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माघ पूर्णिमा पर करें ये काम, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति

माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा माघी पूर्णिमा कहलाती है. पंचांग के अनुसार, इस वर्ष माघी पूर्णिमा 12 फरवरी, बुधवार के दिन मनाई जाएगी. माघ पूर्णिमा के दिन पितरों की तृप्ति के लिए स्नान और दान के साथ-साथ अनुष्ठान आदि भी किए जा सकते हैं. मान्यतानुसार जीवन में एक के बाद एक संकट आने पर, घर में कलह होने पर, घर-परिवार में सुख और शांति ना होने पर यह माना जाता है कि पितृ नाराज हैं और पितृ दोष लग गया है. ऐसे में यहां जानिए किन बातों को ध्यान में रखकर पितृ दोष से छुटकारा पाया जा सकता है. कुछ उपाय आजमाकर देखे जा सकते हैं|
माघ पूर्णिमा पर पितृ दोष के उपाय :-
सूर्यदेव को दें अर्घ्य-
माघ पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर सूर्य देव को अर्घ्य देना शुभ होता है. अपने पितरों का ध्यान लगाएं और “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का जाप करें. घर की खुशहाली के लिए ऐसा करना अच्छा माना जाता है|
गंगा स्नान और तर्पण-
संभव हो तो माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करें और पितरों को तर्पण दें. गंगा के अलावा किसी और पवित्र नदी में स्नान किया जा सकता है या फिर गंगाजल को पानी में मिलाकर इस पानी से भी घर के अंदर स्नान कर सकते हैं. पितरों का तर्पण जिस जल से कर रहे हैं उसमें तिल जरूर डालें|
दीप जलाना-
माघ पूर्णिमा के दिन घर में चौमुख दीपक जलाएं. इसके अलावा पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितृ स्तोत्र का पाठ करें. ऐसा करने पर मान्यतानुसार पितृ प्रसन्न हो जाते हैं|
भोजन का दान-
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए भोजन का दान किया जा सकता है. इसके अलावा किसी गाय, कुत्ते या कौवे को रोटी खिलाएं. कहते हैं इससे पितरों को शांति मिलती है. पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए भी ऐसा किया जा सकता है|
चंद्रमा को अर्घ्य देना-
पूर्णिमा की रात चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है. कच्चे दूध में सफेद फूल डालकर चंद्रमा को अर्घ्य देने पर पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है|
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गुप्त नवरात्रि का दसवां दिन आज, मां कमला की पूजा विधि, मंत्र और महत्व

माघ महीने की गुप्त नवरात्रि चल रही है. गुप्त नवरात्रि पर 10 महाविद्याओं का पूजन किया जाता है. आज यानी सात फरवरी को गुप्त नवरात्रि अंतिम दिन है. गुफ्त नवरात्रि 30 जनवरी से शुरू हुई थी. आज अंतिम दिन मां कमला का पूजन किया जाएगा. मां कमला को दस महाविद्याओं में सबसे महत्वपूर्ण और विशेष माना गया है. मां कमला 10वीं महाविद्या हैं. ऐसे में आइए जानते हैं मां कमला की पूजा विधि, मंत्र और महत्व के बारे में|
मां कमला की पूजा विधि-
गुप्त नवरात्रि के 10वें दिन स्नान करने के बाद शुद्ध लाल वस्त्र पहनने चाहिए.
इसके बाद पूजा वाले स्थान पर पूर्व दिशा में ऊनी आसन पर मुख करके बैठ जाना चाहिए.
फिर लकड़ी की चौकी रखकर उसपर गंगाजल छिड़ककर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए.
इसके बाद चौकी पर ताम्बे की प्लेट में एक कमल का फूल रख लेना चाहिए.
कमल के फूल के बीच में सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘कमला यंत्र’ स्थापित करना चाहिए.
कमला यंत्र के दायीं तरफ भगवान शिव जी और अपने गुरू की तस्वीर रखनी चाहिए.
कमला यंत्र के समाने घी का दिया जलाना चाहिए. फिर विधिपूर्वक यंत्र की पूजा करनी चाहिए.
मां कमला के मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए. मंत्रों के जाप के बाद कमला कवच का पाठ भी करना चाहिए.
मां कमला के मंत्र-
श्रीं क्लीं श्रीं
ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं
श्रीं क्लीं श्रीं नमः
ॐ ह्रीं हूं हां ग्रें क्षों क्रोम नम:
नमः कमलवासिन्यै स्वाहा
मां कमला की पूजा का महत्व धर्म शास्त्रोंं में मां कमला आदि शक्ति के प्रथम अवतार के रूप में जानी जाती हैं. धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि मां कमला भाग्य, सम्मान, पवित्रता और परोपकार की देवी हैं. यही नहीं मां कमला को भगवान विष्णु की दिव्य शक्ति माना गया है. मानन्यताओं के अनुसार, जो भी काम किए जाते हैं, उसमें मां कमला की उर्जा के रूप में उपस्थिति होती है.
गुप्त नवरात्रि में मां कमाला के पूजन के कौशल विकास और गुणवत्ता बढ़ती है. मां कमला का पूजन माता लक्ष्मी की पूजा के बराबर पुण्यदायी माना जाता है. मां की कृपा से धन और सुख की प्राप्ति होती है. गर्भवति महिलाओं को मां कमला का पूजन अवश्य करना चाहिए. मान्यता है कि मां कमला गर्भवति महिलाओं की गर्भ की सुरक्षा और पोषण करती हैं.
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माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को, जानिए...व्रत विधि

