धर्म समाज

9 जुलाई को उदय होंगे गुरु, इन 4 राशियों का जागेगा भाग्य

गुरु ग्रह का ज्योतिष में विशेष स्थान है। गुरु आपके पारिवारिक सुख, संपन्नता, करियर, धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष के कारक माने जाते हैं। इसलिए जब भी ये अपनी स्थिति में बदलाव करते हैं तो सभी राशियों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है। गुरु 9 जुलाई को मिथुन राशि में उदय होने वाले हैं, गुरु के उदय होने से किन राशियों को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है इसके बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।
मेष राशि-
गुरु ग्रह के उदय होने के बाद आपके साहस-पराक्रम में वृद्धि देखने को मिल सकती है। आप अपने अटके हुए कार्यों को पूरा करने के लिए एक्टिव रहेंगे। भाग्य का भी आपको सहयोग मिलेगा। धन-धान्य में भी वृद्धि के योग हैं। अगर आप रोजगार की तलाश में हैं तो कहीं से अच्छा ऑफर आपको मिल सकता है। इस दौरान घर के लोगों के साथ कहीं घूमने भी आप निकल सकते हैं।
मिथुन राशि-
गुरु आपकी ही राशि में हैं और गुरु का उदय होना आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। इस दौरान बीते समय में किए गए कार्यों से आपको लाभ प्राप्त हो सकता है। माता-पिता के स्वास्थ्य में अच्छे बदलाव आने से आप अच्छा महसूस करेंगेष। धार्मिक गतिविधियों में भी आपका मन लगेगा, जिससे मानसिक शांति प्राप्त होगी।
धनु राशि-
गुरु आपकी ही राशि के स्वामी हैं और आपके सप्तम भाव में उदय होंगे। गुरु के उदय होने से आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा और निवेश किए गए धन से भी आपको अच्छा रिटर्न मिल सकता है। जो लोग प्रतियोगी परीक्षाओं के रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं उन्हें शुभ समाचार मिलने के योग हैं। आपकी सेहत में भी अच्छे बदलाव गुरु के उदय होने के बाद आ सकते हैं।
मीन राशि-
आपके लिए गुरु का उदय होना बेहद खास रह सकता है। आपके व्यक्तित्व में गुरु के उदय होने के बाद तेज देखा जा सकता है। कार्यक्षेत्र में आपके काम की सराहना होगा। इस दौरान आपकी पदोन्नति भी हो सकती है। माता के पक्ष के लोगों से इस राशइ के कुछ लोगों को धन लाभ मिलने की संभावना है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं तो बड़ी उपलब्धि आपको मिल सकती है।
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भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों का आज पुरी में अद्भुत अनुष्ठान

पुरी। महाप्रभु जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का पारंपरिक अधरा पाना अनुष्ठान सोमवार को पुरी के बड़ा डंडा या ग्रांड रोड पर किया जाएगा। आषाढ़ शुक्ल द्वादशी को मनाया जाने वाला यह अनुष्ठान सुना बेशा के एक दिन बाद और नीलाद्रि बिजे से ठीक पहले होता है, जो वार्षिक रथ यात्रा के अंतिम समारोहों में से एक है।
अनुष्ठान के हिस्से के रूप में, अपने रथों पर बैठे प्रत्येक देवता को 'पना' दिया जाता है, जो महासूरा सेवकों द्वारा तैयार किया गया एक मीठा पेय है। पेय दूध, केला, छेना (पनीर), कपूर, जायफल, काली मिर्च और पानी का उपयोग करके बनाया जाता है। इसे बड़े बेलनाकार मिट्टी के बर्तनों में डाला जाता है और प्रत्येक देवता के सामने उनके संबंधित रथों में रखा जाता है। प्रत्येक रथ के लिए कुल नौ बर्तन पना तैयार किए जाते हैं।
किसी भी भक्त को इसका स्वाद लेने की अनुमति नहीं है। माना जाता है कि यह प्रसाद उन सहायक देवताओं को संतुष्ट करता है जो अपनी यात्रा के दौरान त्रिदेवों की रक्षा करते हैं, साथ ही आत्माओं और असंतुष्ट आत्माओं जैसी गैर-शरीर वाली संस्थाओं को भी संतुष्ट करता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे मुक्ति की तलाश में रथों के चारों ओर घूमते हैं। अधरा पाना इन प्राणियों को प्रसन्न करने और उन्हें मोक्ष प्रदान करने के लिए एक पवित्र कार्य माना जाता है। अधरा पाना अनुष्ठान आज शाम 4:30 बजे शुरू होगा और रात 8:30 बजे समाप्त होगा। मंगलवार को नीलाद्रि बिजे समारोह होगा, जो देवताओं की श्रीमंदिर के गर्भगृह में वापसी का प्रतीक होगा, जहाँ वे रत्न सिंहासन पर विराजमान होंगे।
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दुर्ग में 10 जुलाई से होगा चातुर्मास प्रारंभ, लगेगा धर्म ज्ञान का ठाठ

