धर्म समाज

सावन में इन चीजों से करें भगवान शिव का अभिषेक

  • हर मनोकामना होगी पूरी, बनेंगे बिगड़े काम
इस बार सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। यह बेहद खास माना जा रहा है, क्योंकि इस पावन माह की शुरुआत सोमवार से हो रही है। साथ ही इसका समापन भी सोमवार के दिन ही होगा। इस बार सावन में 5 सोमवार पड़ रहे हैं। भगवान शिव को भोले भंडारी कहा जाता है, उन्हें प्रसन्न करने के लिए आपको कठिन उपाय करने की जरूरत नहीं पड़ती है। ऐसे में सावन का महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। सावन का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित होता है।
सावन में कुछ आसान कार्यों को करने से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। इतना ही नहीं पौराणिक कथाओं में भी राक्षस और देवता शिव जी की पूजा करते थे और उन्हें मनचाहा आशीर्वाद मिल जाता था। इस महीने कुछ भक्त कावड़ यात्रा निकालते हैं और शिव जी का जलाभिषेक करते हैं।
पवित्र नदी के जल से अभिषेक-
सावन के महीने में भगवान शिव का जल से अभिषेक करने से कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। यदि किसी तीर्थ स्थल के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाए, तो मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई भक्त सावन में गंगा, यमुना, गोदावरी जैसी पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।
इन चीजों से भी कर सकते हैं अभिषेक-
अगर जल में कुशा डालकर भगवान शिव का अभिषेक किया जाए, तो जीवन में चल रही समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा गाने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
जल में इत्र डालकर भगवान भोले का अभिषेक किया जाए, तो देवी लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।
सावन में यदि आप शहद से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं, तो शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की कृपा भी बनी रहती है।

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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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दोबारा खोला गया जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार

  • शुभ मुहूर्त में खजाने की शिफ्टिंग
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अधिकारियों ने भक्तों के प्रवेश पर रोक लगा दिया है। एक बार फिर जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार खोला गया है, जिसके कारण भक्तों को भगवान के दर्शन नहीं करने दिए जा रहे हैं।
कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट के मुताबिक, आज फिर से भीतर रत्न भंडार से कीमती सामान और आभूषणों को सरकार द्वारा निर्धारित एसओपी के अनुसार अस्थायी रत्न भंडार में शिफ्ट किया जा रहा है। इसी कारण मंदिर में भक्तों की एंट्री बंद कर दी गई है।
14 जुलाई को खोला गया था रत्न भंडार-
बता दें कि शुभ मुहूर्त में अधिकारियों की टीम ने रत्न भंडार कक्ष में प्रवेश किया। यह मुहूर्त दोपहर 12.15 बजे तक रहेगा। इसी दौरान खजाने को अस्थायी रत्न भंडार में शिफ्ट किया जाना है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर का रत्न भंडार बेशकीमती रत्न आभूषण, सोने चांदी की मुद्राएं, धातु की मूर्ति और कई चीजों से पूर्ण है। 46 साल बाद उनके आकलन के लिए 14 जुलाई को रत्न भंडार खोला गया था। भीतरी द्वार का ताला भी तोड़ा गया था, लेकिन फिर इसे 2 दिन के लिए बंद कर दिया गया।
1978 में हुई थी खजाने की गिनती-
आज 18 जुलाई को इसे दोबारा खोला गया है। रत्न भंडार की संपत्ति की समय-समय पर गिनती होती है और उनके लिए एक सूची भी तैयार की जाती है।
श्रद्धा और सुरक्षा को देखते हुए कीमत का आकलन बताया नहीं जाता है
जब 1978 में खजाने के आभूषण और रत्न की गिनती हुई थी, तो उसमें 72 दिन लग गए थे।
इस बार अपेक्षा की जा रही है कि कम दिन लगेंगे। बता दें कि भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 12वीं शताब्दी में हुई थी।
अलग-अलग समय पर अलग-अलग राजाओं ने मंदिर में सोने-चांदी के आभूषण और मुद्राओं को सुरक्षित रखा था।
लुटेरों ने कई बार खजाने को लूटने के लिए मंदिर पर आक्रमण किया। मुगल काल में भी कई बार मंदिर को लूटा गया।
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बेलपत्र के अलावा ये 8 पत्ते भी भगवान शिव को हैं अतिप्रिय

