धर्म समाज

वरुथिनी एकादशी के दिन करें ये 5 उपाय, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति

हिंदू धर्म में वरुथिनी एकादशी एक महत्वपूर्ण व्रत है जो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. वरुथिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य की प्राप्ति होती है. यह व्रत सौभाग्य, धन, समृद्धि और कीर्ति प्रदान करने वाला माना जाता है. इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है. यह एकादशी उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है जिन्हें चलने-फिरने में कठिनाई होती है|
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल 2025 को शाम 04 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 अप्रैल 2025 को दोपहर 02 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार, वरुथिनी एकादशी का व्रत 24 अप्रैल दिन गुरुवार को रखा जाएगा. इसके व्रत का पारण अगले दिन 25 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 46 मिनट से 08 बजकर 23 मिनट पर किया जाएगा|
वरुथिनी एकादशी व्रत विधि-
दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें और रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें.
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
भगवान विष्णु की पूजा करें, उन्हें फल, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें.
दिन भर निराहार रहें या केवल फलाहार करें. अनाज का सेवन वर्जित है.
रात में जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें.
द्वादशी के दिन सुबह स्नान के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें.
इसके बाद व्रत का पारण करें और इसके बाद गरीबों को दान अवश्य करें.
वरुथिनी एकादशी के दिन करें ये उपाय-
मान्यता है कि भगवान श्री विष्णु की पूजा में शंख का प्रयोग अत्यधिक शुभ और फलदायी माना गया है. वरुथिनी एकादशी के दिन यदि शंख से भगवान श्री विष्णु की मूर्ति को स्नान कराया जाए और उनकी पूजा में शंख को पूजित करने के बाद बजाया जाए तो श्री हरि शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और साधक को मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं.
वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा में प्रयोग लाएए जाने वाले शंख में गंगाजल भर कर यदि पूरे घर में छिड़का जाए तो घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर होती और सकरात्मक ऊर्जा के साथ सुख-सौभाग्य का वास बना रहता है.
वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु को शीघ्र प्रसन्न करने और उनसे मनचाहा वर पाने के लिए उनकी पूजा में लगाए जाने वाले भोग में उस तुलसी के पत्ते को जरूर चढ़ाएं, जिसे हिंदू धर्म में विष्णुप्रिया कहा गया है.
हिंदू मान्यता है कि भगवान श्री विष्णु की पूजा में पीले रंग की चीजों का प्रयोग बेहद बहुत शुभ माना गया है. ऐसे में वरुथिनी एकादशी व्रत वाले दिन न सिर्फ भगवान श्री विष्णु की पूजा में पीले रंग के वस्त्र, पीले रंग के फूल, पीले रंग का चंदन, पीले रंग के फल, और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें बल्कि स्वयं भी पीले रंग के वस्त्र पहनने का प्रयास करें.
वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु की कृपा पाने के लिए गाय के दूध से बने घी का दीया जलाकर पूजा एवं आरती करना चाहिए. मान्यता है कि एकादशी की पूजा में इस उपाय को करने पर शीघ्र ही हरि कृपा बरसती है|
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वैशाख माह में करें ये उपाय, व्यापार में होगा लाभ

