धर्म समाज

अष्टमी पूजन शुक्रवार को 12 बजे तक, उसके बाद महा नवमी

  • जानिए कन्या पूजन का मुहूर्त...
आदिशक्ति की आराधना के पर्व पर अष्टमी व नवमी को हवन-पूजन, कन्या भोज व भंडारा किया जाता है। कुछ परिवारों में अष्टमी पूजन की परंपरा तो कुछ परिवार नवमी के दिन हवन-पूजन कर नौ दिन के व्रत का पारण कर सकते हैं।
इस वर्ष शारदीय नवरात्र में अष्टमी व नवमी एक ही दिन शुक्रवार 11 अक्टूबर को पड़ेगी। इसलिए दोपहर साढ़े बारह बजे तक अष्टमी का पूजन और उसके बाद नवमी का पूजन किया जा सकता है।
इन दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ ही कन्या पूजन भी किया जाता है। मान्यता है कि कन्या भोज कराने से जीवन में भय, विघ्न और शत्रुओं का नाश होता है और समाज में भी नारी शक्ति को सम्मान मिलता है।
कन्या पूजन का मुहूर्त-
ऐसे में आप 11 अक्टूबर को मां महागौरी और देवी सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं। इस दौरान अष्टमी को कन्या पूजन करने वाले लोग 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर छह मिनिट तक कन्या भोज कर सकते हैं। जबकि दोपहर 12 बजकर छह मिनट के बाद से नवमी के दिन व्रत का पारण करने वाले लोग कन्या पूजन कर सकते हैं।
कन्या पूजन करने की विधि-
नवरात्रि में कन्याओं का पूजन करने के लिए सबसे पहले जल से उनके पैर धोएं। फिर साफ आसन पर उन्हें बैठाएं।
इसके बाद खीर, पूरी, चने, हलवा आदि सात्विक भोजन की थाली तैयार करें। थाली माता के दरबार में रखें, भोग लगाएं।
सभी कन्याओं को टीका लगाएं और कलाई पर रक्षा सूत्र बांधें। उन्हें लाल चुनरी पहनायें, फिर उन्हें भोजन कराएं।
उनकी थाली में फल और दक्षिणा रख दें। कन्याओं को श्रद्धा अनुसार गिफ्ट दें तथा अंत में उनका आशीर्वाद लें।
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शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा

देशभर में शारदीय नवरात्रि की धूम है इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग अलग स्वरूपों की साधना आराधना की जा रही हैं ऐसे में आज नवरात्रि का आठवां दिन है जो कि मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा अर्चना को समर्पित है
इस दिन भक्त देवी मां महागौरी की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि महागौरी की पूजा करने से सुख समृद्धि का प्रवेश घर और जीवन में होता है साथ ही दुख मुसीबतें दूर हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महागौरी भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। शिव और शक्ति का मिलन ही संपूर्णता है।
मान्यता है कि नवरात्रि के अष्टमी पर महागौरी की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और माता के आशीर्वाद से सुख शांति और समृद्धि आती है इसके अलावा कुंवारी कन्याएं महागौरी की पूजा करके मनचाहा वर प्राप्त कर सकती हैं इस दिन पूजा पाठ के दौरान देवी की कथा का पाठ जरूर करें ऐसा करने से माता शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं महागौरी व्रत कथा।
माता महागौरी की व्रत ​कथा-
देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं. बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया था. तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा.
माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको गंगा में स्नान करने के लिए कहा. जिस समय माता पार्वती गंगा में स्नान करने गईं, तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं. मां गौरी अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं.
अष्टमी पर इस विधि से करें महागौरी की पूजा-
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर पूजा स्थल की साफ सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें। अब एक चौकी पर माता महागौरी की प्रतिमा स्थापित करें। मंदिर को फूलों और दीपक से सजाएं। साथ ही माता रानी को धूप, दीपक, फल, पुष्प, मिठाई, चंदन, रनोली, अक्षत अर्पित करें। इसके बाद महागौरी के मंत्रों का भक्ति भाव से जाप करें। देवी की आरती कर व्रत कथा का पाठ करें। अब भूल चूक के लिए माता रानी से क्षमा मांगे। इसके बाद पूजा समाप्त करें और गरीबों व जरूरतमंदों को प्रसाद व अन्य चीजों का दान करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महागौरी भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। शिव और शक्ति का मिलन ही संपूर्णता है। मान्यता है कि नवरात्रि के अष्टमी पर महागौरी की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं और माता के आशीर्वाद से सुख शांति और समृद्धि आती है इसके अलावा कुंवारी कन्याएं महागौरी की पूजा करके मनचाहा वर प्राप्त कर सकती हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मां महागौरी की पूजा सरल पूजा विधि बता रहे हैं।
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स्वच्छ दुर्गा समिति पंडाल को मिलेगा इनाम