  • पूजा में जरूर करें उपयोग
22 जुलाई से सावन माह की शुरुआत होने जा रही है। इस माह भगवान शिव का पूजन करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, साथ ही भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना भी शुभ माना गया है। यह माह भोलेनाथ को अति प्रिय है। सावन सोमवार पर भगवान शिव के निमित्त व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। यदि आप पूजा के दौरान कुछ पत्तों को भी पूजन सामग्री में शामिल करते हैं, तो इसके आपको शुभ फल मिलेंगे।
आंकड़े के फूल-
हिंदू मान्यता के अनुसार, आंकड़े के फूल के साथ भगवान शिव को इसके पत्ते भी अति प्रिय है। आप पूजा के दौरान आंकड़े के पत्ते महादेव को 7, 9, 11 अथवा 21 के क्रम में चढ़ा सकते हैं।
पीपल-
हिंदू धर्म में पीपल के वृक्ष का विशेष महत्व है। आप सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव को बेलपत्र के स्थान पर पीपल के पत्ते भी अर्पित कर पूजा सकते हैं।
शमी-
शिव महापुराण में शमी के पेड़ का जिक्र मिलता है। इसके अनुसार, आप पूजा के दौरान भगवान शिव को शमी के पत्ते अर्पित कर सकते हैं।
धतूरा-
भगवान शिव को धतूरे के फल के साथ इसके पत्ते भी चढ़ाए जा सकते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव को धतूरे के पत्ते प्रिय है। ऐसे में धतूरा न उपलब्ध होने पर आप इसके पत्ते भी चढ़ा सकते हैं।
भांग-
भगवान शिव को पूजा के दौरान भांग अर्पित की जाती है। इसके साथ ही आप शिवलिंग पर भांग के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं।
दूर्वा-
भगवान शिव को आप दूर्वा भी अर्पित कर सकते हैं। हिंदू धर्म में दूर्वा को अमृत के समान माना गया है। इससे साधक की आयु लंबी होती है।
अपामार्ग-
सोमवार को पूजा के दौरान आप भगवान शिव पर अपामार्ग के पत्ते अर्पित कर सकते हैं। मान्‍यता है कि ऐसा करने से साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
बांस-
भोलेनाथ को बांस के पत्ते चढ़ाना भी शुभ माना गया है। मान्यता के अनुसार इससे साधक को संतान प्राप्ति होती है।

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गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को, करें इन चीजों का दान

  • मिलेंगे शुभ परिणाम
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। गुरु, एक ऐसा शब्द है, जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतीक है। गुरु व्यक्ति को अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश में लाते हैं। गुरु जातक को सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पंचांग के हिसाब से गुरु पूर्णिमा हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस साल गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का भी प्रतीक माना जाता है। अब ऐसे में गुरु पूर्णिमा के दिन दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। आज हम आपको बताते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन किन चीजों का दान करने से शुभ परिणाम मिल सकते हैं।
केसर का दान-
गुरु पूर्णिमा, जिसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन भगवान वेद व्यास, जिन्हें महाभारत और अन्य हिंदू ग्रंथों के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उनके सम्मान में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा ज्ञान, शिक्षा और गुरुओं के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। केसर को गुरु ग्रह का प्रिय माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन केसर का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि केसर का दान करने से ज्ञान, बुद्धि, विद्या और सफलता प्राप्त होती है। केसर का दान करने से गुरु की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में मौजूद गुरु दोष दूर होता है।
पीले वस्त्र का दान-
पीला रंग गुरु ग्रह का प्रिय रंग माना जाता है। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन पीले वस्त्र का दान करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है। साथ ही भाग्योदय हो सकता है।
चने का दान-
चने का दान गुरु पूर्णिमा के दिन किया जाने वाला एक विशेष दान है। चने का दान करने से गुरु की कृपा बनी रहती है। साथ ही कुंडली में स्थित गुरु दोष से भी छुटकारा मिलता है। इसलिए इस दिन चने का दान विशेष रूप से करें।
घी का दान-
घी का दान गुरु पूर्णिमा के दिन किया जाने वाला एक विशेष दान है। घी को भगवान विष्णु और गुरु ग्रह का प्रिय माना जाता है। घी विद्या का कारक भी माना जाता है। इसलिए गुरु पूर्णिमा के घी का दान करने से व्यक्ति को उत्तम परिणाम मिल सकते हैं।
 
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इस दिन मनाई जाएगी "कामिका एकादशी"

  • जानिए...सही तिथि, मुहूर्त और महत्व
एकादशी तिथि हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। हर माह की एकादशियों का अपना विशेष अर्थ होता है। इसी तरह सावन माह में कामिका एकादशी मनाई जाती है। सावन माह में कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
कामिका एकादशी का व्रत सावन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार सावन के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 30 जुलाई को शाम 4 बजकर 44 मिनट पर शुरू होगी। व्रत का समय 31 जुलाई को दोपहर 3.55 बजे समाप्त होगा। कामिका एकादशी का व्रत उदय तिथि के अनुसार 31 जुलाई 2024, बुधवार को रखा जाएगा।
क्यों रखा जाता है कामिका एकादशी व्रत?-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामिका एकादशी का व्रत करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सावन महीने में पड़ने के कारण इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। देवशयनी एकादशी के बाद यह पहली एकादशी है जिसमें भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं। सावन माह में एकादशी होने के कारण इस व्रत से भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव का भी आशीर्वाद मिलता है।
कामिका एकादशी के दिन करें ये काम-
कामिका एकादशी व्रत से एक दिन पहले व्यक्ति को चावल खाना बंद कर देना चाहिए।
कामिका एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर गंगा में स्नान करना चाहिए।
यदि किसी कारणवश गंगा स्नान नहीं कर पा रहे हैं, तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
इसके बाद पूजा के लिए पीले आसन पर बैठें। श्रीहरि का गंगाजल से अभिषेक करने के बाद उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
कामिका एकादशी व्रत कथा पढ़ें और आरती के साथ पूजा संपन्न करें।

