धर्म समाज

हरियाली तीज, नाग पंचमी और देवशयनी एकादशी कब है? जानिए...

सनातन धर्म की परंपरा में हर महीना अपनी अलग धार्मिक गरिमा और आध्यात्मिक ऊर्जा लेकर आता है। जुलाई का महीना भी कुछ ऐसा ही है, जो न सिर्फ पंचांग में विशेष स्थान रखता है, बल्कि श्रद्धा और भक्ति के लिहाज से भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष जुलाई की शुरुआत के साथ ही 11 तारीख से सावन मास का आगमन हो रहा है , वह पावन काल जिसमें शिवभक्त पूरे मन, वचन और कर्म से महादेव की आराधना में लीन हो जाते हैं।सावन के साथ ही जुलाई में देवशयनी एकादशी, हरियाली तीज, मंगला गौरी व्रत, नाग पंचमी और सावन शिवरात्रि जैसे पर्वों की सजीव झांकी देखने को मिलेगी। यह महीना व्रत, उपवास और अनुष्ठानों के साथ आत्मिक शुद्धि और पारिवारिक सुख-समृद्धि का प्रतीक है। मान्यता है कि इस मास में भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी होती है और वैवाहिक जीवन में आ रही अड़चनें भी दूर होती हैं। ऐसे में आइए जानें जुलाई के धार्मिक कैलेंडर में किन-किन पर्वों और तिथियों का है महत्व।
जुलाई माह के व्रत त्योहार :-
6 जुलाई- देवशयनी एकादशी, गौरी व्रत
8 जुलाई- भौम प्रदोष व्रत,
9 जुलाई -आषाढ़ चौमासी चौदस
10 जुलाई -कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा
11 जुलाई -सावन की शुरुआत
14 जुलाई – सावन का पहला सोमवार
15 जुलाई- मंगला गौरी व्रत
16 जुलाई – कर्क संक्रांति
21 जुलाई – सावन का दूसरा सोमवार
22 जुलाई- दूसरा मंगला गौरी व्रत, सावन प्रदोष व्रत
23 जुलाई – सावन की शिवरात्रि
24 जुलाई – हरियाली अमावस्या
27 जुलाई – हरियाली तीज
28 जुलाई -सावन का तीसरा सोमवार, विनायक चतुर्थी
29 जुलाई -नाग पंचमी
30 जुलाई को स्कंद षष्ठी
31 जुलाई – तुलसीदास जयंती
6 जुलाई 2025 : देवशयनी एकादशी :-
यह एकादशी न केवल व्रतों में विशेष मानी जाती है, बल्कि इस दिन से देवताओं का शयनकाल यानी चातुर्मास भी आरंभ हो जाता है। अगले चार महीनों तक कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, क्योंकि देवी-देवता विश्राम करते हैं। इस एकादशी का व्रत रखने से जीवन में पुण्य, संयम और आत्मिक उन्नति का द्वार खुलता है।
10 जुलाई 2025: कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेद व्यास जी के प्राकट्य के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। साथ ही, कोकिला व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा, जो विशेष रूप से सुहागिनों और विवाह की इच्छुक कन्याओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत जीवन में सुख-शांति, प्रेम और उत्तम दांपत्य सुख प्रदान करता है।
11 जुलाई 2025: सावन मास प्रारंभ :-
श्रावण मास, भगवान शिव को समर्पित वह दिव्य समय है जब आकाश भी जलाभिषेक करता है। इस माह शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र अर्पित करने से समस्त पाप क्षय होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मास विशेषकर सोमवार व्रत और रुद्राभिषेक के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
27 जुलाई 2025: हरियाली तीज :-
शृंगार, समर्पण और प्रेम का प्रतीक हरियाली तीज विवाहित और अविवाहित दोनों स्त्रियों के लिए मंगलदायक होती है। इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा कर सौभाग्य, प्रेम और उत्तम वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखा जाता है। यह पर्व प्रकृति की हरियाली और नवजीवन के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।
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सावन में पुत्रदा एकादशी मंगलवार 5 अगस्त को

  • जानिए...सही तिथि और पूजा विधि
सनातन परंपरा में एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व है। सालभर में कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं, और हर एकादशी भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी को समर्पित होती है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने और विधिवत पूजा-अर्चना करने से साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। सावन मास भगवान शिव को समर्पित होता है, उसमें आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और श्री हरि की उपासना करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
कब रखा जाएगा पुत्रदा एकादशी व्रत-
दृक पंचांग के अनुसार सावन शुक्ल पक्ष की शुरुआत 4 अगस्त 2025 को प्रातः 11:41 बजे से हो रही है, जो कि 5 अगस्त दोपहर 1:12 बजे तक जारी रहेगी। ऐसे में 5 अगस्त 2025, मंगलवार को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
दुर्लभ योग में मिलेगा कई गुना पुण्य-
पुत्रदा एकादशी के दिन भद्रा काल के साथ-साथ रवि योग का संयोग बन रहा है। रवि योग को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस योग में श्री हरि की आराधना करने से स्वास्थ्य लाभ, सुख-समृद्धि और कार्यक्षेत्र में प्रगति के योग बनते हैं। साथ ही पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत पारण-
पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण उपवास के अगले दिन किया जाएगा। पारण के लिए 6 अगस्त को सुबह 05:45 बजे से सुबह 08:26 बजे तक का समय बताया गया है। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दोपहर 02:08 बजे है।
पुत्रदा एकादशी का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ती हैं और घर में लक्ष्मी-नारायण की कृपा बनी रहती है। विशेषकर वे दंपत्ति जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायक माना गया है।
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आषाढ़ मास की दुर्गाष्टमी का व्रत 3 जुलाई को

  • जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है, जो मां दुर्गा को समर्पित होती है. आषाढ़ मास की दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है, यह दिन देवी दुर्गा के भक्तों के लिए बेहद पावन होता है, जब वे मां की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. आइए जानते हैं आषाढ़ दुर्गाष्टमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में विस्तार से|
आषाढ़ माह की मासिक दुर्गा अष्टमी कब है:
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 2 जुलाई 2025 को रात 10 बजे से होगा और यह 3 जुलाई 2025 को रात 11:30 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, आषाढ़ दुर्गाष्टमी का व्रत 3 जुलाई 2025 को रखा जाएगा|
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन कैसे करें मां दुर्गा को प्रसन्न:
दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद, पूजा का संकल्प लें. घर के पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. मां दुर्गा को लाल चुनरी, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मेहंदी आदि से श्रृंगार करें. एक दीपक प्रज्ज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएं. मां दुर्गा को लाल गुड़हल के फूल विशेष रूप से पसंद हैं. उन्हें अर्पित करें. फल, मिठाई और हलवा-पूरी का भोग लगाएं|
दुर्गा चालीसा का पाठ करें और “ॐ दुं दुर्गायै नमः” या “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” जैसे मंत्रों का जाप करें. आखिर में मां दुर्गा की आरती करें और परिवार सहित आरती में शामिल हों. पूजा के दौरान हुई किसी भी गलती के लिए मां से क्षमा याचना करें. पूजा के बाद प्रसाद सभी में बांट दें|
आषाढ़ दुर्गाष्टमी का महत्व:
दुर्गाष्टमी का पर्व मां दुर्गा की शक्ति और उनके नौ स्वरूपों को समर्पित है. यह दिन भक्तों को भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा का सच्चे मन से पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन उनकी पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. जो भक्त सच्ची श्रद्धा से मां की आराधना करते हैं, उनके घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है|
मासिक दुर्गाष्टमी पर व्रत रखने और मां दुर्गा की पूजा करने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है. मां दुर्गा भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं. संतान प्राप्ति, विवाह संबंधी बाधाएं और करियर में सफलता जैसी इच्छाएं इस दिन पूजा से पूरी हो सकती हैं. मां दुर्गा की उपस्थिति नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों को दूर करती है, जिससे घर में सकारात्मकता का संचार होता है|
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मुख्यमंत्री साय से निरंजन पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी कैलाशनंद गिरी जी महाराज ने की सौजन्य भेंट

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री साय ने निरंजन पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी कैलाशनंद गिरि जी महाराज के साथ विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े, केंद्रीय राज्य मंत्री महिला एवं बाल विकास श्रीमती सावित्री ठाकुर, राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा, वन विकास निगम के अध्यक्ष श्री रामसेवक पैंकरा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री राहुल भगत सहित अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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सावन में कुछ कामों को करने से बचना चाहिए

सावन का महीना देवों के देव महादेव की आराधना करने के लिए समर्पित होता है. भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए सावन अत्यंत पावन माना जाता है. यह महीना व्रत-उपवास के लिए खास माना गया है. साल 2025 में सावन की शुरुआत 11 जुलाई से होने वाली है. शिव भक्त इस पूरे महीने भोलेनाथ की पूजा-अर्चना में लीन रहते हैं. सावन के महीने में पूजा-पाठ के साथ कुछ विशेष नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में कुछ काम करने से बचना चाहिए. अगर आप इन कार्यों को करते हैं, तो भगवान शिव की कृपा से वंचित रह सकते हैं|
बाल और दाढ़ी न कटवाएं-
सावन में बाल या दाढ़ी कटवाना शुभ नहीं माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि सावन में बाल या दाढ़ी कटवाने से कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं और सकारात्मक ऊर्जा में कमी हो सकती है|
शरीर पर तेल न लगाएं-
स्कंद पुराण के मुताबिक, सावन में शरीर या सिर पर तेल लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है. सावन के सोमवार के दिन शरीर पर तेल लगाना पूरी तरह वर्जित माना गया है. सावन में तेल के मालिश भी नहीं करनी चाहिए|
दही का सेवन न करें-
सावन के महीने में दही खाना वर्जित माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन में दही खाने से शुक्र दोष उत्पन्न हो सकता है. इसके अलावा, व्यक्ति को भाग्य का साथ भी नहीं मिलता है|
जमीन पर सोने की सलाह-
सावन में जो व्यक्ति सावन में व्रत करते हैं, उन्हें बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए. इसके अलावा, सावन के महीने में कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए. ऐसा करना धार्मिक दृष्टि से अशुभ होता है|
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शनिदेव को शांत करने के उपाय

हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव की पूजा के लिए शनिवार का दिन विशेष माना जाता है। शनिदेव को न्याय का देवता और कर्मफलदाता कहा जाता है। वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार दंड या पुरस्कार देते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चल रही हो तो उसका जीवन संघर्ष, बाधाओं और आर्थिक संकटों से घिर सकता है। खासकर जिन लोगों को बार-बार धन की हानि हो रही हो, व्यापार में घाटा हो रहा हो या नौकरी में स्थिरता नहीं मिल रही हो, उनके लिए शनिदेव की कृपा पाना बहुत लाभकारी होता है। शनिवार के दिन किए जाने वाले कुछ खास उपाय शनिदेव की अशुभ दृष्टि को शांत कर जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता ला सकते हैं। ये उपाय व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी सहायक होते हैं। आइए जानते हैं ऐसे 5 कारगर उपाय, जिन्हें शनिवार के दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
सरसों का तेल और काली वस्तुओं का दान करें-
शनिवार की शाम शनि मंदिर जाकर शनिदेव की प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप करें। इसके बाद गरीबों या जरूरतमंदों को काले कपड़े, काले तिल, उड़द की दाल, जूते-चप्पल, या कंबल का दान करें। माना जाता है कि इन चीजों के दान से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और धन संबंधी रुकावटें दूर होती हैं।
पीपल के पेड़ की पूजा करें-
शनिवार के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और उसे जल अर्पित करें। इसके बाद सात परिक्रमा करें और शनिदेव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें। यह उपाय शनि दोष को शांत करने और घर में सुख-समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।
हनुमान जी की पूजा करें-
हनुमान जी को शनिदेव का परम मित्र माना जाता है। शनिवार के दिन सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचा जा सकता है। इससे मानसिक शांति मिलती है और जीवन की चुनौतियां कम होती हैं।
शनि चालीसा और मंत्र जाप करें-
शनिवार को स्नान आदि के बाद शांत मन से शनि चालीसा पढ़ें। साथ ही “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” या “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। यह साधारण और प्रभावी तरीका है शनि की कृपा पाने का।
गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा करें-
शनिदेव को न्यायप्रिय और गरीबों का संरक्षक माना जाता है। शनिवार को भूखों को भोजन कराना, दिव्यांगों या सफाई कर्मचारियों की मदद करना शनिदेव को अत्यंत प्रिय है। यह सेवा भाव शनि दोष को कम करता है और जीवन में आर्थिक स्थिरता लाने में मदद करता है।
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पुरी में रथ यात्रा का दूसरा दिन : भगवान जगन्नाथ निकले मौसी के घर