दुर्ग। दुर्ग जैन साध्वी श्री प्रियदर्शना श्री जी प्रियदा अपने साध्वी समुदाय के साथ कल प्रातः रेलवे स्टेशन रोड स्थित श्री डालचंद जी संदीप कुमार सुराणा के निवास से दोपहर 1:30 बजे श्रावक श्राविकाओं की विशेष उपस्थिति में जय आनंद मधुकर रतन भवन बांधा तालाब दुर्ग में मंगलमय प्रवेश हुआ।
ज्ञात हो यह मंगलमय प्रवेश प्रातः 8:00 बजे होने वाला था लगातार बारिश के चलते यह मंगलमय प्रवेश दोपहर 1:30 बजे हुआ। साध्वी मंडल के सानिध्य एवं सम्मान में श्रमण संघ महिला मंडल श्रमण संघ बालिका मंडल और आनंद मधुकर रतन पाठशाला के बच्चों ने सुराणा निवास में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति दी श्रमण संध महिला मंडल ने स्वागत अभिनंदन गीत प्रस्तुत करते हुए रोचक नाटिका के माध्यम से समाज में फैली मोबाइल व्हाट्सएप इंस्टाग्राम से दूर रहने की नसीहत देते हुए नाटिका प्रस्तुत की जिसे उपस्थित जनसमुदाय ने बेहद सराहा।
आज की धर्म सभा को समन्वय साधिका श्री प्रिय दर्शना श्री जी, साध्वी विचक्षणा श्रीजी साध्वी सुप्रज्ञपति श्री ने धर्म सभा को संबोधित किया और कहा यह कर मा चार माह आत्म जागृति का शुभ अवसर हमें मिला है इसे धर्म ध्यान से जुड़कर त्याग तपस्या में अपना जीवन समर्पित करते हुए इन चार माह में अधिक से अधिक धर्म क्रिया करते हुए अपना मानव जीवन सफल बनाना है।
कार्यक्रम का संचालन वर्धमान स्थानकवासी श्रावक श्रवण संघ के मंत्री राकेश संचेती ने किया आयोजित धर्म सभा को संघ के अध्यक्ष धर्मचंद लोढ़ा, सुमित जैन, पदम छाजेड़ रचिता श्रीश्रीमाल ने सभा को संबोधित किया।
आज दोपहर 1:30 बजे सुराणा निवास से बिहार यात्रा प्रारंभ हुई जो स्टेशन रोड इंदिरा मार्केट भाजपा कार्यालय शनिचरी बाजार होते हुए जय आनंद मधुकर रतन भवन पहुंची जहां साध्वी समुदाय ने चातुर्मास करने की श्रावक श्रमिकों सेआज्ञा लेकर जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्ग में प्रवेश किया आने वाली 10 जुलाई को चातुर्मास प्रारंभ होने वाला है।
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बहुदा यात्रा से पहले, सुदर्शन पटनायक ने पुरी में रेत की मूर्ति बनाई

पुरी। प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने 4 जुलाई को पुरी समुद्र तट पर एक आकर्षक रेत की मूर्ति बनाकर बहुदा यात्रा को श्रद्धांजलि दी, क्योंकि तटीय शहर श्री गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की वापसी के लिए तैयार था। रथों, नंदीघोष, तलध्वजा और दर्पदलन की औपचारिक वापसी की तैयारियाँ भी जोरों पर हैं, क्योंकि हजारों लोग दिव्य जुलूस देखने के लिए ग्रैंड रोड (बड़ा डंडा) पर एकत्र हुए हैं।
गिरिजाशंकर सारंगी नामक एक भक्त ने इस अवसर के महत्व को साझा करते हुए कहा: "महाप्रभु का जन्म गुंडिचा मंदिर में हुआ था... आज, नौ दिनों के उत्सव के बाद, महाप्रभु घर की ओर प्रस्थान करेंगे। रास्ते में, महाप्रभु का रथ मौसी मां मंदिर में रुकेगा, जहां उन्हें पोड़ा पीठा का भोग लगाया जाएगा और फिर इसे भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाएगा। इसके बाद जुलूस श्री जगन्नाथ मंदिर की ओर बढ़ेगा।" इस बीच, ओडिशा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) योगेश खुरानिया ने कड़ी सुरक्षा तैनाती के बीच भव्य उत्सव के शांतिपूर्ण आयोजन पर भरोसा जताया।
खुरानिया ने एएनआई को बताया, "बड़ी संख्या में एकत्र हुए भक्तों में काफी उत्साह है। प्रशासन ने व्यापक व्यवस्था की है। पुलिस की करीब 205 टुकड़ियाँ तैनात की गई हैं और पूरी व्यवस्था की निगरानी के लिए वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद हैं। पूरा पुरी शहर सीसीटीवी की निगरानी में है और नियंत्रण कक्ष से हर चीज़ पर नज़र रखी जा रही है।" मौसी माँ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध श्री गुंडिचा मंदिर के बाहर सुरक्षा व्यवस्था को काफी मजबूत किया गया है।
पुलिस की मौजूदगी बढ़ा दी गई है, खास तौर पर श्री गुंडिचा मंदिर के बाहर, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करीब 10,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। एएनआई से बात करते हुए पुरी के पुलिस अधीक्षक पिनाक मिश्रा ने कहा कि रथ वापसी उत्सव के सुचारू संचालन के लिए व्यापक सुरक्षा उपाय किए गए हैं। उन्होंने कहा, "10,000 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है... हमारे पास आरएएफ की करीब आठ कंपनियां हैं।"
उन्होंने कहा, "हमने पुलिस की व्यापक व्यवस्था की है। आज हमें इस उत्सव में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की भी उम्मीद है। सभी श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता है।"
मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वार्षिक उत्सव कई हितधारकों के समन्वित प्रयासों से मनाया जाता है। उन्होंने कहा, "यह उत्सव कई हितधारकों के समन्वय से मनाया जाता है। हम सभी सेवायतों, मंदिर अधिकारियों और जिला प्रशासन के साथ निकट संपर्क में हैं।" पुरी का तटीय शहर भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह से भरा हुआ है, क्योंकि बाहुड़ा यात्रा की तैयारियाँ चरम पर हैं। बाहुड़ा यात्रा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की श्री गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर में वापसी की यात्रा है। यह वार्षिक रथ यात्रा उत्सव का समापन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र शहर में आते हैं। पुरी की सड़कें जीवंत प्रदर्शनों से गुलजार रहती हैं, क्योंकि कलाकार और श्रद्धालु इस अवसर का जश्न मनाते हैं। (एएनआई)
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‘बहुदा यात्रा’: भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए उमड़े भक्त

