धर्म समाज

मासिक शिवरात्रि के दिन सुनें ये व्रत कथा

  • विवाह में आ रही रुकावटें होंगी दूर
मासिक शिवरात्रि का व्रत भोलेनाथ को समर्पित है. यह व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन रखा जाता है. मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. वहीं इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से व्रत पूर्ण माना जाता है, जिससे व्यक्ति के विवाह में आ रही सभी बाधाएं भी दूर होती हैं|
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहा करता था. ब्राह्मण की पत्नी बहुत पूजा-पाठ करती थी. वो हमेशा ही मासिक शिवरात्रि का व्रत किया करती थी. पत्नी को देखकर ब्राह्मण भी मासिक शिवरात्रि का व्रत करने लगा. एक बार मासिक शिवरात्रि पर खूब भक्ति भाव से दोनों पति-पत्नी ने भगवान भोलेनाथ के पूजन के साथ-साथ उनका व्रत किया और शिव जी से हमेशा कृपा बनाए रखने का आशीर्वाद मांगा. इसके बाद ब्राह्मण दंपति ने गांव के पथिकों को दक्षिणा भी दी|
उसी दिन गांव में एक ब्राह्मण आया हुआ था, जो बहुत दुखी था. ब्राह्मण पति-पत्नी ने उसे बुलाकर भगवान शिव की कृपा से पूरा भोजन करवाया. ब्राह्मण पति-पत्नी ने मासिक शिवरात्रि पर एक दुखियारे को भोजन कराने का सौभाग्य प्राप्त किया. इसके बाद भगवान शिव ने ब्राह्मण दंपति पर अपनी विशेष कृपा की. भगवान शिव के आशीर्वाद से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई|
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मासिक शिवरात्रि आज, इन चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक

  • पूरी होगी हर मनोकामना
शिवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान शिव के प्रति श्रद्धा, भक्ति और आस्था का प्रतीक है। प्रत्येक माह में एक विशेष दिन होता है जिसे मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव की उपासना, ध्यान और पूजा का दिन होता है और इसे बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करने से जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और समग्र शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। विशेष रूप से, मासिक शिवरात्रि 2025 के दिन महादेव का अभिषेक किस प्रकार करें, ताकि सभी परेशानियां दूर हो और जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान हो, इस पर हम विस्तार से बात करेंगे।
मासिक शिवरात्रि का महत्व
शिवरात्रि का पर्व महा शिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि के रूप में दो प्रमुख रूपों में मनाया जाता है। जहां महा शिवरात्रि का आयोजन साल में एक बार होता है, वहीं मासिक शिवरात्रि हर महीने की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव की उपासना, साधना और प्रार्थना का दिन होता है। विशेष रूप से शिवजी की उपासना से मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है, साथ ही उनके समग्र जीवन में सुधार आता है। मासिक शिवरात्रि के दिन विशेष रूप से रात्रि जागरण, ध्यान, पूजा और व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव का पूजन विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
भगवान शिव का अभिषेक किन चीजों से करें?
जल- जल को शिव अभिषेक के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र सामग्री माना जाता है। जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से शांति और समृद्धि के मार्ग खुलते हैं। साथ ही, जल के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। शिवलिंग पर शुद्ध जल अर्पित करते समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें। इसके बाद जल से अभिषेक करें।
दूध- दूध भगवान शिव के अभिषेक में बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह शुद्धता और अच्छाई का प्रतीक है। दूध से अभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त के सभी पापों का नाश होता है। दूध से अभिषेक करने के दौरान, एक विशेष ध्यान रखें कि दूध शुद्ध और ताजे हो। इसे भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित करें और मंत्र का जाप करें।
दही- दही का भी भगवान शिव के अभिषेक में विशेष स्थान है। यह शांति और सौम्यता का प्रतीक होता है। दही का अभिषेक करने से मानसिक शांति और जीवन में सुख-संतोष की प्राप्ति होती है। दही से अभिषेक करने के बाद एक शांतिपूर्ण वातावरण में भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करें।
गंगाजल- गंगाजल का उपयोग शिव के अभिषेक में अत्यधिक शुभ माना जाता है। गंगा का जल पवित्रता का प्रतीक है और इसका उपयोग भगवान शिव के साथ-साथ सभी देवताओं की पूजा में किया जाता है। गंगाजल से अभिषेक करने से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गंगाजल से अभिषेक करने के बाद अपने पूरे परिवार के लिए प्रार्थना करें। गंगाजल से अभिषेक करने से जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
शहद- शहद भी एक और महत्वपूर्ण सामग्री है जो शिव अभिषेक में उपयोगी होती है। शहद का उपयोग करने से भक्त के जीवन में मधुरता आती है और भगवान शिव की कृपा से हर काम में सफलता मिलती है। शहद से अभिषेक करते समय शिवलिंग को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शहद अर्पित करें। साथ ही ॐ महादेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
चीनी- चीनी का भी भगवान शिव के अभिषेक में एक विशेष स्थान है। यह मिठास का प्रतीक है और जीवन में खुशियों के आने का संकेत देती है। चीनी से अभिषेक करने से सुख, समृद्धि और प्रेम बढ़ता है। चीनी का प्रयोग शुद्ध रूप में करें और शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके बाद ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें।
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शनिवार को शमी के पत्तों से करें ये खास उपाय