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. साथ ही जीवन में खुशियां आती हैं. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. माघ पूर्णिमा का व्रत बड़ा ही विशेष होता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस व्रत में क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए. साथ ही ये व्रत कैसे पूरा होगा
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि बहुत विशेष मानी जाती है. इसमें भी माघ पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व माना जाता है. ये पूर्णिमा माघ महीने में पड़ती है. इस वजह से इसे माघ या माघी पूर्णिमा भी कहा जाता है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान और उसके बाद दान किया जाता है|
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने की पूर्णिमा तिथि की मंगलवार, 11 फरवरी 2025 को शाम 6 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी. वहीं तिथि का समापन बुधवार 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा उदया तिथि के अनुसार, इस बार माघी पूर्णिमा का व्रत 12 फरवरी को किया जाएगा|
माघ पूर्णिमा व्रत विधि-
माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. अगर नदी में संभव न हो तो घर के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए.
इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. साथ हीव्रत का संकल्प लेना चाहिए.
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए.
पूजा के समय विधिपूर्वक व्रत कथा का पाठ करना चाहिए.
फल और मिठाई का भोग लगाना चाहिए.
आरती के समय विष्णु जी के मंत्रों का जप और चालीसा का पाठ करना चाहिए.
इस दिन पीपल के पेड़ पर दूध मिलाकर जल चढ़ाना और घी का दिया जलाना चाहिए.
व्रत में खाएं ये चीजें-
माघ पूर्णिमा के व्रत में फलाहार खाना चाहिए.
फल खाने चाहिए.
सूखे मेवे खाने चाहिए.
दूध से बनी मिठाई खानी चाहिए.
शकरकंद फलाहार होता है. इसलिए शकरकंद खाना चाहिए.
रामदान के लड्डू खाने चाहिए.
व्रत में न खाएं ये चीजें-
माघ पूर्णिमा के व्रत में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए.
शराब का सेवन नहीं करना चाहिए.
मादक पदार्थ नहीं खाना चाहिए.
तिल का तेल नहीं खाना चाहिए.
लाल साग नहीं खाना चाहिए.
नमक नहीं खाना चाहिए.
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रवि प्रदोष व्रत 9 फरवरी को, जानिए...शुभ मुर्हूत

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है
इस दिन भक्त शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि फरवरी माह का पहला प्रदोष व्रत कब किया जाएगा, तो आइए जानते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है यह दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम समय होता है इस बार माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि रविवार के दिन होने से यह रवि प्रदोष व्रत कहलाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा पाठ और व्रत करना लाभकारी होगा। रवि प्रदोष व्रत 9 फरवरी 2025 दिन रविवार को रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 फरवरी को शाम 7 बजकर 25 मिनट पर आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन 10 फरवरी को शाम 6 बजकर 57 मिनट पर होगा। इस तरह रवि प्रदोष व्रत 9 फरवरी दिन रविवार को मनाना शुभ रहेगा। इस दिन शिव पूजा प्रदोष काल में करना उत्तम होगा।
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होलिका दहन 13 मार्च को, जानिए...शुभ मुर्हूत