  • धन-संपत्ति में होगी वृद्धि
13 अप्रैल से वैशाख का महीना प्रारंभ हो चुका है, जो कि 12 मई तक चलेगा। आपको बता दें कि हमारी संस्कृति में वैशाख महीने का बहुत महत्व है। वैशाख महीने के दौरान भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दौरान भगवान विष्णु की माधव नाम से पूजा की जाती है। बता दें कि वैशाख महीने का एक नाम माधव मास भी है। शास्त्रों में वैशाख महीने के दौरान किये जाने वाले बहुत-से यम-नियम आदि का जिक्र भी किया गया है यानी वैशाख महीने की पूर्णिमा तक ये यम-नियम आदि चलेंगे। अब बात करते हैं वैशाख महीने के दौरान किए जाने वाले विशेष उपायों के बारे में जिन्हें करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
1. अपने करियर की तरक्की सुनिश्चित करने के लिए वैशाख महीने के दौरान तुलसीपत्र से श्री विष्णु के माधव स्वरूप की पूजा करें। साथ ही भगवान विष्णु के केशव और गोविंद नाम का ध्यान करें। आपको बता दूं कि कभी भी भगवान विष्णु के एक नाम का ध्यान नहीं करना चाहिए। लिहाजा जब भी भगवान विष्णु के किसी नाम का ध्यान करें, तो उसके साथ ही श्री हरि के दो और नामों का भी ध्यान करें।
2. अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए वैशाख महीने के दौरान आप भगवान विष्णु को तुलसी पत्र के साथ शहद अर्पित करें और श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ भगवान के अनंत और अच्युत स्वरूप का भी ध्यान करें।
3. आपके जीवन में कभी कोई संकट न आये, इसके लिए वैशाख महीने के दौरान भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाएं और उस पंचामृत में तुलसी पत्र डालना न भूलें। इसके अलावा आपको श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ भगवान के दामोदर और नारायण स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
4. जीवनसाथी के साथ अच्छा तालमेल बनाये रखने के लिए, वैशाख महीने के दौरान आप श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ भगवान के श्रीधर और पद्मानाभ स्वरूप का भी ध्यान करें और तुलसीपत्र लगी हुई मीठाई का भगवान को भोग लगाएं। प्रतिदिन मिठाई का भोग नहीं लगा सकते, तो मिश्री के साथ तुलसीपत्र भगवान को अर्पित करें।
5. अपने बिजनेस की गति को बढ़ाने के लिए आपको वैशाख महीने में श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ त्रिविकरम और हृषिकेष का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की तुलसीपत्र से पूजा करनी चाहिए।
6. बच्चों के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाये रखने के लिए आपको वैशाख महीने में श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ गोविंद और मधुसूदन का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु को मेवा के साथ तुलसीपत्र अर्पित करना चाहिए।
7. जीवन में अपने शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए और दोस्तों का साथ बनाये रखने के लिए आपको वैशाख महीने में श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ केशव और दामोदर का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की तुलसीदल से पूजा करनी चाहिए।
8. अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए आपको वैशाख महीने के दौरान श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ गोविंद और नारायण का ध्यान करना चाहिए। साथ ही श्री हरि को आटे से बनी पंजीरी में तुलसी दल डालकर भोग लगाना चाहिए।
9. अपने दांपत्य जीवन की ऊष्मा को बनाये रखने के लिए आपको वैशाख महीने के दौरान श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ अच्युत और मधुसूदन का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की तुलसीपत्र से पूजा करनी चाहिए और उन्हें सफेद या पीले फूल अर्पित करने चाहिए।
10. अपने किसी सरकारी काम को बिना समस्या के पूरा करने के लिए वैशाख महीने के दौरान श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ अनंत और श्रीधर का ध्यान करना चाहिए। साथ ही तुलसीपत्र से श्री हरि की पूजा करनी चाहिए।
11. किसी भी तरह के कॉम्पिटिशन में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए वैशाख महीने के दौरान श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ पद्मानाभ और हृषिकेष का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान को गंध और तुलसीपत्र अर्पित करना चाहिए।
12. अपने कारोबार को ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने के लिए वैशाख महीने के दौरान श्री विष्णु के माधव स्वरूप के साथ त्रिविकरम और मधुसूदन का ध्यान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की तुलसीपत्र से पूजा करनी चाहिए।
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अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू

  • जानिए...ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रोसेस
जम्मू। इस साल की अमरनाथ यात्रा के लिए 14 अप्रैल से रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए हैं। यात्रा 3 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगी। श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड ने रजिस्ट्रेशन से जुड़ी पूरी जानकारी उपलब्ध करवाई है।
बोर्ड ने एडवांस पंजीकरण के लिए देश भर में 4 बैंकों की 533 शाखाओं में व्यवस्था की है। हालांकि, सोमवार को अंबेडकर जयंती का अवकाश होने के कारण पंजीकरण मंगलवार से ही शुरू हो पाएगा।
ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रोसेस-
श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
होमपेज पर, ‘ऑनलाइन सेवाएं’ टैब पर क्लिक करें।
‘यात्रा परमिट पंजीकरण’ चुनें
दिए गए निर्देशों को अच्छी तरह पढ़ने के बाद जारी रखने के लिए ‘मैं सहमत हूं’ पर क्लिक करें
‘पंजीकरण करें’ पर क्लिक करें
जो पेज खुलेगा उस पर आवेदक को अपना नाम, पसंदीदा यात्रा तिथि, आधार संख्या, मोबाइल नंबर सहित अन्य जानकारी दर्ज करना होगी।
साथ ही स्कैन किए गए अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाणपत्र (CHC) के साथ पासपोर्ट आकार की तस्वीर अपलोड करनी होगी।
इसके बाद मोबाइल नंबर को OTP के जरिए वेरिफिकेशन किया जाएगा।
सबमिट करने के बाद दो घंटे के भीतर एक पेमेंट लिंक भेजा जाएगा।
पंजीकरण शुल्क का भुगतान ऑनलाइन करना होगा।
सफल पेमेंट के बाद यात्रा पंजीकरण परमिट पोर्टल से डाउनलोड किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने उन लोगों के लिए भी व्यवस्था की है जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन करना पसंद करते हैं। जम्मू में यह काम वैष्णवी धाम, पंचायत भवन और महाजन हॉल जैसे केंद्रों पर होंगे। यहां चुनी गई यात्रा तिथि से तीन दिन पहले टोकन स्लिप जारी होती है।
तीर्थयात्री अगले दिन स्वास्थ्य जांच और औपचारिक पंजीकरण के लिए सरस्वती धाम जाते हैं। उसी दिन उन्हें अपना कार्ड लेने और प्रक्रिया पूरी करने के लिए जम्मू में RFID कार्ड केंद्र पर भी जाना होगा।
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खरमास समाप्त : मांगलिक कार्य शुरू, जानिए...कब-कब हैं शुभ मुहूर्त