रायगढ़। रायगढ़ में सप्तमी से दशमी तक मां दुर्गा के पंडालों में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इससे शहर में काफी भीड़ हो जाती है, जिसके कारण कई दुर्गा उत्सव समिति साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते। इसे लेकर नगर निगम आयुक्त सुनील कुमार चंद्रवंशी ने एडवाइजरी जारी की है।
इसमें कई बातों का ध्यान रखते हुए पंडालों में साफ-सफाई सुनिश्चित करने की बात कही गई है। स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता अभियान के तहत प्रतियोगिता को लेकर उन्होंने कहा है कि जो भी दुर्गा समितियां पंडालों में स्वच्छता का ध्यान रखेंगी।
उन समिति पंडालों के लिए अंक निर्धारित किए जाएंगे। इसी आधार पर शहर की दुर्गा उत्सव समिति को प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान के लिए चुना जाएगा और पंडाल के पदाधिकारियों और सदस्यों को स्मृति चिह्न और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।
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शारदीय के सातवें दिन आज मां कालरात्रि की पूजा, जानिए...पूजन विधि

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। आज नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि की विधिवत पूजा और व्रत करने से मां अपने भक्तों की सभी बुरी शक्तियों और अनिष्टों से रक्षा करती हैं।
साथ ही मां को अकाल मृत्यु का भय भी नहीं रहता। साथ ही तंत्र-मंत्र साधनों से मां कालरात्रि की पूजा करना विशेष फलदायी होता है। साथ ही मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति को धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि का स्वरूप, पूजा, मंत्र, पूजा विधि और आरती।
माँ कालरात्रि का स्वरूप-
अगर हम मां कालरात्रि के स्वरूप की बात करें तो माता का काले रंग का स्वरूप है। साथ ही माता की चार भुजाएं हैं। विशाल केशा हैं. वहीं कालरात्रि अपने विशाल रूप में मां के एक हाथ में शत्रु की गर्दन का नाश करती हुई और दूसरे हाथ में तेज तलवार लिए नजर आती हैं।
मां कालरात्रि पूजा विधि-
इस दिन सुबह जल्दी उठें और फिर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद लाल कंबल के आसन पर बैठकर मां की पूजा करें. साथ ही स्थापित मां कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र के चारों ओर गंगा जल छिड़कें। यदि कालरात्रि की कोई प्रतिमा या तस्वीर नहीं है तो आप मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं। इसके बाद घी का दीपक जलाएं. साथ ही मां को गुड़हल का फूल भी चढ़ाएं. वहां गुड़ खायें. अंत में आरती के बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करें।
माँ कालरात्रि भोग-
वहीं मां कालरात्रि के भोग की बात करें तो मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाने से वह जल्द प्रसन्न होती हैं. साथ ही आप मां कालरात्रि पर मालपुए का आनंद भी ले सकते हैं. ऐसा करने से आप नकारात्मक शक्तियों से बचे रहेंगे। साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूरी होंगी.
माँ कालरात्रि स्तोत्र पाठ-
हां कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
काम्बिजपण्डा काम्बिजस्वरुपिणी।कुम्तिघ्नी कुलिनर्तिनाशिनी कुल कामिनी।
कली ह्रीं श्रीं मंत्रवर्णेन कालकान्तकगतिनी। कृपामयी कृपारा कृपापा कृपागमा ॥
कालरात्रि कवच-
ॐ कालीमें हद्यमपतुपादुश्रिंकलारात्र।
रसानामपतुकौमारि भैरवी चक्षुनोर्ममखाउपजहेमेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वत्तानितुस्थानभियानिचकावचेनहि।तानिसर्वनिमे देवि समन्तमपतुस्तंभिनी।
कालरात्रि स्तुति मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
कालरात्रि प्रार्थना मंत्र-
एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्न खरास्थिता।
वम्पादोल्लसलो लताकंटकभूषणा।वर्धन मूर्धध्वज कृष्ण कालरात्रिभयंकरि।
नवरात्रि के सातवें दिन करें इन मंत्रों का जप
कवच मंत्र-
“ॐ कालरात्रि महाकाली, कपालि करालिनी।
धर्म पाप नाशिन्यै, रक्षं देहि सदा शिवे॥”
माता के इस मंत्र का जप करने से आपको आरोग्य की प्राप्ति होती है। यह मंत्र आपको एकाग्रता प्रदान करता है और आपके ज्ञान को बढ़ाता है। इन मंत्रों के अलावा कुछ अन्य मंत्र भी हैं जिनका जप आप नवरात्रि के सातवें दिन कर सकते हैं। यह मंत्र नीचे दिए गए।
ध्यान मंत्र-
“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥”
यह माता कालरात्रि का ध्यान मंत्र है। इस मंत्र का जप करने से आपको हर तरह के भय से मुक्ति मिलती है। साथ ही बड़े से बड़ा रोग भी इस मंत्र का जप करने से दूर हो सकता है।
कालरात्रि आरती-
कालरात्रि जय-जय महाकाली। काल के मुख से बचाने वाला। महाचंडी आपका अवतार है. महाकाली है तेरा पसरा..वह जो कपाल धारण करती है। दुष्टों का खून चखो कलकत्ता स्थान तुम्हारा है। मैं सर्वत्र आपका ही दर्शन देखता हूँ.. सभी देवता, सभी नर-नारी। ग्राम गुणगान तुम्हारा सब.. रक्तदंत और अन्नपूर्णा। कृपया कोई दर्द, कोई चिंता, कोई बीमारी न हो। न दुःख न संकट भारी। तुम्हें बचाने वाली महाकाली माँ। कालरात्रि माँ तेरी जय.

