धर्म समाज

कामदा एकादशी आज, जानिए...व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में कामदा एकादशी का व्रत बहुत खास माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि यह व्रत सभी पापों को मिटा देता है। जो लोग जाने-अनजाने में गलतियां कर बैठते हैं, उनके लिए यह व्रत पापों से छुटकारा दिलाने वाला होता है। यही कारण है कि कामदा एकादशी का व्रत रखना बेहद पुण्य देने वाला समझा जाता है।
इस दिन व्रत और पूजा के साथ-साथ विष्णु मंत्रों का जाप करना बहुत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि मंत्र जाप से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है। "कामदा" का मतलब है "मन की इच्छाएं पूरी करने वाली।" भक्तों का मानना है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की सच्चे मन से प्रार्थना करने से उनकी सही इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। साथ ही यह व्रत पापों से मुक्ति दिलाता है। आज कामदा एकादशी का पवित्र दिन है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा करने का विशेष महत्व है। पूजा को और प्रभावशाली बनाने के लिए भगवान विष्णु के साथ मां तुलसी की आरती करना जरूरी माना जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है और उनकी हर पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल होता है।
इस दिन विष्णु जी की आरती के बाद तुलसी मां की आरती करने से पूजा का पूरा फल मिलता है और भगवान प्रसन्न होते हैं। विष्णु पुराण में एक कहानी है कि प्राचीन समय में भोगीपुर नाम का एक शहर था। वहां राजा पुण्डरीक का राज था। उस शहर में अप्सराएं, किन्नर और गंधर्व भी रहते थे। उनमें ललिता और ललित नाम के गंधर्व दंपत्ति में बहुत प्यार था। एक दिन ललित राजा के दरबार में गीत गा रहा था, तभी उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका गाने का लय बिगड़ गया। गुस्से में राजा ने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
ललिता को यह बात पता चली तो वह दुखी हो गई। वह श्रृंगी ऋषि के पास गई और मदद मांगी। ऋषि ने कहा, "चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसे कामदा एकादशी कहते हैं। इसका व्रत करो और पुण्य अपने पति को दो, वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।" ललिता ने ऐसा ही किया। व्रत के पुण्य से ललित राक्षस रूप से छूटकर अपने असली रूप में लौट आया। मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से हर मुश्किल दूर होती है और मन की मुरादें पूरी होती हैं।
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रोज 108 बार महामृत्युंजय मंत्र के जाप से खत्म होगी शनि की साढ़ेसाती ख़त्म

महामृत्युंजय मंत्र का जाप भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है और इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है। मान्यता है कि अगर किसी के घर में कोई गंभीर रूप से बीमार है तो रोजाना 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से शीघ्र आराम मिलता है। इसके साथ ही अगर महाकाल की पूजा के साथ इस मंत्र का जाप रोजाना किया जाए तो व्यक्ति से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आज हम आपको इस चमत्कारी मंत्र की उत्पत्ति और इससे जुड़ी कथा के बारे में बता रहे हैं...
किस वजह से दुखी थे मृकंड ऋषि?
भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृकंड निःसंतान होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उनके भाग्य में संतान को शामिल नहीं किया था। मृकंड ने सोचा कि अगर महादेव संसार के सारे नियम बदल सकते हैं तो क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्न करके इस नियम को भी बदल दिया जाए। तब ऋषि मृकंड ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। भोलेनाथ मृकंड की तपस्या का कारण जानते थे इसलिए वे तुरंत प्रकट नहीं हुए, लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोलेबाबा को झुकना पड़ा। महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि से कहा, मैं विधि का विधान बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं, लेकिन इस वरदान के साथ सुख-दुख भी होंगे।
ऐसे थे मृकण्ड ऋषि के पुत्र-
भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को मार्कण्डेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह अल्पायु, गुणवान बालक है। इसकी आयु मात्र 12 वर्ष है। ऋषि की खुशी दुख में बदल गई। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि भगवान की कृपा से बालक सुरक्षित रहेगा। भाग्य बदलना उनके लिए आसान काम है।
मार्कण्डेय की मां चिंतित हो गईं-
जब मार्कण्डेय बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की मां बालक की बढ़ती उम्र को लेकर चिंतित थीं। उन्होंने मार्कण्डेय को उसकी अल्पायु के बारे में बताया। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता की खुशी के लिए वह भगवान शिव से लंबी आयु मांगेंगे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया था। बारह वर्ष बीत गए।
मार्कण्डेय ने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना-
मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका निरंतर जाप करने लगे।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
जब समय पूरा हुआ तो यमदूत उसे लेने आए। जब ​​यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की पूजा कर रहा है तो वे कुछ देर तक प्रतीक्षा करने लगे। मार्कण्डेय ने निरंतर जाप का व्रत ले रखा था। वे बिना रुके जाप करते रहे। यमदूतों में मार्कण्डेय को छूने का साहस नहीं हुआ और वे लौट गए। उन्होंने यमराज से कहा कि उनमें बालक तक पहुंचने का साहस नहीं है। इस पर यमराज ने कहा कि मैं स्वयं मृकण्ड के पुत्र को लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंचे। बालक मार्कण्डेय ने जब यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। जब यमराज ने बालक को शिवलिंग से दूर ले जाने का प्रयास किया तो मंदिर तेज गर्जना के साथ हिलने लगा। तेज प्रकाश से यमराज की आंखें चौंधिया गईं।
शिवलिंग से प्रकट हुए महाकाल-
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हुए। उन्होंने हाथ में त्रिशूल लेकर यमराज को चेतावनी दी और पूछा कि आपने ध्यान में लीन मेरे भक्त को खींचने का साहस कैसे किया..? यमराज महाकाल जोर-जोर से कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आपका सेवक हूं। आपने ही मुझे प्राण लेने का क्रूर कार्य सौंपा है। भगवान का क्रोध कुछ कम हुआ और उन्होंने कहा, 'मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने उसे लंबी आयु का आशीर्वाद दिया है। आप इसे नहीं ले जा सकते।' यम ने कहा- प्रभु आपका आदेश सर्वोच्च है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वालों को कष्ट नहीं दूंगा। मार्कण्डेय जी महाकाल की कृपा से दीर्घायु हुए, अतः उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त कर देता है।
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आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो रोज सुबह करें ये काम, पूरी होगी हर मनोकामना

हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना जाता है. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार यह कहा जाता है कि यदि मां लक्ष्मी आप से किसी कारणवश रूठ जाती हैं तो आपके जीवन में धन की कमी होने लगती है. धन की कमी होने से जीवन में बहुत-सी परेशानियों का आगमन हो जाता है. इसलिए लोग सदैव मां लक्ष्मी को प्रसन्न रखने की कोशिश करते हैं. आइए इस लेख में यह जानने की कोशिश करते हैं कि आर्थिक तंगी से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए|
इस रंग के फूल से मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न-
यदि आप आर्थिक तंगी से बचना चाहते हैं तो मां लक्ष्मी को रोज सुबह उठकर लाल रंग के फूल अर्पित करें. घर के पूजा स्थल पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के सामने लाल रंग के फूल चढ़ाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
हनुमान जी करेंगे बेड़ा पार-
भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान जी का पूजन करने से आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है. इसके लिए आप एक पीपल के पत्ते पर राम लिखकर किसी मंदिर में रख दीजिए. ध्यान रहे कि राम नाम वाला पत्ता हनुमान जी के चरणों के पास बिलकुल न रखें|
रोजाना करें यह पाठ-
आर्थिक तंगी से बचने के लिए यदि आप सुबह उठकर कनकधारा का श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं तो आपको जीवन में तरक्की मिलती रहेगी और सफलता के योग आपके जीवन में बनेंगे|
साफ-सफाई रखें-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि मां लक्ष्मी को घर और द्वार पर सफाई अत्यंत प्रिय है. आर्थिक तंगी से बचने के लिए आप रोज सुबह उठकर घर के मुख्य द्वार और घर की सफाई करें. ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, साथ ही यह वास्तुशास्त्र के अनुसार शुभ माना जाता है|
तुलसी का करें पूजन-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को तुलसी का पौधा बहुत ही प्रिय है. इसलिए माना जाता है रोजाना सुबह उठकर स्नान कर तुलसी में जल अर्पित करने और दीपक जलाकर पूजा करने से आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है|
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कामदा एकादशी के व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं, जानिए...सही नियम

पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 07 अप्रैल को रात 08 बजे शुरू होगी और 08 अप्रैल को रात 09 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, 08 अप्रैल को कामदा एकादशी मनाई जाएगी. कामदा एकादशी का पारण 09 अप्रैल को किया जाएगा. व्रती लोग 09 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 02 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 34 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं|
कामदा एकादशी व्रत पूजा विधि-
कामदा एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहन लें और भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद एक तांबे के लोटे में जल, फूल, अक्षत और सिंदूर डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. फिर चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मन्त्र का उच्चारण करें. पंचामृत से स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल, आदि अर्पित करें. इसके बाद कामदा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें और एकादशी व्रत पूजा के आखिरी में आरती करें|
कामदा एकादशी व्रत में क्या खाएं-
कामदा एकादशी व्रत में सभी प्रकार के फल खाए जा सकते हैं, जैसे कि सेब, केला, अंगूर, पपीता, अनार आदि.
आलू, कद्दू, लौकी, खीरा, टमाटर, पालक, गाजर और शकरकंद जैसी सब्जियां खा सकते हैं.
दूध, दही, पनीर और मक्खन जैसे डेयरी उत्पाद खा सकते हैं.
बादाम, काजू, किशमिश और अखरोट जैसे सूखे मेवे खा सकते हैं.
कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, और समा के चावल जैसे अनाज खा सकते हैं.
मूंगफली का तेल, घी, या सूरजमुखी का तेल जैसे तेल खा सकते हैं.
सेंधा नमक और चीनी खा सकते हैं।
कामदा एकादशी व्रत में क्या न खाएं-
अनाज: गेहूं, चावल और दाल जैसे अनाज नहीं खाएं.
सब्जियां: प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां नहीं खाएं.
मांस, मछली, और अंडे: मांस, मछली और अंडे का सेवन नहीं करें.
शराब और धूम्रपान: शराब और धूम्रपान का सेवन नहीं करें.
मसाले: गर्म मसाले, धनिया पाउडर और हल्दी पाउडर जैसे मसाले नहीं खाएं.
तेल: तिल का तेल और सरसों का तेल जैसे तेल नहीं खाएं.
नमक: साधारण नमक का सेवन नहीं करें|
कामदा एकादशी व्रत के नियम-
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहन लें और भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद एक तांबे के लोटे में जल, फूल, अक्षत और सिंदूर डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. फिर चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मन्त्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, 1 ऋतुफल, पान, नारियल, आदि अर्पित करें|
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Kaकामदा एकादशी के दिन करें इन मंत्रों का जाप, पापों से मिलेगी मुक्ति

कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि कामदा ब्रह्महत्या का व्रत रखने से ब्रह्महत्या और अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 07 अप्रैल 2025 को रात्रि 08 बजे से प्रारंभ होगी तथा एकादशी तिथि 08 अप्रैल को रात्रि 09: 12 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार कामदा एकादशी 08 अप्रैल को मनाई जाएगी और इसका समापन 09 अप्रैल 2025 को होगा|
इन मंत्रों का करें जाप-
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्॥”
“ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः”
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
इस मंत्रों का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती, करियर में सफलता मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं|
कामदा एकादशी का धार्मिक महत्व-
कामदा एकादशी के दिन इन मंत्रों का जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है.
इन मंत्रों का जाप करने से करियर में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.
कामदा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या और अनजाने में किए हुए सभी पापों से मुक्ति मिलती है|
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CM विष्णुदेव साय ने रामनवमी पर श्रीराम मंदिर में की पूजा-अर्चना

  • शुभकामनाओं के साथ दिया एकजुटता का संदेश
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने रामनवमी के पावन अवसर पर राजधानी रायपुर में वीआईपी रोड स्थित श्रीराम मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना की। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरणों में प्रदेशवासियों के लिए सुख, समृद्धि, और निरंतर प्रगति की प्रार्थना की। मुख्यमंत्री श्री साय ने मंदिर परिसर स्थित अंजनी माता और बाल हनुमान मंदिर में भी पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया।
मुख्यमंत्री श्री साय ने इस अवसर पर कहा कि रामनवमी पर्व से हम सभी को भगवान श्रीराम के आदर्श, उनके संयम, मर्यादा और न्यायप्रियता को अपने जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने आह्वान किया कि हम सभी मिलकर राज्य के विकास के लिए समर्पण, एकता और सौहार्द के साथ कार्य करें-यही भगवान राम के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा होगी।
रामनवमी की शुभकामनाएँ देते हुए मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक सौहार्द इसकी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम  के आशीर्वाद और अपने परिश्रम से हम सब मिलकर समृद्ध छत्तीसगढ़ का निर्माण करेंगे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे।
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CM विष्णुदेव साय ने की मां दुर्गा की पूजा अर्चना

  • धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय के साथ कन्याओं को कराया भोजन, प्रदेशवासियों की खुशहाली की कामना
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने रविवार को जशपुर जिले के बगिया ग्राम में स्थित दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की। इस शुभ अवसर पर उन्होंने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय एवं परिवारजनों के साथ देवी माँ का विधिवत पूजन कर प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि और खुशहाली की मंगल कामना की।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय और श्रीमती कौशल्या साय ने इस अवसर पर पारंपरिक श्रद्धा और स्नेहभाव के साथ नन्हीं कन्याओं को आदरपूर्वक भोजन कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। 
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कहा कि रामनवमी के अवसर पर कन्याओं का पूजन एवं सम्मान, हमारी सांस्कृतिक जड़ों को संजोने के साथ-साथ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे राष्ट्रीय अभियान को भी जीवंत करता है। यह संदेश देता है कि बालिकाएँ केवल परिवार की नहीं, बल्कि राष्ट्र के विकास की भी आधारशिला हैं। उनका सम्मान, संरक्षण और सशक्तिकरण ही राष्ट्र के विकास के संकल्प को पूर्णता प्रदान करता है।
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प्रदोष व्रत के दिन महिलाएं करें ये उपाय, दांपत्य जीवन होगा सुखमय

