दुनिया-जगत

31 अगस्त की तारीख अमेरिका के गले की फांस बनी

अफगानिस्तान से पूरी तरह निकलने के लिए तय की गई 31 अगस्त की तारीख अमेरिका के गले की फांस बन गई है. जो बाइडेन पर तारीख बढ़ाने का दबाव है लेकिन तालिबान ने कह दिया है कि कोई बदलाव बर्दाश्त नहीं होगा.पश्चिम देश अफगानिस्तान से अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अभी भी संघर्ष कर रहे हैं. काबुल एयरपोर्ट पर भीड़ बढ़ रही है और सुविधाएं इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संभालने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. एयरपोर्ट फिलहाल पश्चिमी सेनाओं के नियंत्रण में है लेकिन देश छोड़ने को उत्सुक लोगों के बीच अफरा-तफरी बढ़कर कई बार भगदड़ में बदल चुकी है और गोलीबारी भी हो चुकी है. इस कारण करीब 20 लोगों की जान जा चुकी है. 31 अगस्त की तारीख अमेरिका ने ऐलान किया था कि उसका 20 साल लंबा अभियान 31 अगस्त को खत्म हो जाएगा और उसके सभी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह तारीख अप्रैल में घोषित की थी.


लेकिन सभी लोगों को निकालने का काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है इस कारण बहुत से देश चाहते हैं कि अमेरिका अपनी समयसीमा को 31 अगस्त से बढ़ा दे. जो बाइडेन ने पिछले हफ्ते कहा भी था कि जरूरत पड़ने पर अमेरिकी सैनिक ज्यादा समय तक रुक सकते हैं. लेकिन तालिबान ने स्पष्ट कर दिया है कि तारीख में किसी तरह का बदलाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा होता है तो अमेरिका को नतीजे भुगतने होंगे. तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने अमेरिकी समाचार चैनल स्काई न्यूज को बताया, "अगर अमेरिका और ब्रिटेन लोगों को निकालने के लिए अतिरिक्त समय चाहते हैं तो जवाब है, नहीं. ऐसा नहीं हुआ तो नतीजे भुगतने होंगे.” तस्वीरों मेंः आतंक से निजात बाद में बीबीसी से बातचीत में शाहीन ने कहा कि उचित दस्तावेजों के साथ कोई भी अफगान व्यवसायिक उड़ानों से देश से जा सकता है. शाहीन ने कहा, "यह वजह कोई बहुत वजनदार नहीं है कि बहुत सारे अफगान हैं जो विदेश सेनाओं के साथ काम करते थे और उन्हें निकाला नहीं जा सका है. 31 अगस्त के बाद यहां रुकना दोहा समझौते का उल्लंघन होगा.

” अमेरिका का रुख अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उम्मीद जताई है कि तारीख बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. रविवार को उन्होंने कहा कि इस बारे में बातचीत की जा रही है. अमेरिका ने तालिबान के काबुल पर नियंत्रण करने के बाद 37 हजार लोगों को वहां से निकाला है. अमेरिकी रक्षा मंत्री जॉन किर्बी ने कहा कि अमेरिका इस महीने के आखिर तक लोगों को निकालने का काम पूरा करने पर ध्यान दे रहा है. उन्होंने कहा, "हमारा पूरा ध्यान इस महीने के आखिर तक ज्यादा से ज्यादा लोगों को निकाल लेने पर है. और अगर समयसीमा बढ़ाने पर बातचीत की जरूरत पड़ती है तो हम सही समय पर यह बातचीत करेंगे.” बाइडेन के सुरक्षा सलाहकार जेक सलीवन ने कहा है कि अमेरिका पहले से ही तालिबान से इस बारे में बातचीत कर रहा है. उन्होंने कहा, "हमारी राजनीतिक और रक्षा अधिकारियों के जरिए तालिबान से रोजाना बात हो रही है.
 
लेकिन आखिर में समयसीमा बढ़ाने का फैसला राष्ट्रपति बाइडेन का होगा.” क्या चाहता है यूरोप? ब्रिटेन का मानना है कि समयसीमा बढ़ाई जानी चाहिए. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन मंगलवार को जी-7 की बैठक में अमेरिका से समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध करना चाहते हैं. लेकिन ब्रिटेन के सेना मंत्री जेम्स हीपी ने स्काई न्यूज से कहा कि इस बारे में बातचीत जी-7 के नेताओं के बीच नहीं बल्कि तालिबान के साथ होनी है. फ्रांस ने भी नजदीक आती समयसीमा को लेकर चिंता जताई है और लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए ज्यादा समय की जरूरत बताई है. जर्मनी के विदेश मंत्री हाईको मास ने कहा है कि वह नाटो और तालिबान दोनों के साथ बातचीत कर रहे हैं कि काबुल एयरपोर्ट को समयसीमा के बाद भी काम करते रहने दिया जाए. शनिवार को यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख योसेप बोरेल ने कहा था कि दसियों हजार अफगान कर्मचारियों और उनके परिजनों को 31 अगस्त की समयसीमा से पहले निकालना गणीतीय आधार पर असंभव है. वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी) औरतों के लिए क्या बदला |
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बांग्लादेश के दीनाजपुर में बिजली गिरने से सात की मौत, तीन घायल

बंग्लादेश :- उत्तरी जिला दिनाजपुर में अलग-अलग जगहों पर बिजली गिरने से सोमवार को अपराह्न में सात लोगों की मौत हो गयी तथा तीन लोग जख्मी हो गए।   पुलिस तथा स्थानीय लोगों ने बताया कि दिनाजपुर सदर उपजिला के उपनगर नंबर-8 में बिजली गिरने से चार नाबालिगों की मौत हो गयी। वहीं चिरीरबंदर उपजिला में अपराह्न तीन बजे बिजली गिरने से तीन युवकों की मृत्यु हो गयी।  

पुलिस के जानकारी  मुताबिक मृतकों की पहचान सज्जाद हुसैन (13), अपान (14), हसन अली (12),  मीम मंडल (13), मकशेद अली 24), सामू मोहम्मद (23) तथा अल्ताफ हुसैन (23) के तौर पर हुयी है। इसके अलावा दिनाजपुर सदर उपजिला के निश्चिंतपुर गांव निवासी मोमिनुल इस्लाम (13), अतीक (15) और एक अन्य अज्ञात किशोर घायल हो गए। 
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भारतीय राजदूत ने व्हाइट हाउस के साथियों के लिए किया रात्रिभोज का आयोजन

