धर्म समाज

रथयात्रा महोत्सव में शामिल हुए विश्वभूषण हरिचंदन

रायपुर। राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन रथ यात्रा के अवसर पर रविवार को गायत्री नगर रायपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर में आयोजित महाप्रभु श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा महोत्सव में शामिल हुए। उन्होंने भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना कर देश एवं प्रदेशवासियों की सुख समृद्धि की कामना की एवं भगवान के प्रथम सेवक के रूप में छेरा-पहरा की रस्म निभाई। इस दौरान मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय, आदिम जाति, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास, कृषि विकास एवं किसान कल्याण मंत्री श्री रामविचार नेताम, सांसद श्री बृजमोहन अग्रवाल, उत्तर रायपुर क्षेत्र के विधायक श्री पुरंदर मिश्रा भी उपस्थित थे।
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CM विष्णुदेव साय भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में हुए शामिल

  • छेरापहरा की रस्म अदा कर मांगा प्रदेशवासियों के लिए आशीर्वाद
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविवार को रथयात्रा धूमधाम से मनाया गया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय राजधानी रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में आयोजित रथ यात्रा में शामिल हुए। रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में विशेष रस्म के साथ रथ यात्रा निकाली गई है। रथ यात्रा शुरू करने से पहले भगवान की प्रतिमा को रथ तक लाया गया और रास्ते को सोने के झाड़ू से साफ भी किया गया । इस रस्म को छेरापहरा रस्म कहा जाता है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने सभी प्रदेशवासियों को रथयात्रा की बधाई देते हुए कहा कि यह पर्व ओडिशा के लिए जितना बड़ा उत्सव है, उतना ही बड़ा उत्सव छत्तीसगढ़ के लिए भी है। महाप्रभु जगन्नाथ जितने ओडिशा के लोगों को प्रिय हैं, उतने ही छत्तीसगढ़ के लोगों को भी प्रिय हैं, और उनकी जितनी कृपा ओडिशा पर रही है, उतनी ही कृपा छत्तीसगढ़ पर रही है।
श्री साय ने कहा कि भगवान जगन्नाथ किसानों के रक्षक हैं। उन्हीं की कृपा से बारिश होती है। उन्हीं की कृपा से धान की बालियों में दूध भरता है। और उन्हीं की कृपा से किसानों के घर समृद्धि आती है।  मैं भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करता हूं कि इस साल भी छत्तीसगढ़ में भरपूर फसल हो। उन्होंने कहा कि    भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा से मेरी प्रार्थना है कि वे हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें और हमें शांति, समृद्धि और खुशहाली की ओर अग्रसर करें।
मुख्यमंत्री ने सोने के झाड़ू से छेरापहरा की रस्म निभाई-
राजधानी रायपुर के गायत्री मंदिर में पुरी के जगन्नाथ रथ यात्रा की तर्ज पर पुरानी परंपरा निभाई जाती है।  मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने छेरापहरा की रस्म पूरी कर सोने की झाड़ू से बुहारी लगाकर रथ यात्रा की शुरुआत की।  इसके बाद मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय प्रभु जगन्नाथ की प्रतिमा को रथ तक लेकर गए।
ओडिशा के तर्ज पर होती है छत्तीसगढ़ में रथ यात्रा-
रथ यात्रा के लिए भारत में ओडिशा राज्य को जाना जाता है।  ओडिशा का पड़ोसी राज्य होने के नाते छत्तीसगढ़ में भी इसका काफी बड़ा प्रभाव है। आज निकाली गई रथयात्रा में प्रभु जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा की खास अंदाज में पूजा-अर्चना की गई।  जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के अनुसार उत्कल संस्कृति और दक्षिण कोसल की संस्कृति के बीच की यह एक अटूट साझेदारी है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण-तीर्थ है, यहीं से वे जगन्नाथपुरी जाकर स्थापित हुए। शिवरीनारायण में ही त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने माता शबरी के मीठे बेरों को ग्रहण किया था। यहां वर्तमान में नर-नारायण का मंदिर स्थापित है।
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आज से शुरू हुए आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि

  • जानिए...शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
  • 9 दिनों तक लगने वाले भोग का होता है विशेष महत्व-
इस वर्ष आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 06 जुलाई से 15 जुलाई 2024 तक मनाई जाएगी. आषाढ़ गुप्त नवरात्रि, इसे गुप्त नवरात्रि या गुप्त साधना के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से तांत्रिक साधनाओं और गुप्त उपासना के लिए महत्वपूर्ण है. गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और उपासना की जाती है, लेकिन यह पूजा विधि और उद्देश्य सामान्य नवरात्रि से अलग होते हैं.
इस दिन देवी शक्ति की पूजा करने से मन को शांति मिलती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं.
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है. प्रतिपदा तिथि जुलाई 06, 2024 को 04:26 ए एम बजे प्रारंभ होगी जो जुलाई 07, 2024 को 04:26 ए एम बजे तक रहेगी. आषाढ़ घटस्थापना शनिवार, जुलाई 6, 2024 को की जाएगी.
घटस्थापना मुहूर्त - 05:29 ए एम से 10:07 ए एम
अवधि - 04 घण्टे 38 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त- 11:58 ए एम से 12:54 पी एम
अवधि- 00 घण्टे 56 मिनट्स
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि-
इस दिन प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के पूजा स्थल या मंदिर में कलश स्थापित करें. कलश में गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और बेल पत्र डालें. कलश के साथ देवी दुर्गा की मूर्ति या श्री यंत्र स्थापित करें. देवी दुर्गा को फूल, फल, मिठाई और धूप-दीप अर्पित करना शुभ माना जाता है. "ॐ जय दुर्गे" या "ललिता सहस्रनाम" मंत्र का जाप करने का विशेष महत्व है. गुप्त नवरात्रि के व्रत जातक अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार रखता है. देवी दुर्गा को भोग लगाकर ही प्रसाद ग्रहण करने वाले जातक के घर में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होती. गुप्त नवरात्रि के दिनों में सुबह शाम नियम से देवी दुर्गा की आरती उतारनी चाहिए.
अगर आप अपने घर में आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के दिन घटस्थापना कर रहे हैं तो आप इस दिन गलती से भी ब्रह्मचर्य नियम को न तोड़ें. मांस-मदिरा का सेवन न करें और नकारात्मक विचारों से दूर रहें. दान-पुण्य करना शुभ होता है.
9 दिनों तक लगने वाले भोग का होता है विशेष महत्व-
नवरात्रि के दौरान पूजा पाठ में भोग का भी खास महत्व होता है. देवी देवताओं को उनकी रुचि के अनुसार अवश्य भोग लगाना चाहिए. आषाढ़ के गुप्त नवरात्रि में पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है, लेकिन तांत्रिक साधना के लिए काली देवी की पूजा की जाती है. इसमें घी से बनी मिठाई का भोग लगाएं.
दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, लेकिन तांत्रिक साधना के लिए मां तारा की पूजा होती है, इसमें दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं.
तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है, लेकिन तांत्रिक साधना के लिए त्रिपुरा सुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन पंचामृत का भोग लगाएं.
चौथे दिन कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है, लेकिन तांत्रिक साधना के लिए भुनेश्वरी देवी की पूजा आराधना की जाती है. इस दिन मालपुआ का भोग लगाएं.
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भारी बारिश के कारण अमरनाथ यात्रा अस्थायी रूप से निलंबित

जम्मू-कश्मीर। अमरनाथ यात्रा भारी बारिश के कारण एहतियात के तौर पर शनिवार को गुफा मंदिर के दोनों मार्गों पर अस्थायी रूप से निलंबित कर दी गई थी। जम्मू-कश्मीर में पवित्र अमरनाथ गुफा में बर्फ का शिवलिंग वार्षिक तीर्थयात्रा आधिकारिक तौर पर समाप्त होने से लगभग दो सप्ताह पहले पूरी तरह से पिघल गया है। लगभग दो महीने तक चलने वाली तीर्थयात्रा के दौरान तीन लाख से अधिक लोगों के पवित्र गुफा के दर्शन करने की उम्मीद है। एक महीने पहले यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक एक लाख से अधिक तीर्थयात्री दर्शन कर चुके हैं।
हालाँकि, पिघले हुए शिवलिंग ने तीर्थयात्रियों को पवित्र गुफा की एक झलक पाने के लिए खराब मौसम के बीच फिसलन भरे रास्तों पर जाने से नहीं रोका है। कश्मीर में भीषण गर्मी के बीच प्राकृतिक रूप से बना बर्फ का लिंग पिघलना शुरू हो गया है। पिछले कुछ हफ्तों से घाटी में बढ़ते तापमान और प्रचंड गर्मी देखी जा रही है. गुरुवार को, श्रीनगर में अधिकतम तापमान 35.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो सामान्य से छह डिग्री अधिक और 25 वर्षों में जुलाई में सबसे अधिक था। श्रीनगर दिल्ली (31.7 डिग्री सेल्सियस), कोलकाता (31 डिग्री सेल्सियस), मुंबई (32 डिग्री सेल्सियस) और बैंगलोर (28 डिग्री सेल्सियस) से अधिक गर्म था। घाटी के अन्य हिस्सों में भी भीषण तापमान देखा गया।
अमरनाथ यात्रा 29 जून को अनंतनाग में पहलगाम और गांदरबल में बालटाल मार्ग से शुरू हुई थी। 52 दिनों की यात्रा 19 अगस्त को समाप्त होगी। अब तक 1.50 लाख से अधिक भक्त 3,800 मीटर ऊंचे गुफा मंदिर का दौरा कर चुके हैं और प्राकृतिक रूप से बने बर्फ के लिंग के दर्शन कर चुके हैं।शनिवार को भारी बारिश के कारण गुफा मंदिर के दोनों मार्गों पर यात्रा अस्थायी रूप से निलंबित कर दी गई थी। तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए एहतियात के तौर पर यह निर्णय लिया गया। अधिकारियों ने बताया कि बालटाल और पहलगाम मार्गों पर कल रात से बारिश हो रही है।
Baltal और पहलगाम मार्गों पर कल रात से रुक-रुक कर भारी बारिश देखी जा रही है। अमरनाथ यात्रा 29 जून को दो मार्गों से शुरू हुई - अनंतनाग में पारंपरिक 48 किलोमीटर लंबा नुनवान-पहलगाम मार्ग और गांदरबल में 14 किलोमीटर छोटा लेकिन तेज़ बालटाल मार्ग। बता दें कि पिछले वर्ष 4.5 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने गुफा मंदिर में पूजा की थी।
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आषाढ़ मास की अमावस्या आज