पुरी। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की बहुदा यात्रा शनिवार को निकाली जाएगी। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की गुंडिचा मंदिर से श्री मंदिर वापसी में निकाली जाती है। इस यात्रा को लेकर भक्तों में उत्साह दिखाई दे रहा है। भक्तों ने बहुदा यात्रा के अपने अनुभव को साझा किया।
बहुदा यात्रा भक्तों के लिए बेहद खास है। अपनी खुशी और उत्साह को श्रद्धालुओं ने आईएएनएस से साझा किया। एक भक्त ने कहा, "यह सब भगवान जगन्नाथ की दिव्य लीला है, सब कुछ उन्हीं की वजह से होता है। आज हम जो कुछ भी हैं, उनकी इच्छा से हैं। अगर वे नहीं चाहते तो हम यहां तक नहीं आ पाते। यह सब उनकी माया है, उनकी लीला है।"
इस विशेष आयोजन में शामिल होने वाले खुद को भाग्यशाली मानते हैं। एक श्रद्धालु बोली, "मैं खुद को भगवान के करीब पाकर बहुत खुश और भाग्यशाली मानती हूं। आज का दिन हम सभी के लिए वास्तव में एक खुशी का दिन है। हालांकि, यह भगवान के विदा होने का दिन भी है, लेकिन फिर भी यह अच्छा लगता है कि वे अपने सभी भक्तों के सामने आते हैं और अपनी उपस्थिति से उन्हें आशीर्वाद देते हैं।"
बहुदा यात्रा पर एक भक्त ने कहा, "हम भी यहां दर्शन के लिए आए हैं। साल में एक बार भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर आते हैं और सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।" भक्त कीर्ति गौरंग दास ने बहुदा यात्रा के अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा, "हमारे गुरु महाराज ने हमें यहां आने का मार्गदर्शन किया। हम शुक्रवार रात यहां पहुंचे हैं और यहां का माहौल आध्यात्मिक है। हजारों लोग गुंडिचा मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ के दर्शन के लिए जुटे हैं।"
एक भावुक भक्त ने कहा, "जगन्नाथ के दैवीय रूप को एक बार देखने से पूरा जीवन बदल जाता है। इसलिए भगवान हर साल यह यात्रा करते हैं, ताकि हर आत्मा को मुक्ति का अवसर मिले। महाप्रभु का एक दर्शन जीवन को हमेशा के लिए बदल सकता है।"
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द्वारका के पास ज्योतिर्लिंग रूप में विराजते हैं महादेव, नाग दोषों से मुक्ति का है यह केंद्र

नई दिल्ली। शिवपुराण के अनुसार समुद्र के किनारे स्थित द्वारकापुरी के पास स्थित स्वयंभू शिवलिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित है। इसको द्वादश ज्योतिर्लिंग में 10वां स्थान प्राप्त है। हालांकि इस ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से तीन अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा होती है। जिसमें महाराष्ट्र के हिंगोली जनपद में स्थित औंध नागनाथ मन्दिर, उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित जागेश्वर मन्दिर के साथ झारखंड के दुमका में स्थित बाबा बासुकीनाथ के मंदिर का भी नाम लिया जाता है। लेकिन, नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध नागेश ज्योतिर्लिंग को शास्त्रों और पुराणों के अनुसार द्वारकापुरी के पास समुद्र के किनारे ही स्थित बताया गया है। क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग दारुक वन में स्थित है और अभी गुजरात में जहां नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है इस क्षेत्र को दारुक वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
शिवपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 'दारुकवन' में है, जो प्राचीन भारत में एक जंगल को इंगित करता है। 'दारुकवन’ का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है।
शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में लिखा गया है कि जो प्राणी श्रद्धापूर्वक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा, वह सारे पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों का आनंद लेते हुए अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। कोटिरुद्र संहिता में शिव को 'दारुकावने नागेशं' कहा गया है। नागेश्वर—नागों का ईश्वर। नागेश्वर शब्द नागों के भगवान यानी महादेव शिव को इंगित करता है। इस कारण यह मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि यहां द्वारकाधीश यानी स्वयं कृष्ण भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की एक बड़ी ही मनमोहक ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है जिसकी वजह से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगता है। भगवान शिव जी की यह मूर्ति 125 फीट ऊंची तथा इसकी चौड़ाई 25 फीट है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में नागेश्वर महादेव के बारे में वर्णित है।
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः |
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ||
जो दक्षिण के अत्यंत रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की मैं शरण में जाता हूं।
इसके साथ ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में सर्प दोष होता है उन्हें यहां धातुओं से बने नाग-नागिन अर्पित करने चाहिए। मान्यता है इससे नाग दोष से छुटकारा मिल जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को विशेष सुरक्षा प्रदान करने वाला ज्योतिर्लिंग माना गया है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से वे शत्रु भय, असुरक्षा और भय से मुक्त होते हैं। शिव पुराण के अनुसार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों की सभी विपत्तियाँ समाप्त होती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। इसे “द्वारका का रक्षक” भी कहा जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं जो यात्रियों को आकर्षित करते हैं। इसमें सबसे प्रमुख द्वारका धाम है, जो नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास स्थित है, जो भगवान कृष्ण की अवतार स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। द्वारका मंदिर, नीलांबिका मंदिर, रुक्मिणी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर इस शहर के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
इसके साथ ही गोमती घाट भी यहां द्वारका के नगर में स्थित है और यहां गोमती नदी के किनारे पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। इसके साथ यहां गोपी तालाब है, जो एक प्राकृतिक झील है जो द्वारका के पास स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जहां आप शांति और सुकून का आनंद ले सकते हैं।
यहीं बेट द्वारका स्थित है और यहां पर प्राचीन मंदिर और साहित्यिक स्थल हैं। यहां पर एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान कृष्ण के बालक रूप का देवालय है। यहां पर द्वारकाधीश मंदिर के समीप गुमणाम बांध के किनारे पर एक पवित्र कुंज है, जहां कृष्ण भगवान के बालक रूप के खेल का स्थल है। इसके पास ही शंकराचार्य की गुफा है, यहां आदिगुरु शंकराचार्य ने ध्यान किया था। यह भी एक आध्यात्मिक स्थल है जो यात्रियों को आकर्षित करता है।
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शुक्रवार को करें ये अचूक उपाय, मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न

शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी का माना जाता है। शुक्रवार को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का विशेष दिन माना जाता है। यह दिन उन लोगों के लिए बेहद शुभ होता है, जो आर्थिक समृद्धि, करियर में उन्नति और सुख-शांति की कामना करते हैं। अगर आप भी लंबे समय से आर्थिक तंगी और कर्ज से परेशान चल रहे हैं तो इन चमत्कार उपायों को कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं। तो आज की इस खबर में हम आपको छोटे-छोटे, लेकिन उन अचूक उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे कर आप अपनी किस्मत का ताला खोल सकते हैं।
माता लक्ष्मी की पूजा करने से दूर होगा आर्थिक संकट-
माता लक्ष्मी की पूजा करना हर व्यक्ति के लिए काफी जरूरी है। बगैर उनकी पूजा किए धन की प्राप्ति करना काफी कठिन है। इसलिए आप विधिपूर्वक उनकी पूजा करें, जिससे आपके जीवन में समृद्धि का द्वार खुल जाएगा। याद रखें कि जब भी माता लक्ष्मी की आप पूजा करें सफेद या फिर गुलाबी वस्त्र धारण कर के ही करें। इसके अलावा श्री सूक्त का पाठ करें और 11 दीपक जलाएं। इस उपाय को करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
घर की कन्याओं का पूजन करें-
कहते हैं कि छोटी-छोटी कन्याएं स्वयं मां लक्ष्मी का ही रूप होती हैं। अगर आप उनका पूजन करते हैं और उन्हें प्रसन्न रखते हैं तो आपके घर में धन और सौभाग्य की कभी भी कमी नहीं आएगी और आपका जीवन मंगलमय ही बीतेगा। याद रखें कि जब भी कन्याओं को भोजन कराएं, उसके साथ सफेद या गुलाबी वस्त्र, मिठाई और दक्षिणा भेंट करें। उनका आशीर्वाद लें और "जय माँ लक्ष्मी" का उच्चारण करें।
चांदी का सिक्का है उपयोगी-
अगर आप लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो धन में स्थिरता लाने के लिए शुक्रवार को यह उपाय जरूर करें। मां लक्ष्मी या श्री यंत्र अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। इसे लाल या सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी या पर्स में रखें। हर शुक्रवार इसे धूप-दीप दिखाकर पूजन करें।
चांदी का सिक्का है उपयोगी-
अगर आप लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो धन में स्थिरता लाने के लिए शुक्रवार को यह उपाय जरूर करें। मां लक्ष्मी या श्री यंत्र अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। इसे लाल या सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी या पर्स में रखें। हर शुक्रवार इसे धूप-दीप दिखाकर पूजन करें।
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रावण का रहस्यमयी अंत, लंका में छुपा है दशानन की चिता का सच

रामायण काल ​​और श्री राम के बारे में जानने की हर किसी को दिलचस्पी होती है। दशहरा और दिवाली ऐसे त्योहार हैं जब भगवान राम की चर्चा होती है, लेकिन उनके साथ-साथ रामायण से जुड़े हर व्यक्ति की भी चर्चा होती है। ऐसे में श्रीलंका के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि करीब 50 ऐसी जगहों की पहचान की गई है, जिनका संबंध रामायण काल ​​से है। शोध में यह भी दावा किया गया है कि रावण का शव आज भी एक गुफा में सुरक्षित है। यहां कोई इंसान नहीं आता। आइए जानते हैं कहां है ये गुफा और यहां ऐसा क्या है कि यहां कोई नहीं आता...
दावे के मुताबिक, श्रीलंका के रग्गला के जंगलों में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर एक गुफा में रावण का शव रखा गया है। यहां कोई इंसान नहीं आता, क्योंकि यहां खतरनाक जानवरों का खतरा रहता है। श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय रामायण शोध केंद्र ने रामायण से जुड़ी 50 जगहों की खोज की है। इन जगहों का जिक्र रामायण में भी है। इन्हीं में से एक है श्रीलंका का रग्गला जंगल, जिसके बीच में एक विशाल पर्वत है, जहां दावा किया जाता है कि रावण का शव रखा हुआ है। जिस पहाड़ी गुफा में रावण का शव रखे होने का दावा किया जाता है, वह रग्गला के जंगलों में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। रावण का शव 17 फीट लंबे ताबूत में रखा गया है।
कहा जाता है कि रावण के शव को ममी के रूप में रखा गया है। उसके शरीर पर ऐसा लेप लगाया गया है कि रावण की मौत के 10 हजार साल बाद भी वह खराब नहीं हुआ। यह भी कहा जाता है कि इस ताबूत के नीचे रावण का अमूल्य खजाना है। इस खजाने की रक्षा एक भयंकर नाग और कई खूंखार जानवर करते हैं। लोगों का मानना ​​है कि रावण की मौत के बाद भगवान श्रीराम ने शव विभीषण को सौंप दिया था, लेकिन जल्दबाजी में वे उसका अंतिम संस्कार करना भूल गए। तब से रावण का शव वैसे ही पड़ा हुआ है। यह भी दावा किया जाता है कि नागकुल के लोग रावण के शव को अपने साथ ले गए क्योंकि उनका मानना ​​था कि रावण की मौत अस्थायी है और वह दोबारा जीवित हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
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शनिवार को करें ये उपाय, खुल जाएंगे बंद किस्मत के ताले

शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित है. शनिवार को उनकी पूजा करने के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है. इस दिन शनि महाराज की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं. शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है. कहा जाता है कि वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. यही वजह है कि शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है. जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, उन पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है. वहीं जो व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त रहता है, उन पर शनिदेव का प्रकोप रहता है. वहीं अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो शनिवार के दिन कुछ उपाय जरूर करें. आइए जानते हैं उन उपायों के बारे में|
पीपल के पेड़ पूजा-
शनिवार के दिन सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ की पूजा करें, जल अर्पित करें और तेल का दीपक जलाएं। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और कृपा हमेशा मिलती है।
शनिवार के दिन करें इन चीजों का दान-
शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनिवार के दिन काला तिल, काला छाता, सरसों का तेल, काली उड़द और जूते-चप्पल का दान करें। इससे जीवन की समस्याएं कम होती हैं।
लोहे का दीपक जलाएं-
कहा जाता है कि लोहा धातु में शनि देव का वास होता है। ऐसे में शनिवार और मंगलवार के दिन लोहे के दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाएं। ऐसा करने से व्यक्ति का दुर्घटना से बचाव होता है।
दीपक में डालें एक लौंग-
शनिवार के दिन दीपक जलाते समय उसमें एक लौंग डाल दें। ऐसा करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। ये उपाय आपकी आर्थिक लाभ कराता है। अगर ये उपाय निरंतर करते हैं, तो धन की कभी कमी नहीं हो पाएगी।
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देवशयनी एकादशी : विष्णु जी करेंगे विश्राम, शिव संभालेंगे सृष्टि का कार्यभार!

नई दिल्ली। देवशयनी एकादशी का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है। इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, और पूरी सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इसी वजह से चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस अवधि में तपस्या, योग, मंत्र जाप और धार्मिक अनुष्ठान करने से दोगुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं, जिसके बाद सृष्टि का संचालन महादेव संभालते हैं। अब भगवान विष्णु देव उठनी एकादशी तक विश्राम करेंगे। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह समेत सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं।
दृक पंचांग के मुताबिक एकादशी की शुरुआत 05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट से पर होगी। वहीं, इसकी समाप्ति 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 14 मिनट पर होगी। ऐसे में इस साल 06 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा और इसका पारण अगले दिन किया जाएगा।
व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित करें, और अब भगवान को धूप, दीप, अक्षत और पीले फूल चढ़ाएं, व्रत कथा सुनें, और भगवान विष्णु की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें। इसके बाद दिनभर निराहार रहें और भगवान का ध्यान करें। मंत्र जप और ग्रंथों का पाठ करें। दान-पुण्य करें। गायों की देखभाल करें। गौशाला में धन का दान करें।
जो लोग व्रत नहीं कर पा रहे हैं, वे विष्णु जी की पूजा करें, दान-पुण्य करें, मंत्र जप और ग्रंथों का पाठ करें। बीमार, गर्भवती और बच्चों के लिए व्रत करना जरूरी नहीं होता है; ये लोग पूजा-पाठ करके भी एकादशी व्रत के समान पुण्य कमा सकते हैं।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि (शाम के 6 बजकर 58 मिनट तक) 5 जुलाई को पड़ रही है। दृक पंचांगानुसार, 5 जुलाई को दशमी तिथि शाम के 6 बजकर 58 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा और राहूकाल सुबह 8 बजकर 57 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
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गुप्त नवरात्रि और मासिक दुर्गाष्टमी आज, करें 10 महाविद्याओं को प्रसन्न

मासिक दुर्गा अष्टमी और गुप्त नवरात्रि के इतने खास दिन पर मां के 10 महाविद्याओं को प्रसन्न करने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. भक्त इस दिन मां की 10 महाविद्याओं को आसान से तरीकों प्रसन्न कर सकते हैं|
आषाढ़ के गुप्त नवरात्रि मां दुर्गा के 10 महाविद्याओं की पूजा अर्चना के लिए खास बताए जाते हैं. इन दिनों तंत्र साधनाओं के साथ ही मां की पांरपरिक साधना का भी विधान है. गृहस्थ भी इस दिन अपनी पूजा और भक्ति से मां को प्रसन्न कर सकते हैं. ऐसे में हम आपको मां के 10 रूपों को एक साथ प्रसन्न करने का एक आसान सा तरीका बता रहे हैं. वैसे तो इस दिन आप दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं. मां दुर्गा के सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं और मां की कृपा प्राप्त कर सकते हैं|
गुप्त नवरात्र की अष्टमी होती है खास-
गुप्त नवरात्रि में अष्टमी तिथि को खास माना जाता है ऐसे में मासिक दुर्गा अष्टमी भी इसी दिन पड़ रही है तो यह संयोग और भी विशिष्ट हो जाता है. इस दिन आप 10 महाविद्याओं की पूजा के लिए 10 महाविद्या स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. जिससे आप मां के 10 रूपों की कृपा और आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं. इस पाठ को करने के लिए आप स्नान ध्यान करके एक साफ आसन पर बैठ जाएं और इस स्त्रोत का पाठ करें|
दस महाविद्या स्तोत्र-
दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।
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अमरनाथ गुफा में कबूतरों के जोड़े का क्या है रहस्य...जानिए

