धर्म समाज

जानिए...आपकी राशि के अनुसार कौन सा रुद्राक्ष रहेगा आपके लिए बेहतर

  • कई रोगों से मिलेगी मुक्ति
रुद्राक्ष भगवान शिव का रूप है। मनुष्यों को अपने पापों से निवृत्ति के लिये भगवान शिव ने इन दिव्य दानों का वरदान दिया। ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष धारण करते साथ ही व्यक्ति को महादेव का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार राशिनुसार रुद्राक्ष पहनने के भी अपने कई लाभ है। रुद्राक्ष कई मुखी में आता है। जानें आपकी राशि के अनुसार आपके लिए बेस्ट कौन सा है।
मेष राशि
तीनमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। इसका संबंध अग्नि देव से है और इससे पिछले जन्म और इस जन्म के पापकर्मों से मुक्ति मिलती है इसके अलावा निगेटिव विचार, अपराध की भावना, हीन भावना आदि कम होते है और आपके व्यक्तित्व का विकास होता है। साथ ही इसे धारण करने से बीपी, कमज़ोरी और पेट संबंधी बीमारियों का भी उपचार होता है।
वृष राशि
छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है। छः मुखी रुद्राक्ष का सूचक शिवजी के पुत्र भगवान कार्तिकेय को माना जाता है और इससे बुद्धि का विकास होता है अभिव्यक्ति की कुशलता और इच्छा शक्ति बढ़ती है साथ ही इसे धारण करने से शौर्य एवं प्रेम की प्राप्ति होती है अगर औषधीय गुणों की बात करें तो इससे आंखो को फायदा होता है, मुंह और गले के रोगों के लिये भी छः मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होता है।
मिथुन राशि
चतुर्मुखी यानि चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम है। चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रम्हाजी का आशीर्वाद प्राप्त है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष के धारण से मनुष्य को मेधावी आंखें प्राप्त होती हैं। साथ ही वह तेजस्वी होता है उसका मानसिक संतुलन अच्छा रहता है, वह तनाव, डिप्रेशन आदि से दूर रहता है और उसकी वाणी में मधुरता आती है।
कर्क राशि
आपको दो मुखी रुद्राक्ष का धारण करना चाहिए। दो मुखी रुद्राक्ष को शिवजी के अर्धनारीश्वर यानि जिस रूप में शिव और शक्ति का सन्योग है, उनका वरदान प्राप्त है। पद्मपुराण के अनुसार दो मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का वरदान भी प्राप्त है लिहाजा इसको धारण करने से धारक को यज्ञ, होम वा अग्निहोत्र से मिलने वालें पुण्य प्राप्त होताहै । साथ ही यह अच्छे पारिवारिक जीवन, सभी से अच्छे संबंध और विवाह सिद्धि के लिये उपयोगी है।
सिंह राशि
बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। बारह मुखी रुद्राक्ष को सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त है। इसे द्वादश आदित्य भी कहते है। इसे धारण करने से किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को निर्भय एवं निस्संकट बनाता है। धारक का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है और उसे गरीबी कभी नहीं सताती। साथ ही बारह मुखी रुद्राक्ष से हृदय, त्वचा और आंखों के रोगों का उपचार भी होता है।
कन्या राशि
एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना उत्तम होता है। एकमुखी रुद्राक्ष सबसे शुभ होता है। इस रुद्राक्ष को स्वयं शिवजी का वरदान प्राप्त है। यह बीज परम सुख और मोक्ष दिलाता है । कहा जाता है जिस जगह पर एक मुखी रुद्राक्ष की पूजा होती है वहां लक्ष्मी जी निवास करती है, एक मुखी रुद्राक्ष ऋद्धि और सिद्धि दोनों दिलाता है। साथ ही यह रुद्राक्ष अपने धारक को एकाग्रता, मन की शांति प्रदान कराता है और उसकी सारी इच्छाओं को पूर्ण करता है।
तुला राशि
आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है। आठ मुखी रुद्राक्ष को गणेश भगवान , जो कि संकटों के निवारक है, उनका वरदान प्राप्त है। आठ मुखी रुद्राक्ष बुद्धि का विकास, सर्कुलेशन की शक्ति और राइटिंग स्कील प्रदान करता है। साथ ही इससे यश , कला में निपुणता एवं समृद्धि प्राप्त होता है। और वैद्यकीय गुणों की बात करें तो इससे नाड़ी संबंधित , शयान यानि प्रोस्ट्रेट और गॉल ब्लैडर के रोग मिटते है।
वृश्चिक राशि
पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। पञ्चमुखी रुद्राक्ष को शिवजी के कालाग्नि रुद्र रूप का वरदान मिला हुआ है। मान्यता है कि तीन बड़े पञ्चमुखी रुद्राक्ष पहनने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है साथ ही तन और मन कि शुद्धि होती है। और जहां तक इसके औषधीय गुणों का सवाल है, यह बी.पी, डायबिटीज, कान, पेट और जंघा के रोगों को नियंत्रण करने के लिए काफी प्रचलित
है।
धनु राशि
नवमुखी यानि नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करना अतिशुभ है। नौ मुखी रुद्राक्ष को देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति निर्भय और तनावमुक्त होता है। और इसको पहनने से व्यक्ति के अंतर्मन की पवित्र अग्नि द्वारा शुद्धि होती है। साथ ही यह अपने धारक को बलशाली और आत्म विश्वासी बनाता है। मान्यता है कि काल यानि यमराज और काल भैरव दोनों ही नवमुखी रुद्राक्ष के धारक की रक्षा करते है। जिस कारण इसे कालभय निवारक भी कहते है।
मकर राशि
दस मुखी रुद्राक्ष उत्तम माना जाता है। इस रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का वरदान प्राप्त है। इसे पूजा मे रखकर हरि और हर दोनों की
कृपा प्राप्त की जा सकती है। और दो महान देवताओं की शक्तियों को जोड़कर भूत, जादू-टोना, ईर्ष्या आदि संकटों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही घर, कार्यालय या कारखानों के वास्तुदोष भी इससे मिटते है।इसके अलावा मुकदमा, कलह और शत्रु उपद्रव होने पर यह बीज बहुत सहायक है। कहा जाता है कि सभी ग्रहों के नियंत्रण के उपर यह पहला रुद्राक्ष है, लिहाजा किसी भी ग्रह के बुरे प्रकोप से बचने के लिये यह रुद्राक्ष प्रभावी है।
कुंभ राशि
सात मुखी रुद्राक्ष का धारण करना चाहिए। यह रुद्राक्ष सात मातृकाओं के साथ ही सूर्य, सप्तर्षि कार्तिकेय, अंगत यानि कामदेव, अनंत यानि बासुकी, और नागराज को समर्पित है। सप्तमातृकाएं यानि ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी और चामुंडा को समर्पित होने से यह महालक्ष्मी को प्रसन्न करता है। जिस कारण इसको धारण करने वाले के जीवन में प्रगति , कीर्ति, और धन कि वर्षा कराता है और धारक के दुर्भाग्य को मिटाता है। साथ ही इसके धारण करने वाले को गुप्त धन और जीवन में भरपूर रोमांस मिलता है। और शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होता है|
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दीपक जलाने का है विशेष महत्व

