धर्म समाज

कालाष्टमी 20 अप्रैल रविवार को, बनेंगे 5 शुभ योग

हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के रुद्रावतार बाबा भैरव की पूजा की जाती है। कालाष्टमी व्रत या काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। अगर आप बिना किसी हथियार के भी अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो भी आप बच सकते हैं। 20 अप्रैल रविवार को आ रही कालाष्टमी पर 5 शुभ योग बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग और सिद्ध योग से मन की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दौरान जो भी काम किया जाता है, उससे मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। शास्त्रों के अनुसार संकट, विपत्तियों और सभी तरह की समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भैरव साधना बहुत जरूरी है।
तंत्रसार के अनुसार भगवान शंकर के अवतारों में भैरवनाथ विशेष महत्व रखते हैं। नाथ संप्रदाय की तांत्रिक व्यवस्था में भैरव बाबा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। रविवार को कालाष्टमी पर भैरव मंत्र का प्रयोग करने से व्यापार में विजय, जीवन में आने वाली परेशानियां, शत्रु पक्ष से परेशानी, बाधाएं, रुकावटें, कोर्ट केस आदि से मुक्ति मिलती है। भैरव की पूजा का मुहूर्त 20 अप्रैल को सुबह 11:58 बजे से दोपहर 12:42 बजे तक रहने वाला है। काल भैरव की पूजा और मंत्र जाप निशिता मुहूर्त में किया जाता है। तंत्र और मंत्र सिद्धि के लिए निशिता मुहूर्त बहुत शुभ होता है। इस समय सिद्ध योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनेगा।
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शनिवार को करें ये खास उपाय, शनिदेव की कृपा से दूर होंगे कष्ट

शनिवार का दिन मुख्य रूप से शनिदेव को समर्पित है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव न्याय और कर्मफलदाता ग्रह है. यह सभी ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह है जिस कारण से इनका जातकों को पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव काफी दिनों तक रहता है. शनिदेव के नकारात्मक प्रभाव से जातक का जीवन बहुत ही कष्टकारी हो जाता है|
ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों के ऊपर शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या चलती है उनको इसके प्रभाव को कम करने या फिर खत्म करने के लिए शनिवार के दिन विशेष उपाय किए जाते हैं. आइए जानते है शनिवार के दिन किन उपायों को करने पर व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य का साया खत्म हो जाता है और जीवन में सौभाग्य में वृद्धि होती है. इसके साथ ही जीवन में आने वालों कष्टों से छुटकारा मिलता है|
शनिवार के दिन करें ये उपाय-
शनिदेव को पीपल का पेड़ बहुत प्रिय है. शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं, तिल का तेल चढ़ाएं और परिक्रमा करें. इससे शनि दोष से मुक्ति मिलती है|
शनिवार को शनि मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा करें. उन्हें तेल का दीपक जलाएं और काले तिल चढ़ाएं. शनिवार को काले तिल का दान करना बहुत शुभ माना जाता है. आप गरीबों को काले तिल दान कर सकते हैं|
हनुमान जी को शनिदेव का मित्र माना जाता है. शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि दोष का प्रभाव कम होता है. शनिवार को किसी गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं. इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं.
शनिवार को नीले रंग के वस्त्र का दान करना शुभ माना जाता है. शनि मंत्र का जाप करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है. शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं|
शनिदेव की कृपा पाने के लिए और जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए शनिवार के दिन चीटियों को आटे में चीनी मिलाकर खिलाना चाहिए|
शनि दोष से बचने के लिए और शनिदेव की कृपा के लिए शनिवार के दिन काली गाय और काले कुत्ते को रोटी खिलाएं. इस उपाय से जीवन में समृद्धि का रास्ता खुलता है|
शनिवार के दिन गरीबों ओर असहायों की मदद जरूर करनी चाहिए. इस दिन इन्हे तेल से बनी हुई चीजें खाने में देने पर शनिदेव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है|
अगर आपके ऊपर शनि से संबंधित किसी प्रकार की बाधा चल रही है तो इससे मुक्ति पाने के लिए शनिवार के दिन काले घोड़े की नाल या फिर नाव की कील से बनी अंगूठी को पहनें|
जिन लोगों के ऊपर शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या चल रही हो तो उन्हें शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और 7 बार परिक्रमा करते हुए ऊं शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए.
शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना बहुत ही शुभ लाभदायक होता है|
जीवन में अगर किसी प्रकार की आर्थिक परेशानियां चल रही हैं तो इससे निजात पाने और सुख-शांति के लिए शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं|
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा जरूर करनी चाहिए. इस इन्हें नीले रंग का फूल अर्पित करें और ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें|
शनिदेव के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शनिवार के दिन काला चना, काली उड़द दाल और काले कपड़े का दान करना चाहिए|
जानिए...क्या है महत्व-
ऐसी मान्यता है कि शनिवार के दिन इन उपायों को करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और लोगों पर अपनी कृपा बरसाते हैं. ऐसा माना जाता है कि शनिवार के दिन विधि विधान से पूजा की जाए तो शनिदेव की कृपा से लोगों को कष्ट धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं और साथ ही जीवन में आने वाली परेशानियां खत्म होने लगती है. इसके अलावा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है|
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शनिवार को करें पीपल के पेड़ का ये उपाय