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गणेश जी को हरी दूब चढ़ाने से होता है स्वास्थ्य लाभ

भगवान गणेश को प्रिय दूर्वा बूटी का धार्मिक महत्व से कहीं अधिक है। आयुर्वेद में इसे एक शक्तिशाली जड़ी बूटी माना जाता है। दूर्वा जड़ी बूटी औषधीय गुणों से भरपूर है और इसमें एंटीवायरल, रोगाणुरोधी, सूजन-रोधी और एंटीसेप्टिक गुण और विटामिन ए, विटामिन सी, प्रोटीन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सोडियम, एसिटिक एसिड, एल्कलॉइड आदि पोषक तत्व होते हैं। ग्लूकोसाइड भी मौजूद होते हैं। यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने, वजन कम करने और पाचन समस्याओं से राहत दिलाने के लिए उपयोगी है। हमें दूर्वा जड़ी बूटी के अद्भुत स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताएं।
मानसून के दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। ऐसे में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए दूर्वा जड़ी बूटी का उपयोग किया जा सकता है। दूर्वा जड़ी बूटी में एंटीवायरल, रोगाणुरोधी और जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो शरीर को संक्रमण से लड़ने और मानव स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।
दूर्वा जड़ी बूटी में पाया जाने वाला सायनोडोन डेक्टाइलॉन नामक यौगिक रक्त शर्करा को कम करने वाला प्रभाव डालता है। इससे रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। दूर्वा जड़ी बूटी के रस को नीम के रस के साथ सुबह खाली पेट लेने से मधुमेह संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
पाचन संबंधी समस्याओं के लिए भी दूर्वा जड़ी बहुत फायदेमंद मानी जाती है। खाली पेट दूर्वा जड़ी बूटी का जूस पीने से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। इसके अलावा, इसके नियमित सेवन से मल त्याग करना आसान हो जाता है, जिससे कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।
दूर्वा जड़ी बूटी के फायदे में वजन घटाना भी शामिल है। वजन घटाने के लिए दूर्वा जड़ी बूटी को एक चम्मच जीरा, 4-5 काली मिर्च और थोड़ी सी दालचीनी के साथ पीसकर छान लें। अब इस चूर्ण को दिन में दो बार छाछ या नारियल पानी के साथ पियें। इसके नियमित सेवन से मोटापे को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
दूर्वा जड़ी बूटी का सेवन करने से मनोवैज्ञानिक तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। दूर्वा जड़ी बूटी के नियमित उपयोग से मस्तिष्क की तंत्रिकाएं शांत होती हैं, जिससे व्यक्ति कम चिंता, तनाव और अवसाद महसूस करता है।
दूर्वा जड़ी बूटी का सेवन आप कई तरह से कर सकते हैं। दूर्वा का रस निचोड़कर रोज सुबह खाली पेट पिया जा सकता है। साथ ही दूर्वा जड़ी को सुखाकर बनाए गए पाउडर को शहद या पानी में मिलाकर भी सेवन किया जा सकता है।
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भड़ली नवमी के साथ अंतिम शुभ मुहूर्त भी समाप्त

  • जानिए...अब कब से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
सोमवार को भड़ली नवमी का समापन हो गया। अब मांगलिक कार्यों के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं है। बता दें कि सनातन धर्म में वैसे तो प्रत्येक शुभ कार्य मुहूर्त देखकर किए जाते हैं, लेकिन हिंदू पंचांग में कई ऐसी तिथियां भी होती है जब बगैर मुहूर्त देखे भी इन कार्यों को किया जा सकता है। ऐसी ही एक तिथि भड़ली नवमी है, जिसके समापन के बाद अब मांगलिक कार्य के लिए शुरू मुहूर्त नहीं हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ली नवमी मनाई जाती है, इसके एक दिन बाद यानी देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है और जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। ऐसे में इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते।
भड़ली नवमी पर कर सकते हैं ये शुभ कार्य-
हिंदू मान्यता के अनुसार भड़ली नवमी के अवसर पर मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह और सगाई जैसे मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। खास बात यह है कि इन सभी के लिए इस दिन मुहूर्त देखने की भी कोई जरूरत नहीं होती।
भड़ली नवमी का समय-
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 14 जुलाई को शाम 5:26 से शुरू हुई थी है, इस तिथि का समापन 15 जुलाई को शाम 7 बजकर 19 मिनट पर हुआ था।
17 जुलाई को देवशयनी एकादशी-
17 जुलाई से देवशयनी एकादशी की शुरुआत होगी, इसके बाद अगले चार माह तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे। चातुर्मास खत्म होने के बाद देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जाएगी।