हिंदू धर्म में अमरनाथ गुफा मंदिर को एक पवित्र तीर्थ माना गया है, जिसके दर्शन से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है. साल 2025 में 3 जुलाई, गुरुवार से अमरनाथ यात्रा की शुरूआत हो रही है. इस दिन पहला जत्था रवाना हो चुका है. अमरनाथ गुफा मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है मान्यता है इसी जगह पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था|
कब से कब तक होती है अमरनाथ यात्रा-
हर साल भोलेनाथ बाबा की पवित्र गुफा में अपने आप प्राकृतिक शिवलिंग बनता है. इस हिम यानि बर्फ से बने शिवलिंग को बाबा बर्फानी के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष जुलाई के पहले सप्ताह या आषाढ़ पूर्णिमा से इस यात्रा का आगाज होता है और सावन के पूरे महीने यह यात्रा चलती है और रक्षाबंधन के दिन समाप्त होती है. मान्यता है श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि के दिन शिवलिंग अपने पूरे आकार में आ जाता है|
कबूतर के जोड़े का रहस्य-
बाबा बर्फानी की गुफा में कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है. मान्यता है जब भोलेनाथ इसी गुफा में माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुना रहे थे तो इस जोड़े ने भी अमरकथा सुन ली और अमर हुए. इन्हें अमर पक्षी माना जाता है. मान्यता है जिन श्रद्धालुओं को यह जोड़ा दिखाई देता है उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन के सामान माना गया है. जिन लोगों को इनके दर्शन हो जाते हैं भोलेनाथ उन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं|
यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन भी किया था. इस कथा को अमरकथा नाम से जाना जाता है|
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देवशयनी एकादशी से शुरू होगा चातुर्मास, इस विधि से करें पूजा

6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो जाएगा, इसका समापन 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर होगा। चातुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक महीने शामिल होते हैं। देवशयनी एकादशी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चंद्र चक्र का बढ़ता चरण होता है और देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष के साथ समाप्त होती है।
देवशयनी एकादशी पूजा विधि-
देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। देवशयनी एकादशी व्रत की शुरूआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करना चाहिए। तुलसी के भोग के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु के स्रोत का पाठ भी करें। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी से ही भगवान विष्णु का निद्राकाल शुरू हो जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने चित्त, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
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गुरुवार को करें ये उपाय, बनेंगे बिगड़े काम, बढ़ेगी धन-संपत्ति

गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन श्रीहरि की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लोगों के बिगड़े काम बन जाते हैं। अगर कोई कामना पूरी नहीं हो रही है तो गुरुवार के दिन कुछ खास उपाय कर लें। इससे मन की सभी इच्छा पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। गुरुवार के दिन इन विशेष उपायों को करने से सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है। तो आइए आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं कि गुरुवार के दिन कौन सी समस्या के लिए कौन से उपाय करने चाहिए।
- अगर आप अपने धन-धान्य के साधनों में बढ़ोतरी करना चाहते हैं तो इसके लिए आज आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर शिव मन्दिर जाना चाहिए और भगवान की विधि-पूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। फिर रोली-चावल का तिलक लगाएं। इसके बाद शक्कर से भगवान का मुंह मीठा करें और साथ ही फलों का भोग लगाएं। फिर धूप-दीप आदि से भगवान की पूजा करें और आखिर में हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
- अगर पिता के साथ किसी बात को लेकर आपकी अनबन चल रही है तो उस अनबन को दूर करने के लिए आज आपको चींटियों के बिल में आटा डालना चाहिए। अगर भूरी या लाल चींटियों का बिल हो तो और भी अच्छा है।
- अगर आप अपने दाम्पत्य जीवन को खुशहाल देखना चाहते हैं तो आज 11 छोटी बच्चियों को दूध का पैकेट भेंट करें । अगर आप 11 बच्चियों को दूध का पैकेट भेंट न कर पाएं तो पांच को करें या फिर दो को ही कर दें लेकिन करें जरूर। आप चाहें तो दूध चावल की खीर बनाकर भी उन्हें खिला सकते हैं।
- अगर आप अपनी किसी प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री को लेकर कुछ समय से परेशान हैं आपको कोई अच्छा ग्राहक नहीं मिल पा रहा है तो आज के दिन आपको स्नान आदि के बाद शिव मन्दिर जाना चाहिए और भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। साथ ही शिवलिंग पर गंगाजल मिला हुआ शुद्ध जल अर्पित करना चाहिए।
- अगर आप तरक्की की नई बुलंदियों को छूना चाहते हैं अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं तो आज आपको अपने हाथों से पंचामृत तैयार करना चाहिए। पंचामृत तैयार करने के लिए दूध दही शहद गंगाजल और थोड़ी-सी शक्कर लेनी चाहिए और उन्हें आपस में मिलाकर पंचामृत तैयार करना चाहिए। अब इस पंचामृत से भगवान शंकर को भोग लगाइए और अपनी तरक्की के लिए प्रार्थना करिए।
- अगर शादी के रिश्ते को लेकर आपके मन में कुछ ऊहा-पोह बनी हुई है या कुछ उलझन बनी हुई है तो उससे बाहर निकलने के लिए आज आपको दही में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए। साथ ही अपनी उलझनों को दूर करने के लिए भगवान से प्रार्थना करें।
- अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं और एक कामयाब इंसान बनना चाहते हैं तो उसके लिए आज आपको कृतिका नक्षत्र से संबंधित गुलर या गुलर के पेड़ की फोटो को डाउनलोड करके उसके दर्शन करना चाहिए और गुलर के पेड़ की तस्वीर को नमस्कार करना चाहिए। साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि कृत्तिका नक्षत्र के दौरान आप गुलर के पेड़ को किसी भी तरह से
- अगर आप सामाजिक कार्यों में अपनी सफलता सुनिश्चित करना चाहते हैं तो आज के दिन अपने घर के आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व दिशा के कोने में घी का एक दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर अग्नि देव को प्रणाम करें। साथ ही सामाजिक कार्यों में अपनी सफलता के लिए प्रार्थना करें।
- अगर आपको किसी के सामने अपनी प्रेजेन्टेशन देनी है और आप चाहते हैं कि आपको वहां किसी प्रकार की परेशानी न आये और आप अपनी बात को ठीक ढंग से रख पाएं तो आज प्रेजेन्टेशन के लिए जाते समय अपनी जेब में या अपने पर्स में एक लाल रंग का फूल रखकर ले जाएं।
- अगर आप अपने कॉन्फिडेंस से सबका दिल जीत लेना चाहते हैं तो आज के दिन आपको चंद्रमा के इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
- अगर आप किसी से दोस्ती करना चाहते हैं या अपने दोस्ती के रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं तो आज के दिन आपको चन्दन का तिलक अपने मस्तक पर लगाना चाहिए और अगर संभव हो तो उस व्यक्ति को भी तिलक लगाना चाहिए जिससे आप दोस्ती करना चाहते हैं या अपने दोस्ती के रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं।
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विशेष संयोग, जुलाई का पहला प्रदोष व्रत चातुर्मास में पड़ेगा