  • जानिए...आज के दिन क्या करें और क्या ना करें
आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि आज 5 जुलाई सुबह 4 बजकर 57 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 6 जुलाई को सुबह 4 बजकर 26 मिनट पर होगी. उदयातिथि के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या 5 जुलाई यानी आज ही मनाई जा रही है.
अमावस्या के दिन करें ये काम-
इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं. गाय को चावल अर्पित करें. तुलसी को पीपल के पेड़ पर रखें.
इसके साथ ही इस दिन दही, दूध, चंदन, काले अलसी, हल्दी, और चावल का भोग अर्पित करें.
पेड़ के चारों ओर 108 बार धागा बांधकर परिक्रमा करें.
विवाहित महिलाएं चाहें तो इस दिन परिक्रमा करते समय बिंदी, मेहंदी, चूड़ियां, आदि भी रख सकती हैं.
इसके बाद पितरों के लिए अपने घर में भोजन बनाएं और उन्हें भोजन अर्पित करें. गरीबों को वस्त्र, भोजन, और मिठाई का दान करें.
अमावस्या के दिन भूल से भी न करें ये गल्तियां-
अमावस्या का दिन शुभ नहीं माने जाने के कारण इस दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्य मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह आदि नहीं किया जाता.
इस दिन किसी भी वृद्ध, निर्धन, भिखारियों आदि का अपमान नहीं करना चाहिए, ऐसा करने से पितृ-दोष लग सकता है.
इस दिन किसी भी निर्धन अथवा बेसहारा लोगों को पुराने वस्त्र अथवा वस्तुएं आदि दान नहीं करना चाहिए.
अमावस्या के दिन ना बाल काटन चाहिए ना ही नाखून. ऐसा करने से धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
इस दिन कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा बड़े विधि-विधान से जाती है.
अमावस्या के दिन नकारात्मक शक्तियों का अधिक प्रभाव होता है. इसलिए इस दिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है.
अमावस्या के दिन मांस एवं मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा करना अशुभ माना जाता है. ऐसा करने से तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
अमावस्या के दिन झाड़ू नहीं खरीदना चाहिए. इस दिन झाड़ू खरीदने से माता लक्ष्मी रुष्ठ हो सकती हैं, और धन संबंध समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
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काशी विश्वनाथ में उमड़ा आस्था का सैलाब, इस साल पहुंचे रिकॉर्ड श्रद्धालु

  • चढ़ावा इतना कि गिनते-गिनते थक गए अधिकारी
वाराणसी। पिछले साल की पहली छमाही की तुलना में इस साल की पहली छमाही में श्री काशी विश्वनाथ धाम में भक्तों की संख्या में 45.76% की वृद्धि हुई है। पिछले साल की तुलना में इस बार करीब डेढ़ गुना अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन किए।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सीईओ विश्व भूषण मिश्र ने यह जानकारी दी है कि इस साल 2023 (जनवरी से जून) तक 2,29,79,137 भक्त बाबा के दर्शन कर चुके थे। वहीं, साल 2024 में इसी अवधि के दौरान 3,34,94,933 भक्त बाबा के दर्शन करने पहुंचे। इतना ही नहीं, विश्वनाथ धाम पर आने वाले चढ़ावे में भी 24.66% की वृद्धि हुई है।
चढ़ावे की यह संख्या पिछले साल से 1,05,15,796 ज्यादा है। 2023 की पहली छमाही में धाम पर 38 करोड़ 29 लाख 77 हजार 214 रुपये का चढ़ावा आया था। साल 2024 की पहली छमाही में यह रकम बढ़कर 47 करोड़ 74 लाख 13 हजार 890 रुपये हो गई। पिछले साल से यह चढ़ावा 9,44,36,676 ज्यादा है।
बता दें कि इस बार सावन माह के प्रत्येक सोमवार को काशी विश्वनाथ धाम में देशभर से 10-12 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। सावन के सामान्य दिनों में भी यह संख्या सात से आठ लाख तक जा सकती है।
तैयारियों में जुड़ा मंदिर प्रशासन-
सावन माह में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने दो नए गेट का प्रस्ताव बनाकर तैयारी अभी से शुरू कर दी है। ये गेट मणिकर्णिका के सामने ढलान पर पुलिस बूथ के बगल में और पिनाक भवन के पास प्रस्तावित हैं।
राजस्व कर्मियों ने गुरुवार को विंध्यधाम में स्थापित 11 दान पेटियों में से दो के दान की गिनती की। देर शाम तक 23 लाख 57 हजार 708 रुपये मिले। दान राशि स्टेट बैंक के खाते में जमा की गई है। बता दें कि विंध्यवासिनी मंदिर में लगे दानपात्रों की गिनती मंदिर की छत पर बने श्री विंध्य पंडा समाज कार्यालय में शुरू की गई।
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कालसर्प दोष निवारण के लिए करें ये उपाय

ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि कुंडली में कालसर्प योग होने पर व्यक्ति को जीवन में बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति के घर-परिवार से लेकर उसके करियर तक में दिक्कत बढ़ने लगती हैं। ऐसे में यदि आपको भी कालसर्प दोष परेशान कर रहा है, तो इसके लिए आप ये उपाय आजमा सकते हैं।
जब कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य रहते हैं, तब कालसर्प दोष लगता है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसा माना गया है कि कुंडली में कालसर्प योग बोने से व्यक्ति को बुरे सपने आने लगते हैं और डर के कारण बार-बार नींद खुल जाती है। साथ ही मन एक अज्ञात डर भी मन में बना रहता है। ज्योतिष शास्त्र में माना गया है कि कुंडली में कालसर्प योग होने पर व्यक्ति को जीवन में बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति के घर-परिवार से लेकर उसके करियर तक में दिक्कत बढ़ने लगती हैं। ऐसे में यदि आपको भी कालसर्प दोष परेशान कर रहा है, तो इसके लिए आप ये उपाय आजमा सकते हैं।
मिलने लगते हैं ये संकेत-
जब कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य रहते हैं, तब कालसर्प दोष लगता है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसा माना गया है कि कुंडली में कालसर्प योग बोने से व्यक्ति को बुरे सपने आने लगते हैं और डर के कारण बार-बार नींद खुल जाती है। साथ ही मन एक अज्ञात डर भी मन में बना रहता है।
करें ये उपाय-
नियमित रूप से शिव जी का पूजन और महामृत्युंजय का जप करें।
गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
किसी पवित्र नदी में चांदी या तांबे से बना नाग-नागिन का जोड़ा प्रवाहित करें।
शनिवार के दिन पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें और सात परिक्रमा करें।
गरीबों को काले कंबल आदि दान करें।
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर या नासिक में कालसर्प दोष की पूजा करवाएं।
रोजाना भगवान विष्णु की पूजा करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
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विवाह में बार-बार आ रही हैं बाधाएं तो आषाढ़ गुप्त नवरात्र पर करें उपाय

हिंदू धर्म में गुप्त नवरात्र का त्योहार बेहद विशेष माना जाता है। इस दिन देवी भक्त मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं की विधि अनुसार पूजा करते हैं। जल्द ही आसाढ़ मास के गुप्त नवरात्र की शुरुआत होने वाली है। ऐसा माना जाता है कि जो जातक इस दौरान कठिन व्रत का पालन करते हैं, उन्हें जीवन की हर बाधाओं से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही व्यक्ति को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्र की शुरुआत 6 जुलाई, 2024 दिन शनिवार को होगी, तो चलिए इस दिन से जुड़े कुछ ज्योतिष उपाय के बारे में जानते हैं, जिन्हें करने से विवाह से जुड़ी सभी समस्याओं का अंत हो जाएगा।
कब है आषाढ़ गुप्त नवरात्र ?-
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्र की शुरुआत 6 जुलाई, 2024 दिन शनिवार को होगी। वहीं, इसका समापन 15 जुलाई, 2024 दिन सोमवार को होगा। इसके साथ ही कलश की स्थापना 06 जुलाई सुबह 05 बजकर 11 मिनट से लेकर 07 बजकर 26 मिनट पर करना अच्छा होगा।
जल्द विवाह के लिए करें ये 2 उपाय-
स्नान के पानी में मिलाएं हल्दी
अगर आपके विवाह में देरी हो रही है, तो आपको आषाढ़ गुप्त नवरात्र के पूरे नौ दिनों तक पानी में हल्दी मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके साथ ही देवी से मनचाहे वर की प्रार्थना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस उपाय को करने से आपको सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी।
हल्दी का तिलक लगाएं-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जो लोग जल्द विवाह की कामना रखते हैं, उन्हें आषाढ़ नवरात्र के दौरान अपने माथे और नाभि पर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए। हल्दी को शुभता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस उपाय को करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। साथ ही मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
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गुप्त नवरात्र में इस समय करें कलश स्थापना, नोट करें विधि

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्र प्रारंभ होगी। गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। साल में 4 बार नवरात्र पड़ते हैं। तांत्रिक साधना करने वालों के लिए गुप्त नवरात्र का समय बहुत विशेष होता है। गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की तांत्रिक विधि और मंत्रों से पूजा करने से सभी प्रकार के दोष समाप्त हो जाते हैं। गुप्त नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। सभी को अपने घरों में कलश स्थापना करना चाहिए। इस कलश में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है।
कलश स्थापना विधि-
नवरात्र में पूजा के दौरान स्थापित किए गए कलश को नौ दिनों के बाद ही नदी में विसर्जित किया जाता है। यही कारण है कि गुप्त नवरात्र के दौरान मिट्टी से बने कलश की ही स्थापना करनी चाहिए, क्योंकि मिट्टी को सबसे शुद्ध और पवित्र माना जाता है। मिट्टी से बने कलश को स्थापित करने के बाद उसमें मिट्टी से बने कलश का ढक्कन, जटा वाला नारियल, कलावा, लाल कपड़ा, मौली, गंगाजल, अक्षत रखें।
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त-
आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्र में घट स्थापना का शुभ समय 6 जुलाई को सुबह 5.11 बजे से 7.26 बजे तक है। इस दौरान आप कलश स्थापना कर सकते हैं। इस मुहूर्त में कलश स्थापना नहीं कर पाएं, तो 6 जुलाई को अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक भी कर सकते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान-
कलश स्थापना करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी के कलश पर कोई काला धब्बा न हो। ऐसा करने से पूजा का प्रभाव बुरा हो सकता है। कलश को हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए। कभी भी टूटा हुआ या खंडित कलश स्थापित नहीं करना चाहिए।
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शनि राशि वाले कर लें आषाढ़ अमावस्या के उपाय