 

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पापांकुशा एकादशी का व्रत 13 अक्टूबर को, इन चीजों का करें दान

पापांकुशा एकादशी का व्रत करना बहुत शुभ होता है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है। वैदिक पंचांग के अनुसार हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को एकादशी मनाई जाती है। इस बार यह 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा. कहा जाता है कि इस व्रत (पापांकुशा एकादशी 2024) को रखने से सुख और समृद्धि मिलती है.
मनुष्य के सभी पापों का भी अंत हो जाता है। वहीं इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व होता है। इससे मनुष्य का कल्याण बढ़ता है। तो आइए जानते हैं कि इस उद्देश्य के लिए दान करने का क्या मतलब है। पापांकुशा एकादशी के दिन वस्त्र, अन्न, तुलसी के पौधे, मोर पंख और बुरे आचरण का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन चीजों को उपहार में देने से घर में हमेशा सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है। साथ ही, आपको पूरी जिंदगी पैसों की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 13 अक्टूबर को रात्रि 9:08 बजे से हो रहा है। इसके अलावा यह तिथि 14 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त हो रही है. कैलेंडर पर नजर डालें तो पापांकुशा एकादशी 13 अक्टूबर को मनाई जा रही है. वहीं, 14 अक्टूबर को वैष्णव समुदाय के प्रतिनिधि पापांकुशा एकादशी मनाएंगे.
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नवरात्रि में करें लौंग से जुड़े ये आसान उपाय, हर समस्या हो जाएगी दूर

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा का विधान है। इस दौरान माता की पूजा में विभिन्न चीजों का उपयोग किया जाता है। आज हम आपको इनमें से ही एक महत्वपूर्ण चीज के बारे में बताएंगे, जिसके इस्तेमाल से आपकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी और माता रानी आप पर कृपा बरसाएंगी। आज हम आपको लौंग के कुछ खास उपाय बताने जा रहे हैं। लौंग के दीपक से मां दुर्गा की आरती करना बेहद शुभ माना जाता है। पूजा पाठ और घर में मसाले के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली ये लौंग आपके कई सारे संकटों को दूर कर सकती है। नवरात्रि के दौरान लौंग से जुड़े कुछ अचूक उपाय करने से आपको कई तरह के लाभ मिलते हैं। साथ ही आप बुरी नजर से भी बच सकते हैं।
लौंग के आसान उपाय-
नवरात्रि में नौ दिनों के दौरान आप हर शाम अपने घर के मुख्य द्वार पर लौंग के तेल का दीया जलाएं। इस तेल में आप एक लौंग भी डाल दें। इससे घर के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सभी संकट भी दूर हो जाते हैं।
नवरात्रि के इन पवित्र दिनों में आप 7 लौंग लें और उसे एक लाल कपड़े में बांध दें। इसके बाद इसको घर की पूर्व दिशा में टांग दें। नौ दिन के बाद दशमी तिथि को इस पोटली को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें। माना जाता है कि ऐसा करने से आपका भाग्य खुल जाता है।
घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए नवरात्रि के दौरान घर के टॉयलेट और बाथरूम में 5 लौंग को जला दें। इस उपाय से यदि आपके घर पर किसी की बुरी नजर लगी है, तो आपको इससे छुटकारा मिल जाएगा। साथ ही घर में सकारात्मकता आएगी।
अष्टमी या नवमी तिथि के दिन जब आप हवन करें, तो उसमें आहुति के रूप में लौंग अवश्य डालें। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में बरकत होती है। साथ ही यदि आपके घर में कलह और क्लेश का वातावरण रहता है, तो वह भी उससे दूर हो जाता है और घर में सुख शांति का वास होता है।

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अष्टमी-नवमी तिथि पर ऐसे करें नवरात्रि हवन

