धर्म समाज

स्कंद षष्ठी कल, इस विधि से करें भगवान कार्तिकेय की पूजा

  • दूर होंगे सभी कष्ट
हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी का महत्व बहुत अधिक होता है. खासकर उन भक्तों के लिए जो भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र, भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं. स्कंद षष्ठी का व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो. जिनके बच्चे हैं, वे उनकी लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए यह व्रत रखते हैं|
मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय बच्चों की रक्षा करते हैं. भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति और रोगों का नाश करने वाला माना जाता है. इस व्रत को करने से शारीरिक कष्ट और बीमारियां दूर होती हैं. तथा व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है. यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान है, मुकदमों में फंसा है, या किसी प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करना चाहता है, तो इस व्रत को करने से उसे विजय प्राप्त होती है|
द्रिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 31 मई दिन शनिवार को रात 8 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 1 जून दिन रविवार को रात 7 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 1 जून दिन रविवार को ही रखा जाएगा|
भगवान कार्तिकेय की ऐसे करें पूजा:
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
‘मम सकलदुःख-दारिद्रय-विनाशार्थं, पुत्र-पौत्रादि सकल संतान समृद्धर्थं, शत्रुपक्षविजयसिद्धयर्थं स्कंद षष्ठी व्रत करिष्ये’ मंत्र का जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें|
घर के मंदिर को साफ करें और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. यदि प्रतिमा न हो तो आप भगवान शिव और माता पार्वती के साथ उनकी पूजा कर सकते हैं|
इस दिन षष्ठी देवी की भी पूजा की जाती है, जो स्कंद माता का ही एक रूप मानी जाती हैं और संतान की रक्षा करती हैं|
ही, शहद से अभिषेक करें. उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, पीले या लाल फूल, माला, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें|
भगवान कार्तिकेय को मोर पंख, कुक्कुट (मुर्गा) का चित्र (यदि संभव हो), और लाल चंदन विशेष रूप से प्रिय हैं. इन्हें अर्पित करें|
भगवान कार्तिकेय को फल, मिठाई (विशेषकर मीठी खीर या गुड़-चने का प्रसाद) का भोग लगाएं और भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करें|
“ॐ स्कंदाय नमः”
“ॐ षष्ठी देव्यै नमः”
“ॐ कार्तिकेयाय नमः”
“ॐ शरवण भवाय नमः” (दक्षिण भारत में यह मंत्र बहुत प्रचलित है)
स्कंद षष्ठी पर न करें ये काम:
स्कंद षष्ठी के दिन और व्रत के पारण वाले दिन भी मांस, मदिरा (शराब), प्याज, लहसुन जैसे तामसिक भोजन का सेवन बिल्कुल न करें. इससे व्रत खंडित हो सकता है.
यदि आप पूर्ण व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन अन्न ग्रहण न करें. केवल फलाहार ही लें.
मन में किसी के प्रति क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक विचार न लाएं. किसी को भी अपशब्द कहने से बचें|
व्रत के दौरान झूठ बोलने से बचें और इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें.
कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन तिल का सेवन नहीं करना चाहिए.
व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही प्रारंभ कर देनी चाहिए. देर से पूजा शुरू करना उचित नहीं माना जाता है|
कष्टों को दूर करने के उपाय:
ऐसी मान्यता है कि संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति या जिनकी संतान अक्सर बीमार रहती है, उनके लिए इस दिन विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा करना शुभ होता है. मोर पंख अर्पित करना और मोर पंख को अपने घर में रखना भी शुभ माना जाता है. यदि आप शत्रुओं से परेशान हैं या किसी मुकदमे में फंसे हैं, तो भगवान कार्तिकेय की पूजा से विजय प्राप्त होती है. उन्हें लाल फूल और लाल वस्त्र अर्पित करें|
स्कंद षष्ठी का व्रत स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति के लिए भी लाभकारी माना जाता है. जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है, उनके लिए भी भगवान कार्तिकेय की पूजा अत्यंत फलदायी होती है, क्योंकि मंगल ग्रह के अधिष्ठाता देव कार्तिकेय ही हैं. स्कंद षष्ठी का व्रत श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर भगवान कार्तिकेय भक्तों पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं और उनके सभी कष्टों को दूर करते हैं|
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ज्येष्ठ मास की विनायक चतुर्थी आज

  • इस कथा को पढ़ने से बप्पा करेंगे आपकी सारी बाधाएं दूर
हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. हिंदू धर्म में श्री गणेश को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना गया है. इन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भी कहा जाता है|
सनातन धर्म में ग्रह दशाओं, शुभ योग और शुभ मुहुर्त का विशेष ध्यान दिया जाता है तभी हर त्यौहार की पूजा के लिए शुभ मुहुर्त देखने का विधान चला आ रहा है. इस बार विनायक चतुर्थी के शुभ दिन दो अति शुभ योगों का निर्माण हो रहा है. वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 30 मई को विनायक चतुर्थी का व्रत और पूजन है. वैसे तो ये व्रत प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है लेकिन इस बार रवि और सर्वार्थ सिद्धि योग के मिलाप से ये व्रत और भी फलकारी माना जा रहा है|
विनायक चतुर्थी का महत्व-
ये व्रत भगवान गणेश को समर्पित है जो भी भक्ति भाव से भगवान विनायक की पूजा और व्रत करता है उसके जीवन से सभी बाधाएं मिट जाती हैं. भगवान गणेण देवों में प्रथम पूज्य है. ये भक्तों के विध्न हर लेते हैं यही कारण है कि इन्हें विध्नहर्ता की संज्ञा दी जाती है. ये व्रत चतुर्थी के दिन रखा जाता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा से पुण्य प्राप्ति होती है.सारी मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं और शुभ कार्यों में आ रही बाधाएं भी दूर हो जाती हैं. विनायक चतुर्थी का व्रत रखकर भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करने से घर में सुख, सौभाग्य और समृद्धि की वर्षा होती है|
विनायक चतुर्थी व्रत कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे और चौपड़ खेल रहे थे. शिव जी ने खेल में हार-जीत का फैसला लेने के लिए एक पुतले बनाया और उसकी प्रतिष्ठा कर दी. भोलोनाथ ने उस पुतले से कहा कि वह खेल जीतने के बाद विजेता का फैसला करेगा. महादेव और देवी पार्वती चौपड़ खेलने लगे और माता पार्वती जीत गईं. आखिर में उस पुतले ने महादेव को विजेता घोषित कर दिया. यह फैसला सुन देवी पार्वती बहुत क्रोधित हो गईं और उन्होंने उस पुतले बालक को विकलांग होने का श्राप दे दिया|
इसके बाद उस बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि ये निर्णय गलती से हो गया. लेकिन देवी पार्वती ने कहा कि श्राप को वापस नहीं किया जा सकता है. इसके बाद देवी पार्वती ने उसे एक समाधान बताया और कहा कि नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने के लिए आएंगी और तुम्हें उनके बताए अनुसार एक व्रत करना होगा. इस व्रत से तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे. वह बालक कई सालों तक उस श्राप से पीड़ित रहा और एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने आईं. देवी पार्वती के कहे अनुसार, उस बालक ने नाग कन्याओं से गणेश जी की व्रत की विधि पूछी. फिर उस बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश के निमित्त व्रत किया, जिससे भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा|
बालक ने भगवान गणेश से प्रार्थना करने हुए कैलाश पर्वत तक पैदल चलने की शक्ति मांगी. भगवान गणेश ने बालक को आशीर्वाद दिया. गणपति के आशीर्वाद से वह बालक श्राप मुक्त हो गया और बाद में बालक ने श्राप से मुक्त होने की कथा कैलाश पर्वत पर महादेव को सुनाई. चौपड़ के दिन से ही माता पार्वती भगवान शिव से नाराज हो गई थीं. बालक के कहे अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश के निमित्त व्रत रखा और इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती का महादेव के प्रति क्रोध समाप्त हो गया|
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शुक्रवार के लिए करें ये उपाय, आर्थिक तंगी होगी दूर