  • शनिदेव का मिलेगा आशीर्वाद, कष्ट होंगे दूर
शनिवार का दिन भगवान शनि देव को समर्पित है। इस दिन सूर्य पुत्र शनि देव की उपासना करने से ढैय्या, साढ़ेसाती जैसे दोषों से मुक्ति मिलती है। शनिवार के दिन सरसों तेल और काला तिल चढ़ाने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही इस दिन पीपल पेड़ की पूजा करने से भी शनि दोष से छुटकारा मिलता है। तो आइए अब आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं शनिवार के दिन किए जाने वाले विशेष उपायों के बारे में, जिन्हें करने से समस्त परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- अगर आपको उन्नति के मार्ग में आये दिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो शनिवार के दिन आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर एक कच्चे सूत के धागे का गोला लेना चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ के पास जाना चाहिए और उसके तने पर सात बार वो कच्चा सूत लपेटना चाहिए। फिर दोनों हाथ जोड़कर शनि देव का ध्यान करते हुए उनके मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आपके दांपत्य जीवन से खुशियां कहीं गायब हो गई हैं तो दांपत्य जीवन में फिर से खुशियां भरने के लिए शनिवार के दिन आपको थोड़े-से काले तिल लेने चाहिए और पीपल के पेड़ के पास चढ़ाने चाहिए। साथ ही पीपल की जड़ में पानी चढ़ाना चाहिए और शनि देव के इस मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आप अपनी संतान को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, लेकिन आपको किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो इस परेशानी से बाहर निकलने के लिए शनिवार के दिन आपको शनि के मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। शनि देव का मंत्र इस प्रकार है- 'ऊँ श्रीं ह्रीं शं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आपके घर को किसी की काली नजर लग गई है, जिससे आपके परिवार के सदस्यों की तरक्की नहीं हो पा रही हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन स्नान आदि के बाद आपको शनि देव के इस मंत्र का 31 बार जप करना चाहिए। मंत्र है-'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।' और जप के बाद एक नीला फूल लेकर गंदे नाले में प्रवाहित कर दें।
- अगर आपके जीवन में परेशानियों का अंत नहीं हो रहा है, एक के बाद एक परेशानियां आती जा रही हैं तो उनसे छुटकारा पाने के लिए शनिवार के दिन आपको एक कटोरी में सरसों का तेल लेकर और उसको अपने सामने रखकर, उस पर शनि देव के तंत्रोक्त मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' कटोरी में रखे सरसों के तेल पर कम से कम 11 बार इस मंत्र का जप करना है और जप के बाद उस कटोरी को ढक्कर एक तरफ रख दें। कटोरी में रखे इस तेल का उपयोग आपको शनिवार के दिन करना है। शनिवार शनिवार के दिन आपको इस तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाना है।
- अगर आप पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में मजबूत बने रहना चाहते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको शनि देव के इस मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- 'ऊँ ऐं शं ह्रीं शनैश्चराय नमः।' आपको इस मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए और जप के वक्त हाथ में काले तिल लेकर रखने चाहिए। जब जप पूरा हो जाये तो उन तिलों को अपने पास संभालकर रख लें और शनिवार शनिवार के दिन उन्हें पीपल के पेड़ के नीचे रख आएं।
- अगर आपको पैतृक जमीन जायदाद से संबंधी किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो उस परेशानी से बाहर निकलने के लिए शनिवार के दिन आपको आटे का दीपक बनाना चाहिए और उसमें सरसों का तेल डालकर, बाती लगाकर शनि देव के आगे जलाना चाहिए।
- अगर आपको किसी सरकारी दफ्तर में कोई अर्जी डालनी है और आपको उससे संबंधित कार्यों में परेशानी आ रही हैं तो इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए शनिवार के दिन आपको शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। शनिवार के दिन आप किसी भी वक्त शनि स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि पाठ करते समय अपना मुंह पश्चिम दिशा की तरफ रखना है क्योंकि पश्चिम दिशा शनि की दिशा है।
- अगर आपको अपने जीवन में हर काम के लिए बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है या बहुत मेहनत करने के बाद ही आपको कोई सफलता मिल पाती है तो शनिवार के दिन आपको एक मुट्ठी काले तिल लेने चाहिए और बहते जल में प्रवाहित करना चाहिए। साथ ही शनि देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए।
- अगर आप समाज में यश और सम्मान पाना चाहते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए और फिर शनि देव के मंत्र का 51 बार जप करना चाहिए। शनि देव का मंत्र इस प्रकार है- ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।
- अगर आप एक सुंदर, स्वस्थ, निरोगी काया की कामना करते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको गेहूं से बनी एक रोटी पर गुड़ रखकर किसी नर भैंसे को, यानि भैंस को नहीं, केवल नर भैंसे को खिलानी चाहिए। नर भैंसे को खिलाने से ही आपके काम बनेंगे।
- अगर आप आर्थिक रूप से बड़ा लाभ पाना चाहते हैं तो लाभ पाने के लिए शनिवार के दिन आपको एक रुपये का सिक्का लेना चाहिए। अब उस सिक्के पर सरसों के तेल से एक बिन्दु लगाइए और शनि मंदिर में रख आइए। साथ ही शनि देव से आर्थिक लाभ पाने के लिए प्रार्थना भी करिये।
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अनिरुद्धाचार्य महाराज की कथा स्थगित

बिलासपुर। आंधी-तूफान से अनिरुद्धाचार्य का पंडाल तहस-नहस हो गया। आज (19 अप्रैल) से अनिरुद्धाचार्य महाराज की कथा सीपत में होनी थी। ऐसे में बड़ा हादसा टल गया। तेज आंधी-तूफान में पंडाल के साथ ही साउंड, कूलर, टेंट सब भीगकर खराब हो गए। सुरक्षा में चूक पर आयोजकों को नोटिस जारी किया गया है। वहीं कथा को स्थगित कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में आज भी बारिश का अलर्ट है।
पूरे प्रदेश में तेज गर्मी और बारिश दोनों ही लोगों को झेलना पड़ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक, प्रदेश में तापमान लगातार 2-3 डिग्री तक बढ़ सकता है। वहीं दूसरी ओर बिजली चमकने और गरज-चमक के साथ हल्की बारिश का भी अलर्ट है।
एक तरफ लू जैसी गर्मी परेशान करेगी, तो दूसरी तरफ बादल गरजेंगे और कहीं-कहीं बारिश भी होगी। शुक्रवार को राज्य के कई हिस्सों में तापमान में इजाफा दर्ज किया गया। सबसे ज्यादा तापमान बिलासपुर और रायपुर में 41.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
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किन 3 राशियों के लिए मंगल का गोचर भाग्य को बदलेगा