  • भक्तों का उत्साह चरम पर
पुरी। विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी पुरी में जगन्नाथ महोत्सव रथ यात्रा का दूसरा दिन है। ये रथ यात्रा अगले पड़ाव के लिए निकल चुकी है। शनिवार को भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के तीन रथों को खींचने का काम परंपरा के अनुसार आज सुबह 9:30 बजे फिर से शुरू हुआ।
इस रथयात्रा का शुक्रवार शाम 4 बजे शुभारंभ हुआ। पहले भगवान बलभद्र का रथ खींचा गया, फिर सुभद्रा और जगन्नाथ के रथ खींचे गए। भक्तों की भारी भीड़ रही और इस दौरान कुछ लोगों की तबीयत बिगड़ी। इस वजह से रथयात्रा को बीच में ही विश्राम दे दिया गया। अगले दिन यानी शनिवार को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को आगे बढ़ाया जा रहा है।
इस रथ यात्रा को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का महासागर माना जाता है। लाखों लोग हर साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जब भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं। इस बार पहले साल की तुलना में भक्तों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है।
पूरा शहर भगवान जगन्नाथ की भक्ति में सराबोर है। रथ खींचने के दूसरे दिन का हिस्सा बनने के लिए हजारों लोग पुरी में पहले ही जमा हैं। कार्यक्रम के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं में उत्साह चरम पर है, और चारों ओर "जय जगन्नाथ" के उद्घोष गूंज रहे हैं।
भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा पुरी स्थित गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ रही है, जिसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। हर साल भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को जगन्नाथ मंदिर से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक खींचकर लाया जाता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा यहां एक हफ्ते के लिए ठहरेंगे। इसी तरह के जश्न के साथ भगवान वापस जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह लौटेंगे।
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12 ज्योतिर्लिंग में किसका किस राशि से है संबंध, जानें अपनी राशि के शिवलिंग के बारे में

नई दिल्ली शिव पुराण के 6 खण्ड और 24,000 श्लोक में भगवान शिव के महत्व को समझाया गया है। इसी शिव महा पुराण में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के बारे में भी वर्णन मिलता है। शिव महा पुराण में वर्णित 12 ज्योतिर्लिंग में से एक यूपी में, एक उत्तराखंड में, एक झारखंड में, एक आंध्र प्रदेश, एक तमिलनाडु, दो मध्य प्रदेश में, तीन महाराष्ट्र में और दो गुजरात में स्थित है। इनको क्रमवार सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम और घृष्णेश्वर के नाम से जाना और पूजा जाता है।
शिव महा पुराण के कोटिरुद्र संहिता में भगवान शिव के इन द्वादश ज्योतिर्लिंग का विस्तृत वर्णन मिलता है। जिसमें साक्षात भगवान शिव का वास बताया गया है। इसमें वर्णित है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से पापों का नाश, मानसिक शांति और मुक्ति की प्राप्ति होती है।
ऐसे में यह भी बताया गया है कि इनमें से किस ज्योतिर्लिंग का संबंध किस राशि से है और इनके दर्शन-पूजन से किस तरह का फल मिलता है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार रामेश्‍वरम ज्‍योतिर्लिंग का संबंध मेष राशि से है। ऐसे में माना जाता है कि रामेश्‍वरम ज्‍योतिर्लिंग की पूजा करने से मेष राशि के जातकों के जीवन में सद्भाव और स्थिरता बढ़ती है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग वृषभ राशि से संबंधित है। वृषभ राशि के जातकों को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने और कल्याण का अनुभव करने के लिए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
बुध द्वारा शासित मिथुन राशि का संबंध नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। यहां पूजा करने से मिथुन राशि के जातकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आने के साथ उनका आध्यात्मिक विकास होता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध कर्क राशि से है। ऊँ यहां ज्योतिर्लिंग के ज्ञान और आध्यात्मिक क्षमता को व्यक्त करता है। ऐसे में कर्क राशि के जातकों को इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करना चाहिए।
सिंह राशि का संबंध वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से है, सिंह राशि के जातक इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करके स्वास्थ्य, परिवार और राजनीतिक मुद्दों के लिए समाधान पा सकते हैं। यहां महादेव अपने भक्तों को अच्छे स्वास्थ्य, संतान और मंत्र सिद्धि का आशीर्वाद देते हैं। कन्या राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और विवाह संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
तुला राशि का संबंध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है जहां दर्शन करने से तुला राशि के जातकों के जीवन से सभी भय और काल के भय दूर हो जाते हैं। श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग वृश्चिक राशि से संबंधित हैं। मान्यता है कि श्री घृष्णेश्वर के दर्शन से संतान सुख, विवाह योग और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का संबंध धनु राशि से है। धनु राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति जीवन का प्रतिनिधित्व करता है और केतु मोक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। यह ज्योतिर्लिंग व्यक्तियों को मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में उनकी आध्यात्मिक यात्रा में मदद करता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का संबंध मकर राशि से है। मंगल मकर राशि में उच्च का हो जाता है और इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से उन व्यक्तियों को राहत मिल सकती है जिनकी जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में है।
कुंभ राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है। यहां पूजा-दर्शन करने से कुंभ राशि के जातक को आध्यात्मिक विकास और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। वहीं मीन राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर है। मीन राशि में उच्च का शुक्र विलासिता, आराम और सांसारिक सुख देता है। ऐसे में माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से जीवन के इन पहलुओं से संबंधित आशीर्वाद मिलता है। जिन जातकों की जन्म कुंडली के छठे घर में शुक्र है, उन्हें त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
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विनायक चतुर्थी कल, जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत

हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ तिथि है, जो हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है. यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना जाता है. विनायक चतुर्थी का व्रत रखने और इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है. इसके अलावा जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है. आषाढ़ मास की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि, समृद्धि और सभी कार्यों में सफलता मिलती है|
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 28 जून दिन शनिवार को सुबह 07 बजकर 17 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 29 जून दिन रविवार को सुबह 06 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी. विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा मध्याह्न (दोपहर) काल में करना शुभ माना जाता है. इसलिए दिन के 11 बजकर 25 मिनट से दोपहर 01 बजकर 56 मिनट तक का शुभ मुहूर्त बप्पा की पूजा के लिए शुभ रहेगा|
विनायक चतुर्थी पूजा विधि-
विनायक चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
पूजा स्थल को साफ करें और गणेश जी का स्मरण करते हुए हाथ में जल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें.
मन में कहें कि ‘मैं भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह विनायक चतुर्थी का व्रत कर रहा/रही हूं.’
एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
यदि मूर्ति छोटी हो, तो उसे जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कराएं.
गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ की भी स्थापना करें.
‘ॐ गं गणपतये नमः’ या ‘वक्रतुंड महाकाय’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश का आह्वान करें.
यदि मूर्ति हो, तो पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक करें. उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं.
भगवान को नवीन वस्त्र (पीले या लाल रंग के) पहनाएं और लाल चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं.
लाल रंग के फूल (जैसे गुड़हल) और 21 दूर्वा (दूब घास) की गांठें अर्पित करें. दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है.
धूप-दीप: शुद्ध घी का दीपक और धूप जलाएं.
गणेश जी को मोदक या लड्डू अति प्रिय हैं, इसलिए इसका भोग अवश्य लगाएं. इसके अलावा, केला, गुड़, नारियल, और मौसमी फल भी चढ़ा सकते हैं.
अक्षत (साबुत चावल) और सुपारी अर्पित करें और गणेश जी को सिंदूर चढ़ाना भी शुभ माना जाता है.
पूजा के दौरान गणेश जी के मंत्रों का जाप करें, जैसे: “ॐ गं गणपतये नमः”, “श्री गणेशाय नमः” और वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
पूजा के अंत में अपनी पूजा में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए भगवान से क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामनाएं उनके समक्ष रखें|
विनायक चतुर्थी व्रत पारण विधि:
विनायक चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बिना नहीं तोड़ा जाता है, लेकिन चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन वर्जित माने जाते हैं. (क्योंकि इससे कलंक लगने की मान्यता है). इसलिए, गणेश भक्त इस दिन रात्रि में चंद्रमा के दर्शन से बचते हैं और व्रत का पारण अगले दिन करते हैं. विनायक चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन से बचें. व्रत का पारण अगले दिन (29 जून, रविवार) सूर्योदय के बाद और चतुर्थी तिथि के समाप्त होने से पहले करें. सुबह स्नान करके गणेश जी की पूजा करें. ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं या दान दें. इसके बाद, स्वयं सात्विक भोजन (बिना प्याज-लहसुन का) ग्रहण करके व्रत खोलें|
विनायक चतुर्थी का महत्व:
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है. इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है. गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के दाता हैं. इस दिन पूजा करने से बुद्धि तेज होती है और शिक्षा में सफलता मिलती है. यह व्रत घर में सुख-समृद्धि लाता है और धन-धान्य की वृद्धि करता है. सच्चे मन से यह व्रत करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह व्रत भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने और जीवन में शुभता लाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है|
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आज से शुरू हो रही है जगन्नाथ रथ यात्रा

  • आज मंदिरों से निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, करेगी नगर भ्रमण
जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो रही है। 27 जून 2025 को भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री जगन्नाथ जी यानी श्री कृष्ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलेंगे। जहां भक्त भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं, वहीं साल में एक बार भगवान अपने भक्तों से मिलने ओडिशा के पुरी में रथ यात्रा के जरिए नगर भ्रमण पर आते हैं और इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है।
यह परंपरा न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। हर साल आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को जगन्नाथ जी की वापसी के साथ यात्रा का समापन होता है। रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश-दुनिया से भक्त पुरी पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होता है और भगवान का रथ खींचता है, उसे 100 यज्ञ करने के बराबर पुण्य मिलता है।
आज मंदिरों से निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, करेगी नगर भ्रमण
रामनगरी अयोध्या में जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर भव्य रथयात्रा निकालने की परंपरा है। यह परंपरा हर साल बड़ी भव्यता के साथ निभाई जाती है। इस साल भी शुक्रवार को रामनगरी के 10 मंदिरों से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी से बीमार चल रहे भगवान जगन्नाथ गुरुवार को स्वस्थ हो गए। 10 दिनों से उनका इलाज चल रहा था। बीमारी के कारण भगवान जगन्नाथ दर्शन नहीं दे रहे थे। मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। इससे पहले भगवान का भव्य श्रृंगार कर आरती-पूजन किया गया। शुक्रवार को भगवान रथ पर सवार होकर निकलेंगे और भक्तों को दर्शन देंगे।
राम मंदिर के पास स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के महंत राघव दास ने बताया कि प्रतिपदा यानी गुरुवार को भगवान स्वस्थ हो गए हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद उन्हें खिचड़ी का भोग लगाया गया। इससे पहले पंचामृत अभिषेक के बाद भव्य श्रृंगार हुआ।
नाम संकीर्तन का क्रम जारी है। बताया गया कि शुक्रवार को धूमधाम से शोभा यात्रा निकाली जाएगी। दशरथ महल, मणिरामदास छावनी, चारधाम मंदिर समेत अन्य मंदिरों में रथयात्रा महोत्सव की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। भगवान राम और भगवान जगन्नाथ में एकता है। भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण का उत्तराधिकारी माना जाता है, जिनके पूर्ववर्ती भगवान राम हैं। जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य के अनुसार युग और लीला में अंतर है, लेकिन भगवान राम, भगवान कृष्ण या जगन्नाथ एक ही हैं। यह एकता रामनगरी के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर, मणिरामदास छावनी परिसर स्थित जगन्नाथ मंदिर और राम कचहरी मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों से स्थापित होती है।
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आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू, राशि के अनुसार करें ये उपाय, परेशानियां होंगी

मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि का त्योहार साल में चार बार मनाया जाता है, जिसमें दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्रि होती है. आषाढ़ महीने में पड़ने वाली नवरात्रि को आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. इसमें 10 महाविद्या की पूजा होती है|
इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत आज गुरुवार 26 जून 2025 से हो चुकी है और 4 जुलाई को इसका समापन होगा. इस नौ दिनों में चारों ओर भक्ति-भाव का माहौल रहेगा. शास्त्रों में नवरात्रि के दौरान पूजा, व्रत, दान आदि के महत्व के बारे में बताया गया है. इसी तरह ज्योतिष में भी ऐसे चमत्कारिक उपाय बताए गए हैं, जिन्हें राशिनुसार करने से मां भवानी की कृपा मिलती है औऱ सारे संकट दूर हो जाते हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली से जानते हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में किए जाने वाले उपायों के बारे में|
मेष राशि के लिए उपाय:- मां चंद्रघंटा को लाल चुनरी, लाल पुष्प अर्पित करते हुए हल्दी की माला से ऊँ देवी चन्द्रघण्टायै नमः मंत्र का जप करें. घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है|
वृषभ राशि के लिए उपाय:- मां कालरात्रि को सफेद पुष्प, फल अर्पित करते हुए क्लीं ऊँ ऐं श्री कालिकायै नमः मंत्र की एक माला का जाप करें साथ ही देवी कवच का पाठ करना आपके लिए लाभदायक रहेगा|
मिथुन राशि के लिए उपाय:- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें और सफेद मिठाई का भोग लगाते हुए ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः मंत्र का जाप करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदायी है|
कर्क राशि के लिए उपाय:- मां शैलपुत्री को गुलाब के पुष्प, चुनरी अर्पित कर खीर का भोग लगाते हुए ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जाप करें. लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करें. भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती है|
सिंह राशि के लिए उपाय:- महागौरी की पूजा-आराधना करते हुए ऊँ श्रीं क्लीं हृं वरदायै नमः मंत्र का जाप करें साथ ही काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं|
कन्या राशि के लिए उपाय:- माता कात्यायनी की पूजा करें और हरे वस्त्र अर्पण करते हुए ऊँ देवी कात्यायन्यै नमः मंत्र का जाप करें. दुर्गा चालीसा का पाठ करें. विवाह संबंधित बाधाएं दूर होंगी और स्वास्थ्य सुधरेगा|
तुला राशि के लिए उपाय:- स्कंदमाता को सफेद पुष्प की माला अर्पित कर खीर का भोग लगाते हुए ऊँ हृ क्लीं स्वमिन्यै नमः मंत्र की एक माला का जाप करने के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां श्रेष्ठ फल प्रदान करती है|
वृश्चिक राशि के लिए उपाय:- मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना करते समय ऊँ ऐं हृं देव्यै नमः मंत्र का जप करने पर मां आपको विशेष फल प्रदान करेगी. ऐसा माना जाता है कि, देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई|
धनु राशि के लिए उपाय:- शैलपुत्री की पूजा-उपासना करते हुए ऊँ ऐं हृं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः मंत्र की एक माला का जाप करते हुए. लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करें. भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती है|
मकर राशि के लिए उपाय:-देवी यंत्र स्थापित कर ब्रह्मचारिणी की उपासना करते हुए ऊँ हृं श्री अम्बिकायै नमः मंत्र का जाप करें. साथ ही तारा कवच पाठ करें. मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती है|
कुंभ राशि के लिए उपाय:- महागौरी स्वरूप की उपासना करते हुए ऊँ श्री क्लीं हृं वरदात्र्यै नमः मंत्र का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं. दुर्गा सप्तशती के कवच का पाठ करें और माता को तिल के लड्डू अर्पित करें|
मीन राशि के लिए उपाय:- शैलपुत्री माता की चौकी के सामने देसी घी का एक मुखी दीपक जलाएं और केसरयुक्त खीर का भोग लगाते हुए माँ दुर्गा का मंत्र “ऊं ऐं हृं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र की एक माला जाप करें|
 
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कल से शुरू होगी भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा

पुरी। ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ होता है, जो एक भव्य और ऐतिहासिक उत्सव माना जाता है। इस वर्ष यह रथ यात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार से शुरू हो रही है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा तीन भव्य रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे। भगवान जगन्नाथ नंदीघोष रथ पर, बलभद्र तालध्वज पर, और सुभद्रा दर्पदलन रथ पर विराजमान होंगी।
यह रथ यात्रा कुल 12 दिनों तक चलेगी और इसका समापन 8 जुलाई 2025 को नीलाद्रि विजय के साथ होगा, जब भगवान पुनः अपने मूल मंदिर में लौटेंगे। हालांकि रथ यात्रा का आयोजन 12 दिनों का होता है, इसकी तैयारियाँ महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। इस रथ यात्रा के दौरान कई धार्मिक रस्में, अनुष्ठान और विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आइए आगे जानें इस यात्रा के शुभ मुहूर्त, प्रमुख रस्में और दिनवार पूरा शेड्यूल।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 तिथि-
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। पंचांग के अनुसार, इस बार यह तिथि 26 जून 2025 को दोपहर 1:24 बजे से शुरू होकर 27 जून को सुबह 11:19 बजे तक रहेगी। चूंकि उदयातिथि (सूर्योदय के समय की तिथि) को ही धार्मिक कार्यों के लिए मान्यता दी जाती है, इसलिए रथ यात्रा का शुभारंभ 27 जून 2025, शुक्रवार को होगा।
शुभ योग :
इस पावन दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग, पुनर्वसु नक्षत्र और पुष्य नक्षत्र जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं।
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रातः 5:25 बजे से प्रातः 7:22 बजे तक
पुनर्वसु नक्षत्र: प्रातः 7:22 बजे तक, इसके बाद पुष्य नक्षत्र शुरू हो जाएगा
अभिजीत मुहूर्त : प्रातः 11:56 बजे से दोपहर 12:52 बजे तक
इन शुभ योगों के चलते, 27 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का प्रारंभ धार्मिक दृष्टि से अत्यंत मंगलकारी रहेगा।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का पूरा शेड्यूल:
27 जून, शुक्रवार – रथ यात्रा की शुरुआत:
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग भव्य रथों पर सवार होकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा करते हैं। हजारों भक्त भारी रस्सों से इन रथों को खींचते हैं। रथ पर चढ़ाने से पहले पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ की रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ का चबूतरा साफ करते हैं।
1 जुलाई, मंगलवार – हेरा पंचमी:
जब भगवान गुंडिचा मंदिर में पाँच दिन बिताते हैं, तब पाँचवें दिन देवी लक्ष्मी नाराज़ होकर भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं। यह रस्म हेरा पंचमी कहलाती है।
4 जुलाई, शुक्रवार – संध्या दर्शन:
गुंडिचा मंदिर में विशेष दर्शन का आयोजन होता है। इस दिन भक्तजन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करते हैं और इसे बड़ा शुभ अवसर माना जाता है।
5 जुलाई, शनिवार – बहुदा यात्रा:
भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ रथों पर सवार होकर वापस जगन्नाथ मंदिर की ओर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा कहा जाता है। रास्ते में वे मौसी माँ के मंदिर (अर्ध रास्ते में) रुकते हैं, जहाँ उन्हें ओड़िशा की खास मिठाई 'पोडा पिठा' का भोग लगाया जाता है।
6 जुलाई, रविवार – सुना बेशा:
इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। यह अत्यंत भव्य श्रृंगार होता है जिसे देखने हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
7 जुलाई, सोमवार – अधरा पना:
इस दिन भगवानों को एक विशेष मीठा पेय 'अधरा पना' अर्पित किया जाता है, जो बड़े मिट्टी के घड़ों में तैयार होता है। इसमें पानी, दूध, पनीर, चीनी और कुछ पारंपरिक मसाले मिलाए जाते हैं।
8 जुलाई, मंगलवार – नीलाद्रि विजय (समापन):
यह रथ यात्रा का अंतिम और सबसे भावनात्मक दिन होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मुख्य मंदिर में लौटते हैं और गर्भगृह में पुनः स्थापित होते हैं। इसे ‘नीलाद्रि विजय’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – "नीलाचल (पुरी) की पुनः विजय"।
जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व :
हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस यात्रा में भाग लेता है या भगवान के रथ को खींचता है, उसके जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति को ऐसा फल प्राप्त होता है, जैसे उसने सौ यज्ञों का आयोजन किया हो। इसलिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी में इस यात्रा का हिस्सा बनने आते हैं, ताकि उन्हें आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
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सूर्य देव को जल चढ़ाने से होते हैं ये विशेष लाभ

  • जानिए...अर्घ्य देने के नियम
हिंदू धर्म में सूर्य देव को आत्मा का प्रतीक और नवग्रहों के अधिपति के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन प्रातः सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। हालांकि सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, तभी इसका शुभ फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं सही फल पाने के लिए सूर्य को अर्घ्य देने की विधि क्या है और इससे क्या लाभ मिलते हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने के लाभ-
नियमित रूप से अर्घ्य देने से जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है। इससे कुंडली में यदि सूर्य से संबंधित दोष हों तो वह भी दूर होते हैं। रविवार को सूर्य पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यदि विवाह में देरी हो रही है, तो प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करने से अच्छे प्रस्ताव आने लगते हैं। इससे आत्मविश्वास और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
सूर्य को अर्घ्य देने की सही विधि-
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें ताकि तन और मन शुद्ध रहें।
सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके कुश के आसन पर खड़े हों।
तांबे के लोटे में जल लें और उसमें मिश्री, रोली, चंदन, लाल पुष्प और अक्षत मिलाएं।
जैसे ही सूर्य की नारंगी किरणें दिखाई दें, दोनों हाथों से इस तरह जल अर्पित करें कि जल की धार के बीच से सूर्य दिखाई दें।
कोशिश करें कि जल सीधा धरती पर न गिरे, बल्कि आसन या किसी पात्र में जाए। इससे जल में समाहित ऊर्जा व्यर्थ नहीं जाती।
अर्घ्य देते समय इन मंत्र का 11 बार जप करें- “ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते, अनुकंपय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर”
इसके बाद यह मंत्र पढ़ें- “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्र किरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा”
अर्घ्य देने के बाद सीधे हाथ की अंजलि में थोड़ा जल लें और अपने चारों ओर छिड़कें, फिर तीन बार दाएं घूमें।
जिस स्थान पर पूजा की है, उसे नमन करें और आसन हटा लें।
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शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग : आध्यात्मिक प्रतीक और अंतर