  • रंगों वाली होली 14 मार्च को
सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन होली का त्योहार बहुत ही खास माना जाता है जो कि देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। होली का त्योहार रंगों का त्योहार होता है इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर अपनी खुशियां बांटते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन के​ दिन भगवान विष्णु और अग्नि देव की पूजा की जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत बृहस्पतिवार 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में रंगों वाली होली 14 मार्च को पड़ रही है।
होलिका दहन का शुभ समय-
पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। ऐसे में होलिका दहन के लिए कुल 1 घंटे 4 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है इस दौरान पूजा करना लाभकारी होगा।
होलिका दहन की सरल पूजा विधि-
आपको बता दें कि होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाकर थाली में रख लें। उसके साथ में रोली, पुष्प, मूंग नारियल, अक्षत, साबुत हल्दी, बताशे, कच्चा सूत, फल और कलश भरकर रख लें। फिर भगवान नरसिंह का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चंदन, पांच तरह के अनाज, और पुष्प अर्पित करें फिर कच्चा सूत लेकर होलिका की सात बार परिक्रमा करें। अंत में गुलाल डालकर जल अर्पित करें।
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महादेव को प्रिय है "तीन" अंक, जानिए...पौराणिक कथा

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन महाशिवरात्रि को बहुत ही खास माना जाता है जो कि शिव को समर्पित दिन है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि इस पावन दिन पर शिव साधना करने से प्रभु की असीम कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है। इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि के पावन मौके पर हम आपको अपने इस लेख द्वारा एक दिलचस्प कथा बता रहे हैं जिससे महादेव के 3 अंक प्रिय होने का रहस्य खुल जाएगा, तो आइए जानते हैं इस कथा के बारे में।
तीन अंक का रहस्य-
शिव पुराण की त्रिपुर दाह की कथा में शिव के जुड़े तीन अंक का रहस्य उजागर होता है। इस कथा के अनुसार, तीन असुरों ने तीन उड़ने वाले नगर बनाए और इन नगरों का नाम त्रिपुर रखा। ये तीनों नगर अलग-अलग दिशा में उड़ते रहते थे। असुर आतंक मचा कर नगरों में चले जाते थे, जिस कारण इनका कोई अनिष्ट नहीं कर पाता था। इन तीनों नगरों को नष्ट किये बिना इन तीनों असुरों को समाप्त नहीं किया जा सकता था लेकिन इन नगरों को नष्ट करने में एक परेशानी थी। इन तीनों को एक ही बाण से भेदा जा सकता था लेकिन तीनों अलग-अलग दिशा में उड़ाते रहते थे, इसलिए इन्हें एक ही लाइन में असंभव था। असुरों के आतंक से देवता भी काफी परेशान हो चुके थे। इसलिए, उन्होंने भगवान शिव की शरण ली।
तब शिवजी ने उनकी विनती सुनकर धरती को रथ बनाया और सूर्य-चंद्रमा को उस रथ का पहिया बना लिया। मदार पर्वत को धनुष बनाया और उस पर कालसर्प आदिशेष की प्रत्यंचा चढ़ाई। धनुष के बाण बने विष्णु जी। वे लम्बे समय तक इन नगरों का पीछा करते रहे, ताकि उन्हें एक सीध में देखकर नष्ट कर सकें। फिर एक दिन वो पल आ गया, जब तीनों नगर एक सीध में आ गए और शिव जी ने पलक झपकते ही बाण चला दिया। शिव जी के बाण से तीनों नगर जलकर राख हो गए। इन तीनों नगरों की भस्म भगवान शिव ने अपनी शरीर पर लगा ली। इसलिए शिव जी की त्रिपुरारी भी कहा गया और मान्यता है कि तब से ही भगवान शिव की पूजा में तीन का विशेष महत्व होने लगा।
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माघ गुप्त नवरात्रि की अष्टमी आज