जून का महीना कई राशियों के लिए नई आशाएं और शुभ संकेत लेकर आ रहा है. इसका मुख्य कारण मंगल ग्रह का गोचर है, जो चंद्रमा की राशि कर्क से निकलकर सूर्य की राशि सिंह में प्रवेश करने वाला है. ज्योतिष शास्त्र में मंगल को ऊर्जा, भूमि, साहस, पराक्रम और रक्त से संबंधित ग्रह माना जाता है. जब भी मंगल अपनी राशि बदलता है, इसका प्रभाव सभी 12 राशियों पर पड़ता है, लेकिन कुछ राशियों के लिए यह समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है. इस बार जब मंगल सिंह राशि में प्रवेश करेगा, तो कुछ विशेष राशियों के लिए आर्थिक लाभ, नौकरी में उन्नति और संपत्ति से संबंधित मामलों में लाभ के अवसर बन रहे हैं. आइए जानते हैं किन 3 राशियों के लिए मंगल का यह गोचर भाग्य को बदलने वाला साबित होगा.
तुला राशि- आय में महत्वपूर्ण वृद्धि के संकेत
जब मंगल सिंह राशि में गोचर करेगा, तब यह तुला राशि के लिए ग्यारहवें भाव में होगा, जिसे लाभ और आय का स्थान माना जाता है. इस अवधि में नए आय के स्रोत उत्पन्न हो सकते हैं. व्यापार में लाभ और पूर्व के निवेश से लाभ प्राप्त होगा. भूमि या संपत्ति से संबंधित कोई शुभ समाचार मिल सकता है. जीवनशैली में सुधार और सामाजिक नेटवर्किंग में वृद्धि होगी. बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने का समय आ गया है. कुल मिलाकर, यह गोचर आपके आर्थिक जीवन को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला है.
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वृश्चिक राशि- करियर में उन्नति और वित्तीय लाभ
वृश्चिक राशि के लिए मंगल का गोचर दशम भाव, अर्थात् कर्म क्षेत्र में हो रहा है. बेरोजगार व्यक्तियों को नौकरी के आकर्षक प्रस्ताव प्राप्त हो सकते हैं. जो लोग पहले से कार्यरत हैं, उनके लिए पदोन्नति और वेतन वृद्धि के अवसर बन रहे हैं. व्यापार में नए प्रोजेक्ट या ग्राहक मिलने की संभावनाएं हैं. कार्यालय में आपके कार्य की सराहना होगी और नई जिम्मेदारियां भी मिल सकती हैं. इस गोचर के परिणामस्वरूप आपके करियर को एक नई दिशा मिल सकती है.
कर्क राशि- अप्रत्याशित वित्तीय लाभ और आत्मविश्वास में वृद्धि
कर्क राशि के लिए मंगल अब दूसरे भाव में गोचर कर रहा है, जो धन और परिवार से संबंधित है. इस दौरान अचानक कोई महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है, नौकरी में नए अवसर सामने आएंगे और पूर्व में किए गए प्रयासों का सकारात्मक परिणाम मिलेगा. आपकी आर्थिक स्थिति पहले से अधिक मजबूत होगी. आत्मविश्वास में वृद्धि होगी और लोग आपकी सलाह को मानेंगे. यह समय है अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने का, क्योंकि भाग्य आपके साथ है.
मंगल का सिंह राशि में गोचर जून 2025 में तुला, वृश्चिक और कर्क राशि वालों के लिए खास मौका लेकर आ रहा है.अगर आप इन राशियों में आते हैं तो आने वाला समय आपके लिए आर्थिक, सामाजिक और प्रोफेशनल रूप से फायदेमंद हो सकता है. इस दौरान जमीन-जायदाद से जुड़े फैसले सोच-समझकर लें और अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें, सफलता जरूर मिलेगी.
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वट सावित्री व्रत 26 मई को, जानिए...पूजा विधि, महत्व

पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत हर साल जेठ माह की अमावस्या तिथि को किया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत तथा वट वृक्ष की पूजा करती है. वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने वाले इस व्रत को लेकर कुछ खास नियम बताए गए हैं. मान्यता है कि इन सभी नियमों का पालन करने और श्रद्धा-भाव से पूजा करने वाली महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
वैदिक पंचांग के अनुसार, जेठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस बार वट सावित्री का व्रत 26 मई को रखा जाएगा.
वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष यानि बरगद के पेड़ में​ त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, इसलिए इसे देव वृक्ष भी कहते हैं. बरगद के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकमानाएं पूरी होती हैं और पति के अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है. जब सत्यवान के जीवन पर संकट आया था, तब वे वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए थे.
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि-
सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके सूर्य भगवान को जल अर्पण करें और व्रत का संकल्प लें. उसके बाद शादीशुदा महिलाएं शादी का जोड़ा पहन कर या लाल साड़ी पहनकर श्रृंगार करें और बरगद के पेड़ के पास जाकर सबसे पहले गणेश भगवान का पूजन करें. उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करके सावित्री और सत्यवान की आराधना करें. बरगद के पेड़ पर रोली और चावल से तिलक करें और उसके बाद 108 बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटें. बरगद के पेड़ के सामने पति की लंबी आयु की कामना करें|
वट सावित्री व्रत का महत्व-
इस दिन बरगद के पेड़ के सामने पूजा अर्चना करने से सुहागिन महिलाओं को पति की लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है. मान्यता है जैसे यमराज से सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी उसी प्रकार सुहागिनें अपने पति के प्राण की रक्षा करती हैं|
वट सावित्री व्रत में क्या नहीं करें-
सनातन धर्म में किसी भी व्रत में गलत कार्यों से बचना चाहिए. व्रत हमेशावचन और कर्म की शुद्धता के साथ करना चाहिए, तभी उसका पूरा फल प्राप्त होता है, इसलिए किसी के प्रति घृणा या द्वेष न रखें.
वट सावित्री व्रत के दिन व्रती महिलाएं काला, नीला और सफेद रंग का उपयोग अपने श्रृंगार या कपड़ों में न करें. जैसे इन रंगों की चूड़ी, साड़ी, बिंदी आदि का उपयोग न करें.
झूठ बोलने, किसी का अपमान करने या किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों को मन में ना आने दें. पूरे दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें.
बिना पूजा किए व्रत का पारण न करें. साथ वट सावित्री व्रत के दिन तामसिक चीजों से परहेज करें.
वट सावित्री व्रत में क्या करें-
यह व्रत अखंड सौभाग्य का है, इसलिए व्रती को सोलह श्रृंगार करना चाहिए. इसके लिए व्रत से पहले ही व्यवस्था कर लें.
वट सावित्री व्रत करने वाली महिलाओं को लाल, पीले और हरे रंग का उपयोग करना चाहिए. इन रंगों को शुभ माना जाता है. जैसे लाल या पीली साड़ी, हरी चूड़ी, लाल बिंदी, महावर आदि.
वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा के समय वट वृक्ष में कच्चा सूत 7 बार लपेटते हैं. 7 बार पेड़ की परिक्रमा करते हुए सूत को लपेटा जाता है. इस व्रत का पारण भीगे चने खाकर करते हैं.
पूजा खत्म होने के बाद माता सावित्री और वट वृक्ष से सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद लेते हैं. साथ ही पूजा करते समय आपको वट सावित्री व्रत कथा यानी सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए|
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गुड फ्राइडे पर लोग चर्च में क्या प्रार्थना करते हैं, क्या है महत्व