  • नोट करें शुभ मुहूर्त और विधि
सावन के पावन महीने की शुरुआत के साथ ही शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखने वाला प्रदोष व्रत आ रहा है. इस बार जुलाई का पहला प्रदोष व्रत एक ऐसे शुभ संयोग में पड़ रहा है जब चातुर्मास भी चल रहा होगा. यह स्थिति व्रत के महत्व को और बढ़ा देती है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान भगवान शिव का वास कैलाश पर्वत पर माना जाता है और इस दौरान की गई पूजा-अर्चना का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है. आइए जानते हैं जुलाई के पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि|
कब है जुलाई का पहला प्रदोष व्रत-
जुलाई का पहला प्रदोष व्रत 8 जुलाई को पड़ेगा. इस दिन मंगलवार है, इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा.जिसका धार्मिक ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है|
शुभ मुहूर्त-
पूजा का शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल) 08 जुलाई 2025, सोमवार को शाम 07 बजकर 23 मिनट से शाम 09 बजकर 24 मिनट तक रहेगा|
चातुर्मास में प्रदोष व्रत का महत्व-
इस बार का यह प्रदोष व्रत इसलिए भी खास है क्योंकि यह चातुर्मास के दौरान पड़ रहा है. चातुर्मास वह समय होता है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं. ऐसे में चातुर्मास में पड़ने वाले सभी व्रत और त्योहारों का महत्व बढ़ जाता है, खासकर शिव आराधना से जुड़े व्रतों का. सोम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से भक्तों को सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है. संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है|
प्रदोष व्रत की पूजा विधि-
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें. व्रत का संकल्प लें और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करें. भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें. पूजा सामग्री में बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, सफेद चंदन, अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण), फल, फूल और नैवेद्य (मिठाई) शामिल करें. शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा शुरू करें. शिवलिंग पर गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें|
भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, चंदन, अक्षत, फूल अर्पित करें. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी अत्यंत लाभकारी होता है. प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें.सबसे आखिर में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें. भगवान को फल और मिठाई का भोग लगाएं. पूजा के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों में वितरित करें. अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें|
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सावन में इन राशियों के लिए शुभ, आर्थिक तंगी से मिलेगी मुक्ति

