धर्म समाज

नवरात्रि के दूसरे दिन होती है माता ब्रह्मचारिणी की पूजा

  • जानिए...पूजा विधि एवं मंत्र...
शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी के नाम में उनकी शक्तियों की महिमा का वर्णन किया गया है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली।
अर्थात् तप का संचालन करने वाली शक्ति को हम बार-बार प्रणाम करते हैं। मां के इस रूप की पूजा करने से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि में वृद्धि होती है। जीवन के कठिन समय में भी व्यक्ति अपने पथ से नहीं हटता। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी के इस स्वरूप और पूजा विधि, मंत्र और महत्व के बारे में...
माँ का स्वभाव ही ऐसा है-
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा की जाने वाली ब्रह्मचारिणी आंतरिक जागृति का प्रतिनिधित्व करती है। माँ सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यक्षमता के विस्तार और आंतरिक शक्ति की जननी है। ब्रह्मचारिणी समस्त जगत् के चर-अचर जगत् की ज्ञाता हैं। इनका स्वरूप सफेद वस्त्र में लिपटी एक कन्या के समान है, जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। इसमें अक्षयमाला तथा कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गाशास्त्र तथा निगमागम तंत्र-मंत्र आदि का ज्ञान सम्मिलित है। वह भक्तों को अपना सर्वज्ञ ज्ञान देकर विजयी बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सरल एवं भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अत्यंत सौम्य, क्रोधहीन और शीघ्र वरदान देने वाली हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी देवी का पूजा मंत्र-
ब्रह्मचर्येतुं सीलं यस्य स ब्रह्मचारिणी।
सच्चिदानंद ब्रह्मांड के रूप में सुशीला से प्रार्थना करते हैं।
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमंडलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का शुभ समय-
मां ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा-अर्चना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। अगर आप नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने जा रहे हैं तो अमृत काल में सुबह 6:27 बजे से 7:52 बजे तक पूजा कर सकते हैं। वहीं, सुबह 09:19 बजे से 10:44 बजे तक शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की पूजा की जा सकती है. जो लोग शाम को पूजा करते हैं उनके लिए शुभ और अमृत काल दोपहर 03:03 बजे से शाम 05:55 बजे तक का समय रहेगा.
 माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है। सुबह शुभ समय में मां दुर्गा की पूजा करें और मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के कपड़ों का प्रयोग करें। सबसे पहले मां को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर रोली, अक्षत, चंदन आदि चढ़ाएं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें। मां को केवल दूध से बनी चीजों का ही भोग लगाएं. इसके साथ ही माता के मंत्र या जयकारे भी लगाते रहें। इसके बाद पान का पत्ता चढ़ाकर परिक्रमा करें। फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें। घी और कपूर के दीपक से माता की आरती करें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें। मंत्र पढ़ने के बाद सच्चे मन से माता से प्रार्थना करें। इससे माता की असीम अनुकम्पा प्राप्त होगी।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का क्या महत्व है?-
यदि आप रोजाना सच्ची आस्था के साथ माता के इस स्वरूप की पूजा करते हैं तो आप अपने महत्वपूर्ण कार्यों और उद्देश्यों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि माँ ब्रह्मचारिणी ने भी कठिन तपस्या और साधना से ही भगवान शिव को प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की थी। आपको हर कठिन से कठिन समय में डटकर लड़ने का साहस मिलेगा। अगर आपके ऊपर मां ब्रह्मचारिणी की कृपा है तो आपके अंदर हर तरह की परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आ जाएगी।
माँ ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने शंकर जी को पति के रूप में पाने का संकल्प लिया था. इसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी। जंगलों में गुफाओं में रहते थे। वहां कठोर तपस्या और साधना की। अपने पथ से कभी विचलित नहीं हुए. उनके इस रूप को शैलपुत्री कहा गया। उनकी तपस्या, त्याग और साधना को देखकर सभी ऋषि-मुनि आश्चर्यचकित रह गये। अपनी तपस्या के दौरान माता ने अनेक नियमों का पालन किया, शुद्ध एवं अत्यंत पवित्र आचरण अपनाया। बेलपत्र, शाक पर दिन बीतते थे। शिव को प्राप्त करने के लिए वर्षों की कठिन तपस्या और उपवास के बाद उनका शरीर बहुत कमजोर और कमजोर हो गया। माता भी कठोर ब्रह्राचर्य नियमों का पालन करती थीं। इन्हीं सब कारणों से उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
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शारदीय नवरात्र : विराट स्वरूप में हुआ माँ दुर्गा का आगमन