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन विशेष रूप से शनि देव को समर्पित होता है। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा गया है, जो हमारे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। अगर शनि की दृष्टि प्रतिकूल हो तो जीवन में रुकावटें, आर्थिक समस्याएं, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ और मानसिक तनाव हो सकता है। लेकिन अगर शनि देव प्रसन्न हो जाएं, तो व्यक्ति को असीम धन, सफलता और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। इन्हीं उपायों में से एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय है शमी के पत्तों का प्रयोग। शमी का पेड़ शनि देव को अत्यंत प्रिय माना गया है और इससे जुड़े उपायों को अपनाकर हम शनि के नकारात्मक प्रभाव को शांत कर सकते हैं।
शमी के पेड़ पर दीपक जलाएं-
शमी के पौधे पर सरसों के तेल का दीपक जलाना और अर्घ्य अर्पित करना सच में शनि देव को प्रसन्न करने का एक बेहतरीन तरीका है। इससे न सिर्फ शनि के दोष शांत होते हैं बल्कि आर्थिक तंगी भी धीरे-धीरे दूर होने लगती है। गमले में एक रुपये का सिक्का और सुपारी रखना भी कमाल का टोटका है। यह न सिर्फ व्यर्थ खर्चों को रोकता है बल्कि धन की बचत और स्थिरता लाता है।
शमी के पत्तों को तिजोरी या पर्स में रखें-
शनिवार को शमी के पेड़ से साफ-सुथरे और ताजे पत्ते तोड़ें। उसे किसी लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी, लॉकर या पर्स में रखें। यह उपाय आर्थिक समृद्धि लाता है और धन की हानि से रक्षा करता है।
शमी के पेड़ पर तेल चढ़ाएं-
शनिवार के दिन शमी के पेड़ पर जाकर सरसों का तेल चढ़ाएं। साथ ही पेड़ की जड़ में दीपक जलाकर शनि मंत्र का जाप करें। इससे शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
शमी के पत्तों से हटाएं बुरी नजर-
बच्चों या घर के सदस्यों को नज़र लगी हो तो शमी के पत्ते से 7 बार उतारा करें। फिर उन पत्तों को जल में बहा दें या किसी सुनसान स्थान पर फेंक दें। यह उपाय नज़र दोष को खत्म करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
इन मंत्रों का करें जाप-
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
इस मंत्र का जाप करने से शनि की सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और मन शांत रहता है।
काले तिल करें अर्पित-
जो जातक साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में हैं, उनके लिए शनिवार का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन शमी के पौधे की जड़ में काले तिल और उड़द की काली दाल अर्पित करें। यह उपाय शनि देव के दुष्प्रभाव को शांत करने और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करेगा। शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होगी और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
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ब्रह्ममुहूर्त में इस प्रकार करें मंत्र का जाप, भाग्य में होगा सुधार

पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व होता है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र को बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है। इस मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है। देवी गायत्री वेदों की माता हैं जिसमें वर्तमान, भूत और भविष्य शामिल हैं। इसी कारण से उन्हें त्रिमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है। कमल के फूल पर विराजमान मां गायत्री धन और समृद्धि प्रदान करती हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति मिलती है और जीवन में खुशियां आती हैं। इस मंत्र का जाप करने से कोई भी मनुष्य ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। गायत्री मंत्र का जाप ईश्वर तक पहुंचने और मन की शांति पाने का सबसे अच्छा और सरल तरीका माना जाता है। गायत्री मंत्र का नियमित और विधिपूर्वक जाप करने से जल्द ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
गायत्री मंत्र के नियम-
गायत्री मंत्र का विधिपूर्वक जाप आस्था और सच्ची भावना से करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। प्रतिदिन पूजा में गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करना जरूरी माना जाता है। वहीं अगर आप गायत्री मंत्र की 11 माला का जाप करते हैं तो आपको हमेशा ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके लिए सुबह अपने दैनिक कामों से निपटकर और स्नान करके अपने घर के मंदिर के सामने सुखासन या पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएं। अब इस मंत्र का जाप करना शुरू करें।इस मंत्र का जाप करते समय ध्यान रखें कि आपके होंठ हिलते रहें लेकिन आवाज इतनी धीमी हो कि पास बैठा व्यक्ति भी न सुन सके। इस तरह से माला जपने और मंत्र जपने से सद्बुद्धि का संचार होता है। जाप करने से पहले शुभ मुहूर्त में कांसे के बर्तन में जल भर लें। गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं उपसर्ग लगाकर गायत्री मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप के बाद बर्तन में भरा पानी पी लें। इससे किसी भी बीमारी से मुक्ति मिलती है।
गायत्री मंत्र के लिए ये तीन समय सर्वोत्तम हैं-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र के जाप के लिए तीन समय प्रभावी माने गए हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने का पहला समय सूर्योदय से थोड़ा पहले से लेकर सूर्योदय के थोड़ा बाद तक है। गायत्री मंत्र का जाप दोपहर के समय भी किया जा सकता है। जबकि तीसरा समय सूर्यास्त से ठीक पहले है। सूर्यास्त से पहले जाप शुरू करें और सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक करें।
गायत्री मंत्र के लाभ-
इस मंत्र के जाप से सभी संकट निष्फल हो जाते हैं। इसका प्रयोग हर क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला सिद्ध हुआ है। मनोकामना पूर्ति के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप बहुत कारगर माना जाता है। नौकरी या व्यापार में परेशानी होने पर गायत्री मंत्र का जाप लाभकारी होता है। सभी तरह की बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप अचूक माना जाता है। यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
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इन 3 राशियों के लोगों पर हमेशा रहती है सूर्य की कृपा

ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह मौजूद हैं, जिन्हें नवग्रह भी कहा जाता है। इन ग्रहों में सूर्य, बुध, चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति, शुक्र, शनि और राहु-केतु का नाम शामिल है। हालांकि राहु और केतु को "छाया ग्रह" माना गया है। ये सभी अपने विशेष स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। ग्रहों के इन प्रभावों से सभी 12 राशियों पर इसका असर पड़ता है। इस दौरान सूर्य को सबसे खास ग्रह माना गया है और उन्हें ज्योतिष में ग्रहों के राजा का दर्जा प्राप्त है। वह आत्मा, अधिकार, सम्मान, नेतृत्व गुण और पिता के कारक माने जाते हैं।
व्यक्ति की कुंडली में उनकी स्थिति जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। यदि कुंडली में सूर्य मजबूत न हो, तो व्यक्ति के आत्मविश्वास में कमी आने लगती हैं और वह कई तरह की समस्याएं भी झेलता है। परंतु कुछ राशियों पर ग्रहों के राजा सूर्य की सदा कृपा बनी रहती हैं और यह सभी क्षेत्र में तरक्की भी करते हैं। आइए इन लकी राशि वालों के नाम जानते हैं।
मेष राशि- वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मेष राशि सूर्य की प्रिय राशि में से एक है। इस राशि के जातकों पर उनकी सदैव कृपा बनी रहती हैं। सूर्य के प्रभाव से इनके आत्मविश्वास में वृद्धि और भाग्य बदलता है। समाज में मान-सम्मान मिलता है और ये लोग अपनी मेहनत और लगन से सभी कार्यों में सफलता हासिल करते हैं।
सिंह राशि- सूर्य सिंह राशि के स्वामी ग्रह हैं और इन जातकों पर वह हमेशा मेहरबान रहते हैं। सूर्य के प्रभाव से सिंह राशि के लोगों को व्यापार, करियर, निवेश और शिक्षा में मनचाहे परिणाम मिलते हैं। इस राशि के जातक आत्मविश्वास माने जाते हैं और इनके नेतृत्व गुण इन्हें समाज में मान-सम्मान दिलाते हैं। इस राशि के लोगों का स्वयं पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है।
धनु राशि- सूर्य के प्रभाव से धनु राशि के लोग व्यवसाय और अध्ययन में सफल होते हैं। वह आत्मविश्वास से भरपूर होने के कारण शिक्षा क्षेत्र में भी अच्छा नाम कमाते हैं। सरकारी कार्यों का भी इन्हें लाभ मिलता है। अगर यह किसी नए काम को करना चाहते हैं, तो सूर्यदेव के आशीर्वाद से उसमें आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक सूर्य उपासना के लिए रविवार का दिन सबसे अच्छा माना गया है। यदि धनु राशि वाले इस दिन सूर्य को जल देते हैं, तो कई तरह के लाभ मिल सकते हैं।
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आज वरुथिनी एकादशी, पढ़ें ये व्रत कथा

एकदशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. वैसे तो साल में कुल 24 एकादशी तिथि का व्रत किया जाता है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में वरूथिनी एकादशी का व्रत आयोजित होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त होता है और उसके जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है. वहीं वरूथिनी एकादशी के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से व्रत पूरा माना जाता है|
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय राजा मांधाता का राज्य नर्मदा नदी के तट पर बसा था. वे धर्मात्मा राजा थे. वे अपनी प्रजा की सेवा करते थे और पूजा, पाठ, धर्म, कर्म में उनका मन लगता था. एक दिन वे जंगल में चले गए और वहां पर तपस्या करनी शुरू कर दी. वे तपस्या में काफी समय तक लीन रहे. एक दिन एक भालू वहां पर आया और राजा मांधाता पर हमला कर दिया|
इस हमले में भालू ने राजा मांधाता के पैर को पकड़ लिया और घसीटने लगा. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और भगवान के तप में ही लगे रहे. उन्होंने अपने प्रभु श्रीहरि का स्मरण करके जीवन रक्षा की प्रार्थना की. इतने समय में भालू उनको जंगल के और अंदर लेकर चला गया. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए. उन्होंने उस भालू का वध कर दिया और राजा मांधाता के प्राण बच गए. भाल के हमले में राजा मांधाता का पैर खराब हो गया था. इस बात से वे काफी दुखी थे|
तब भगवान विष्णु ने राजा मांधाता को बताया कि यह तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्मों का ही फल है. तुम्हें परेशान नहीं होना चाहिए. जब वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में एकादशी आए तो उस दिन मथुरा में भगवान वराह की पूजा विधिपूर्वक करो. उस व्रत और पूजन के प्रभाव से एक नया शरीर प्राप्त होगा|
श्रीहरि की ये बात सुनकर राजा मांधाता खुश हो गए. वे प्रभु की आज्ञा पाकर वैशाख कृष्ण एकादशी यानि वरूथिनी एकादशी को मथुरा पहुंच गए. उन्होंने वरूथिनी एकादशी का व्रत रखा और भगवान वराह की विधिपूर्वक पूजा की. व्रत के बाद पारएा करके उपवास को पूरा किया. इस व्रत के पुण्य से उनको एक नया शरीर प्राप्त हुआ. वे अपने राज्य वापस लौट आए और सुखी जीवन व्यतीत करने लगे. जब उनकी मृत्यु हुई तो उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई. उनको सद्गति मिली|
ऐसी ही जो भी व्यक्ति वरूथिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करता है और वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा सुनता है, उस पर प्रभु हरि की कृपा होती है. उसके पाप मिटते हैं और वह मोक्ष पा जाता है. वह भयहीन हो जाता है|
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कुंडली में कालसर्प दोष तो करें इस मंत्र का जाप, मिलेगी मुक्ति