ग्वालियर। मेष संक्रांति 14 अप्रैल, सोमवार को मनाई जा रही है। इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे खरमास की समाप्ति होती है। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि खरमास की समाप्ति के साथ ही शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस तरह मांगलिक कार्य होने से सब तरफ शहनाई के मधुर स्वर गूंजने लगेंगे, सड़कों पर वर यात्रा नजर आने लगेंगी।
अप्रैल माह विवाह के 9 मुहूर्त
अप्रैल माह में शुभ विवाह के लिए कुल नौ मुहूर्त बन रहे हैं। इनमें एक ऐसा दिन है जिसमें बिना मुहूर्त देखे सारे शुभ कार्य किए जा सकते हैं। ये है अक्षय तृतीया। अक्षय तृतीया के दिन किए गए मांगलिक कार्य, खरीदारी, नए काम की शुरुआत का दोगुना फल मिलता है, सुख-समृद्धि दस्तक देती है। इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को है।
14 अप्रैल से 8 जून तक चलेंगे
अप्रैल में 14, 15, 16, 17, 18, 20, 25, 29 और 30 तारीख को शुभ मुहूर्त हैं। मई में सबसे अधिक विवाह मुहूर्त रहेंगे। मई में 1, 5, 6, 8, 10, 14, 15, 16, 17, 18, 22, 23, 24, 27, 28 तारीख शुभ है।
जून में 1, 2, 3, 4, 5 , 7 व 8 को विवाह के लिए उत्तम हैं। 6 जुलाई से लेकर नवम्बर तक चातुर्मास के कारण मांगलिक दिनों का अभाव रहेगा। चातुर्मास के बाद 18 नवंबर से शुभ मुहूर्त शुरू हो जाएंगे। नवंबर में 18, 21, 22, 23, 25, 30 और दिसंबर में 4, 5, 6 दिन शुभ हैं।
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सोमवार की रात करें ये उपाय, बरसेगी महादेव की कृपा

मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की उपासना और उपवास रखने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, साथ ही व्यक्ति को मानसिक शांति भी मिलती हैं। वहीं ज्योतिष शास्त्र में सोमवार का संबंध चंद्रमा से जोड़ा गया है। इस दिन किए दान पुण्य से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है, जिसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक शांति और स्वस्थ महसूस करता है। इसके अलावा चंद्रमा व्यक्ति को सुंदर, आकर्षक और गुणी भी बनाता है। सोमवार कन्याओं के लिए और भी खास और महत्वपूर्ण होता है। इस दिन भोलेनाथ को केवल जल चढ़ाने से मनचाहा वर पाने की कामना पूर्ण होती हैं। इस दौरान शिव चालीसा का पाठ करना और भी लाभकारी है। इससे साधक के भाग्य में वृद्धि और जीवन में खुशियों का वास होता है। ऐसे में आइए इस शक्तिशाली चालीसा के बारे में जानते हैं|
शिव चालीसा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण
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शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 5 चीजें, जीवन से दूर हो जाएगी दरिद्रता