  • जानिए...शुभ समय और पूजा विधि
गुप्त नवरात्रि का आठवा दिन मां बंगलामुखी को समर्पित है. मां बगलामुखी को पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है. मां के मुख से सदैव पीली रंग की आभा निकलती रहती है. इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व होता है. मां बगलामुखी को स्तम्भन शक्ति की देवी माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, सौराष्ट्र में आये महातूफ़ान को शान्त करने के लिए भगवान विष्णु ने मां बगलामुखी की तपस्या की थी. जिसके बाद मां बगलामुखी प्रकट हुई थीं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां बग्लामुखी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है|
माघ गुप्त नवरात्रि की अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त-
माघ गुप्त नवरात्रि का पूजन निशा काल में किया जाता है. ऐसे में माघ माह की अष्टमी तिथि के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त आज रात्रि 12 जबकर 9 मिनट से लेकर रात्रि 1 बजकर 1 मिनट तक रहेगा. ऐसे में गुप्त नवरात्रि की अष्टमी तिथि का पूजन करना शुभ फलदायी होगा|
मां बगलामुखी की पूजा विधि-
गुप्त नवरात्रि में मां बगलामुखी की पूजा करने के लिए सुबह स्नान करने के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें. जिस स्थान पर पूजा करनी है वहां गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें. इसके बाद एक चौकी रखकर मां बगलामुखी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीले फूल और दक्षिणा लेकर माता बगलामुखी व्रत का संकल्प करें. साथ ही देवी को खड़ी हल्दी की माला पहनाएं. पीले फल और पीले फूल चढ़ाएं. पीले रंग की चुनरी अर्पित करें. इसके बाद धूप, दीप और अगरबत्ती लगाएं. फिर पीली मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं. वहीं अगले दिन पूजा करने के बाद ही भोजन करें|
मां बगलामुखी के मंत्र जाप-
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्ववां कीलय, बुद्धि विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा
इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करने से माना जाता है कि मां बगलामुखी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सभी दुख और बाधाओं से मुक्त करती हैं|
श्री हृीं ऐं भगवती बगले मे श्रियं देहि-देहि स्वाहा।।
जीवन में धन की कमी दूर करने के लिए मां बगलामुखी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए|
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माघ पूर्णिमा पर इस मुहूर्त में लगाएं गंगा में डुबकी, सौभाग्य की होगी प्राप्ति

सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं लेकिन पूर्णिमा और अमावस्या तिथि को बहुत ही खास माना जाता है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है। साल में कुल 24 पूर्णिमा तिथियां आती है हर पूर्णिमा का अपना महत्व होता है। पंचांग के अनुसार माघ मास में पड़ने वाली पूर्णिमा को माघ या माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है
इस दिन स्नान दान, पूजा पाठ और तप जप का विधान होता है। माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु प्रयाग स्थित त्रिवेणी संगम में या अन्य स्थानों पर गंगा स्नान करते हैं मान्यता है कि इस पावन दिन पर गंगा स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सारे पाप मिट जाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि इस साल माघ पूर्णिमा कब मनाई जाएगी और इस दिन गंगा स्नान का शुभ मुहूर्त क्या है तो
आइए जानते हैं।
माघ पूर्णिमा की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 11 फरवरी को शाम 6 बजकर 55 मिनट पर हो रहा है और इस ति​थि का समापन 12 फरवरी को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को मनाई जाएगी। इसी दिन पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाएगा। इसके अलावा माघी पूर्णिमा पर महाकुंभ में शाही स्नान किया जाएगा।
माघ पूर्णिमा पर महाकुंभ में शाही स्नान का मुहूर्त 12 फरवरी को तड़के सुबह 5 बजकर 19 मिनट से आरंभ होगा। ये मुहूर्त सुबह 6 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान का ये सबसे उत्तम मुहूर्त हैं इस मुहूर्त में गंगा स्नान करने से सुख समृद्धि मिलती है और सारे पाप धुल जाते हैं।
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कोसरिया मरार पटेल समाज ने मनाई मां शाकंभरी जयंती

महासमुंद। ग्राम नांदगांव में कोसरिया मरार पटेल समाज ने सोमवार को समाज की ईष्ट देवी मां शाकंभरी की जयंती मनाई। इस अवसर पर समाज की महिलाओं, बच्चों एवं पुरूषों ने माता के जयकारों के साथ कलश यात्रा निकाली।
कलश यात्रा पटेल समाज भवन से निकली और गांव भ्रमण के साथ सब्जियों का वितरण किया गया। समाज के प्रमुखों ने इस दौरान माता शाकंभरी की उत्पत्ति की कथा का विस्तार से वर्णन किया। कार्यक्रम में विशेष रूप से भंडारे का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर समाज प्रमुखों ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में मां शाकंभरी देवी को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है। पौष माह की पूर्णिमा तिथि को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। मां शाकंभरी देवी को ‘शाकाहार की देवी’भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब धरती पर भयंकर अकाल पड़ा था, तो मां शाकंभरी ने अपने भक्तों को सब्जियां और फल प्रदान कर उनके जीवन की रक्षा की थी। इसी वजह से शाकंभरी देवी कहा जाता है।
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जया एकादशी व्रत 8 फरवरी को, करें ये काम