भारतीय संस्कृति और वास्तु शास्त्र में दीपक जलाने का विशेष महत्व है, खासकर शाम के समय। यह न केवल एक धार्मिक कार्य है बल्कि ऊर्जा और मनोविज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं दीपक जलाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और किन गलतियों से बचना चाहिए।
दीपक जलाने के फायदे-
सकारात्मक ऊर्जा का संचार-दीपक की रोशनी वातावरण को शुद्ध और शांत बनाती है|
धन और समृद्धि का आगमन-माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए मुख्य द्वार पर दीपक जलाना शुभ माना जाता है|
नकारात्मकता दूर होती है-दीपक की लौ से नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं.
मानसिक शांति-नियमित दीपक जलाने से मन को शांति मिलती है और ध्यान केंद्रित रहता है|
दीपक जलाते समय इन बातों का रखें ध्यान-
दक्षिण दिशा में दीपक न जलाएं-दीपक को पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में रखना श्रेष्ठ माना गया है. दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है.
टूटा हुआ दीपक न जलाएं-टूटे या खंडित दीपक का उपयोग न करें, इससे नकारात्मक ऊर्जा फैल सकती है. तेल का सही चयन करें-सरसों या तिल का तेल अधिक शुभ माना जाता है. पूजा में घी का दीपक भी उत्तम रहता है.
दीपक बुझने न दें-अगर हवा से दीपक बुझ जाए, तो उसे तुरंत पुनः जलाएं.
दीपक को ज़मीन पर सीधे न रखें-दीपक को किसी थाली या दीपदान पर रखें.
साफ-सफाई का ध्यान रखें-दीपक जलाने से पहले घर के मुख्य द्वार और आसपास की जगह की सफाई अवश्य करें|
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"पाकिस्तान बिगड़ी औलाद, सिखाएंगे सबक" पड़ोसी मुल्क पर भडक़े बाबा बागेश्वर

मुजफ्फरपुर। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किए जाने की मांग को लेकर नई पहल की घोषणा की है। उन्होंने बताया कि वह आगामी 7 नवंबर से नई दिल्ली से वृंदावन तक 131 किलोमीटर लंबी पदयात्रा निकालेंगे, जो 10 दिनों तक चलेगी।
उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए वह लगातार संघर्षरत रहेंगे। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जातियों में बांटकर वोट बैंक की राजनीति अब बंद होनी चाहिए। उन्होंने नेताओं से आग्रह किया कि जातिवाद नहीं, राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दें।
इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान को बिगड़ी औलाद बताते हुए कहा कि भारत की बेटियों ने ही उसे सीधा कर दिया। बेटों के हाथ कमान दिया तो क्या होगा। अगर पाकिस्तान नहीं सुधरा तो आगे भी सबक सिखाएंगे। साथ ही उन्होंने सीमा राज्यों की सरकारों से आग्रह किया कि वे बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को देश में प्रवेश न दें। उन्होंने कहा कि देश में पहले से ही बड़ी संख्या में गरीब हैं, ऐसे में घुसपैठियों को शरण देना देश को कमजोर करना होगा।
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बाबा महाकाल के गले में चंदन और रुद्राक्ष की माला पहनाने के बाद माथे पर लगाई गई भस्म

उज्जैन। श्री महाकालेश्वर मंदिर में ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर बुधवार को सुबह 4 बजे हुई भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल का पंचामृत से पूजन व अभिषेक किया गया। श्रृंगार के बाद उन्हें त्रिनेत्र सहित आकर्षक स्वरूप में पूजन सामग्री से सजाया गया। श्रृंगार के बाद बाबा महाकाल को भस्म अर्पित की गई। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन कर जय श्री महाकाल के जयकारे लगाए।
समस्त देवताओं के काल विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में बुधवार को बाबा महाकाल का विशेष श्रृंगार किया गया। महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि भस्म आरती के लिए सुबह चार बजे जैसे ही मंदिर के पट खुले, पुजारियों ने गर्भगृह में स्थापित सभी देवताओं की प्रतिमाओं का पूजन किया और दूध, दही, घी, शक्कर व फलों के रस से बने पंचामृत का भोग लगाकर भगवान महाकाल का जलाभिषेक किया। कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को फूलों की माला पहनाई गई। आज के श्रृंगार की खास बात यह रही कि बाबा महाकाल के माथे पर त्रिनेत्र और चंदन का श्रृंगार किया गया, जिससे उनका रूप बेहद आकर्षक लग रहा था।
श्रृंगार के बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग पर भस्म का लेप किया गया और फिर कपूर की आरती की गई और भोग भी लगाया गया। भस्म आरती के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, जिन्होंने बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया और बाबा महाकाल की भक्ति में लीन होकर "जय श्री महाकाल" के नारे लगाने लगे।
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कालाष्टमी आज, इन मंत्रों के जाप से बदल जाएगी आपके जीवन की दशा

