धर्म समाज

बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व आज, करें ये काम

  • भगवान की होगी कृपा
सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन बैकुंठ चतुर्दशी को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मनाई जाती है। आपको बता दें कि बैकुंठ चतुर्दशी का त्योहार भगवान शिव और श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है इस साल बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व आज यानी 14 नवंबर दिन गुरुवार को मनाया जा रहा है
इस दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना करने का विधान होता है मान्यता है कि इनकी पूजा करने से स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है, और सारे काम बनते चले जाते हैं साथ ही जीवन के दुख और कष्टों से भी छुटकारा मिलता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बैकुंठ चतुर्दशी के दिन किए जाने वाले कुछ कार्य बता रहे हैं जिनसे आप भगवान शिव और श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं तो आइए जानते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि और शुभ समय-
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर यह पर्व मनाया जाता है इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 14 नवंबर को सुबह 9 बजकर 43 मिनट से आरंभ हो चुका है और यह अगले दिन यानी की 15 नवंबर को शाम 6 बजकर 19 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ऐसे में इस साल 14 नवंबर को ही बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा।
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। जिसमें सर्वार्थ सिद्धि योग की शुरुआत सुबह 6 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट पर हो रही है वही रवि योग सुबह 6 बजकर 35 मिनट से लेकर अगले दिन यानी की 15 नवंबर तक रहेगी। तीसरा सिद्धि योग सुबह 11 बजकर 30 मिनट से लेकर अगले दिन तक रहेगा।
बैकुंठ चतुर्दशी पर करें ये काम-
आपको बता दें कि आज बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें इसके बाद भगवान शिव और विष्णु जी की विधिवत पूजा करें माना जाता है कि आज के दिन शिव और विष्णु की पूजा से अत्यंत पुण्य प्राप्त होता है और भाग्य भी चमक जाता है। इस दिन भगवत गीत का पाठ करना लाभकारी माना जाता है इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है और पाप कर्मों का अंत हो जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सूक्त का पाठ भी अत्यंत लाभकारी और पुण्यदायी माना गया है इससे कष्टों में कमी आती है। आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उनके मंत्र और स्तोत्र का पाठ करने से धन लाभ की प्राप्ति होती है और दुखों का निवारण हो जाात है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा कमल के पुष्प से जरूर करें ऐसा करने से श्री हरि प्रसन्न होते हैं और पुण्य प्रदान करते हैं।
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15 नवंबर को भरणी नक्षत्र के संयोग में कार्तिक पूर्णिमा का व्रत

कार्तिक पूर्णिमा व्रत : कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा 15 नवंबर को भरणी नक्षत्र के साथ मनाई जाएगी। भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन कशवा में देवताओं की दिवाली के रूप में देव दिवाली महोत्सव मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन धार्मिक समारोह, धन्य नदियों में स्नान, चर्च सेवाएं और दान निर्धारित हैं। क्षमा के माध्यम से, विश्वासियों को पाप से मुक्त किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु प्रचुर आशीर्वाद देते हैं। इस दिन गंगा में स्नान करने से पाप दूर होते हैं और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। भगवान नारायण ने अपना पहला अवतार माशा अवतार के रूप में कार्तिक पूर्णिमा के दिन लिया था। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के समीप अखंड दीपदान करने से दिव्य वैभव की प्राप्ति होती है। इसके अलावा लोगों को धन, यश और मान-सम्मान का भी लाभ होता है। गंगा स्नान के बाद दीप दान करने से भक्त को 10 यज्ञों के बराबर फल मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा पर श्रीहरि की विशेष कृपा बरसती है। कार्तिक मास भगवान कार्तिकेय से मिलने, उनकी सिद्धियाँ प्राप्त करने और शत्रु को परास्त करने का अनुष्ठान है। पूज्य आचार्य हेमिंट पांडे ने कहा कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ग़ुस्ल, प्रार्थना, स्मरण, तपस्या, पूजा, कीर्तन और दान कार्य करके आत्मा को पाप से मुक्त करते हैं और आत्मा को शुद्ध करते हैं।
गंगा स्नान से पूरे वर्ष शुभ फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों में अतिपुष्करिणी कहा गया है। स्कंद पुराण के अनुसार अगर आप कार्तिक माह में प्रतिदिन सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं तो इसका पूरा फल आपको इन तीन दिनों में मिलेगा। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व बताया गया है। यदि आप कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान करते हैं, तो आपको पूरे वर्ष गंगा स्नान का फल प्राप्त होगा।
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कार्तिक पूर्णिमा पर अपनाएं ये 5 उपाय

कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर 2024, शुक्रवार को होगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शंकर ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। देवताओं ने उनके सौभाग्य के लिए दीपक जलाये। तभी से देव दिवाली मनाने की परंपरा चली आ रही है. कहा जाता है कि देव दिवाली पर सभी देवता काशी आते हैं और वाराणसी का शानदार उत्सव देखने लायक होता है। कहा जाता है कि मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए कार्तिक पूर्णिमा का दिन बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन अगर आप कुछ कार्य करेंगे तो आपको मनचाहा फल मिलेगा।
कार्तिक पूर्णिमा पर उपाय-
1. कार्तिक पूर्णिमा के दिन सतिनारायण कथा का पाठ करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा बनी रहती है।
2. पूर्णिमा तिथि के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा दूध चढ़ाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे आपके जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली आती है।
3. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी को पीली गाय की बलि देनी चाहिए और फिर उसे धन रखने के स्थान पर रखना चाहिए। माना जा रहा है कि इस काम से हमें आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
4. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान के बाद किसी शिव मंदिर में महामृत्युंजय संपुट मंत्र का जाप करने से रुके हुए काम पूरे होते हैं, शत्रुओं की पराजय होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
5. कार्तिक पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और भगवान शालिग्राम की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह इच्छाओं को दूर करता है और आशीर्वाद को पुनर्जीवित करता है।
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उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर और मोक्षदा एकादशी 20 दिसंबर को मनाई जाएगी