Good Friday 2025 : ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे का बहुत अधिक महत्व होता है. यह दिन प्रभु यीशु मसीह के क्रूस पर चढ़ने और उनकी मृत्यु की याद में हर साल मनाया जाता है. इसे ईसाई धर्म के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है, हालांकि यह शोक और चिंतन का दिन है, न कि किसी उत्सव का. गुड फ्राइडे ईसाइयों को यीशु मसीह के उस अंतिम और सबसे बड़े बलिदान की याद दिलाता है जो उन्होंने मानव जाति के पापों के प्रायश्चित के लिए दिया था. ईसाई मानते हैं कि यीशु ने स्वेच्छा से क्रूस पर दुख सहा और मरे ताकि वे पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकें और मनुष्यों को ईश्वर के साथ मेल मिलाप का मार्ग प्रशस्त कर सकें|
ईसाई लोग मानते हैं कि यीशु की मृत्यु सभी मनुष्यों के पापों का प्रायश्चित है. उनके बलिदान के माध्यम से, विश्वासियों को क्षमा और अनन्त जीवन की आशा मिलती है. गुड फ्राइडे उस अंधेरी रात का प्रतिनिधित्व करता है जिसके बाद सुबह की रोशनी आती है. यह दिन ईसाइयों के लिए अपने पापों पर पश्चाताप करने और यीशु के बलिदान के अर्थ पर गहराई से विचार करने का समय है. यह उन्हें अपने जीवन में प्रेम, सेवा और बलिदान के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है|
चर्च में की जाती हैं ये प्रार्थनाएं-
गुड फ्राइडे के दिन, दुनिया भर के चर्च में यीशु मसीह के क्रूस पर चढ़ने और मृत्यु के उपलक्ष्य में विशेष सेवाएं आयोजित की जाती हैं. ये सेवाएं आम तौर पर गंभीर और चिंतनशील होती हैं, जो मानवता के लिए यीशु द्वारा किए गए अपार बलिदान पर केंद्रित होती हैं.
गुड फ्राइडे के दिन चर्च में बाइबल से उन अंशों को पढ़ा जाता है जो यीशु के अंतिम दिनों, उनके दुख और क्रूस पर चढ़ने की कहानी बताते हैं. विशेष रूप से चारों सुसमाचारों (मैथ्यू, मार्क, ल्यूक और जॉन) में दिए गए जुनून के वृत्तांत पढ़े जाते हैं.
पादरी या पास्टर बाइबल के पाठों पर प्रवचन देते हैं, यीशु के बलिदान के महत्व और मानव जाति के लिए इसके अर्थ पर प्रकाश डालते हैं.
इस दिन लोग मिलकर प्रार्थना करते हैं, जिसमें दुनिया भर के चर्च, नेता, बीमार, दुखी और जरूरतमंद लोगों के लिए प्रार्थनाएं शामिल होती हैं. अक्सर क्षमा और दया के लिए भी प्रार्थना की जाती है.
कई चर्चों में क्रूस को लाया जाता है और भक्त व्यक्तिगत रूप से उसे छूकर, झुककर या चूमकर यीशु के बलिदान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं.
कुछ परंपराओं में, गुड फ्राइडे की सेवा में पवित्र भोज (यूचरिस्ट या साम्य) भी शामिल हो सकता है, जिसमें दाखमधु का सेवन किया जाता है. हालांकि, कुछ अन्य परंपराओं में इस दिन साम्य नहीं दिया जाता है क्योंकि यह यीशु के बलिदान का दिन है.
गुड फ्राइडे का दिन मौन और गहरे चिंतन का दिन होता है. लोग यीशु के दुख और प्रेम पर मनन करते हैं|
गुड फ्राइडे का महत्व-
गुड फ्राइडे प्रभु यीशु मसीह के मानव जाति के लिए किए गए अंतिम बलिदान को याद करने का दिन है. ईसाई मानते हैं कि यीशु ने उनके पापों के प्रायश्चित के लिए क्रूस पर अपनी जान दी थी. यह दिन यीशु के असीम प्रेम, करुणा और क्षमा का प्रतीक है. उन्होंने अपने विरोधियों के लिए भी प्रार्थना की. गुड फ्राइडे भक्तों के लिए अपने पापों पर पश्चाताप करने और ईश्वर से क्षमा मांगने का दिन है. भले ही यह शोक का दिन है, लेकिन यह ईस्टर संडे की उम्मीद की ओर भी इशारा करता है. यीशु का मृतकों में से जी उठना, जो पाप और मृत्यु पर विजय का प्रतीक है. गुड फ्राइडे के दिन चर्च में की जाने वाली प्रार्थनाएं और सेवाएं यीशु मसीह के दुख और बलिदान को याद करने, पश्चाताप करने, कृतज्ञता व्यक्त करने और ईस्टर में मिलने वाली आशा की तैयारी करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं|
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इस वर्ष की रथ यात्रा के लिए AI सुरक्षा

ओडिशा। भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा में इस साल पहली बार प्रशासन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सेवाओं का उपयोग करने का निर्णय लिया है। इन सेवाओं से यातायात और वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। बुधवार की रात पुरी कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अधिकारी सिद्धार्थ शंकर स्वैन की अध्यक्षता में रथयात्रा प्रबंधन को लेकर समीक्षा बैठक हुई। बैठक में सभी विभागों के अधिकारी शामिल हुए। बोडो दांडो में तीन नियंत्रण कक्ष हैं। विभिन्न स्थानों पर स्थिति पर नजर रखने और समय-समय पर इसकी समीक्षा करने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाता है। किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाते हैं। भक्तों की सेवा के लिए बड़ी संख्या में सेवा संगठनों के कार्यकर्ता नियुक्त किए जाते हैं। जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन (चार देवताओं) के रथों के जुलूस और खींचने के दौरान भगदड़ होती है। इस बार इसे नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
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जानिए...कब है शुक्र प्रदोष व्रत, शुभ समय और पूजा विधि