  • पूरी होगी मनोकामना
सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन एकादशी व्रत को खास बताया गया है जो कि हर माह में दो बार आती है ऐसे साल में कुल 24 एकादशी व्रत किया जाता है। जो कि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और उपवास भी रखा जाता है।
पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है इसे कई अन्य नामों से भी जानते हैं जिसमें अजा और भीष्म एकादशी है। इस एकादशी के दिन पूजा पाठ और व्रत करने से दुखों का
निवारण होता है।
इस बार जया एकादशी का व्रत 8 फरवरी को किया जाएगा, इस दिन पूजा पाठ के दौरान विष्णु आरती जरूर पढ़ें मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा करते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान विष्णु की आरती।
भगवान विष्णु की आरती-
ऊं जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
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मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 6 फरवरी को, इस विधि से करें माता का ध्यान

हिंदू धर्म शास्त्रों में मासिक दुर्गाष्टमी का दिन बहुत ही पवित्र मानी गया है. ये दिन माता दुर्गा को समर्पित है. हर माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत पड़ता है. इस दिन माता दूर्गा की विधिपूर्वक पूजा-उपासना की जाती है. जो भी दुर्गाष्टमी का व्रत करते हैं उन पर मां विशेष कृपा करती हैं. उनके घर में खुशियां बनी रहती हैं. मासिक दुर्गाष्टमी पर माता की पूजा और व्रत के साथ मां का ध्यान भी किया जाता है. ऐसा करने से जीवन में मुश्किलें नहीं आतीं|
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी की तिथि 5 फरवरी 2025 को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर शुरू हो जाएगी. ये तिथि 6 फरवरी को देर रात 12 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 6 फरवरी को रखा जाएगा|
पूजा विधि-
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन प्रात: काल स्नान करके साफ वस्त्र पहन लेने चाहिए.
इसके बााद माता दुर्गा का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
मंदिर की साफ-सफाई करनी चाहिए|
इसके बाद मंदिर में एक चौकी रखनी चाहिए. उस पर लाल रंग का साफ कपड़ा बिछाना चाहिए|
फिर माता दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को चौकी पर रखना चाहिए.
पूजा के समय देवी मां को सोलह श्रृंगार की साम्रगी, लाल चुनरी, लाल रंग के फूल आदि चढ़ाने चाहिए.
मां दुर्गा की आरती और उनके मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए.
अंत में मां दुर्गा की आरती करके प्रसाद वितरित करना चाहिए.
ऐसे करें माता का ध्यान-
मासिक दूर्गाष्टमी के दिन माता दूर्गा का ध्यान करना चाहिए. इस दिन माता दूर्गा का ध्यान करना बड़ी ही शुभकारी और लाभकारी माना गया है. ध्यान करने लिए मंदिर या घर के किसी शुद्ध एकांत स्थान पर सबसे पहले आसन पर बैठकर जल से आचमन करना चाहिए. फिर हाथ में चावल और फूल लेकर अंजुरी बांधनी चाहिए. इसके बाद माता दूर्गा का ध्यान करना चाहिए. फिर माता के मंत्रों का जाप करना चाहिए. माला भी जपनी चाहिए|
मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व-
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन शक्ति की अराधना की जाती है. इस दिन मां की पूजा और व्रत करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है|
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9 फरवरी को प्रदोष व्रत, जानिए...शुभ मुहूर्त एवं महत्व

फरवरी में माघ माह का पखवाड़ा चल रहा है। इस माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 फरवरी की रात 7.25 बजे शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 10 फरवरी की शाम 6:57 बजे खत्म हो जाएगी। चूंकि प्रदोष काल की पूजा रात में होती है, इसलिए 9 फरवरी को ही प्रदोष व्रत रखा जाएगा। बता दें कि जब-जब प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है तो उसका नाम रवि प्रदोष हो जाता है। इस बार भी प्रदोष व्रत रविवार को पड़ रहा है, ऐसे में रवि प्रदोष व्रत कहा जा रहा है।
कौन से बन रहे योग और क्या है शुभ मुहूर्त?
जानकारी के लिए बता दें कि 9 फरवरी की रात 7.25 से 8.49 बजे तक प्रदोष पूजा मुहूर्त है, ऐसे में जातक को इसी समय पर पूजा करने से लाभ मिलेगा।
इस तिथि पर इस बार दो शुभ योग बन रहे हैं। पहला प्रीति योग और दूसरा त्रिपुष्कर योग, जो बेहद शुभ माना गया है। इस दौरान विष्कुम्भ योग का भी निर्माण हो रहा जो दोपहर 12:06 मिनट तक है। ऐसे में इस बार का प्रदोष व्रत बेहद फलदायी साबित हो सकता है।
पूजा विधि-
प्रदोष व्रत कर रहे जातक को पहले एक चौकी लेकर उस पर शिव-पार्वती की तस्वीर और मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। फिर मूर्ति या शिवलिंग पर शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए और शिव जी को बेलपत्र और भांग चढ़ाएं। वहीं, मां पार्वती को फूल अर्पित करें। अब मूर्ति के पास दिया जलाएं और महादेव के मंत्रों का जप करें। अंत में पूजा के बाद प्रसाद आदि वितरित करें।
प्रदोष व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन निराहार रहकर भगवान शिव की भक्ति-भाव से पूजा करनी चाहिए और इस दिन क्रोध, लोभ और मोह से बचना चाहिए. प्रदोष व्रत आध्यात्मिक उत्थान और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी मनाया जाता है कहेत हैं भक्ति भाव से इस व्रत का पालन करने से जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर रहते हैं. इसके अलावा घर में सुख-शांति बनी रहती है.
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महाशिवरात्रि 26 फरवरी को, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त