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी व्रत महीने में दो बार आता है। एकादशी व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में रखा जाता है। कार्तिक माह के बाद मार्गशीर्ष या अगहन माह शुरू होता है। हहन शिरशिया के महीने में हर दूसरे महीने की तरह ही दो दिनों तक एकादशी मनाई जाती है। जानिए मार्गशीर्ष माह में उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी कब है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उत्पन्ना-एकादशी व्रत मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। एकादशी तिथि 26 नवंबर को सुबह 1:01 बजे शुरू होती है और अगले दिन 27 नवंबर को सुबह 3:47 बजे समाप्त होती है, उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी।
6 नवंबर 2013 को एकादशी व्रत निरस्त रहेगा। उपना एकादशी व्रत का पारण समय 27 नवंबर को दोपहर 1:12 बजे से 3:18 बजे तक रहेगा।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार मोक्षदा-एकादशी व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। एकादशी तिथि 11 दिसंबर को दोपहर 3:42 बजे शुरू होगी और 12 दिसंबर को सुबह 1:09 बजे समाप्त होगी। मोक्षदा एकादशी व्रत 20 दिसंबर को होगा।
21 दिसंबर 2013 को मक्षद एकदशी व्रत निरस्त। मक्षद एकदशी का व्रत काल 21 दिसंबर को सुबह 7:05 बजे से रहेगा। प्रातः 9:09 बजे तक
एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति सुबह-सुबह एकादशी का व्रत करता है, तो उसे सभी सुखों का आनंद लेने के बाद अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की कृपा से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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प्रदोष व्रत के दिन करें ये उपाय, आर्थिक समस्याओं से मिलेगा छुटकारा

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है इस दिन भक्त शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं
माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है। नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत 13 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण ही इसे बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन महादेव की पूजा अर्चना के दौरान अगर भक्ति भाव से शिव रुद्राष्टकम् का पाठ किया जाए तो महादेव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और आर्थिक समस्याओं को दूर कर देते हैं।
शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र-
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।
करालं महाकालकालं कृपालं ।
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।
बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-
नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत यानी बुध प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 13 नवंबर को शाम 5 बजकर 28 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 7 मिनट तक है। ऐसे में बुध प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में पूजा करने के लिए साधक को 2 घंटे 38 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है।
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देवउठनी एकादशी के साथ शुरू हुआ शादियों का सीजन, जानिए...शुभ मुहूर्त

देवउठनी एकादशी से देशभर में शादियों का सीजन शुरू हाे गया हैं। दिल्ली में लगभग 50,000 शादियां हुई हैं, जाे अगले 16 दिसंबर तक शादियाें का ये सीजन रहेंगा। देवउठनी एकादशी से शादियाें का पहला सीजन शुरू हाे गया हैं, जाे अगले 18 दिनाें तक चलेगा। पूरे देश में लगभग 48 लाख शादियां होने का अनुमान है, जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 4.5 लाख शादियों का है, जो व्यापारिक गतिविधियों में जबरदस्त वृद्धि लाएगा। अगले एक महीने से अधिक समय तक दिल्ली तथा पूरे देश में गाजे बाजे की आवाज सुनाई देगी।
देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह किया जाता हैं। तुलसी का पौधा सीधा भगवान विष्णु से संबंधित होता है और देवउठनी एकादशी पर देशभर में भगवान श्री विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह तुलसी माता से करवाया जाता है जिसे बहुत शुभ माना गया है। पुराणों के अनुसार देवउठनी एकादशी को भगवान श्री विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं। देव के उठने के साथ ही शुभ कार्य शुरु हो जाते है।
नवंबर और दिसंबर में शुभ मुहूर्त-
नवंबर- 12, 13, 15, 16, 17, 18, 22, 25, 26, 27, 28
दिसंबर- 2, 3, 4, 6, 7, 10, 11, 14
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कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को, शिप्रा नदी में सुबह होगा पर्व स्नान, शाम को दीपदान

उज्जैन। कार्तिक पूर्णिमा पर 15 नवंबर को मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में सुबह पर्व स्नान तथा शाम को दीपदान होगा। दीपों की जगमगाहट से शिप्रा का आंचल आकाश गंगा की तरह दमकेगा। इस दिन से शिप्रा तट पर कार्तिक मेले का शुभारंभ भी होगा।
ज्योतिर्विद पं. हरिहर पंड्या ने बताया कार्तिक मास में तीर्थ स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। जो श्रद्धालु इस एक माह में तीर्थ स्नान व दीपदान करने का धर्मलाभ नहीं ले पाए हैं, वे कार्तिक पूर्णिमा पर लाभ ले सकते हैं। वैसे अभी तक बहुत ज्यादा ठंड नहीं पड़ने की वजह से घाटों पर ज्यादा भीड़ पहुंचने की उम्मीद की जा रही है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने से पितरों का मार्ग आलोकित होता है और वे प्रसन्न होकर वंशजों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन शिप्रा स्नान के बाद पितृकर्म करने से भी लाभ होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर देवालयों में दीपदान का विशेष महत्व है।
गणपतेश्वर महादेव को लगेगा महाभोग-
कार्तिक पूर्णिमा पर शिप्रा के रामघाट स्थित श्री गणपतेश्वर महादेव मंदिर में छप्पन पकवानों का महाभोग लगाया जाएगा। पुजारी पं. गौरव उपाध्याय ने बताया शाम को गोधूलि बेला में भगवान को छप्पन पकवानों का महाभोग लगाकर महाआरती की जाएगी। दीपपर्व पर मंदिर में दीपमालिका भी सजाई जाएगी।
इस्कॉन में दीपदान का समापन-
कार्तिक पूर्णिमा पर भरतपुरी स्थित इस्कॉन मंदिर में दीपदान का समापन होगा। राघव पंडित दास प्रभु ने बताया कार्तिक मास में प्रतिदिन शाम को भक्त भगवान राधा मदनमोहन को दीपदान करते हैं। मंदिर द्वारा भक्तों के लिए निशुल्क दीपदान की व्यवस्था की जा रही है। कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का समापन होगा। भक्तों को शाम 7.30 बजे महाप्रसादी का वितरण होगा।
कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव 15 को-
स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज की संस्था प्रभु प्रेमी संघ परिवार द्वारा कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव मनाया जाएगा। स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज के अनुयायियों द्वारा देवास रोड स्थित निजी गार्डन में 15 नवंबर को शाम 4 बजे कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव, दीपावली मिलन समारोह आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही भजन, छप्पन भोग, दीपदान एवं गरबे भी होंगे। यह जानकारी संस्था अध्यक्ष अजय पांडे और हेमा केसरिया ने दी है।
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बुध प्रदोष व्रत आज, शुभ मुहूर्त में करें महादेव की पूजा