प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा और उपवास किया जाता है. प्रदोष व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और शुक्ल पक्ष की तिथि को मनाया जाता है. प्रदोष व्रत हर माह मनाया जाता है. प्रदोष व्रत आपके जीवन में परेशानियों को दूर करने और महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए लाभकारी माना जाता है. प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है|
प्रदोष व्रत के दिन व्रत और पूजा के साथ-साथ कुछ उपाय भी किए जाते हैं. इस दिन शास्त्रों में महिलाओं के लिए कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं. अगर महिलाएं इन उपायों का पालन करेंगी तो उन्हें जीवन में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 अप्रैल को रात 10 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 11 अप्रैल को रात 10 बजे खत्म होगी. त्रयोदशी तिथि के दिन पूजन प्रदोष काल में किया जाता है. ऐसे में पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को रखा जाएगा|
प्रदोष व्रत के दिन महिलाएं करें ये उपाय-
प्रदोष व्रत के दिन महिलाओं को प्रदोष काल में या दिन में किसी भी समय पीले चावल के सात दाने ग्रहण करने चाहिए.
फिर अपना नाम और गोत्र बताकर उसे शिवलिंग पर समर्पित कर दें.
यह उपाय पीपल या बेलपत्र के पेड़ पर भी किया जा सकता है.
ध्यान रहे कि शिवलिंग या इन पेड़ों पर चावल चढ़ाने से पहले जल अवश्य चढ़ाएं. इसके बाद धूपबत्ती भी जलाएं.
इस दिन महिलाओं को मिट्टी या आटे का दीपक बनाकर उसमें शिव और शक्ति के नाम से दो बाती रखनी चाहिए.
फिर दीपक जलाकर उसे हथेली में लेकर भगवान शिव के मंदिर में या बेलपत्र के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए.
प्रदोष व्रत के दिन विवाहित महिलाओं को हरी चूड़ियां दान करनी चाहिए.
देवी पार्वती को सिंदूर, बिंदी और मेहंदी लगानी चाहिए|
प्रदोष व्रत का महत्व-
प्रदोष व्रत के दिन पूजा हमेशा प्रदोष काल में ही की जाती है. इस दिन अपने विचार सकारात्मक रखें. प्रदोष व्रत के दिन आपके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का व्रत और विधि-विधान से पूजन करता है, उसके जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और चिंताएं समाप्त हो जाती हैं. प्रदोष व्रत के दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है|
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महावीर जयंती 10 अप्रैल को, जानिए...धार्मिक महत्व

यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान महावीर ने अपने जीवन में जो उपदेश दिए, वे आज भी समाज को नैतिकता, करुणा और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। आइए जानते हैं इस साल महावीर जयंती किस दिन मनाई जाएगी।
साल 2025 में महावीर जयंती का पर्व 10 अप्रैल, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। यह तिथि हिंदू पंचांग के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आती है। पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 9 अप्रैल की रात 10:55 बजे होगी और इसका समापन 11 अप्रैल को सुबह 1:00 बजे होगा। इसी आधार पर 10 अप्रैल को महावीर जयंती मनाई जाएगी।
धार्मिक महत्व-
महावीर स्वामी ने अपने जीवन काल में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को जीवन में अपनाने का संदेश दिया। इन पांच सिद्धांतों को पंच महाव्रत कहा जाता है, जो जैन धर्म की नींव हैं। भगवान महावीर के उपदेश आज भी इंसान को आत्मानुशासन, संयम और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा, ध्यान, और धार्मिक प्रवचनों का आयोजन किए जाता है। इस अवसर पर शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं, जिनमें भगवान महावीर की मूर्ति को रथ में विराजमान कर नगर भ्रमण कराया जाता है।
महावीर जयंती पर श्रद्धालु उपवास भी रखते हैं और जैन ग्रंथों का पाठ करते हैं। इसके साथ ही अहिंसा और शाकाहार को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। महावीर जयंती न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह मानवता, शांति और नैतिक जीवन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
 
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आज महाअष्टमी : मां गौरी के इन मंत्रों का करें जाप, पूरी होगी मनोकामना

  • जानिए...शुभ मुहूर्त, मंत्र, जाप, भोग, कथा, स्तुति, आरती और महत्व
शनिवार को चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन है। नवरात्र के आठवें दिन को महाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की आठवीं शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाएगी। इनका रंग पूर्णतः गोरा होने के कारण ही इन्हें महागौरी या श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। मां गौरी के रंग की उपमा शंख, चंद्र देव और कंद के फूल से की जाती है। मां शैलपुत्री की तरह इनका वाहन भी बैल है इसलिए इन्हें भी वृषारूढ़ा कहा जाता है। इनका ऊपरी दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रहता है और निचले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू जबकि नीचे वाला हाथ शान्त मुद्रा में है। मां का प्रिय फूल रात की रानी है। जो लोग अपने अन्न-धन और सुख-समृद्धि में वृद्धि करना चाहते हैं, उन्हें आज महागौरी की उपासना जरूर करनी चाहिए।
चैत्र दुर्गा अष्टमी मुहूर्त-
चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 4 अप्रैल को रात 8 बजकर 12 मिनट पर।
चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त- 5 अप्रैल को शाम 7 बजकर 26 मिनट पर।
नवरात्रि अष्टमी के दिन करें इन मंत्रों का जाप-
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
मां गौरी को लगाएं इन चीजों का भोग-
हलवा-पूड़ी, काला चना, खीर, लड्डू, फल, नारियल और नारियल से बनी चीजें।
नवरात्रि अष्टमी कन्या पूजन महत्व-
नवरात्रि के आठवें दिन यानी महाअष्टमी के दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। कन्या पूजन करने देवी मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। तो महाष्टमी के दिन छोटी-छोटी कन्याओं को घर बुलाकर हलवा-पूड़ी, काला चना और खीर खिलाएं। भोजन के बाद कन्याओं को दक्षिणा देकर और उनका आशीर्वाद लेकर विदा करें।
मां महागौरी की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, मां महागौरी का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था जिसकी वजह से उनका नाम पार्वती था, लेकिन जब मां पार्वती आठ वर्ष की हुई तब उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का स्पष्ट स्मरण होने लगा था. जिससे उसे यह पता चला कि वह पूर्व जन्म में भगवान शिव की पत्नी थीं. उसी समय से उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने पति के रूप में मान लिया और शिवजी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करनी भी आरंभ कर दी.
मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए वर्षों तक घोर तपस्या की. वर्षों तक निराहार तथा निर्जला तपस्या करने के कारण उनका शरीर काला पड़ गया. इनकी तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए व उन्होंने इन्हें गंगा जी के पवित्र जल से पवित्र किया जिसके पश्चात् माता महागौरी विद्युत के समान चमक तथा कांति से उज्जवल हो गई। इसके साथ ही वह महागौरी के नाम से विख्यात हुई.
मां महागौरी की स्तुति-
मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ महागौरी का प्रार्थना मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
मां महागौरी का ध्यान मंत्र-
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥
मां महगौरी का स्तोत्र मंत्र-
सर्वसंकटहन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
मां महागौरी का कवच मंत्र
ॐकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजम् मां, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी मां नेत्रम् घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मां सर्ववदनो॥
मां महागौरी की आरती-
जय महागौरी जगत की माया।
जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे।
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता।
कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो॥
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शनिवार को करें ये उपाय, घरेलू परेशानियों से मिलेगी मुक्ति

शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है. जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है उसपर शनिदेव आपनी कृपा बनाते हैं. वहीं बुरे कर्म करने वालों पर शनिदेव का प्रकोप बरसता है. इसके अलावा व्यक्ति की कुंडली में शनि का साढ़ेसाती और ढैय्या के कारण भी व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ज्योतिष शास्त्र में इन सभी परेशानियों से बचने के कुछ उपाय बताए गए हैं. जिन्हें करने से व्यक्ति को जीवन में खुशहाली आती है और घर से क्लेश हमेशा के लिए दूर होता है|
शनिवार को करें ये उपाय
हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को पूजनीय माना जाता है. वहीं शनिवार के दिन सूर्योदय होने से पीपल के पेड़ की पूजा करें और उसमें जल चढ़ाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पर हमेशा शनिदेव की कृपा बनी रहती है|
घर से क्लेश होगा कोसो दूर
घर मे अगर हमेशा ही क्लेश रहता है. तो शनिवार के गेहूं के आटे में सौ ग्राम काले चने पिसावा कर मिला लें और उस आटे की रोटी का सेवन करें. मान्यता है कि ऐसा करने से घर में चल रहे आपसी विवाद और क्लेश दूर होते हैं|
लौंग से सुधरेगी आर्थिक स्थिति
धार्मिक मान्यता के अनुसार शनिवार के दिन दीपक में सरसों का तेल और कुछ लौंग डालकर शनिदेव का सामने दीपक जलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. जिससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है|
मिलेगी कर्ज से मुक्ति
काले कुत्ते को शनिदेव का वाहन माना जाता है. ऐसे में शनिवार के दिन काले कुत्ते को रोटी खिलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. मान्यता है कि इससे शनि दोष से मु्क्ति मिलती है साथ ही किसी भी पुराने कर्ज से भी मुक्ति मिल सकती है|
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शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा, जानिए...विधि महत्व

मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी कहा जाता है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से सभी आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और इसके साथ ही शुक्र ग्रह की शुभता से जीवन में धन, समृद्धि और चमक बढ़ती है। इसके साथ ही शुक्रवार के दिन संतोषी माता, देवी दुर्गा और शुक्र ग्रह की पूजा भी की जाती है।
शुक्रवार के दिन क्या करें-
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
साफ कपड़े पहनें और मां लक्ष्मी की मूर्ति को उत्तर दिशा की ओर स्थापित करें।
पूजा में दीपक, फूल, लड्डू, चावल, हल्दी, नारियल का प्रयोग करें।
दीपक के साथ वातावरण को शुद्ध करने के लिए धूपबत्ती का प्रयोग करें।
मां लक्ष्मी के मंत्र का जाप करें और आरती करें।
पूजा समाप्त होने के बाद जरूरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करें।
मां लक्ष्मी की पूजा के लाभ-
सुख, शांति और समृद्धि में वृद्धि- शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के सुख और शांति में वृद्धि होती है। वह हमेशा शांत रहता है और अपना काम ठीक से करता है। इस दिन पूजा करने से परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सौहार्द की भावना भी बढ़ती है और लड़ाई-झगड़ों में कमी आती है।
सुंदरता और आकर्षण में वृद्धि- आत्मविश्वास व्यक्ति के लिए उसके जीवन की सबसे बड़ी चीज होती है। इससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है और वह कोई भी काम बहुत आसानी से कर पाता है। मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुंदरता में भी वृद्धि होती है।
शुभ अवसरों में वृद्धि- मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में नए और शुभ अवसर प्राप्त होते हैं। इसके लिए चाहे वह नौकरी, व्यापार या किसी अन्य क्षेत्र में काम करता हो। इस दिन पूजा करने से व्यक्ति का पूरा जीवन बदल जाता है, जिससे कई बार उसे नए अवसर प्राप्त करने में मदद मिलती है।
पारिवारिक कलह का नाश- शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। परिवार के साथ पूजा करने से आपस में एकता और प्रेम बढ़ता है और कलह का भी नाश होता है।
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चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन करें देवी कालरात्रि को प्रसन्न