दुर्ग। विगत तीन वर्षों की तरह इस वर्ष भी शारदीय नवरात्र में 3 से 13 अक्टूबर तक विराट नगर बोरसी दुर्ग में जनजागरण दुर्गोत्सव समिति द्वारा नवरात्र उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष किशोर शर्मा तथा सचिव महावीर साहू ने बताया कि 3 अक्टूबर को प्रातः कलश पूजन सहित विधिविधान से मूर्ति स्थापना की गई। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।उन्होंने ने बताया कि माताजी के आगमन के कारण विराट नगर बोरसी वासी भक्तिभाव,श्रद्धा तथा आनंद के साथ झूम उठे। वंही नवरात्र में होने वाले नौ दिनों के कार्यक्रमों के लिए जुटे हुए हैं।
उन्होंने बताया कि विराट नगर में बहुत ही कम समय में मां अम्बे की कृपा से यह आयोजन विराट रूप ले लिया है। इसकी चर्चा पूरे शहर होती है। 9 दिनों के इस पूजन कार्यक्रमों में संपूर्ण बोरसी सहित पूरे शहर से भक्त हिस्सा लेने आते हैं । नवरात्र के इस उत्सव के दौरान विविध कार्यक्रम का आयोजन भी प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी किया जा रहा है। जिसके तहत बाल प्रतिभाओं को यहाँ एक मंच प्रदान किया जाएगा। वहीँ नृत्य प्रतियोगिता, मंत्रोच्चार संध्या, रंगोली प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता तथा महिलाओं के लिए गरबा नृत्य तथा पारंपरिक वेशभूषा तथा विविध कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है।इसके साथ ही जस गीत तथा पंडवानी के द्वारा भक्ति का संदेश जनमानस तक पहुंचाने का अनवरत प्रयास जारी है।
माता के विशेष कार्यक्रमों में एकता मानस परिवार काकेतरा राजनांदगांव द्वारा भक्तिमय कार्यक्रम के साथ गरबा नृत्य 5 अक्टूबर को, नृत्य प्रतियोगिता 12 वर्ष उम्र तक के लिए 6 अक्टूबर , रंगोली व चित्रकला व जस झांकी 7 अक्टूबर, नृत्य प्रतियोगिता 13 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए 8 अक्टूबर को महिलाओं व बच्चों के लिए गरबा प्रतियोगिता, 9 अक्टूबर संध्या 7 बजे बच्चों के लिए मंत्रोपचार प्रतियोगिता, 10 अक्टूबर महिलाओं द्वारा छत्तीसगढ़ पारम्परिक लोकनृत्य व बच्चों के लिए खेल प्रतियोगिता ,11अक्टूबर हवन प्रातः 9 बजे कन्या भोज दोपहर 12 व महा भंडारा 1 बजे से महिलाओं के लिए खेल प्रतियोगिता संध्या 8 बजे से 12 अक्टूबर शनिवार संध्या 7 बजे महिलाओं व बच्चों के लिए खेल प्रतियोगिता होगा। 13 अक्टूबर को शोभायात्रा व मूर्ती विसर्जन किया जाएगा।
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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का 7 अक्टूबर को रायपुर दौरा

  • गौध्वज स्थापना कार्यक्रम में होंगे शामिल
रायपुर। गौध्वज स्थापना भारत परिक्रमा पर निकले उत्तरामनाय ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 7 अक्टूबर 2024 को छत्तीसगढ़ पहुंचेंगे। उनका आगमन सड़क मार्ग से होगा और वे शंकराचार्य आश्रम बोरिया कला में अल्प विश्राम करेंगे।
शंकराचार्य महाराज रायपुर स्थित श्री शंकराचार्य चौक कमलविहार में गौध्वज स्थापना कार्यक्रम में भाग लेंगे और ध्वजोत्तोलन करेंगे। इस अवसर पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम रायपुर में आयोजित धर्म सभा और पत्रकार वार्ता को संबोधित करेंगे, जिसमें हजारों सनातनी व गौभक्त जुड़ेंगे। बता दें कि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 07 अक्टूबर को रायपुर में कई कार्यक्रमों में भाग लेंगे, जिसमें सुबह 11 बजे श्री शंकराचार्य चौक में गौध्वज स्थापना होगी, इसके बाद दोपहर 12 बजे कमल विहार गेट के सामने गोध्वज पूजन किया जाएगा। वही दोपहर 1 बजे पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में विशाल जनसभा और पत्रकार वार्ता आयोजित की गई है।
इस अवसर पर गौ रक्षा और संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने का आह्वान किया जाएगा। साथ ही में शंकराचार्य महाराज के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटेंगे।
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CM विष्णुदेव साय ने बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की पूजा-अर्चना की

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अपने एक दिवसीय दंतेवाड़ा प्रवास के दौरान बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की दर्शन और पूजा-अर्चना कर प्रदेश की जनता की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की।मुख्यमंत्री साय के साथ छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और वन मंत्री केदार कश्यप ने भी मां दन्तेश्वरी की पूजा-अर्चना की।
इस अवसर पर सांसद बस्तर महेश कश्यप, विधायक दंतेवाड़ा चैतराम अटामी, राज्य महिला आयोग के सदस्य ओजस्वी मण्डावी सहित क्षेत्र के अन्य जनप्रतिनिधि एवं डीआईजी कमलोचन कश्यप, कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी, एसपी गौरव राय समेत जिला प्रशासन के अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
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जानिए...नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विधि विस्तार से