  • मिलेगी विशेष कृपा
बुध प्रदोष व्रत : नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत 13 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है इस दिन भक्त शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण ही इसे बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है तो आज हम आपको पूजा का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है जो कि इस बार 13 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट से आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 14 नवंबर को सुबह 9 बजकर 43 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार इस बार नवंबर का पहला प्रदोष व्रत 13 नवंबर दिन बुधवार को किया जाएगा। बुधवार के दिन प्रदोष पड़ने के कारण ही इसे बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है।
बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-
नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत यानी बुध प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 13 नवंबर को शाम 5 बजकर 28 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 7 मिनट तक है। ऐसे में बुध प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में पूजा करने के लिए साधक को 2 घंटे 38 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है।
बुध प्रदोष व्रत पूजा विधि-
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ- सुथरे वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प ले लें। सबसे पहले मंदिर जाकर या फिर घर पर शिवलिंग की पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, गंगाजल, पंचामृत चढ़ाने के साथ बेलपत्र, धतूरा, आक का फूल, फल, गन्ना, आदि चढ़ाने के साथ भोग लगाएं और घी का दीपक जला लें। प्रदोष काल में शिव जी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी यानी वेदी में साफ वस्त्र बिछाकर शिव जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान को जल चढ़ाने के साथ फूल, माला, सफेद चंदन, अक्षत, बेलपत्र आदि चढ़ाने के साथ भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर शिव मंत्र, शिव चालीसा, प्रदोष व्रत कथा, मंत्र करके अंत में आरती कर लें। फिर भूल चूक के लिए माफी मांग लें। दिनभर व्रत रखने के बाद पारण के मुहूर्त पर व्रत खोल लें।
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भगवान शनि देव 15 नवम्बर से होंगे मार्गी

  • साढ़ेसाती और ढैया के जातकों को मिलेगी राहत
भगवान शनिदेव 15 नवंबर को मार्गी होने वाले हैं यानी वो सीधी चाल में चलेंगे। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि अभी शनि ग्रह वक्री चाल चल रहे थे, अब 15 नवम्बर से मार्गी होने जा रहे है।
शनि के मार्गी होने से कई राशियों पर असर होगा। खासकर शनि की साढ़ेसाती और ढैया से प्रभावित राशियां लाभ पाएंगी। इससे पहले शनि वक्री थे, वक्री मतलब विपरीत दिखा में चल रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि शनि विपरीत दिशा में चलकर नकारात्मक परिणाम देते हैं और इससे शनि की साढ़ेसाती वाली राशियां प्रभावित होती हैं। शनि अभी कुंभ राशि में चलायामन है। शनि देव 29 मार्च 2025 में मीन राशि में प्रवेश करेंगे।
कुंभ राशि पर साढ़ेसाती का दूसरा ढैया-
कुंभ राशि के लोगों के लिए तरक्की के योग बनेंगे। सेहत को लेकर आपकी परेशानी कम होगी और संपत्ति को लेकर अगर कोई विवाद चल रहा था, तो उसमें भी लाभ होगा। कुल मिलाकर आपके लिए अच्छे दिनों की शुरुआत होगी।
मीन राशि के अच्छेे परिवर्तन के संकेत-
मीन राशि वालों के लिए भी शनि का गोचर अच्छे परिवर्तन ला रहे है। आपके लिए कई प्रकार की चीजें सरल होती नजर आ रही हैं। कुछ नुकसान जो पहले हुआ था, उसमें भी आपको लाभ होगा।
मकर राशि पर साढ़ेसाती का आख़िरी दौर-
मकर राशि पर शनि की साढ़े साती का आखिरी दौर है और शनि की सीधी चाल मकर राशि के लिए फायदेमंद साबित होगी।संतान की तरफ से शुभ समाचार मिलेगा।सेहत अच्छी रहेगी, घर में सुख का माहौल रहेगा। व्यापार और नौकरी में भी फायदा होगा।कहीं पैसा अटका है तो वापस मिलने के योग बन रहे हैं।इनके लिए निवेश करना अच्छा रहेगा। दांपत्य जीवन में खुशहाली आएगी।
मीन राशि पर साढ़ेसाती का पहला दौर-
मीन राशि वाले लोगों की साढ़ेसाती का पहला ढैया भी शनि की सीधी चाल लाभ कराएगी। ये काफी समय से मुश्किलें झेल रहे हैं जिनका अंत होगा। व्यापार में लाभ होगा और नौकरी में इंक्रीमेंट के योग हैं। समाज में नए और प्रभावशाली लोगों से संबंध मजबूत होंगे।रुके हुए काम बनने लगेंगे,धन का लाभ होगा और निवेश के लिए भी समय अच्छा रहेगा।
इन राशियों को मिलेगा ढैय्या के अशुभ प्रभाव से छुटकारा-
ज्योतिष शास्त्र अनुसार शनि देव के कुंभ राशि में मार्गी होने से कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर ढैय्या का कष्टमय असर खत्म होने जा है। क्योंकि शनि देव कर्क राशि वालों की गोचर कुंडली में आठवें और वृश्चिक राशि के जातकों की गोचर कुंडली में चतुर्थ भाव में भ्रमण कर रहे हैं। इसलिए शनि देव के मार्गी होने से अब इन लोगों के अटके हुए काम बनने लगेंगे।
साथ ही जो जीवन में तनाव चल रहा था, उससे मुक्ति मिलेगी। वहीं भाग्य का साथ मिलेगा। साथ ही कारोबारियों को अच्छा धनलाभ होगा। साथ ही काम- कारोबार के संबंध से यात्राएं आप कर सकते हैं। जो शुभ रहेंगी। वहीं बेरोजगार लोगों को नौकरी मिल सकती है।
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देवउठनी एकादशी पर करें ये उपाय, बनेंगे शीघ्र विवाह के योग

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन एकादशी व्रत को बेहद ही खास माना जाता है जो कि साल में 24 बार पड़ता है जिसमें कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को बेहद ही महत्वपूर्ण बताया गया है जो कि देवउठनी एकादशी के नाम से जानी जाती है
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना का विधान होता है देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु पूरे चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं। प्रभु के जागने के बाद एक बार फिर से सभी शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है इस साल देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है तो आज हम आपको देवउठनी एकादशी के आसान उपाय बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
देवउठनी एकादशी पर करें ये उपाय-
अगर किसी लड़की या फिर लड़के के विवाह में कोई बाधा आ रही हे या फिर शीघ्र विवाह के योग नहीं बन रहे हैं तो ऐसे में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय केसर, पीले चंदन या हल्दी के तिलक का प्रयोग करें। फिर भगवान को पीले पुष्प अर्पित करें माना जाता है कि इस उपाय को करने से शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं और बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।
मनोकामना पूर्ति के लिए एकादशी के दिन पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है और एकादशी के दिन पीपल को जल अर्पित करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करना शुभ माना जाता है। इससे शादी में आने वाली सारी रुकावटें दूर हो जाती है और शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं।
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देवउठनी एकादशी आज, शुभ मुहूर्त में करें माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह

देवउठनी एकादशी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी तिथि 11 नवंबर की शाम 6 बजकर 46 मिनट पर ही शुरू हो गया है. वहीं इसका समापन 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार देवउठनी एकादशी या कार्तिक एकादशी का व्रत 12 नवंबर यानी आज रखा जायेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह का बहुत ही विशेष महत्व होता है. तुलसी विवाह दोपहर 12.30 बजे के बाद कभी भी कर सकते हैं. लेकिन प्रदोष काल में तुलसी विवाह करना अत्यंत लाभकारी होगा. प्रदोष काल में तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगा.वहीं 13 नवंबर को सुबह 6 बजकर 42 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक व्रत का पारण किया जायेगा.
हिंदू पंचांग के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं और योग निद्रा में चले जाते हैं. ऐसे में इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि या भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं. इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन सभी देवी-देवता मिलकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. भगवान विष्णु के जागते ही मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुरू हो जाते हैं. इस दिन भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह किया जाता है. ऐसा करने पर वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं खत्म होती है. साथ ही जिन लोगों के विवाह में रुकावटें आती हैं, वह भी दूर होती है. शास्त्रों के अनुसार, तुलसी-शालिग्राम का विवाह करने पर कन्यादान के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है.
सुबह से लेकर शाम तक इन मुहूर्त में करें देवउठनी एकादशी पूजा-
देवउठनी एकादशी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 42 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7 बजकर 52 मिनट से 13 नवंबर को सुबह 5 बजकर 40 मिनट तक रहेगा. इस सभी योगों में श्रीहरि का पूजन किया जा सकता है.
चर- सामान्य सुबह 09:23 से रात 10:44 तक
लाभ- उन्नति सुबह 10:44 एएम से दोपहर 12:05 तक
अमृत- सर्वोत्तम दोपहर 12:05 से दोपहर 01:26 तक
शुभ- उत्तम दोपहर 02:47 से शाम 04:08 तक
लाभ- उन्नति शाम 07:08 से रात 08:47 मिनट तक (काल रात्रि)
शुभ- उत्तम रात 10:26 से 12-13 नवंबर को 12:06 तक
देवउठनी एकादशी पूजा-विधि-
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है. इसके बाद प्रदोष काल में तुलसी विवाह किया जाता है. लेकिन आप तुलसी विवाह सुबह में भी कर सकते हैं. इस दिन तुलसी चबुतरा में गन्ने से मंडप बनाया जाता है. साथ ही मंडप के बीच में चौक बनाया जाता है. इस चौक पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें. इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ माता तुलसी और शालिग्राम देवता का का विवाह करें. देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनें. भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा करें और फिर भगवान के चरणों को स्पर्श करके उन्हें जगाया जाता है.
तुलसी मंत्र-
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै। नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।ॐ सुभद्राय नम: मातस्तुलसि गोविंद हृदयानंद कारिणी,नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।। महाप्रसादजननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।। ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।विष्णु प्रियायै धीमहि।तन्नो वृंदा प्रचोदयात्।।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा-
देवउठनी एकादशी की कथा, प्राचीन समय में एक नगर में एक राजा रहता था. उस राज्य के सभी लोद विधिवत एकादशी का व्रत रखते थे और पूजा करते थे. एकादशी के दिन किसी भी जानवर, पक्षी या पशु को अन्न नहीं दिया जाता था. उस नगर के राजा के दरबार में एक बाहरी व्यक्ति एक नौकरी पाने के लिए आया. तब राजा ने कहा कि काम तो मिलेगा लेकिन हर महीने दो दिन एकादशी व्रत पर अन्न नहीं मिलेगा. नौकरी मिलने की खुशी पर उस व्यक्ति ने राजा की शर्त मान ली. उसे अगले महीने एकादशी के व्रत पर अन्न नहीं दिया गया. व्रत में उसे केवल फलाहार दिया गया था लेकिव उसकी भूख नहीं मिटी जिससे वह व्यक्ति चिंतित हो गया. वह राजा के दरबार में पहुंचा और उन्हें बताया कि फल खाने से उसका पेट नहीं भरेगा. वह अन्न के बिना मर जाएगा. उसने राजा से अन्न के लिए प्रार्थना की.
इस पर राजा ने कहा कि आपको पहले ही बताया गया था कि एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा. लेकिन उस व्यक्ति ने फिर से अन्न पाने की विनती की. उसकी हालत को समझते हुए राजा ने उसे भोजन देने का आदेश दिया. उसे दाल, चावल और आटा दिया गया था. फिर उस व्यक्ति नदी के किनारे स्नान करके भोजन बनाया. जब भोजन बन गया, तो उसने भगवान विष्णु को आमंत्रण देते हुए कहा कि श्रीहरि भोजन तैयार है, आइए आप सबसे पहले इसे खाइए. आमंत्रण पाकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए. उसने अपने देवताओं के लिए भोजन निकाला और वे खाने लगे. फिर उस व्यक्ति ने भी भोजन किया और अपने काम पर चला गया. इसके बाद भगवान विष्णु भी वैकुंठ लौट आए. अगली एकादशी पर उसने राजा से दोगुना अन्न की मांग की. उसने बताया कि पिछली बार वह भूखा था क्योंकि उसके साथ भगवान ने भी भोजन किया था.
उस व्यक्ति की यह बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गया. राजा ने कहा कि हमें विश्वास नहीं है कि भगवान ने भी आपके साथ खाना खाया है. राजा की इस बात पर व्यक्ति ने कहा कि आप स्वयं जाकर देख सकते हैं कि क्या यह सच है. फिर एकादशी के दिन उसे दोगुना अन्न दिया गया था. वह अन्न लेकर नदी के किनारे गया. उस दिन राजा भी एक पेड़ के पीछे छिपकर सब कुछ देख रहा था. उस व्यक्ति ने पहले नदी में स्नान किया. फिर भोजन बनाया और भगवान विष्णु से कहा कि खाना तैयार है और आप इसे खा लें, लेकिन विष्णु जी नहीं आए. उस व्यक्ति ने श्रीहरि को कई बार बुलाया लेकिन वे नहीं आए. तब उसने कहा कि अगर आप नहीं आएंगे तो मैं नदी में कूदकर अपनी जान दे दूंगा. फिर भी श्रीहरि नहीं आए. तब वह नदी में छलांग लगाने के लिए आगे बढ़ा. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसे कूदने से बचा लिया. इसके बाद श्रीहरि विष्णु उसके साथ भोजन किया. फिर उसे अपने साथ वैकुंठ लेकर चले गए. यह देखकर राजा हैरान हो गया. अब राजा को समझ आ गया कि एकादशी व्रत को पवित्र मन और शुद्ध आचरण से करते हैं, तभी पूरा व्रत का लाभ मिलता है. उस दिन से राजा ने भी पवित्र मन से एकादशी व्रत किया और भगवान विष्णु पूजा की. जीवन के अंत में राजा के सभी पाप मिट गए और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई.
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अक्षरधाम में भगवान स्वामिनारायण की 49 फुट ऊंची प्रतिमा का वैदिक प्रतिष्ठा समारोह संपन्न