भारत की प्राचीन संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। इन्हीं विशेष तिथियों में से एक है कालाष्टमी, जिसे भगवान कालभैरव की उपासना का दिन माना जाता है। कालभैरव, भगवान शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं और उन्हें काल यानी समय का स्वामी भी कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि कालाष्टमी के दिन यदि श्रद्धा और विधिपूर्वक कालभैरव की पूजा की जाए और विशेष मंत्रों का जाप किया जाए, तो जीवन में चल रहे रोग, दोष, भय और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है। वर्ष 2025 में कालाष्टमी का व्रत 20 मई, यानि आज मनाई जाएगी। यह दिन भैरव बाबा की आराधना और साधना के लिए अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना गया है। इस तिथि को अष्टमी पड़ने पर रात्रि के समय कालभैरव की उपासना विशेष फलदायक होती है। कालाष्टमी पर किए गए मंत्र जाप विशेष रूप से फलदायक होते हैं।
मत्कारी मंत्र:
ॐ कालभैरवाय नमः
यह भगवान कालभैरव का मूल बीज मंत्र है। इसका जाप करने से भय, चिंता और रोगों से मुक्ति मिलती है। यह मन को शांति देने वाला और आत्मबल बढ़ाने वाला मंत्र है।
ॐ भ्रं कालभैरवाय नमः फट्
यह मंत्र शत्रु बाधा, तांत्रिक दोष और बुरी नजर से सुरक्षा प्रदान करता है। ‘फट्’ बीज ध्वनि है जो नकारात्मक ऊर्जा को काटती है।
ॐ ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं स्वाहा
यह मंत्र भैरव जी के वटुक स्वरूप का है। इसका जाप संकटों और आपदाओं से रक्षा करता है। यह विशेष रूप से जीवन में चल रही बाधाओं को दूर करता है।
ॐ भयहरणं च भैरव:
यह मंत्र मानसिक भय, आत्मिक चिंता और अनजाने डर से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
काल भैरवाष्टक पाठ:
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं,
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं,
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं,
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥॥
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं,
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम्।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥॥
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते
प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम्॥॥
॥इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम्॥
कालाष्टमी पर मंत्र जाप का महत्व:
मंत्र एक ऐसी ध्वनि शक्ति होती है, जो न केवल मानसिक स्थिति को संतुलित करती है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा को भी जागृत करती है। कालाष्टमी पर किए गए मंत्र जाप विशेष रूप से फलदायक होते हैं।
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16 सोमवार का व्रत कब से शुरू कर सकते हैं? जानिए सही विधि

हिंदू धर्म में सोमवार व्रत को अत्यंत फलदायक माना गया है। विशेष रूप से 16 सोमवार का व्रत (सोलह सोमवार व्रत) भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। यह व्रत अखंड सौभाग्य, मनचाहा वर या विवाह की प्राप्ति, और जीवन में सुख-शांति बनाए रखने के लिए बहुत प्रभावशाली माना जाता है। यह व्रत स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए फलदायी होता है, और विशेष रूप से कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनचाहा वर पाने के लिए करती हैं। अब सवाल उठता है कि 16 सोमवार का व्रत कब से शुरू किया जाए? कौन-सा महीना उत्तम होता है? और इसकी सही विधि क्या है? आइए जानते हैं विस्तार से।
16 सोमवार व्रत कब से शुरू करें?
16 सोमवार का व्रत किसी भी शुभ सोमवार से शुरू किया जा सकता है, लेकिन श्रावण मास (सावन महीना) को इस व्रत की शुरुआत के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सावन का महीना भगवान शिव को विशेष प्रिय है, और इस महीने में सोमवार के दिन व्रत करने से व्रत का फल कई गुना अधिक हो जाता है। अगर श्रावण मास दूर है, तो आप व्रत की शुरुआत कार्तिक, माघ, या फाल्गुन मास के किसी शुभ सोमवार से भी कर सकते हैं। कुछ लोग इस व्रत की शुरुआत श्रवण नक्षत्र वाले सोमवार से करना भी शुभ मानते हैं।
16 सोमवार व्रत की सही विधि
पंडितों के अनुसार, 16 सोमवार का व्रत 16 लगातार सोमवार तक बिना किसी रुकावट के करना चाहिए। यदि किसी कारणवश व्रत बीच में छूट जाए, तो व्रती को पुनः शुद्धता से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए।
व्रत की पूजन विधि:
स्नान और संकल्प: प्रातः स्नान कर भगवान शिव के सामने व्रत का संकल्प लें – “मैं फलां नाम, श्रद्धा से 16 सोमवार का व्रत कर रहा/रही हूं, कृपया मेरी मनोकामना पूर्ण करें।”
पूजन सामग्री: जल, दूध, बेलपत्र, सफेद फूल, धतूरा, अक्षत, रोली, चावल, घी का दीपक, फल और मिठाई।
पूजन विधि:
शिवलिंग को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से स्नान कराएं।
बेलपत्र, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप से पूजन करें।
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप करें।
सोमवार व्रत कथा का पाठ करें या श्रवण करें।
उपवास नियम: व्रती केवल फलाहार करें या एक समय सात्विक भोजन लें। दिनभर भगवान शिव का स्मरण करें।
व्रत पूर्ण होने पर क्या करें?
16 सोमवार पूरे होने पर 17वें सोमवार को उद्यापन करना आवश्यक होता है। इस दिन व्रती विशेष पूजन, हवन, और ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का समापन करता है। साथ ही कन्याओं या जरूरतमंदों को दान भी दिया जाता है।
लाभ और महत्व
इस व्रत से मनचाहा जीवनसाथी, संतान सुख, आर्थिक समृद्धि, और कठिन समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
मानसिक शांति, रोगों से राहत, और पारिवारिक कलह से मुक्ति भी इस व्रत के फलस्वरूप मिलती है।
निष्कर्ष
16 सोमवार व्रत एक अत्यंत प्रभावशाली व्रत है जिसे श्रद्धा, नियम और सही विधि से किया जाए तो भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। व्रत की शुरुआत श्रावण मास के किसी सोमवार से करना सबसे उत्तम होता है, लेकिन अन्य शुभ सोमवार से भी शुरू किया जा सकता है। संयम और श्रद्धा ही इस व्रत की सबसे बड़ी शक्ति है।
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गणेश अष्टकम का नियमित पारिवारिक पाठ लाएगा सुख-शांति