शारदीय नवरात्र को महानवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। ये सनातन धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल है। इस पर्व की शुरुआत आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है और समाप्ति नवमी के दिन। नवरात्रि का पहला दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन श्रद्धालु अपने घरों में घटस्थापना करते हैं। जिसे कलश स्थापना के नाम से भी जाना जाता है। इसके बिना नवरात्रि पूजा अधूरी मानी जाती है। चलिए आपको बताते हैं कि नवरात्रि कलश स्थापना का मुहूर्त, विधि, सामग्री, मंत्र सबकुछ।
नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त 2024-
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। ये इसलिए जरूरी है क्योंकि कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है। मान्यताओं अनुसार अगर घटस्थापना शुभ मुहूर्त में और विधि विधान तरीके से न की जाए तो माता रानी नाराज हो जाती हैं। इसलिए कलश स्थापना का सही मुहूर्त और विधि जान लेना बहुत जरूरी है। चलिए आपको बताते हैं कि इस साल नवरात्रि घटस्थापना का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
घटस्थापना पूजन सामग्री-
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का बर्तन, पवित्र जगह की मिट्टी, कलावा/मौली, सुपारी, कलश, सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज), जटाओं वाला नारियल, लाल रंग का कपड़ा, फूल, माला, मिठाई, दूर्वा (दूब घास), गंगाजल, अक्षत, आम या अशोक के पत्ते (पल्लव), सिंदूर। 
घटस्थापना की विधि-
घटस्थापना या कलश स्थापना के लिए एक चौड़े मुंह वाले मिट्टी के बर्तन में पवित्र स्थान से मिट्टी लाकर भर लें और फिर उसमें सप्तधान्य बो दें।
फिर इस बर्तन के ऊपर कलश रखकर उसमें जल भर दें।
फिर कलश पर कलावा बांध दें। साथ में टीका लगा दें।
अब कलश के ऊपर आम या अशोक के पल्लव रखें।
इसके बाद कलश के मुख पर जटाओं वाला नारियल लाल कपड़े में कलावे से लपेटकर कलश के ऊपर रख दें।
इस बाद माता रानी के आह्वान करें।
नवरात्रि के हर दिन माता रानी के साथ-साथ कलश की भी पूजा करें।
घटस्थापना के नियम-
कलश स्थापना के लिए दिन के पहले एक तिहाई समय को सबसे उत्तम माना जाता है। कई लोग घटस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उत्तम मानते हैं।कलश स्थापना किचित्रा नक्षत्र और वैधृति योग के दौरान करने से बचना चाहिए।
कलश स्थापना मंत्र-
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।। ये मंत्र कलश स्थापना करते समय बोलना चाहिए।
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शारदीय नवरात्रि आज से शुरू, जानिए...कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

  • नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री को लगाएं ये भोग
हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं लेकिन नवरात्रि को बहुत ही खास माना गया है। आश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है जो कि आज यानी 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से आरंभ हो चुकी है और इसका समापन 11 अक्टूबर को हो जाएगा।
नवरात्रि का प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना को समर्पित होता है। इस दिन भक्त देवी साधना में लीन रहते हैं इसी के साथ ही नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना भी की जाती है, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा कलश स्थापना का सबसे शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
नवरात्रि की तारीख और कलश स्थापना का मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 3 अक्टूबर को 12 बजकर 18 मिनट से आरंभ हो चुकी है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 4 अक्टूबर को सुबह 2 बजकर 58 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार यानी आज से हो रहा है।
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। कलश स्थापना के लिए पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 7 बजकर 22 मिनट तक है। कलश स्थापना के लिए भक्तों को 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है। वही दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर में अभिजीत मुहूर्त में बन रहा है। यह मुहूर्त सबसे शुभ माना जा रहा है। जो दिन में 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट के बीच का है इस मुहूर्त में भक्त कलश की स्थापना कर सकते हैं दोपहर में भक्तों को कलश स्थापना के लिए 47 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है।
नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री को लगाएं ये भोग-
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को दूध और चावल से बनी खीर का भोग भी जरूर लगाएं। इसके अलावा देवी मां को दूध से बनी सफेद मिठाइयां भी अर्पित कर सकते हैं। माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री को सफेद रंग के फूल अर्पित करें।
मां शैलपुत्री का स्वरूप-
माता शैलपुत्री की मनमोहक रूप की बात करें तो देवी मां ने सफेद रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। मां शैलपुत्री की सवारी वृषभ यानी बैल पर हैं। मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है, जबकि मां के बाएं हाथ में कमल का फूल है। वहीं मां शैलपुत्री की सवारी बैल है। मां शैलपुत्री का यह रूप अत्यंत ही दिव्य है। मान्यताओं के अनुसार, माता शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्रमा के बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं।
 
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कोई भी फैसला लेने के लिए अपनाएं यह तरीका : प्रेमानंद महाराज

  • सीधे भगवान से मिलेगी मदद...
धर्मगुरु प्रेमानंद महाराज ने एक उपाय बताया है, जो हर किसी को बड़े फैसले लेने में मदद कर सकता है। प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में अपने एक प्रवचन में बताया कि यह तरीका आजमाएंगे, तो भगवान आपको सही फैसला लेने में मदद करेंगे।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, कोई भी फैसला लेने से 10 मिनट पहले शांत बैठें। इस दौरान मन ही मन अपने इष्टदेव का नाम लें। फिर जो फैसला करना चाहते हैं, उसके बारे में मन ही मन विचार करना शुरू कर दें।
प्रेमानंद महाराज का कहना है कि जो लोग नाम जप करते हैं, वो अनुभव करेंगे कि उन्हें सीधे भगवान से मदद मिलने लगी है। वो सही और गलत का विश्लेषण कर पा रहे हैं और सही फैसले को लेकर उनका नजरिया खुलने लगा है।
भगवान स्वयं अपने भक्त के लिए फैसला लेते हैं-
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, इस विधि से अपने जीवन के फैसले लेने वाले लोगों को अनुभव होगा कि उनके लिए यह काम भगवान स्वयं कर रहे हैं। भगवान कभी भी अपने सच्चे भक्तों को निराश नहीं करता है।
धर्म गुरु ने अपने भक्तों से कहा कि वे भक्ति करते हुए भगवान के पीछे पड़ जाएं। भगवान से कहें कि आपको हमारा उद्धार करना ही होगा। भगवान से कहें कि हमारा आपका रिश्ता पक्का है।
भगवान से कहें कि हम पापी हैं तो आप पतित पावन हो, हम दीन हैं तो आप दीनानाथ हो, हम भिखारी हैं तो आप सबसे बड़े दाता हो। हम अनाथ हैं तो आप तो नाथों के नाथ हो। कोई भी रिश्ता मानो, पर मानो जरूर।
जो बोओगे, वो आपको ही काटना पड़ेगा-
एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से पूछा कि भगवान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, लेकिन यह भी कहा जाता है कि कर्म का फल हमें भी भोगना होगा, तो कौन-सी बात सत्य है?
इस पर प्रेमानंद महाराज ने बहुत ही सरल तरीके से समझाया। उन्होंने कहा कि एक किसान है। उसने अपने बेटे को जमीन दे दी और अलग-अलग तरह के बीज दे दिए। अब बेटे पर निर्भर है कि वो खेती करता है या नहीं। खेती करता है तो किस तरह के बीज की। वो जो भी करे, फसल वही काटेगा, जो वो बोएगा।
इसी तरह भगवान ने हमें शरीर दे दिया और 60-80 साल की उम्र दे दी। अब हम पर निर्भऱ है कि हम क्या करते हैं? अच्छे कर्म करेंगे तो अच्छे फल मिलेंगे और बुरे कर्म का बुरा फल होगा। भगवान ने हमें दो हाथ दिए हैं, इससे किसी की गर्दन काटी जा सकती है और किसी की सेवा भी की जा सकती है।
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मां दंतेश्वरी मंदिर में सलमान खान के नाम पर ज्योतिकलश की स्थापना