भोलेनाथ का प्रिय माह 11 जुलाई से शुरू होने वाला है. इस माह में शिव जी की आरधना और भक्ति से शुभ फल की प्राप्ति होती है. लोग अलग-अलग तरह से इस माह में भोलेनाथ की भक्ति करते हैं और उनका आशीर्वाद पाते हैं. सावन में सोमवार के व्रत का विशेष महत्व है, साथ ही शिवलिंग जल चढ़ाना, कांवड़ यात्रा, श्रावण माह के व्रत त्योहार को महत्व दिया जाता है. सावन का पवित्र माह कई राशियों के लिए शुभ रहेगा. यहां पढ़ें श्रावण माह की लकी राशियां-
मेष राशि-
मेष राशि वालों के लिए सावन का महीना शुभ रहेगा इस माह में आपके बिगड़े काम बन सकते हैं. तरक्की मिलेगी की संभावना है. जॉब में लंबे समय से चल रही मेहनत आपको परिणाम दिला सकती है|
कर्क राशि-
कर्क राशि वालों के लिए सावन का महीना अति शुभ रहेगा. इस माह में आपके लिए नए रास्ते खुल सकते हैं. आपकी प्लैनिंग सफल होगी. आपके सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होगी. आप नए फैसले लेंगे और नई राह पर आगे बढ़ सकते हैं|
सिंह राशि-
सावन का महीना सिंह राशि वालों के लिए मान-सम्मान लेकर आएगा. इस माह में समाज में आपका प्रभाव बढ़ेगा. इस महीने आपकों नई योजनाओं में लाभ होगा. साथ ही आपकी हेल्थ में भी सुधार संभव है. लव लाइफ में लाइफ पार्टनर से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ेगा|
मकर राशि-
मकर राशि वालों को सावन के महीने में महादेव की कृपा प्राप्त होगी. इस माह में बिजनेस में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे और शिव जी के साथ-साथ शनि देव का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा. इस माह दान-पुण्य के काम में अपने आप को लगाएं रखें, आपका भाग्योदय होगा|
कुंभ राशि-
कुंभ राशि वालों पर भी शनि देव के साथ-साथ भोलेनाथ की कृपा रहेगा. किसी से ईर्ष्या ना करें, अपनी वाणी को मधुर रखें, कटू शब्द ना बोले. आर्थिक स्थिति में पहले से सुधार होगा. जीवन में मुश्किलों का अंत होगा|
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इस गुरुवार करें ये खास उपाय, चमक उठेगा आपका भाग्य!

गुरुवार को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है; इस दिन विधि-विधान से पूजा-पाठ और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में बुद्धि, वाणी और व्यापार में वृद्धि होती है। अग्नि पुराण के अनुसार, देवगुरु बृहस्पति ने काशी में शिवलिंग की स्थापना और तपस्या का उल्लेख किया है, जिससे गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
अग्नि पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार गुरुवार के दिन व्रत रखने से धन, समृद्धि, संतान और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस व्रत को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से शुरू कर सकते हैं। व्रत 16 गुरुवार तक करना चाहिए। व्रत रखने के लिए इस दिन पीले वस्त्र धारण करने और पीले फल और पीले फूलों का दान करने से भी लाभ होता है। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को हल्दी चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, इस दिन विद्या की पूजा करने से भी ज्ञान में वृद्धि होती है। गुरुवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न और धन का दान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि केले के पत्ते में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए गुरुवार के दिन केले के पत्ते की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत शुरू करने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें। फिर केले के वृक्ष की जड़ में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। दीपक जलाएं और कथा सुनें और भगवान बृहस्पति भगवान की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें। इस दिन पीले रंग के खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि (दोपहर के 2 बजकर 6 मिनट तक) 3 जुलाई को पड़ रही है। इसी दिन सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे, वहीं चंद्रमा कन्या राशि से तुला में प्रवेश करेंगे। दृक पंचांगानुसार, 3 जुलाई को अष्टमी तिथि सुबह 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
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सावन में इन जगहों पर जलाएं दीपक, भोलेनाथ भर देंगे आपकी झोली

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान की गई पूजा-अर्चना, व्रत और साधना विशेष फलदायी मानी जाती है. इस बार 11 जुलाई 2025 से सावन की शुरुआत हो रही है और यह महीना भक्तों के लिए विशेष ऊर्जा, आध्यात्मिकता और पुण्य लेकर आता है. माना जाता है कि सावन में सच्चे मन से की गई आराधना से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.इस पावन समय में दीपक जलाना न केवल वातावरण को शुद्ध करता है, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और भगवान शिव की कृपा को भी आकर्षित करता है. जानते हैं कि सावन में घर में किन खास जगहों पर दीपक जलाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं|
सावन में इन जगहों पर दीपक जलाना शुभ माना जाता है!
मेन डोर के पास:
सावन के प्रत्येक सोमवार को या पूरे सावन भर आप अपने घर के मुख्य द्वार पर घी का दीपक जला सकते हैं. मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं करती और सकारात्मकता का संचार होता है. मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद घर पर बना रहता है|
बेलपत्र के पेड़ के नीचे:
बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. यदि आपके घर में या आसपास बेलपत्र का पेड़ है, तो सावन में प्रतिदिन या कम से कम प्रत्येक सोमवार को बेलपत्र के पेड़ के नीचे एक दीपक अवश्य जलाएं. इससे भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
शिवलिंग के पास:
अगर आपके घर में शिवलिंग स्थापित है, तो सावन में नियमित रूप से शिवलिंग के पास एक दीपक जलाएं. यह भगवान शिव की पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है. इससे आपकी सभी बाधाएं दूर होती हैं और घर में शांति बनी रहती है|
तुलसी के पौधे के पास:
हिंदू धर्म में तुलसी को पूजनीय माना गया है. हालांकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है, लेकिन सावन में भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है. माना जाता है कि इससे भगवान शिव और माता पार्वती दोनों प्रसन्न होते हैं|
रसोई घर में:
सावन में आप अपने रसोई घर में भी एक दीपक जला सकते हैं. रसोई को अन्नपूर्णा का स्थान माना जाता है. यहां दीपक जलाने से अन्न और धन की कभी कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है. यह घर की सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है|
पीपल के पेड़ के नीचे:
पीपल के पेड़ को धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र माना जाता है. यदि आपके घर के पास पीपल का पेड़ है, तो सावन में पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना शुभ फलदायी होता है. ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ में देवी-देवताओं का वास होता है और यहां दीपक जलाने से सभी कष्ट दूर होते हैं|
दीपक जलाते समय क्या करें:
दीपक जलाते समय अपनी मनोकामना भगवान शिव से अवश्य कहें. दीपक में शुद्ध घी या तिल के तेल का उपयोग करें. साथ ही पूजा के समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप याद से करें|
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