गांधीनगर। गुजरात के गांधीनगर के स्वामिनारायण अक्षरधाम में भगवान स्वामिनारायण के तपस्वी किशोर स्वरूप श्री नीलकंठ वर्णी महाराज की 49 फुट ऊंची भव्य मूर्ति का वैदिक प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुआ।
32 साल पहले स्वामी महाराज ने गांधीनगर में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रकाश को फैलाने वाले दिव्य और भव्य अक्षरधाम का निर्माण किया था। वर्तमान समय में, स्वामी महाराज के मार्गदर्शन में बीएपीएस संस्था के संतों और हरि भक्तों के समर्पण से नव अक्षरधाम मंदिर निर्माण के नए सोपान पार किए जा रहे हैं। 11 नवंबर, कार्तिक शुद्ध दशमी के शुभ अवसर पर, गांधीनगर के स्वामिनारायण अक्षरधाम परिसर में नीलकंठ वर्णी की तपस्वी मूर्ति का प्रतिष्ठा उत्सव मनाया गया।
बीएपीएस संस्था के वरिष्ठ संत ईश्वर चरण स्वामी, कोठारी स्वामी, त्याग वल्लभ स्वामी, विवेक सागर स्वामी और गांधीनगर अक्षरधाम के मुख्य संत आनंद स्वरूप स्वामी की उपस्थिति में मूर्ति प्रतिष्ठा विधि के अंतर्गत पूर्व न्यास विधि का शुभारंभ हुआ। बीएपीएस के विद्वान संत श्रुति प्रकाश स्वामी ने वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ संपूर्ण पूजा विधि संपन्न कराई। पूर्व न्यास विधि के बाद नीलकंठ वर्णी महाराज के 108 मंगलकारी शुभ नामों और सहजानंद नामावली का जाप किया गया।
इसके बाद, बीएपीएस संस्था के विद्वान संत अक्षरवत्सलदास स्वामी ने भारत में नीलकंठ वर्णी की इस सबसे ऊंची तपस्वी मूर्ति की विशेषताओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि नेपाल के मुक्तिनाथ में भगवान स्वामिनारायण ने जिस तप मुद्रा में 2 महीने और 20 दिनों तक कठोर तप किया था, उसी मुद्रा में इस नीलकंठ वर्णी की मूर्ति का निर्माण किया गया है।
उल्लेखनीय है कि, पृथ्वी के पश्चिमी गोलार्ध के सबसे बड़े हिंदू मंदिर, न्यू जर्सी के रॉबिंसविले स्थित स्वामिनारायण अक्षरधाम में सबसे पहले इस प्रकार की 49 फुट ऊंची नीलकंठ वर्णी महाराज की मूर्ति प्रतिष्ठा की गई थी।
सुबह 8:30 बजे परम पूज्य महंत स्वामी महाराज द्वारा 555 तीर्थों के पवित्र जल से मूर्ति प्रतिष्ठा विधि का शुभारंभ किया गया। चार धाम, पंच केदार, पंच सरोवर, सप्तपुरी, सप्त बद्री, सप्त क्षेत्र, आठ विनायक तीर्थ, नौ अरण्य, बारह महा संगम, इक्यावन शक्तिपीठ, भगवान स्वामिनारायण द्वारा स्थापित छह मंदिर, बीएपीएस के संस्थापक ब्रह्म स्वरूप शास्त्रीजी महाराज द्वारा निर्मित पांच मंदिरों तथा बीएपीएस की गुरु परंपरा द्वारा स्थापित मंदिरों सहित विभिन्न तीर्थों के पवित्र जल इसमें शामिल किए गए।
इसके बाद महंत स्वामी महाराज ने नीलकंठ वर्णी महाराज के हृदय स्थल से विधि का आरंभ किया और फिर स्वामिनारायण महामंत्र के मंगल ध्वनि के साथ नीलकंठ वर्णी महाराज के मुख दर्शन, मंगलदर्शन और मूर्ति पूजन किया गया। संपूर्ण विश्व में शांति की भावना के साथ स्वामिनारायण महामंत्र के जाप के साथ आरती का अर्घ्य अर्पित किया गया। इसके अतिरिक्त मंत्र पुष्पांजलि और ड्रोन द्वारा नीलकंठ वर्णी महाराज पर पुष्प वर्षा की गई। इसके बाद संस्था के वरिष्ठ संतों द्वारा महंत स्वामी महाराज को विभिन्न कलात्मक हार और चादर अर्पण किए गए।
इस मूर्ति के निर्माण में विशेष मार्गदर्शन देने वाले वरिष्ठ संत ईश्वर चरण स्वामी ने अपने संबोधन में कहा, 'गुजरात की राजधानी में अक्षरधाम, प्रमुख स्वामी महाराज का उपहार है। आज तपस्वी नीलकंठ वर्णी महाराज की मूर्ति के दर्शन हो रहे हैं, यह पूज्य महंत स्वामी महाराज का संकल्प है। नीलकंठ वर्णी महाराज ने 11 वर्ष की आयु में घर को त्यागकर संपूर्ण भारतवर्ष में विचरण करते हुए हमारे गुजरात में प्रवेश किया और रामानंद स्वामी द्वारा इस संप्रदाय की जिम्मेदारी स्वीकार की।"
उन्होंने आगे कहा, "उन्होंने संपूर्ण गुजरात में भ्रमण कर धर्म का प्रचार किया और गुणातीत पुरुषों द्वारा अपनी परंपरा को आगे बढ़ाया। आज वे महंत स्वामी महाराज के माध्यम से प्रकट हैं। भगवान स्वामिनारायण ने भक्तों के कल्याण के लिए सात वर्षों तक कठिन तप और भ्रमण किया है, उन्होंने अपने शरीर का अत्यधिक संयम किया है। कई बार तो उन्होंने केवल वायु का सेवन कर जंगली जानवरों के बीच भी विचरण किया है। तप से भगवान प्रसन्न होते हैं और भगवान स्वामिनारायण ने मुक्तिनाथ में ढाई महीने जो तप किया था, उसकी याद को बनाए रखने के लिए इस मूर्ति की स्थापना की गई है।"
 