जगदलपुर। आज 3 अक्टूबर से नवरात्रि का महापर्व शुरु हो चुका है। आज सुबह से ही प्रदेश के सभी देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिल रही है। नवरात्रि के पहले दिन गुरुवार को बस्तर के देवी मंदिरों में आस्था का जन सैलाब उमड़ा।
शहर के दंतेश्वरी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंचे हुए हैं। वहीं मंदिर समिति के द्वारा भी माता के दर्शन श्रद्धालुओं को आसानी से हो इसकी व्यवस्था की गई है।
वहीं मां दंतेश्वरी मंदिर में सलमान खान के नाम पर मनोकामना ज्योतिकलश की स्थापना की गई है। यह कलश उनके भक्त वीरेंद्र पाढ़ी ने जलाया है जो सालों से उनके प्रशंसक रहे हैं। आपको बता दें कि वीरेंद्र पाढ़ी ने घुटनों के बल चलकर जगदलपुर में मां दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन कर सलमान खान के लिए मन्नत भी मांगी है और उनके दामाद और बहन के लिए भी ज्योति कलश जलवाया है।
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नवदुर्गा की आराधना में ध्यान और एकाग्रता महत्वपूर्ण : शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती

बिलासपुर। नवरात्रि पर्व पर श्रद्धा, भक्ति और शुद्धता के साथ जीवन को नई दिशा देने का आह्वान करते हुए शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि इस पावन अवसर पर नवदुर्गा की आराधना में ध्यान और एकाग्रता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जीवन में शुद्धता का भाव रखते हुए परिवार की खुशहाली के लिए मां दुर्गा की आराधना विधि-विधान से करें।
स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि नवरात्रि के दौरान किसी के प्रति द्वेष भावना न रखें और पूरी श्रद्धा के साथ देवी की पूजा-अर्चना करें। दशहरे के दिन भगवान शिव का प्रतीक नीलकंठ पक्षी देखने को शुभ बताते हुए उन्होंने कहा कि यह भगवान शिव का रूप माना जाता है। उन्होंने चिंता जताई कि अब नीलकंठ पक्षी शहरों में कम दिखाई देते हैं।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने दीक्षा संस्कार और संगोष्ठी के अंतिम दिन अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया। इसके बाद अशोक वाटिका में चरण पादुका पूजन और महाआरती का आयोजन हुआ, जिसमें पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह, विधायक अमर अग्रवाल, पूर्व विधायक शैलेश पांडे सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती बुधवार को दोपहर में आगरा के लिए संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से रवाना हुए। उसलापुर स्टेशन पर बड़ी संख्या में भक्तों ने उन्हें विदाई दी और आशीर्वाद लिया।
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नवरात्रि पर दुल्हन की तरह सजा मां वैष्णो देवी का दरबार