शारदीय नवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण अवधि अष्टमी तिथि और नवमी तिथि है, जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। हालाँकि, बाकी दिन भी महत्वपूर्ण हैं। यह नौ दिवसीय त्योहार शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है और देवी दुर्गा की पूजा के लिए बेहद शुभ है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, 11 अक्टूबर को कन्या पूजन के बाद हवन अष्टमी नवमी (शारदीय नवरात्रि हवन 2024) है। देवी हवन (अष्टमी नवमी हवन शुभ मुहूर्त) का आयोजन करते समय आप यहां दी गई सामग्रियों का उपयोग निम्नलिखित तरीकों से अपनी सहायता के लिए कर सकते हैं-
हवन से पहले कठोर व्रत रखें।
पूजा कक्ष को साफ करें.
घर में गंगाजल छिड़कें।
अपनी मां के सामने दीपक जलाएं और विधिपूर्वक पूजा करें।
फल, हलवा, चना, बतासू, खीर और पूड़ी का भोग लगाएं।
पवित्र अग्नि में हवन सामग्री से देवी दुर्गा के मंत्रों से हवन करें।
आप किसी जानकार पुजारी को भी हवाना में आमंत्रित कर सकते हैं।
पूजा आरती संपन्न करें.
पूजा के दौरान हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
समृद्धि और खुशहाली के लिए देवी का आशीर्वाद लें।
फिर प्रसाद को परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों में वितरित करें।
शारदीय नवरात्रि के लिए हवन सामग्री-
हवन कुंड, बेल वृक्ष, चंदन, आम, पीपल और सूखा नीम, ब्राह्मी, पलाश, मुलैठी, अश्वगंधा, गूलर की छाल, लोबान, गुग्गल, चीनी, कपूर, गाय का घी, सूखा नारियल, जौ, चावल, काले रंग। तिल, रोली, धूप, दीपक, अगरबत्ती, इलायची, लौंग, 5 प्रकार के फल, पान, शहद, सुपारी, मिठाई, कलावा, गंगा जल, पंचामृत, हवन सामग्री का पैकेट, फूल माला, फूल जैसी चीजें जरूर रखें , रक्षा सूत्र, कुश स्थान, हवन ब्रोशर, खीर, पूड़ी आदि।
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नवरात्रि के छठे दिन इस विधि से करें मां कात्यायनी की पूजा

  • जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त एवं मंत्र
शारदीय नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कथ्यानी की पूजा की जाती है। इस वर्ष देवी की पूजा 8 अक्टूबर 2024, मंगलवार को की जाएगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह देवी दुर्गा ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित हुई हैं। कहा जाता है कि जो भक्त भक्तिभाव से देवी के इस रूप की पूजा (शारदीय नवरात्रि 2024 का छठा दिन) करते हैं, उन्हें जगत जनन के आशीर्वाद से सभी प्रकार के भौतिक सुखों का अनुभव होता है।
साथ ही जीवन खुशहाल बना रहे, इसलिए इस दिन पूजा-पाठ में कोई बाधा न आए, इसके लिए जरूरी बातों का ध्यान रखें। साधकों को नवरात्रि के छठे दिन सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। फिर साफ़ कपड़े पहन लें. मंदिर को साफ करें और मां कात्यायनी की मूर्ति पर ताजे फूल चढ़ाएं। तिलक कुमक लगाएं. फिर वैदिक मंत्रों का जाप करें और प्रार्थना करें। अपनी मां को कमल का फूल अवश्य दें। और उन्हें मधु की बलि दी गई। आरती के साथ पूजा समाप्त करें और क्षमा प्रार्थना करें।
कात्यायनी की मां शहद और मीठा पान चढ़ाने से बहुत प्रसन्न होती हैं। इन्हें प्रस्तुत करना आपकी अपनी सुंदरता को रेखांकित करता है। लाल रंग केटियानी की मां को समर्पित है। यह रंग साहस और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन रेग रैन पहनना बहुत शुभ माना जाता है और ऐसा करने वाले भक्तों को माता रानी के आशीर्वाद से सुरक्षा, साहस और समृद्धि मिलती है।
इस मुहूर्त में करें मां कात्यायनी की पूजा-
हिंदू पंचांग के अनुसार 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को शारदीय नवरात्रि का छठा दिन है जो कि मां कात्यायनी की पूजा अर्चना को समर्पित किया गया है इस दिन मां कत्यायनी की पूजा करने से भय मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है ऐसे में आज माता की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 19 मिनट से लेकर 10 बजकर 46 मिनट का है इसके बाद दूसरा शुभ मुहूर्त 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 14 मिनट तक है। इसके अलावा दोपहर का शुभ मुहूर्त 12 बजकर 14 मिनट से लेकर 1 बजकर 41 मिनट का है। अगला मुहूर्त सुबह के 3 बजकर 8 मिनट से लेकर 4 बजकर 36 मिनट का है।
मां कात्यायनी का पूजा मंत्र-
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
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कब रखा जाएगा नवमी का व्रत, 11 या 12 अक्टूबर को