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इन छह योगों में शुरू होने जा रहा सावन माह

  • भगवान शिव को प्रसन्न करने इस शुभ मुहूर्त में करें जलाभिषेक
पवित्र सावन माह 22 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। यह महीना भगवान शिव को अति प्रिय है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस माह धरती पर विचरण करते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। प्रत्येक सावन सोमवार को भगवान शिव के निमित्त व्रत रखना भी शुभ माना गया है। माना जाता है कि इससे भक्तों को भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इस बार सावन माह 22 जुलाई से 19 अगस्त तक रहेगा। यह माह 29 दिन का होगा और इसमें 5 सावन सोमवार पड़ेंगे। खास बात यह है कि सावन माह की शुरुआत ही सोमवार से होने जा रही है, साथ ही इस दिन कई शुभ योग भी बना रहे हैं।
प्रीति योग-
प्रीति योग को पूजा और शुभ कार्यों के लिहाज से उत्तम और श्रेष्ठ माना गया है। यह योग संध्या काल 5:58 तक रहेगा।
आयुष्मान योग-
सावन सोमवार पर आयुष्मान योग का भी निर्माण हो रहा है। इसका समापन 23 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 58 मिनट पर होगा। मान्‍यता है कि इस योग में भगवान शिव का पूजन करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
सर्वार्थ सिद्धि योग-
हिंदू धर्म में सर्वार्थ सिद्धि योग काफी उत्तम माना गया है। यह सुबह 5 बजकर 37 मिनट से शुरू होगा और रात 10 बजकर 21 मिनट पर इसका समापन होगा। इस दौरान भगवान शिव के साथ माता पार्वती का भी पूजन करना चाहिए।
शिव वास योग-
शिव महापुराण के अनुसार शिव वास योग बेहद शुभ है। यह योग दोपहर 1 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भगवान शिव का जलाभिषेक करने से साधकों को शुभ फल प्राप्त होते हैं।
करण योग-
सावन के पहले सोमवार पर करण योग का भी निर्माण हो रहा है। कौलव करण योग दोपहर 1 बजकर 11 मिनट तक रहेगा और इसके बाद तैतिल करण योग शुरू हो जाएगा।

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देवशयनी एकादशी : इस बार 148 दिन का होगा चातुर्मास

  • इससे पहले कर ले ये 5 उपाय…
देवशयनी एकादशी पर 17 जुलाई से 12 नवंबर तक 118 दिन के लिए शिव के हाथ सृष्टि का काम सौंप श्रीहरि योगनिद्रा पर जाएंगे। एकादशी पर मंदिरों में भगवान को शयन आरती कर सुलाया जाएगा। इसके साथ ही चार माह के लिए मांगलिक कार्यों पर विराम लगेगा। इस दौरान प्रमुख तीज-त्योहारों के उल्लास के साथ ही संतों के सान्निध्य में धर्म आराधना होगी।पिछले वर्ष चातुर्मास की अवधि 148 दिन यानी पांच माह थी। इस बार चातुर्मास चार माह का है। इसके चलते तीज-त्योहार पिछले वर्ष के मुकाबले 10-15 दिन पहले आएंगे। चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। पुराणों के अनुसार इस दौरान विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश सहित विभिन्न मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं।
एकादशी के खास 5 उपाय-
देवशयनी एकादशी पर सुबह स्‍नान करने के बाद सबसे पहले तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं और कच्‍चे दूध से इसके पौधे को सींचें। शाम के वक्‍त प्रदोष काल में तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाकर रखें। तुलसी की पूजा करने भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी दोनों ही प्रसन्‍न होते हैं और आपके धन में वृद्धि होती है। आप परिवार के साथ सुखी और संपन्‍न रहते हैं।
दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को शयन कराने के पूर्व खीर, पीले फल और पीले रंगी मिठाई का भोग लगाएं।
यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्रीहरि विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करें
पीपल में श्रीविष्णु का वास होता है इसलिए पीपल में जल अर्पित करें।
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बजरंग बली के मंदिर में दर्शन मात्र पूरी होती है हर मनोकामना