  • दर्शनार्थियों की सुविधा का रखा जा रहा विशेष ध्यान
कटरा। शारदीय नवरात्रों की प्रतिपदा को जम्मू के कटरा स्थित मां वैष्णो देवी का भवन दुल्हन की तरह सज गया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी की आराधना को जुटे हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा का खास ख्याल रखा गया है। वहीं, मां वैष्णो देवी भवन परिसर में विशाल शत चंडी महायज्ञ का आयोजन भी किया गया है।
माता के भवन परिसर में जगह-जगह बने विशाल पंडाल, स्वागत द्वार और देवी-देवताओं की मूर्तियां श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींच रही हैं। देसी और विदेशी फलों-फूलों की महक से वातावरण महक रहा है।
मां वैष्णो देवी के दिव्य दर्शन पाने के लिए भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। बुधवार दोपहर तक लगभग 25,500 श्रद्धालुओं ने पंजीकरण करवा लिया था और वे मां के दर्शन के लिए रवाना हो चुके थे। श्रद्धालुओं को बिना किसी देरी के आरएफआईडी यात्रा कार्ड उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे उन्हें यात्रा में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हो रही है।
कटरा में श्रद्धालुओं के लिए आरएफआईडी यात्रा कार्ड प्राप्त करने के लिए कई पंजीकरण केंद्र खोले गए हैं, जिनमें रेलवे स्टेशन, मुख्य बस अड्डा, हेलीपैड और अन्य स्थान शामिल हैं। बिना आरएफआईडी कार्ड के किसी को भी वैष्णो देवी की यात्रा की अनुमति नहीं है। सभी प्रवेश द्वारों पर पुलिस और श्राइन बोर्ड के अधिकारी मौजूद हैं, जो कार्ड की जांच के बाद श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने की अनुमति दे रहे हैं।
नए लाल और पीले रंग के आरएफआईडी कार्ड जारी किए गए हैं, जबकि पुराने कार्ड अब मान्य नहीं होंगे। ऑनलाइन यात्रा पर्ची लेकर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कटरा रेलवे स्टेशन पर सेल्फ रजिस्ट्रेशन एटीएम स्थापित किया गया है, जिससे वे बिना कतार में लगे यात्रा कार्ड प्राप्त कर सकते हैं।
अर्ध कुवारी मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए आधुनिक लंगर की व्यवस्था की गई है, जहां उन्हें शुद्ध घी की खिचड़ी और अन्य पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है। पानी की व्यवस्था के लिए आरोग्य युक्त जल केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।
इसके अलावा, मां वैष्णो देवी भवन परिसर में विशाल शत चंडी महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 51 पंडितों द्वारा पूजा-अर्चना की जाएगी। यह यज्ञ देश और विश्व की सुख-शांति के लिए आयोजित किया जा रहा है।
सुरक्षा के कड़े प्रबंध भी किए गए हैं। कटरा में चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सीआरपीएफ के जवान तैनात हैं। लगभग 400 सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन से भी सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी की जा रही है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 6 सेक्टर बनाए गए हैं, जिनमें विभिन्न प्रमुख स्थानों पर अधिकारी तैनात रहेंगे।
विशेष सुविधाओं की अग्रिम बुकिंग पूरी तरह से फुल हो चुकी है, जिसमें हेलीकॉप्टर सेवा, बैटरी कार सेवा, और रोपवे शामिल हैं। श्रद्धालुओं को अटका आरती में शामिल होने का भी अवसर मिलेगा, जहां देश के नामी गायक भजन प्रस्तुत करेंगे।
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सर्वपितृ अमावस्या आज, पितरों की कृपा पाने के करें अचूक उपाय

  • सर्व पितृ अमावस्या पर करें ये 3 काम, हर विपत्ति से मिलेगा छुटकारा-
पितरों का तर्पण उनके स्वर्गवास की तिथि के अनुसार किया जाता है. लेकिन किसी कारणवश ऐसा भी होता है कि हम अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहते हैं लेकिन हमें उनकी तिथि अज्ञात होती है. ऐसे में अज्ञात तिथि वाले सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण सर्व पितृ अमावस्या के दिन करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन गलती से छूट गए सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण हो जाता है. अगर किन्हीं कारणवश तिथि वाले दिन पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाएं हैं तब भी उनका श्राद्ध और तर्पण सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जा सकता है. सर्व पितृ अमावस्या पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है. इस अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष पर पितरों की विदाई हो जाती है।
इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2004, दिन बुधवार को है. इस दिन सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक कुतुप मुहूर्त रहेगा. इसके बाद, रोहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 34 बजे से लेकर दोपहर के 01 बजकर 34 बजे तक होगा. वहींपितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 21 मिनट से लेकर दोपहर के 03 बजकर 43 मिनट तक है।
स्नान- तर्पण करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करें और वहीं पितरों का तर्पण करें.
शुद्धि करें- जिस स्थान पर तर्पण कर रहे हैं उस स्थान की अच्छे से साफ सफाई करें और शुद्धि के लिए गंगा जल का छिड़काव करें.
दक्षिण दिशा- पितरों का तर्पण करने के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए. इस दिशा को पूजा के लिए शुभ माना जाता है.
तस्वीर- जिनका तर्पण कर रहे हैं उन पूर्वज की तस्वीर स्थापित करें और दीपक व धूप जलाएं.
तर्पण का जल- तर्पण के लिए एक लोटे में जल लें और उसमें जौ, चावल काले तिल, कुश की जूडी, सफेद फूल, गंगाजल, दूध, दही और घी मिलाएं. जल के लोटे के साथ साथ तर्पण के लिए भोजन भी अलग से रखें.
पितरों का नाम लेकर करें तर्पण- पितरों का नाम और उनके गोत्र का नाम लेकर तर्पण करें. जिनका नाम मालूम नहीं है, उन्हें बस याद करके ही उन सबका तर्पण करें.
ब्राह्मण को भोजन- पितरों का तर्पण करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और उसके बाद सामर्थ्य के अनुसार, ब्राह्मणों को वस्त्र और दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और घर में शुभ आशीर्वाद देते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या पर करें ये 3 काम, हर विपत्ति से मिलेगा छुटकारा-
सनातन धर्म में इस बार सर्वपितृ अमावस्या आज मनाया जा रहा है। अमावस्या तिथि पर अगर कुछ आसान उपायों को किया जाए तो जीवन की हर विपत्ति और परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और पूर्वजों की कृपा से सुख समृद्धि सदा बनी रहती है तो आज हम आपको उन्हीं उपायों के बारे में बता रहे हैं।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर तिल की करछुल बनाकर मंदिर में अर्पित करें साथ ही यह लड्डू कौए, गाय और कुत्ते को भी खिलाएं। इस लड्डू को चढ़ाते वक्त अपनी मनोकामना को भी ध्यान में रखें। ऐसा करने से कई दिनो से अधूरी इच्छाएं भी पूरी हो जाती हैं। वास्तु अनुसार उत्तर पूर्व दिशा को पवित्र माना गया है ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या के दिन पूर्वजों को याद कर उत्तर पूर्व दिशा में दीपक जलाना चाहिए। इससे घर में सुख समृद्धि का वास होता है और आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो जाती है।सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर पूर्वजों को याद करना और उनका श्राद्ध, तर्पण करना लाभकारी माना जाता है इस दिन पूजा और दान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है इसके अलावा इस दिन माता लक्ष्मी के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए और माता के मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए मान्यता है कि ऐसा करने से आर्थिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
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आज 6 घंटे का होगा सूर्य ग्रहण, जानिए...सूतक काल