कुंडली में कालसर्प दोष से लोग परेशान रहते हैं। इससे काम में सफलता नहीं मिलती। मानसिक परेशानी बनी रहती है। मेहनत का फल नहीं मिलता। कालसर्प दोष का योग होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव की पूजा से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की पूजा के दौरान अगर आप शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करते हैं और उस समय इत्र और कपूर का इस्तेमाल करते हैं तो कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र को बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। आइए जानते हैं शिव पंचाक्षर स्तोत्र के बारे में।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र-
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:।।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:।।
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:।।
यह भी पढ़ें: कुंडली में क्या है कालसर्प योग? कैसे पहचानें? जानें बचाव के 7 उपाय
वशिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:।।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः।।
कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए सावन में रुद्राभिषेक सबसे अच्छा उपाय है। सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे अच्छा महीना माना जाता है। रुद्राभिषेक करने से आप बीमारियों और बुराइयों से मुक्ति पा सकते हैं। शिव पूजा में आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप भी कर सकते हैं। यह सबसे सरल और प्रभावशाली मंत्र है।
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चंद्र ग्रहण 2025 में दूसरी बार लगेगा चंद्र ग्रहण, भारत में रहेगा दृश्य

खगोल विज्ञान के अनुसार, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो पृथ्वी के कारण सूर्य की रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है। इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है। आपको बता दें, चंद्र ग्रहण खगोल विज्ञान की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है और इसका असर देश-दुनिया पर भी देखने को मिलता है। इसलिए जब भी कोई ग्रहण लगता है, तो खास सावधानियां बरती जाती हैं। इस बार 14 मार्च 2025 को होली के दिन साल का पहला चंद्र ग्रहण लग चुका है। इसके बाद अब सबकी नजरें दूसरे चंद्र ग्रहण पर हैं। आपको बता दें, साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को लगने जा रहा है। यह ग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा के दिन लगेगा। ऐसे में आइए जानते हैं इसके समय और प्रभाव के बारे में विस्तार से...
चंद्र ग्रहण का समय
साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को लगेगा, जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि है। यह ग्रहण रात 9:58 बजे शुरू होगा, जो देर रात 1:26 बजे खत्म होगा। यह ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। खास बात यह है कि यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसके अलावा यह एशिया, यूरोप, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर में भी दिखाई देगा।
सूतक काल मान्य होगा
ज्योतिषियों के अनुसार, 7 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य होगा। आपको बता दें, चंद्र ग्रहण शुरू होने से हमेशा 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है। इस दौरान भोजन, पूजा, यात्रा और खरीदारी वर्जित होती है।
चंद्र ग्रहण के दिन क्या न करें
ग्रहण लगने पर मंदिरों में मूर्तियों को छूने से बचें।
इस दौरान पूजा-पाठ न करें। यह अशुभ होता है।
कैंची, सुई-धागा और नुकीली चीजों का इस्तेमाल न करें।
ग्रहण को देखने की गलती न करें।
ग्रहण के दौरान महिलाओं को श्रृंगार नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान बाहर जाने से बचना चाहिए, साथ ही कोई नया काम करने की गलती भी न करें। ग्रहण के दौरान खाना पकाना और खाना उचित नहीं है। इस दौरान तेल मालिश न करें। नाखून और बाल काटने से भी बचें। ग्रहण के दौरान बहुत ज्यादा भागदौड़ करने से बचना चाहिए।
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अप्रैल में इस दिन मनाएं मासिक शिवरात्रि

जानिए...तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दूसरा महीना वैशाख चल रहा हैं इस साल 14 अप्रैल से वैशाख महीने का आरंभ हुआ हैं। जिसका समापन 13 मई 2025 को होगा। धार्मिक मान्यताओं में इस महीने को बहुत ही शुभ महीना माना जाता हैं। क्योकि यह मासिक शिवरात्री का महीना होता हैं। इस दिन बाबा भोलेनाथ का व्रत किया जाता हैं पंचाग के अनुसार, मासिक शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता हैं।
वैशाख मासिक शिवरात्रि के मुहूर्त
26 अप्रैल की सुबह 08:27 मिनट पर शुभ मुहूर्त और समापन अगले दिन 27 अप्रैल को सुबह 04:49 मिनट पर होगा और 26 अप्रैल को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जायेगा। शिव की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती हैं। इस दिन भगवान को कुछ चीजों का भोग लगाया जाना बेहद ही शुभ माना जाता हैं।
इस दिन भवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती हैं पूजा में भोग का भी बड़ा महत होता हैं। इसके बिना पूजा सम्पन्न नहीं होती हैं। ऐसे में भगवान की प्रिय भोग लगाना चाहिए इस दिन भगवान को मालपुआ खीर फल ठंडाई और लस्सी को भोग में लगाया जाता हैं ये सभी भगवान को बेहद प्रिय हैं।
बता दें इस बार मासिक शिवरात्रि पर कई शुभ योग बनने जा रहे हैं अभिजीत महूर्त में सुबह 11:53 मिनट से लेकर दोपहर 12:45 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा इस दिन भद्रावास योग भी बन रहा हैं इसका शुभ योग सुबह 08:27 मिनट होगा।
मासिक शिवरात्रि व्रत-पूजा की विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन भक्त सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत-पूजन करते हैं। और रात को शुभ महूर्त पर मासिक शिवरात्रि की पूजा करते हैं। पूजा के समय पहले शिवलिंग को पानी और फिर दूध से जलाभिषेक करते हैं। इसके बाद पुष्प मालाएं अर्पित करते हैं और शुद्ध घी का दीपक जलाते हैं। इसके बाद एक एक कर अबीर, गुलाल, रोली, बिल्प पत्र, धतूरा चीजें शिवलिंग पार चढ़ाते हैं और फिर भोग लगाकर पूजा और व्रत को सम्पन्न करते हैं।
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वरुथिनी एकादशी के दिन करें इन 7 चीजों का दान, दूर होगी वैवाहिक बाधाएं

वरुथिनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है. जो कि वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हर साल मनाई जाती है. यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें जगत का पालनहार माना जाता है. इस दिन उनकी आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है, चाहे वे इस जन्म के हों या पिछले जन्मों के. इस व्रत को करने से जीवन में सौभाग्य, धन और समृद्धि आती है. यह दुख और दुर्भाग्य को दूर करने वाला माना जाता है|
कुछ धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत अंततः मोक्ष की ओर ले जाता है, जिससे आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है. यह व्रत जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों, दुखों और परेशानियों से छुटकारा दिलाने में सहायक माना जाता है. वरुथिनी एकादशी के दिन दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है. इस दिन किए गए दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल दिन बुधवार को शाम 04 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 अप्रैल दिन गुरुवार को दोपहर 02 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, वरुथिनी एकादशी 24 अप्रैल दिन गुरुवार को ही मनाई जाएगी. इसके अलावा व्रत का पारण 25 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 46 मिनट से 08 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा|
वरुथिनी एकादशी पर इन चीजों का करें दान-
केला: भगवान विष्णु को केला अत्यंत प्रिय है. वरुथिनी एकादशी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को केला दान करना शुभ माना जाता है. इससे वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और प्रेम बढ़ता है|
मौसमी फल: अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार अन्य मौसमी फलों का दान करना भी कल्याणकारी होता है. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है और रिश्तों में मधुरता बनी रहती है|
धन: वरुथिनी एकादशी के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करना भी शुभ माना जाता है. इससे आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन में स्थिरता आती है. दान करने से पहले भगवान विष्णु के सामने धन अर्पित करें|
पीले वस्त्र: भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है. इस दिन पीले वस्त्रों का दान करना, विशेष रूप से विवाहित जोड़ों को, वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाता है और आपसी समझ बढ़ाता है|
अन्न: वरुथिनी एकादशी पर अन्न का दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इससे न केवल दान करने वाले को पुण्य मिलता है, बल्कि यह पितरों को भी तृप्त करता है, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं|
मिट्टी का घड़ा भरकर जल: गर्मी के मौसम में पानी से भरा मिट्टी का घड़ा दान करना बहुत पुण्य का कार्य है. इससे न केवल राहगीरों को राहत मिलती है, बल्कि यह आपके वैवाहिक जीवन में शीतलता और प्रेम बनाए रखने में भी सहायक होता है|
तिल: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई है. एकादशी के दिन काले तिल का दान या उसे जल में प्रवाहित करना भगवान विष्णु और शनिदेव दोनों को प्रसन्न करता है, जिससे वैवाहिक जीवन की परेशानियां कम होती हैं|
वरुथिनी एकादशी का महत्व-
हिन्दू धर्म में वरुथिनी एकादशी एक महत्वपूर्ण और फलदायी व्रत है जो भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा, पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करता है. इसके साथ ही इस व्रत के करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी कष्ट दूर होते हैं. इसके अलावा यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दान करते समय श्रद्धा और भक्ति का भाव होना चाहिए. अपनी क्षमता के अनुसार दान करें और जरूरतमंदों की सहायता करें. वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा भी वैवाहिक जीवन की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती है|
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प्रदोष व्रत के दिन इन चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक

  • हर काम में मिलेगी सफलता
सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस व्रत के दिन संध्या के समय भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का विधान है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से जीवन में सुख, शांति और सफलता का आगमन होता है। मान्यता है कि इस दिन शिवलिंग का अभिषेक विशेष विधियों से करने पर महादेव प्रसन्न होते हैं और साधक को आशीर्वाद देते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि किस तरह से शिवलिंह का अभिषेक करना चाहिए।
प्रदोष व्रत तिथि-
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल को सुबह 11: 44 बजे होगी और इसका समापन 26 अप्रैल के दिन सुबह 8:27 बजे होता। उदया तिथि के अनुसार 25 अप्रैल 2025 को वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन शुक्रवार होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रदोष काल होता है, जो शाम 06:53 बजे से राल 09:03 बजे तक रहेगा।
विशेष मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:19 से 5:02 तक
गोधूलि बेला: शाम 6:52 से 7:13 तक
निशीथ काल: रात 11:57 से 12:41 तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:53 से दोपहर 12:45 तक
शिवलिंग पर अर्पण करने के लिए सामग्री-
प्रदोष व्रत की पावन तिथि पर शिवलिंग पर जल और घी अर्पित करना विशेष फलदायक माना गया है। इस दौरान मन में शांतिपूर्वक भगवान शिव का ध्यान करें और अपने जीवन की बाधाओं से मुक्ति हेतु प्रार्थना करें।
इस दिन शिवलिंग पर दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाना भी अत्यंत शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन वस्तुओं से अभिषेक करने से व्यापार में उन्नति होती है, रुके हुए कार्य पूरे होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इन वस्तुओं से न करें शिवलिंग पर अभिषेक-
शिव पूजा के दौरान कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं, जिन्हें अर्पित करना वर्जित माना गया है। विशेष रूप से तुलसी के पत्ते, हल्दी और सिंदूर शिवलिंग पर चढ़ाना अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से जीवन में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
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शमी का पौधा घर में लेकर आता है बरकत, जानिए...इसके फायदे

हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को पूजनीय स्थान दिया गया है और इसलिए घरों में इसका नियमानुसार पूजन किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार केवल तुलसी ही नहीं, बल्कि पीपल, केले और शमी के पेड़ों को भी पूजनीय माना गया है. जिस प्रकार पीपल और केला गुरु का प्रतिनिधित्व करते हैं. उसी प्रकार शमी का पौधा शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है. कहा जाता है कि यदि घर में शमी का पौधा लगाया जाए तो उससे शनि का प्रभाव काफी हद तक कम होता है. इसके अलावा भी शमी का पौधा कई फायदे प्रदान करता है|
शमी का पौधा घर में लगाने के फायदे-
शमी के पौधे को शनि ग्रह का कारक माना जाता है और शास्त्रों के मुताबिक इसे घर में लगाना बेहद शुभ होता है. तुलसी की तरह ही शमी के पौधे की पूजा करना बेहद लाभकारी होता है|
मान्यता है कि शमी के पौधे को घर में लगाने से शनि की दशा शांत होती है और इसलिए शनिवार के दिन शमी के पौध में घी का दीपक अवश्य लगाना चाहिए. शमी के पौधे को साक्षात शनि का रूप माना जाता है|
यदि किसी घर में आए दिन कलेश व कलह का माहौल रहता है वहां शमी के पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए. कहा जाता है कि बुधवार के दिन शमी की पत्तियां भगवान गणेश को चढ़ानी चाहिए. इससे घर का माहौल अच्छा हेाता है. साथ ही घर पर आने वाली परेशानियों से भी छुटकारा भी मिलता है|
कहा जाता है कि प्रदोष काल में शमी के पौधे की पूजा करनी चाहिए. साथ ही उसकी जड़ों में जल अर्पित करने के बाद घी का दीपक जलाना चाहिए. इससे घर परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है|
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मंगलवार के दिन जरूर करें इन मंत्रों का जाप, मिलेंगे विशेष लाभ

सप्ताह में प्रत्येक दिन देवी-देवी देवताओं की उपासना के लिए समर्पित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलवार का दिन हनुमान जी की उपासना के लिए समर्पित है. हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, हनुमान जी अष्टचिरंजीवी देवताओं में से एक हैं. मान्यता है कि आज भी हनुमान जी धरती पर वास करते हैं और भक्तों की प्रार्थना का निवारण करते हैं. ऐसे में मंगलवार के दिन उनकी उपासना करने से व्यक्ति को रोग, दोष और अन्य बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है. आइए पढ़ते हैं हनुमना जी के कुछ चमत्कारी मंत्र-
मंगलवार के दिन करें इन मंत्रों का जाप-
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमितविक्रमाय प्रकट-पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा|
मंगलवार के दिन इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को यश-कीर्ति की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है|
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय रामसेवकाय रामभक्तितत्पराय रामहृदयाय लक्ष्मणशक्ति भेदनिवावरणाय लक्ष्मणरक्षकाय दुष्टनिबर्हणाय रामदूताय स्वाहा|
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आ रही बाधाएं दूर हो जाती है|
ॐ हं हनुमत्ये नमो नमः
श्री हनुमत्ये नमो नमः
जय जय हनुमत्ये नमो नमः
श्री राम दुताय नमो नमः
इन मंत्रों का जाप करने से घर-परिवार में उत्पन्न हो रही नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है|
हनुमान जी के मंत्रों का प्रभाव-
मान्यता है कि हनुमान जी मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति के सभी दुःख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं और चिंताएं दूर हो जाती है.
इसके साथ मंगलवार के दिन इन मंत्रों का जाप करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
इन मंत्रों का जाप शुद्ध मन और तन से करने से रुके हुए कार्य पूरे होने लगते हैं और सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है.
मंगलवार के दिन मंत्र जाप करने से ग्रहों के कारण आ रही समस्याएं भी दूर हो जाती है और कई प्रकार के दोष भी दूर हो जाते हैं|
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सोमवार को करें भगवान शिव के इन 5 मंत्रों का जाप