आज मंगलवार का दिन है जो कि हनुमान पूजा को समर्पित है इस दिन भक्त हनुमान भक्ति में लीन रहते हैं और दिनभर पूजा पाठ व व्रत आदि करते हैं इसके साथ ही कुछ लोग दर्शन के लिए भगवान जी के मंदिर भी जाते हैं ऐसे में अगर आप भी हनुमान कृपा पाना चाहते हैं और प्रभु के दर्शन के लिए मंदिर जाना चाहते हैं तो ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा हनुमान जी के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बता रहे हैं जहां दर्शन मात्र से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं तो आइए जानते हैं हनुमान जी के प्रसिद्ध मंदिर।
हनुमान जी के प्रसिद्ध मंदिर-
बालाजी हनुमान मंदिर राजस्थान में है यहां दाढ़ी और मूंछ वाली हनुमान जी की अनोखी प्रतिमा है जिसे लोग सालासर वाले हनुमान जी के नाम से जानते हैं। यह मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर गांव में है। माना जाता है कि मंदिर में आने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता है क्योंकि बजरंगबली उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
गुजरात का हनुमान दंडी मंदिर अपने आप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में हनुमान जी मकरध्वज के साथ मौजूद है। माना जाता है कि यहां दर्शन व पूजन करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी हो जाती है और परेशानियों व संकट समाप्त होता है। देश का एक प्रसिद्ध मंदिर जयपुर में स्थिति है जहां भूत प्रेत की बाधाएं दूर हो जाती है
मेहंदीपुर में स्थित यह मंदिर जयपुर बांदीकुई बस मार्ग पर जयपुर से करीब 65 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर भूत प्रेत बाधाओं को दूर करने के लिए खास ही जाना जाता है यहां हनुमान जी के दर्शन कर मनोकामना पूर्ति होती है।
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लकड़ी के मंदिर रखने से पहले इन 5 नियमों को जरूर जाने

Vastu Tips : आपने अपने आसपास ऐसे कई घरों को देखा होगा, जहां पर लकड़ी का मंदिर बना होता है। आजकल बदलते समय के अनुसार घर में लकड़ी का मंदिर रखने का चलन काफी बढ़ गया है। घरों में लकड़ी का मंदिर रखने का एक कारण यह भी है कि आजकल घरों में स्पेस की बहुत कमी होती है, इसलिए लोग घरों में लकड़ी का मंदिर लगाना पसंद करते हैं लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में लकड़ी का मंदिर लगाने से कई नियम भी जुड़े होते हैं। आइए, जानते हैं घर में लकड़ी का मंदिर लगाने से जुड़े नियम।
​किस पेड़ की लकड़ियां है इसका पड़ता है असर​-
घर पर रखा लकड़ी का मंदिर किसे लकड़ी का बना हुआ है, इस बात को सुनिश्चित करता है कि आपके घर का मंदिर शुभ है या अशुभ। वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ पेड़ों की लकड़ियों को शुभ माना जाता है और अगर इन लकड़ियों से घर का मंदिर बनाया जाए, तो मंदिर शुभ होता है लेकिन ध्यान रहे कि लकड़ियां दीमक वाली नहीं होनी चाहिए।
​मंदिर के लिए पूर्व-पश्चिम दिशा है शुभ​-
पूर्व-पश्चिम दिशा का अर्थ यह है कि अगर सम्भव हो, तो अपने घर में लकड़ी का मंदिर पूर्व दिशा की ओर स्थापित करें। आप जब भी मंदिर की पूजा करें, तो आपका चेहरा पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए और आपकी पीठ पश्चिम दिशा की तरफ होनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व के अलावा उत्तर दिशा को भी मंदिर रखने के लिए अच्छा माना जाता है।
​लकड़ी के मंदिर में जरूर बिछाएं पीला या लाल कपड़ा​-
आप अगर अपने घर में लकड़ी का मंदिर रखने का मन बना चुके हैं, तो लकड़ी के मंदिर में पीले या लाल रंग का कपड़ा जरूर बिछाएं। इसे शुभ माना जाता है। कभी भी भगवान की मूर्ति या तस्वीर सिर्फ लकड़ी पर ही न रखें। कपड़ा बिछाकर ही भगवान की मूर्ति रखें।
​​लकड़ी के मंदिर में नहीं आनी चाहिए धूल-मिट्टी या दीमक​-
वैसे तो हर मंदिर और घर को साफ रखना चाहिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि लकड़ी के मंदिर में कहीं भी धूल-मिट्टी या दीमक नहीं होना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा का कारण बन सकता है। जब लकड़ी का मंदिर पुराना हो जाता है, तो इसमें दीमक का खतरा बना रहता है, इसलिए समय-समय पर लकड़ी के मंदिर को चेक करना चाहिए।
​दीवार पर न लटकाएं मंदिर​-
आमतौर पर घर में स्पेस की कमी होने से कुछ लोग घर की दीवार पर लकड़ी का मंदिर लटका देते हैं लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार मंदिर दीवार पर टांगने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होता, इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि लकड़ी का मंदिर दीवार पर नहीं बल्कि घर में किसी सुरक्षित स्थान पर ही रखें। अगर आपके घर में स्पेस की दिक्कत है, तो छोटा ही मंदिर रखें लेकिन जमीन पर उसे जगह दें।
 