  • कम होगा साढे साती और ढैया का प्रभाव
मान्यता है की आषाढ़ अमावस्या पर कुछ उपाय कर लेने से शनि की साढे साती और ढैया के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है. इसलिए शनि देव की असीम कृपा पाने के लिए आषाढ़ अमावस्या पर करें ये उपाय-
  • आषाढ़ अमावस्या के दिन भोलेनाथ की आराधना करने से शनि देव के बुरे प्रभाव को कम कर सकते हैं. इस दिन भगवान शिव की आराधना करने और पंचामृत से जलाभिषेक करने से विशेष फल प्राप्ति की होती है.
  • अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस दिन सुबह पीपल की जड़ में दूध और जल अर्पित करें. फिर पांच पीपल के पत्तों पर पांच मिठाई रख दें और फिर घी का दीपक जलाकर सात बार परिक्रमा करें. इस दिन का पीपल का पेड़ भी लगाना चाहिए और रविवार का दिन छोड़कर हर रोज जल भी दें.
  • शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या के दिन स्नान-दान के साथ भगवान शनि की पूजा करने का विशेष महत्व है. इसके साथ ही इस दिन पितरों का तर्पण करने का भी शुभ फल प्राप्त होगा. इसके साथ ही शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए.
  • पितृदोष से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आषाढ़ मास की अमावस्या के दिन पितृ कवच का पाठ करें. इस पाठ के साथ पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्तम का पाठ भी कर सकते हैं, जिससे पितरों का आशीर्वाद मिलेगा साथ ही पितृ दोष भी दूर होगा.
  • आषाढ़ अमावस्या के दिन शनि साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने के लिए रुद्राक्ष की माला से ऊँ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए. अमावस्या के दिन शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित करें. इसके साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
  • आषाढ़ अमावस्या के दिन दान का काफी महत्व है. इसलिए इस दिन शनिदेव संबंधी चीजों का दान करना चाहिए इसलिए आषाढ़ अमावस्या के दिन आटा, शक्कर, काले तिल को मिलाकर चींटियों को खिलाएं.
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चातुर्मास में इन चीजों का करें त्याग, सुखों की होगी प्राप्ति

चातुर्मास को चौमासा भी कहा जाता है। चातुर्मास में भगवान श्री हरि विष्णु योग निद्रा में होते हैं और सृष्टि का नियंत्रण भगवान शिव के हाथों में होता है। चातुर्मास में शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है। इस बार चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही है। इस दौरान कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और जातक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए, जानते हैं कि चातुर्मास के नियम कौन-से हैं।
चातुर्मास में छोड़ें ये चीजें-
पान, दही, तेल, बैंगन, सब्जियां, चीनी, मसालेदार भोजन, मांस, शराब, नमकीन भोजन आदि का सेवन चातुर्मास के दौरान न करें। चातुर्मास में पान छोड़ने से भोग, दही छोड़ने से गोलोक, गुड़ छोड़ने से मिठास और नमक छोड़ने से पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। चातुर्मास के सावन में पत्तेदार सब्जियां, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में लहसुन-प्याज का सेवन वर्जित माना जाता है। इस दौरान काले या नीले रंग के कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए।
चातुर्मास 2024 नियम-
चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इन चार महीनों के दौरान हर दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसी महीने सावन माह भी शुरू होता है।
चातुर्मास के दौरान ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। बुरे विचारों और बुरी बातों से दूरी बनाकर रखें। पूजा-पाठ में अपना मन लगाना चाहिए।
चातुर्मास के दौरान दिन में केवल एक बार ही भोजन करना चाहिए। फर्श पर सोना चाहिए। व्रत, जप, तप, साधना, योग आदि का अभ्यास करना चाहिए।
चातुर्मास के व्रत नियमपूर्वक करने चाहिए। इस दौरान अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें, दूसरों के बारे में बुरा बोलने से बचें।
चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन संध्या आरती करनी चाहिए। नया जनेऊ धारण करें। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और महादेव के साथ-साथ माता लक्ष्मी, माता पार्वती, गणेश जी, राधा कृष्ण, पितृ देव आदि की पूजा करनी चाहिए।
चातुर्मास के दौरान देवता शयन करते हैं, इसलिए विवाह, सगाई, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए।
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भगवान कार्तिकेय को समर्पित माना जाता है स्कंद षष्ठी

