप्त नवरात्रि और आषाढ़ गुप्त नवरात्रि।
शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि का धार्मिक महत्व ज्यादा बताया गया है इसलिए इन्हें पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान देशभर में मां दुर्गा के भक्त नवरात्रि के व्रत रखते हैं और व्रत के दौरान सात्विक भोजन करते हैं और तामसिक भोजन से परहेज करते हैं।
9 दिन व्रत में इन चीजों का न करें सेवन
व्रत में प्याज, लहसुन, गेहूं का आटा, चावल, बैंगन, मशरूम से परहेज किया जाता है। व्रत के दौरान कुछ मसालों के सेवन से भी परहेज करना चाहिए। इस दौरान गरम मसाला, धनिया पाउडर (धनिया), हल्दी, हींग, सरसों, मेथी के बीज आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
व्रत के दौरान इन चीजों का करें सेवन
व्रत के दौरान चावल, कुट्टू का आटा, राजगीरा का आटा, साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, आलू, शकरकंद , लौकी, अरबी, पालक, कद्दू, लौकी, गाजर और खीरा आदि का सेवन किया जा सकता है। इसके अलावा उपवास के दौरान जीरा चूर्ण, काली मिर्च पाउडर, हरी इलायची, जायफल, लौंग, दालचीनी और अजवाइन का सेवन कर सकते हैं। नवरात्रि के उपवास के दौरान सामान्य नमक के बजाय सात्विक भोजन में सेंधा नमक खाना चाहिए।

डिसक्लेमर
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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सच्चे मन से स्मरण करने से होती है प्रभु की कृपा

धनबाद। बर्मामाइंस कैरेज कालोनी में श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ से महंत केशवाचार्च ने मंगलाचरण के बाद शुकदेव, परीक्षित जन्म एवं अमरकथा का वर्णन किया. महंत केशवाचार्य ने कहा कि पार्वती को अमरकथा सुनने की इच्छा हुई. उन्होंने भगवान भोलेनाथ से कथा सुनाने की जिद की. पार्वती के जिद के आगे भोलेनाथ नतमस्तक हो गए तथा कथा सुनाने के लिए राजी हो गए. 10वें अध्याय तक कथा सुनने के बाद पार्वती जी को नींद आ गई. कुछ दूर घोसले में बैठकर कथा सुन रहे तोता (सुग्गा) के बच्चे ने हूंकारी भरना शुरु किया. 12वें अध्याय के बाद कथा समाप्त हो गई. जब जयकारा लगा तो पार्वती जी की नींद खुली. उन्होंने दसवें अध्याय के बाद कथा सुनाने की बात कही. भोलेनाथ ने कहा कि मैने पूरी कथा सुनाई है. इस दौरान किसी ने हुंकारी नहीं भरी है. बाद में ज्ञात हुआ कि तोते के बच्चे ने पूरी कथा सुन ली है.
भोलेनाथ के भय से तोते का बच्चा वेदव्यास की पत्नी के गर्भ में समा गया. 12 वर्ष तक गर्भ में रहने के बाद शुकदेव ने जन्म लिया. महंत केशवाचार्य ने कहा कि ईश्वर की प्राप्ति काफी सरल है. सच्चे मन से उनका स्मरण करने से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है.
सहियाओं को मिला सम्मान
आदिवासी यंग बॉयज कमिटी द्वारा आज रामपुर गिट्टीमशीन छोटगोविंदपुर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. जिसमे मुख्य अतिथि के रूप जिला परिषद सदस्य डॉ परितोष सिंह उपस्थित हुए.
समाज में जान जोखिम में डालकर अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले महिला समूहों, आंगनबाड़ी सेविकाओं, सहिया बहनों को सम्मानित किया. इस अवसर पर राजबानसिंह, रामकिशन सुंडी, रवि लोहार, बीरबल सोय, विकास बहादुर, और अमित कालुंडिया थे.
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पूजा-पाठ में क्यों जलाया जाता है घी का दीपक?

जानिए इससे जुड़े जरूरी नियम
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है। हर घर में देवी-देवताओं की पूजा विधि-विधान से की जाती है। इसके लिए चंदन-अक्षत, रोली-कुमकुम आदि से तिलक किया जाता है। उन्हें धूप-दीपक दिखाया जाता है। फल-फूल, मिठाइयां अर्पित की जाती है। इस दौरान घी का दीपक जलाया जाता है। इसके साथ ही हर शाम तुलसी के पास दीपक जलाया जाता है। कई घरों में रोजाना मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर भी रखा जाता है। दीपक जलाने के लिए घी या अलग-अलग तरह के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं कि घी का दीपक जलाने के क्या लाभ हैं और इससे जुड़े कुछ खास नियम।
-देवी-देवताओं के सामने दीपक जलाने से कई लाभ मिलते हैं। इससे देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। साथ ही वातावरण में सकारात्मकता आती है और शुद्ध होता है। माना जाता है कि घर में शाम के समय घी का दीपक जलाने से लक्ष्मी जी हमेशा घर में वास करती हैं। साथ ही घर के कई वास्तु दोष भी दूर होते हैं।
-शास्त्रों के अनुसार घी और तेल दोनों के दीपक जलाना काफी लाभ देता है। दोनों के लिए अलग-अलग नियम बताए गए हैं। घी का दीपक हमेशा बाईं ओर रखना चाहिए।
-हनुमान जी को चमेली के तेल का और शनि देव को सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है। इसके अलावा अधिकतर देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से घी का दीपक जलाना चाहिए।
-वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में दीपक जलाते समय दिशाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। गलत स्थान पर दीपक रखने से नुकसान हो सकते हैं। दीपक को घर में हमेशा पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