देवी महालक्ष्मी की पूजा वैसे तो प्रतिदिन करें। संभव न हो तो शुक्रवार का दिन अवश्य रखें। जिस पर यह मेहरबान हो जाता है, उसके जीवन से संबंधित धन से जुड़ी सारी आज़ादी दूर हो जाती है। कुछ सरल उपाय करने से आर्थिक तंगी भरी जिंदगी से कोसो दूर रहता है और घर में धन का आगमन शुरू हो जाता है। लक्ष्मी दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है 'लक्ष्य' और 'मी' जिसका अर्थ है, लक्ष्य तक ले जाने वाली लक्ष्मी। इन आशीर्वाद के बिना कोई भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
लक्ष्मी जी शुक्रवार उपाय-
शुक्रवार की सुबह लक्ष्मी मंदिर में सफेद कमल के फूल और सफेद मिठाई से धन की प्राप्ति होती है।
शुक्रवार की शाम के समय पीपल के पास पंचमुखी दर्पण दिखाकर श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी से धन प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। प्रार्थना शीघ्र पूर्ण होगी।
शुक्रवार के दिन सुबह देवी लक्ष्मी के चरण में श्रीयंत्र स्थापित कर उनकी पूजा करें। इससे संबंधित धन एसोसिएटेड ऑपरेटिंग से इलेक्ट्रॉनिक्स है।
शुक्रवार की शाम के समय घर की उत्तर-पूर्व दिशा में गाय के शुद्ध घी में केसर का उपयोग करें। ऐसा करने से रुका हुआ धन आने के योग हैं।
शुक्रवार की शाम को देवी लक्ष्मी का चित्रपट या मूर्ति का पूजन करें। पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी के चरणों में 7 कौड़ी राखियां रखें। पूजा करने के बाद उन कैराइयों को जहां रहना है। आधी रात 12 बजे के बाद इन कौड़ियों को घर गाड़ ले से घन साँचे में मिला दिया गया प्रत्येक तत्व का जल्द ही हल हो जाएगा।
शीघ्र धन विष्णु प्राप्ति के लिए दक्षिणावर्ती शंख में केसर दूध मिलाप भगवान का अभिषेक करें।
लक्ष्मी जी की पूजा करते समय चांदी के सिक्के भी पूजा की थाली में रखें। पूजा होने के बाद इन पिंसल्स को सिक्के में रख दें। इससे जुड़ेंगे हमेशा रहेंगे और धन की आवक में भाग लेंगे।
अधिक मेहनत करने के बाद भी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है तो पीपल के 5 पत्तों को पीले चंदन से रंगकर बहते जल या तीर्थ स्थलों में प्रवाहित करने से लाभ होगा।
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निर्जला एकादशी व्रत पर करें तुलसी का ये उपाय,

  • मिलेगा आरोग्य और शांति का वरदान
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है और उन सभी में निर्जला एकादशी को सबसे कठिन लेकिन पुण्यदायी माना गया है। यह व्रत वर्ष में आने वाली 24 एकादशी में से सबसे विशेष है क्योंकि इसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। 2025 में निर्जला एकादशी का पर्व आस्था, संयम और आत्मशुद्धि का प्रतीक बनकर फिर से आने वाला है। इस वर्ष 6 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस विशेष अवसर पर तुलसी माता की पूजा और उनके उपाय करने से ना केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है बल्कि जीवन में आने वाली अनेक बाधाएं भी दूर होती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि निर्जला एकादशी का क्या महत्व है और इस दिन तुलसी से जुड़े कौन से उपाय हमें रोग-दोषों से मुक्ति दिला सकते हैं।
निर्जला एकादशी पर करें तुलसी के ये उपाय-
तुलसी की पूजा करें विशेष विधि से-
इस दिन सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और तुलसी के पौधे को गंगाजल से स्नान कराएं। दीपक जलाएं और रोली, चावल, फूल अर्पित करें। तुलसी के पास भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और दोनों की संयुक्त रूप से पूजा करें। इससे घर में सुख-शांति और रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसी की 108 परिक्रमा करें-
निर्जला एकादशी के दिन तुलसी की 108 बार परिक्रमा करने से व्यक्ति को जीवन में चल रहे मानसिक तनाव, बीमारी और शारीरिक पीड़ा से छुटकारा मिलता है। यह उपाय विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो लंबे समय से किसी बीमारी से जूझ रहे हैं।
तुलसी दल चढ़ाएं भगवान विष्णु को-
इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। तुलसी दल चढ़ाने से मानसिक शांति मिलती है और मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं।
तुलसी के पत्तों से जल बनाकर छिड़काव करें-
निर्जला एकादशी पर तुलसी के कुछ पत्तों को जल में डालकर उसे पूरे घर में छिड़कें। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण शुद्ध होता है। यह उपाय रोगों और मानसिक अशांति को दूर करने में मदद करता है।
जो व्यक्ति अपने जीवन में धन-संपत्ति की कामना रखते हैं, उनके लिए निर्जला एकादशी का दिन विशेष फलदायक हो सकता है। इस दिन एक विशेष उपाय करने से आर्थिक परेशानियां दूर होने लगती हैं।
इसके लिए सबसे पहले अपनी लंबाई के बराबर लाल या पीले रंग का कलावा लें। फिर तुलसी माता के सामने खड़े होकर अपनी मन की कामना विशेष रूप से धन से जुड़ी बात तुलसी माता को बताएं। इसके बाद वह कलावा श्रद्धापूर्वक तुलसी के पौधे पर बांध दें। साथ ही, पीले रंग का एक धागा लें और उसमें 108 छोटी-छोटी गांठें लगा लें। यह धागा भी तुलसी माता के चारों ओर लपेट दें। ऐसा करने से न केवल आर्थिक तंगी दूर होती है, बल्कि घर में लक्ष्मी जी का वास होता है और धन से जुड़े काम बनने लगते हैं। यह उपाय श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा के साथ किया जाए तो निश्चित ही सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
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आज "रम्भा तीज" व्रत पढ़ें ये कथा