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Dev Diwali 2024 : प्रदोष काल मुहूर्त, पूजा अनुष्ठान सहित सम्पूर्ण जानकारी

देव दिवाली, जिसे देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे शुभ त्योहारों में से एक है। कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को अत्यधिक उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला यह त्यौहार। इस वर्ष देव दिवाली 15 नवंबर, 2024 को मनाई जाएगी। यह त्यौहार उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ लाखों भक्त इस अवसर पर एकत्रित होते हैं।
मुख्य तिथियाँ और समय-
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 15 नवंबर, 2024
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 16 नवंबर, 2024
प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त- 15 नवंबर, 2024 - शाम 5:10 बजे से शाम 7:47 बजे तक
देव दिवाली का महत्व-
देव दिवाली भगवान शिव की राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय का जश्न मनाती है, यह आध्यात्मिक महत्व और दिव्य विजय का दिन है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र दिन पर सभी देवी-देवता भगवान शिव की जीत का सम्मान करने के लिए पवित्र शहर वाराणसी में एकत्रित होकर धरती पर उतरे थे। यह त्यौहार उस समय को दर्शाता है जब दैवीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जो इसे हिंदू कैलेंडर में सबसे अधिक पूजनीय अवसरों में से एक बनाता है।
वाराणसी में, शहर लाखों दीयों (तेल के दीयों) से जगमगाता है, क्योंकि लोग अपने घरों, सड़कों और मंदिरों को रोशनी से सजाते हैं। यह एक शानदार नजारा बनाता है, जिसमें गंगा घाट उत्सव का केंद्र बन जाते हैं। यह त्यौहार वाराणसी में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ हज़ारों भक्त घाटों पर आते हैं, प्रार्थना करते हैं और नदी में दीप दान (दीप अर्पण) करते हैं, जिससे एक अलौकिक और आध्यात्मिक रूप से आवेशित वातावरण बनता है।
अनुष्ठान और उत्सव-
देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है, जिसे विभिन्न पूजा अनुष्ठानों को करने के लिए सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। भक्तगण कई तरह की आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, जिसमें गंगा नदी में पवित्र स्नान करना, समृद्धि के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करना और इस अवसर पर उपवास करना शामिल है।
यह भगवान शिव को त्रिपुरासुर पर उनकी विजय के लिए सम्मानित करने का भी समय है। लोग दीये जलाते हैं, पूजा करते हैं और उन अनुष्ठानों में भाग लेते हैं जो अंधकार को दूर करने और प्रकाश और ज्ञान की शुरुआत का प्रतीक हैं।
वाराणसी शहर में तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है जो प्रसिद्ध दीप दान समारोह सहित उत्सवों में भाग लेते हैं। यहाँ, भक्त हज़ारों दीये जलाते हैं और उन्हें नदी में प्रवाहित करते हैं, जिससे पानी पर रोशनी की झलक का एक मनमोहक दृश्य बनता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की शाश्वत जीत और आस्था, भक्ति और आध्यात्मिकता के महत्व की याद दिलाता है।
15 नवंबर को शाम 5:10 बजे से शाम 7:47 बजे तक प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त, प्रार्थना और अनुष्ठान करने के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है, खासकर उन लोगों के लिए जो व्रत रखते हैं और दीप दान में भाग लेते हैं।
देव दिवाली पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन वाराणसी इस उत्सव का केंद्र है। भगवान शिव से जुड़े इस शहर के आध्यात्मिक विरासत के साथ मिलकर यह देव दिवाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। गंगा घाटों की भव्यता और नदी पर तैरती हज़ारों दीपों का नज़ारा ऐसा माहौल बनाता है जो देश में कहीं और नहीं मिलता।
हर साल, स्थानीय लोगों के साथ-साथ लाखों तीर्थयात्री आध्यात्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जिससे वाराणसी एक दिव्य तमाशा बन जाता है। इस दिन प्रार्थना, उत्सव और ईश्वर के प्रति सामूहिक श्रद्धा की भावना होती है।
देव दिवाली की भावना का जश्न मनाएं-
देव दिवाली आध्यात्मिक नवीनीकरण, आस्था और दिव्य विजय के उत्सव का समय है। चाहे आप वाराणसी में हों या कहीं और, यह दिन दुनिया भर में हिंदू समुदाय को जोड़ने वाली भव्य परंपराओं में भक्ति, चिंतन और भागीदारी का अवसर प्रदान करता है। रात में लाखों दीयों से रोशनी और हवा में गूंजती प्रार्थनाओं के साथ, देव दिवाली हिंदू संस्कृति में सबसे प्रिय त्योहारों में से एक है।
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देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को, जानिए...शुभ मुहूर्त