भारतीय सनातन परंपरा में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, शुभारंभ के देवता और बुद्धि, ज्ञान तथा समृद्धि के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश वंदना की परंपरा अटूट रही है। उन्हीं की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है- गणेश अष्टकम। आज के इस तेज़ और तनावपूर्ण जीवन में यदि पति-पत्नी मिलकर श्रद्धा और विश्वास से इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें, तो न केवल उनके जीवन में आपसी सामंजस्य बेहतर होता है, बल्कि घर में सुख, शांति और धन-धान्य की भी कभी कमी नहीं रहती। आइए जानते हैं इस पावन स्तोत्र की शक्ति, लाभ और दैनिक जीवन में इसके सकारात्मक प्रभावों के बारे में।
क्या है गणेश अष्टकम?
गणेश अष्टकम संस्कृत में रचित आठ श्लोकों का स्तोत्र है, जिसमें भगवान गणेश के रूप, गुण, कार्य और उनके दिव्य स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए बेहद फलदायक माना जाता है जो जीवन की बाधाओं से निकलकर स्थिरता और शांति की ओर बढ़ना चाहते हैं।
पति-पत्नी द्वारा संयुक्त पाठ का विशेष महत्व
जब पति-पत्नी एक साथ बैठकर भगवान गणेश का यह अष्टकम श्रद्धा से पढ़ते हैं, तो न केवल एक आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, बल्कि उनका आपसी संबंध भी अधिक मजबूत होता है। दोनों की भावनात्मक ऊर्जा एकरूप हो जाती है और मन, वाणी, कर्म की एकता से ईश्वर को अर्पित प्रार्थना शीघ्र फल देती है।
ऐसा माना जाता है कि संयुक्त पाठ से पारिवारिक कलह, मानसिक तनाव और आर्थिक संकट दूर हो जाते हैं।
पति-पत्नी के बीच की अनबन, गलतफहमियां या वैचारिक टकराव धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं।
यह पाठ घर के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव दूर होता है।
घर में शांति और समृद्धि का स्रोत
गणेश अष्टकम का नित्य पाठ करने से घर में एक दिव्य और शांतिपूर्ण वातावरण बनता है। खासकर यदि यह पाठ बुधवार के दिन किया जाए, जो कि गणेशजी को समर्पित है, तो इसका प्रभाव और भी अधिक होता है।
धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। रुके हुए आर्थिक काम बनने लगते हैं।
घर के सदस्यों में आपसी प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं धीरे-धीरे कम होती हैं और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
पाठ की विधि और समय
प्रातः स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
घर के मंदिर में या शांत स्थान पर भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाएं।
गुलाब, दूर्वा, लड्डू आदि अर्पित करें।
फिर पति-पत्नी एक साथ बैठकर स्पष्ट उच्चारण में गणेश अष्टकम का पाठ करें।
पाठ के बाद “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का 11 बार जाप करें।
यदि संभव हो तो बुधवार को व्रत रखकर यह पाठ करें। यह विशेष फलदायी माना गया है।
गणेश अष्टकम के कुछ अंश (उदाहरणार्थ)
"प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरे नित्यं आयुः कामार्थ सिद्धये॥"
इस श्लोक का अर्थ है- "गौरी पुत्र श्री गणेश को सिर झुकाकर प्रणाम करें, जो भक्तों के हृदय में निवास करते हैं। जिनका स्मरण आयु, कामना, और अर्थ की सिद्धि हेतु किया जाता है।"
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
शास्त्रों में वर्णित है कि जहां भगवान गणेश की नियमित पूजा होती है, वहां रोग, दोष, दरिद्रता और क्लेश नहीं टिकते। ऐसे घरों में मां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का वास होता है, क्योंकि गणपति को इन दोनों शक्तियों का संयोजक भी माना गया है।गणेश अष्टकम केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है जो पति-पत्नी को जोड़ती है, परिवार को स्थिरता देती है और जीवन को बाधा रहित बनाती है। यदि आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहे, धन-धान्य की वृद्धि हो और पति-पत्नी के संबंध मधुर बने रहें, तो आज से ही नियमित रूप से गणेश अष्टकम का पाठ शुरू करें।
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अपरा एकादशी के दिन करें इन चीजों का दान, जीवन में बनी रहेगी खुशियां

अपरा एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है. ‘अपरा’ का अर्थ है ‘असीम’ या ‘अत्यधिक’. इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं. इस एकादशी का महत्व भगवान कृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को बताया था. मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत रखने से ब्रह्महत्या, गोहत्या और परस्त्रीगमन जैसे घोर पापों से भी मुक्ति मिलती है. इस व्रत के फल से मनुष्य को विभिन्न प्रकार के यज्ञों, दान-पुण्यों और तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से धन और समृद्धि में वृद्धि होती है. इस व्रत के पुण्य से पितरों को भी शांति मिलती है|
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 मई दिन शुक्रवार को तड़के सुबह 1 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगी और 23 मई को रात 10 बजकर मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार, अपरा एकादशी का व्रत 23 मई को ही रखा जाएगा और 24 मई को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाएगा|
अपरा एकादशी के दिन इन चीजों का करें दान-
अन्न: इस दिन अनाज का दान करना बहुत शुभ माना जाता है. आप चावल, गेहूं, दालें या अन्य अनाज अपनी क्षमतानुसार दान कर सकते हैं. इससे घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और बरकत बनी रहती है.
वस्त्र: वस्त्रों का दान करना भी महत्वपूर्ण है. आप नए या पुराने साफ वस्त्र किसी जरूरतमंद को दान कर सकते हैं. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.
धन: अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करना भी उत्तम है. यह दान किसी गरीब व्यक्ति, मंदिर या किसी धार्मिक कार्य में किया जा सकता है.
जूते-चप्पल: गर्मी के मौसम में जूते या चप्पल का दान करना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है. इससे राह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.
जल: प्यासे लोगों को पानी पिलाना या पानी के बर्तन का दान करना भी बहुत शुभ है. निर्जला एकादशी के पास होने के कारण जल का दान विशेष महत्व रखता है. आप मटके या सुराही का दान कर सकते हैं.
फल: फलों का दान करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. आप अपनी पसंद के कोई भी फल दान कर सकते हैं.
धार्मिक पुस्तकें: धार्मिक पुस्तकों का दान करने से ज्ञान का प्रसार होता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है.
गुड़: गुड़ का दान करने से जीवन में मिठास और मधुरता आती है.
घी: घी का दान करना भी शुभ माना जाता है और इससे घर में समृद्धि आती है|
दान करते समय इन बातों का रखें ध्यान-
अपरा एकादशी के दिन लोगों को दान हमेशा श्रद्धा और भक्ति भाव से करना चाहिए और दान गुप्त रूप से करना अधिक फलदायी माना जाता है. किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करना सबसे उत्तम होता है. अपरा एकादशी के दिन इन चीजों का दान करके आप भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में खुशहाली बनाए रख सकते हैं. इससे जीवन में आने वाले कष्टों से छुटकारा मिलता है|
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शनि जयंती पर करें ये आसान उपाय, दूर होगी सारी परेशानियां