  • जीवन में नहीं बढ़ेगा कर्ज
हिंदू धर्म में सोमवार के दिन का बहुत अधिक महत्व होता है और ये दिन भगवान शिव को समर्पित है. उन्हें महादेव, शंकर, भोलेनाथ आदि नामों से भी जाना जाता है. शिव की पूजा का विशेष महत्व है और यह कई लाभकारी मानी जाती है. शिव को कर्ज मुक्ति का देवता भी माना जाता है. शिव ध्यान और योग के देवता हैं. उनकी पूजा मन को शांत करती है और शिव की कृपा से व्यक्ति को धन, वैभव और समृद्धि प्राप्त होती है. भगवान शिव की कृपा पाने और जीवन से कर्ज को दूर करने के लिए सोमवार के दिन इन पांच शक्तिशाली मंत्रों का जाप किया जाता है|
ऐसी मान्यता है कि सोमवार के दिन शिव शंकर की पूजा करने से जीवन के सारे दुख खत्म होते हैं. शिव जी के मंत्र भी बहुत शक्तिशाली हैं और माना जाता है कि अगर सोमवार के दिन शिव स्तुति की जाए तो इसका बहुत लाभ भक्तों को होता है. शिव जी के मंत्र पढ़ने से भी इंसान के जीवन के दुख दूर होते हैं. शिव जी के कई सारे ऐसे मंत्र हैं जो इंसान के जीवन की अलग-अलग समस्याओं को दूर करते हैं. जैसे मन को शांत करने का भी मंत्र है. भय मुक्ति का भी अलग मंत्र है. और शक्ति प्राप्ति का भी अलग मंत्र है|
इन मंत्रों का करें जाप-
ॐ नमः शिवाय: यह सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है. इसे नियमित रूप से जपने से सभी तरह की समस्याओं का समाधान होता है.
ऊं पषुप्ताय नमः: इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को धन लाभ होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥: यह मंत्र लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है.
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥: यह गायत्री मंत्र है, जिसका जाप करने से बुद्धि और विवेक बढ़ता है.
ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः: यह मंत्र सभी मनोरथों को पूरा करने वाला है और इससे लोगों को कर्ज से छुटकारा मिलता है|
मंत्र जाप के नियम-
शुद्धता: मंत्र जाप से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहन लें.
शांत वातावरण: किसी शांत जगह पर बैठकर मंत्र का जाप करें.
एकाग्रता: मन को एकाग्र करके मंत्र का उच्चारण करें.
नियमितता: प्रतिदिन निश्चित संख्या में मंत्र का जाप करें|
करें ये उपाय-
सोमवार के दिन शिवलिंग की पूजा करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं और इस दिन जरूरतमंदों को दान करने से भी कर्ज से मुक्ति मिल सकती है. सकारात्मक सोच रखने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आप लंबी उम्र तक जीवन बिताएं और स्वस्थ्य जीवन का हिस्सा बनें तो ऐसे में आपको शिव जी के एक खास मंत्र का इस्तेमाल करना चाहिए. मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को लंबी उम्र का वरदान मिलता है. ये शिव जी के बहुत शक्तिशाली मंत्र है जो काफी प्रचलित भी हैं|
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बेहद शुभ योग में मनाई जाएगी परशुराम जयंती, नोट कर लें सही तिथि

हिंदू धर्म में परशुराम जयंती को बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस दिन को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्हें एक ऐसा अवतार माना जाता है जो ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों की तरह शस्त्रधारी और योद्धा थे। इस दिन अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान परशुराम की पूजा करता है तो उसे साहस और शक्ति का आशीर्वाद मिलता है। आइए जानते हैं परशुराम जयंती 2025 की तिथि, पूजा विधि, महत्व और इससे जुड़ी कुछ खास बातें।
परशुराम जयंती 2025 की तिथि और समय
परशुराम जयंती प्रतिवर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह वही दिन होता है, जब अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है, जिससे इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
परशुराम जयंती की तिथि: 29 अप्रैल 2025, मंगलवार
तृतीया तिथि प्रारंभ: 29 अप्रैल 2025 को सायं 5:31 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:12 बजे
प्रदोष काल में भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, इस वजह से 29 अप्रैल को यह पर्व मनाया जाएगा।
परशुराम जयंती की पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा का संकल्प लें।
पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल से शुद्ध करें।
लकड़ी की चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र रखें।
भगवान परशुराम को चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
परशुराम स्तुति या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
इस दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। गरीबों को अन्न, वस्त्र, तांबे के बर्तन और ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।
ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।
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अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना माना जाता है बेहद शुभ

इस साल 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया का त्यौहार मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। अक्षय तृतीया का दिन सालभर की शुभ तिथियों की श्रेणी में आता है। ऐसे में यह दिन कोई भी मांगलिक कार्य के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। इसके साथ ही अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन सोना की खरीदने से धन-धान्य में बरकत होती है।
अक्षय तृतीया 2025 पर सोना खरीदना का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त- 30 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 11 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का आरंभ- 29 मार्च को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर
तृतीया तिथि समाप्त- 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर
29 अप्रैल को सोना खरीदने का समय- शाम 5 बजकर 31 मिनट से 30 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 11 मिनट तक
30 अप्रैल को सोना खरीदना का शुभ मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 11 मिनट से दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक
अक्षय तृतीया पर सोना नहीं खरीद सकते हैं तो घर ले आएं ये चीजें- चांदी, कौड़ी, मिट्टी का घड़ी या मटका, जौ, घर, वाहन।
अक्षय तृतीया का महत्व-
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का पर्व अत्याधिक शुभ और पवित्र दिन माना जाता है। अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय शब्द का अर्थ कभी कम न होने वाला होता है। इसीलिए इस दिन कोई भी जप, यज्ञ, दान-पुण्य करने का लाभ कभी कम नहीं होता। मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया सौभाग्य एवं सफलता प्रदान करती है। इस दिन सोना की खरीदने से उसमें सदैव वृद्धि होने के साथ ही व्यक्ति को धन-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।
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चारधाम यात्रा के लिए 19 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने कराया रजिस्ट्रेशन