अमेरिका :- भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने यहां अपने आधिकारिक आवास पर व्हाइट हाउस के साथियों की रात्रिभोज पर मेजबानी की और दुनिया के सबसे पुराने एवं सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंधों पर उनके साथ बातचीत की। संधू ने एक ट्वीट में कहा, 'आज शाम इंडिया हाउस में व्हाइट हाउस के सहयोगियों की मेजबानी करने का सौभाग्य मिला।' व्हाइट हाउस के सहयोगियों के साथ शुक्रवार के रात्रिभोज से पहले संधू ने जुलाई में व्हाइट हाउस में उनके साथ संवाद किया था। संधू इस बातचीत में बाइडन प्रशासन के तहत आमंत्रित किए जाने वाले पहले व्यक्ति थे। व्हाइट हाउस फैलोशिप 1964 में स्थापित एक गैर-पक्षपातपूर्ण कार्यक्रम है जिसके तहत युवा नेताओं को सरकार के उच्चतम स्तरों पर काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करने के लिए संघीय सरकार में शामिल करता है।


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नेपाल : देसी इलेक्ट्रिक बाइक की वायु प्रदूषण पर चोट

पेट्रोल से इलेक्ट्रिक की दौड़ में जल्दी प्रवेश करने वाले नेपाल की सड़कों पर दसियों हजार इलेक्ट्रिक कारें, बसें और रिक्शा दौड़ रहे हैं लेकिन कुछ ही मोटरसाइकिलें हैं.अपनी आकर्षक ई-मोटरबाइकों के लॉन्च के साथ स्टार्टअप यात्री मोटरसाइकिल्स का मानना ​​है कि यह नेपालियों को इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर खींच सकती है, कंपनी का मानना है कि इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिलें देश की जहरीली हवा को साफ कर सकती हैं, पैसे बचा सकती हैं और पेट्रोल आयात कम कर सकती हैं. साथ ही देश अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद हासिल कर सकता है.  

यात्री मोटरसाइकिल्स के संस्थापक आशिम पांडे के मुताबिक, "हमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर जाना होगा" दुनिया भर में निर्माता सस्ते, कम उत्सर्जन वाले वाहनों को विकसित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. बढ़ती संख्या में देश ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए नई जीवाश्म ईंधन से चलने वाली कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की योजना की घोषणा कर रहे हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की कमी नेपाल ने जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते के तहत कहा की थी कि 2020 तक इसके 20 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक होंगे, लेकिन क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर वेबसाइट के मुताबिक वर्तमान में एक फीसदी ही ऐसे वाहन हैं. देखा जाए तो नेपाल विश्व स्तर पर कार्बन का एक छोटा उत्सर्जक देश है, जिसका 40 फीसदी हिस्सा जंगलों से घिरा है 

नेपाल की अधिकांश बिजली हाइड्रोपावर से पैदा होती है. लेकिन देश में उत्सर्जन बढ़ रहा है. इसके कारण हैं पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों का आयात और जीवाश्म ईंधन की खपत. सरकार ने ई-वाहनों पर आयात कर कम और सीमा शुल्क घटाकर देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं निर्धारित की हैं. देश में अधिक से अधिक चार्जिंग स्टेशनों की भी स्थापना की जा रही है. नेपाल के इलेक्ट्रिक वाहन संघ के मुताबिक देश में वर्तमान में लगभग 700 इलेक्ट्रिक कारें, 5,000 इलेक्ट्रिक स्कूटर, और 40,000 इलेक्ट्रिक रिक्शा हैं.|
 
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विदेश मंत्री एस. जयशंकर अफगान मुद्दे पर करेंगे सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता

 न्यूयार्क, प्रेट्र:-  विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत की सुरक्षा परिषद में मौजूदा अध्यक्षता के चलते इस हफ्ते दो उच्चस्तरीय बैठकों की अध्यक्षता करेंगे। उन्होंने कहा कि वह अफगानिस्तान के हालात पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चा होने की उम्मीद करते हैं। जयशंकर सोमवार को अफगानिस्तान के हालात पर सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में हिस्सा लेने न्यूयार्क पहुंचे हैं। उनका यह दौरा महज दस दिनों में दूसरी बार है। इससे पहले वह अगस्त की ही शुरुआत में यहां आए थे। जयशंकर ने ट्वीट करके कहा कि मंगलवार को अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की चर्चा अहम रहने वाली है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता जाहिर करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे पर गहन चिंतन होगा। उन्होंने इस विषय में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से भी चर्चा की है। साथ ही काबुल में एयरपोर्ट की व्यवस्था को सुचारु रूप से फिर बहाल करने की आवश्यकता पर बल दिया है। इस संबंध में उन्होंने अमेरिकी प्रयासों की भी सराहना की है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि ब्लिंकन ने अफगानिस्तान के ताजा हालात पर जयशंकर से वार्ता की है। जयशंकर आगामी 19 अगस्त को भी आतंकवाद रोधी विषय पर एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता करेंगे। अगस्त में 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभालते ही भारत ने नौसैनिक सुरक्षा, आतंकवाद प्रतिरोधक क्षमता और शांति अभियानों पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कार्ययोजना बनाई है।

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जामनगर पहुंचा वायुसेना का विमान, काबुल से 120 भारतीयों को लाया गया वापस

भारतीय राजदूत समेत अन्य नागरिकों को लेकर काबुल से रवाना हुआ वायुसेना का विमान गुजरात के जामनगर पहुंच गया है. इस विमान में करीब 120 लोगों को सुरक्षित लाया गया है.कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक वीडियो रिट्वीट किया है, जिसमें तालिबानी लड़ाके काबुल पहुंचने के बाद भावुक हो गए. शशि थरूर ने इस वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है कि ऐसा लग रहा है कि यहां पर दो तालिबानी मलियाली हैं. इनमें से एक वो जो 'Samsarikkette' कह रहा है और दूसरा वो जो उसे समझ पा रहा है. शशि थरूर के इस रिट्वीट पर विवाद भी हुआ है और लोग अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

 #Taliban fighter weeping in Joy as they reached outside #Kabul knowing there victory is eminent#Afganistan pic.twitter.com/bGg3ckdju0

 

अफगानिस्तान के ताज़ा हालात को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा वीज़ा के नियमों में बदलाव किया गया है. अब एक e-Emergency X-Misc Visa" कैटेगरी बनाई गई है, जिसके जरिए अफगानिस्तान से आ रह लोगों को वीज़ा मिल पाएगा. बता दें कि बड़ी संख्या में लोग अफगानिस्तान से भागकर भारत आ रहे हैं, क्योंकि ऐसे हालातों में सबसे पास सुरक्षित देश भारत ही है |
 
 Indian Air Force C-17 aircraft that took off from Kabul with Indian officials has landed in #jamnagar pic.twitter.com/giMJy1BzqS

 

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आज सुबह भारतीय एनएसए अजीत डोभाल ने अमेरिकी एनएसए से बात की

 नई दिल्ली:-  तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में हालात बेहद खराब हो गए हैं. अफगानिस्तान से भारतीयों को सुरक्षित निकालने के मुद्दे पर आज सुबह भारतीय एनएसए अजीत डोभाल ने अमेरिकी एनएसए से बात की. एनएसए डोभाल ने अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिक और अधिकारियों को निकालने के मुद्दे पर चर्चा की. 

इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की थी. उन्होंने तालिबान के कब्जे वाले देश में प्रत्यक्ष हितों वाले विदेश मंत्रियों को फोन किया था. कॉल के बाद जयशंकर ने ट्वीट कर बताया कि अफगानिस्तान में नवीनतम घटनाओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने "काबुल में एयरपोर्ट के संचालन को बहाल करने की आवश्यकता के बारे में बताया. इस संबंध में चल रहे अमेरिकी कोशिशों की गहराई से सराहना करते हैं."

भारतीय राजदूत और अन्य कर्मियों को लेकर भारतीय वायुसेना का एक विमान मंगलवार को काबुल से भारत रवाना हुआ है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया कि यह फैसला किया गया है कि काबुल में भारत के राजदूत और उनके भारतीय कर्मियों को मौजूदा हालात के मद्देनजर तत्काल देश वापस लाया जाएगा.
बागची ने ट्वीट किया, 'मौजूदा हालात के मद्देनजर, यह फैसला किया गया है कि काबुल में हमारे राजदूत और उनके भारतीय कर्मियों को तत्काल भारत लाया जाएगा.' भारतीय वायुसेना का सी-17 विमान सोमवार को कुछ कर्मियों को लेकर भारत लौटा था और मंगलवार को दूसरा विमान भारत आ रहा है.| 
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काबुल एयरपोर्ट पर गोलीबारी में पांच लोगों की मौत

अफगानिस्तान में फंसे हजारों भारतीयों की चिंताएं और बढ़ गई हैं। सोमवार को काबुल एयरपोर्ट पर देश छोड़ने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ी थी और इस दौरान अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया। इस बीच फायरिंग की भी खबर है, जिसमें कम से कम 5 लोगों की मौत हुई है। इन घटनाओं के बाद काबुल से कॉमर्शियल उड़ानों को रोक दिया गया है। इसके चलते भारत आने वाली और भारत से काबुल जाने वाली उड़ानों पर भी रोक लग गई है। ऐसे में अफगानिस्तान से निकलने की आस लगाए हजारों भारतीयों को झटका लगा है। सोमवार को दोपहर 12:30 बजे एयर इंडिया का एक विमान दिल्ली से काबुल जाने वाला था, जो रद्द हो गया है।

अफगानिस्तान में फिलहाल एयरस्पेस को ही बंद कर दिया गया है। एयरपोर्ट अथॉरिटी की ओर से अपील की गई है कि लोग हवाई अड्डे पर न आएं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों की ओर से हवाई फायरिंग की गई थी, जिसके चलते भगदड़ मच गई। शायद यह भी वजह है, जिसके चलते लोगों की मौत हो गई। रविवार को ही अमेरिका ने कहा था कि उसके 6,000 सैनिक काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा करेंगे और लोगों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करेंगे। हालांकि ऐसा होता नहीं दिख रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया भर के कई देश अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से निकालने में जुटे हैं। लेकिन अब एयरपोर्ट बंद होने और उड़ानें ठप होने के चलते भारत समेत इन तमाम देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं।

पाकिस्तान, ईरान जैसे देशों से सटी अफगानिस्तान की तमाम सीमाओं पर तालिबान के लड़ाकों ने कब्जा जमा लिया है। ऐसे में एयरपोर्ट ही एकमात्र एग्जिट पॉइंट है, जिसके जरिए लोग अफगानिस्तान से निकल सकते हैं। लेकिन जिस तरह का नजारा काबुल से देखने को मिल रहा है, उससे लोगों में डर है कि यह आखिरी विकल्प भी जल्दी ही खत्म हो सकता है। ऐसे में लोग किसी भी विमान पर बैठकर अफगानिस्तान से निकलने की जुगत में हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो सर्कुलेट हो रहे हैं, जिसमें लोग विमानों पर लटकने तक की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।
 
बता दें कि रविवार को तालिबान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन पर कब्जा जमा लिया। वहीं अमेरिका समर्थित सरकार के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर ही भाग गए हैं। तालिबान ने अफगानिस्तान का नाम 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' रखने का ऐलान किया है। तालिबान के उपनेता मुल्ला अब्दुल गनी बारादर ने वीडियो संदेश में कहा, 'हमने कभी इस तरह की जीत की उम्मीद नहीं की थी। अब हमें अल्लाह के सामने अपनी विनम्रता दिखानी चाहिए।'
 
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अमेरिकी के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कार्यक्रम के आयोजन की उद्घोषणा

अमेरिकी राज्य टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कार्यक्रम के आयोजन की उद्घोषणा की है। गवर्नर एबॉट ने 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस से पहले समारोह के आयोजन के संबंध में घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान भारत के महावाणिज्य दूत असीम महाजन भी उपस्थित थे। भारत और टेक्सास के बीच मजबूत संबंध को रेखांकित करते हुए एबॉट ने कहा, ''भारत दुनिया में हमारा सबसे बड़ा लोकतांत्रिक सहयोगी है।'' उन्होंने बहुआयामी भारत-अमेरिका साझेदारी को प्रगाढ़ करने के लिए मिलकर काम करने की आशा व्यक्त की। 

महाजन को घोषणा-पत्र सौंपते हुए एबॉट ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में रविवार को गवर्नर के आवास को नारंगी और हरे रंग से प्रकाशित किया जाएगा। गवर्नर की उद्घोषणा के ब्योरे के अनुसार, ''ब्रिटिश शासन के तहत पीढ़ियों की अधीनता और महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक विरोध के एक लंबे अभियान के बाद 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने भारत के लोगों के लिए स्वतंत्रता के एक नए युग की शुरुआत की।'' 