  • जानिए...तिथि और कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
मां दुर्गा को समर्पित नवरात्र का त्योहार साल में 4 बार मनाया जाता है, जिसकी अपनी मान्यता और महत्व है। शारदीय नवरात्र में माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्र हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है, जो नवमी तिथि को समाप्त होती है। इस साल नवरात्र 12 अक्टूबर 2024 को समाप्त होगी।
नवरात्र में अष्टमी और नवमी तिथि की पूजन का काफी महत्व है। मान्यता है इन दो दिनों में जगत जननी का आराधना करने से जातक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। कुछ साधक अष्टमी तिथि को कन्या पूजन के बाद व्रत का समापन करते हैं। कुछ लोग नवमी पर अपना व्रत खोलते हैं।
शारदीय नवरात्र की नवमी कब है?
पंचांग के अनुसार, इस साल शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे से शुरू होकर 12 अक्टूबर की सुबह 10.57 बजे पर समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर 11 अक्टूबर को नवमी तिथि का व्रत रखा जाएगा।
अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को दोपहर 12.31 बजे से शुरू हो रही है, जो अगले दिन 11 अक्टूबर को दोपहर 12.06 बजे समाप्त होगी। ऐसे में अष्टमी और नवमी तिथि का व्रत 11 अक्टूबर को रखा जाएगा।
नवमी तिथि पर पूजा का शुभ मुहूर्त
11 अक्टूबर 2024 को सिंहवाहिनी की आराधना के लिए तीन शुभ मुहूर्त है। अष्टमी और नवमी तिथि पर आध्या शक्ति की पूजा का समय सुबह 06.20 बजे से 07.47 बजे तक है। उन्नति मुहूर्त सुबह 07.47 बजे से 09.14 बजे तक है। वहीं, अमृत मुहूर्त सुबह 09.14 बजे से 10.41 बजे तक है।
कन्या पूजन कब है?
पंचांग के अनुसार, इस साल अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन ही पड़ रही है। ऐसे में 11 अक्टूबर को कन्या पूजा करना शुभ है। कन्या पूजन का मुहूर्त सुबह 10.41 बजे तक है। राहु काल सुबह 10.41 बजे से दोपहर 12.08 बजे तक रहेगा।
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इस मुहूर्त में करें स्कंदमाता की पूजा, मिलेगा दोगुना फल

हिंदुओं का प्रमुख पर्व नवरात्रि चल रहा है जिसका आरंभ इस बार 3 अक्टूबर से हो चुका है और समापन 11 अक्टूबर को हो जाएगा। इसके अलगे दिन दशहरा पर्व मनाया जाएगा। आज यानी 7 अक्टूबर दिन सोमवार को शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन है जो कि मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप देवी स्कंदमाता को समर्पित है।
इस दिन भक्त माता रानी के इस रूप की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि स्कंदमाता की पूजा अर्चना जीवन का कल्याण करती है और दुख परेशानियों को दूर कर देती है।
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा अर्चना शुभ मुहूर्त में करें ऐसा करने से दोगुना फल मिलता है तो आज हम आपको देवी साधना का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
स्कंदमाता की पूजा का शुभ मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का आरंभ 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 48 मिनट पर होगी वही इसका समापन 8 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 18 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में स्कंदमाता की पूजा अर्चना के लिए दिनभर का समय प्राप्त हो रहा है इस दौरान देवी साधना करना लाभकारी होगा।
स्कंदमाता की पूजा विधि-
नवरात्रि के पांचवे दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद देवी की प्रतिमा को स्थापित करें और गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। माता को पीली चीजें प्रिय हैं। इसलिए पीले पुष्प, फल, पीले वस्त्र आदि देवी को अर्पित करें साथ ही अगर आप अग्यारी करते हैं तो रोज की तरह लौंग, बताशा आदि चीजें अर्पित करें इसके बाद माता को रोली, अक्षत, चंदन अर्पित करें फिर केले का भोग लगाएं इसके बाद घी का दीपक या कपूर से माता की आरती करें और जयकारे लगाएं। फिर दुर्गा सप्तशती और चालीसा का पाठ भक्ति भाव से करें। साथ ही देवी के मंत्रों का भी जाप करें शाम के समय माता की आरती करें।
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9 अक्टूबर को गुरु होंगे वक्री, वृष राशि में चलेंगे उल्टी चाल

  • देश-दुनिया पर मंडराएगा संकट
धर्म, समाज, शिक्षा, आदि के कारक ग्रह गुरु 9 अक्टूबर, बुधवार रात्रि 8:50 बजे से वक्री होंगे। गुरु की उल्टी चाल से मौसम में बदलाव होगा। बारिश के योग फिर बनेंगे। धर्म समाज के क्षेत्र में भी उन्माद देखने को मिलेगा।
शत्रु राशि में वक्री गुरु का प्रभाव धार्मिक क्षेत्र में, धर्म स्थानों में संघर्षपूर्ण स्थितियां निर्मित कर सकता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित ज्योतिष मठ संस्थान के संचालक पंडित विनोद गौतम ने बताया कि गुरु आगामी 28 जनवरी 2025 तक उल्टी चाल चलेंगे।
गुरु का वक्री होना संकटकारी-
पंडित विनोद गौतम के अनुसार, वर्तमान समय पर चल रहे धर्म, कर्म के कार्य एवं प्रयागराज महाकुंभ मेला की स्थिति को देखते हुए गुरु का वक्री होना संकटकारी है। ऐसे में प्रयागराज कुंभ में विशेष सतर्कता की आवश्यकता है।
देश में धार्मिक उन्माद बढ़ाने के साथ टकराव की स्थितियां निर्मित होने की आशंका है। गुरु के वक्री होने के समय मौसम में अचानक परिवर्तन होगा। आठ अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक कई जगह वर्षा होगी।
11 अक्टूबर तक वर्षा का अंतिम नक्षत्र हस्त चलेगा। गुरु के राशि परिवर्तन का विभिन्न राशियों पर भी सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा। सलाह है कि लोग धर्म में मन लगाएं।
गुरु के राशि परिवर्तन का असर-
मेष- शुभ समाचार मिलेगा। धन लाभ के योग बन रहे हैं।
वृष- बीमारी के कारण शरीर का कष्ट रहे। ट्रांसफर हो सकता है।
मिथुन- व्यर्थ की चिंता करेंगे। परिजन-दोस्तों का सहयोग मिलेगा।
कर्क- स्वास्थ्य की चिंता सताएगी। व्यापार में धोखा मिल सकता है।
सिंह- धन लाभ के योग बन रहे हैं। हर कार्य में सफलता मिलेगी।
कन्या- रोग के कारण परेशानी रहेगी। प्रॉपर्टी में निवेश से लाभ होगा।
तुला- किसी पुरानी चिंता का निवारण होगा। धन में वृद्धि होगी।
वृश्चिक- भूमि का सौदा करेंगे। लाभ होगा। समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
धनु- यात्रा के योग हैं जिससे कष्ट का अनुभव होगा। पुत्र सुख का योग।
मकर- परिवार में कोई शुभ प्रसंग आएगा। यात्रा के दौरान परेशानी रहेगी।
कुंभ- श्रम अधिक रहेगा। लाभ के योग भी बन रहे हैं। योजना सफल होगी।
मीन- घर में मेहमानों का आगमन रहेगा। किसी विषय पर मतभेद रहेगा।
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शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन करें स्कंदमाता की पूजा