  • सूर्य ग्रहण के बाद करें इन चीजों का दान
  • सूर्य ग्रहण का किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा
आज 2 अक्टूबर को साल का आखिरी और दूसरा सूर्य ग्रहण लगने वाला है। इसी दिन सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी। ग्रहण को सनातन धर्म में एक अशुभ घटना माना जाता है इसका प्रभाव देश दुनिया से लेकर आम जन तक पड़ता है।
ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले सूतक काल लग जाता है जिसमें जातक को कई नियमों का पालन करना होता है, ग्रहण काल के समय में देवी देवताओं की प्रतिमा को छूना मना होता है इस दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा साल के दूसरे और आखिरी सूर्य ग्रहण का समय व अन्य जानकारी विस्तार से बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
सूर्य ग्रहण का समय और सूतक काल-
पंचांग के अनुसार इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण आज 2 अक्टूबर को लगने जा रहा है यह सूर्य ग्रहण रात के 9 बजकर 13 मिनट से शुरू हो जाएगा और 3 अक्टूबर को 3 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगा। जिस वक्त यह सूर्य ग्रहण लग रहा है उस समय भारत में रात रहेगा। ऐसे में भारतवासियों को यह ग्रहण दिखाई नहीं पड़ेगा।
सूर्य ग्रहण के ना दिखने के कारण इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। इसके अलावा सूतक काल अगर मान्य नहीं है तो फिर कोई भी नियम किसी पर भी लागू नहीं होगा। ऐसे में सभी लोग बिना किसी भय के अपने सारे काम ग्रहण काल के समय पर भी कर सकते हैं।
सूर्य ग्रहण के बाद करें इन चीजों का दान-
ज्योतिष अनुसार सूर्य ग्रहण के समापन के बाद घर की साफ सफाई करके झाड़ू लगाएं। इसके बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करें। अपनी इच्छा अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें इस दिन चना, गेहूं, गुड़, केले, दूध, फल और दाल आदि का दान करना शुभ रहेगा। इसके अलावा इस दिन धन का दान भी किया जा सकता है ऐसा करने से सफलता मिलती है इस दिन वस्त्रों का दान देना भी अच्छा माना जाता है ऐसा करने से सूर्य ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है।
सूर्य ग्रहण का किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा-
1. वृषभ वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण वृषभ राशि के लिए शुभ दिन। इस समय आपको तनाव से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही सूर्य के शुभ प्रभाव से आपको हर काम में सफलता मिलेगी। आर्थिक लाभ की संभावना, निवेश में लाभ हो सकता है।
2. कन्या कन्या राशि वालों के लिए सूर्य ग्रहण सकारात्मक प्रभाव प्रदान करता है। आपको काम में सफलता मिलेगी। साहस और सामान में वृद्धि होगी। प्रियजनों के साथ संबंध मजबूत होंगे। नई सलाह में सफलता मिलेगी, स्वास्थ्य में सुधार होगा।
3. तुला राशि वालों के लिए यह ग्रहण वाला है। इस राशि के जातकों के रिश्तों में बदलाव की पूरी संभावना है। सूर्य के शुभ प्रभाव से आपको साझेदारी से लाभ होगा। व्यापार में मेहनत होगी।
4. स्कॉर्पियो स्कॉर्पियो राशि वालों के लिए साल का आखिरी सूर्य ग्रहण फल है। इस राशि के लिए यह समय और भी शुभ माना जा रहा है। आपको लाभ के नए अवसर मिलेंगे। इस दौरान आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। साथ ही सभी आवेदकों का समाधान होगा।
5. धनु राशि वालों के लिए सूर्य ग्रहण भाग्यशाली साबित हो सकता है। दाम्पत्य जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहेगी और समृद्धि का भरपूर सहयोग मिलेगा। इस दौरान आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा।
6. मकर वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण मकर राशि के लिए शुभ माना जा रहा है। सूर्य के शुभ प्रभाव से यश में वृद्धि होगी। साथ ही मान-सम्मान में भी वृद्धि होगी। सूचीबद्ध सभी कार्य में गति आ सकती है। कार्य क्षेत्र में आपको पहचान और सम्मान मिल सकता है।
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कल से शारदीय नवरात्र का आरंभ, सुबह 6:30 बजे से शाम तक शुभ