Mahashivratri : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन महाशिवरात्रि को बहुत ही खास माना जाता है जो कि शिव को समर्पित दिन है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि इस पावन दिन पर शिव साधना करने से प्रभु की असीम कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि साल 2025 में महाशिवरात्रि कब मनाई जाएगी, तो आइए जानते हैं दिन तारीख और मुहूर्त।
इस दिन है महाशिवरात्रि-
हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2025 में महाशिवरात्रि का त्योहार 26 फरवरी को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी पावन दिन पर पहली बार भगवान भोलेनाथ शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि महाशिवरात्रि की रात शिवलिंग में भगवान शिव वास करते हैं।
महाशिवरात्रि की रात जो लोग चार प्रहर में शिव का अभिषेक व पूजन करते हैं उनके जीवन के समस्त संकट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन निशिता काल में जलाभिषेक करना शुभ होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी 2025 को सुबह 11 बजकर 8 मिनट से 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। वही महाशिवरात्रि पर निािता काल पूजा 26 फरवरी को देर रात 12 बजकर 9 मिनट से रात 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में रात्रि पूजन करना लाभकारी होगा।
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नर्मदा जयंती आज, जानिए...पूजा का मुहूर्त

  • मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दी नर्मदा जयंती की शुभकामनाएं
सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाएं जाते हैं और सभी का विशेष महत्व होता है लेकिन नर्मदा जयंती को खास बताया गया है नर्मदा नदी को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर नर्मदा जयंती का उत्सव मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन नर्मदा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर्मदा नदी के तट पर स्नान और ध्यान करते हैं। जिससे वे अपने सभी पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकें। इस दिन पूजा अर्चना करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों से राहत मिलती है साथ ही देवी देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है। इस साल नर्मदा जयंती आज 4 फरवरी मंगलवार को मनाई जा रही हैं तो आज हम आपको पूजा का मुहूर्त व अन्य जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
नर्मदा जयंती पूजा का मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 4 फरवरी दिन मंगलवार को सुबह 4 बजकर 37 मिनट से आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन 5 फरवरी दिन बुधवार को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। उदया तिथि के अनुसार 4 फरवरी दिन मंगलवार को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाएगा।
इसी काल में नर्मदा जयंती का पूजन किया जाएगा। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों का धारण करें। अब मां नर्मदा के पूजन का संकल्प करें और दिन की शुरुआत करें। घर के पूजन स्थल की साफ सफाई करके विधिवत पूजा करें।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दी नर्मदा जयंती की शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने 4 फरवरी को नर्मदा जयंती के पावन अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं। इस अवसर पर उन्होंने मां नर्मदा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि मां नर्मदा का आशीर्वाद समस्त जीवों के कल्याण के लिए है। नर्मदा नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और समृद्धि की प्रतीक है।  मां नर्मदा की निर्मल धारा जीवनदायिनी है और हमें जल संरक्षण का संदेश देती है। इस पावन पर्व पर हम सभी संकल्प लें कि जल संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण की रक्षा के लिए सतत प्रयास करेंगे।
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गुप्त नवरात्रि का आज पांचवा दिन