  • जानिए...पूजा मुहूर्त और विधि
हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रम्भा तीज का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विभिन्न अप्सराओं की पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। यह व्रत खासतौर पर पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।
इस वर्ष रंभा तीज का पर्व 29 मई 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धा और भक्ति से देवी रंभा, लक्ष्मी माता, पार्वती और भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
रंभा तीज व्रत पूजा विधि-
व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रंभा देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करें और देवी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में मौसमी फल, लाल पुष्प, काली चूड़ियां, पायल, आलता, इत्र आदि अर्पित करें। सोलह श्रृंगार करके श्रद्धा से व्रत का संकल्प लें।
रंभा तीज की पौराणिक कथा-
रंभा तीज का पर्व एक अत्यंत दिव्य और अलौकिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसका संबंध सीधे समुद्र मंथन की घटना से है। पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन आरंभ हुआ तो उसमें से क्रमशः 14 बहुमूल्य रत्न उत्पन्न हुए। इन्हीं अद्भुत रत्नों में से एक थीं, रंभा, जो एक अप्सरा थीं। वे अप्सराओं की रानी मानी जाती थीं और अद्वितीय सौंदर्य, मधुर वाणी, नृत्य-कला और मोहक स्वभाव की प्रतीक थीं। उनकी उपस्थिति मात्र से ही चारों दिशाओं में सौंदर्य और आकर्षण की लहर दौड़ जाती थी।
रंभा जब समुद्र से प्रकट हुईं, तो देवताओं और असुरों दोनों के मन में उन्हें पाने की लालसा जाग उठी। देवता उन्हें स्वर्ग की शोभा मानते हुए अपने साथ रखना चाहते थे, वहीं असुर भी उनके अप्रतिम सौंदर्य से मोहित होकर उन्हें अपने पक्ष में करने के इच्छुक थे। परंतु रंभा ने न तो देवताओं को चुना, न ही असुरों को।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे किसी की संपत्ति नहीं हैं और वे केवल उस पथ पर चलेंगी जो धर्म, सत्य और आत्मसम्मान से जुड़ा होगा। उनका यह निर्णय तीनों लोकों में उनके चरित्र और नारी-स्वाभिमान की मिसाल बन गया। उनकी यही भावना उन्हें अन्य अप्सराओं से अलग बनाती है। रंभा तीज का पर्व नारी-सम्मान, वैवाहिक सौभाग्य और आत्मबल की प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
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29 मई को राहु-केतु का मार्गी होना तय, अब इन राशियों की बढ़ेंगी परेशानियां

राहु और केतु का गोचर ज्योतिष शास्त्र में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ये दोनों छाया ग्रह जब भी राशि बदलते हैं तो सभी राशियों पर इनके गोचर का अच्छा बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। 18 मई को राहु और केतु राशि परिवर्तन कर चुके हैं। राहु का गोचर जहां कुंभ में हुआ था वहीं केतु सिंह राशि में आए थे। हालांकि इनका स्पष्ट गोचर 29 मई 2025 को होगा। स्पष्ट गोचर का अर्थ है कि इनका अच्छा बुरा प्रभाव अब सभी राशियों को देखने को मिलेगा। आइए ऐसे में जान लेते हैं की किन राशियों के लिए राहु केतु का स्पष्ट गोचर प्रतिकूल साबित हो सकता है और इन राशियों को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
मेष राशि-
राहु केतु के गोचर के बाद आपकी राशि पर प्रभाव दिखना स्वाभाविक था लेकिन 29 मई को स्पष्ट गोचर के बाद प्रतिकूल प्रभावों में अधिकता देखने को मिल सकती है। खासकर धन से जुड़ी समस्याओं का आपको सामना करना पड़ सकता है। अगर धन संचित किया था तो वो काम आएगी। इस दौरान ईएमआई की किस्तें चुकाने में दिक्कतों का सामना इस राशि के कुछ जातकों को करना पड़ सकता है। मानसिक तनाव इस राशि के जातकों को हो सकता है। कार्यक्षेत्र में कुछ ऐसे बदलाव हो सकते हैं जिसके कारण आप परेशान होंगे। क्रोध की अधिकता के कारण कुछ लोगों से आपकी दूरी बन सकती है। इस दौरान उपाय के तौर पर आपको जानवारों को दान या रोटी खिलानी चाहिए।
सिंह राशि-
राहु-केतु का स्पष्ट गोचर आपकी निर्णय लेने की क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। अचानक से इस दौरान करियर में नकारात्मक परिवर्तन आने से आप परेशान होंगे। सेहत में भी गिरावट इस राशि के जातकों को देखने को मिल सकती है। इस दौरान उन लोगों से दूर रहें जो मुंह के सामने तो आपके प्रिय बनते हैं लेकिन पीठ पीछे आपके खिलाफ बातें करते हैं। ऐसे लोगों से आपको धन का नुकसान भी हो सकता है। पारिवारिक स्थिति भी थोड़ी डामाडोल होगी, शांति के साथ आपको पारिवारिक मुद्दों को सुलझाना होगा। उपाय के तौर पर राहु ग्रह के बीज मंत्र- 'ॐ रां राहवे नमः' का जप करें।
कन्या राशि-
राहु-केतु का स्पष्ट गोचर आपकी राशि से छठे भाव में होगा। इस गोचर के चलते आप भ्रम का शिकार हो सकते हैं। करीबियों को लेकर गलत राय बनाना आपको भारी पड़ेगा। माता-पिता की सेहत में गिरावट आपकी चिंता का विषय बन सकती है। इस दौरान समाजिक समारोह में बातचीत संभलकर करें नहीं तो मान हानि हो सकती है। इस राशि के जातकों को संतान पक्ष को लेकर भी संभलकर रहना होगा। करियर के क्षेत्र में भी उतार-चढ़ाव का सामना आपको करना पड़ सकता है। दूसरों की राय से ज्यादा इस दौरान अपने अंतर्मन की आवाज सुनें। उपाय के तौर पर आपको नीले वस्त्र धारण करने चाहिए और यथासंभव दान करना चाहिए।
मीन राशि-
आपकी राशि से द्वादश भाव में राहु-केतु का स्पष्ट गोचर होगा। इस गोचर के प्रभाव से वैवाहिक जीवन में दिक्कतें आ सकती हैं। कुछ विवाह योग्य लोगों का रिश्ता टूटने की आशंका है। सेहत में भी गिरावट आ सकती है, आपको बाहर का तला भुना भोजन करने से इस दौरान बचना होगा। आर्थिक समस्याएं आपको और आपके पारिवारिक जीवन को अव्यवस्थित कर सकती हैं। गलत लोगों की संगति से इस दौरान दूर रहें नहीं तो नुकसान हो सकता है। वाद-विवाद की स्थिति में दूर ही रहें तो आपके लिए अच्छा होगा। उपाय के तौर पर आपको भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
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शुक्र ग्रह 3 दिन बाद करेंगे राशि परिवर्तन