  • अभिजीत, लाभ और अमृत में घटस्थापना के हैं मुहूर्त
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर गुरुवार को हस्त नक्षत्र व ऐंद्र योग की साक्षी में शारदीय नवरात्र का आरंभ होगा। इस दिन घटस्थापना के दिनभर शुभ मुहूर्त हैं। पंचांग की गणना के अनुसार इस बार नवरात्र पूरे नौ दिन के रहेंगे। लेकिन तिथि की घट बढ़ के कारण अष्टमी व नवमी की पूजा एक ही दिन होगी।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया नवरात्र में घटस्थापना का विशेष महत्व है। अगर घटस्थापना के समय विशेष योग की साक्षी हो, तो पर्वकाल शुभफल प्रदान करता है। इस बार गुरुवार के दिन हस्त नक्षत्र व ऐंद्र योग की साक्षी में शारदीय नवरात्र की घटस्थापना होगी। इस योग में विधि विधान से की गई कलश स्थापना या घट स्थापना राजकीय लक्ष्य को पूर्ण कराती है।
किस तारीख को कौन सी तिथि-
3 अक्टूबर गुरुवार प्रतिपदा
4 अक्टूबर शुक्रवार द्वितीया
5 अक्टूबर शनिवार तृतीया
6 अक्टूबर रविवार तृतीय उपरांत चतुर्थी
7 अक्टूबर सोमवार चतुर्थी उपरांत पंचमी
8 अक्टूबर को मंगलवार छठ
9 अक्टूबर दोपहर 12 बजे से सप्तमी
10 अक्टूबर गुरुवार दोपहर 12.30 बजे से अष्टमी
11 अक्टूबर शुक्रवार 12.22 तक अष्टमी उपरांत नवमी
12 अक्टूबर शनिवार सुबह 11 बजे तक नवमी उसके बाद दशहरा
शारदीय नवरात्र में घट स्थापना के मुहूर्त-
सुबह 6.30 से 8 बजे तक : शुभ का चौघड़िया
सुबह 10.50 से 12. 20 बजे तक : अभिजीत
सुबह 11 से दोपहर 12.30 बजे तक : चंचल
दोपहर 12.30 से दोपहर 2 बजे तक : लाभ
दोपहर 2 बजे से 3.30 बजे तक : अमृत
शाम 5 बजे से शाम 6.30 बजे तक : शुभ अमृत बेला
शारदीय नवरात्र में सर्वार्थसिद्धि व रवियोग-
इस बार नवरात्र पूरे नौ दिन के, अष्टमी व नवमी की पूजा एक ही दिन होगी। पंचांगीय गणना के अनुसार 5, 7,12 अक्टूबर को सर्वार्थसिद्धि तथा 5,6,11 अक्टूबर को रवि योग का संयोग रहेगा।
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पितरों के अच्छे कामों को आगे ले जाकर उन्हें दें सच्ची श्रद्धांजलि : मुख्यमंत्री साय

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने 2 अक्टूबर को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के अवसर पर जारी अपने संदेश में कहा कि पितर पक्ष पूर्वजों के प्रति हमारे सम्मान, प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है। मान्यता है साल में 15 दिनों के लिए पितर पक्ष में दिवंगत पूर्वज अपने घर आते हैं। इस दौरान हम अपने पूर्वजों के मोक्ष और शांति के लिए श्राद्ध करते हैं और उनसे जीवन में खुशहाली के लिए आशीर्वाद की कामना करते हैं। श्री साय ने कहा कि पितरों का सम्मान हमारी परम्परा, सभ्यता और संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। हमारे पूर्वज जो धरोहर छोड़ गए हैं, उसे सहेजने और संवारने की जिम्मेदारी हम सबकी है। हम अपने पूर्वजों के समाज के लिए किए गएअच्छे कामों को आगे ले जाकर उन्हें सही मायनों में श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।
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इस प्रदोष में शीघ्र करें विशेष कार्य

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत (सितंबर रवि प्रदोष व्रत) को बहुत खास माना जाता है। इस दिन पूजा और व्रत द्वारा शिव की आराधना करने से साधकों की मनोकामना पूरी होती है। इस संबंध में, आश्विन माह का पहला प्रदोष व्रत 8 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। यह प्रदोष व्रत पितृ पक्ष की अवधि तक पहुंचता है और ऐसी परिस्थितियों में, यदि कोई इस दिन एक कदम रखता है, तो वह आशीर्वाद का आनंद ले सकता है। महादेव सहित पितर। रवि प्रदोष के व्रत वाले दिन विशेष रूप से सुबह स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहनें। इसके बाद शिव जी की पूजा करें और पूजा पूरी करने के बाद अपने माथे पर तिलक लगाएं। इसके बाद शिवलिंग पर जल, तिल और शमी के पत्ते चढ़ाएं और शिव चालीसा का जाप भी करें। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए यह एक अच्छा उपाय माना जाता है।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करें और शुभ फल प्राप्त करें। इस दिन आप शिवलिंग पर केसर और चीनी भी चढ़ा सकते हैं। ऐसा करने से महादेव प्रसन्न होंगे और साधक को धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है
रवि प्रदोष व्रत के दिन सफेद वस्तुओं जैसे सफेद कपड़े, दूध, दही, चावल आदि का दान करना चाहिए। इससे साधक को भगवान शिव के साथ-साथ अपने पितरों का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा आप प्रदोष व्रत के दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को कपड़े, भोजन, फल ​​आदि का दान भी कर सकते हैं।
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इंदिरा एकादशी व्रत आज, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त