  • जानिए...मां छिन्नमस्ता की पूजा विधि, मंत्र और लाभ
आज गुप्त नवरात्रि का पांचवा दिन है. यह दिन भगवती त्रिपुर सुंदरी के रौद्र रुप देवी छिन्नमस्ता को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी छिन्नमस्ता राक्षसों का संहार कर देवताओं को उनसे मुक्त कराया था. यह भी माना जाता है कि देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने से मनुष्य को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और साथ ही सुख और समृद्धि का वरदान मिलता है|
मां छिन्नमस्ता की पूजा विधि-
गुप्त नवरात्रि के पांचवे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें. उसके बाद व्रत का संकल्प लेकर एक वेदी पर मां छिन्नमस्ता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर लें. उसके बाद देवी को गंगाजल, पंचामृत और साफ जल से स्नान करवाने के बाद देवी को कुमकुम और सिंदूर से तिलक लगाएं. मां छिन्नमस्ता को गुड़हल के फूल बहुत प्रिय हैं इस इसलिए उन्हें गुड़हल के फूलों की माला जरूर अर्पित करें. इसके बाद लौंग, इलायची, बतासा, नारियल, मिठाई और फल का भोग लगाएं. पूजा का समापन आरती से करें. देवी के वैदिक मंत्रों का जाप और ध्यान करें साथ ही पूजा के दौरान हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे.इस दिन कन्या पूजन का भी विधान है|
माता छिन्नमस्तिका मंत्र-
बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा अष्टमुखी रुद्राक्ष माला अथवा लाजवर्त की माला से देवी के इस अद्भुत मंत्र का जाप करें|
मां छिन्नमस्ता की पूजा के लाभ-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां छिन्नमस्ता की सच्चे मन से पूजा करने वाले को जीवन में कभी भी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता इसके अलावा मां छिन्नमस्ता की पूजा से समृद्धि, स्थिरता और लंबे जीवन के साथ साथ और भी अनगिनत लाभ होते है. छिन्नमस्तिका मंत्र कुंडलिनी जागरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कुंडलिनी योग मां के अभ्यास के दौरान मूला धरा चक्र के जागरण के लिए छिन्नमस्तिका मंत्र का जाप किया जाता है|
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महाकुंभ में अब तक स्नानार्थियों की संख्या 35 करोड़ के पार

प्रयागराज। मां गंगा, मां यमुना और अदृश्य मां सरस्वती के पवित्र संगम में श्रद्धा और आस्था से ओत-प्रोत साधु-संतों, श्रद्धालुओं, कल्पवासियों, स्नानार्थियों और गृहस्थों का स्नान अब एक नए शिखर पर पहुंच गया है। इसी क्रम में बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर महाकुंभ में अब तक स्नानार्थियों की संख्या ने 35 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया। सोमवार को सुबह 8 बजे तक 62.25 लाख श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी संगम में पावन डुबकी लगाई। इसके साथ ही महाकुंभ में स्नानार्थियों की कुल संख्या 35 करोड़ के पार हो गई। अभी महाकुंभ के सम्पन्न होने में 23 दिन और शेष हैं। पूरी उम्मीद है कि स्नानार्थियों की संख्या 50 करोड़ के ऊपर जा सकती है।
प्रयागराज में श्रद्धालुओं/स्नानार्थियों के जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही है। पूरे देश और दुनिया से पवित्र त्रिवेणी में श्रद्धा और आस्था के साथ डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में प्रयागराज पहुंच रहे हैं। बसंत पंचमी के अंतिम अमृत स्नान पर भी सुबह से ही करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम स्नान को पहुंचे। रविवार 2 फरवरी को करीब 1.20 करोड़ ने स्नान किया था, जिसके बाद कुल स्नानार्थियों की संख्या 35 करोड़ के करीब पहुंच गई थी, जिसने सोमवार सुबह यह आंकड़ा पार कर लिया। स्नानार्थियों में 10 लाख कल्पवासियों के साथ-साथ देश-विदेश से आए श्रद्धालु एवं साधु-संत शामिल रहे।
यदि अब तक के कुल स्नानार्थियों की संख्या का विश्लेषण करें तो सर्वाधिक 8 करोड़ श्रद्धालुओं ने मौनी अमावस्या पर स्नान किया था, जबकि 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने मकर संक्रांति के अवसर पर अमृत स्नान किया था। एक फरवरी और 30 जनवरी को 2-2 करोड़ के पार और पौष पूर्णिमा पर 1.7 करोड़ श्रद्धालुओं ने पुण्य डुबकी लगाई।
गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (मंत्रिमंडल समेत) संगम में डुबकी लगा चुके हैं। इसके अलावा राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी, राज्य सभा सांसद सुधा मूर्ति, असम विधानसभा अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडे, गोरखपुर के सांसद रवि किशन, हेमा मालिनी, बॉलीवुड एक्ट्रेस भाग्यश्री, अनुपम खेर, मिलिंद सोमण, एक्ट्रेस से किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं ममता कुलकर्णी, कवि कुमार विश्वास, क्रिकेटर सुरेश रैना, खली और कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा भी संगम में स्नान कर चुके हैं।
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बसंत पंचमी पर महाकालेश्वर मंदिर में विशेष भस्म आरती की गई