  • शिवलिंग के प्रकार- स्वयंभू, देव, असुर और मनुष्य शिवलिंग
नई दिल्ली। सनातन धर्म में शिवलिंग की अपनी महिमा है। शिवलिंग को साक्षात आत्म रूप माना गया है। लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग के तीन मूल भाग हैं, जिनके मूल में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु और ऊपर के भाग में महादेव स्थित हैं। इसके साथ ही वेदी में महादेवी विराजती हैं। शिव पुराण के अनुसार 10 तरह के शिवलिंग बताए गए हैं। शिवलिंग को परम ब्रह्म तथा संसार की समस्त ऊर्जा का प्रतीक भी बताया गया है।
'शिव' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'कल्याणकारी' या 'उपकारी' होता है। यजुर्वेद में शिव को शांतिदूत माना गया है। 'शि' का अर्थ है 'पापों का नाश करने वाला', जबकि 'वा' का अर्थ है 'दाता'। संस्कृत में 'लिंग' का अर्थ है 'चिन्ह'। मतलब 'शिवलिंग' का अर्थ है 'प्रकृति के साथ एकीकृत शिव', यानी 'परम पुरुष का प्रतीक'।
वैसे शिवलिंग को सही अर्थ में समझा जाए तो शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योति पिंड होता है। शिवलिंग ब्रह्मांड और उसकी समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है। जो शिवलिंग स्वयं प्रगट हुए हैं, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। इसके साथ ही प्राचीन काल में मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है। असुरों के द्वारा स्थापित शिवलिंग को असुर लिंग कहा गया है। वहीं, जिस शिवलिंग को देवताओं द्वारा स्थापित किया गया, उसे देव लिंग कहा गया है।
प्राचीन काल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श शिवलिंग कहा गया। वहीं, प्राचीन काल या मध्य काल में ऐतिहासिक मनुष्यों, राजा-महाराजाओं या महापुरुषों द्वारा स्थापित शिवलिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है।
वैसे शास्त्रों में 5 प्रमुख प्रकार के शिवलिंग का जिक्र है, जिसमें पत्थर से बने शिवलिंग को शैलजा शिवलिंग, रत्नों से बने शिवलिंग को रत्नजा, धातु से बने शिवलिंग को धातुजा, लकड़ी से बने शिवलिंग को दारुजा, और मिट्टी से बने शिवलिंग को मृतिका शिवलिंग कहते हैं।
शिवपुराण के विश्वेश्वर संहिता के अनुसार शिवलिंग तीन प्रकार के बताए गए हैं, जिन्हें उत्तम, मध्यम और अधम कहा गया है। उत्तम शिवलिंग उसे कहते हैं जिसके नीचे वेदी बनी हो और वह वेदी से चार अंगुल ऊंचा हो। जो शिवलिंग वेदी से चार अंगुल से कम होता है, वह मध्यम कोटि का माना गया है, और जो इससे भी कम हो, वह अधम श्रेणी का माना गया है।
अब आपको हम बताते हैं कि शिवलिंग के जो दो प्रकार विशेष हैं, वे हैं शक्ति शिवलिंग और विष्णु शिवलिंग। शक्ति शिवलिंग वह शिवलिंग है जो सीधे जमीन पर स्थित हो या जमीन से सटा हो और जिसके नीचे डमरू की आकृति नहीं हो। जो शिवलिंग डमरू की आकृति पर टिका है, वह विष्णु शिवलिंग है। ऐसे में शक्ति शिवलिंग की पूजा हमेशा बैठकर और विष्णु शिवलिंग की पूजा हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए।
ज्योतिर्लिंग के बारे में जान लें कि यह भगवान शिव का स्वयंभू अवतार है। ज्योतिर्लिंग का अर्थ है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना। ज्योतिर्लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं होते हैं बल्कि वे स्वयंभू होते हैं और उन्हें सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाए रखने के लिए स्थापित किए गए हैं। ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इन जगहों पर भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में वह उत्पन्न हुए थे।
12 ज्योतिर्लिंगों का शिव पुराण में जिक्र है। ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव स्वयं लिंग स्वरूप में प्रकट हुए। इनके नाम सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमाशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, और घृष्णेश्वर हैं।
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। इसलिए सभी ज्योतिर्लिंग शक्ति शिवलिंग हैं। इनमें से नागेश्वर का ज्योतिर्लिंग अपवाद है। ऐसे में जान लें कि शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक होता है, जबकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के ज्योति स्वरूप का प्रतीक होता है।
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आषाढ़ अमावस्या पर करें ये पांच महत्वपूर्ण काम, दूर होंगी सभी बाधाएं

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है। हर माह इस तिथि पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर भी स्नान, दान और पूजा का विधान है। अमावस्या तिथि पितरों को प्रसन्न करने से लिए भी सबसे उत्तम मानी जाती है। आज आषाढ़ मास की अमावस्या है। इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में रहेंगे और मृगशिरा नक्षत्र का प्रभाव रहेगा। ऐसे में यह तिथि पितृ तर्पण, कालसर्प योग निवारण, तंत्र-शांति और दरिद्रता नाश के लिए विशेष मानी गई है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए पांच कार्य जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं कि इस दिन कौन से पांच काम करने चाहिए।
पितृ तर्पण करें:
सुबह स्नान के बाद कुशा, काले तिल और जल से तर्पण करें। यह पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” मंत्र का जप करें।
पीपल की पूजा करें:
इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना गया है। पीपल पर जल चढ़ाकर दीप जलाएं और सात बार परिक्रमा करें।
पुण्य हेतु दान:
आषाढ़ अमावस्या के दिन तिल, अन्न, वस्त्र, जूते, छाता, दक्षिणा आदि का दान करें। दान किसी जरूरतमंद या वृद्ध ब्राह्मण को करें। इसका अलावा आप उन्हें भोजन भी करवा सकते हैं।
जल स्रोतों की सफाई:
जल शुद्धि इस दिन का एक महत्वपूर्ण अंग है। तालाब, कुएं आदि की सफाई करें या वहां दीप जलाएं। गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक भी लाभकारी होता है।
कालसर्प और राहु-केतु दोष निवारण:
इस रात्रि को हनुमान जी या कालभैरव की पूजा विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। इससे राहु-केतु और कालसर्प दोष से राहत मिलती है, साथ ही जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं।
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26 जून से शुरू हो रहे हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि, भूलकर भी न करें ये गलती