न्याय के देवता शनि जयंती का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. पंचांग के अनुसार शनि जयंती हर साल ज्येष्ठ माह की अंतिम तिथि को मनाई जाती है. इस दिन कर्मफल दाता शनि देव की पूजा करने का विधान है. साथ ही शनि जयंती पर दान-पुण्य करना भी बेहद शुभ माना जाता है. इसके अलावा शनि दोष और साढ़े साती से गुजर रहे लोगों के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है. माना जाता है कि शनि जयंती पर अगर कुछ खास उपाय किए जाएं तो शनिदेव जल्द ही कृपा करने लगते हैं. आइए जानते हैं कब है शनि जयंती और साढ़े साती से मुक्ति पाने के क्या उपाय हैं|
शनि जयंती कब है:
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12:11 बजे होगी. जो अगले दिन यानी 27 मई की रात 8:31 बजे समाप्त होगी. ऐसे में शनि जयंती 27 मई 2025 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी|
शनि जयंती पर करें ये खास उपाय-
शनि देव को वृद्धावस्था का स्वामी ग्रह माना जाता है. जिस घर में वृद्ध माता-पिता को खुश रखा जाता है, वहां शनि देव की कृपा बनी रहती है. अगर शनि की पीड़ा दूर करने के लिए पहले बुजुर्गों को खुश रखें नहीं, तो शनि जयंती पर की गई सारी पूजा निष्फल हो जाएगी|
शनि जयंती के दिन गरीबों को लोहे का तवा और चिमटा दें. नंगे पैर चल रहे गरीबों को जूते या कपड़े दें. इससे शनि पीड़ा में बहुत राहत मिलती है|
न्याय के देवता शनि जंयती के दिन कांसे या लोहे के बर्तन में सरसों का तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर इस कटोरी में तेल डालें और फिर इस कटोरी में तेल का दान कर दें. शनि जयंती पर ऐसा करने से नौकरी, व्यापार, विवाह में आने वाली परेशानियां दूर होती हैं|
इस दिन पीपल और शमी के पेड़ के पास दीपक जलाने से कई तरह की परेशानियां दूर होती हैं. शनि की साढ़े साती या ढैय्या होने पर पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए. साथ ही शनिदेव को शमी के फूल भी अर्पित करना चाहिए|
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हमें पशुता से ऊपर उठाकर मानव मनुस्मृति ने बनाया है : शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द

वाराणसी। देश में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा कि मनुस्मृति बहुत खराब किताब है। इतनी खराब कि संसार में जितनी समस्याएं हैं वो इसी के कारण उत्पन्न हो गई हैं। यह भी कहा जाता है कि डॉ. अम्बेडकर ने मनुस्मृति जलाकर उसकी जगह नया संविधान बना दिया इसीलिए कुछ राहत है। जिस मनुस्मृति से लोक-परलोक दोनों सुधर रहे थे, जिस मनुस्मृति ने हमको पशुता से ऊपर उठाकर मानव बनाया उसके बारे में ऐसा प्रचार वही कर सकता है जो हमको नष्ट करना चाहता हो या जो हमारा शत्रु हो। जो विधर्मी लोग हैं उन्हीं के द्वारा सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए यह षड्यंत्र किया गया है।
उक्त उद्गार परम धर्म संसद १००८ के ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने गंगा तट पर स्थित श्रीविद्यामठ में मनुस्मृति पर व्याख्यान करते हुए बताया। उन्होंने कहा कि जब किसी कार्यक्रम में राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री या कोई बड़ा अफसर आता है तो उसी के हिसाब से वहां की व्यवस्थाएं होती हैं और वो स्वयं भी सबके साथ समान व्यवहार नहीं करते। किसी को मंच पर बिठाते हैं तो किसी को आगे वाली कुर्सियों पर, तो किसी को पीछे, लेकिन जब बात करते हैं तो कहते हैं आप लोगों के साथ बड़ी असमानता हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि केवल कहने से कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र नहीं हो जाता, वह स्वयं के होने से होता है। मनुष्य को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र चार भागों में मनु महाराज ने नहीं बाटा। उन्होंने कभी वर्ण व्यवस्था नहीं बनाई और न ही किसी को ब्राह्मण व किसी को शुद्र बनाया। उन्होंने कभी नहीं कहा कि आज से तुम शुद्र हो जाओ और तुम ब्राह्मण हो जाओ। उन्होंने तो केवल जो चार वर्ण पहले से थे उनके कर्तव्य बताए हैं। आप लोग ही शूद्र को पिछड़ी जाति का, एससी, एसटी व न जाने क्या-क्या बोलते हो।
शंकराचार्य जी ने कहा कि अंबेडकर साहेब ने प्रस्ताव पारित कर कहा था आज से 4 वर्ण नहीं होंगे एक ही वर्ण होगा, लेकिन आज तक तो ऐसा नहीं हुआ। अंबेडकर जी ने समाज को दो वर्गों में जरूर बांट दिया एक आरक्षित वर्ग और दूसरा अनारक्षित वर्ग। बदले का बदला बदले को ही बढ़ावा देता है। दलित पिछड़ा वर्ग व शूद्रों की राजनीति तो आज तक चली आ रही है।
शूद्र को पैर की संज्ञा दी गई है, यदि यह अपमान है तो क्यों नहीं लोग अपने पैर काटकर फैंक देते और यह भी तय है कि बिना पैर के व्यक्ति दो कदम भी नहीं चल सकता। पैर शरीर का अभिन्न अंग है उसके बिना शरीर नहीं चल सकता। चरण के तलवे व हाथ की हथेलियां हमारे शरीर का स्विच बोर्ड है। सिर का प्रवेश पैर में नहीं बल्कि पैर का प्रवेश सिर में है।
शंकराचार्य महाराज जी ने कहा कि जिस प्रकार से हर मुसलमान के घर में कुरान, इसाई के घर में बाइबिल होती है उसी प्रकार हर हिन्दू के घर में मनुस्मृति होनी चाहिए। मनुस्मृति केवल लौकिक व्यवस्था ही नहीं बनाती, बल्कि पारलौकिक व्यवस्था भी बनाती है। उक्त जानकारी शंकराचार्य महाराज जी के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय से परम धर्म संसद १००८ के संगठन मंत्री साईं जलकुमार मसन्द साहिब जी के माध्यम प्राप्त हुई।
साईं जलकुमार मसन्द साहिब ने बताया कि "परम धर्म संसद १००८" भारत समेत १०८ देशों की कुल १००८ श्रेष्ठ धार्मिक और सामाजिक विभूतियों का एक अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू संगठन है। यह संगठन देश के पूज्यपाद चारों शंकराचार्यों के मार्गदर्शन में कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य व दायित्व विश्व के हिंदू समाज का वैदिक शास्त्रों के अनुरूप जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करना तथा सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु शास्त्र सम्मत मार्गदर्शन एवं सहयोग करना है। इस अंतर्राष्ट्रीय हिंदू संगठन की स्थापना वर्ष २०१८ में ज्योतिर्मठ और द्वारका शारदामठ के संयुक्त शंकराचार्य, परम पूज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने अपने एक योग्य शिष्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज के संयोजन में की थी, जो अब ज्योतिर्मठ के वर्तमान शंकराचार्य हैं।
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वट सावित्री व्रत 26 मई को, इन विधियों से करें पूजा