और भी

इस सीजन का अंतिम शुभ मुहूर्त आज

  • देवशयनी एकादशी से शादियों पर लगेगी रोक
भड़ली नवमी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 15 जुलाई सोमवार को मनाई जा रही है। इसी दिन आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि भी है। सनातन धर्म में भड़ली नवमी का विशेष महत्व है। इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो भड़ली नवमी पर बिना किसी ज्योतिषीय सलाह के सभी प्रकार के शुभ कार्य कर सकते हैं।
भड़ली नवमी को शादियों के लिए सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। कई जोड़े इस दिन को अपने विवाह के लिए चुनते हैं, उनका मानना है कि यह सौभाग्य और दिव्य आशीर्वाद लाता है। इस सीजन की विवाह का आखिरी मुहूर्त है। दो दिन बाद इस वर्ष देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को है। जिससे चातुर्मास प्रारंभ होगा और विवाह आदि पर चार माह के लिए रोक लग जाएगी।
भड़ली नवमी आज सिद्ध योग में मनेगी-
भड़ली नवमी पर सिद्ध योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण सुबह सात बजे तक है। इसके बाद साध्य योग का संयोग बन रहा है। साध्य योग 16 जुलाई को सुबह सात बजकर 19 मिनट तक है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर रवि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण दिनभर है। ज्योतिष रवि योग को शुभ मानते हैं। भड़ली नवमी पर शिववास योग का भी संयोग बन रहा है। भड़ली नवमी पर अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 59 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक है। इस दिन बालव, कौलव और तैतिल योग का भी निर्माण हो रहा है।
भड़ली नवमी पर शुभ मुहूर्त-
ज्योतिषाचार्य सुनील चौपड़ा ने बताया कि शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 14 जुलाई सोमवार को शाम पांच बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी।
समापन 15 जुलाई को शाम सात बजकर 19 मिनट पर होगा। इस समय में शिव परिवार की पूजा कर शुभ कार्य कर सकते हैं।
भड़ली नवमी का अबूझ मुहूर्त क्यों-
हिंदू धर्म में भड़ली नवमी का बहुत महत्व है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जिन लोगों के विवाह का कोई शुभ मुहूर्त नहीं है, वे इस दिन विवाह कर सकते हैं।
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अक्षय तृतीया की तरह बेहद शुभ है आज का दिन

  • जानिए...किन उपायों से मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद
आज 15 जुलाई को भड़ल्या नवमी मनाई जा  रही हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ल्या नवमी मनाई जाती है. इस समय में अपने इष्टदेव की पूजा कर कोई भी  शुभ कार्य कर सकते हैं. भड़ल्या नवमी को भड़रिया नौमी, भड़ल्या नवमी, भढली नवमी, भड़ली नवमी, भादरिया नवमी, भदरिया नवमी, कन्दर्प नवमी एवं बदरिया नवमी आदि नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि भी है. भड़ली नवमी में अबूझ मुहूर्त होता है.
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जिन लोगों के विवाह का कोई शुभ मुहूर्त नहीं है, वह इस दिन विवाह कर सकते हैं. इस दिन विवाह करने वालों को विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. भड़रिया नवमी के बाद चातुर्मास शुरू हो जाएगा. साथ ही भगवान विष्णु जी शिववास योग में शंकर जी को चार माह के लिए धरती के संचालन का कार्यभार सौंपकर शयन मुद्रा में चले जाएंगे. इसके बाद 12 नवंबर तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकेगा.
भड़ल्या नवमी के अवसर पर मुंडन, गृह प्रवेश, विवाह, जनेऊ संस्कार और सगाई आदि कार्य किए जा सकते हैं. धार्मिक मत है कि इस दिन किए कार्य का शुभ फल प्राप्त होता है. इसी वजह से इस तिथि को अक्षय तृतीया की तरह बेहद शुभ माना गया है.
भड़ल्या नवमी पर करें ये उपाय-
भगवान विष्णु व शंकर जी की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी.
भगवान विष्णु का सहस्त्र पाठ व पूजा-अर्चना कर उन्हें पीली मिठाई अर्पित करें.
भगवान शंकर का रूद्राभिषेक कर उन्हें बेलपत्र व मिठाई अर्पित करें.
साधक घर पर पंचामृत से भी भगवान शंकर का अभिषेक कर सकते हैं.
सुख-समृद्धि के लिए कन्या पूजन कर मां सिद्धिदात्री को हलवा, छोले-पूरी व खीर का भोग अर्पित करें.
मानसिक शांति के लिए एक स्थान पर रहकर ध्यान लगाएं, भगवान की आराधना करें.
सुबह-शाम पीपल के वृक्ष की पूजा-अर्चना कर जल अर्पित करें.
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पान के पत्ते के इन उपायों से दूर हो जाती हैं सभी समस्याएं