गवर्नर ने कहा, ''पूरे टेक्सास में प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों के समुदायों ने लंबे समय से हमारे राज्य को अपना घर बताया है और टेक्सास को रहने योग्य, काम करने और परिवार के लिए सबसे अच्छी जगह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह वैश्विक साझेदारी आने वाली पीढ़ियों की खातिर हमारे लोगों की भावी सफलताओं को सुनिश्चित करती रहेगी। राज्य की प्रथम महिला सेसिलिया एबॉट इस महत्वपूर्ण अवसर पर सभी को शुभकामनाएं देने में मेरे साथ हैं।
 
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अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी पर बढ़ा इस्तीफा का दबाव

अमेरिका का प्रभाव हटने के साथ ही तालिबानी आतंकवादी पूरे अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. वे इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं. तालिबान ने अफगान के कई प्रांतों पर भी कब्जा कर लिया है.आतंकवादियों ने अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत घोर की प्रांतीय राजधानी पर अपना अधिकार जमा लिया है. इस बीच सूत्रों के हवाले से एक बड़ी खबर सामने आ रही है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया है. बताया जा रहा है कि वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं. तालिबानी आतंकी काबूल से सिर्फ 50 किलोमीटर ही दूर हैं 

आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की प्रगति जिस गति से हो रही है, उसने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है. यहां एक के बाद एक क्षेत्रीय राजधानियों पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होता जा रहा है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल स्थिति स्पष्ट रूप से विद्रोहियों के पक्ष में दिखाई दे रही है, जबकि अफगान सरकार सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.इस हफ्ते, एक लीक हुई अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट ने अनुमान लगाया कि काबुल पर कुछ हफ्तों के भीतर हमला हो सकता है सरकार 90 दिनों के अंदर गिर सकती है. ब्रिटेन सहित अमेरिका उसके नाटो सहयोगियों ने पिछले 20 वर्षों के प्रशिक्षण अफगान सुरक्षा बलों को लैस करने का सबसे अच्छा हिस्सा बिताया है. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनगिनत अमेरिकी ब्रिटिश जनरलों ने एक अधिक शक्तिशाली सक्षम अफगान सेना बनाने का दावा किया था, मगर आज का दिन काफी खाली दिखाई देता है. एक सिद्धांत के रूप में, अफगान सरकार को अभी भी स्थिति से निपटने के लिए एक बड़ी ताकत का साथ चाहिए. कागजों पर तो अफगान सुरक्षा बलों की संख्या 300,000 से अधिक है, जिसमें अफगान सेना, वायु सेना पुलिस शामिल हैं, लेकिन वास्तव में देश ने अपने भर्ती लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमेशा संघर्ष किया है.रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगान सेना पुलिस का उच्च हताहतों, निर्वासन भ्रष्टाचार का एक बेहद परेशान करने वाला इतिहास रहा है. कुछ बेईमान कमांडरों ने उन सैनिकों के वेतन का दावा किया है, जो बस अस्तित्व में नहीं थे. यानी जो सैनिक थे ही नहीं, उनके नाम पर भी वेतन हथियाने जैसे उदाहरण देखने को मिले हैं.

वहीं दूसरी ओर आए दिन होने वाले हमलों की वजह से सैनिकों के हताहत होने की घटनाएं भी देखने को मिलती रहती है. अमेरिकी कांग्रेस को अपनी नवीनतम रिपोर्ट में, अफगानिस्तान के लिए विशेष महानिरीक्षक (एसआईजीएआर) ने भ्रष्टाचार के संक्षारक प्रभावों के बारे में गंभीर चिंताएं जताई हैं साथ ही बल की वास्तविक ताकत पर डेटा की संदिग्ध सटीकता को लेकर भी संदेह व्यक्त किया है.रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट के जैक वाटलिंग का कहना है कि अफगान सेना को भी कभी इस बात का यकीन नहीं रहा कि उसके पास वास्तव में कितने सैनिक हैं. इसके अलावा, उनका कहना है कि उपकरण मनोबल बनाए रखने जैसी समस्याएं भी हैं. सैनिकों को अक्सर उन क्षेत्रों में भेजा जाता है, जहां उनका कोई पारिवारिक संबंध नहीं होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक कारण यह भी हो सकता है कि कुछ लोगों ने बिना किसी लड़ाई के अपने पदों को छोड़ने की इतनी जल्दी कर दी.

वहीं दूसरी ओर तालिबान की ताकत को मापना भी कठिन है. वेस्ट प्वाइंट पर यूएस कॉम्बैटिंग टेररिज्म सेंटर का अनुमान है कि 60,000 लड़ाकों की मुख्य ताकत है. अन्य मिलिशिया समूहों समर्थकों के साथ, यह संख्या 200,000 से अधिक हो सकती है. लेकिन माइक मार्टिन, एक पश्तो-भाषी पूर्व ब्रिटिश सेना अधिकारी, जिन्होंने अपनी पुस्तक एन इंटिमेट वॉर में हेलमंद में संघर्ष के इतिहास पर नजर रखी है, तालिबान को एक एकल अखंड समूह के रूप में परिभाषित करने के खतरों की चेतावनी दी है.इसके बजाय वह कहते हैं कि तालिबान स्वतंत्र मताधिकार धारकों के गठबंधन के करीब है - शायद अस्थायी रूप से - एक दूसरे से संबद्ध है. उन्होंने नोट किया कि अफगान सरकार भी स्थानीय गुटीय प्रेरणाओं से प्रेरित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान का आकार बदलने वाला इतिहास बताता है कि कैसे परिवारों, कबीलों यहां तक कि सरकारी अधिकारियों ने भी अपना पक्ष बदल लिया है.

फिर से,अफगान सरकार को धन हथियारों दोनों के मामले में फायदा होना चाहिए. इसे सैनिकों के वेतन उपकरणों के भुगतान के लिए अरबों डॉलर मिले हैं - ज्यादातर अमेरिका द्वारा. जुलाई 2021 की अपनी रिपोर्ट में, एसआईजीएआर ने कहा कि अफगानिस्तान की सुरक्षा पर 88 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए गए हैं. हालांकि यह सवाल जरूर बना हुआ है कि कि क्या उस पैसे को अच्छी तरह से इस्तेमाल हो भी सका है या नहीं. अफगानिस्तान की वायु सेना को युद्ध के मैदान में एक महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करनी चाहिए. लेकिन इसने अपने 211 विमानों को बनाए रखने चालक दल के लिए लगातार संघर्ष किया है (एक समस्या जो तालिबान द्वारा जानबूझकर पायलटों को निशाना बनाने के साथ अधिक तीव्र होती जा रही है). इसके साथ ही यह जमीन पर कमांडरों की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं दिख रही है.