सनातन धर्म महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार में से एक वट सावित्री का व्रत है. इसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती है. हिंदी पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. इस बार यह व्रत 26 मई को रखा जाएगा. इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है और वट वृक्ष व्रत को पूर्ण करने के लिए काफी महत्वपूर्ण भी है. इस वट वृक्ष की पूजा किए बिना यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है, लेकिन शहरों में कई बार बरगद का पेड़ नहीं मिल पाता हैं. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो आप घर पर ही इस खास विधि से पूजा कर व्रत का फल प्राप्त कर सकती हैं|
बरगद का पेड़ ना मिले तो क्या करना चाहिए-
वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने के लिए बरगद का पेड़ ना मिले तो आप एक दिन पहले ही किसी से बरगद के पेड़ की टहनी मंगवा लें. और इसी पूजा कर सकती है. मान्यता है कि ऐसा करने से आपको व्रत का पूरा फल प्राप्त हो सकता है|
बरगद की टहनी ना मिले तो क्या करे:
अगर पूजा करने के लिए टहनी या डाली भी ना मिले, तो तुलसी के पौधे के पास पूजा का सारा सामान रखकर वट सावित्री व्रत के नियमों का पालन करते हुए तुलसी मैय्या से अपनी कामना करते हुए पूजन कर सकती हैं|
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मई में मासिक शिवरात्रि 25 मई को, जानें शिव-पार्वती की तिथि और पूजा विधि

हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व माना गया है। यह पर्व हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से यह अविवाहित युवक-युवतियों के लिए फलदायी होता है। इस व्रत को करने से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति और विवाहित लोगों को वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियों से मुक्ति मिलती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि मई के महीने में मासिक शिवरात्रि किस दिन मनाई जाएगी।
मासिक शिवरात्रि मई 2025 की तिथि-
दृक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 25 मई को दोपहर 3:51 बजे होगा और इसका समापन 26 मई को दोपहर 12:11 बजे होगा। इस दिन निशिता काल पूजा मुहूर्त 25 मई की रात 11:58 बजे से 12:39 बजे तक रहेगा। ऐसे में ज्येष्ठ माह की मासिक शिवरात्रि इस वर्ष 25 मई 2025 को मनाई जाएगी।
पंचांग अनुसार विशेष समय-
सूर्योदय: सुबह 5:26 बजे
सूर्यास्त: शाम 7:11 बजे
चंद्रोदय: सुबह 4:16 बजे
चंद्रास्त: शाम 5:22 बजे
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:04 से 4:45 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:36 से 3:31 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:09 से 7:30 बजे तक
इस दिन शिवलिंग का अभिषेक करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दूध, दही, शहद, गंगाजल और बेलपत्र जैसी पवित्र वस्तुओं से भगवान शिव को स्नान कराकर आरती की जाती है। ऐसा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
कैसे करें शिव-पार्वती की पूजा-
अगर आपके वैवाहिक जीवन में तनाव है या विवाह में विलंब हो रहा है, तो मासिक शिवरात्रि पर शिव-पार्वती की विशेष पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, बेलपत्र अर्पित करें और मिठाई का भोग लगाएं। सच्चे मन से की गई यह आराधना जीवन की उलझनों को दूर कर सकती है और घर में सुख-शांति ला सकती है।
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शनिवार को काले तिल से करें ये खास उपाय, शनि की बाधाएं होंगी दूर

यदि जीवन में बार-बार रुकावटें आ रही हैं, कार्य बनते-बनते बिगड़ रहे हैं, या फिर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव आपको परेशान कर रहा है, तो शनिवार के दिन काले तिल से किए गए उपाय आपकी परेशानियों को काफी हद तक दूर कर सकते हैं. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, काले तिल शनि देव को विशेष प्रिय होते हैं और इनके माध्यम से शनिदोष का शमन संभव होता है|
काले तिल का दान करें-
शनिवार को काले तिल किसी गरीब, जरूरतमंद या मंदिर में दान करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं. यह उपाय शनि दोष और पाप कर्मों के प्रभाव को कम करता है|
पीपल पर तिल युक्त जल अर्पित करें-
पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाते समय उसमें काले तिल मिलाएं. इससे पितृ दोष भी शांत होता है और मानसिक तनाव में राहत मिलती है|
तिल और तेल का दीपक जलाएं:
शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ या शनि मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाएं और उसमें थोड़े काले तिल डालें. यह उपाय जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है|
तिल मिले जल से स्नान करें-
स्नान के जल में काले तिल डालकर स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है, साथ ही बुरी नज़र से भी बचाव होता है|
काले तिल व गुड़ का लड्डू चींटियों को अर्पित करें:
शनिवार को गुड़ और काले तिल से बने लड्डू चींटियों को खिलाने से अज्ञात बाधाएं दूर होती हैं और शनि ग्रह का कुप्रभाव कम होता है|
काले तिल और आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं :
आटे में काले तिल मिलाकर गोलियां बनाएं और शनिवार को किसी तालाब या नदी में मछलियों को डालें. यह उपाय शत्रुओं से रक्षा करता है और रोग व ऋण से मुक्ति दिलाता है|
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"मनुस्मृति" में बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है : स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द