सोमवार को भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन शिवजी की पूजा से हर प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, खासकर यदि व्यक्ति गरीबी या दरिद्रता से जूझ रहा है। शिवलिंग पर अर्पित कुछ विशेष वस्तुएं जीवन से दरिद्रता, कष्ट, और दुखों को दूर करने में मदद करती हैं। यह उपाय न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को सुधारते हैं, बल्कि मानसिक शांति और समृद्धि भी लाते हैं। इस आर्टिकल में जानेंगे कि कौन सी 5 चीजें शिवलिंग पर अर्पित करने से दरिद्रता का साया हटता है और जीवन में समृद्धि आती है।
दूध- दूध को भगवान शिव को समर्पित करने का अत्यधिक महत्व है। इसे खासकर सोमवार को शिवलिंग पर अर्पित करने से न केवल दरिद्रता दूर होती है बल्कि यह व्यक्ति को मानसिक शांति और सौभाग्य भी प्रदान करता है। दूध के शीतल और पवित्र गुण भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय हैं। सोमवार के दिन, शिवलिंग पर ताजे दूध से अभिषेक करें। यह उपाय आपके जीवन में शांति और समृद्धि लेकर आता है। ध्यान रखें कि दूध अर्पित करते वक्त अपना मन एकाग्र और पवित्र रखें।
शहद- शहद भी एक महत्वपूर्ण सामग्री है, जिसे शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। शहद का स्वाद और गुण भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय हैं। शहद में शांति और समृद्धि लाने की शक्ति होती है, जो दरिद्रता को दूर करने में सहायक होती है। शहद को एक साफ पात्र में लेकर शिवलिंग पर अर्पित करें। इससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि और धन का आगमन होगा। साथ ही, ध्यान रखें कि शहद की कोई भी अशुद्धता न हो।
गंगाजल- गंगाजल को पवित्र माना जाता है और शिवलिंग पर इसे अर्पित करने से दरिद्रता और सभी तरह के संकट दूर हो सकते हैं। गंगाजल को शिवलिंग पर अर्पित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि का वास होता है। एक साफ पात्र में गंगाजल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करें। यह उपाय विशेष रूप से सोमवार के दिन प्रभावी होता है। आप चाहें तो गंगाजल में थोड़ा दूध और शहद मिला कर शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं। इससे आपके जीवन में और भी ज्यादा सकारात्मक परिवर्तन आएंगे।
बेलपत्र- बेलपत्र भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। शिवलिंग पर बिल्व पत्र अर्पित करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और यह उपाय दरिद्रता को दूर करने में सहायक होता है। बिल्व पत्र के 3 पत्ते खासतौर पर भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं, जिन्हें त्रिलोक की अभिव्यक्ति माना जाता है। सोमवार को शिवलिंग पर तीन बिल्व पत्र अर्पित करें। इसे अर्पित करते समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें। यह आपके जीवन से दरिद्रता और कष्टों को दूर करेगा।
शिव पूजा के लिए सोमवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि आप अपनी आमदनी में बढ़ोतरी और आर्थिक स्थिति में सुधार चाहते हैं, तो यह दिन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छा समय है। दूध, खासकर गाय का दूध, शिवलिंग पर अर्पित करना बेहद प्रभावशाली माना जाता है। यह उपाय भगवान शिव की विशेष कृपा को आकर्षित करता है, जिससे जीवन में समृद्धि और धन की प्राप्ति हो सकती है।
पढ़ाई की परेशानी से मुक्ति पाने के लिए-
पढ़ाई में ध्यान की कमी, मानसिक तनाव या किसी कारण से कठिनाई आ रही हो, तो भगवान शिव की पूजा और उनके मंत्रों का जाप बहुत ही प्रभावशाली उपाय हो सकता है। विशेष रूप से अगर आप अपनी पढ़ाई में रुकावट महसूस कर रहे हैं, तो शिव चालीसा का पाठ और शिवलिंग पर चंदन का टीका लगाने से मानसिक शांति मिलती है और पढ़ाई में समर्पण और सफलता प्राप्त होती है।
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आज हनुमान जन्मोत्सव, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त, मंत्र और विधि

आज 12 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि के दिन ही बजरंगबली का जन्म हुआ था। हनुमान जी को भगवान शिव का ग्यारहवां रुद्रावतार माना जाता है। आज के दिन हनुमान जी की उपासना करने से व्यक्ति को हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। साथ ही बजरंगबली की कृपा से उस व्यक्ति को हर प्रकार के सुख-साधन की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कि हनुमान जन्मोत्सव की पूजा विधि, मंत्र और शुभ मुहूर्त के बारे में।
हनुमान जन्मोत्सव 2025 शुभ मुहूर्त-
चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ - 12 अप्रैल को भोर 3 बजकर 21 मिनट पर
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 13 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर
हनुमान जन्मोत्सव पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 30 मिनट से सुबह 5 बजकर 30 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11 बजकर 55 से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक
संध्या पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 30 मिनट से शाम 7 बजे तक
हनुमान जन्मोत्सव पूजा विधि-
हनुमान जन्मोत्सव के दिन स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।
इसके बाद मंदिर या पूजा घर के साफ कर गंगाजल छिड़कर शुद्ध कर लें।
अब एक चौकी रखकर उसपर लाल या नारंगी रंग का कपड़ा बिछा दें।
फिर चौकी पर हनुमान जी, भगवान राम और माता सीता की तस्वीर या प्रतिमा रखें।
प्रतिमा के सामने धूप-दीपक जलाएं।
सबसे पहले भगवान राम और माता सीता की पूजा करें।
हनुमान जी को चोला चढ़ाएं,नए वस्त्र और जनेऊ पहनाएं।
अब बजरंगबली को फूल, फल, माला, लड्डू, बूंदी, गुड़ चना, नारियल और पंचामृत का भोग लगाएं।
इसके बाद हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें।
पूजा का समापन भगवान राम और हनुमान जी की आरती के साथ करें।
आरती के बाद बजरंगबली के मंत्रों का जाप भी जरूर करें।
हनुमान जन्मोत्सव के दिन करें इन मंत्रों का जाप-
ॐ श्री हनुमते नमः॥
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्॥
ओम नमो भगवते हनुमते नम:॥
मनोजवम् मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियम् बुद्धिमताम् वरिष्ठम्। वातात्मजम् वानरयूथमुख्यम् श्रीरामदूतम् शरणम् प्रपद्ये॥
ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।
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CM विष्णुदेव साय ने हनुमान जयंती पर की पूजा-अर्चना