सनातनधर्म में देवी-देवताओं की पूजा के नियम हैं। इस दौरान चर्च की सेवाएँ विशेष होती हैं। इसमें पान के पत्ते भी शामिल हैं. पान के पत्ते को ताजगी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पान के पत्ते का सेवन करने से जीवन की परेशानियां खत्म हो जाती हैं और व्यक्ति नकारात्मक शक्तियों से मुक्त हो जाता है। इस लेख में हम आपको पान के पत्तों के चमत्कारी उपचार से परिचित कराएंगे। यदि आपके परिवार में किसी को बुरी नजर लगी है तो पान के पत्ते में सात गुलाब की पंखुड़ियां रखकर नजर लगे व्यक्ति को खिला दें। पान के पत्तों में सकारात्मक ऊर्जा होती है इसलिए यह उपचार बुरी नजर के प्रभाव को खत्म कर देगा।
अगर आप चाहते हैं कि आपकी मनोकामना पूरी हो तो मंगलवार या शनिवार को मंदिर जाने से पहले स्नान करें। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही हनुमानजी की पूजा करें। फिर उन्हें पान का बीड़ा चढ़ाएं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस उपाय को करने से बजरंगबली प्रसन्न होंगे और जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।
अगर आप लंबे समय से व्यापार में घाटे से जूझ रहे हैं तो शनिवार के दिन 8 पान के पत्ते और 5 साबूत पीपल के पत्ते एक धागे में पिरोएं। फिर दुकान में पूर्व दिशा की ओर बांध दें। यह उपचार लगातार 5 शनिवार तक करें। फिर पत्तों को बहते पानी में भिगो दें। माना जाता है कि इस टोटके से व्यापार में वृद्धि होगी।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पूजा के दौरान भगवान शिव को पान के पत्ते में गोलकंद, पान का चूर्ण और सौंफ अर्पित करता है, तो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होंगी और उसे महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
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सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से, समापन 19 अगस्त को

  • भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए करें ये कार्य
पवित्र श्रावण का महीना भगवान शिव को अति प्रिय है, मान्‍यता है कि भगवान शिव इस माह धरती पर विचरण करते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। सावन माह में भगवान शिव का विशेष पूजन कर मंदिरों में अनुष्ठान किए जाते हैं। साथ ही इस दौरान रुद्राभिषेक और जलाभिषेक का भी काफी महत्व है।
सावन में व्रत रखने का भी विधान है। यह वही महीना है जब कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। कांवड़िए पवित्र नदियों का जल भर कर यात्रा करते हैं और इससे भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। इस दौरान पूरा माहौल शिव मय हो जाता है।
इस बार सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से हो रही है, इसका समापन 19 अगस्त को होगा। खास बात यह है कि इस बार सावन मास सोमवार से ही शुरू हो रहे हैं। इस माह पांच सोमवार होंगे और महीना 29 दिनों का होगा।
सावन माह में क्या करें-
सावन सोमवार को व्रत रखने पर शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
प्रतिदिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करना भी शुभ माना गया है।
भगवान शिव के साथ माता पार्वती का भी पूजन करना चाहिए।
सावन माह में दान पुण्य करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
सावन माह में सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
सावन में क्या ना करें?
सावन में तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस माह में मालिश करवाना भी वर्जित माना गया है।
सावन माह में दाढ़ी और बाल भी नहीं कटवाए जाते।
सावन में कांसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।
शिवलिंग पर तुलसी का पत्ता चढ़ाने से बचना चाहिए।

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जया पार्वती व्रत के दिन करें ये उपाय

  • मनचाहे जीवनसाथी की होगी प्राप्ति
हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों की कमी नहीं है लेकिन जया पार्वती व्रत को विशेष माना गया है जो कि शिव पार्वती की पूजा अर्चना को समर्पित है इस दौरान भक्त उपवास आदि रखकर शिव पार्वती की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर भक्ति में लीन रहते हैं जया पार्वती व्रत को गौरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल जया पार्वती व्रत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है इस साल यह व्रत 19 जुलाई को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जया पार्वती का व्रत कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए करती है तो वही शादीशुदा महिलाएं इस दिन अखंड सौाभाग्य की कामना से व्रत रखती है मान्यता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली और प्रेम बना रहता है साथ ही पति की आयु में भी वृद्धि होती है इस दिन पूजा पाठ के साथ ही अगर कुछ आसान से उपायों को किया जाए तो वैवाहिक जीवन व प्रेम जीवन में होने वाले तनाव दूर हो जाते हैं तो आज हम आपको उन्हीं उपायों की जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
जया पार्वती के दिन करें ये उपाय-
अगर आपकी पार्टनर से अक्सर लड़ाई होती रहती है या फिर रिश्ते में तनाव बना हुआ है तो ऐसे में आप जया पार्वती व्रत के दिन एक लाल वस्त्र में श्रृंगार की सामग्री रख लें। अब इस वस्त्र में सात गांठें लगाकर फिर उसे अपने जीवनसाथी के सिर से वारकर किसी सुहागन महिला को दान कर दें। माना जाता है कि इस उपाय को करने से वाद विवाद और तनाव दूर हो जाता है साथ ही पति पत्नी के रिश्ते में मिठास व खुशी बनी रहती है।
अगर आप चाहते हैं कि आपके वैवाहिक जीवन और प्रेम जीवन में हमेशा मधुरता बनी रहे, तो ऐसे में आप जया पार्वती के दिन एक कटोरी में हल्दी और मेहंदी लेकर उसका घोल बनाकर तैयार कर लें इसके बाद वह मेहंदी देवी पार्वती को अर्पित करें माना जाता है कि ऐसा करने से माता का आशीर्वाद मिलता है साथ ही पार्टनर के साथ रिश्ता भी मधुर और मजबूत होता है।
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14 दिन में 2.80 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने बाबा बर्फानी के दर्शन किए