  • इन 4 राशियों का चमकेगा भाग्य; धन-समृद्धि में होगी वृद्धि
शुक्र ग्रह का गोचर 31 मई को मंगल के स्वामित्व वाली मेष राशि में हो जाएगा। शुक्र के राशि परिवर्तन से कई लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखे को मिल सकते हैं। शुक्र कला, सौंदर्य, भौतिकता और रोमांस के कारक हैं। इसीलिए इनके राशि परिवर्तन करने के बाद राशिचक्र की कुछ राशियों को सकारात्मक इन विषयों से संबंधित अच्छे परिणाम मिलेंगे। आइए ऐसे में जान लेते हैं कि शुक्र का यह गोचर किन राशियों के लिए अच्छे बदलाव लेकर आएगा।
कर्क राशि-
शुक्र ग्रह का गोचर आपकी राशि के दशम भाव में होगा। इस भाव में शुक्र के होने से आपको करियर में लाभ होगा। जिन लोगों की पदोन्नति लंबे समय से रुकी हुई थी उन्हें शुभ समाचार मिल सकता है। कार्यक्षेत्र में स्त्री पक्ष से आपको विशेष लाभ हो सकता है। जो लोग कला के क्षेत्रों से जुड़े हैं उन्हें उपलब्धि मिल सकती है। किस्मत का भी भरपूर सहयोग इस राशि के जातकों को मिल सकता है।
तुला राशि-
शुक्र आपकी ही राशि के स्वामी हैं और मेष राशि में गोचर के दौरान आपके सप्तम भाव में होंगे। इस भाव में शुक्र के होने से पारिवारिक जीवन में सुख की प्राप्ति आपको हो सकती है। जीवनसाथी के साथ आपके संबंध सुधरेंगे, प्यार और रोमांस की अधिकता देखने को मिलेगी। भाग्य के सहारे आपको करियर क्षेत्र में भी उचित परिणाम मिल सकते हैं। तुला राशि के कई लोग इस दौरान घर की साज-सज्जा के लिए महंगा सामान खरीद सकते हैं।
धनु राशि-
इस राशि के जातकों के प्रेम जीवन में सकारात्मक बदलाव आएंगे क्योंकि शुक्र आपके पंचम भाव में होंगे। अपनी भावनाओं को आप अच्छी तरह से इस दौरान व्यक्ति कर पाएंगे। कुछ प्रेमी जोड़े इस दौरान विवाह के बंधन में भी बंध सकते हैं। इस राशि के शिक्षार्थियों की मेहनत भी रंग लाएगी। खासकर जो बच्चे मीडिया, कला, गायन, वादन आदि के क्षेत्र में हैं उनके लिए समय बेहद खास रहेगा। आपकी किस्मत का सितारा इस दौरान चमक सकता है।
मकर राशि-
घर परिवार में कोई मांगलिक कार्य इस दौरान हो सकता है। आपमें ऊर्जा की अधिकता देखने को मिलेगी। गिले-शिकवों को भुलाकर घर के लोगों के साथ अच्छा तालमेल बनेगा। कार्यक्षेत्र में भी आपको उचित परिणाम प्राप्त होंगे। माता के जरिए आपको धन लाभ प्राप्त हो सकता है। कुछ लोगों का घर, वाहन या भूमि खरीदने का सपना इस दौरान पूरा होगा। आलस्य को त्यागकर इस दौरान आप अपने काम पर फोकस करेंगे। सामाजिक स्तर पर आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
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ज्येष्ठ मास का आखिरी प्रदोष व्रत 8 जून को

  • जानें...व्रत से जुड़े जरूरी नियम
प्रदोष व्रत हर माह शुक्र पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. इस दिन लोग भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं. वहीं अगल-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत की महिमा भी अलग-अलग होती है.धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत सभी कष्टों को हरने वाला माना जाता है. इस व्रत का महिमा मंडन शिव पुराण में मिलता है. कहते हैं कि इस दिन पूजा और अभिषेक करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा जीवन के सभी दुखों छुटकारा मिलता है|
आषाढ़ माह का पहला प्रदोष व्रत कब है:
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 8 जून को सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 9 जून को सुबह 9 बजकर 35 मिनट पर होगा. ऐसे में जेष्ठ माह का आखिरी प्रदोष व्रत 8 जून को रखा जाएगा. वहीं दिन महादेव की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 18 मिनट से लेकर 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. इस दौरान भक्तों को पूजा के लिए कुल 2 घंटे 1 मिनट का समय मिलेगा|
प्रदोष व्रत में क्या नहीं करें:
प्रदोष व्रत के दिन व्रती को नमक के सेवन से बचना चाहिए. साथ ही प्रदोष काल में कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए.
तामसिक भोजन, मांसाहार और शराब का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए. साथ ही काले रंग के वस्त्र पहनने से बचना चाहिए.
मन में किसी भी व्यक्ति लिए नकारात्मक विचार नहीं लाने चाहिए. किसी से कोई विवाद नहीं करना चाहिए.
झूठ बोलने और बड़ों का अपमान या अनादर नहीं करना चाहिए|
प्रदोष व्रत में क्या करें:
प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
इसके बाद शिव जी का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें.
प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर बेलपत्र, गंगाजल, दूध, दही, शहद चढ़ाएं.
इस दिन शिव प्रतिमा या शिवलिंग को चंदन, रोली और फूलों से सजाएं.
प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक दोनों कर सकते हैं.
प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग के सामने धूप-दीप जलाकर आरती करें.
इस दिन शिव पुराण का पाठ जरूर करें|
प्रदोष व्रत के दिन जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें.
प्रदोष व्रत के दिन फल, कपड़े, अन्न, काले तिल और गौ दान करने से पुण्य फल प्राप्त होता है|
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गंगा दशहरा पर्व 5 जून को, इस शुभ मुहूर्त में करें स्नान और दान