इसलिए हाल ही में लश्कर गाह जैसे शहरों पर अमेरिकी वायु सेना की भागीदारी, जो तालिबान के हमले में आ गए हैं, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका कब तक वह सहायता प्रदान करने को तैयार है. तालिबान अक्सर नशीले पदार्थों के व्यापार से होने वाले राजस्व पर निर्भर रहा है, लेकिन उन्हें बाहर से भी समर्थन मिला है  हाल ही में तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों से हथियार उपकरण जब्त किए हैं - जिनमें से कुछ अमेरिका द्वारा प्रदान किए गए हैं - जिनमें हुमवीस, नाइट साइट्स, मशीन गन, मोर्टार तोपखाने शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सोवियत आक्रमण के बाद अफगानिस्तान पहले से ही हथियारों से भरा हुआ था तालिबान ने दिखाया है कि यहां तक कि वह सबसे अधिक परिष्कृत बल को भी हरा सकता है.|

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ग्रैमी पुरस्कार विजेता लोक गायिका नैंसी ग्रिफिथ का निधन

ग्रैमी पुरस्कार विजेता लोक गायिका एवं गीतकार नैंसी ग्रिफिथ का निधन हो गया है। टेक्सास से 68 वर्षीय ग्रिफिथ के 'लव एट द फाइव एंड डाइम' जैसे गीत बेहद लोकप्रिय हुए। /उनकी प्रबंधन कंपनी 'गोल्ड माउंटेन एंटरटेनमेंट' ने कहा कि ग्रिफिथ का शुक्रवार को निधन हुआ। कंपनी ने मृत्यु के कारणों की विस्तृत जानकारी नहीं दी। गोल्ड माउंटेन एंटरटेनमेंट ने एक बयान में कहा, ''यह नैंसी की इच्छा थी कि उनके निधन के बाद एक सप्ताह तक कोई औपचारिक बयान या प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की जाए।'' 

वर्ष 1994 में ग्रिफिथ ने अपने गीत 'अदर वॉयसेज, अदर रूम्स' के लिए ग्रैमी पुरस्कार जीता। उन्होंने अन्य लोक गायकों के साथ मिलकर काम किया और लिली लॉवेट और एमिलू हैरिस जैसे कलाकारों के कॅरियर को उभारने का काम किया। 2008 में ग्रिफिथ को 'अमेरिकन म्युजिक एसोसिएशन' से 'लाइफटाम अचीवमेंट ट्रेलब्लेजर अवार्ड' मिला। डेरियस रकर, कंट्री गायिका सूजी बोगसेस समेत कई कलाकारों ने ग्रिफिथ के निधन पर शोक जताया है।
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अमेरिका ने 3,000 सैनिकों को भेजा इस देश, जानिए क्या हैं वजह

अफगानिस्तान में तेजी से तालिबान का कब्जा बढ़ने के साथ ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने शुक्रवार को 3,000 और सैनिकों को काबुल हवाईअड्डे पर पहुंचाया ताकि वहां अमेरिकी दूतावास से अधिकारियों को निकालने में मदद मिल सके। वहीं, हजारों और सैनिकों को क्षेत्र में तैनाती के लिए भेजा गया है। अमेरिकी अधिकारियों और कर्मियों की सुरक्षित निकासी के लिए सैनिकों की अस्थायी तैनाती से संकेत मिलता है कि तालिबान देश के बड़े हिस्से पर तेजी से कब्जा बढ़ाता जा रहा है। तालिबान ने शुक्रवार को अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में लगभग पूरा कब्जा कर लिया, जहां उसने चार और प्रांतों की राजधानियों पर नियंत्रण हासिल कर लिया। अमेरिका के सैनिकों की पूरी तरह वापसी से कुछ सप्ताह पहले तालिबान धीरे-धीरे काबुल की ओर बढ़ रहा है।

अफगानिस्तान को आखिरी बड़ा झटका हेलमंद प्रांत की राजधानी से नियंत्रण खोने के रूप में लगा है जहां अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य गठबंधन नाटो सहयोगियों ने पिछले दो दशक में भीषण लड़ाइयां लड़ी हैं। इस प्रांत में तालिबान को नेस्तानाबूद करने के प्रयासों में संघर्ष के दौरान पश्चिमी देशों के सैकड़ों सैनिक मारे गये। इसका मकसद अफगानिस्तान की केंद्र सरकार और सेना को नियंत्रण का बेहतर मौका देना था।अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा कि दूतावास काम करता रहेगा लेकिन हजारों अतिरिक्त अमेरिकी सैनिकों को भेजने का गुरुवार का फैसला इस बात का संकेत है कि तालिबान के दबदबे को रोकने में अफगान सरकार की क्षमता को लेकर अमेरिका का भरोसा अब कमजोर हो रहा है। अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियान को इस महीने के आखिर तक समाप्त करने पर अडिग बाइडन ने गुरुवार सुबह अतिरिक्त अस्थायी सैनिकों को भेजने का आदेश दिया। इससे पहले उन्होंने रात में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों से सलाह-मशविरा किया।

विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने योजना के समन्वयन के लिए अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से बृहस्पतिवार को फोन पर बात की। अमेरिका ने तालिबान के ओहदेदारों को भी सीधी चेतावनी दी है कि अगर वह अमेरिका की अस्थायी सैन्य तैनाती के दौरान अमेरिकियों पर हमला करता है तो इसका जवाब दिया जाएगा। वहीं, ब्रिटेन का रक्षा मंत्रालय अपने बाकी सैनिकों की सुरक्षित वापसी के लिए करीब 600 अतिरिक्त सैनिकों को अफगानिस्तान भेजेगा। सूत्रों के अनुसार, इसी तरह काबुल से कनाडाई कर्मियों की सुरक्षित निकासी के लिए कनाडा के विशेष बलों को भी तैनात किया जाएगा। प्रेंटागन के मुख्य प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि तीन इंफेंट्री बटालियनों को हवाईअड्डे पर पहुंचाने के साथ ही पेंटागन 3,500 से 4,000 सैनिकों को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने के लिहाज से कुवैत भेजेगा। उन्होंने कहा कि काबुल में जो 3,000 सैनिक भेजे जा रहे हैं, उनके अतिरिक्त अगर जरूरत पड़ी तो उन्हें उक्त सैनिकों में से भेजा जाएगा।