  • जानिए...स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र और आरती
  • नवरात्रि में करें इन नियमों का पालन...
हिंदुओं का प्रमुख पर्व नवरात्रि चल रहा है जिसका आरंभ इस बार 3 अक्टूबर से हो चुका है और समापन 11 अक्टूबर को हो जाएगा। इसके अलगे दिन दशहरा पर्व मनाया जाएगा। आज यानी 7 अक्टूबर दिन सोमवार को शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन है जो कि मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप देवी स्कंदमाता को समर्पित है इस दिन भक्त माता रानी के इस रूप की विधिवत पूजा करते हैं माना जाता है कि स्कंदमाता की पूजा-अर्चना जीवन का कल्याण करती है और दुख परेशानियों को दूर कर देती है। 
स्कंदमाता की पूजा विधि-
नवरात्रि के पांचवे दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद देवी की प्रतिमा को स्थापित करें और गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। माता को पीली चीजें प्रिय हैं। इसलिए पीले पुष्प, फल, पीले वस्त्र आदि देवी को अर्पित करें
साथ ही अगर आप अग्यारी करते हैं तो रोज की तरह लौंग, बताशा आदि चीजें अर्पित करें इसके बाद माता को रोली, अक्षत, चंदन अर्पित करें फिर केले का भोग लगाएं इसके बाद घी का दीपक या कपूर से माता की आरती करें और जयकारे लगाएं। फिर दुर्गा सप्तशती और चालीसा का पाठ भक्ति भाव से करें। साथ ही देवी के मंत्रों का भी जाप करें शाम के समय माता की आरती करें
स्कंद माता का मंत्र-
सिंहासनगता नित्यं,पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी,स्कंदमाता यशस्विनी।।
अर्थात् सिंह पर सवार रहने वाली मां और अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करने वाली यशस्विनी स्कंदमाता हमारे लिए शुभदायी हो।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां स्कंदमाता की आरती-
जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।
सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।
कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।
भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।
दासो को सदा बचाने आई। ‘चमन’ की आस पुजाने आई।।
पूजा के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर पढ़े
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥1॥
नवरात्रि में करें इन नियमों का पालन-
ज्योतिष अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों के अनुष्ठानों में कड़े नियमों का पालन करना होता है इनकी अनदेखी समस्याओं को पैदा कर सकती है ऐसे में अगर आप नवरात्रि के नौ दिनों के अनुष्ठान का संकल्प करते हैं तो इस दौरान भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन न करें इन्हें घर में लाने की भूल भी नहीं करनी चाहिए।
नवरात्रि में मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज का सेवन करने से बचना चाहिए। शाम के समय माता की आरती जरूर करें। नवरात्रि के नौ दिनों की अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करें साथ ही मन में किसी तरह का बुरा विचार उत्पन्न न होने दें। इसके अलावा क्रोध करने से बचनें। वाद विवाद या फिर झगड़ा भी न करें वरना देवी नाराज़ हो सकती हैं।
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चैतन्य देवियों की झांकी बनी लोगों के आकर्षण का केंद्र