  • मिलेगा पितरों का आशीर्वाद
गंगा दशहरा हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे गंगा नदी के पवित्रता और महत्व के कारण मनाया जाता है। यह पर्व ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है, और इस साल गंगा दशहरा 2025 का पर्व 5 जून को मनाया जाएगा। गंगा नदी को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार, गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पाप, दोष, रोग और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। खासकर, गंगा दशहरा पर गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के दस मुख्य पापों से मुक्ति मिलती है, जो उसे पुण्य प्राप्ति में बाधक होते हैं।
गंगा दशहरा की तिथि और शुभ मुहूर्त:
गंगा दशहरा दशमी तिथि आरंभ : 4 जून, रात्रि 11:54 मिनट पर
गंगा दशहरा दशमी तिथि समाप्त: 6 जून, रात 2 बजकर 15 मिनट पर होगा।
दया तिथि के अनुसार इस बार गंगा दशहरा का पर्व 5 जून, 2025 को मनाया जाएगा
गंगा दशहरा के स्नान का शुभ मुहूर्त:
सिद्धि योग: प्रातः 9:14 मिनट तक
रवि योग और हस्त नक्षत्र का संयोग भी रहेगा, जो इस दिन की महिमा और शुभता को बढ़ाता है।
तैतिल करण: दोपहर 01: 02 मिनट तक
गर करण: देर रात 02:15 मिनट तक रहेगा।
इस दौरान स्नान और दान करने से विशेष लाभ होता है।
गंगा दशहरा का धार्मिक महत्व:
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा के पीछे एक धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यता जुड़ी हुई है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा भगीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं। गंगा के धरती पर आने के बाद, राजा भगीरथ ने गंगा में स्नान करके अपने पितरों को मोक्ष दिलवाया। तभी से गंगा को पवित्र और पुण्यदायिनी नदी माना जाने लगा।
शास्त्रों के अनुसार, गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पाप, दोष, रोग और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। खासकर, गंगा दशहरा पर गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के दस मुख्य पापों से मुक्ति मिलती है, जो उसे पुण्य प्राप्ति में बाधक होते हैं। इन दस पापों में अहंकार, क्रोध, चोरी, व्यभिचार, झूठ, द्वेष, ब्रह्म हत्या, गो हत्या, मदिरापान और श्वान हत्या शामिल हैं। इस दिन गंगा स्नान करने से इन पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।
गंगा दशहरा पर क्या करें:
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान के अलावा पूजा, जप, तप और दान का विशेष महत्व है। गंगा स्नान के बाद मां गंगा की पूजा करनी चाहिए। साथ ही भगवान शिव की पूजा भी विशेष रूप से करनी चाहिए क्योंकि गंगा नदी उनके आशीर्वाद से धरती पर आई थीं। इसके बाद दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ होता है। गंगा दशहरा के दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
गंगा दशहरा पर दान के प्रकार:
इस दिन नए वस्त्रों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
जरूरतमंदों को अनाज का दान करने से घर में बरकत आती है।
जल से संबंधित वस्तुएं जैसे घड़ा, लोटा आदि का दान करना पुण्य का कारण बनता है।
फल और मिठाई का दान करने से जीवन में खुशियां आती हैं।
रिश्तों में मिठास बढ़ाने और धन की प्राप्ति के लिए गुड़ और चांदी का दान करें।
पितरों के निमित्त दान:
गंगा दशहरा पर पितरों के लिए दान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों के नाम से दान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। पितरों के निमित्त वस्त्र, अन्न या किसी अन्य वस्तु का दान किया जा सकता है।
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वट सावित्री व्रत आज, इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा, बन रहा है दुर्लभ संयोग

वट सावित्री व्रत के प्रभाव से न केवल पति की दीर्घायु प्राप्त होती है, बल्कि वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि भी बनी रहती है. इस व्रत में विधिपूर्वक पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. खास बात यह है कि इस वर्ष व्रत के दिन एक बेहद दुर्लभ संयोग बन रहा है. आइए शास्त्रों के अनुसार जानते हैं कि वट सावित्री व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है.
वट सावित्री व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं. वट सावित्री व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष, यानी 2025 में, यह व्रत आज 26 मई, सोमवार को आयोजित किया जा रहा है. इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा करती हैं. कहा जाता है कि वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से पुनः प्राप्त किए थे.
इस व्रत के प्रभाव से पति की दीर्घायु के साथ-साथ वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है. हालांकि, इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करना अत्यंत आवश्यक है. इस दिन एक अत्यंत दुर्लभ संयोग बन रहा है. आइए जानते हैं शास्त्रों के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है.
वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025, सोमवार को मनाया जाएगा. अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12:11 बजे प्रारंभ होकर अगले दिन 27 मई को सुबह 8:31 बजे समाप्त होगी.
आज बन रहा है ये दुर्लभ संयोग
व्रत के दिन भरणी नक्षत्र, शोभन योग और अतिगण्ड योग का शुभ संयोग बन रहा है. इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक रहेगा. यह समय व्रत और पूजा के लिए अत्यंत फलदायक माना जाता है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार वट सावित्री व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जिससे यह सोमवती अमावस्या भी बन रही है. यह संयोग अत्यंत दुर्लभ और सौभाग्यशाली माना जाता है. साथ ही, चंद्रमा इस दिन अपनी उच्च राशि वृषभ में संचार करेगा, जो शुभ संकेत है.
 
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सोमवार को रुद्राष्टकम पाठ से प्रसन्न होते हैं शिव, मिलता है मनचाहा वरदान