  • संतान प्राप्ति के लिए 11 जुलाई को जरूर करें पूजा
हिंदू धर्म में आषाढ़ माह में पड़ने वाली स्कंद षष्ठी महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय को भगवान स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। इसी कारण से इस दिन को स्कंद षष्ठी कहा जाता है। स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। आइए, जानते हैं कि इस बार स्कंद षष्ठी किस दिन मनाई जाने वाली है और इसकी पूजा विधि क्या है।
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की स्कंद षष्ठी तिथि 11 जुलाई को सुबह 10:03 बजे शुरू होगी और अगले दिन 12 जुलाई को दोपहर 12:32 बजे समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी 11 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी।
ऐसा माना जाता है कि स्कंद षष्ठी का व्रत पूरी श्रद्धा-भाव के साथ किया जाए, तो जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। इ जिन लोगों के घर में संतान नहीं हो रही है, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा अवश्य करनी चाहिए। साथ ही हर महीने स्कंद षष्ठी तिथि के दिन व्रत भी रखना चाहिए।
स्कंद षष्ठी पूजा विधि-
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। फिर सूर्य देव की पूजा करें और अर्घ्य दें।
गंगाजल छिड़क कर घर को शुद्ध कर लें। घर के मंदिर को अच्छी तरह साफ करें।
भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें। देवी-देवताओं का भी आह्वान करें।
एक चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।
सबसे ऊपर भगवान कार्तिकेय की फोटो या मूर्ति रखें।
व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान कार्तिकेय को वस्त्र, इत्र, फूल, आभूषण, दीपक, धूप और नैवेद्य चढ़ाएं।
पूजा के दौरान ओम स्कंद शिवाय नम: मंत्र का 3 बार जाप करें।
अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें और उनकी तस्वीर या मूर्ति की तीन बार परिक्रमा करें।
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क्यों शुभ माना जाता है सर्वार्थ सिद्धि योग

  • जानिए...कब होता है इसका निर्माण
ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ नक्षत्रों का उल्लेख किया गया है। इन्हीं में से एक सर्वार्थ सिद्धि योग भी माना जाता है। यह बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस योग के अंतर्गत किए गए सभी कार्य सफल माने जाते हैं। इस योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को कार्यों में सफलता और आर्थिक लाभ भी मिलता है। आइए, जानते हैं कि सर्वार्थ सिद्धि योग कब बनता है और इसका क्या महत्व है।
सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण-
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सर्वार्थ सिद्धि योग तब बनता है, जब एक विशेष दिन पर एक विशेष नक्षत्र पड़ता है। वार और नक्षत्र के मेल से सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है। किसी भी कार्य के लिए यह शुभ माना जाता है। इस दौरान सभी ग्रह शुभ स्थिति में होते हैं और व्यक्ति को सफलता दिलाने में मदद करते हैं। इसलिए सर्वार्थ सिद्धि योग में ही कोई भी शुभ कार्य करना चाहिए।
नया काम शुरू करने के लिए शुभ समय-
नया काम शुरू करने के लिए भी यह अच्छा समय माना जाता है। यह योग धन, सुख और समृद्धि प्राप्ति के लिए भी शुभ माना जाता है। अगर आप कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने की सोच रहे हैं, तो यह योग बहुत अनुकूल है। अगर आप कोई नई कला सीखना चाहते हैं, तो यह योग शुभ होता है। इस योग के दौरान सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
इन कार्यों के लाभकारी सर्वार्थ सिद्धि योग-
यह अवधि धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, हवन आदि के लिए यह शुभ है। इस दौरान प्रमोशन मिलने की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप किसी विवाद या मुकदमे में फंसे हैं, तो यह योग आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है। इस अवधि में विवाद सुलझने की संभावना बढ़ जाती है। नया व्यवसाय शुरू करना, नया घर या वाहन खरीदना, विवाह, शिक्षा, यात्रा आदि के सर्वार्थ सिद्धि योग को बेहद शुभ माना गया है।

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दो दिनों में 28 हजार श्रद्धालुओं ने किए बाबा बर्फानी के दर्शन

Amarnath Yatra 2024 : अमरनाथ यात्रा को लेकर हर साल की तरह इस बार भी भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. यात्रा के पहले दो दिन में 29 और 30 जून को 28 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने बाबा बर्फानी के दर्शन कर लिए हैं.
इस साल 52 दिन तक चलने वाली अमरनाथ यात्रा 29 जून को शुरू हुई थी, और 19 अगस्त को रक्षा बंधन के अवसर पर समाप्त होगी. श्रद्धालु 48 किलोमीटर लंबे पारंपरिक पहलगाम-गुफा तीर्थ मार्ग से या फिर 14 किलोमीटर लंबे बालटाल-गुफा तीर्थ मार्ग से यात्रा करते हैं. पहलगाम मार्ग से गुफा मंदिर तक पहुंचने में चार दिन लगते हैं, जबकि बालटाल मार्ग से जाने पर ‘दर्शन’ करने के बाद उसी दिन वापस आधार शिविर लौट सकते हैं.
इस वर्ष लगभग 300 किलोमीटर लंबे जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर, दोनों यात्रा मार्गों पर, दोनों आधार शिविरों पर और गुफा मंदिर में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं, ताकि यात्रा सुचारू और निर्बाध हो सके. दोनों मार्गों पर और पारगमन शिविरों और गुफा मंदिर में 124 से अधिक ‘लंगर’ लगाए गए हैं. इस वर्ष की यात्रा के दौरान 7,000 से अधिक ‘सेवादार’ (स्वयंसेवक) यात्रियों की सेवा कर रहे हैं.
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बुध प्रदोष व्रत आज, जानिए...शिव पूजा का शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन शिव साधना आराधना को समर्पित प्रदोष व्रत बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का विधान होता है ऐसे में भक्त प्रदोष व्रत के दिन उपवास आदि रखते हुए शिव भक्ति में लीन रहते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
पंचांग के अनुसार हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है अभी आषाढ़ का महीना चल रहा है और इस माह के कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत आज 3 जुलाई बुधवार को किया जा रहा है बुधवार के दिन प्रदोष पड़ने के कारण ही इसे बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है
मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन शिव और माता पार्वती की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से जातक को मानसिक और शारीरिक कष्टों से राहत मिल जाती है और शिव कृपा बरसती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बुध प्रदोष पर शिव पूजा का मुहूर्त बता रहे हैं।
प्रदोष पर शिव पूजा का शुभ मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 3 जुलाई को सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर हो चुका है और इसका समापन अगले दिन यानी की 4 जुलाई को सुबह 5 बजकर 54 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में प्रदोष व्रत 3 जुलाई दिन बुधवार यानी की आज रखा जाएगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल यानी संध्या के समय करना शुभ माना जाता है ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है और दुखों का नाश हो जाता है।
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जुलाई में शादी के लिए उपयुक्त मुहूर्त, तारीखें और उपाय