देवउठनी एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस साल यह 12 नवंबर 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के जागरण और उनकी पूजा के लिए माना जाता है। दरअसल, भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद इस दिन जागते हैं। इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान विष्णु की अराधना करते हैं, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति हो।
शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि की शुरूआत 11 नवंबर 2024 को शाम 06:46 बजे से होगी, जिसकी समाप्ति 12 नवंबर 2024 को 04:04 पीएम बजे से होगी। आप 13 नवंबर को सुबह 06:42 से सुबह 08:51 तक व्रत पारण कर सकते हैं।
पूजा-विधि-
सुबह जल्दी स्नान करने के बाद मंदिर में जाकर दीप प्रज्वलित कर लें। भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक कर पुष्प और तुलसी अर्पित करें। इस दिन व्रत रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराने की भी परंपरा है। भगवान की आरती करने के बाद भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भोग में सात्विक चीजें ही हों।
क्यों होता है शालीग्राम व तुलसी का विवाह-
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार तुलसी (वृंदा) शंखचूड़ नामक असुर की पत्नी थीं। शंखचूड़ बहुत बड़ा अधर्मी था, लेकिन उसकी पत्नी सतीत्व का पालन करती थी। यही कारण था कि वह बहुत बलवान था और देवता उसको हरा नहीं पा रहे थे। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी को छू लिया, जिससे उनका सतीत्व भंग हो गया।
भगवान विष्णु के ऐसा करते ही शंखचूड़ की शक्ति समाप्त हो गई। उसके बाद शिवजी ने उसका वध कर दिया। तुलसी को इस बात की जानकारी हुई, तो बहुत ही क्रोधित हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर (शालीग्राम) बनने का श्राप दे दिया।
भगवान विष्णु ने श्राप स्वीकार करते हुए कहा कि वह शालिग्राम रूप में पृथ्वी पर रहेंगे। तुम मुझको तुलसी के एक पौधे के रूप में छांव दोगी। उनके भक्त तुलसी से विवाह करके पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। इस दोनों का कार्तिक शुक्ल एकादशी को विवाह किया जाता है। आज भी तुलसी नेपाल की गंडकी नदी पर पौधे के रूप में पृथ्वी पर हैं, जहां शालिग्राम मिलते हैं।

 

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तुलसी विवाह पूजा में इन सामग्रियों का करें उपयोग...

तुलसी विवाह : कार्तिक का महीना तुलसी पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस माह शुक्ल पक्ष की एकादशी या द्वादशी के दिन तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन विधि-विधान से तुलसी माता भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से विवाह करती हैं। इस दिन विवाह सहित सभी शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, तुलसी विवाह 13 नवंबर 2024 को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति तुलसी विवाह का आयोजन सही ढंग से करता है, उसके पारिवारिक जीवन में खुशियां आती हैं और उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। तुलसी विवाह की पूजा में कुछ चीजों को शामिल करना अनिवार्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके बिना पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करना असंभव है। 
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुरुआत 12 नवंबर 2024 को शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शाम 4 बजकर 04 मिनट पर होगी और समापन अगले दिन 13 नवंबर 2024 को दोपहर 1 बजकर 01 मिनट पर होगा. इसलिए तुलसी विवाह 13 नवंबर 2022 को उदयातिथि के अनुसार मनाया जाएगा. भगवान तुलसी-शालिग्राम का विवाह प्रदोष काल में होना था।
तुलसी विवाह के दिन पूजा के लिए तुलसी का पौधा, शालिग्राम, भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र, पूजा व्रत, लाल वस्त्र, कलश, केले का पत्ता, हल्दी का टुकड़ा, चंदन, रोली, तिल, मौली, धूप, दीपक, श्रृंगार। तुलसी माता की सामग्री (बिंदी, लाल चुनरी, सिन्दूर, मेंहदी, बिछुआ, साड़ी आदि), गन्ना, अनार, केला, सिंघाड़ा, मूली। आंवला, आम का पत्ता, नारियल, अष्टदल कमल, शकरकंद, गंगा जल, सीताफल, अमरूद, कपूर, फल, फूल, बताशा, मिठाई आदि की आवश्यकता होती है।
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साल 2025 में शनिदेव की रहेगी इन राशियों पर विशेष कृपा

Shani Gochar 2025 : ग्रहों का गोचर ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। जब-जब ग्रह एक से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो सभी राशियों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। जल्द ही अंग्रेजी कैलेंडर का नया वर्ष 2025 प्रारंभ होने वाला है। इस नए वर्ष में कई प्रमुख ग्रहों का राशि परिवर्तन भी होगा। जिसमें शनिदेव का राशि परिवर्तन काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं। यह किसी एक राशि में ढाई वर्षों तक रहते हैं। इस तरह से दोबारा उसी राशि में आने में लगभग 30 वर्ष का समय लेते हैं।  आपको बता दें कि 29 मार्च 2025 को शनि कुंभ राशि से निकलकर देवगुरु बृहस्पति की राशि मीन में प्रवेश करेंगे। शनि के राशि परिवर्तन करने से कुछ राशि वालों का भाग्य चमक सकता है। लाभ के अवसरों में वृद्धि होगी और शुभ समाचार की सूचना मिलेगी। आइए जानते हैं शनि के साल 2025 में राशि परिवर्तन करने पर किन राशियों को सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा।
मेष राशि-
साल 2025 मेष राशि के जातकों के लिए बहुत ही शुभ साबित होगा। लाभ के भरपूर अवसर आपको मिलेंगे। आर्थिक स्थिति और मान-सम्मान में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। ज्योतिष गणना के मुताबिक साल 2025 में शनि का गोचर मेष राशि में कुंडली के बारहवें भाव यानी व्यय के भाव में होगा। शनि के मीन राशि में गोचर करने से आपके ऊपर शनि की साढ़ेसाती आरंभ हो जाएगी। शनि कुंडली के द्वादश स्थान पर विराजमान होकर कुंडली के तीन प्रमुख भाव दूसरे, छठे और नवम भाव में द्दष्टि डालेंगे। ऐसे में आपको अचानक लाभ और तरह-तरह के मौके प्राप्त होंगे।
वृषभ राशि-
साल 2025 में शनि का गोचर वृषभ राशि के जातकों के लिए बहुत ही अच्छा साबित होगा। आपके लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। शनि आपकी राशि से नवम और दशम के स्वामी होकर कुंडली के लाभ भाव यानी एकादश भाव में प्रवेश करेंगे। ऐसे में आपकी हर तरह की इच्छा पूरी होगी। लाभ के अच्छे अवसर विकसित होंगे जिससे पहले के मुकाबले आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर रहेगी। अचानक से लाभ के योग बनेंगे। अधूरे पड़े कार्यों में सफलताएं मिलेंगी। नौकरीपेशा जातकों को नई नौकरी के बेहतर मौके मिलेंगे। इसके अलावा प्रमोशन के शानदार योग भी हैं। साल 2025 में आपके खाते में अच्छा खासा धन एकत्रित होगा। जीवन में धन, सुख-सुविधा और ऐशोआराम की कोई कमी नहीं होगी।
मिथुन राशि-
शनि का मीन राशि में गोचर मिथुन राशि के जातकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। मिथुन राशि के जातकों के लिए शनिदेव आठवें और नवम भाव के स्वामी होकर दशम भाव में प्रवेश करेंगे। कुंडली का दशम भाव कर्म से संबंधित होता है। ऐसे में कार्यक्षेत्र में आपको नई उपलब्धियां और नया मुकाम हासिल हो सकता है। नौकरी और व्यापार में लाभ की संभावना है। मान-सम्मान में वृद्धि और अच्छा लाभ अर्जित करने की संभावना है। जो लोग किसी कारोबार से संबंधित हैं उन्हे कोई नई डील मिल सकती है। साल 2025 में कारोबार में विस्तार होने की अच्छी संभावना है। 
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बैकुंठ चतुदर्शी को भगवान श्रीहरिहर भक्तों देंगे दर्शन