मान्यता है कि इस दिन भक्ति भाव से भोलनाथ की अराधना करने से व्यक्ति के जीवन की तमाम परेशानियां दूर होती हैं. साथ ही घर में सुख समृद्धि का वासा होता है| सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व है. इस दिन भगवान शिव माता पर्वती के साथ समस्त शिव परिवार की पूजा की जाती है. यह व्रत हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है. इस व्रत का वर्णन शिवपुराण में मिलता है|
शुक्र प्रदोष व्रत कब है-
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह का कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 44 मिनट पर होगा. वहीं तिथि का समापन 26 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 27 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को रखा जाएगा. वहीं त्रयोदशी तिथि शुक्रवार के दिन होने की वजह से यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा|
शुक्र प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त-
वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्र प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 53 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा. पूजा के लिए भक्तों को कुल 2 घंटे 10 मिनट का समय मिलेगा.
प्रदोष व्रत पूजा विधि-
प्रदोष व्रत रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें|
इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए हाथ में पवित्र जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत रखने का संकल्प लें|
अगर संभव हो तो सुबह शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग का जलाभिषेक करें.
अगर आप मंदिर न जा पाएं, तो घर में भगवान शिव का अभिषेक करें.
शिव जी को सफेद चीज का भोग लगाएं और फिर विधिवत पूजा-अर्चना करें|
पूजा के बाद गुरु प्रदोष व्रत की कथा सुनें. फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें.
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गुरुवार को करें ये उपाय, जीवन बनेगा खुशहाल

सप्ताह का गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन श्री हरि की उपासना करने से जातक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। वहीं गुरुवार को पूरा दिन, पूरी रात पार कर शुक्रवार सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक ज्येष्ठा नक्षत्र रहेगा। ऐसे में गुरुवार और ज्येष्ठा नक्षत्र के शुभ संयोग में इन उपायों को जरूर करें। इन उपायों को करने से आपको समस्त समस्याओं का समाधान मिल जाएगा। तो यहां आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए कि गुरुवार और ज्येष्ठ नक्षत्र के संयोग में क्या उपाय करने चाहिए।
1. अगर गुरुवार आप किसी खास काम के लिए घर से बाहर जा रहे हैं, उदाहरण के लिए अगर आप अपने बच्चों का स्कूल या कॉलेज में एडमिशन करवाने जा रहे हैं या अपनी किसी बिजनेस मीटिंग के लिए जा रहे हैं या अन्य किसी काम से बाहर जा रहे हैं, तो गुरुवार के दिन फिटकरी से अपने दांत साफ करें। साथ ही नहाने के बाद किसी छोटी कन्या का आशीर्वाद लेकर उसे गिफ्ट के रूप में एक फूल दें या एक सिक्का दें।
2. अगर आप एक ही कंपनी में बहुत दिनों से नौकरी कर रहे हैं और आपकी आमदनी में लंबे समय से कोई बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है, तो गुरुवार के दिन पूरा दिन अपने पास कोई तांबे से बनी हुई चीज रखें। चाहें फिर वह तांबे का छोटा-सा टुकड़ा ही क्यों न हो। गुरुवार तो पूरा दिन उस तांबे के टुकड़े को या तांबे से बनी किसी अन्य चीज को आपको अपने पास ही रखना है, कल से आप चाहें तो उसे अपने पास रख सकते हैं या अपने घर की तिजोरी में सुरक्षित रख सकते हैं।
3. अगर आपको लगता है कि आपके करीबी बिजनेस में आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, तो एक कटोरी हरे मोटे मूंग लेकर गुरुवार पूरा दिन नमक वाले पानी में भिगोएं और अगले दिन भिगोये हुए मूंग को नमक वाले पानी में से निकालकर, साफ पानी से धोकर किसी जानवर को खिलाएं।
4. अगर आप अपने अंदर योग्यता का संचार करना चाहते हैं और अपने बिजनेस में बढ़ोतरी करना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन आपको 4 मुखी रुद्राक्ष की विधि-पूर्वक पूजा करके उसे धारण करना चाहिए।
5. अगर बहन या बुआ के साथ आपके रिश्तों में अनबन बनी हुई है, तो गुरुवार के दिन आपको अपने भोजन में से एक रोटी निकालकर अलग रखनी चाहिए और उसके तीन हिस्से करने चाहिए। अब उन तीन हिस्सों में से एक हिस्सा गाय को खिला दें, एक हिस्सा कौवे के लिए रख दें और एक हिस्सा कुत्ते को खाने के लिए दें।
6. अगर आप गणित से संबंधित, यानि जोड़ घटा आदि से संबंधित विषय में कमजोर है, तो गुरुवार के दिन आपको स्टेशनरी का काम करने वाले किसी व्यक्ति को मिट्टी से बनी कोई चीज गिफ्ट करनी चाहिए और अगर उस चीज पर तोते का चित्र बना हो या फिर आपको मिट्टी से बना तोता ही मिल जाये, तो इससे अच्छा गिफ्ट और कोई नहीं होगा।
7. अगर आप अपनी व्यवसायिक यात्रा से अर्थ लाभ पाना चाहते हैं, अपनी फाइनेंशियल कंडिशन को बेहतर करना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन एक केसर की डिब्बी लेकर, उसे भगवान विष्णु के चरणों से लगाकर अपने पास रख लें और जब कभी आप किसी व्यवसायिक यात्रा से बाहर जायें, तो उस केसर से अपने माथे पर तिलक लगाकर जायें। लेकिन अगर आप केसर ना ले सकें, तो आप एक डिब्बी में सुखी हल्दी ले लें।
8. अगर आप आर्थिक रूप से अपने आपको मजबूत बनाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन किसी दुर्गा मंदिर में जाकर हरे साबुत मूंग का दान करें और आर्थिक रूप से मजबूती पाने के लिए देवी मां से प्रार्थना करें। साथ ही उनके इस मंत्र का 5 बार जप करें। मंत्र इस प्रकार है- सर्व बाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत् प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥
9. अगर आप अपने घर को निगेटिव एनर्जी से बचाये रखना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन एक फिटकरी का टुकड़ा लेकर घर के मुख्य दरवाजे के पास रख दें और जब तक वह काला न पड़ जाये, उसे वहीं पर रखा रहने दें। बाद में उस फिटकरी के टुकड़े को फेंक दें।
10. अगर आप अपने जीवन में खुशियों का संचार करना चाहते हैं, तो उसके लिए गुरुवार के दिन आपको स्नान आदि के बाद, साफ कपड़े पहनकर सबसे पहले देवी मां के आगे हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। फिर दाहिने हाथ में फूल लेकर देवी मां के आगे रखें और उन्हीं फूलों के ऊपर मिट्टी के एक दीपक में घी डालकर, रूई की बाती लगाकर ज्योत जलाएं। साथ ही देवी मां को लाल चुनरी चढ़ाएं।
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राजस्थान के इन प्रसिद्ध शिव मंदिरों में दर्शन मात्र से पूरी होती हैं भक्तों की मुरादें