जुलाई में शादी के लिए उपयुक्त मुहूर्त महत्वपूर्ण तारीखें और उपायजो लोग धैर्यपूर्वक शादी करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हैं, उनके लिए शादी और लग्न का मौसम बस आने ही वाला है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, शुभ काल जुलाई में शुरू होता है। एक प्रतिष्ठित ज्योतिषी तारीखों और क्या उम्मीद की जाए, इसके बारे में अधिक जानकारी प्रदान करता है। शादी समारोह का शुभ समय 9 जुलाई से शुरू होने की उम्मीद है और यह केवल 6 दिनों तक चलेगा। मान्यताओं के अनुसार, 5 जुलाई को शुक्र ग्रह उदय होगा, जो विवाह समारोह में एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
17 जुलाई को देवशयन एकादशी है, इसलिए यह अवधि अशुभ होने से कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाएगा। 17 जुलाई से चातुर्मास भी शुरू हो जाएगा.
हिंदू रीति-रिवाज में देवशयन के बाद विवाह नहीं मनाया जाता। अत: उक्त अवधि के बाद After the periodविवाह का शुभ मुहूर्त चार माह बाद 12 नवंबर को होगा। देवउठनी एकादशी के दिन से विवाह के लिए शुभ समय शुरू होगा। दी गई अधिक जानकारी more information के अनुसार, महूरत विवाह दिसंबर तक सिर्फ 16 दिनों तक चलने की उम्मीद है।
जुलाई में शादी का जश्न 6 दिनों तक चलेगा। इसका कारण यह है कि मई और जून में विवाह के कोई मुहूर्त नहीं थे. इसलिए जुलाई के बाद शादी करने का सही समय नवंबर और दिसंबर होगा।
17, 18, 22, 23, 24, 25, 26 और 27 नवंबर की तारीखें विवाह के लिए शुभ हैं। जबकि दिसंबर में 2, 4, 5, 6, 7, 11, 12 और 14 तारीखें हैं। जुलाई में विवाह मुहूर्त का आखिरी दिन 15 है। साथ ही 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास शुरू होगा। 12 नवंबर यानि देवउठनी एकादशी को समाप्त होगा।
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पटना में होगा भव्य रथ यात्रा, हाइड्रोलिक सिस्टम से बना भगवान जगन्नाथ का रथ

पटना। पटना में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में हाइड्रोलिक सिस्टम वाला रथ होगा पटना के निवासी जो इस वर्ष भव्य रथ यात्रा देखने के लिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर नहीं जा सकते, उन्हें अपने शहर में दिव्य परंपरा की खुराक मिल सकती है। सात जुलाई को पटना के विभिन्न मंदिरों से भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जायेगी. इस आयोजन की तैयारियां सभी मंदिरों में की जा रही हैं. रथों और मंदिरों को फूलों और मालाओं से सजाया जाता है और पूरा मंदिर परिसर रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगाता है। इस्कॉन मंदिर में शुरू होने वाली रथयात्रा को लेकर खासा उत्साह है. इस साल शहर में जुलूस के दौरान ड्रोन फूल गिराएंगे. रथयात्रा सिर्फ इस्कॉन मंदिर ही नहीं बल्कि गौड़ीय मठ और भीखमदास ठाकुरबाड़ी मंदिर से भी निकलेगी. इस्कॉन मंदिर से शुरू होने वाली जगन्नाथ यात्रा को लेकर लोग अभी से उत्साहित हैं. हर वर्ष देश-विदेश से अनेक श्रद्धालु भाग लेते हैं। रथ यात्रा "हरे कृष्ण हरे राम" के निरंतर जाप के साथ जारी है।
इस वर्ष मुख्य आकर्षण हाइड्रोलिक प्रणाली से सुसज्जित रथ होगा, जो बलभद्र और सुभद्रा के साथ भगवान जगन्नाथ को ले जाएगा। इस्कॉन पटना के अध्यक्ष कृष्ण कृपा दास के अनुसार, रथ यात्रा दोपहर में मंदिर परिसर से शुरू होगी और तारामंडल, आयकर गोलंबर, उच्च न्यायालय, बिहार संग्रहालय और पटना महिला कॉलेज से होते हुए वापस मंदिर पहुंचेगी। यात्रा के दौरान ड्रोन भगवान पर फूल गिराएंगे. पिछले 50 वर्षों से मीठापुर स्थित गौड़ीय मठ मंदिर रथ यात्रा का आयोजन करता आ रहा है. रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ, श्री बलभद्र और सुभद्रा जी एक रथ में सवार होकर मंदिर परिसर में परेड करेंगे। यह जुलूस भगवान को द्वारका से वृन्दावन लाने का प्रतीक है। रथयात्रा शाम 4 बजे शुरू होगी. इस अवसर पर अध्यक्ष भक्तिसागर महाराज रथ यात्रा से जुड़ी कथाएं सुनाएंगे, इसके महत्व, महत्ता और उत्सव से जुड़े रहस्यों के बारे में बताएंगे।
भिखमदास ठाकुरबाड़ी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तैयारी जोरों पर है। शाम 5 बजे मंदिर परिसर से रथयात्रा शुरू होगी. और हथुआ मार्केट, चूड़ी मार्केट, दिनकर चौराहा और देवी स्थान होते हुए नागा बाबा ठाकुरबाड़ी की ओर बढ़ें। भगवान की भव्य आरती की जाएगी। रात 9 बजे रथ वापस मंदिर पहुंचेगा। प्रतिभागियों में बाकरगंज, कदमकुआं, राजेंद्रनगर समेत अन्य इलाके के लोग शामिल होंगे. मंदिर के महंत जयनारायण दास सबसे पहले रथ की रस्सी खींचेंगे। उन्होंने कहा कि रथयात्रा पिछले चार वर्षों से मनाई जा रही है।
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जुलाई में ये ग्रह करने जा रहे हैं राशि परिवर्तन