28 सितंबर, शनिवार को इंदिरा एकादशी का व्रत किया जाएगा। इस एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है। जिस कारण इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अंजाने हुए अपने कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं, तो इस एकादशी पर विधि पूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है। इंदिरा एकादशी के दिन इन विशेष उपायों को करने से अलग-अलग शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए कि एकादशी के दिन क्या करना शुभ और फलदायी रहेगा।
अगर आप अपने दांपत्य जीवन को सुखी बनाये रखना चाहते हैं तो उसके लिए एकादशी के दिन स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर तुलसी के पौधे को प्रणाम करें और अपने अच्छे दांपत्य जीवन के लिए प्रार्थना करें।
अगर आप अपने आर्थिक पक्ष को पहले की अपेक्षा और भी ज्यादा मजबूत करना चाहते हैं तो एकादशी के दिन स्नान आदि के बाद पीले रंग के वस्त्र पहनें। अगर आपके पास पहनने के लिए कोई पीला वस्त्र नहीं है तो किसी भी रंग के वस्त्र पहन लें, लेकिन अपने पास एक पीला रुमाल या कोई एक छोटा-सा पीले रंग का कपड़ा रख लें।
अगर आप सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की बहुत दिनों से तैयारी कर रहे हैं, लेकिन आपको सफलता नहीं मिल पा रही है तो एकादशी के दिन आप विष्णु भगवान को एक जटादार, पानी वाला नारियल अर्पित करें। उसे 20 मिनट बाद वहां से उठा लें और फोड़कर, उसकी गिरी निकालकर परिवार के सब सदस्यों में बांट दें और खुद भी खा लें। साथ ही उस नारियल में से निकले हुए पानी को भी प्रसाद के रूप में
अगर आपके बच्चे की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही है तो अपने बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए एकादशी के दिन श्री हरि का नाम लेकर एक साबुत हल्दी की गांठ लेकर, पानी की सहायता से पीस लें। अब उस पिसी हुई हल्दी का टीका बच्चे के माथे और गर्दन के बींचो-बीच लगा दें। अपने पारिवारिक जीवन में खुशहाली लाना चाहते हैं तो उसके लिए एकादशी के दिन पीले ताजा फूलों की माला बनाकर भगवान विष्णु के मंदिर में चढ़ाएं। साथ ही भगवान को चंदन का तिलक भी लगाएं।
इंदिरा एकादशी की पूजा का मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की एकादशी तिथि का आरंभ 27 सितंबर दिन शुक्रवार को दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर हो चुका है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 28 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर हो जाएगा। वही इंदिरा एकादशी का व्रत इस बार 28 सितंबर दिन शनिवार यानी आज किया जा रहा है।
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना करने से भक्तों को उत्तम फलों की प्राप्ति होती है और सारे दुख परेशानियां दूर हो जाते हैं। इस व्रत का पारण 29 सितंबर को सुबह 5 बजकर 37 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 1 मिनट तक के बीच किया जा सकता है।
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शनिवार को करें ये उपाय, शनिदेव होंगे प्रसन्न

शनिवार का दिन हिंदू धर्म के लिए बहुत खास होता है. अगर आप चाहते हैं कि शनि देव की कृपा आप पर बनी रहे तो ऐसे में आपको कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत है. बता रहे हैं वो 5 उपाय जिन्हें अगर आपने अपना लिया तो शनि देव की कृपा आप पर बरसेगी और आपके कष्ट दूर होंगे।
पीपल पर चढ़ाएं जल-
इस दिन अगर आप पीपल पर जल चढ़ाएं तो इसका फायदा होता है. इसके अलावा इस दिन पीपल को जल अर्पित करने के बाद 7 बार पेड़ का परिक्रमा करें. इस दिन दानपूर्ण का काम करने से भी फायदा होता है. किसी गरीब को भोजन खिलाएं।
बजरंगबली की करें अराधना-
शनिवार के दिन बजरंगबली की आराधना करना भी शुभ माना जाता है. इस दिन नहा-धोकर हनुमान जी की पूजा करें और उनपर सिंदूर चढ़ाएं. हनुमान जी पर चमेली का तेल अर्पित करें. इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें. हनुमान जी की पूजा करने से शनि देव के प्रकोप से राहत मिलती है।
शनि देव की करें पूजा-
शनिवार के दिन सच्चे मन से शनि देव की पूजा करें और नियम पालन करें. गलत काम से दूरी बना लें. शनि देव की पूजा के दौरान उन्हें अगर आप नीले रंग का पुष्प चढ़ाते हैं तो इससे भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
तेल का करें दान-
इस दिन तिल या सरसो का तेल दान करने का भी फायदा होता है. इसे भी अगर आप विधि-विधान से करेंगे तो इसका ज्यादा लाभ देखने को मिलेगा. इस दिन आप सुबह उठकर नहा लें. और इसके बाद एक कटोरी में सरसो का तेल लें. उस तेल में खुद का चेहरा देखें और इसके बाद उसे किसी जरूरतमंद को दान कर दें. इससे शनि दोष से मुक्ति मिल सकती है।
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टीएस सिंहदेव ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद महाराज का लिया आशीर्वाद

सरगुजा। टीएस सिंहदेव ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद महाराज का आशीर्वाद लिया। X पर टीएस सिंहदेव ने लिखा, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी महाराज के अम्बिकापुर आगमन पर उनके दर्शन का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी विद्वता और सरलता से अभूतपूर्व प्रेरणा मिली। ऐसे महान संतों का सान्निध्य हमारी परंपराओं और मूल्यों की शक्ति है। उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद हमारे समाज के उत्थान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वामी जी के आशीर्वाद का सदैव अभिलाषी हूं।
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