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होली मिलन समारोह : रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का हुआ आयोजन

कान्हा रे, थोड़ा सा प्यार दे गाने पर थिरके दर्शक
कांकेर। चारामा के हिमांशु ब्यूटी पार्लर में होली मिलन समारोह पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर राधा कृष्ण की जोड़ी फूलों की होली सांस्कृतिक कार्यक्रम होली कार्यक्रम में बच्चों ने विविध प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि टीवी कलाकार घनश्याम महानंद , गोपाल दुर्गासी ने श्री कृष्णा के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कान्हा रे, थोड़ा सा प्यार दे गाने में, खूब तालियां बटोरी। छात्राओ ने कुर्सी दौड़ ,डांस प्रतियोगिता में भाग लिया। छत्तीसगढ़ के जाने-माने कलाकार घनश्याम महानंद ने अपनी प्रस्तुति पेश की। इस अवसर पर हिमांशु ब्यूटी पार्लर की संचालिका चंद्रक्रांति नागे के साथ छात्राएं भोज सिन्हा, परमिला साहू , गायत्री साहू , गीतिका साहू, खिलेश्वरी यादव, सरिता सेन, दीप्ति , ओम कुमारी पटेल, करिश्मा सिन्हा, करिश्मा साहू, भूमि जैन, भूमि जोतिमानी, मोहनी, लोकेश्वरी देवागन, सुनीता रजक, उर्वासी यादव, अजली देवागन, करिश्मा सिन्हा, प्रभा देवांगन, जानवी सेन उपस्थित थे। सभी ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। सभी छात्राओं को पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
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धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री 19 मार्च को आ सकते हैं रायपुर

रायपुर। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग छत्तीसगढ़ से की जाएगी। 19 मार्च को रायपुर के रावाभाठा में संतों की महासभा होगी। इससे पहले 17 छत्तीसगढ़ के चार स्थानों से निकाली गई रैली का समागम होगा। 18 को भव्य रैली निकाली जाएगी। महासभा में तीन महामंडलेश्वर समेत एक साध्वी और दो संत शामिल होंगे। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को न्यौता भेजा गया है। डोंगरगढ़ की ओर से आ रही यात्रा 16 की शाम यात्रा दुर्ग पहुंचेगी। 17 को रैली निकलेगी। शाम को खुर्सीपार में सभा होगी। इसके बाद संतों की यात्रा रायपुर की ओर आगे बढ़ेगी।
कार्यक्रम में हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद, महामंडलेश्वर स्वामी ज्योर्तिमयानंद, मुंबई के महामंडलेश्वर स्वामी चिदकंबरानंद स्वामी, काशी के स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, हरियाणा के महाराज संपूर्णानंद और देहरादून की साध्वी प्राची शामिल होंगी।
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चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से होगी शुरू

इस बार माता नाव पर सवार होकर आएगी, होगी खूब बारिश
चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू होगी। इस बार की नवरात्रि की खाशियत यह है कि इस बार माता नाव में सवार होकर आएंगी। 22 मार्च से ही नव संवत्सर 2080 भी शुरू होगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू होकर 30 मार्च तक रहेगी। इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना होगी। इस साल चैत्र नवरात्रि पर माता का वाहन नाव होगी, जो इस बात का संकेत है इस साल खूब वर्षा होगी।
नवरात्रि में बन रहे शुभ योग
चैत्र नवरात्रि में अबकी बार पूरे नौ दिनों की नवरात्रि होगी। नवरात्रि के दौरान तीन सर्वार्थ सिद्धि योग 23 मार्च, 27 मार्च, 30 मार्च को लगेगा। जबकि अमृत सिद्धि योग 27 और 30 मार्च को लगेगा। रवि योग 24 मार्च, 26 मार्च और 29 मार्च को लगेगा। और नवरत्रि के अंतिम दिन रामनवमी के दिन गुरु पुष्य योग भी रहेगा।
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि बुधवार, 22 मार्च से शुरू हो रहे हैं। चैत्र नवरात्रि घटस्थापना के मुहूर्त की शुरुआत 22 मार्च को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक (अवधि 01 घंटा 09 मिनट) रहेगी. चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा तिथि 21 मार्च को रात 10 बजकर 52 मिनट से शुरू हो रही है और प्रतिपदा तिथि का समापन 22 मार्च को रात 08 बजकर 20 मिनट पर होगा।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना की विधि शुरू करने से पहले सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें. उसके बाद एक साफ स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता रानी की प्रतिमा स्थापित करें. इस कपड़े पर थोड़े चावल रखें. एक मिट्टी के पात्र में जौ बो दें. इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें. कलश पर स्वास्तिक बनाकर इसपर कलावा बांधें. कलश में साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालकर अशोक के पत्ते रखें. एक नारियल लें और उस पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें. इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आवाहन करें. इसके बाद दीप आदि जलाकर कलश की पूजा करें. नवरात्रि में देवी की पूजा के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है।
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