  • "वेदों का जो सार है उसी को मनुस्मृति कहा जाता है"
वाराणसी/रायपुर। ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने गंगा के तट पर स्थित श्रीविद्यामठ में मनुस्मृति पर व्याख्यान करते हुए बताया कि लोग कहते है कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया, लेकिन हम स्पष्ट कर दें कि उन्होंने मनुस्मृति को नहीं जलाया, वो तो संविधान जलाना चाहते थे। शंकराचार्य जी ने आगे स्पष्ट करते हुए बताया कि बाबा साहेब ने मनुस्मृति को नहीं जलाया। वह एक ब्राह्मण गंगाधर सहस्रबुद्धे ने जलाई थी, लेकिन उस वक्त वो भी वहाँ मौजूद थे इसलिए उनका नाम आ गया।
शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद महाराज जी ने बताया कि अम्बेडकर संविधान जलाना चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि संविधान बनाने में तो आपकी विशेष भूमिका रही है फिर आप उसे क्यों जलाना चाहते हैं तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैंने एक मन्दिर बनाया लेकिन उसमें यदि शैतान आकर रहने लगे तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? बाबा साहब बाद में खुद संविधान से सन्तुष्ट नहीं थे। मनुस्मृति में तो बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है। सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें यदि बेटा भी कुछ गलत करता है तो उसे भी वही सजा दी जाती है जो किसी अन्य को दी जाती। शंकराचार्य जी ने कहा कि अम्बेडकरवादी लोगों को बाबा साहेब के उद्देश्यों को पूरा करने को आगे आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हर धर्म का एक ग्रन्थ होता है। जैसे इसाईयों का धर्मग्रन्थ बाइबिल है, मुसलमानों का कुरान है, इसी प्रकार हमारा भी एक ग्रन्थ वेद है, लेकिन वेद को यदि पढ़ा जाए तो 4524 पुस्तकें मिलाकर 4 वेद बनते हैं और इन्हें समझने के लिए वेदांग की आवश्यकता होती है। और ज्यादा भी नहीं एक वेदांग की यदि 500 भी पुस्तकें मानी जाए तो करीब 3000 पुस्तकें वेदांग की हो गई। इस तरीके से कुल मिलाकर 7524 पुस्तकें हो गईं। यदि वेद को भी पढ़ा जाए तो पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है। इसलिए इसका सार जानने की आवश्यकता होती है और वेदों का जो सार है उसी को मनुस्मृति कहा जाता है।
शंकराचार्य महाराज जी ने कहा कि बुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा हुए फिर भी हम उनको पूजते नहीं हैं। राम व कृष्ण को क्षत्रिय कुल में पैदा होने के बाद भी हम पूजते हैं। यदि धर्म का पालन करते वक्त मौत भी आ जाए तो भी उसमें हमारा कल्याण है। इसलिए धर्म कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म से ही प्रतिष्ठा मिलती है। यदि स्वर्ग में भी जाएंगे तो वहाँ भी प्रतिष्ठा मिलेगी।
उन्होंने कहा कि श्रुति व स्मृति वचन में श्रुति का ज्यादा महत्व होता है। पशु धार्मिक नहीं होता, इसलिए उसके लिए कोई धर्मशास्त्र नहीं होता। जो जैसा है उसकी प्रतिभा को समझकर उसके हिसाब से काम करवाना भी एक कला है। हमारा भारत का संविधान मनुस्मृति को पूरा सम्मान देता है। परम धर्म संसद १००८ के संगठन मंत्री साईं जलकुमार मसन्द साहिब के माध्यम उक्त जानकारी देते हुए शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि श्रीविद्यामठ काशी में शङ्कराचार्य जी महाराज का प्रवचन प्रतिदिन सायंकाल 5 बजे से हो रहा है।
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खाटू श्याम जी के मंदिर में प्रवेश से पहले करें ये 5 काम

  • श्याम बाबा की कृपा बरसेगी
खाटू श्याम जी को हारे का सहारा, तीन बाण धारी और शीश का दानी जैसे कई नामों से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि खाटू श्याम जी हारे हुए का साथ देते हैं और अपने भक्तों को सभी संकटों से बचाते हैं। दरअसल खाटू श्याम जी भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं, जिनका जिक्र महाभारत युद्ध के दौरान मिलता है। ऐसे में अगर आप भी सीकर में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में दर्शन करने की योजना बना रहे हैं तो ये काम जरूर करें, ताकि आपको खाटू नरेश का आशीर्वाद मिल सके।
मिले ये वरदान-
बर्बरीक को अपना शीश दान करने पर भगवान कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया कि कलियुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे और प्रसिद्धि पाओगे। इसीलिए आज हम सभी उन्हें खाटू श्याम (बाबा खाटू श्याम) के नाम से जानते हैं।
इस तरह चढ़ाएं अरदास-
सबसे पहले बाबा के चरणों में अपनी अरदास या अर्जी चढ़ाने के लिए आपको लाल रंग की कलम, सूखा नारियल और लाल रंग का धागा खरीदना चाहिए। इसके बाद अपने घर के पूजा स्थल पर बैठकर एक नए पन्ने पर लाल कलम से अपनी मनोकामना लिखें। इसके बाद इस पन्ने को जिस पर मनोकामना लिखी हो मोड़ लें और अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा रख लें। इसके बाद पन्ने और दक्षिणा के साथ नारियल को लाल धागे से बांध दें। अब अपनी मनोकामना बाबा खाटू श्याम जी के मंदिर में अर्पित करें और उसकी पूर्ति की कामना करें।
इन बातों का रखें ध्यान-
अपनी मनोकामना लिखते समय ध्यान रखें कि एक बार में केवल एक ही मनोकामना लिखनी है। साथ ही ऐसी कोई भी मनोकामना न लिखें, जिसके पूर्ण होने की संभावना न हो या जिसमें किसी का अहित छिपा हो। हमेशा साफ मन से बाबा के चरणों में प्रार्थना करें और पूरी आस्था रखें।
आप ये काम कर सकते हैं-
अगर आप किसी कारणवश खाटू श्याम जी के मंदिर नहीं जा पा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपने घर पर ही प्रार्थना कर सकते हैं। इसके लिए बाबा खाटू श्याम की मूर्ति या तस्वीर के सामने अपनी अर्जी अर्पित करें और खाटू बाबा से अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें।
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कब रखा जाएगा निर्जला एकादशी व्रत, जानें इस दौरान जल ग्रहण करने के नियम