किर्बी ने कहा कि इनके अलावा अमेरिका के लिए काम करने वाले और तालिबान से डरे हुए अफगान नागरिकों के विशेष आव्रजक वीजा आवेदनों के तेजी से निस्तारण में विदेश विभाग को मदद देने के लिए आने वाले दिनों में सेना और वायु सेना के करीब 1,000 जवानों को कतर भेजा जाएगा जिनमें सेना पुलिस और चिकित्सा कर्मी शामिल होंगे। अमेरिकी क्षेत्र में एक सैन्य अड्डा बना रहे हैं जहां ऐसे लोग ठहर सकते हैं। किर्बी ने कहा कि नये सैनिकों को बड़ी संख्या में भेजने का यह मतलब नहीं है कि अमेरिका फिर से तालिबान के साथ संघर्ष शुरू करने जा रहा है। उन्होंने पेंटागन में संवाददाताओं से कहा, ''यह एक अस्थायी मिशन है। हालांकि अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित अफगान सेना की मौजूदगी तेजी से कम होती दिख रही है। एक नया सैन्य आकलन कहता है कि सितंबर में काबुल तालिबान के नियंत्रण में आ सकता है और ऐसी ही स्थिति रही तो कुछ ही महीने में पूरा देश तालिबान के कब्जे में हो सकता है। अमेरिका की घोषणा से कुछ ही समय पहले काबुल में अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी नागरिकों से अनुरोध किया कि वे तत्काल इलाका छोड़ दें।
 
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इस देश के सेना ने महिला कैडेट्स के वर्जिनिटी टेस्ट्स को खत्म करने की घोषणा

इंडोनेशिया की सेना ने महिला कैडेट्स के होने वाले वर्जिनिटी टेस्ट्स को खत्म करने की घोषणा की है. साल 1965 से ही इंडोनेशिया की सेना नेवी और एयरफोर्स में भर्ती होने वाली महिलाओं के वर्जिनिटी टेस्ट्स होते थे लेकिन अब इसे पूरी तरह से खत्म करने का फैसला किया गया है. इस फैसले का इंडोनेशिया के मानवाधिकार संगठन और फेमिनिस्ट्स ग्रुप ने स्वागत किया है.

आर्मी जनरल और चीफ ऑफ स्टाफ एंडीका पेरकासा  ने रिपोर्टर्स के साथ बातचीत में कहा कि अब वर्जिनिटी टेस्ट्स को खत्म कर दिया गया है. हमारा मानना है कि सेलेक्शन प्रोसेस पुरुषों और महिलाओं के लिए एक जैसा ही होना चाहिए. वही इस मामले में बात करते हुए इंडोनेशिया सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि इंडोनेशिया की आर्मी में भर्ती होने वाली किसी भी महिला का चाहे हाइमन टूट गया था या आंशिक रूप से टूटा हुआ था, अब इससे फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि ये पहले टेस्ट का हिस्सा था लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं है.

गौरतलब है कि इस प्रक्रिया को टू फिंगर टेस्ट के तौर पर जाना जाता है. इस टेस्ट में जो भी महिला फेल हो जाती थी उसे इंडोनेशिया की आर्मी में भर्ती के योग्य नहीं माना जाता था. इंडोनेशिया की सेना में पहले माना जाता था कि इस प्रक्रिया के सहारे वे महिलाओं की नैतिकता का टेस्ट करते हैं. हालांकि पिछले कई सालों से इंडोनेशिया के कई डॉक्टर्स ये कहते रहे हैं कि वर्जीनिटी टेस्ट्स का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. इस देश में मानवाधिकार संगठन और फेमिनिस्ट्स ग्रुप्स कई सालों से इन टेस्ट्स के खिलाफ अपना प्रदर्शन दर्ज कराते रहे हैं. सेना के साथ ही अब नेवी और एयरफोर्स में भी ये टेस्ट्स नहीं होंगे.

नेशनल कमीशन ऑन वॉयलेंस अगेंस्ट वीमेन की हेड एंडी येंत्रियानी ने रायटर्स के साथ बातचीत में कहा कि इस तरह के टेस्ट्स की कभी कोई जरूरत थी ही नहीं. वही साल 2018 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने इन टेस्ट्स को खत्म करने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि इस तरह के टेस्ट्स महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

गौरतलब है कि साल 2014 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी जांच के बाद खुलासा किया था कि इंडोनेशिया की सिक्योरिटी फोर्स में महिलाओं को वर्जिनिटी टेस्ट्स से गुजरना पड़ता है. इसी इंवेस्टिगेशन में सामने आया था कि साल 1965 से हजारों महिलाएं इस टेस्ट से गुजर चुकी हैं.यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूं तो वर्जिनिटी टेस्ट्स जैसे अवैज्ञानिक टेस्ट्स ज्यादातर देशों में नहीं होते हैं लेकिन अफगानिस्तान, मिस्त्र और इंडोनेशिया जैसे लगभग 20 देशों में अब भी ऐसे टेस्ट्स को कई कारणों से किया जाता रहा है और इन देशों के मानवाधिकार संगठन लगातार इन टेस्ट्स को खत्म करने की बात करते रहे हैं.
 
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NASA के वैज्ञानिकों ने कहा- अंतरिक्ष यात्री महिलाओं को है कैंसर का खतरा

भारतीय मूल की तीन महिलाएं अंतरिक्ष में उड़ान भर चुकी हैं। इन दिनों शिरषा बांदला स्पेस में अपनी यात्रा को लेकर चर्चा में हैं जो कि भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं। उनसे पहले कल्पना चावला और सुनीता बिलियम भी अंतरिक्ष का भ्रमण कर चुकी थीं। वहीं दुनिया भर से अब तक 67 महिलाएं अंतरिक्ष यात्री बन चुकी हैं। ये बात सच है कि महिलाएं जमीं से लेकर आसमान और अंतरिक्ष तक अपनी उड़ान भर रही हैं।लेकिन इसी बीच महिलाओं की अंतरिक्ष उड़ान को लेकर नासा के वैज्ञानिकों ने कुछ हेल्थ इशु से आगाह किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, NASA (The National Aeronautics and Space Administration is an independent agency of the U.S वैज्ञानिकों का कहना है कि स्पेस में यात्रा करने के दौरान पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं कि अंतरिक्ष में जाने वाली महिलाएं किन हेल्थ प्रॉब्लम्स का शिकार हो सकती हैं।


NASA के वैज्ञानिकों का कहना है कि अंतरिक्ष में यात्री उच्च स्तरीय हानिकारक विकिरणों के संपर्क में आते हैं। इन रेडिशन्स के संपर्क में आने से यात्रियों के नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे कैंसर और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खतरनाक रेडिशन्स पुरूषों की तुलना में महिलाओं की सेहत पर ज्यादा असर डालते हैं।नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, स्पेस रेडिशन्स के प्रभाव का अध्ययन करना कठिन है लेकिन यह जरूर पता चला है कि अंतरिक्ष यात्रा के महिलाओं की सेहत खराब हो सकती है। दरअसल, NASA दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान पर गिराए गए अणु बम के पीड़ितों को ट्रैक कर रहा है। वैज्ञानिकों के इसी अध्य्यन में पता चला है कि स्पेस के रेडिशन्स के संपर्क में आने पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कैंसर होने का जोखिम ज्यादा है।