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि नौ दिवसीय दुर्गा पूजा का प्रतीक है. हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. हर वर्ष 4 बार नवरात्रि का पर्व पड़ता है. जिसमें 2 नवरात्रि सार्वजनिक होती हैं और 2 गुप्त नवरात्रि. सार्वजनिक नवरात्रि में शारदीय और चैत्र नवरात्रि होती हैं और गुप्त नवरात्रि में आषाढ़ और माघ के महीने में पड़ती हैं. इसमे मां दुर्गा की साधना गोपनीय तरह से की जाती है. आषाढ़ माह की नवरात्रि 26 जून, गुरुवार से शुरू हो रहे हैं|
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में देवी ने नौ स्वरुपों की आरधना की जाती है. इस बार गुप्त नवरात्रि 26 जून से शुरू होकर 4 जुलाई तक रहेंगे, जिसमें देवी की गुप्त साधना की जाएगी. जानते हैं इस दिन घटस्थापना का मुहूर्त और साथ ही गुप्त नवरात्रि के दौरान किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए|
घटस्थापना का मुहूर्त-
इस दिन घटस्थापना का मुहूर्त शुभ सुबह 05:45 to 07:14 तक रहेगा.
घटस्थापना का अभिजित मुहूर्त- 11: 46 से 12:38 तक रहेगा.
अवधि अवधि कुल 52 मिनट रहेगी|
इन बातों का रखें ख्याल-
गुप्त नवरात्रि के दौरान मांस-मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन ना करें. इस दौरान तंत्र साधना की जाती है.इसीलिए जरूरी है पवित्रता बनाएं रखें. इसका सेवन करने से रोग, दरिद्रता आ सकती है|
गुप्त नवरात्रि के दौरान साफ सफाई का विशेष ख्याल रखें. इस दौरान अपवित्र और गंदे स्थान पर पूजा-अर्चना ना करें. तन, मन और स्थान को पवित्र करके ही पूजा पाठ करें. ऐसा करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद बना रहेगा. अव्यवस्थित स्थान पर भी पूजा ना करें, ऐसा करने से आर्थिक हानि होने की संभावना है|
गुप्त नवरात्रि के दौरान क्रोध और वाणी की कटुता, और अपशब्दों से दूरी बनाकर रखें. गुप्त नवरात्रि के दौरान किसी का अपमान ना करें, झूठ ना बोलें. ऐसा करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता और विभिन्न कार्यों में मुश्किलें आ सकती है
पूजा की सामग्री और माता की मूर्ति को गंदे हाथों से स्पर्श ना करें. ऐसा करने से देवी मां की कृपा नहीं मिलती. देवी मां और उनकी से जुड़ी किसी भी चीज का अनादर ना करें. ऐसा करने से घर में अशांति आ सकती है|
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दुर्घटना और अकाल मृत्यु के भय को दूर करने प्रेमानंद महाराज ने बताए 5 उपाय

प्रेमानंद महाराज ने एक कथा के दौरान दुर्घटना व अकाल मृत्यु के भय को दूर करने के लिए कुछ आसान से उपाय बताए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति ने अगर इन उपायों को अपना लिया तो उसका कभी अमंगल नहीं होगा।प्रेमानंद महाराज आधुनिक समाज के उन चुनिंदा गुरुओं में से एक हैं जिनके ज्ञान को हर तबके के लोग ग्रहण कर रहे हैं। महाराज वृंदावन में निवास करते हैं और हजारों की संख्या में भक्त उनके दरबार में माथा टिकाने आते हैं। उनका आध्यात्मिक ज्ञान और सरल स्वभाव हर किसी को मोहित कर देता है। राधा रानी के परम भक्त प्रेमानंद जी की बातों को आत्मसात करके आप भी अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आ सकते हैं।
प्रेमानंद ने बताए 5 उपाय-
रोज ठाकुर जी के चरणामृत पियो, समस्त रोगों का नाश चरणामृत है।
घर से निकलने से पहले कम से कम 11 बार इस मंत्र का जप करें- ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।। इसके जप से कभी आपका एक्सीडेंट नहीं होगा। कभी आप दुर्घटना में नहीं फंसेगे और फंसेंगे को आसानी से निकल आएंगे।
इसके अलावा, 24 घंटे में 20 मिनट निकालो और भगवान के नाम का जप करो। प्रभु का नाम संकीर्तन करो।
अपने घर में विराजमान ठाकुर जी को रोजाना 11 बार साष्टांग दंडवत प्रणाम करो। कहते हैं कि कृष्ण को जो प्रणाम करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
वृंदावन की रज ले लो और उसे अपने सिर पर स्थान दो। फिर आपकी रक्षा स्वंय कृष्ण करेंगे और आपका जीवन मंगलमय होगा।
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CM विष्णुदेव साय ने काशी में बाबा विश्वनाथ के दिव्य दर्शन किए

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने काशी में बाबा विश्वनाथ के दिव्य दर्शन किए। मुख्यमंत्री साय ने x में बताया, आज देवाधिदेव महादेव की पावन नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ जी के दिव्य दर्शन और पूजन का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। सनातन संस्कृति की धरा, प्राचीन सभ्यता की गौरवगाथा और आध्यात्मिक चेतना की अनंत ज्योति से आलोकित अनुपम काशी में बाबा के श्रीचरणों में नमन कर संपूर्ण सृष्टि के कल्याण, जन-जन के मंगल एवं विश्व शांति की कामना की।
आज देवों के अधिदेव, भगवान शंकर की पावन नगरी काशी में स्थित ‘काशी के कोतवाल’ श्री काल भैरव जी महाराज के मंदिर में दर्शन और पूजन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पावन अवसर पर बाबा की आराधना की और संपूर्ण राष्ट्र के कल्याण के लिए प्रार्थना की। बाबा भैरवनाथ की कृपा समस्त देशवासियों पर बनी रहे और सभी के जीवन में सुरक्षा, समृद्धि व मंगल का आलोक निरंतर प्रसारित होता रहे यही कामना है।
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