राजस्थान। हिंदू धर्म में भगवान शिव को पूजनीय देवता माना जाता है। भगवान शिव को ब्रह्मांड का रचयिता और सृष्टि का निर्माण करने वाले देवताओं में से एक माना जाता है। भारत में भगवान शिव को महाकाल, भोले, शंभू, नटराज, महादेव और आदियोगी जैसे कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सावन में लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए अलग-अलग शिव मंदिरों में पहुंचते रहते हैं।देश के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी ऐसे कई शिव मंदिर हैं, जहां हर दिन हजारों शिव भक्त दर्शन के लिए पहुंचते रहते हैं। इस लेख में हम आपको राजस्थान में स्थित कुछ प्रसिद्ध और पवित्र शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर-
अगर राजस्थान में स्थित सबसे प्रसिद्ध और पवित्र शिव मंदिर का नाम लिया जाए तो घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर उस सूची में सबसे ऊपर है। यह पवित्र मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर के शिवाड़ में स्थित है। इसे भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को भगवान शंकर के बारहवें अवतार 'घुश्मेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बेहद खास है, क्योंकि उनका मानना ​​है कि यह मंदिर गांव की रक्षा करता है। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अचलेश्वर महादेव मंदिर-
अचलेश्वर महादेव मंदिर राजस्थान के धौलपुर में स्थित है। यह पवित्र मंदिर राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा के पास स्थित है, इसलिए दोनों राज्यों से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते रहते हैं। कहा जाता है कि यह एक अनोखा मंदिर है, क्योंकि यहां शिवलिंग की नहीं, बल्कि भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। इस मंदिर के बारे में एक और मान्यता यह है कि यहां स्थापित शिवलिंग का रंग बदलता रहता है। महाशिवरात्रि और सावन माह में हजारों शिव भक्त यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
भांड देवड़ा मंदिर-
राजस्थान के रामगढ़ में स्थित भांड देवड़ा भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र और प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में हुआ था। इस पवित्र मंदिर को राजस्थान का मिनी खजुराहो भी कहा जाता है। जी हां, भांड देवड़ा के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर खजुराहो स्मारक समूह की शैली में बना है, इसलिए इसे राजस्थान का मिनी खजुराहो भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी यहां सच्चे मन से दर्शन के लिए आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पहाड़ी की चोटी पर मौजूद होने के कारण मंदिर के आसपास का नजारा भी पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। महाशिवरात्रि और सावन माह में यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
देव सोमनाथ मंदिर-
राजस्थान के डूंगरपुर में स्थित देव सोमनाथ मंदिर को पवित्र मंदिर के साथ-साथ भव्य मंदिर भी माना जाता है। सोम नदी के तट पर स्थित देव सोमनाथ मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना माना जाता है। देव सोमनाथ मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मंदिर 108 खंभों पर टिका है, जो मिट्टी और चूने से जुड़े हुए हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी यहां दर्शन के लिए आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है। महाशिवरात्रि और सावन के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है।
इन शिव मंदिरों के भी करें दर्शन-
राजस्थान में ऐसे कई और पवित्र और प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, जिनके दर्शन आप भी कर सकते हैं। जैसे- उदयपुर में स्थित एकलिंगजी शिव मंदिर, राजस्थान के झुंझुनू में स्थित चौमुखा भैरवी शिव मंदिर और अलवर में स्थित नलदेश्वर मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं।
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अक्षय तृतीया पर बनेगा शुभ योग, जानिए...सोने की खरीदारी का शुभ मुहूर्त

भगवान विष्णु के तीन अवतारों नर-नारायण, हयग्रीव व परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन किए गए शुभ कार्य, दान, उपवास व व्रत का अक्षय फल मिलता है अर्थात सम्पूर्ण फल मिलता है। विशेष रूप से इस दिन महालक्ष्मी व भगवान विष्णु पर तरबूज व खरबूजा चढ़ाने से पूरे वर्ष भर विजय और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सनातन धर्मानुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं। पौराणिक शास्त्रानुसार अक्षय तृतीया विवाह और शुभकार्य के लिए स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है तथा सभी शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे भी किए जा सकते हैं।
अक्षय तृतीया पर शुभ योग-
30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया पर बहुत से शुभ योग बनने वाले हैं। जिसमें सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। इस योग में लक्ष्मी पूजा करने से धन वृद्धि होती है। अक्षय तृतीया के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा, जो बहुत खास है। इसके अतिरिक्त जो अन्य शुभ योग बनने वाले हैं उनमें शोभन योग दोपहर 12: 02 तक रहेगा। रवि योग शाम को 04:18 से शुरू होकर सारी रात रहने वाला है।
अक्षय तृतीया पर पूजा का शुभ मुहूर्त-
अक्षय तृतीया 29 अप्रैल 2025 की शाम 5:31 पर शुरू होगी। जो 30 अप्रैल 2025 की दोपहर 02:12 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया की पूजा और खरीदारी करना सबसे शुभ रहने वाला है।
अक्षय तृतीया पर सोने की खरीदारी का शुभ मुहूर्त-
सोना खरीदने के लिए वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया का दिन विशेष तिथियों में से एक है। आप भी सोना खरीदने की इच्छा रखते हैं तो 30 अप्रैल 2025 अक्षय तृतीया की सुबह 5:41 मिनट से दोपहर 2:12 मिनट तक का समय बहुत शुभ है। अक्षय तृतीया की पूजा के लिए प्रात: 5:41 से दोपहर 12:18 तक का समय शुभ है। इस दौरान पूजा कर सकते हैं।
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वैशाख अमावस्या 27 अप्रैल को, जानिए...शुभ समय और पूजा विधि