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, जिसे भगवान विष्णु की कृपा पाने का एक प्रमुख माध्यम माना गया है। वर्षभर में कुल 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन इन सभी में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, सबसे कठिन और फलदायक मानी जाती है।
इस व्रत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अन्न और फल तो दूर की बात है, पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए इसका नाम 'निर्जला' पड़ा। यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को अपने भीतर संयम, श्रद्धा और भक्ति का समुच्चय लाकर भगवान विष्णु की उपासना करनी होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत को सबसे पहले भीमसेन ने किया था, जो अपने भोजन प्रेम के कारण अन्य एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। लेकिन जब उन्होंने इस निर्जला व्रत का पालन किया, तो उन्हें वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर फल की प्राप्ति हुई। इसलिए इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी न केवल कठिन तप का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में धैर्य, त्याग और आस्था के गहन भाव को जागृत करती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में वैकुण्ठधाम की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी तिथि इस वर्ष 6 जून 2025 को देर रात 2:15 बजे से शुरू होकर, अगले दिन 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी। चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।
क्या निर्जला एकादशी पर पानी पिया जा सकता है?
हालांकि इस दिन जल ग्रहण नहीं किया जाता, परन्तु कुछ स्थितियों में जल का प्रयोग मान्य है।
पूजा के समय आचमन हेतु-
व्रतधारी व्यक्ति को पूजा के समय तीन बार आचमन करना होता है, इसमें थोड़ा-सा जल लिया जाता है।
दवा या शारीरिक कमजोरी की स्थिति में
यदि व्रतधारी अस्वस्थ है या कमजोरी अधिक हो जाए, तो थोड़ी मात्रा में जल पीना धर्मसम्मत माना गया है, लेकिन इसे व्रत का पूर्ण पालन नहीं माना जाता।
व्रत का पारण-
अगले दिन द्वादशी तिथि के समय व्रत का पारण (उपवास का समापन) जल और फलाहार से किया जाता है।
जल ग्रहण करने का सही समय:
यदि बहुत आवश्यक हो, तो जल सूर्यास्त के बाद नहीं, बल्कि दिन के समय, अधर्य या पूजा के समय लिया जा सकता है।
आचमन या भगवान को जल अर्पित करते समय थोड़ा-सा जल ग्रहण करना व्रत को भंग नहीं करता।
निर्जला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व-
इस एकादशी को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन ने इस कठिन व्रत को रखा था और उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति हुई थी। यह व्रत न केवल संयम का अभ्यास कराता है, बल्कि यह माना जाता है कि इसे करने से सालभर की सभी एकादशियों का फल एकसाथ मिल जाता है, यहां तक कि अधिकमास की एकादशियों का भी। यही कारण है कि इसे साल की सबसे पुण्यदायक एकादशी माना जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य इंद्रियों पर संयम और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है। जो व्यक्ति साल भर की एकादशियाँ नहीं कर पाते, वे सिर्फ इस एक निर्जला एकादशी को करके पूरा पुण्य अर्जित कर सकते हैं। इसलिए इसे महाएकादशी भी कहा जाता है।
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शुक्रवार को करें लक्ष्मी माता चालीसा का पाठ

  • मिलेगा धन, वैवाहिक सुख और संतान का आशीर्वाद
सनातन परंपरा में शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी और माता संतोषी की पूजा-अर्चना के लिए विशेष माना गया है। मान्यता है कि यदि इस दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ देवी लक्ष्मी की उपासना की जाए, तो जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और दरिद्रता दूर हो जाती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्रवार को व्रत रखना और देवी का ध्यान करना शुभ फल देने वाला होता है। इससे न केवल घर की परेशानियां दूर होती हैं, बल्कि संतान सुख और वैवाहिक जीवन में भी शुभता आती है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए यह दिन मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना के लिए उत्तम माना गया है।
ऐसे में इस दिन यदि लक्ष्मी चालीसा का विधिपूर्वक पाठ किया जाए, तो मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए पढ़ते हैं सम्पूर्ण लक्ष्मी चालीसा यहां।
दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
दोहा
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
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शनि जयंती पर करें ये आसान उपाय

  • ढैय्या और साढ़ेसाती का कष्ट होगा दूर
इस साल ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का आरंभ 26 मई को सुबह 10 बजकर 54 मिनट से होगा, वहीं 27 मई को सुबह 8 बजकर 34 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी। उदयातिथि की मान्यता के अनुसार शनि जयंती 27 मई को ही मनाई जाएगी। इस दिन भक्त शनि देव को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ के ही साथ दान भी करेंगे। इस दिन शनि किए गए कुछ उपाय ढैय्या और साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से भी आपको बचा सकते हैं। आज हम आपको इन्हीं उपायों के बारे में जानकारी देंगे।
शनि जयंती पर करें ये उपाय~
शनि जयंती के दिन आपको सुबह के समय स्वच्छ होकर पूजा स्थल में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद गणेश जी का ध्यान और गणेश जी के मंत्रों का जप करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। कम से कम 7 बार इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का बुरा प्रभाव भी कम होता है।
इस दिन पीपल के पेड़ तले सरसों के तेल का दीपक जलाने से भी आपको लाभ मिलता है। ऐसा करने से शनि देव तो प्रसन्न होते ही हैं साथ ही आपको पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
शनि जयंती के दिन छाया दान करना भी शुभ माना जाता है। आपको किसी पात्र में सरसों का तेल लेकर उसमें अपनी छाया देखनी है और उसके बाद उस तेल का दान कर देना है। ऐसा माना जाता है कि शनि जयंती के दिन छाया दान करने से शनि ग्रह से जुड़ी बड़ी से बड़ी परेशानी का अंत हो जाता है। साथ ही आपके अटके कार्य भी पूरे होते हैं।
शनि देव को जरूरतमंदों की मदद करने वाले लोग बहुत पसंद हैं। इसलिए शनि जयंती के दिन अगर आप सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान कर सकें या उनकी पसंद की चीजें उन्हें दे सकें तो शनि की शुभ दृष्टि आप पर पड़ती है और जीवन की विघ्न बाधाएं दूर होने लगती हैं।
इस दिन जानवारों को रोटी, दाना आदि खिलाने से भी शनि प्रसन्न होते हैं। खासकर कुत्ता, कोआ, चींटी आदि को अगर आप अन्न डालते हैं तो शनि की बुरी दृष्टि आप पर से हट जाती है। साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव भी ऐसा करने से कम हो जाता है।
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