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आज हनुमान जयंती के पावन अवसर पर राजधानी रायपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित हनुमान मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर उन्होंने भक्ति भाव से हनुमान चालीसा का पाठ किया तथा प्रदेशवासियों की सुख-शांति और समृद्धि के लिए मंगलकामनाएँ कीं। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि भगवान हनुमान शक्ति और भक्ति के प्रतीक हैं। उनकी कृपा से हर संकट का समाधान संभव है। उन्होंने प्रदेशवासियों को हनुमान जयंती की शुभकामनाएँ दीं। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाईज़ कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।
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गृहमंत्री विजय शर्मा ने हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की

कवर्धा। गृहमंत्री विजय शर्मा ने हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की। सोशल मीडिया में गृहमंत्री विजय शर्मा ने लिखा, आज श्री हनुमान जन्मोत्सव के पावन अवसर पर कवर्धा के सिद्ध पीठ श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की और प्रदेश एवं कवर्धा के विकास और समृद्धि की कामना की।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
आप सभी देशवासियों को श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
संकटमोचन हनुमान का जन्मोत्सव 10 अप्रैल यानी आज है। इस दिन भक्त हनुमान जी की के साथ भगवान श्रीराम व माता सीता की विधि-विधान से पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन बजरंगबली की विधिवत पूजा करने से भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में आने वाले हर संकट से रक्षा होती है।
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...जहाँ वीर बजरंगबली को देवी स्वरूप में पूजा जाता है

  • अद्भुत परंपरा के बारे में जानिए...
रतनपुर। छत्तीसगढ़ की पावन धरती जहाँ धर्म, आस्था और चमत्कारों की गूंज सदियों से सुनाई देती रही है वहीं बिलासपुर ज़िले से लगभग 30 किलोमीटर दूर रतनपुर नामक एक ऐतिहासिक नगरी स्थित है। इस नगर को कभी छत्तीसगढ़ की राजधानी कहा जाता था और आज यह ‘धर्मनगरी’ के नाम से विख्यात है। रतनपुर देवी महामाया के शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यही नगर एक और चमत्कारी स्थल के लिए जाना जाता है गिरजाबंद हनुमान मंदिर जहाँ भगवान हनुमान की पूजा देवी के रूप में की जाती है।
हनुमान जी को शक्ति, भक्ति और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। पर क्या आपने कभी उन्हें स्त्री रूप में पूजे जाते देखा या सुना है? गिरजाबंद हनुमान मंदिर इस अनोखी परंपरा का केंद्र है, जहाँ वीर बजरंगबली को देवी स्वरूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की मूर्ति में हनुमान जी के बाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा हुआ दिखता है, और मूर्ति में स्त्री स्वरूप की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
इस अद्भुत परंपरा की जड़ें रामायण काल में जाकर मिलती हैं। जब रावण की पराजय निश्चित जान अहिरावण छलपूर्वक श्रीराम और लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया था तब विभीषण के कहने पर हनुमान जी वहां पहुँचे। पाताल लोक में अहिरावण अपने कुलदेवी निकुम्भला और कामदा के समक्ष श्रीराम और लक्ष्मण की बलि देने वाला था। हनुमान जी ने देवी का रूप धारण कर उनके शरीर में प्रवेश किया और बलि से पहले ही अहिरावण का वध कर दिया। उसी देवी स्वरूप में आज भी यहां उनकी आराधना होती है।
मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक और रोचक कथा भी है। रतनपुर के एक राजा और उनकी रानी को कुष्ठ रोग हो गया था। इलाज के तमाम प्रयास विफल रहे। तभी राजा को स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन देकर बताया कि महामाया मंदिर के पास स्थित चंडिका कुंड में उनकी एक दिव्य मूर्ति है, जिसे गिरजा कुंड के समीप स्थापित करें और वहां स्नान करें रोग से मुक्ति मिल जाएगी। राजा ने ऐसा ही किया और चमत्कारिक रूप से दोनों रोगमुक्त हो गए। तभी से इस मंदिर की ख्याति फैल गई।