ब्रेस्ट कैंसर- थायराइड का शिकार हो सकती हैं महिलाएं
वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं को खासकर रेडिशन्स के कारण ब्रेस्ट कैंसर और थायराइड की बीमारी हो सकती है। यही वजह है कि नासा महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अंतरिक्ष यात्रा पर कम भेजता है।

​82 साल की वैली फंक से हैं महिलाओं को आशा
हाल ही में महिला अंतरिक्ष यात्री वैली फंक ने अरबपति अमेरिकी कारोबारी और अमेज़न के संस्थापक जेफ बेजोस  की न्यू शेपर्ड उड़ान से अंतरिक्ष यात्रा कि सफर किया है। आपको बता दें कि वैली अंतरिक्ष में जाने वाली सबसे उम्रदराज़ महिला हैं जिनसे कई महिलाओं की उम्मीदें जुड़ी हैं। वे महिला अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक मील का पत्थर और प्रेरणा बन चुकी हैं। ये वही वैली फंक है जो 60 साल पहले 1961 में ही अंतरिक्ष की यात्रा करने वाली थीं लेकिन महिला होने के कारण उनकी विजिट रद्द कर दी गई थी। वैली फंक ने 1960 में नासा सभी टेस्ट पास कर लिए थे बावजूद इसके उन्हें रोका गया।

 
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इजरायल के प्रधानमंत्री ने सीआईए के प्रमुख विलियम बर्न्‍स से की मुलाकात

इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के प्रमुख विलियम बर्न्‍स ने ईरान पर चर्चा करने दोनों सहयोगियों के बीच खुफिया सहयोग को मजबूत करने के लिए मुलाकात की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इजराइल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बुधवार को एक बयान में कहा कि दोनों ने इजरायल अमेरिका के बीच खुफिया सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने पर चर्चा की। इसके अलावा, उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों पर ईरान पर जोर देने क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार गहनता के विकल्पों पर चर्चा की।


बैठक में इजराइल की मोसाद खुफिया एजेंसी के प्रमुख डेविड बार्निया अन्य वरिष्ठ इजरायली सुरक्षा अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया। बयान के अनुसार, मंगलवार को बार्निया एंड बर्न्‍स ने ईरान अन्य क्षेत्रीय चुनौतियों जिसमें दोनों संगठन सहयोग करने का इरादा रखते हैं पर चर्चा करने के लिए एक अलग बैठक की। इजराइल के सरकारी स्वामित्व वाले कान टीवी समाचार ने बताया कि बर्न्‍स रामल्लाह में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास फिलिस्तीनी खुफिया प्रमुख माजिद फराज से भी मुलाकात करेंगे।
 
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ऐस्टरॉइड Bennu के धरती से टकराने की आशंका पहले से ज्यादा

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA धरती से टकराने की आशंका रखने वाले ऐस्टरॉइड्स पर नजर रखती है और इसके रिसर्चर्स ने एक ताजा स्टडी में पाया है कि ऐस्टरॉइड Bennu के धरती से कब टकराने की आशंका सबसे ज्यादा है। Bennu से लौट रहे OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट के डेटा की मदद से सटीकता से पाया गया है कि साल 2300 तक इसके टकराने की आशंका कितनी है। इस स्टडी की मदद से पहले की तुलना में ज्यादा सटीक अनुमान लगाया जा सका है। Osiris-Rex के पहले ऐसा माना जा रहा था कि Bennu के धरती से टकराने की आशंका साल 2200 तक 2,700 में एक है। अब पाया गया है कि साल 2300 तक इसकी आशंका 1,750 में से एक है। सबसे ज्यादा सटीक तारीख 24 सितंबर, 2182 की पाई गई है। यह अपने आप में पहले की तुलना में ज्यादा है लेकिन फिर भी कम है। नासा के डीप स्पेस नेटवर्क और कंप्यूटर मॉडल्स की मदद से वैज्ञानिक साल 2135 तक इसके रास्ते को सटीकता से जान सकते हैं 

ऐस्टरॉइड 1950 DA के बाद धरती को सबसे ज्यादा खतरा Bennu से ही बताया जाता है। माना जाता है कि साल 2135 में यह धरती के बेहद करीब आएगा। ऐसे में इस बात पर नजर रखी जा रही है कि तब धरती के गुरुत्वाकर्षण का भविष्य में इसके रास्ते पर क्या असर होगा। वहीं, सूरज की गर्मी का भी ऐस्टरॉइड के रास्ते पर असर पड़ता है।अब Winchcombe Meteorite नाम से जानी जा रही यह स्पेस रॉक, दरअसल दुर्लभ कार्बनेशस कॉन्ड्राइट है। इससे पहले यह ब्रिटेन में नहीं पाई गई। इसमें कुछ खास ऑर्गैनिक कंपाउंड होते हैं जो अंतरिक्ष में जीवन के आधार और दूसरे ग्रहों की बनावट के लिए अहम होते हैं। ब्रिटेन में यह पिछले 30 साल में मिला पहला उल्कापिंड है। जब यह गिरा था तो नारंगी और हरे रंग का आग का गोला आसमान से गिरता देखा गया था और यह नजारा घरों में लगे सिक्यॉरिटी कैमरा में कैद हुआ था। इस वजह से इसकी लैंडिंग साइट के बारे में पता लगाकर इसे खोजा जा सका

एक परिवार को काली चट्टान के टुकड़े और मलबा मिला था और उन्होंने धमाके जैसी आवाज भी सुनी थी। इसकी जानकारी मिलने पर एक्सपर्ट्स ने आसपास के इलाके में खोजबीन शुरू की और तब 103 ग्राम का सबसे बड़ा टुकड़ा पास के खेत से मिला। ये टुकड़े विक्टोरिया बॉन्ड नाम की महिला की जमीन पर मिले थे। डेलीमेल की रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि सात वैज्ञानिक इसकी खोज कर रहे थे और जब उन्हें ये टुकड़े मिले तो वे खुशी से कूदने लगे। उन्होंने बताया कि उनके लिए भी ये पल बेहद जादुई था। वह उस टुकड़े को देखकर नहीं समझ पातीं कि वह असल में क्या है।