जम्मू। अमरनाथ यात्रा 2024 लगातार जारी है। पिछले 14 दिनों में 2.80 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने पवित्र गुफा मंदिर में बाबा बर्फानी के दर्शन किए हैं। शनिवार को 4 हजार 669 यात्रियों का एक और जत्था घाटी के लिए रवाना हुआ।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाले श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) के अधिकारियों ने कहा कि 29 जून को यात्रा शुरू होने के बाद से 2.80 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने यात्रा की है।
शनिवार को 4,669 यात्रियों का एक और जत्था भगवती नगर यात्री निवास से दो सुरक्षा काफिलों में घाटी के लिए रवाना हुआ। अधिकारियों ने बताया, "इनमें से 1,630 यात्री 74 वाहनों के सुरक्षा काफिले में उत्तरी कश्मीर के बालटाल बेस कैंप जा रहे हैं, वे सुबह 3:05 बजे जम्मू से रवाना हुए। 3,039 यात्रियों का एक और समूह 109 वाहनों के सुरक्षा काफिले में सुबह 3:57 बजे दक्षिण कश्मीर के नुनवान (पहलगाम) बेस कैंप के लिए रवाना हुआ।"
यह गुफा कश्मीर हिमालय में समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भक्त या तो पारंपरिक दक्षिण कश्मीर पहलगाम मार्ग से या उत्तर कश्मीर बालटाल मार्ग से गुफा मंदिर तक पहुंचते हैं। श्रद्धालु या तो 48 किलोमीटर लंबे पारंपरिक पहलगाम गुफा मंदिर मार्ग से यात्रा करते हैं या फिर 14 किलोमीटर लंबे बालटाल मार्ग से यात्रा करते हैं। पहलगाम मार्ग का उपयोग करने वालों को गुफा मंदिर तक पहुंचने में चार से पांच दिन लगते हैं, जबकि बालटाल मार्ग का उपयोग करने वाले लोग गुफा मंदिर के अंदर 'दर्शन' करने के बाद उसी दिन आधार शिविर लौट आते हैं। इस वर्ष की यात्रा 52 दिनों के बाद 29 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा और रक्षा बंधन त्योहार के साथ संपन्न होगी।
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भगवान शिव और बेलपत्र का क्या है संबंध, शास्त्रों में बताया गया है महत्व

महादेव स्वभाव से भोले हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। जल्द ही सावन का महीना शुरू होने वाला है। यह माह पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। आषाढ़ माह के खत्म होने के बाद सावन महीना शुरू होता है। इस बार सावन महीने की शुरुआत बहुत दुर्लभ संयोग में हो रही है।
भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र जरूर शामिल किया जाता है। बेलपत्र महादेव को प्रिय होता है। इसे अर्पित करने से वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। आइए, जानते हैं कि भगवान शिव और बेलपत्र का क्या संबंध है और इसे चढ़ाने के क्या नियम हैं।
बेलपत्र से जुड़ी पौराणिक कथा-
शिवपुराण के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष से संसार संकट में पड़ गया। इसलिए भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। इससे शिव के शरीर का तापमान बढ़ने लगा और पूरा ब्रह्मांड आग की तरह जलने लगा।
इसके कारण पृथ्वी पर सभी प्राणियों का जीवन कठिन हो गया। सृष्टि के हित में विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव को बेलपत्र दिए। बेलपत्र खाने से विष का असर कम हो गया, तभी से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
बेलपत्र चढ़ाने के नियम-
सभी देवताओं की पूजा के कई नियम बताए गए हैं। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में कुछ नियम हैं।
इसके अनुसार भगवान शिव को बेलपत्र हमेशा चिकनी सतह की तरफ से चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को कटे हुए बेलपत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को 3 पत्तों से कम का बेलपत्र न चढ़ाएं।
विषम संख्या जैसे 3,5,7 वाले बेलपत्र ही चढ़ाने चाहिए।
3 पत्तों वाले बेलपत्र को भगवान शिव के त्रिदेव और त्रिशूल का रूप माना जाता है।

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