उज्जैन। सोमवार को बसंत पंचमी के अवसर पर बाबा महाकाल (भगवान शिव) की पूजा-अर्चना करने के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। इस अवसर पर विशेष भस्म आरती और धूप-दीप आरती की गई और भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल को देवी सरस्वती के रूप में सजाया गया।
भस्म आरती (राख से अर्पण) यहाँ की एक प्रसिद्ध रस्म है। यह सुबह लगभग 3:30 से 5:30 के बीच 'ब्रह्म मुहूर्त' के दौरान की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भस्म आरती में भाग लेने वाले भक्त की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
परंपरा के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में बाबा महाकाल के पट खोले गए और उसके बाद भगवान महाकाल को केसर युक्त पंचामृत से पवित्र स्नान कराया गया, जिसमें दूध, दही, घी, शक्कर और शहद शामिल है। इसके बाद बाबा महाकाल को पीले चंदन, सरसों के फूल और गेंदे के फूलों से सजाया गया। भगवान को पीले वस्त्र पहनाए गए और फिर ढोल-नगाड़ों और शंखनाद के बीच विशेष भस्म आरती और धूप-दीप आरती की गई।
मंदिर के पुजारी प्रशांत शर्मा ने बताया, "आज बसंत पंचमी है जो देवी सरस्वती को समर्पित है। सरस्वती पूजा के अवसर पर भस्म आरती के दौरान बाबा महाकालेश्वर को देवी सरस्वती के रूप में सजाया गया ताकि भक्तों को देवी सरस्वती के रूप में बाबा महाकाल के दर्शन हो सकें।" उन्होंने कहा, "चूंकि यह अवसर वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, इसलिए बाबा महाकाल को सरसों के फूल चढ़ाए गए। हमने आज बाबा महाकालेश्वर मंदिर के परिसर में बसंत पंचमी उत्सव का जश्न देखा और भगवान से प्रार्थना की कि वे देश के लोगों को आशीर्वाद दें और सभी के जीवन में वसंत ऋतु जैसी खुशियाँ लाएँ।" भक्तों ने भी भस्म आरती में भाग लेने के बाद अपनी खुशी व्यक्त की और कहा कि आरती में भाग लेना एक अद्भुत क्षण था। "बसंत पंचमी के पावन अवसर पर, हम सभी ने यहाँ बाबा महाकालेश्वर मंदिर में पूजा की और भस्म आरती में भाग लिया। हमें यह बहुत पसंद आया और भस्म आरती बहुत अद्भुत थी, यह अलौकिक थी और हमें यह बहुत पसंद आई। बाबा महाकाल का श्रृंगार बहुत प्रभावशाली था, और यहाँ पूजा करने के लिए हमारे पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं, यह बहुत अच्छा था," एक भक्त ने कहा।
एक अन्य भक्त ने कहा, "मैंने पहले कभी ऐसी खुशी महसूस नहीं की। मुझे यह बहुत अच्छा लगा। आज बाबा महाकाल को इस अवसर पर पीले फूल और पीले पकवान अर्पित किए गए। मुझे बहुत अच्छा लगा और हम सभी की ज़िंदगी वसंत की तरह खुशहाल होने की कामना करते हैं।" बसंत पंचमी का हिंदू त्यौहार, जिसे वसंत पंचमी, श्री पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, वसंत के पहले दिन मनाया जाता है और माघ महीने के पांचवें दिन आता है। यह होली की तैयारियों की शुरुआत का भी संकेत देता है, जो त्यौहार के चालीस दिन बाद होती है। पूरे त्यौहार के दौरान विद्या, संगीत और कला की हिंदू देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। (एएनआई)
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300 वर्ष प्राचीन मंदिर में CM विष्णुदेव साय ने की पूजा

रायपुर। 300 वर्ष प्राचीन मंदिर में CM विष्णुदेव साय ने पूजा की। सोशल मीडिया में जानकारी साझा करते हुए लिखा, ॥ जय जगन्नाथ ॥
जशपुर के कस्तूरा, दुलदुला में स्थित 300 वर्ष प्राचीन मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी के दर्शन-पूजन कर प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की। इस अवसर पर प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय एवं प्रदेश मंत्री प्रबल प्रताप सिंह जूदेव उपस्थित रहे।।
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