  • जानिए...मंत्र और पूजा विधि
आज से चैत्र नवरात्रि की पूजा अपने चरम की ओर बढ़ने लगी है। 30 मार्च से शुरू हुई इस पूजा का आज सातवां दिन है। इस दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। आज से माता रानी का पट दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा। देवी दुर्गा का यह सातवां स्वरूप हमें जीवन के सबसे बड़े सत्य यानि मृत्यु के सत्य का बोध कराता है। आइए जानते हैं, मां कालरात्रि का स्वरूप क्या है, उनकी पूजा के मंत्र, उनका प्रिय प्रसाद, पुष्प, पूजा विधि, कथा और आरती क्या हैं?
माँ कालरात्रि का स्वरूप कैसा है?
माँ कालरात्रि के चार हाथों में से उठा हुआ दाहिना हाथ वरमुद्रा में है, और नीचे वाला दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है। ऊपर वाले बाएं हाथ में तलवार और नीचे वाले बाएं हाथ में कांटा है। माँ कालरात्रि का वाहन गधा है। माता लाल वस्त्र और बाघ की खाल पहने हुए हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है, मां का रूप अत्यंत भयानक और भयंकर है। भयानक रूप वाली देवी कालरात्रि अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। माँ के बाल घने अँधेरे जैसे गहरे काले हैं। माँ तीन आँखों, बिखरे बालों और भयंकर स्वरूप के साथ दिखाई देती हैं। माता के गले में बिजली के समान चमकती हुई श्वेत माला दिखाई देती है।
माँ कालरात्रि का महत्व-
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। देवी माता का यह रूप सभी नकारात्मक ऊर्जाओं, भूतों, राक्षसों और दानवों का नाश करता है। जीवन में हर कोई मृत्यु से डरता है, लेकिन मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति निडर और साहसी बनता है। कई बार कुंडली में प्रतिकूल ग्रहों के प्रभाव के कारण मृत्यु संबंधी अनेक बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिसके कारण व्यक्ति भयभीत एवं चिंतित महसूस करता है। लेकिन मां कालरात्रि अग्नि, जल, शत्रु और पशु आदि के भय से भी मुक्ति दिलाती हैं।
मां कालरात्रि की पूजा विधि-
नवरात्रि के सातवें दिन सबसे पहले स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें। फिर रोली, अक्षत, दीप और धूप अर्पित करें।
इसके बाद मां कालरात्रि की फोटो या चित्र स्थापित करें। यदि मां कालरात्रि का चित्र उपलब्ध न हो तो पहले से स्थापित मां दुर्गा के चित्र की पूजा करें।
अब मां कालरात्रि को रात्रि रानी के फूल चढ़ाएं और प्रसाद के रूप में गुड़ का प्रयोग करें.
इसके बाद मां की आरती करें। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मंत्रों का जाप करें।
इस दिन लाल ऊनी आसन बिछाकर लाल चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें। यदि लाल चंदन की माला उपलब्ध न हो तो रुद्राक्ष की माला का भी उपयोग किया जा सकता है।
माँ कालरात्रि के लिए मंत्र, प्रसाद और पुष्प-
माँ कालरात्रि की स्तुति मंत्र: हे देवी, सर्वव्यापी कालरात्रि, पराशक्ति के रूप में विद्यमान हैं। नमस्कार, नमस्कार
मां कालरात्रि का बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चय ॐ कालरात्रि दैव्ये नमः।
मां कालरात्रि का पूजन मंत्र: जय मां कालरात्रि, सबकी जय हो।
प्रिय प्रसाद: मां कालरात्रि को गुड़ बहुत प्रिय है। आप चाहें तो देवी कालरात्रि को गुड़ की खीर या मिठाई का भोग लगा सकते हैं। गुड़ का सेवन करने से देवी मां की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
पसंदीदा फूल: मां कालरात्रि को चमेली और नीले कमल के फूल चढ़ाने से आपके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
माँ कालरात्रि की कथा-
एक समय शुम्भ-निशुम्भ, चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज जैसे राक्षसों का आतंक तीनों लोकों में फैल गया था। उसका तूफान इतना बढ़ गया था कि देवताओं की हालत दयनीय हो गई थी। यह देखकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनकी शरण लेकर रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध करने और अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण कर लिया। फिर उसने शुम्भ और निशुम्भ का वध कर दिया। इसके बाद देवी दुर्गा ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का भी वध किया, जिससे उनका नाम 'मां चंडी' पड़ा।
इसके बाद जब मां दुर्गा ने रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया तो उनके शरीर से रक्त की धाराएं बहने लगीं। विचित्र बात यह थी कि जैसे ही रक्त जमीन पर गिरा, लाखों रक्तबीज (रक्तबीज) प्रकट होने लगे। यह देखकर देवी दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। मां कालरात्रि ने उसके शरीर से बहते रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में ले लिया। इस प्रकार देवी दुर्गा ने सभी रक्तबीजों का गला काटकर उनका वध कर दिया।
मां कालरात्रि की आरती-
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय॥
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हनुमान जयंती 12 अप्रैल को, जानिए...पूजा सामग्री