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को विशेष रूप से पवित्र और फलदायक माना गया है। साल के हर महीने पड़ने वाली अमावस्या का धार्मिक दृष्टिकोण से अलग-अलग महत्व होता है। इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ जैसे कर्म करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है। फिलहाल वैशाख मास चल रहा है और इस महीने की अमावस्या तिथि को वैशाख अमावस्या कहा जाता है। इस दिन का धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व बताया जाता है।
इस दिन श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत शुभ होता है। साथ ही पवित्र नदियों में स्नान कर के जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन का दान देना भी बहुत पुण्य का काम होता है। आइए जानते हैं इस साल वैशाख अमावस्या किस दिन मनाई जाएगी|
पंचांग के अनुसार साल 2025 की वैशाख अमावस्या की तिथि 27 अप्रैल को सुबह 4:49 बजे से शुरू होकर 28 अप्रैल को सुबह 1 बजे तक रहने वाली है। चूंकि उदया तिथि 27 अप्रैल को ही है, इसलिए इसी दिन वैशाख अमावस्या मनाई जाएगी। यह तिथि रविवार के दिन पड़ रही है, जो एक शुभ संकेत है।
पूजा विधि-
इस पावन दिन की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने से होती है। शुद्धता और सात्विकता का पालन करते हुए हरे रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। व्रत का संकल्प लेकर, पितरों के लिए तर्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इसके बाद भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। विधिपूर्वक पूजा के दौरान विष्णु मंत्रों का जप करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना और जरूरतमंदों की सहायता करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
सावधानियां-
इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
नकारात्मक विचारों से दूर रहें और मन को शांत रखें।
 
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अप्रैल में ग्रहों का दुर्लभ संयोग, इन 3 राशि वालों को मिल सकता है लाभ

साल 2025 का चौथा माह यानी अप्रैल जारी है, जो ग्रह-गोचर की दृष्टि से बेहद खास है। इस माह में कई ग्रह राशि व नक्षत्र परिवर्तन करने वाले हैं, जिसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है। हालांकि कुछ ग्रह इस माह अन्य ग्रहों के साथ मिलकर युति निर्माण भी करेंगे, जो कुछ राशि वालों के लिए लाभकारी हो सकता है। बता दें, अप्रैल महीने में मीन राशि में बुध, शुक्र और न्याय के देवता शनि का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ये संयोग मिथुन राशि समेत इन राशि वालों के लिए कल्याणकारी साबित हो सकता है। शनि,बुध और शुक्र के प्रभाव से आपके अटके काम पूरे और विवाह में आ रही बाधाएं दूर होंगी। आइए इन लकी राशियों के नाम जानते हैं...
मिथुन राशि- बुध, शुक्र और शनि के दुर्लभ संयोग से मिथुन राशि वालों को करियर में लाभ हो सकता है। शनि के प्रभाव से आपको कोर्ट को मामलों में राहत मिलेगी। यदि किसी सरकारी काम को पूरा करने में समस्या रही थी, तो वह दूर होगी। आपको पैतृक संपत्ति से अच्छा खासा लाभ मिल सकता है। आप ध्यान, साधना जैसी क्रियाओं से जुड़ेंगे। आत्मविश्वास बढ़ेगा।
धनु राशि- ग्रहों के शुभ प्रभाव से विदेश यात्रा, ऑनलाइन कोर्स या किसी रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा बन सकते हैं। नौकरी कर रहे लोगों के वेतन में वृद्धि होगी। जो लोग बेरोजगार और नौकरी की तलाश में हैं उनकी यह तलाश पूरी होगी। आपके लिए यह दुर्लभ संयोग शुभ रहेगा। बिजनेस में अटकी योजनाएं सफल होंगी। परिवार में चल रही सभी दिक्कतें दूर होंगी।
कुंभ राशि- ग्रहों के दुर्लभ संयोग से कुंभ राशि के नौकरीपेशा लोगों को उच्च अधिकारियों से सराहना और पदोन्नति मिल सकती है। आपके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी। आपकी आर्थिक स्थिति में अच्छा सुधार देखने को मिल सकता है। वेतन में वृद्धि होगी। आप इस समय करियर के लेकर कुछ नया प्लान करेंगे।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण)-
यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए झूठा सच उत्तरदायी नहीं है। 
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वैशाख माह में भगवान विष्णु की पूजा का है विशेष महत्व

  • जानिए...इस माह में कब रखा जाएगा एकादशी व्रत
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से जातक पर भगवान विष्णु की अपार कृपा बरसती है। हर माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष में। दोनों ही तिथि में आने वाली एकादशी का खास महत्व होता है। इस तरह पूरे साल में 24 एकादशी का व्रत रखा जाता है। लेकिन जब अधिक मास या मलमास पड़ता है तो यह संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। वैशाख माह भगवान विष्णु की पूजा के लिए सबसे उत्तम मास माना जाता है। तो ऐसे में यहां जान लीजिए वैशाख माह में आने वाली एकादशी व्रत के बारे में।
वरुथिनी एकादशी 2025 डेट और मुहूर्त
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस साल यह तिथि 24 अप्रैल को पड़ रही है। इसी दिन एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 23 अप्रैल को शाम 4 बजकर 43 मिनट पर होगा। एकादशी तिथि का समापन 24 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 32 मिनट पर होगा।
वरुथिनि एकादशी का पारण 25 अप्रैल 2025 को किया जाएगा। पारण के लिए शुभ समय सुबह 6 बजकर 14 मिनट से सुबह 8 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। बता दें कि एकादशी व्रत में पारण का विशेष महत्व होता है। एकादशी का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले किया जाता है।
मोहिनी एकादशी 2025 व्रत डेट और मुहूर्त
मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई 2025 को रखा जाएगा। पंचांग के मुताबिक, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। एकादशी तिथि का समापन 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को किया जाएगा। पारण का समय सुबह 6 बजकर 6 मिनट से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
एकादशी व्रत का महत्व
वैशाख माह में आने वाली दोनों ही एकादशी का खास महत्व है। वरुथिनी एकादशी व्रत को सुख-सौभाग्य का प्रतीक है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, भगवान विष्णु उसकी हर संकट से रक्षा करते हैं। वहीं मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को समस्त मोह व बंधनों से मुक्ति मिलती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है।
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संकष्टी चतुर्थी व्रत आज, जानिए...शुभ समय, राहुकाल और सूर्योदय-सूर्यास्त का समय