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को संहारक नहीं, बल्कि कल्याणकारी देव के रूप में जाना जाता है। वे सृष्टि के संचालन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। शिव भक्तों के लिए सोमवार का दिन विशेष माना जाता है, और इस दिन भगवान शिव की पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। खासतौर पर अगर कोई भक्त सच्चे मन से शिव रुद्राष्टकम का पाठ करे, तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
क्या है रुद्राष्टकम?
रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। इसे संस्कृत के महान विद्वान और तुलसीदास जी ने रचा था। यह आठ छंदों (अष्टक) में विभाजित है और इसमें भगवान शिव के रूप, स्वभाव, शक्ति और उनके अद्वितीय स्वरूप का वर्णन है। रुद्राष्टकम का पाठ आत्मिक शांति, मन की स्थिरता और जीवन के हर संकट से मुक्ति के लिए किया जाता है।
सोमवार और भगवान शिव का विशेष संबंध
हिंदू पंचांग के अनुसार, सप्ताह का सोमवार दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखना, शिवलिंग पर जल व बिल्वपत्र चढ़ाना, "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करना और विशेष रूप से रुद्राष्टकम का पाठ करना, भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।मान्यता है कि जो व्यक्ति सोमवार के दिन श्रद्धा से शिव रुद्राष्टकम का पाठ करता है, उसकी जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं। विशेष रूप से विवाह, संतान सुख, आर्थिक संकट और मानसिक परेशानियों के लिए यह पाठ अत्यंत उपयोगी माना गया है।
रुद्राष्टकम पाठ के चमत्कारी लाभ
शत्रु पर विजय – यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा, बुरी दृष्टि और शत्रु बाधाओं से रक्षा करता है।
धन और समृद्धि – रुद्राष्टकम के पाठ से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं, जिससे धनागम के मार्ग खुलते हैं।
मानसिक शांति और आत्मबल – पाठ से चित्त स्थिर होता है और मन में सकारात्मकता बनी रहती है।
परिवार में सुख-शांति – दांपत्य जीवन में सामंजस्य बढ़ता है और घर में कलह दूर होता है।
कर्म और भाग्य सुधार – नियमित पाठ से संचित कर्मों के प्रभाव कम होते हैं और भाग्य प्रबल होता है।
रुद्राष्टकम पाठ की विधि
सोमवार के दिन प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक शांत स्थान पर आसन लगाएं और अपने सामने भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, दही और घी से अभिषेक करें। फिर चंदन, धूप, दीप और पुष्प अर्पित करें। इसके बाद श्रद्धा और एकाग्रता से रुद्राष्टकम का पाठ करें।यदि संभव हो तो पाठ के समय "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप भी करते रहें। इससे पाठ का प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। पाठ के बाद भगवान शिव से अपने कष्टों की निवेदन करें और अपनी मनोकामना प्रकट करें।
रुद्राष्टकम के कुछ प्रसिद्ध श्लोक
रुद्राष्टकम का आरंभिक श्लोक ही भगवान शिव के संपूर्ण स्वरूप का वर्णन करता है—
"नमामीशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥"
इस श्लोक का भावार्थ है कि "मैं उस परमेश्वर को नमस्कार करता हूँ जो मोक्ष का स्वरूप है, सबमें व्याप्त है, निर्गुण है, विकार रहित है और चिदाकाश में विराजमान है।"
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रुद्राष्टकम का महत्व
ध्वनि की शक्ति को आज का विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है। जब व्यक्ति श्रद्धा के साथ मंत्र या स्तोत्रों का जाप करता है, तो उसकी वाणी से निकलने वाली ध्वनि तरंगें शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। रुद्राष्टकम के श्लोकों में ऐसे ध्वनि-मूलक शब्द हैं जो हमारे भीतर के तनाव, भय और चिंता को कम करते हैं।
कौन करें रुद्राष्टकम का पाठ?
रुद्राष्टकम का पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष, ब्रह्मचारी हो या गृहस्थ। विशेषकर उन लोगों को यह पाठ अवश्य करना चाहिए जो अपने जीवन में बार-बार असफलता, मानसिक तनाव या शत्रु बाधा का सामना कर रहे हों। जो युवा करियर में सफलता की तलाश कर रहे हों, वे सोमवार के दिन रुद्राष्टकम पढ़ें, उन्हें अवश्य लाभ मिलेगा।
भगवान शिव करुणा, क्षमा और कल्याण के देवता हैं। उनकी भक्ति सरल है, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली। यदि आप जीवन में सुख, समृद्धि, सफलता और शांति चाहते हैं, तो हर सोमवार को रुद्राष्टकम का पाठ करें। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होगा, बल्कि सांसारिक कष्टों से भी रक्षा करेगा।इस सोमवार से ही शिव रुद्राष्टकम को अपने जीवन में स्थान दें और देखें कैसे आपकी मनोकामनाएं पूरी होने लगती हैं।
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खाटू श्याम के बदलते रंगों की कथा, आस्था और रहस्य का अद्भुत संगम

खाटू श्याम जी का मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। इस मंदिर में लाखों की संख्या में भक्त बाबा श्याम के दरबार में आते हैं और उनके दर्शन करते हैं। कलयुग के अवतार बाबा श्याम को हारे का सहारा कहा जाता है। कहा जाता है कि अगर कोई हारे हुए व्यक्ति बाबा श्याम के दरबार में आकर अपना सिर झुका ले तो उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यही वजह है कि बाबा श्याम के दरबार में भक्तों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
आज लोकल 18 की खास सीरीज में हम आपको खाटूश्याम जी के एक ऐसे रोचक तथ्य के बारे में बताएंगे जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आपने खाटूश्याम जी मंदिर जाकर बाबा श्याम के दर्शन किए होंगे या फिर सोशल मीडिया पर बाबा श्याम की तस्वीर तैरती हुई देखी होगी। इस दौरान आपने पाया होगा कि बाबा श्याम के सिर का रूप कभी काला तो कभी पीला होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि खाटूश्याम जी की मूर्ति का रंग कैसे बदलता है। आज की खास स्टोरी में हम आपको इसी रोचक और रहस्यमयी तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं।
दो रूपों में होते हैं बाबा श्याम के दर्शन-
बाबा श्याम एक माह में दो रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। कृष्ण पक्ष में वे श्याम वर्ण (पीला रंग) और शुक्ल पक्ष में पूर्ण शालिग्राम (काला रंग) के रूप में दर्शन देते हैं। श्री श्याम मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रताप सिंह चौहान ने बताया कि कृष्ण और शुक्ल पक्ष के अनुसार बाबा का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। कृष्ण पक्ष में बाबा को माथे से गालों तक तिलक के रूप में चंदन लगाया जाता है। इसे श्याम वर्ण रूप कहते हैं।
अमावस्या के दिन होता है बाबा का अभिषेक-
बाबा श्याम एक माह में 23 दिन इसी रूप में रहते हैं। अमावस्या के दिन बाबा का अलग-अलग प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। इससे मूर्ति अपने मूल रूप में प्रकट होती है। इसे शालिग्राम रूप कहते हैं। बाबा श्याम शुक्ल पक्ष के सात दिनों तक इसी रूप में रहते हैं। यानी खाटू बाबा की यह मूर्ति 23 दिन श्याम वर्ण और सात दिन शालिग्राम रूप में दर्शन देती है। श्रृंगार के साथ यह रूप बदलता है।
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रविवार को करें ये 6 उपाय, दूर होगी सारी परेशानियां