देहरादून। उत्तराखंड में 30 अप्रैल से चारधाम यात्रा का शुभारंभ होने जा रहा है। इस यात्रा के शुरू होने से पहले ही लाखों यात्रियों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। जानकारी के अनुसार, चारधाम यात्रा के लिए अब तक 19 लाख से अधिक यात्रियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के लिए 3-3 लाख से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है, जबकि केदारनाथ के लिए सबसे अधिक रजिस्ट्रेशन हुआ है। केदारनाथ के लिए अब तक लगभग 6 लाख 48 हजार से ज्यादा लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन किया है। इसके अलावा, बदरीनाथ धाम के लिए 5 लाख 74 हजार से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया है।
इतना ही नहीं, हेमकुंड साहिब जाने के लिए भी 32 हजार से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया है। चारधाम यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में अभी से ही उत्साह देखने को मिल रहा है। प्रशासन ने यात्रियों से अपील की है कि वे यात्रा से पहले रजिस्ट्रेशन कराएं और सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें, ताकि यात्रा सुचारू रूप से संपन्न हो सके।
इस बीच, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद नियमित तौर पर चारधाम की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। सीएम धामी ने बीते दिनों देहरादून में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में चारधाम यात्रा की तैयारियों का जायजा लिया था। उन्होंने बताया था, "हमारा लक्ष्य है कि उत्तराखंड आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को बिना किसी परेशानी के चारधाम के दर्शन कराए जाएं। इसके लिए यात्रा से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ लगातार संवाद किया जा रहा है।"
मुख्यमंत्री धामी ने कहा था कि चारधाम यात्रा उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस यात्रा को और सरल बनाने के लिए अगर कोई अतिरिक्त कार्य करने की आवश्यकता होगी, तो उसे तत्काल पूरा किया जाएगा। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिए कि यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की कमी न रहे और श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव प्रदान किया जाए।
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23 अप्रैल से शुरू होगी पंचकोसी यात्रा

  • उज्जैन में भगवान नागचंद्रेश्वर से बल लेकर रवाना होते हैं श्रद्धालु
उज्जैन। पौराणिक मान्यता अनुसार, वैशाख कृष्ण दशमी पर 23 अप्रैल को पंचकोसी यात्रा का शुभारंभ होगा। मध्य प्रदेश में विभिन्न स्थानों से इस यात्रा की शुरुआत होती है। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में भक्त पटनी बाजार स्थित श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर में श्रीफल भेंट कर भगवान से बल लेकर यात्रा पर रवाना होंगे। 27 अप्रैल को अमावस्या के दिन भगवान को मिट्टी का अश्व अर्पित कर बल लौटाने के बाद घरों को रवाना होंगे।
उज्जैन में 118 किलोमीटर की यात्रा-
हमेशा की तरह इस बार भी श्रद्धालु निर्धारित तिथि से दो दिन पहले 21 अप्रैल से प्रथम पड़ाव पिंग्लेश्वर की ओर यात्रा करने लगेंगे। उज्जैन में पंचकोसी यात्रा की निर्धारित तिथि वैशाख कृष्ण दशमी से अमावस्या है।
देशभर के श्रद्धालु पांच दिन पांच कोस की पद यात्रा करते हुए पंचदेव की आराधना करते हैं। नागचंद्रेश्वर के दर्शन के साथ यात्रा शुरू होती है। इसके बाद 118 किलो मीटर की पदयात्रा करते हुए पिंग्लेश्वर, कायावरूहणेश्वर, दुर्दुरेश्वर तथा बिल्वकेश्वर के दर्जन पूजन करेंगे।
नियमानुसार निर्धारित तिथि पर यात्रा की शुरुआत होना चाहिए, लेकिन श्रद्धालु भीड़ से बचने तथा पड़ाव स्थलों पर यात्री सुविधाओं का पहले लाभ प्राप्त करने की होड़ में दो दिन पहले से यात्रा पर रवाना होने लगते हैं।
इस बार भी 21 अप्रैल से श्रद्धालु यात्रा पर रवाना होने लगेंगे। प्रशासन ने परंपरा को देखते हुए ही पड़ाव पर अभी से ही इंतजाम शुरू कर दिए हैं।
सत्तू, दाल बाटी व कैरी, प्याज का उपयोग
पंचकोसी यात्रा वैशाख की भीषण गर्मी में की जाती है। इन दिनों दोपहर का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस है। इस गर्मी में पांच दिन तक खुले में रखना अपने आप में एक तप है। यात्री इस मौसम में खुद को स्वस्थ रखते हुए, धर्म आराधना करने के लिए सुबह सत्तू का सेवन करते हैं।
दिन में दाल बाटी के साथ केरी,प्याज की चटनी का सेवन किया जाता है। छाछ, ककड़ी, मौसमी फल डाइट का हिस्सा रहते हैं।
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