भिलाई। तीन बार ओम की ध्वनि उच्चारण के साथ ब्रह्मांड की समस्त शक्ति से जुड़कर नवरात्रि के रूप में कन्या द्वारा नवदुर्गा के आध्यात्मिक रहस्य को बताते हुए सेक्टर 7 स्थित राजयोग भवन में चैतन्य देवियों की झांकी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। जिसमें एक के बाद एक चैतन्य देवियों का विशाल पर्वत एवं गुफाओं से प्रकट होकर जड़ मूर्ति के रूप में स्थिर होकर भक्तों को दर्शन दे उन्हें शांति और दिव्यता की अनुभूति करा रही है। सर्वप्रथम सांसद विजय बघेल, रजनी बघेल, डॉक्टर पीयूष गोयल (डायरेक्टर स्पर्श हॉस्पिटल) मुखोपाध्याय जी (ई डी प्रोजेक्ट ,भिलाई इस्पात संयंत्र),पंकज त्यागी (जी एम,एफ एस एन एल ) ब्रह्माकुमारी आशा दीदी द्वारा झांकी का दीप प्रज्वलन कर विधिवत उद्घाटन किया गया।
अष्टभुजा धारी दुर्गा मां की अष्ट शक्तियां (समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय लेने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति,विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति) हम सभी में मां के रूप में विद्यमान है। हमारे अंदर की हर शक्ति हमारी मां है। यह सन्देश मूर्ति रूप में विराजित चैतन्य देवियाँ दे रही है | ज्ञात हो की राजयोग मेडिटेशन के सतत अभ्यास द्वारा तन और मन की स्थिरता, एकाग्रता के कारण अचल और अडोल मूर्तियों के समान प्रतीत होती हैं कन्याएं।
यह झांकी 11 अक्टूबर तक सर्व के निशुल्क दर्शनार्थ प्रतिदिन शाम को 06:30 बजे से रात्रि 10 बजे तक रहेगी। झांकी के अंत में सभी को राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा बताया जा रहा है कि हमारे एक सकारात्मक विचार में सब कुछ बदलने की शक्ति है। इस अवसर पर जीवन में सच्ची सुख और शान्ति का अनुभव करने के लिए "गॉड्स पावर मेरे पास"(परमात्म शक्तियां मेरे जीवन में) दस दिवसीय राजयोग अनुभूति शिविर का निशुल्क आयोजन रविवार 13 अक्टूबर से रहेगा। जिसका समय प्रातः 7 बजे प्रातः 8 बजे एवम संध्या 5:30 से संध्या 6:30 या संध्या 7:30 से रात्रि 8:30 तक रहेगा। उपरोक्त किसी भी एक समय पर निशुल्क शिविर का लाभ ले सकते है।
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पापांकुशा एकादशी के दिन इन मंत्रों का करें जाप

  • जीवन में जाएगी खुशहाली 
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह व्रत 13 अक्टूबर (पापांकुशा एकादशी तिथि 2024) को रखा जाएगा। इस शुभ तिथि पर जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा है। अगर आप भी अपने जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो पापांकुशा एकादशी की पूजा करते समय इस लेख में दिए गए मंत्रों को दोहराएं। इससे आपको दुख और उदासी से राहत मिलेगी। साथ ही जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होगी।
1. या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
2. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।
3. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।
4. ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
5. ॐ ह्रीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी नृसिंहाय नमः ।
ॐ क्लीन क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी देव्यै नमः ।।
6. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।
7. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।
8. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
9. ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।
10. लक्ष्मी ध्यानम
सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवारांनिधिं,
कॊटीराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।
हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्तीं परां,
आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियां शार्ङ्गिणः ॥
भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,
रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवालेपनाढ्या ।
नाना कल्पाभिरामा स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,
पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रिये वः ॥
वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,
हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।
भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सेवितां,
पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥
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नवरात्रि में इन चीजों की खरीदारी से परिवार पर आएगा आर्थिक संकट

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन नवरात्रि को बहुत ही खास माना गया है जो कि देवी साधना का महापर्व होता है इस दौरान भक्त देवी मां दुर्गा की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी की कृपा बरसती है
इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार आरंभ हो चुका है और इसका समापन 11 अक्टूबर को हो जाएगा। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग अलग रूपों की पूजा अर्चना की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है माना जाता है कि ऐसा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है।
नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है और कल यानी 5 अक्टूबर दिन शनिवार को भक्त माता के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा अर्चना करेंगे तो आज हम आपको बता रहे हैं कि नवरात्रि नौ दिनों में किन चीजों की खरीदारी करना अशुभ होता है।
नवरात्रि में न करें इन चीजों की खरीदारी-
ज्योतिष अनुसार नवरात्रि के पावन दिनों में भूलकर भी लोहे के सामान की खरीदारी नहीं करनी चाहिए इससे परहेज करना चाहिए। माना जाता है कि लोहा इस दौरान खरीदने से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है इसके अलावा नवरात्रि में काले वस्त्रों की खरीदारी से भी बचना चाहिए। काले वस्त्र को अशुभ माना गया है और इस दौरान अगर काले रंग के वस्त्रों की खरीदारी की जाए तो नकारात्मकता प्रभावित होती है जो आर्थिक समस्याओं को पैदा करती है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों तक किसी भी तरह का इलेक्ट्रॅनिक सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा करने से कुंडली में स्थित ग्रहों का बुरा प्रभाव पड़ता है साथ ही ग्रह दोष भी लग सकता है। ऐसे में इस सामानों की खरीदारी करने से बचना चाहिए। नवरात्रि में चावल की खरीदारी करना भी अच्छा नहीं माना जाता है ऐसा करने से नवरात्रि पर मिलने वाला पुण्य नष्ट हो जाता है।
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शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा

  • जानिए...पूजा विधि और मंत्र
शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। माता को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से बचाने वाली देवी माना जाता है। मां चंद्रघंटा की आराधना करने से वीरता, निर्भयता के साथ सौम्यता का प्रसार होता है।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप-
मां दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा का है। चंद्रघंटा अर्थात् जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। दस हाथों के साथ मां अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित हैं। इनका वाहन शेर है। राक्षस महिषासुर का वध देवी चंद्रघंटा ने किया था।
मां चंद्रघंटा की पूजन सामग्री-
मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए सामग्री में गंगाजल, अक्षत, सिंदूर, कमल का फूल, फूलों की माला, इत्र, घी, मिट्टी का दीया, आरती के लिए थाली और मिठाई। मां चंद्रघंटा का पसंदीदा रंग भूरा है, तो इस रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि-
नवरात्र के तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। मां चंद्रघंटा का ध्यान करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें। फिर मां को अक्षत और सिंदूर चढ़ाएं। इसके बाद भूरे रंग के वस्त्र और कमल का फूल अर्पित करें। फिर देवी के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं और प्रार्थना मंत्र 'पिंडजप्रवरारूढ़ा चंडकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्मां, चंद्रघंटेति विश्रुता।।' का जाप करें। फिर भोग लगाएं और आरती करें।
मां चंद्रघंटा की पूजा का भोग-
केसर की बनी खीर मां चंद्रघंटा की प्रिय मानी गई है। ऐसे में देवी को खीर का भोग लगाएं। इसके अलावा शहद का भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा को शहद का भोग लगाने से घर में सुख-शांति की स्थापना होती है।
 
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उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने काली माता मंदिर में पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की खुशहाली की कामना की

रायपुर। उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा ने आज अकाशवाणी रायपुर के पास स्थित काली माता मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना कर प्रदेश की जनता की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की।
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गुड़हल-कमल का फूल और शक्कर चढ़ाने से मां ब्रह्मचारिणी होंगी प्रसन्न

  • मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से ऐश्वर्य की होती है प्राप्ति
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ हो चुकी है. आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ‘ब्रह्म’ का अर्थ होता है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ होता है ‘आचरण’ करने वाली. इस तरह ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है. मां दुर्गा का यह रूप बेहद शांत और मोहक है. देवी के इस स्वरूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है. इसलिए इस दिन उन कन्याओं की पूजा की जाती है. जिनकी शादी तय हो गयी है. लेकिन अभी शादी नहीं हुई है. इस दिन उनको अपने घर पर बुलाकर पूजा के बाद भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट करना चाहिए.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से ऐश्वर्य की होती है प्राप्ति-
माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं. इसलिए पढ़ने वाले बच्‍चों को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा जरूर करनी चाहिए. इनकी अराधना से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है. इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिप्टी हुई कन्या के रूप में है. इनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है. देवी ब्रह्मचारिणी का यह रूप बिल्कुल सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाला है. माता के नौ स्वरूपों की तुलना में माता ब्रह्मचारिणी जल्दी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं. ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है. हमेशा वे ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं. इनकी पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार, संयम आदि की वृद्धि होती है.
मां को गुड़हल और कमल का फूल करें अर्पित-
मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल पसंद है. आप इन्हीं फूलों की माला माता के चरणों में अर्पित कर सकते हैं. मां को चीनी, मिश्री और पंचामृत बेहद पसंद है. माता को घी या दूध से बने पदार्थों का भोग लगाना चाहिए. मां ब्रह्मचारिणी को पीला रंग प्रिय है. इसलिए इनकी पूजा करते समय भक्तों को पीले रंग का वस्त्र पहनना चाहिए. साथ ही देवी को पीले रंग की वस्तु अर्पित करनी चाहिए. मान्यता है कि माता के चरणों में उनका प्रिय चीज चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं.
ऐसे करें पूजा-
सबसे पहले मां ब्रह्मचारिणी को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें. मां को दूध, दही, घृत, मधु और शर्करा से स्नान कराये. फिर भोग लगाये. इसके बाद माता को पान, सुपारी और लौंग चढ़ाये. फिर गाय के गोबर के उपले जलाये और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें. हवन करते समय “ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्‍यै नम:” मंत्र का जाप करें.
भगवान शंकर को पाने के लिए माता ने की थी घोर तपस्या-
शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी. यही कारण है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया है. मां ने तीन हजार सालों तक टूटे हुए बेल पत्र खाये थे. वे हर दुख सहकर भी शंकर जी की आराधना करती रहीं. इसके बाद तो उन्होंने बेल पत्र खाना भी छोड़ दिया. कई हजार सालों तक उन्होंने निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की. जब उन्होंने पत्ते खाने छोड़े तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया. कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की. उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी. मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है. मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है.
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