 

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CM विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों को हनुमान जयंती की दी शुभकामनाएं

  • कहा- संकटमोचन से सबके जीवन में आए सुख, शांति और समृद्धि
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि संकटमोचन भगवान हनुमान सब पर अपनी कृपा बनाए रखें और प्रदेश के सभी नागरिकों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार हो। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि पवनपुत्र हनुमान जी का जीवन हमें अटूट भक्ति, अदम्य साहस और निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें बुराइयों के विरुद्ध खड़े होने, धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने का संदेश देता है। उन्होंने कामना की कि हनुमान जयंती का यह पर्व सभी के लिए मंगलकारी सिद्ध हो और समाज में सद्भाव, समर्पण और शक्ति का संचार करे।
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वट सावित्री व्रत सोमवार 26 मई को, जानिए...पूजा विधि

वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए रखती हैं. यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है. वत सावित्री व्रत को देशभर में अलग-अलग नामों जाना जाता है जैसे कि बड़मावस, बरगदाही, वट अमावस्या आदि. वट सावित्री का व्रत सबसे पहले राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था. तभी से वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति के मंगल कामना के लिए रखती हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है|
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. ऐसे में वट सावित्री का व्रत सोमवार 26 मई को रखा जाएगा|
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि-
वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. उसके बाद सास ससुर का आशीर्वाद लेकर व्रत का संकल्प करें. वट सावित्री व्रत के दिन विशेष रूप से लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. साथ ही सोलह श्रृंगार करने का भी विशेष महत्व होता है. इसके बाद सात्विक भोजन तैयार करें. इसे बाद वट वृक्ष के पास जाकर पंच देवता और भगवान विष्णु का आह्वान करें. तीन कुश और तिल लेकर ब्रह्मा जी और देवी सावित्री का आह्वान करते हुए ‘ओम नमो ब्रह्मणा सह सावित्री इहागच्छ इह तिष्ठ सुप्रतिष्ठित भव’. मंत्र का जप करें. इसके बाद जल अक्षत, सिंदूर, तिल, फूल, माला, पान आदि सामग्री अर्पित करें. फिर एक आम लें और उसके ऊपर से वट वृक्ष पर जल अर्पित करें. इस आम को अपने पति को प्रसाद के रूप में दें. साथ ही कच्चे सूत के धागे को लेकर उसे 7 या 21 बार वट वृक्ष पर लपेटते हुए परिक्रमा करें. हालांकि, 108 परिक्रमा यदि आप करते हैं तो वह सर्वोत्तम माना जाता है. अंत में व्रत का पारण काले चने खाकर करना चाहिए|
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हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को अर्पित करें ये चीजें

  • मिलेगी केसरीनंदन की असीम कृपा
हर साल हनुमान जन्मोत्सव चैत्र माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान मारुति नंदन के साथ ही भगवान राम और मां सीता की भी पूजा-अर्चना की जाती है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन रामायण, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी किया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली की उनके प्रिय भोग का प्रसाद भी जरूर चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से राम भक्त हनुमान भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तो चलिए जानते हैं कि हनुमान जन्मोत्सव के दिन केसरी नंदन को क्या भोग लगाना चाहिए।
बेसन के लड्डू- हनुमान जी को बेसन के लड्डू बहुत ही प्रिय है। तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को बेसन के लड्डू का भोग अवश्य लगाएं। ऐसा करने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
बूंदी- हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को बूंदी या बूंदी के लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं। बूंदी के लड्डू का भोग लगाने से हनुमान जी भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं।
इमरती- हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें इमरती का भोग भी लगाएं। हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को इमरती का भोग लगाने से भक्त की हर अधूरी इच्छा पूरी होती है।
गुड़-चना- कहते हैं कि हनुमान जी को गुड़-चना चढ़ाने से मंगल दोष दूर होता है। साथ ही हर परेशानी से भी छुटकारा मिलता है। तो ऐसे में हनुमान जन्मोत्सव के दिन वायुपुत्र हनुमान जी को गुड़-चना का भोग अवश्य लगाएं।
केला- हनुमान जन्मोत्सव के दिन पवनपुत्र को केला का भोग लगाना बिल्कुल भी न भूलें। हनुमान जी को केला अति प्रिय है। ऐसे में केला अर्पिक करने से बजरंगबली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
खीर- हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को खीर जरूर चढ़ाएं। ऐसा करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही हनुमान जी धन से संबंधित परेशानियां भी दूर कर देते हैं।
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कर्ज में डूबे हैं तो शुक्रवार को इस विधि से करें गुप्त लक्ष्मी की पूजा