हिंदू पंचांग के अनुसार, हनुमान जयंती यानी चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 12 अप्रैल को सुबह 3 बजकर 21 मिनट पर होगी. साथ ही तिथि का समापन अगले दिन 13 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, हनुमान जयंती 12 अप्रैल को मनाई जाएगी.
हनुमान जयंती पूजा सामग्री
हनुमान जयंती के दिन पूजा करने के लिए जरूरी सामग्री कुछ इस प्रकार है.-हनुमान जी की मूर्ति, लाल रंग का आसन, वस्त्र, चरण पादुका, जनेऊ, अक्षत्, फल, माला, गाय का घी, दीपक, चमेली का तेल, धूप, इलायची, हनुमान चालीसा, लाल फूल, सिंदूर, पान का बीड़ा, ध्वज, शंख, घंटी, लाल लंगोट, लौंग, मोतीचूर के लड्डू आदि.
हनुमान जयंती पूजा मंत्र
हनुमान जयंति के दिन पूजा में रामचरितमानस और हनुमान चालीसा के अलावा इन खास मंत्रों का जाप जरूर करना चाहिए.
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा!
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमितविक्रमाय प्रकट-पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा!
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
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चैत्र पूर्णिमा पर इस विधि से करें पिंडदान

  • पितरों का मिलेगा आशीर्वाद
हिंदू धर्म में पूर्णिमा की तिथि बहुत पावन मानी गई है. हर माह में एक पूर्णिमा पड़ती है. अभी चैत्र का महीना चल रहा है. इस महीने की समाप्ति पूर्णिमा के दिन होगी. फिर अगले दिन से वैशाख का महीना शुरू हो जाएगा. चैत्र पूर्णिमा के दिन स्नान दान किया किया जाता है. चैत्र पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु गंगा समेत पावन नदियों में स्नान करते हैं. साथ ही दान-पुण्य करते हैं. चैत्र पूर्णिमा के दिन जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन होता है|
इस दिन पूजा के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को श्रीफल और चावल की खीर चढ़ानी चाहिए. चैत्र पूर्णिमा की तिथि पूजा-पाठ के साथ-साथ पितरों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. इस दिन पितरों का तर्पण और पिंंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है. पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि चैत्र पूर्णिमा के दिन किस विधि से पिंडदान करना चाहिए|
कब है चैत्र पूर्णिमा ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 12 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 21 मिनट पर हो जाएगी. वहीं इस तिथि की समाप्ति 13 अप्रैल को सुबह सुबह 5 बजकर 51 मिनट पर हो जाएगी. हिंदू धर्म में उदया तिथि मानी जाती है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 13 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा मनाई जाएगी|
पिंडदान की विधि
चैत्र अमावस्या के दिन सर्व प्रथम स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें. फिर एक वेदी बनाएं और उस पर पूर्वजों की तस्वीर रखें. फिर वेदी पर काले तिल, जौ, चावल और कुश रखें. इसके बाद गाय के गोबर, आटे, तिल और जौ से एक पिंड बना लें. फिर उस पिंड को पितरों को अर्पित को अर्पित करें. पितरों के मंत्रों का जाप करें. उनको जल अर्पित करें. ध्यान रखें कि पूर्वजों का पिंडदान हमेशा जानकार पुरोहित की उपस्थिति में ही करें. पिंडदान के बाद ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और उनको दान भी दें|
पिंडदान के नियम
पूर्वजों का पिंडदान गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के तट पर जाकर करें. पिंडदान हमेशा दोपहर के समय करें. पूर्वजों के पिंडदान के लिए दोपहर का समय सबसे अच्छा माना जाता है. पिंडदान करते समय, पितरों का ध्यान करें. उनसे आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें|
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कामदा एकादशी पर अपनी राशि के अनुसार करें दान, पूरे होंगे रुके हुए काम

एकादशी का व्रत हर माह शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है. वहीं चैत्र माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी का व्रत रखा जाता है. कहते हैं इस दिन जगत के पालन हार भगवान विष्णु की सच्चे मन से अराधना करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही इस व्रत के प्रभाव से जाने-अनजाने में किए गए पापों से भी मुक्ति मिलती है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने के साथ राशि के अनुसार दान करने से व्यक्ति को बिगड़े तथा रुके हुए काम बन जाते हैं.
कामदा एकादशी कब है:-
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि की शुरुआत 7 अप्रैल को रात्रि 8 बजे होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन रात्रि 9 बजकर 12 पर होगी. उदया तिथि के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत मंगलवार 8 अप्रैल को रखा जाएगा.
कामदा एकादशी पर करें इन चीजों का दान
मेष राशि- कामदा एकादशी के दिन लाल रंग की मिठाई और लाल रंग के मौसमी फलों मसूर दाल का दान करें.
वृषभ राशि- चावल, गेहूं, चीनी, दूध आदि चीजों का दान करें.
मिथुन राशि- गाय को चारा खिलाएं और सेवा करें. साथ ही जरूरतमंद लोगों को हरी सब्जियों का दान करें.
कर्क राशि- माखन, मिश्री, लस्सी, छाछ आदि चीजों का दान करें.
सिंह राशि- कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद राह चलते लोगों में लाल रंग के फल और शरबत बाटें.
कन्या राशि- विवाहित महिलाओं को हरे रंग की चूड़ियां दान में दें.
तुला राशि- भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद जरूरतमंदों के मध्य सफेद वस्त्रों का दान करें.
वृश्चिक राशि- मसूर दाल, लाल मिर्च, लाल रंग के फल आदि चीजों का दान करें.
धनु राशि- केसर मिश्रित दूध राहगीरों में बाटें. साथ ही पीले रंग के फल और खाने पीने की अन्य चीजों का भी दान कर सकते हैं.
मकर राशि- भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ गरीबों के मध्य धन का दान करें.
कुंभ राशि- कामदा एकादशी पर चमड़े के जूते-चप्पल, छतरी और काले वस्त्र का दान करें.
मीन राशि- केला, चने की दाल, बेसन, पीले रंग के वस्त्र का दान करें.