16 अप्रैल को वैशाख कृष्ण पक्ष की उदया तृतीया और बुधवार का दिन है। तृतीया तिथि बुधवार दोपहर 1 बजकर 18 मिनट तक रहेगी, उसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी।16 अप्रैल को पूरे दिन और पूरी रात सर्वार्थ सिद्धि योग रहने वाला है। साथ ही बुधवार को पूरा दिन, पूरी रात पार कर गुरुवार सुबह 5 बजकर 55 मिनट तक अनुराधा नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा 16 अप्रैल को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाएगा। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए बुधवार का पंचांग, राहुकाल, शुभ मुहूर्त और सूर्योदय-सूर्यास्त का समय।
16 अप्रैल 2025 का शुभ मुहूर्त
वैशाख कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि- 16 अप्रैल 2025 को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट तक रहेगी, उसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी
सर्वार्थ सिद्धि योग- 16 अप्रैल को पूरे दिन और पूरी रात
अनुराधा नक्षत्र- 16 अप्रैल 2025 को पूरा दिन, पूरी रात पार कर गुरुवार सुबह 5 बजकर 55 मिनट तक
16 अप्रैल व्रत-त्यौहार- संकष्टी चतुर्थी व्रत
राहुकाल का समय
दिल्ली- दोपहर 12:07 - 01:43 तक
मुंबई- दोपहर 12:39 - 02:13 तक
चंडीगढ़- दोपहर 12:23 - 02:00 तक
लखनऊ- दोपहर 12:07 - 01:42 तक
भोपाल- दोपहर 12:20 - 01:56 तक
कोलकाता- दोपहर पहले 11:37 - 01:12 तक
अहमदाबाद- दोपहर 12:40 - 02:15 तक
चेन्नई- दोपहर 12:09 - 01:42 तक
सूर्योदय-सूर्यास्त का समय
सूर्योदय- सुबह 5:54 am
सूर्यास्त- शाम 6:47 pm
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अक्षय तृतीया पर करें इन चीजों का दान, दूर होंगे सभी पारिवारिक कलह

यह वह दिन है जब पुण्य की गंगा बहती है और जो भी इसमें डुबकी लगाता है, उसे मिलता है अक्षय फल यानी की कभी न समाप्त होने वाला पुण्य। विशेष रूप से, यह दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपके पूर्वजों की आत्मा तृप्त हो और उनका आशीर्वाद आपके जीवन को प्रकाशित करे, तो आज की इस खबर में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किस चीज का दान करने से शुभ फल मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अक्षय तृतीया हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 30 अप्रैल को है। इसे बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है, यानी इस दिन कोई भी अच्छा काम बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है। शास्त्रों में बताया गया है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए अच्छे कामों का फल कभी खत्म नहीं होता। इसलिए यह दिन बहुत खास माना जाता है। आइए जानें कि अक्षय तृतीया की शुरुआत कब हुई और क्यों यह दिन इतना पुण्यदायी माना जाता है।
जल का कलश-
अक्षय तृतीया के दिन आप जल का कलश दान कर सकते हैं। तांबे, पीतल या मिट्टी के कलश में ठंडा जल भरें। उसमें तुलसी, गुड़ या चंदन की कुछ बूंदें डालें और किसी जरूरतमंद को सौंप दें। यह केवल पानी नहीं है। कहते हैं कि यह तपती आत्माओं के लिए राहत, श्रद्धा और शांति का संदेश भी देती है।
चप्पल और छाता का दान करना-
अक्षय तृतीया पर आप चप्पल और छाता भी दान कर सकते हैं। जब कोई तपती जमीन पर नंगे पांव चलता है या धूप में जाता है, उसके पैर जलते हैं, तो उसके लिए एक जोड़ी चप्पल या एक छाता बहुत मायने रखता है। इसलिए चप्पल और छाता वह चीज है, जो लोगों के लिए काफी जरूरी है और इसे दान करने से ही शुभ फल मिलता है।
सात अनाजों का कर सकते हैं दान-
आप अक्षय तृतीया के दिन सात अनाजों का भी दान कर सकते हैं। आप सत्तू, चना, गेहूं, चावल, जौ, मक्का और मूंग आदि का दान कर सकते हैं। किसी भी जरूरतमंद को अनाज का दान करना सबसे बड़े दानों में से एक माना जाता है। सात अनाजों का दान करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है।
सफेद वस्तुओं का करें दान-
आप अक्षय तृतीया के दिन सफेद वस्तुओं का भी दान कर सकते हैं। आप दही, चीनी, चावल या सफेद कपड़े दान कर सकते हैं। ये सभी शांति, पवित्रता और सौम्यता के प्रतीक हैं। जब इन्हें श्रद्धा से दान किया जाता है, तो पितरों का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
फल, गुड़ और शक्कर का दान-
मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर शक्कर, गुड़ और ताजे फल दान करना आपकी भावनाओं को और पितरों के आशीर्वाद को और गहरा बना देता है। ऐसे में कोशिश करें कि किसी ऐसी चीज का दान करें तो स्वाद में मीठी हो।
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संकष्टी चतुर्थी व्रत 16 अप्रैल को, जानिए...शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

इस बार अप्रैल की संकष्टी चतुर्थी पर दो शुभ योग बन रहे हैं, हालांकि इस दिन भद्रा काल भी रहेगा, लेकिन वह स्वर्ग लोक में स्थित होगा। इसलिए इसका नकारात्मक प्रभाव पृथ्वी पर नहीं पड़ेगा। इस उपवास का समापन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद होता है, इसलिए चंद्रोदय के समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसे में आइए जानते हैं इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय|
दृक पंचांग के अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 अप्रैल, बुधवार को दोपहर 1:16 बजे से प्रारंभ होकर 17 अप्रैल, गुरुवार को दोपहर 3:23 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार यह व्रत 16 अप्रैल को रखा जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में यानी सुबह 4:26 बजे से 5:10 बजे के बीच स्नान कर लें और गणेश जी की पूजा का संकल्प लें। उसके बाद सूर्योदय के पश्चात विधि पूर्वक पूजन करें। उस दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं रहेगा। हालांकि, विजय मुहूर्त दोपहर 2:30 बजे से 3:21 बजे तक और अमृत काल शाम 6:20 बजे से रात 8:06 बजे तक रहेगा।
शुभ योगों का संयोग-
इस बार संकष्टी चतुर्थी के दिन दो अत्यंत शुभ योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं। इन योगों में किया गया कार्य विशेष फलदायी होता है और किसी भी शुभ कार्य की सफलता की संभावना प्रबल होती है।
चंद्रोदय का समय-
व्रत पूरा करने के लिए रात में चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक है। इस दिन चंद्रमा रात 10:00 बजे दिखाई देगा। अर्घ्य देने के लिए दूध, जल और सफेद पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए।
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