हिंदू धर्म शास्त्रों में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं। हिंदू धर्म शास्त्रों में देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा और व्रत किया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार-
मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति पर देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, उसके घर में धन और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। घर में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और व्रत के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुक्रवार के दिन गुप्त लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दरअसल, गुप्त लक्ष्मी जिन्हें धूमावती भी कहा जाता है। इन्हें अष्ट लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जो कोई भी शुक्रवार के दिन गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की पूजा करता है, उसके घर का खजाना हमेशा धन से भरा रहता है।
पूजा विधि-
शास्त्रों में कहा गया है कि देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए रात का समय शुभ माना जाता है। शुक्रवार की रात 9 से 10 बजे के बीच मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
सबसे पहले पूजा के लिए साफ कपड़े पहनने चाहिए।
फिर पूजा की चौकी पर गुलाबी कपड़ा बिछाकर श्रीयंत्र और गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की मूर्ति या तस्वीर रखनी चाहिए।
फिर देवी के सामने 8 घी के दीपक जलाने चाहिए।
फिर श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी को अष्टगंध से तिलक लगाना चाहिए।
देवी को लाल गुड़हल के फूलों की माला पहनानी चाहिए।
खीर का भोग लगाना चाहिए।
ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीये ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा मंत्र का जाप करना चाहिए।
अंत में देवी की आरती करनी चाहिए।
फिर सभी आठों दीपकों को घर की आठ दिशाओं में रखना चाहिए।
देवी लक्ष्मी की पूजा का महत्व-
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी की पूजा न केवल घर में धन-धान्य बढ़ाने के लिए की जाती है, बल्कि समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी की जाती है। देवी लक्ष्मी की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा का भी नाश होता है।
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जगद्गुरु शंकराचार्य का रायपुर आगमन 12 अप्रैल को

  • निमोरा में देंगे आशीर्वचन
रायपुर। उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज का 12 अप्रैल को एक दिवसीय रायपुर आगमन हो रहा है। उनके मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने जानकारी दी कि स्वामिश्री: प्रयागराज से दोपहर 12:30 बजे रायपुर विमानतल पहुंचेंगे, जहाँ भक्तों द्वारा उनका भव्य स्वागत और दर्शन का आयोजन होगा।
शंकराचार्य दोपहर 1 बजे ग्राम निमोरा के लिए प्रस्थान करेंगे, जहाँ ‘अभिषेकात्म होमात्मक अतिरुद्र महायज्ञम्’ की पूर्णाहुति में भाग लेंगे। मंच पर पादुकापूजन के बाद वे आशीर्वचन भी देंगे। आयोजन समिति द्वारा विशेष स्वागत की तैयारियां की जा रही हैं। कथा व्यास पर आचार्य प्रमोद शास्त्री जी महाराज एवं यज्ञाचार्य श्रीराम प्रताप शास्त्री जी महाराज द्वारा संपन्न कराया जाएगा! इस अवसर पर शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर के दंडी स्वामिश्री: डॉ इन्दुभवानंद: तीर्थ जी महाराज, दंडी स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन्द: सरस्वती जी महाराज सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा व ज्योतिर्मठ सीईओ चंद्रप्रकाश उपाध्याय विशेष रूपसे उपस्थित रहेंगे!
सायंकाल 5 बजे वे शंकराचार्य आश्रम, बोरियाकला (रायपुर) के लिए रवाना होंगे। यहाँ वे भगवती दर्शन और पादुकापूजन पश्चात भक्तों को आशीर्वचन देंगे और आश्रम में रात्रि विश्राम करेंगे। 13 अप्रैल को प्रातः 7 बजे वे प्रयागराज के लिए विमान से प्रस्थान करेंगे।
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आज प्रदोष व्रत पर इन विधियों से करें बेलपत्र के पेड़ की पूजा