  • कुछ राशियों के लकी, तो कुछ के लिए होगा अनलकी
जुलाई का महीना जल्द शुरू होने वाला है। हर महीने कई ग्रह अपना राशि परिवर्तन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि हर ग्रह एक निश्चित समय पर ही अपनी राशि बदलते हैं। सभी 12 राशियों पर इसका सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ऐसे में जुलाई माह में चार बड़े ग्रह अपनी राशि बदलने वाले हैं। ये ग्रह कुछ राशियों के लिए लकी साबित होने वाला है। पंडित हर्षित मोहन शर्मा के अनुसार आइए, जानते हैं कि जुलाई माह में कौन-से ग्रह अपना राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं।
जुलाई माह में गृह गोचर
शुक्र ग्रह गोचर-
7 जुलाई 2024 को शुक्र प्रातः 4:40 बजे कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। शुक्र ग्रह को सुख, समृद्धि, वाणी, सौंदर्य और धन का कारक माना जाता है। इस ग्रह गोचर का कर्क राशि के जातक के स्वभाव पर सकारात्मक असर होने वाला है। इस राशि परिवर्तन से जातकों की घरेलू चीजों में रुचि बढ़ सकती है। इस दौरान जातक अच्छी लाइफस्टाइल जिएंगे।
इसके बाद 11 जुलाई 2024 को शुक्र कर्क राशि में उदय होंगे। यह उदय प्रातः 7:58 बजे होगा। शुक्र के उदय होने के कारण जातक के व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव होने वाला है। यह समय प्रेम आकर्षण आदि के लिए अच्छा रहेगा।
मंगल गृह गोचर-
मंगल ग्रह 12 जुलाई 2024 को शाम 7:13 बजे वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। मंगल ग्रह को साहस और वीरता का प्रतीक माना जाता है। यह ग्रह व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करता है। इस ग्रह के राशि परिवर्तन से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव होने वाला है। साथ ही इस अवधि में व्यर्थ के वाद-विवाद में जातक घिरा रहेगा और नकारात्मक ऊर्जा महसूस कर सकता है।
सूर्य ग्रह गोचर-
सूर्य 16 जुलाई 2024 को प्रातः 11:28 बजे चंद्रमा की राशि कर्क में प्रवेश करेंगे। सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश कर्क संक्रांति कहलाता है। कर्क राशि जल तत्व की राशि भी मानी जाती है। बता दें कि इसी दिन सूर्य दक्षिणायन होंगे। यह एक शुभ योग है।
बुध गृह गोचर-
दिनांक 19 जुलाई 2024 को रात 08 बजकर 49 मिनट पर बुध ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। बुध ग्रह का सिंह राशि में प्रवेश एक अच्छा योग है। मिथुन राशि के जातक इस दौरान ऊर्जावान महसूस करेंगे। साथ ही इस दौरान जीवन में सकारात्मकता आएगी। विवाह से जुड़ी परेशानियां खत्म होंगी। सरकारी योजनाओं से लाभ प्राप्त हो सकता है।
लक्ष्मी नारायण योग-
31 जुलाई 2024 को दोपहर 2.39 मिनट पर शुक्र ग्रह, सूर्य की राशि सिंह में गोचर करेंगे। इस दौरान सिंह राशि में पहले से ही मौजूद बुध ग्रह से सूर्य और शुक्र की युति बनेगी। साथ ही लक्ष्मी नारायण नामक राजयोग भी बनेगा। इस योग के प्रभाव से जातक को अपार सफलता मिलेगी। बुद्धि, मान-सम्मान में भी वृद्धि होगी। इस दौरान जातक की बुद्धि तीव्र होगी।

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