सूबे की गोठ नई सड़क पर प्रदेश का एक मात्र हरिहर मंदिर हैं। यह श्री हरि व देवाधिदेव महादेव एक ही विग्रह में विराजमान हैं। यह मंदिर ढाई सौ वर्ष प्राचीन माना जाता है। यह विग्रह स्वयं भू प्रकट है। श्रीहरिहर के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी (बैकुंट चतुदर्शी) को दर्शनों का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता हैं बैकुंठ चतुदर्शी को एक साथ श्री हरि और भगवान शिव के एक साथ दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होने के साथ पर लोकगमन पर वैंकुट की प्राप्ति होती है। बैकुंठ श्रीविष्णु व माता लक्ष्मी का निवास माना जाता है।
सालभर खुलते हैं पट, सेवा होती है-
मंदिर के पुजारी दिलीप पराडकर ने बताया कि यह भ्रांति गलत है कि श्री हरि-हर मंदिर के पट केवल बैकुंठ चतुदर्शी को खोलते हैं।इस मंदिर के 12 माह पट खुले रहते हैं और श्रीहरि-हर की परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना होती है। बैकुंठ चतुदर्शी को श्रीहरिहर का प्रकाट्योत्सव परंपरागत रूप से मनाया जाता है। इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां श्री हरि-हर के दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्री हरि के भस्मासुर का अंत करने के बाद भगवान शिव श्री विष्णु से भेंट करने के लिए बैकुंठ चतुदर्शी को आये थे। तभी से यह उत्सव मनाया जाता है। यहां श्रद्धालु भोग दीपावली पर बने पकवान गुजिया व पपड़ी का लगाते हैं।
अपने घर की मनोकामना पूर्ण होती है-
बैकुंठ चतुदर्शी करने के लिए आने वाले श्रद्धालु मंदिर आसपास रखे ईट-पत्थर से दो से तीन मंजिल का मकान बनाते हैं और उसमें दीपक जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पत्थरों से प्रतीकात्मक मकान बनाने से अगली बैकुंठ चतुदर्शी तक स्वयं का घर बनने की मनोकामना पूर्ण होती है।इसी विश्वास के साथ यह लोग मकान बनाते हैं।इसके साथ ही बैकुंठ चतुदर्शी को दर्शन मात्र से हर मनोकानना पूर्ण होने के साथ बैकुंठ लोक प्राप्ति होती है।
बैकुंठ चतुदर्शी को होता है आलोकिक श्रृंगार-
मंदिर के पुजारी ने बताया कि वैकुंट चतुदर्शी को भगवान श्रीहरि-हर का प्रकाट्योत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।तड़के विग्रह का अभिषेक किया जाता है और अलोकिक श्रृंगार किया जाता है। मंदिर के पट सूर्यास्त से पहले ही खुल दिये जाते हैं। सुबह से लेकर देर रात तक श्रद्धालु भगवान के दिव्य एवं अलोकिक दर्शन के लिए आते हैं और सुख-समृद्धि के साथ श्री हरिहर की कृपा की कामना करते हैं। यह सिलसिला दो सदी से चला आ रहा है। मंदिर रंग-रोगन भी किया गया है।
बैकुंठ चतुदर्शी-
बैकुंठ चतुर्दशी गुरुवार 14 नवंबर को मनाया जायेगा। बैकुंठ चतुर्दशी का प्रारंभ सुबन नौ बजकर 43 मिनिट से समापन 15 नवंबर सुबह छह बजकर 19 मिनिट पर निशिता काल।
वैकुंठ चतुर्दशी 2024 कार्तिक महीने की चतुर्दशी को मनाई जाती है और इसे भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों के अनुयायी एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मानते हैं।
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा भक्त करते हैं, और उनका आशीर्वाद भी मांगते हैं। हालांकि, दोनों देवताओं की पूजा समारोह दिन के दौरान अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।
एक ही प्रतिमा में श्रीहरि, शिव, माता लक्ष्मी व पार्वती विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी का दावा है कि मूर्ति पूर्ण भारत में एक ही मूर्ति है, जिसमें हरि और हर एक ही प्रतिमा में विराजमान है। इसी मूर्ति में मां लक्ष्मी, मां पार्वती एवं चारों के वाहन, हाथी, गरुड़, नंदी और शेर भी विराजमान हैं। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सुबह पांच बजे आरती होती है, उसके पश्चात भगवान का अभिषेक किया जाएगा।
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अक्षय नवमी 10 नवंबर को, जानिए...शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन अक्षय नवमी को खास माना गया है। पंचांग के अनुसार अक्षय नवमी का पावन पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना का विधान होता है साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है।
मान्यता है कि अक्षय नवमी की पूजा करने से सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है और दांपत्य जीवन की परेशानियां दूर हो जाती है साथ ही अगर किसी के विवाह में कोई बाधा आ रही है तो वह भी दूर हो जाती है और शीघ्र विवाह के योग बनने लगते हैं। इस साल अक्षय नवमी का पर्व 10 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा पाठ के दौरान अगर भगवान की प्रिय आरती की जाए तो वे प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं और साधक की मनोकामना को पूर्ण कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान विष्णु की आरती।
अक्षय नवमी की तारीख और शुभ मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का आरंभ 9 नवंबर दिन शनिवार को रात 10 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 10 नवंबर दिन रविवार को रात 9 बजकर 1 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार अक्षय नवमी का पर्व इस साल 10 नवंबर को मनाया जाएगा।
भगवान विष्णु की आरती-
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥
ओम जय जगदीश हरे...
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
ओम जय जगदीश हरे...
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ओम जय जगदीश हरे...
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ओम जय जगदीश हरे...
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥
ओम जय जगदीश हरे...
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ओम जय जगदीश हरे...
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
ओम जय जगदीश हरे...
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥
ओम जय जगदीश हरे...
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥
ओम जय जगदीश हरे...
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