  • महादेव करेंगे मनोकामना पूरी
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से जातक पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसती है। चैत्र माह यानी हिंदू नववर्ष का पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को रखा जाएगा। बता दें कि हिंदू पंचांग में चैत्र पहला माह है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के साथ ही बेलपत्र पेड़ की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत के दिन ऐसे करें बेलपत्र पेड़ की पूजा
प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। फिर व्रत का संकल्प लें।
पहले घर के मंदिर में भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा कर लें।
इसके बाद बेलपत्र पेड़ के नीचे की साफ-सफाई कर लें।
बेलपत्र के पेड़ के सामने पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
फिर बेलपत्र पेड़ की जड़ में जल अर्पित करें। पेड़ के तने पर चंदन या रोली का तिलक करें और चावल, फूल भी चढ़ाएं।
बेलपत्र के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें।
भगवान शिव की आरती के बाद बेलपत्र पेड़ की परिक्रमा करें।
वहीं ध्यान रहें कि प्रदोष व्रत के बेलपत्र का पत्ता गलती से भी नहीं तोड़ें। पूजा के लिए एक दिन पहले ही बेलपत्र तोड़कर रख लें।
बेलपत्र पूजा का महत्व
भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है। महादेव की पूजा बेलपत्र के बिना अधूरी मानी जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन शिवजी के साथ बेलपत्र पेड़ की पूजा अत्यंत फलदायी माना जाता है। अगर किसी की कुंडली में ग्रह दोष हैं तो उसे भी इससे शांति मिलती है।
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महावीर जयंती आज, जानिए...भगवान महावीर और उनके जीवन जीने के 5 सिद्धांत

हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को पूरे देश में महावीर जयंती श्रद्धा, आस्था और शांति के संदेश के साथ मनाई जाती है। यह दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए सत्य, अहिंसा और संयम की प्रेरणा देने वाला दिन है।
भगवान महावीर का जीवन परिचय-
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर में हुआ था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ लिच्छवी वंश के शासक थे और माता त्रिशला गणराज्य की राजकुमारी थीं। बाल्यकाल से ही महावीर में गहरी संवेदनशीलता, वैराग्य और सत्य की खोज की प्रवृत्ति थी।
जब वे 30 वर्ष के हुए, तब उन्होंने राजपाठ, परिवार और ऐश्वर्य को त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद 12 वर्षों तक कठोर तप, ध्यान और मौन साधना की। अंततः उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे 'जिन' अर्थात इंद्रियों को जीतने वाले कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण और धर्म प्रचार में अर्पित कर दिया।
महावीर जयंती का धार्मिक और सामाजिक महत्व-
महावीर जयंती केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह दिन मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन जैन समाज द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, कलश यात्रा, शोभायात्रा और धर्मोपदेशों का आयोजन किया जाता है। देशभर के जैन मंदिरों में भगवान महावीर की प्रतिमाओं का अभिषेक किया जाता है। कई स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर, अन्नदान और पुस्तक वितरण जैसे सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
भगवान महावीर के जीवन जीने के 5 सूत्र-
भगवान महावीर ने जो पांच प्रमुख व्रत बताए, वे ही उनके जीवन दर्शन के मूल आधार हैं।
अहिंसा
हर जीव में आत्मा है, इसलिए किसी को भी कष्ट पहुंचाना पाप है। महावीर ने मन, वचन और कर्म से अहिंसा का पालन करने का संदेश दिया।
सत्य
सत्य बोलना ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। उन्होंने कहा कि झूठ बोलने से मन अशांत होता है और समाज में अविश्वास फैलता है।
अस्तेय
बिना अनुमति किसी वस्तु को लेना या चुराना अपराध है। संतोष और आत्मनियंत्रण जीवन में सुख का मार्ग है।
ब्रह्मचर्य
इंद्रियों पर नियंत्रण, मानसिक और शारीरिक संयम आत्मा की उन्नति के लिए आवश्यक है।
अपरिग्रह
जितना कम संग्रह करेंगे, उतना जीवन सरल और शांत होगा। धन, वस्त्र, रिश्तों और इच्छाओं का मोह त्यागना ही सच्चा वैराग्य है।
भगवान महावीर के ये सिद्धांत आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बिना हिंसा, छल, और मोह के भी जीवन को सुंदर और सफल बनाया जा सकता है।
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राज्यपाल ने महावीर जयंती के अवसर पर दी शुभकामनाएं

रायपुर। राज्यपाल श्री रमेन डेका ने जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की जयंती के अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल ने कहा कि भगवान महावीर ने विश्व कल्याण के लिए सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का संदेश दिया। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, आडम्बरों और कुरीतियों को समाप्त करने पर जोर दिया। भगवान महावीर के सिद्धांत और उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उनके जीवन से हमें अनुशासन, तप और संयम की शिक्षा मिलती है। भगवान महावीर का अहिंसा का दर्शन विश्व से हिंसा व आतंकवाद समाप्त कर शांति और सद्भाव स्थापना का सन्देश देता है। राज्यपाल श्री डेका ने प्रदेशवासियों से अपील की है कि भगवान महावीर के संदेशों को अपने व्यावहारिक जीवन में उतारें तथा शांति व सद्भाव के साथ आपसी रिश्तों को मजबूत बनाएं।
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