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, रविवार को सूर्य देव का दिन माना जाता है, और इन्हें ग्रहों का राजा कहा गया है। सूर्य की कृपा से व्यक्ति को न केवल स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि मिलती है, बल्कि वह सफलता और यश के मार्ग पर भी अग्रसर होता है। यदि सूर्य कुंडली में कमजोर होता है, तो जीवन में रुकावटें, शारीरिक समस्याएं और असफलताएं आने लगती हैं। ऐसे में सूर्य देव की पूजा और कुछ खास उपायों से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। सूर्य देव की विशेष कृपा से न सिर्फ ग्रह दोष शांत होते हैं, बल्कि जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। रविवार के दिन किए गए कुछ सरल उपायों से आप सूर्य देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें, सूर्य देव की पूजा करें, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, दान देना, सूर्य नमस्कार करना और लाल रंग के वस्त्र पहनना भी सूर्य देव को प्रसन्न करने के प्रभावी उपाय हैं। रविवार को किए गए ये उपाय न केवल आपकी जीवन में रुकावटें दूर करेंगे, बल्कि सफलता, सुख-शांति और समृद्धि के रास्ते भी खोलेंगे। इस दिन सूर्य देव की पूजा और आशीर्वाद से आप अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे लाल या पीले वस्त्र पहनें। फिर सूर्य को जल चढ़ाते समय "ॐ सूर्याय नमः", "ॐ आदित्याय नमः" जैसे मंत्रों का जाप करें। अर्घ्य देते समय लाल फूल, चंदन, अक्षत और नारियल अर्पित करें। इसके बाद सूर्य स्तोत्र का पाठ करें और दीपक जलाएं।
सूर्य नमस्कार रविवार को विशेष फलदायी माना जाता है। यह न सिर्फ सूर्य को प्रसन्न करता है, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत लाभकारी होता है। इससे शरीर और मन दोनों में ऊर्जा बनी रहती है और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
रविवार को दान देना भी शुभ माना गया है। इस दिन गुड़, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, चावल और दूध जैसे वस्तुएं दान करें। इससे न केवल पुण्य प्राप्त होता है बल्कि ग्रह दोष भी शांत होते हैं।
लाल रंग सूर्य देव को प्रिय है, इसलिए रविवार को लाल वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा में लाल वस्त्र पहनकर शामिल हों तो विशेष फल मिलता है।
साथ ही, घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर देसी घी का दीपक जलाएं। ऐसा माना जाता है कि इससे सूर्य देव के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी कृपा मिलती है, जिससे घर में धन और सौभाग्य का आगमन होता है।
घर से बाहर निकलते समय चंदन का तिलक लगाकर निकलें। यह तिलक शुभ फल देता है और कार्यों में सफलता दिलाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे जिस काम के लिए आप जा रहे हैं, वह निश्चित रूप से पूर्ण होता है।
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शनि जयंती और तीसरे बड़े मंगल का संयोग

  • सुख-शांति और धन लाभ के लिए करें ये उपाय
जेष्ठ माह में आने वाले सभी मंगलवार को बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल के नाम से जाना जाता है. यह दिन भगवान हनुमान को समर्पित है. कहते हैं कि इस दिन हनुमान जी पूजा करने से सभी कष्टों का अंत होता है. जेष्ठ माह के दो बुढ़वा मंगल बीत चुके हैं और तीसरे बड़े मंगल के दिन शनि जयंती है. मान्यता है कि अगर आपकी कुंडली में शनि दोष है, तो हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए. शनि जयंती और बड़ा मंगल के इस शुभ संयोग में कुछ आसान उपाय करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है|
तीसरा बड़ा मंगल और शनि जयंती कब है-
इस बार ज्येष्ठ माह का तीसरा बुढ़वा मंगल और शनि जयंती 27 मई को मनाई जाएगी. वैदिक पंचांग के अनुसार, यह इस तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई को रात्रि 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. ऐसे में शनि जयंती मंगलवार, 27 मई को मनाई जाएगी|
सुख-शांति और धन लाभ के लिए करें ये उपाय-
शनि देव स्वयं हनुमान जी के परम भक्त हैं और मान्यता है कि हनुमान जी की आराधना से शनि के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. इस दिन यदि एकसाथ दोनों देवताओं की विधिपूर्वक पूजा की जाए, तो जीवन के रोग, शोक, कर्ज, भय, बाधा और ग्रह दोष दूर हो सकते हैं|
इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि कर हनुमान जी की पूजा करे. उन्हें. सिंदूर, चमेली का तेल, लाल फूल और गुड़ चना अर्पित करें. इसके बाद हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ करे. इसके बाद शनिदेव की पूजा करें.उन्हें काले तिल, सरसों का तेल, नीले फूल और काले वस्त्र अर्पित करें. शनि स्तोत्र या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें. पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और 7 बार परिक्रमा करें|
शनि जयंती के दिन दान-पुण्य करना शुभ फलदायी माना जाता है. इस दिन जरूरतमंदों को काले तिल, काली उड़द, काले वस्त्र, लोहे का सामान, स्टील के बर्तन, कंबल आदि दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं|
शनि जयंती के दिन सुबह और शाम को 108 बार ऊँ शं शनैश्चाराय नमः का जाप करें. साथ ही इस दिन कुत्ते, कौवे, गाय, दिव्यांग, रोगी आदि के साथ भोजन ही करवाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती है|
अगर आप कर्ज से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो इसके लिए बड़े मंगल के दिन पूजा के समय ॐ हं हनुमते नमः मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके साथ ही हनुमान जी को फल और बूंदी का भोग लगाएं. मान्यता है कि इस उपाय को करने से जीवन में शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं|
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केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू ने सोमनाथ धाम में किए दर्शन

रायपुर। केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू ने रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ धाम पहुंचकर भगवान शिव के दर्शन किए। मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद मंत्री साहू ने कहा कि उन्हें यहां अपार आत्मिक शांति और गहन आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति हुई।
मंत्री साहू ने मंदिर परिसर की व्यवस्थाओं की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे धार्मिक स्थल समाज को आध्यात्मिक दिशा देने के साथ ही सांस्कृतिक विरासत से भी जोड़ते हैं। उन्होंने क्षेत्रवासियों और श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे नियमित रूप से ऐसे पवित्र स्थलों पर जाकर आस्था और संस्कारों को सुदृढ़ करें। उनकी यह यात्रा धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी दर्शाती है।
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जानिए...बड़मावस्या पर बरगद के पेड़ पर 7 बार क्यों लपेटा जाता है कच्चा धागा

हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा का खासा महत्व है. सनातन में वैसे भी बरगद के पेड़ को पूज्यनीय बताया गया है , लेकिन वट सावित्री व्रत के दिन इसकी पूजा का इतना खास क्यों माना जाता है. इन सारे सवालों के जवाब हमें हिंदू पौराणिक कथाओं में मिलते है. कहा जाता है बड़ के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है. बरगद के पेड़ की जड़ें ब्रह्मा, तना विष्णु, और शाखाएं शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं|
वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन की जाती है. इस व्रत को विवाहित महिलाओं को सौभाग्य और समृद्धि देने वाला बताया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं. ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री या बड़ा अमावस्या के नाम से जाना जाता है|
क्यों है इस दिन का महत्व:
इस दिन के महत्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं उसी में एक है कि इस दिन सावित्री ने अपने तप से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिये थे. तभी से इस व्रत की शरुआत हुई. महिलाएं सावित्री की तरह अपनी पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं. मान्यता है सावित्री की तरह इस व्रत को करने से उन्हें सुखी दाम्पत्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है|
कैसे होती है पूजा:
सावित्री व्रत में विवाहित महिलाएं नहाकर श्रृंगार करती है और बिना अन्न जल ग्रहण किए, ज्येष्ठ की गर्मी में बड़ के पेड़ की पूजा करती हैं सावित्री व्रत में वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा सूत का धागा 7 बार बांधने की परंपरा है जिसका सभी स्त्रियां पूरी आस्था से पालन करती हैं|
लेकिन आखिर क्यों वट के पेड़ को ही ये बांधा जाता है 7 बार ही क्यों बांधा जाता है इसके पीछे का कारण जान लेते हैं. दरअसल मान्यता है कि, वट वृक्ष में सात बार कच्चा सूत लपेटने से पति-पत्नी का संबंध सात जन्मों के लिए एक दूसरे से बंध जाता है. वहीं उनके पति पर आने वाली विपदाएं टल जाती हैं. इस व्रत का संबंध सत्यवान सावित्री की कथा से जुड़ा है|
वट सावित्री की कथा:
सदियों से प्रचलित वट सावित्री की कथा में वर्णित है कि इसी दिन यमराज ने सावित्री को उसके पति सत्यवान के प्राण लौटायें थे. जहां यमराज ने ये प्राण लौटाये वो वट वृक्ष ही था और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था. तभी से वट वृक्ष की लटकती हुई शाखाओं को सावित्री स्वरूप माना जाता है और वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की जाती है|
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अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु को अर्पित करें ये चीजें, चमक जाएगी आपकी किस्मत

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है और ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है.इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का विधान है. मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु को कुछ विशेष चीजों का भोग लगाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और किस्मत भी चमक सकती है. आइए जानते हैं कि अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को किन चीजों का भोग लगाना चाहिए|
अपरा एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा:
पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 22 मई को तड़के रात 1 बजकर 12 मिनट पर होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 23 मई को रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगा. ऐसे में अपरा एकादशी का व्रत 23 मई, शुक्रवार के दिन ही रखा जाएगा|
अपरा एकादशी के दिन लगाएं भगवान विष्णु को लगाएं इन चीजों का भोग
तुलसी दल
तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. किसी भी पूजा या भोग में तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु का भोग अधूरा माना जाता है|
फल
फल हमेशा से ही पूजा-पाठ में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को ताजे और मीठे फलों का भोग लगाना शुभ माना जाता है. आप केला, आम, अनार, सेब या अपनी पसंद के कोई भी मौसमी फल अर्पित कर सकते हैं. ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं|
पंचामृत
पंचामृत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है.यह पांच पवित्र चीजों – दूध, दही, घी, शहद और चीनी – का मिश्रण होता है. अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. इसे भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है|
मिठाई
भगवान विष्णु को मिठाई का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है. आप उन्हें अपनी पसंद की कोई भी पारंपरिक मिठाई जैसे पेड़ा, बर्फी या लड्डू अर्पित कर सकते हैं. मान्यता है कि मीठा भोग लगाने से जीवन में मधुरता आती है और रिश्तों में मिठास बनी रहती है|
खीर
खीर भगवान विष्णु को प्रिय व्यंजनों में से एक है.अपरा एकादशी के दिन चावल और दूध से बनी खीर का भोग लगाना अत्यंत फलदायी माना जाता है. इसमें तुलसी दल डालकर भोग लगाने से भगवान विष्णु जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं|
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी के दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और उन्हें इन विशेष चीजों का भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से न केवल भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य भी आता है|
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भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हुए मुख्यमंत्री साय

जशपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उनकी धर्मपत्नी कौशल्या साय ने बुधवार को कांसाबेल विकास खंड के ग्राम दोकड़ा के प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार पश्चात प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हुई उन्होंने भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना कर प्रदेश की सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना की मुख्यमंत्री ने दोकड़ा में 24 लाख 74 हजार की लागत से बनने वाले महतारी सदन का भूमि पूजन किया मुख्यमंत्री ने दोकड़ा के श्री जगन्नाथ मंदिर समिति के सदस्यों धन्यवाद देते हुए उनके कार्यों की सराहना की ग्रामवासी धर्म कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि दोकड़ा में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 1942 से निकाली जा रही है। रथ यात्रा की शुरुआत दोकड़ा गांव के पंडित स्व सुदर्शन सतपथी और उनकी धर्मपत्नी सुशीला सतपथी के द्वारा शुरू किया गया था। मंदिर का निर्माण 1968 में किया गया था। मंदिर के जर्जर होने के कारण मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उनकी धर्मपत्नी कौशल्या साय ने विगत वर्ष में संकल्प लिया गया था कि मंदिर का जिर्णोद्धार करने भगवान जगन्नाथ मंदिर को नव निर्मित भवन बनाएंगे और मुख्यमंत्री का संकल्प पूरा हुआ उन्होंने ग्रामवासियों को सहयोग के लिए धन्यवाद भी दिया है।
21 मई से प्रतिदिन विशाल मीना बाजार का भी होगा आयोजन हो रहा है इस दौरान 21 से 27 मई तक अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आयोजित धार्मिक कार्यक्रम अनुसार 21 मई को मैनी नदी बगिया से मंदिर प्रांगण तक कलश यात्रा निकाली गई। 22 मई को सुबह 7 बजे से सूर्य पूजन, गौ पूजन, मंदिर प्रवेश, पार्श्व विग्रह, नेत्र उनिजन, 23 मई को प्रातः 7 बजे से सूर्य पूजन, मंडल पूजन, शिखर कलश, एवं नीलचक्र स्थापना, पार्श्व विग्रह महास्नान, 24 मई को प्रातः 7 बजे से सूर्य पूजन, मंडल पूजन, यज्ञ हवन, 25 मई को श्री जगन्नाथ स्वामी जी, बलभ्रद्र जी, सुभद्रा जी का मंदिर प्रवेश एवं संध्या भव्य कलश यात्रा अधिवास तथा 27 मई को प्रातः 8 बजे पूर्णाहूति, दधीभंजन एवं नगर भ्रमण जिसमें ओडिशा के कीर्तन मंडली द्वारा ओड़िसा भजन की प्रस्तुति दी जाएगी। इसके पश्चात् महाप्रसाद वितरण एवं समापन होगा।
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