म्यूजियम में उल्कापिंड रिसर्चर सेरा रसल ने इसे जीवन की अद्वितीय घटना बताया। उन्होंने बताया कि यह सबसे खास उल्कापिंड है जो उन्होंने देखा है। इसमें कार्बन और पानी है और माना जाता है कि इन्हीं के जरिए धरती पर जीवन आया है। उन्होंने बताया कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति और सौर मंडल के बारे में जानने के लिए इन्हें स्टडी करना बेहद अहम है। सेरा का कहना है कि यह उल्कापिंड सौर मंडल के शुरुआती दिनों का, कम से कम 4.5 अरब सल पुराना है। उन्होंने बताया कि इसकी लैंडिंग के आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि यह बृहस्पति के पास ऐस्टरॉइड बेल्ट से आया है। सूरज की गर्मी से तपने के बाद जब ऐस्टरॉइड ठंडा होता है जो उससे इन्फ्रारेड ऊर्जा निकलती है जिससे ऐस्टरॉइड को बल मिलता है और इसका रास्ता बदल सकता है। इसे Yarkovsky इफेक्ट कहते हैं और OSIRIS-REx की मदद से Bennu पर इसको स्टडी किया गया है। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि Bennu के टकराने से तबाही उतनी नहीं होगी जितनी डायनोसॉर को खत्म करने वाले ऐस्टरॉइड से हुई थी क्योंकि इसका आकार कम है।
 
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अल्जीरिया के जंगल में आग लगाने से 25 सैनिक सहित 7 लोगों की मौत

अल्जीरियाई रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मंगलवार को कम से कम 25 अल्जीरियाई सैनिकों की मौत हो गई, क्योंकि उन्होंने टिजी ओजू बेजिया के पूर्वोत्तर प्रांतों में जंगल की आग को बुझाने की कोशिश की थी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने एक बयान में कहा, यह आग एक आपराधिक कृत्य है अल्जीरिया के 14 प्रांतों में सोमवार रात एक साथ जंगल में आग लग गई, जिसमें कम से कम सात नागरिकों की मौत हो गई दर्जनों अन्य घायल हो गए। 

इसमें कहा गया है कि आग की चपेट में आए करीब 110 परिवारों को बचाने के लिए सैनिकों दमकलकर्मियों ने मिलकर काम किया। इससे पहले मंगलवार को, आंतरिक मंत्री कामेल बेल्जौद ने भी आग को आपराधिक कृत्य के रूप में वर्णित किया सक्षम अधिकारियों से कारणों का निर्धारण करने अपराधियों को न्याय दिलाने के लिए जांच शुरू करने की मांग की। मंत्री ने आश्वासन दिया कि सरकार उन सभी निवासियों को मुआवजा देगी, जिन्हें जंगल की आग से नुकसान हुआ था। यह देखते हुए कि 140 विशेषज्ञों का एक प्रतिनिधिमंडल नुकसान की सीमा का आकलन करने के लिए टिजी ओजौ प्रांत में भेजा जाएगा।
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देश में लगे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, क्रांतिकारी बदलाव से कम हुआ समुद्री प्रदूषण

सिंगापुर :- सीवेज को पीने लायक पानी में बदला जा रहा है. देश में लगे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट ऐसा करने में मदद कर रहे हैं. इनके जरिए समुद्र के प्रदूषण  को कम किया जा रहा है. इस छोटे द्वीपीय देश के पास प्राकृतिक पानी का स्रोत नाम मात्र है. इस वजह से इसे पड़ोसी देश मलेशिया पर पानी की सप्लाई के लिए निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में सरकार ने आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए एक एडवांस्ड सिस्टम तैयार किया है, जिसमें टनल और हाई-टेक प्लांट्स के जरिए सीवेज का निपटान किया जा रहा है.

सीवेज को साफ कर तैयार किए गए पानी के जरिए सिंगापुर की 40 फीसदी पानी की मांग पूरी की जा रही है. देश की वाटर एजेंसी के मुताबिक, 2060 तक ये आंकड़ा 55 फीसदी तक पहुंच जाएगा. फिलहाल अधिकांश पानी का इस्तेमाल औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जा रहा है. लेकिन इसमें से कुछ को 57 लाख की आबादी वाले देश में मौजूद जलाशयों में पेयजल आपूर्ति में जोड़ा जा रहा है. इस सिस्टम के जरिए समुद्री प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिली है, क्योंकि ट्रीटेड वाटर का एक छोटा सा हिस्सा ही समुद्र में छोड़ा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया का 80 प्रतिशत अपशिष्ट जल बिना ट्रीटमेंट या रिसाइकिल के इकोसिस्टम में वापस चला जाता है.

पब्लिक यूटिलिटीज बोर्ड के जल सुधार विभाग के चीफ इंजीनियर लो पेई चिन ने एएफपी को बताया कि सिंगापुर में प्राकृतिक संसाधनों की कमी है और ये काफी सीमित है. यही कारण है कि हम हमेशा जल स्रोतों का पता लगाने और अपनी जल आपूर्ति को बढ़ाने के तरीकों की तलाश में रहते हैं. उन्होंने कहा कि एक तरीका ये है कि हर एक बूंद को इकट्ठा किया जाए और उसे फिर से इस्तेमाल किया जाए. पानी की आपूर्ति हासिल करने के लिए देश के अन्य दृष्टिकोणों से अलग इस पर काम किया जा रहा है. इसके अलावा, पानी को आयात करना, जलाशयों का इस्तेमाल करना और समुद्री जल का विलवणीकरण के जरिए भी पानी तैयार किया जाता है.

रीसाइक्लिंग सिस्टम के केंद्र में देश के पूर्वी तट पर उच्च तकनीक वाला चांगी वाटर रिक्लेमेशन प्लांट (Changi Water Reclamation Plant) है. जमीन की कमी की वजह से इस प्लांट के अधिकतर हिस्से जमीन के नीचे हैं, जिसमें कुछ हिस्से 25 मंजिला इमारत जितनी गहराई पर हैं. यहां पर सीवर से जुड़ी हुई 48 किमी लंबी सुरंग के जरिए अपशिष्ट पानी को पहुंचाया जाता है. इस पूरे प्लांट में स्टील पाइप, ट्यूब्स, टैंक, फिल्ट्रेशन सिस्टम और अन्य मशीनरी का जाल बिछा हुआ है. यहां पर हर दिन 90 करोड़ लीटर अपशिष्ट पानी को साफ किया जाता है. एक इमारत में हवा की महक को ताजा रखने के लिए वेंटिलेटर का एक नेटवर्क स्थापित किया गया है.
 
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