 

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अष्टमी और नवमी तिथि पर कब होगा कन्या पूजन, जानिए...सही तिथि, सामग्री और पूजा विधि

हिंदू धर्म में कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. लोग अष्टमी और नवमी तिथि को कन्याओं का पूजन तथा भोजन कराते हैं. चैत्र नवरात्रि की शुरुआत इस साल 30 मार्च से हुई, जिसका समापन 6 अप्रैल को रविवार को होगा. इस बार चैत्र नवरात्रि सिर्फ 8 दिन की है, जिसके वजह से अष्टमी और नवमी तिथि और कन्या पूजन को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में कन्या पूजन कब और कैसे करें? आइए जानते हैं|
वैदिक पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि के शुरुआत 4 अप्रैल को रात 8 बजकर 12 मिनट पर होगी. वहीं तिथि के समापन 5 अप्रैल को शाम 7 बजकर 26 मिनट पर होगी, जिसके बाद महानवमी तिथि का शुरुआत हो जाएगी जो कि 6 अप्रैल को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. ऐसे में अष्टमी तिथि का कन्या पूजन 5 अप्रैल और महानवमी 6 अप्रैल को होगी|
कन्या पूजन की सामग्री-
कन्याओं का पैर धोने के लिए साफ जल, और कपड़ा, बैठना के लिए आसन, गाय के गोबर से बने उपले, पूजा की थाली, घी का दीपक, रोली, महावर, कलावा ,चावल, फूल, चुन्नी, फल, मिठाई, हलवा-पूरी और चना, भेंट और उपहार|
कन्या पूजन विधि-
कंजक पूजन के लिए अष्टमी या नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई करें. फिर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान गणेश और महागौरी की पूजा करें. कन्या पूजन के लिए कन्याओं को और एक बालक को आमंत्रित करें. जब कन्याएं घर में आए तो माता का जयकारा लगाएं. उसके बाद सभी कन्याओं का पैर खुद अपने हाथों से धुलें और पोछें. इसके बाद उनके माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं. फिर उनके हाथ में मौली या कलावा बाधें. एक थाली में घी का दीपक जलाकर सभी कन्याओं की आरती उतारें. आरती के बाद सभी कन्याओं हलवा-पूरी, चना का भोग लगाएं. भोजन के बात अपनी सामर्थ अनुसार कन्याओं को कुछ न कुछ भेंट जरूर दें. आखिरी में कन्याओं का पैर छूकर उनका आशीर्वाद जरूर प्राप्त करें|
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चैत्र नवरात्रि के छठे दिन पूजा में पढ़ें मां कात्यायनी की कथा

  • विवाह में आ रही रुकावटें होंगी दूर
शास्त्रों में देवी कात्यायनी के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि वे चार भुजाधारी हैं. माता एक हाथ में तलवार, दूसरे में पुष्प, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में है और चौथा वर मुद्रा में है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों की प्राप्ति हो जाती है. इनके पूजन से शुक्र की स्थिति बेहतर होती है और वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर होती हैं| हिंदू धर्म में नवरात्रि का खास महत्व है. इस दौरान मां भगवती के नौ रूपों के अराधना की जाती है. वहीं नवरात्रि के छठवें दिन मां आदिशक्ति के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है. इनका जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा|
मां कात्यायनी की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, वनमीकथ का नाम के महर्षि थे, उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया. इसके बाद कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया, उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया. उसके बाद महर्षि कात्यायन ने माता से वरदान मांगा कि वह उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. मां भगवाती ने भी उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी. एक बार तीनों लोकों पर महिषासुर नाम के एक दैत्य ने अत्याचर करना शुरु कर दिया. उसके अत्यचारों से तंग आकर सभी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी से सहयता मंगी|
तब त्रिदेव के तेज से माता ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया. इसलिए माता के इस स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. माता के पुत्री के रूप में पधारने के बाद महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले उनकी पूजा की. तीन दिनों तक महर्षि की पूजा स्वीकार करने के बाद माता ने वहां से विदा ली और महिषासुर, शुंभ निशुंभ समेत कई राक्षसों के आतंक से संसार को मुक्त कराया. माता कात्यायनी को ही महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है|
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